Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004825 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 125 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा रयणदीवदेवया लवणसमुद्दं तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टइ, जं तत्थ तणं वा जाव एगंते एडेइ, जेणेव पासा-यवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदिय-दारए पासायवडेंसए अपासमाणी जेणेव पुरत्थिमिल्ले वनसंडे तेणेव उवाग-च्छइ जाव सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता तेसिं मागंदिय-दारगाणं कत्थइ सुइं वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले, एवं चेव पच्चत्थिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ, ते मागंदिय-दारए सेलएणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झं-मज्झेणं वीईवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तट्ठ तलप्पमाणमेत्ताइं उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी–हं भो मागंदिय-दारगा! अपत्थियपत्थया! किण्णं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणा? तं एवमवि गए। जइ णं तुब्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं। अह णं नावयक्खह तो भे इमेणं नीलुप्पलगवलं गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाइं माउआहिं उवसोहियाइं तालफलाणि व सीसाइं एगंते एडेमि। तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म अभीया अतत्था अणुव्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयमट्ठं नो आढंति नो परियाणंति नो अवयक्खंति अणाढामाणा अपरियाणमाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयंति। तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए जाहे नो संचाएइ बहूहिं पडिलोमेहिं उवसग्गेहिं चालित्तए वा लोभित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे महुरेहिं सिंगारेहिं य कलुणेहिं य उवसग्गेहिं उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था –हंभो मागंदिय-दारगा! जइ णं तुब्भेहिं देवानुप्पिया! मए सद्धिं हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कोलियाणि य हिंडि-याणि य मोहियाणि य ताहे णं तुब्भे सव्वाइं अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयह। तए णं सा रयणदीवदेवया जिनरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी–निच्चंपि य णं अहं जिनपालियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा। निच्चं मम जिनपालिए अणिट्ठे अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे निच्चंपि य णं अहं जिनरक्खियस्स इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा। निच्चंपि य णं ममं जिनरक्खिए इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। जइ णं ममं जिलपालिए रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि तिप्पमाणि विलवमाणि नावयक्खइ, किण्णं तुमपि जिनरक्खिया! ममं रोयमाणिं कंदमाणिं सोयमाणिं तिप्पमाणिं विलवमाणिं नावयक्खसि? | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् रत्नद्वीप की देवी ने लवणसमुद्र के चारों तरफ इक्कीस चक्कर लगाकर, उसमें जो कुछ भी तृण आदि कचरा था, वह सब यावत् दूर किया। दूर करके अपने उत्तम प्रासाद में आई। आकर माकन्दीपुत्रों को उत्तम प्रासाद में न देखकर पूर्व दिशा के वनखण्ड में गई। वहाँ सब जगह उसने मार्गणा की। पर उन माकन्दीपुत्रों की कहीं भी श्रुति आदि आवाज, छींक एवं प्रवृत्ति न पाती हुई उत्तर दिशा के वनखण्ड में गई। इसी प्रकार पश्चिम में गई, पर वे कहीं दिखाई न दिए। तब उसने अवधिज्ञान का प्रयोग करके उसने माकन्दीपुत्रों को शैलक के साथ लवणसमुद्र के बीचोंबीच होकर चले जाते देखा। वह तत्काल क्रुद्ध हुई। उसने ढ़ाल – तलवार ली और सात – आठ ताड़ जितनी ऊंचाई पर आकाश में उड़कर उत्कृष्ट एवं शीघ्र गति करके जहाँ माकन्दीपुत्र थे वहाँ आई। आकर इस प्रकार कहने लगी – ‘अरे माकन्दी के पुत्रों ! अरे मौत की कामना करने वालों ! क्या तुम समझते हो कि मेरा त्याग करके, शैलकयक्ष के सात, लवणसमुद्र के मध्य में होकर तुम चले जाओगे ? इतने चले जाने पर भी अगर तुम मेरी अपेक्षा रखते हो तो तुम जीवित रहोगे, अन्यथा इस नील कमल एवं भैंस के सींग जैसी काली तलवार से यावत् तुम्हारा मस्तक काट कर फैंक दूँगी। उस समय वे माकन्दीपुत्र रत्नद्वीप की देवी के इस कथन को सूनकर और हृदय में धारण करके भयभीत नहीं हुए, त्रास को प्राप्त नहीं हुए, उद्विग्न नहीं हुए, संभ्रान्त नहीं हुए। अत एव उन्होंने रत्नद्वीप की देवी के इस अर्थ का आदर नहीं किया, उसे अंगीकार नहीं किया, उसकी परवाह नहीं की। वे आदर न करते हुए शैलक यक्ष के साथ लवणसमुद्र के मध्य में होकर चले जाने लगे। तत्पश्चात् वह रत्नद्वीप की देवी जब उन माकन्दीपुत्रों को बहुत – से प्रतिकूल उपसर्गों द्वारा चलित करने, क्षुब्ध करने, पलटने और लुभाने में समर्थ न हुई, तब अपने मधुर शृंगारमय और अनुराग – जनक अनुकूल उपसर्गों से उन पर उपसर्ग करने में प्रवृत्त हुई।’ ‘हे माकन्दीपुत्रों ! हे देवानुप्रियो ! तुमने मेरे साथ हास्य किया, चौपड़ आदि खेल खेले, मनोवांछित क्रीड़ा की, झूला आदि झुले हैं, भ्रमण और रतिक्रीड़ा की है। इन सबको कुछ भी न गिनते हुए, मुझे छोड़कर तुम शैलक यक्ष के साथ लवणसमुद्र के मध्य में होकर जा रहे हो ?’ तत्पश्चात् रत्नद्वीप की देवी ने जिनरक्षित का मन अवधिज्ञान से देखा। फिर इस प्रकार कहने लगी – मैं सदैव जिनपालित के लिए अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम थी और जिनपालित मेरे लिए, परन्तु जिनरक्षित को तो मैं सदैव इष्ट, कान्त, प्रिय आदि थी और जिनरक्षित मुझे भी, अत एव जिनपालित यदि रोती, आक्रन्दन करती, शोक करती, अनुताप करती और विलाप करती हुई मेरी परवाह नहीं करता, तो हे जिनरक्षित ! तुम भी मुझ रोती हुई की यावत् परवाह नहीं करते ?’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa rayanadivadevaya lavanasamuddam tisattakhutto anupariyattai, jam tattha tanam va java egamte edei, jeneva pasa-yavademsae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta te magamdiya-darae pasayavademsae apasamani jeneva puratthimille vanasamde teneva uvaga-chchhai java savvao samamta maggana-gavesanam karei, karetta tesim magamdiya-daraganam katthai suim va khuim va pauttim va alabhamani jeneva uttarille, evam cheva pachchatthimille vi java apasamani ohim paumjai, te magamdiya-darae selaenam saddhim lavanasamuddam majjham-majjhenam viivayamane pasai, pasitta asurutta asikhedagam genhai, genhitta sattattha talappamanamettaim uddham vehasam uppayai, uppaitta tae ukkitthae devagaie jeneva magamdiya-daraya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta evam vayasi–ham Bho magamdiya-daraga! Apatthiyapatthaya! Kinnam tubbhe janaha mamam vippajahaya selaenam jakkhenam saddhim lavanasamuddam majjhammajjhenam viivayamana? Tam evamavi gae. Jai nam tubbhe mamam avayakkhaha to bhe atthi jiviyam. Aha nam navayakkhaha to bhe imenam niluppalagavalam guliya-ayasikusumappagasenam khuradharenam asina rattagamdamamsuyaim mauahim uvasohiyaim talaphalani va sisaim egamte edemi. Tae nam te magamdiya-daraga rayanadivadevayae amtie eyamattham sochcha nisamma abhiya atattha anuvvigga akkhubhiya asambhamta rayanadivadevayae eyamattham no adhamti no pariyanamti no avayakkhamti anadhamana apariyanamana anavayakkhamana selaenam jakkhenam saddhim lavanasamuddam majjhammajjhenam viivayamti. Tae nam sa rayanadivadevaya te magamdiya-darae jahe no samchaei bahuhim padilomehim uvasaggehim chalittae va lobhittae va khobhittae va viparinamittae va tahe mahurehim simgarehim ya kalunehim ya uvasaggehim uvasaggeum payatta yavi hottha –hambho magamdiya-daraga! Jai nam tubbhehim devanuppiya! Mae saddhim hasiyani ya ramiyani ya laliyani ya koliyani ya himdi-yani ya mohiyani ya tahe nam tubbhe savvaim aganemana mamam vippajahaya selaenam saddhim lavanasamuddam majjhammajjhenam viivayaha. Tae nam sa rayanadivadevaya jinarakkhiyassa manam ohina abhoei, abhoetta evam vayasi–nichchampi ya nam aham jinapaliyassa anittha akamta appiya amanunna amanama. Nichcham mama jinapalie anitthe akamte appie amanunne amaname nichchampi ya nam aham jinarakkhiyassa ittha kamta piya manunna manama. Nichchampi ya nam mamam jinarakkhie itthe kamte pie manunne maname. Jai nam mamam jilapalie royamani kamdamani soyamani tippamani vilavamani navayakkhai, kinnam tumapi jinarakkhiya! Mamam royamanim kamdamanim soyamanim tippamanim vilavamanim navayakkhasi? | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat ratnadvipa ki devi ne lavanasamudra ke charom tarapha ikkisa chakkara lagakara, usamem jo kuchha bhi trina adi kachara tha, vaha saba yavat dura kiya. Dura karake apane uttama prasada mem ai. Akara makandiputrom ko uttama prasada mem na dekhakara purva disha ke vanakhanda mem gai. Vaham saba jagaha usane margana ki. Para una makandiputrom ki kahim bhi shruti adi avaja, chhimka evam pravritti na pati hui uttara disha ke vanakhanda mem gai. Isi prakara pashchima mem gai, para ve kahim dikhai na die. Taba usane avadhijnyana ka prayoga karake usane makandiputrom ko shailaka ke satha lavanasamudra ke bichombicha hokara chale jate dekha. Vaha tatkala kruddha hui. Usane rhala – talavara li aura sata – atha tara jitani umchai para akasha mem urakara utkrishta evam shighra gati karake jaham makandiputra the vaham ai. Akara isa prakara kahane lagi – ‘are makandi ke putrom ! Are mauta ki kamana karane valom ! Kya tuma samajhate ho ki mera tyaga karake, shailakayaksha ke sata, lavanasamudra ke madhya mem hokara tuma chale jaoge\? Itane chale jane para bhi agara tuma meri apeksha rakhate ho to tuma jivita rahoge, anyatha isa nila kamala evam bhaimsa ke simga jaisi kali talavara se yavat tumhara mastaka kata kara phaimka dumgi. Usa samaya ve makandiputra ratnadvipa ki devi ke isa kathana ko sunakara aura hridaya mem dharana karake bhayabhita nahim hue, trasa ko prapta nahim hue, udvigna nahim hue, sambhranta nahim hue. Ata eva unhomne ratnadvipa ki devi ke isa artha ka adara nahim kiya, use amgikara nahim kiya, usaki paravaha nahim ki. Ve adara na karate hue shailaka yaksha ke satha lavanasamudra ke madhya mem hokara chale jane lage. Tatpashchat vaha ratnadvipa ki devi jaba una makandiputrom ko bahuta – se pratikula upasargom dvara chalita karane, kshubdha karane, palatane aura lubhane mem samartha na hui, taba apane madhura shrimgaramaya aura anuraga – janaka anukula upasargom se una para upasarga karane mem pravritta hui.’ ‘he makandiputrom ! He devanupriyo ! Tumane mere satha hasya kiya, chaupara adi khela khele, manovamchhita krira ki, jhula adi jhule haim, bhramana aura ratikrira ki hai. Ina sabako kuchha bhi na ginate hue, mujhe chhorakara tuma shailaka yaksha ke satha lavanasamudra ke madhya mem hokara ja rahe ho\?’ tatpashchat ratnadvipa ki devi ne jinarakshita ka mana avadhijnyana se dekha. Phira isa prakara kahane lagi – maim sadaiva jinapalita ke lie anishta, akanta, apriya, amanojnya aura amanama thi aura jinapalita mere lie, parantu jinarakshita ko to maim sadaiva ishta, kanta, priya adi thi aura jinarakshita mujhe bhi, ata eva jinapalita yadi roti, akrandana karati, shoka karati, anutapa karati aura vilapa karati hui meri paravaha nahim karata, to he jinarakshita ! Tuma bhi mujha roti hui ki yavat paravaha nahim karate\?’ |