Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005155 | ||
Scripture Name( English ): | Upasakdashang | Translated Scripture Name : | उपासक दशांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-८ महाशतक |
Translated Chapter : |
अध्ययन-८ महाशतक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 55 | Category : | Ang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा पडिगया। गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! इहेव रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणाए ज्झूसियसरीरे भत्तपान-पडियाइक्खिए, कालं अणवकंखमाणे विहरइ। तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्माय जणणाइं सिंगारियाइं इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! महासतया! समणोवासया! किं णं तुब्भं देवानुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे नो विहरसि? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी। तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिना आभोएइ, आभोएत्ता रेवतिं गाहावइणिं एवं वयासी–हंभो! रेवती! अप्पत्थियपत्थिए! दुरंत-पंत-लक्खणे! हीनपुण्णचाउद्दस्सिए! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए! एवं खलु तुमं अंतो सत्तरत्तस्स अलस-एणं वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि। नो खलु कप्पइ गोयमा! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसियस्स भत्तपान-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं अनिट्ठेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुन्नेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए। तं गच्छ णं देवानुप्पिया! तुमं महासतयं समणोवासयं एवं वयाहि–नो खलु देवानुप्पिया! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसंले-हणा-ज्झूसणा-ज्झूसियस्स भत्तपान-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं अनिट्ठेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुन्नेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए तुमे य णं देवानुप्पिया! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं अनिट्ठेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुन्नेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरिया। तं णं तुमं एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरि-हाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि। तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ। तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए भगवं गोयमं वंदइ नमंसइ। तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ भासइ पन्नवेइ परूवेइ–नो खलु कप्पइ देवानुप्पिया! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसियस्स भत्तपान-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं अनिट्ठेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुन्नेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए। तुमे णं देवानुप्पिया! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं अनिट्ठेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुन्नेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं वागरिया। तं णं तुमं देवानुप्पिया! एयस्स ठाणस्स आलोएहिं पडिक्कमाहिं निंदाहिं गरिहाहिं विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि। तए णं से महासतए समणोवासए भगवओ गोयमस्स तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुट्ठेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जइ। तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ रायगिहाओ नयराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उस समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह में पधारे। समवसरण हुआ। परीषद् जुड़ी, धर्म – देशना सूनकर लौट गई। श्रमण भगवान महावीर ने गौतम को सम्बोधित कर कहा – गौतम ! यही राजगृह नगर में मेरा अन्तेवासी – महाशतक नामक श्रमणोपासक पोषधशाला में अन्तिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना में लगा हुआ, आहार – पानी का परित्याग किए हुए मृत्यु की कामना न करता हुआ, धर्माराधना में निरत है। महाशतक की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त, यावत् पोषधशाला में महाशतक के पास आई। श्रमणोपासक महाशतक से विषय – सुख सम्बन्धी वचन बोली। उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा। अपनी पत्नी रेवती द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक महाशतक को क्रोध आ गया। उसने अवधिज्ञान का प्रयोग किया, प्रयोग कर उपयोग लगाया। अवधिज्ञान से जान कर रेवती से कहा यावत् नैरयिकों में उत्पन्न होओगी। गौतम ! सत्य, तत्त्वरूप, तथ्य, सद्भूत, ऐसे वचन भी यदि अनिष्ट – अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, अमनाम – ऐसे हों तो अन्तिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना में लगे हुए, अनशन स्वीकार किए हुए श्रमणोपासक के लिए उन्हें बोलना कल्पनीय – नहीं है। इसलिए देवानुप्रिय ! तुम श्रमणोपासक महाशतक के पास जाओ और उसे कहो कि अन्तिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना में लगे हुए, अनशन स्वीकार किए हुए श्रमणोपासक के लिए सत्य, वचन भी यदि अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, मन प्रतिकूल हो तो बोलना कल्पनीय नहीं है। देवानुप्रिय! तुमने रेवती को सत्य किन्तु अनिष्ट वचन कहे। इसलिए तुम इस स्थान की – आलोचना करो, यथोचित प्रायश्चित्त स्वीकार करो। भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर का यह कथन ‘आप ठीक फरमाते हैं’ यों कहकर विनय – पूर्वक सूना। वे वहाँ से चले। राजगृह नगर के बीच से गुझरे, श्रमणोपासक महाशतक के घर पहुँचे। श्रमणोपासक महाशतकने जब भगवान गौतम को आते देखा तो वह हर्षित एवं प्रसन्न हुआ। उन्हें वन्दन – नमस्कार किया। भगवान गौतम ने श्रमणोपासक महाशतक से कहा – देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान महावीर ने ऐसा आख्यात, भाषित, प्रज्ञप्त एवं प्ररूपित किया है – कहा है – यावत् प्रतिकूल हों तो उन्हें बोलना कल्पनीय नहीं है। देवानुप्रिय ! तुम अपनी पत्नी रेवती के प्रति ऐसे वचन बोले, इसलिए तुम इस स्थान की – आलोचना करो, प्रायश्चित्त करो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire samosarie. Parisa padigaya. Goyamai! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–evam khalu goyama! Iheva rayagihe nayare mamam amtevasi mahasatae namam samanovasae posahasalae apachchhimamaranamtiyasamlehanae jjhusiyasarire bhattapana-padiyaikkhie, kalam anavakamkhamane viharai. Tae nam tassa mahasatagassa samanovasagassa revati gahavaini matta luliya viinnakesi uttarijjayam vikaddhamani-vikaddhamani jeneva posahasala, jeneva mahasatae samanovasae, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta mohummaya jananaim simgariyaim itthibhavaim uvadamsemani-uvadamsemani mahasatayam samanovasayam evam vayasi–hambho! Mahasataya! Samanovasaya! Kim nam tubbham devanuppiya! Dhammena va punnena va saggena va mokkhena va, jam nam tumam mae saddhim oralaim manussayaim bhogabhogaim bhumjamane no viharasi? Tae nam se mahasatae samanovasae revatie gahavainie eyamattham no adhai no pariyanai, anadhayamane apariyanamane tusinie dhammajjhanovagae viharai. Tae nam sa revati gahavaini mahasatayam samanovasayam dochcham pi tachcham pi evam vayasi. Tae nam se mahasatae samanovasae revatie gahavainie dochcham pi tachcham pi evam vutte samane asuratte rutthe kuvie chamdikkie misimisiyamane ohim paumjai, paumjitta ohina abhoei, abhoetta revatim gahavainim evam vayasi–hambho! Revati! Appatthiyapatthie! Duramta-pamta-lakkhane! Hinapunnachauddassie! Siri-hiri-dhii-kitti-parivajjie! Evam khalu tumam amto sattarattassa alasa-enam vahina abhibhuya samani atta-duhatta-vasatta asamahipatta kalamase kalam kichcha ahe imise rayanappabhae pudhavie loluyachchue narae chaurasitivasasahassatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjihisi. No khalu kappai goyama! Samanovasagassa apachchhimamaranamtiyasamlehana-jjhusana-jjhusiyassa bhattapana-padiyaikkhiyassa paro samtehim tachchehim tahiehim sabbhuehim anitthehim akamtehim appiehim amanunnehim amanamehim vagaranehim vagarittae. Tam gachchha nam devanuppiya! Tumam mahasatayam samanovasayam evam vayahi–no khalu devanuppiya! Kappai samanovasagassa apachchhimamaranamtiyasamle-hana-jjhusana-jjhusiyassa bhattapana-padiyaikkhiyassa paro samtehim tachchehim tahiehim sabbhuehim anitthehim akamtehim appiehim amanunnehim amanamehim vagaranehim vagarittae tume ya nam devanuppiya! Revati gahavaini samtehim tachchehim tahiehim sabbhuehim anitthehim akamtehim appiehim amanunnehim amanamehim vagaranehim vagariya. Tam nam tumam eyassa thanassa aloehi padikkamahi nimdahi gari-hahi viuttahi visohehi akaranayae abbhutthahi ahariham payachchhittam tavokammam padivajjahi. Tae nam se bhagavam goyame samanassa bhagavao mahavirassa taha tti eyamattham vinaenam padisunei, padisunetta tao padinikkhamai, padinikkhamitta rayagiham nayaram majjhammajjhenam anuppavisai, anuppavisitta jeneva mahasatagassa samanovasagassa gihe jeneva mahasatae samanovasae, teneva uvagachchhai. Tae nam se mahasatae samanovasae bhagavam goyamam ejjamanam pasai, pasitta hatthatuttha-chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamana hiyae bhagavam goyamam vamdai namamsai. Tae nam se bhagavam goyame mahasatayam samanovasayam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Samane bhagavam mahavire evam aikkhai bhasai pannavei paruvei–no khalu kappai devanuppiya! Samanovasagassa apachchhimamaranamtiyasamlehana-jjhusana-jjhusiyassa bhattapana-padiyaikkhiyassa paro samtehim tachchehim tahiehim sabbhuehim anitthehim akamtehim appiehim amanunnehim amanamehim vagaranehim vagarittae. Tume nam devanuppiya! Revati gahavaini samtehim tachchehim tahiehim sabbhuehim anitthehim akamtehim appiehim amanunnehim amanamehim vagaranehim vagariya. Tam nam tumam devanuppiya! Eyassa thanassa aloehim padikkamahim nimdahim garihahim viuttahi visohehi akaranayae abbhutthahi ahariham payachchhittam tavokammam padivajjahi. Tae nam se mahasatae samanovasae bhagavao goyamassa taha tti eyamattham vinaenam padisunei, padisunetta tassa thanassa aloei padikkamai nimdai garihai viuttai visohei akaranayae abbhutthei ahariham payachchhittam tavokammam padivajjai. Tae nam se bhagavam goyame mahasatagassa samanovasagassa amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta rayagiham nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire annada kadai rayagihao nayarao padinikkhamai, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa samaya shramana bhagavana mahavira rajagriha mem padhare. Samavasarana hua. Parishad juri, dharma – deshana sunakara lauta gai. Shramana bhagavana mahavira ne gautama ko sambodhita kara kaha – gautama ! Yahi rajagriha nagara mem mera antevasi – mahashataka namaka shramanopasaka poshadhashala mem antima maranantika samlekhana ki aradhana mem laga hua, ahara – pani ka parityaga kie hue mrityu ki kamana na karata hua, dharmaradhana mem nirata hai. Mahashataka ki patni revati sharaba ke nashe mem unmatta, yavat poshadhashala mem mahashataka ke pasa ai. Shramanopasaka mahashataka se vishaya – sukha sambandhi vachana boli. Usane dusari bara, tisari bara phira vaisa hi kaha. Apani patni revati dvara dusari bara, tisari bara yom kahe jane para shramanopasaka mahashataka ko krodha a gaya. Usane avadhijnyana ka prayoga kiya, prayoga kara upayoga lagaya. Avadhijnyana se jana kara revati se kaha yavat nairayikom mem utpanna hoogi. Gautama ! Satya, tattvarupa, tathya, sadbhuta, aise vachana bhi yadi anishta – akanta, apriya, amanojnya, amanama – aise hom to antima maranantika samlekhana ki aradhana mem lage hue, anashana svikara kie hue shramanopasaka ke lie unhem bolana kalpaniya – nahim hai. Isalie devanupriya ! Tuma shramanopasaka mahashataka ke pasa jao aura use kaho ki antima maranantika samlekhana ki aradhana mem lage hue, anashana svikara kie hue shramanopasaka ke lie satya, vachana bhi yadi anishta, akanta, apriya, amanojnya, mana pratikula ho to bolana kalpaniya nahim hai. Devanupriya! Tumane revati ko satya kintu anishta vachana kahe. Isalie tuma isa sthana ki – alochana karo, yathochita prayashchitta svikara karo. Bhagavana gautama ne shramana bhagavana mahavira ka yaha kathana ‘apa thika pharamate haim’ yom kahakara vinaya – purvaka suna. Ve vaham se chale. Rajagriha nagara ke bicha se gujhare, shramanopasaka mahashataka ke ghara pahumche. Shramanopasaka mahashatakane jaba bhagavana gautama ko ate dekha to vaha harshita evam prasanna hua. Unhem vandana – namaskara kiya. Bhagavana gautama ne shramanopasaka mahashataka se kaha – devanupriya ! Shramana bhagavana mahavira ne aisa akhyata, bhashita, prajnyapta evam prarupita kiya hai – kaha hai – yavat pratikula hom to unhem bolana kalpaniya nahim hai. Devanupriya ! Tuma apani patni revati ke prati aise vachana bole, isalie tuma isa sthana ki – alochana karo, prayashchitta karo. |