Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )

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Sr No : 1005114
Scripture Name( English ): Upasakdashang Translated Scripture Name : उपासक दशांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-१ आनंद

Translated Chapter :

अध्ययन-१ आनंद

Section : Translated Section :
Sutra Number : 14 Category : Ang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तं सेयं खलु ममं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छित्ता, कोल्लाए सन्निवेसे नायकुलंसि पोसहसालं पडिलेहित्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए– एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं आमंतेइ, आमंतेत्ता तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए, तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सद्धिं तं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं आसादेमाणे विसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए णं आयंते चोक्खे परमसुइब्भूए, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु पुत्ता! अहं वाणियगामे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तं सेयं खलु मम इदाणिं तुमं सयस्स कुडुंबस्स मेढिं पमाणं आहारं आलंबणं चक्खुं ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं तुमं च आपुच्छित्ता कोल्लाए सन्निवेसे नाय-कुलंसि पोसहसालं पडिलेहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से जेट्ठपुत्ते आनंदस्स समणोवासगस्स तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेति। तए णं से आनंदे समणोवासए तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेति, ठावेत्ता एवं वयासी–मा णं देवानुप्पिया! तुब्भे अज्जप्पभिइं केइ ममं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य कुडुंबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा, ममं अट्ठाए असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेउ वा उवक्करेउ वा। तए णं से आनंदे समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता वाणियगामं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडि-लेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
Sutra Meaning : तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द को अनेकविध शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान – पोषधोपवास आदि द्वारा आत्म – भावित होते हुए – चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवां वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के बाद धर्म – जागरण करते हुए आनन्द के मन में ऐसा अन्तर्भाव – चिन्तन, आन्तरिक मांग, मनोभाव या संकल्प उत्पन्न हुआ – वाणिज्यग्राम नगर में बहुत से मांडलिक नरपति, ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशील पुरुष आदि के अनेक कार्यों में मैं पूछने योग्य एवं सलाह लेने योग्य हूँ, अपने सारे कुटुम्ब का मैं आधार हूँ। इस व्याक्षेप – के कारण मैं श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप आचार का सम्यक्‌ परिपालन नहीं कर पा रहा हूँ। इसलिए मेरे लिए यही श्रेयस्कर है, मैं कल प्रभात हो जाने पर, मैं पूरण की तरह यावत्‌ कुटुम्बीजनों को निमंत्रणा करके यावत्‌ अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपने स्थान पर नियुक्त करूँगा – अपने मित्र – गण तथा ज्येष्ठ पुत्र को पूछ कर कोल्लाक – सन्निवेश में स्थित ज्ञातकुल की पोषध – शाला का प्रतिलेखन कर भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति के अनुरूप आचार का परिपालन करूँगा। यों आनन्द ने संप्रेक्षण – किया। वैसा कर, दूसरे दिन अपने मित्रों, जातीय जनों आदि को भोजन कराया। तत्पश्चात्‌ उनका प्रचुर पुष्प, वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, माला एवं आभूषणों से सत्कार किया, सम्मान किया। उनके समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाया। बुलाकर, जैसा सोचा था, यह सब उसे कहा – पुत्र ! वाणिज्यग्राम नगर में मैं बहुत से मांडलिक राजा, ऐश्वर्यशाली पुरुषों आदि से सम्बद्ध हूँ, यावत्‌ मैं समुचित धर्मोपासना कर नहीं पाता। अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि तुमको अपने कुटुम्ब के मेढ़ि, प्रमाण, आधार एवं आलम्बन के रूप में स्थापित कर मैं यावत्‌ समुचित धर्मोपासना में लग जाऊं। तब श्रमणोपासक आनन्द के ज्येष्ठ पुत्र ने ‘जैसी आपकी आज्ञा’ यों कहते हुए अत्यन्त विनयपूर्वक अपने पिता का कथन स्वीकार किया। श्रमणोपासक आनन्द ने अपने मित्र – वर्ग, जातीय जन आदि के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में अपने स्थान पर स्थापित किया। वैसा कर उपस्थित जनों से उसने कहा – महानुभावो ! आज से आप में से कोई भी मुझे विविध कार्यों के सम्बन्ध में न कुछ पूछे और न परामर्श ही करे, मेरे हेतु अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आदि आहार तैयार न करे और न मेरे पास लाए। फिर आनन्द ने अपने ज्येष्ठ पुत्र, मित्र – वृन्द जातीय जन आदि की अनुमति ली। अपने घर से प्रस्थान किया। वाणिज्यग्राम नगर से, जहाँ कोल्लाक सन्निवेश था, ज्ञातकुल एवं ज्ञातकुल की पौषधशाला थी, वहाँ पहुँचा। पोषध – शाला का प्रमार्जन किया – शौच एवं लघुशंका के स्थान की प्रतिलेखना की। वैसा कर दर्भ – का संस्तारक – लगाया, उस पर स्थित होकर पोषधशाला में पोषध स्वीकार कर श्रमण भगवान महावीर के पास स्वीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप साधना – निरत हो गया।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam tassa anamdassa samanovasagassa uchchavaehim sila-vvaya-guna-veramana-pachchakkhana-posahovavasehim appanam bhavemanassa choddasa samvachchharaim viikkamtaim. Pannarasamassa samvachchharassa amtara vattamanassa annada kadai puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham vaniyagame nayare bahunam raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahanam bahusu kajjesu ya karanesu ya kudumbesu ya mamtesu ya gujjhesu ya rahassesu ya nichchhaesu ya vavaharesu ya apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi pamanam ahare alambanam chakkhu, medhibhue pamanabhue aharabhue alambanabhue chakkhubhue savvakajjavaddhavae, tam etenam vakkhevenam aham no samchaemi samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannatti uvasampajjitta nam viharittae. Tam seyam khalu mamam kallam pauppabhayae rayanie phulluppalakamalakomalummiliyammi aha pamdure pahae rattasogappagasa-kimsuya-suyamuha-gumjaddharagasarise kamalagarasamdabohae utthiyammi sure sahassa-rassimmi dinayare teyasa jalamte vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavetta, mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam amamtetta, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam vipulenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-gamdhamallalamkarena ya sakkaretta sammanetta, tasseva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanassa purao jetthaputtam kudumbe thavetta, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam jetthaputtam cha apuchchhitta, kollae sannivese nayakulamsi posahasalam padilehitta, samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharittae– Evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam amamtei, amamtetta tao pachchha nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie appamahagghabharanalamkiyasarire bhoyanavelae bhoyanamamdavamsi suhasanavaragae, tenam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanenam saddhim tam vipulam asana-pana-khaima-saimam asademane visademane paribhaemane paribhumjemane viharai. Jimiyabhuttuttaragae nam ayamte chokkhe paramasuibbhue, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam vipulenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-gamdhamallalamkarena ya sakkarei sammanei, tasseva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanassa purao jetthaputtam saddavei, saddavetta evam vayasi– Evam khalu putta! Aham vaniyagame nayare bahunam java apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi java savvakajjavaddhavae, tam etenam vakkhevenam aham no samchaemi samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharittae. Tam seyam khalu mama idanim tumam sayassa kudumbassa medhim pamanam aharam alambanam chakkhum thavetta, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam tumam cha apuchchhitta kollae sannivese naya-kulamsi posahasalam padilehitta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharittae. Tae nam se jetthaputte anamdassa samanovasagassa taha tti eyamattham vinaenam padisuneti. Tae nam se anamde samanovasae tasseva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanassa purao jetthaputtam kudumbe thaveti, thavetta evam vayasi–ma nam devanuppiya! Tubbhe ajjappabhiim kei mamam bahusu kajjesu ya karanesu ya mamtesu ya kudumbesu ya gujjhesu ya rahassesu ya nichchhaesu ya vavaharesu ya apuchchhau va padipuchchhau va, mamam atthae asanam va panam va khaimam va saimam va uvakkhadeu va uvakkareu va. Tae nam se anamde samanovasae jetthaputtam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam cha apuchchhai, apuchchhitta sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta vaniyagamam nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva kollae sannivese, jeneva nayakule, jeneva posahasala, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam pamajjai, pamajjitta uchchara-pasavanabhumim padilehei, padi-lehetta dabbhasamtharayam samtharei, samtharetta dabbhasamtharayam duruhai, duruhitta posahasalae posahie bambhayari ummukkamanisuvanne vavagayamalavannagavilevane nikkhittasatthamusale ege abie dabbhasamtharovagae samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Tadanantara shramanopasaka ananda ko anekavidha shilavrata, gunavrata, viramanavrata, pratyakhyana – poshadhopavasa adi dvara atma – bhavita hote hue – chaudaha varsha vyatita ho gae. Jaba pandrahavam varsha adha vyatita ho chuka tha, eka dina adhi rata ke bada dharma – jagarana karate hue ananda ke mana mem aisa antarbhava – chintana, antarika mamga, manobhava ya samkalpa utpanna hua – vanijyagrama nagara mem bahuta se mamdalika narapati, aishvaryashali evam prabhavashila purusha adi ke aneka karyom mem maim puchhane yogya evam salaha lene yogya hum, apane sare kutumba ka maim adhara hum. Isa vyakshepa – ke karana maim shramana bhagavana mahavira ke pasa amgikrita dharma – prajnyapti – ke anurupa achara ka samyak paripalana nahim kara pa raha hum. Isalie mere lie yahi shreyaskara hai, maim kala prabhata ho jane para, maim purana ki taraha yavat kutumbijanom ko nimamtrana karake yavat apane jyeshtha putra ko apane sthana para niyukta karumga – apane mitra – gana tatha jyeshtha putra ko puchha kara kollaka – sannivesha mem sthita jnyatakula ki poshadha – shala ka pratilekhana kara bhagavana mahavira ke pasa amgikrita dharma – prajnyapti ke anurupa achara ka paripalana karumga. Yom ananda ne samprekshana – kiya. Vaisa kara, dusare dina apane mitrom, jatiya janom adi ko bhojana karaya. Tatpashchat unaka prachura pushpa, vastra, sugandhita padartha, mala evam abhushanom se satkara kiya, sammana kiya. Unake samaksha apane jyeshtha putra ko bulaya. Bulakara, jaisa socha tha, yaha saba use kaha – putra ! Vanijyagrama nagara mem maim bahuta se mamdalika raja, aishvaryashali purushom adi se sambaddha hum, yavat maim samuchita dharmopasana kara nahim pata. Atah mere lie yahi shreyaskara hai ki tumako apane kutumba ke merhi, pramana, adhara evam alambana ke rupa mem sthapita kara maim yavat samuchita dharmopasana mem laga jaum. Taba shramanopasaka ananda ke jyeshtha putra ne ‘jaisi apaki ajnya’ yom kahate hue atyanta vinayapurvaka apane pita ka kathana svikara kiya. Shramanopasaka ananda ne apane mitra – varga, jatiya jana adi ke samaksha apane jyeshtha putra ko kutumba mem apane sthana para sthapita kiya. Vaisa kara upasthita janom se usane kaha – mahanubhavo ! Aja se apa mem se koi bhi mujhe vividha karyom ke sambandha mem na kuchha puchhe aura na paramarsha hi kare, mere hetu ashana, pana, khadya, svadya adi ahara taiyara na kare aura na mere pasa lae. Phira ananda ne apane jyeshtha putra, mitra – vrinda jatiya jana adi ki anumati li. Apane ghara se prasthana kiya. Vanijyagrama nagara se, jaham kollaka sannivesha tha, jnyatakula evam jnyatakula ki paushadhashala thi, vaham pahumcha. Poshadha – shala ka pramarjana kiya – shaucha evam laghushamka ke sthana ki pratilekhana ki. Vaisa kara darbha – ka samstaraka – lagaya, usa para sthita hokara poshadhashala mem poshadha svikara kara shramana bhagavana mahavira ke pasa svikrita dharma – prajnyapti – ke anurupa sadhana – nirata ho gaya.