Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004824
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Section : Translated Section :
Sutra Number : 124 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सूलाइगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म बलियतरं भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी–कहण्णं देवानुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं नित्थरेज्जामो? तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! पुरत्थिमिल्ले वनसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नामं आसरूवधारी जक्खे परिवसइ। तए णं से सेलए जक्खे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु आगय-समए पत्तसमए महया-महया सद्देण एवं वदइ–कं तारयामि? कं पालयामि? तं गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! पुरत्थिमिल्लं वण-संडं सेलगस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणियं करेह, करेत्ता जन्नुपायवडिया पंजलिउडा विनएणं पज्जुवासमाणा विहरह। जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वएज्जा–कं तारयामि? कं पालयामि? ताहे तुब्भे एवं वदह–अम्हे तारयाहि अम्हे पालयाहि। सेलए भे जक्खे परं रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं नित्थारेज्जा। अन्नहा भे न याणामि इमेसिं सरीरगाणं का मन्ने आवई भविस्सइ? तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सूलाइयस्स पुरिसस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्मा सिग्घं चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरत्थिमिल्ले वनसंडे जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणिं ओगाहेंति, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेति, करेत्ता जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव ताइं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करेत्ता महरिहं पुप्फच्चणियं करेंति, करेत्ता जन्नुपायवडिया सुस्सूसमाणा नमंसमाणा पज्जुवासंति। तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी–कं तारयामि? कं पालयामि? तए णं ते मागंदिय-दारगा उट्ठाए उट्ठेंति, उट्ठेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–अम्हे तारयाहिं अम्हे पालयाहिं। तए णं से सेलए जक्खे ते मागंदिय-दारए एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! तुब्भं मए सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झं-मज्झेणं वीईवयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया बहूहिं खरएहिं य मउएहिं य अणुलोमेहिं य पडिलोमेहिं य सिगारेहि य कलुणेहिं य उवसग्गेहिं उवसग्गं करेहिइ। तं जइ णं तुब्भे देवानुप्पिया! रयणदीवदेवयाए एयमट्ठं आढाह वा परियाणह वा अवयक्खह वा तो भे अहं पट्ठाओ विहुणामि। अह णं तुब्भे रयणदीवदेवयाए एयमट्ठं नो आढाह नो परियाणह नो अवयक्खह तो भे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं नित्थारेमि। तए णं ते मागंदिय-दारगा सेलगं जक्खं एवं वयासी–जं णं देवानुप्पिया! वइस्संति तस्स णं आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठिस्सामो। तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निस्सिरइ, दोच्चंपि वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एगं महं आसरूवं विउव्वइ, विउवित्ता मागंदिय-दारए एवं वयासी–हं भो मागंदिय-दारया! आरुहह णं देवानुप्पिया! मम पट्ठंसि। तए णं ते मागंदिय-दारया हट्ठा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करेत्ता सेलगस्स पट्ठं दुरूढा। तए णं से सेलए ते मागंदिय-दारए पट्ठे दुरूढे जाणित्ता सत्तट्ठतलप्पमाणमेत्ताइं उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए दिव्वाए देवगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव चंपा नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ वे माकन्दीपुत्र शूली पर चढ़े उस पुरुष से यह अर्थ सूनकर और हृदय में धारण करके और अधिक भयभीत हो गए। तब उन्होंने शूली पर चढ़े पुरुष से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग रत्नद्वीप के देवता के हाथ से छूटकारा पा सकते हैं ?’ तब शूली पर चढ़े पुरुष ने उन माकन्दीपुत्रों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! इस पूर्व दिशा के वनखण्ड में शैलक यक्ष का यक्षायतन है। उसमें अश्व का रूप धारण किये शैलक नामक यक्ष निवास करता है। वह शैलक्ष यक्ष चौदस, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन आगत समय और प्राप्त समय होकर खूब ऊंचे स्वर में इस प्रकार बोलता है – ‘किसको तारूँ ? किसको पालूँ ?’ तो हे देवानुप्रियो ! तुम लोग पूर्व दिशा के वनखण्ड में जाना और शैलक यक्ष की महान्‌ जनों के योग्य पुष्पों से पूजा करना। पूजा करके घुटने और पैर नमा कर, दोनों हाथ जोड़कर, विनय के साथ उसकी सेवा करते हुए ठहरना। जब शैलक यक्ष नियत समय आने पर कहे कि – ‘किसको तारूँ, किसे पालूँ’ तब तुम कहना – ‘हमें तारो, हमें पालो।’ इस प्रकार शैलक यक्ष ही केवल रत्नद्वीप की देवी के हाथ से, अपने हाथ से स्वयं तुम्हारा निस्ताकर करेगा। अन्यथा मैं नहीं जानता कि तुम्हारे शरीर को क्या आपत्ति हो जाएगी | तत्पश्चात्‌ वे माकन्दीपुत्र शूली पर चढ़े पुरुष से इस अर्थ को सूनकर और मन में धारण करके शीघ्र, प्रचण्ड, चपल, त्वरा वाली और वेग वाली गति से जहाँ पूर्व दिशा का वनखण्ड था, और उसमें पुष्करिणी थी, वहाँ आए। पुष्करिणी में प्रवेश किया। स्नान किया। वहाँ जो कमल, उत्पल, नलिन, सुभग आदि कमल की जातियों के पुष्प थे, उन्हें ग्रहण किया। शैलक यक्ष के यक्षायतन में आए। यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया। फिर महान्‌ जनों के योग्य पुष्प – पूजा की। वे घुटने और पैर नमा कर यक्ष की सेवा करते हुए, नमस्कार करते हुए उपासना करने लगे। जिसका समय समीप आया है और साक्षात्‌ प्राप्त हुआ है ऐसे शैलक यक्ष ने कहा – ‘किसे तारूँ, किसे पालूँ ?’ तब माकन्दीपुत्रों ने खड़े होकर और हाथ जोड़कर कहा – ‘हमें तारिए, हमें पालिए।’ तब शैलक यक्ष ने माकन्दीपुत्रों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम मेरे साथ लवणसमुद्र के बीचोंबीच गमन करोगे, तब वह पापिनी, चण्डा रुद्रा और साहसिका रत्नद्वीप की देवी तुम्हें कठोर, कोमल, अनुकूल, प्रतिकूल, शृंगारमय और मोहजनक उपसर्गों से उपसर्ग करेगी। हे देवानुप्रियो ! अगर तुम रत्नद्वीप की देवी के उस अर्थ का आदर करोगे, उसे अंगीकार करोगे या अपेक्षा करोगे, तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से नीचे गिरा दूँगा। और यदि तुम रत्नद्वीप की देवी के उस अर्थ का आदर न करोगे, अंगीकार न करोगे और अपेक्षा न करोगे तो मैं अपने हाथ से, रत्नद्वीप के देवी से तुम्हारा निस्तार कर दूँगा।’ तब माकन्दीपुत्रों ने शैलक यक्ष से कहा – ‘देवानुप्रिय ! आप जो कहेंगे, हम उसके उपपात, वचन – आदेश और निर्देश में रहेंगे। तत्पश्चात्‌ शैलक यक्ष उत्तर – पूर्व दिशा में गया। वहाँ जाकर उसने वैक्रिय समुद्‌घात करके संख्यात योजन का दंड किया। दूसरी बार और तीसरी बार भी वैक्रिय समुद्‌घात से विक्रिया की, समुद्‌घात करके एक बड़े अश्व के रूप की विक्रिया की और फिर माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा – ‘हे माकन्दीपुत्रों ! देवानुप्रियो ! मेरी पीठ पर चढ़ जाओ।’ तब माकन्दीपुत्रों ने हर्षित और सन्तुष्ट होकर शैलक यक्ष को प्रणाम करके वे शैलक की पीठ पर आरूढ़ हो गए। तत्पश्चात्‌ अश्वरूप धारी शैलक यक्ष माकन्दीपुत्रों को पीठ पर आरूढ़ हुआ जानकर सात – आठ ताड़ के बराबर ऊंचा आकाश में उड़ा। उड़कर उत्कृष्ट, शीघ्रता वाली देव सम्बन्धी दिव्या गति से लवणसमुद्र के बीचोंबीच होकर जिधर जम्बूद्वीप था, भरतक्षेत्र था और जहां चम्पानगरी थी, उसी ओर रवाना हुए
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam te magamdiya-daraga tassa sulaigassa amtie eyamattham sochcha nisamma baliyataram bhiya tattha tasiya uvvigga samjayabhaya sulaiyam purisam evam vayasi–kahannam devanuppiya! Amhe rayanadivadevayae hatthao sahatthim nittharejjamo? Tae nam se sulaie purise te magamdiya-darage evam vayasi–esa nam devanuppiya! Puratthimille vanasamde selagassa jakkhassa jakkhayayane selae namam asaruvadhari jakkhe parivasai. Tae nam se selae jakkhe chauddasatthamudditthapunnamasinisu agaya-samae pattasamae mahaya-mahaya saddena evam vadai–kam tarayami? Kam palayami? Tam gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Puratthimillam vana-samdam selagassa jakkhassa mahariham pupphachchaniyam kareha, karetta jannupayavadiya pamjaliuda vinaenam pajjuvasamana viharaha. Jahe nam se selae jakkhe agayasamae pattasamae evam vaejja–kam tarayami? Kam palayami? Tahe tubbhe evam vadaha–amhe tarayahi amhe palayahi. Selae bhe jakkhe param rayanadivadevayae hatthao sahatthim nittharejja. Annaha bhe na yanami imesim sariraganam ka manne avai bhavissai? Tae nam te magamdiya-daraga tassa sulaiyassa purisassa amtie eyamattham sochcha nisamma siggham chamdam chavalam turiyam veiyam jeneva puratthimille vanasamde jeneva pokkharini teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta pokkharinim ogahemti, ogahetta jalamajjanam kareti, karetta jaim tattha uppalaim java taim genhamti, genhitta jeneva selagassa jakkhassa jakkhayayane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta aloe panamam karemti, karetta mahariham pupphachchaniyam karemti, karetta jannupayavadiya sussusamana namamsamana pajjuvasamti. Tae nam se selae jakkhe agayasamae pattasamae evam vayasi–kam tarayami? Kam palayami? Tae nam te magamdiya-daraga utthae utthemti, utthetta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–amhe tarayahim amhe palayahim. Tae nam se selae jakkhe te magamdiya-darae evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Tubbham mae saddhim lavanasamuddam majjham-majjhenam viivayamananam sa rayanadivadevaya pava chamda rudda khudda sahasiya bahuhim kharaehim ya mauehim ya anulomehim ya padilomehim ya sigarehi ya kalunehim ya uvasaggehim uvasaggam karehii. Tam jai nam tubbhe devanuppiya! Rayanadivadevayae eyamattham adhaha va pariyanaha va avayakkhaha va to bhe aham patthao vihunami. Aha nam tubbhe rayanadivadevayae eyamattham no adhaha no pariyanaha no avayakkhaha to bhe rayanadivadevayae hatthao sahatthim nittharemi. Tae nam te magamdiya-daraga selagam jakkham evam vayasi–jam nam devanuppiya! Vaissamti tassa nam ana uvavaya-vayana-niddese chitthissamo. Tae nam se selae jakkhe uttarapuratthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta veuvviya-samugghaenam samohannai, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nissirai, dochchampi veuvviya-samugghaenam samohannai, samohanitta egam maham asaruvam viuvvai, viuvitta magamdiya-darae evam vayasi–ham bho magamdiya-daraya! Aruhaha nam devanuppiya! Mama patthamsi. Tae nam te magamdiya-daraya hattha selagassa jakkhassa panamam karemti, karetta selagassa pattham durudha. Tae nam se selae te magamdiya-darae patthe durudhe janitta sattatthatalappamanamettaim uddham vehasam uppayai, uppaitta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae divvae devagaie lavanasamuddam majjhammajjhenam jeneva jambuddive dive jeneva bharahe vase jeneva champa nayari teneva paharettha gamanae.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat ve makandiputra shuli para charhe usa purusha se yaha artha sunakara aura hridaya mem dharana karake aura adhika bhayabhita ho gae. Taba unhomne shuli para charhe purusha se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Hama loga ratnadvipa ke devata ke hatha se chhutakara pa sakate haim\?’ taba shuli para charhe purusha ne una makandiputrom se kaha – ‘devanupriyo ! Isa purva disha ke vanakhanda mem shailaka yaksha ka yakshayatana hai. Usamem ashva ka rupa dharana kiye shailaka namaka yaksha nivasa karata hai. Vaha shailaksha yaksha chaudasa, ashtami, amavasya aura purnima ke dina agata samaya aura prapta samaya hokara khuba umche svara mem isa prakara bolata hai – ‘kisako tarum\? Kisako palum\?’ to he devanupriyo ! Tuma loga purva disha ke vanakhanda mem jana aura shailaka yaksha ki mahan janom ke yogya pushpom se puja karana. Puja karake ghutane aura paira nama kara, donom hatha jorakara, vinaya ke satha usaki seva karate hue thaharana. Jaba shailaka yaksha niyata samaya ane para kahe ki – ‘kisako tarum, kise palum’ taba tuma kahana – ‘hamem taro, hamem palo.’ isa prakara shailaka yaksha hi kevala ratnadvipa ki devi ke hatha se, apane hatha se svayam tumhara nistakara karega. Anyatha maim nahim janata ki tumhare sharira ko kya apatti ho jaegi | Tatpashchat ve makandiputra shuli para charhe purusha se isa artha ko sunakara aura mana mem dharana karake shighra, prachanda, chapala, tvara vali aura vega vali gati se jaham purva disha ka vanakhanda tha, aura usamem pushkarini thi, vaham ae. Pushkarini mem pravesha kiya. Snana kiya. Vaham jo kamala, utpala, nalina, subhaga adi kamala ki jatiyom ke pushpa the, unhem grahana kiya. Shailaka yaksha ke yakshayatana mem ae. Yaksha para drishti parate hi use pranama kiya. Phira mahan janom ke yogya pushpa – puja ki. Ve ghutane aura paira nama kara yaksha ki seva karate hue, namaskara karate hue upasana karane lage. Jisaka samaya samipa aya hai aura sakshat prapta hua hai aise shailaka yaksha ne kaha – ‘kise tarum, kise palum\?’ taba makandiputrom ne khare hokara aura hatha jorakara kaha – ‘hamem tarie, hamem palie.’ taba shailaka yaksha ne makandiputrom se kaha – ‘devanupriyo ! Tuma mere satha lavanasamudra ke bichombicha gamana karoge, taba vaha papini, chanda rudra aura sahasika ratnadvipa ki devi tumhem kathora, komala, anukula, pratikula, shrimgaramaya aura mohajanaka upasargom se upasarga karegi. He devanupriyo ! Agara tuma ratnadvipa ki devi ke usa artha ka adara karoge, use amgikara karoge ya apeksha karoge, to maim tumhem apani pitha se niche gira dumga. Aura yadi tuma ratnadvipa ki devi ke usa artha ka adara na karoge, amgikara na karoge aura apeksha na karoge to maim apane hatha se, ratnadvipa ke devi se tumhara nistara kara dumga.’ Taba makandiputrom ne shailaka yaksha se kaha – ‘devanupriya ! Apa jo kahemge, hama usake upapata, vachana – adesha aura nirdesha mem rahemge. Tatpashchat shailaka yaksha uttara – purva disha mem gaya. Vaham jakara usane vaikriya samudghata karake samkhyata yojana ka damda kiya. Dusari bara aura tisari bara bhi vaikriya samudghata se vikriya ki, samudghata karake eka bare ashva ke rupa ki vikriya ki aura phira makandiputrom se isa prakara kaha – ‘he makandiputrom ! Devanupriyo ! Meri pitha para charha jao.’ taba makandiputrom ne harshita aura santushta hokara shailaka yaksha ko pranama karake ve shailaka ki pitha para arurha ho gae. Tatpashchat ashvarupa dhari shailaka yaksha makandiputrom ko pitha para arurha hua janakara sata – atha tara ke barabara umcha akasha mem ura. Urakara utkrishta, shighrata vali deva sambandhi divya gati se lavanasamudra ke bichombicha hokara jidhara jambudvipa tha, bharatakshetra tha aura jaham champanagari thi, usi ora ravana hue