Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004823 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 123 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते मागंदिय-दारया तओ मुहुत्तंतरस्स पासायवडेंसए सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा अन्नमन्नं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! रयणदीव-देवया अम्हे एवं वयासी–एवं खलु अहं सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा निउत्ता जाव मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं देवानुप्पिया! पुरत्थिमिल्लं वनसंडं गमित्तए–अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुरत्थिमिल्ले वनसंडे तेणेव उवागच्छंति। तत्थ णं वावीसु य जाव आलीधरएसु य जाव सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति। तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वनसंडे तेणेव उवागच्छंति। तत्थ णं वावीसु य जाव आलीधरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा जेणेव पच्चत्थिमिल्ले वनसंडे तेणेव उवागच्छंति। तत्थ णं वावीसु य जाव आलीधरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति। तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा अन्नमन्नं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवया एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा निउत्ता जाव मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं भावियव्वं एत्थ कारणेणं। तं सेयं खलु अम्हं दक्खिणिल्लं वनसंडं गमित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वनसंडे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तओ णं गंधे निद्धाइ, से जहानामए–अहिमडे इ वा जाव अणिट्ठतराए चेव। तए णं ते मागंदिय-दारगा तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाइं पिहेति, पिहेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वनसंडे तेणेव उवागया। तत्थ णं महं एगं आघयणं पासंति–अट्ठियरासि-सय-संकुलं भीम-दरिसणिज्जं एगं च तत्थ सूलाइयं पुरिसं कलुणाइं कट्ठाइं विस्सराइं कूवमाणं पासंति, भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया जेणेव से सूलाइए पुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! कस्साघयणे? तुमं च णं के कओ वा इहं हव्वमागए? केण वा इमेयारूवं आवयं पाविए? तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! रयणदीवदेवयाए आघयणे। अहं णं देवानुप्पिया! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ कोगंदए आसवाणियए विपुलं पणियभंडमायाए पीयवहणेणं लवणसमुद्दं ओयाए। तए णं अहं पोयवहण-विवत्तीए निव्वुड्ड-भंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि। तए णं अहं ओवुज्झमाणे-ओवुज्झमाणे रयणदीवंतेणं संवूढे। तए णं सा रयणदीवदेवया ममं पासइ, पासित्ता मम गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धिं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा रयणदीवदेवया अन्नया कयाइ अहालहुसगंसि अवराहंसि परिकुविया समाणी ममं एयारूवं आवयं पावेइ। तं न नज्जइ णं देवानुप्पिया! तुब्भं पि इमेसिं सरीरगाणं का मन्ने आवई भविस्सइ? | ||
Sutra Meaning : | वे माकन्दीपुत्र देवी के चले जाने पर एक मुहूर्त्त में ही उस उत्तम प्रासाद में सुखद स्मृति, रति और धृति नहीं पाते हुए आपस में कहने लगे – ‘देवानुप्रिय ! रत्नद्वीप की देवी ने हमसे कहा है कि – शक्रेन्द्र के वचनादेश से लवण – समुद्र के अधिपति देव सुस्थित ने मुझे यह कार्य सौंपा है, यावत् तुम दक्षिण दिशा के वनखण्ड में मत जाना, हमें पूर्व दिशा के वनखण्ड में चलना चाहिए। वे पूर्व दिशा के वनखण्ड में आए। आकर उस वन के बावड़ी आदि में यावत् क्रीड़ा करते हुए वल्लीमंडप आदि में यावत् विहार करने लगे। तत्पश्चात् वे माकन्दीपुत्र वहाँ भी सुखद स्मृति यावत् शान्ति न पाते हुए अनुक्रम से उत्तर दिशा और पश्चिम दिशा के वनखण्ड में गए। वहाँ जाकर बावड़ियों में यावत् वल्लीमंडपों में विहार करने लगे। तब वे माकन्दीपुत्र वहाँ भी सुख रूप स्मृति यावत् शान्ति न पाते हुए आपस में कहने लगे – ‘हे देवानुप्रिय ! रत्नद्वीप की देवी ने हमसे ऐसा कहा है कि – यावत् तुम दक्षिण दिशा के वन – खण्ड में मत जाना। तो इसमें कोई कारण होना चाहिए। अत एव हमें दक्षिण दिशा के वनखण्ड में भी जाना चाहिए।’ इस प्रकार कहकर उन्होंने एक दूसरे के इस विचार को स्वीकार करके उन्होंने दक्षिण दिशा के वनखण्ड में जाने का संकल्प किया – रवाना हुए। दक्षिणदिशा से दुर्गंध फूटने लगी, जैसे कोई साँप का मृत कलेवर हो, यावत् उससे भी अधिक अनिष्ट दुर्गंध आने लगी। उन माकन्दीपुत्रोंने उस अशुभ दुर्गंध से घबराकर अपने – अपने उत्तरीय वस्त्रों से मुँह ढंक लिए। मुँह ढंक कर दक्षिणदिशा के वनखण्डमें पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक बड़ा वधस्थान देखा। देखकर सैकड़ों हाड़ों के समूह से व्याप्त, देखनेमें भयंकर उस स्थान पर शूली चढ़ाये हुए एक पुरुष को करुण, वीरस, कष्टमय शब्द करते देखा। उसे देखकर वे डर गए। उन्हें बड़ा भय उत्पन्न हुआ। फिर वे शूली पर चढ़ाया पुरुष के पास पहुँचे और बोले – ‘हे देवानुप्रिय! यह वधस्थान किसका है? तुम कौन हो? किस लिए यहाँ आए थे? किसने तुम्हें इस विपत्ति में डाला?’ तब शूली पर चढ़े उस पुरुष ने माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! यह रत्नद्वीप की देवी का वधस्थान है। देवानुप्रियो ! मैं जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित काकंदी नगरी का निवासी अश्वों का व्यापारी हूँ। मैं बहुत – से अश्व और भाण्डोपकरण पोतवहन में भरकर लवणसमुद्र में चला। तत्पश्चात् पोतवहन के भग्न हो जाने से मेरा सब उत्तम भाण्डोपकरण डूब गया। मुझे पटिया का एक टुकड़ा मिल गया। उसी के सहारे तिरता – तिरता मैं रत्नद्वीप के समीप आ पहुँचा। उसी समय रत्नद्वीप की देवी ने मुझे अवधिज्ञान से देखा। देखकर उसने मुझे ग्रहण कर लिया – अपने कब्जे में कर लिया, वह मेरे साथ विपुल कामभोग भोगने लगी। तत्पश्चात् रत्नद्वीप की वह देवी एक बार, किसी समय, एक छोटे – से अपराध पर अत्यन्त कुपित हो गई और उसीने मुझे इस विपदा में पहुँचाया है। देवानुप्रियो ! नहीं मालूम तुम्हारे इस शरीर को भी कौन – सी आपत्ति प्राप्त होगी ?’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te magamdiya-daraya tao muhuttamtarassa pasayavademsae saim va raim va dhiim va alabhamana annamannam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Rayanadiva-devaya amhe evam vayasi–evam khalu aham sakkavayana-samdesenam sutthienam lavanahivaina niutta java ma nam tubbham sariragassa vavatti bhavissai. Tam seyam khalu amham devanuppiya! Puratthimillam vanasamdam gamittae–annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta jeneva puratthimille vanasamde teneva uvagachchhamti. Tattha nam vavisu ya java alidharaesu ya java suhamsuhenam abhiramamana-abhiramamana viharamti. Tae nam te magamdiya-daraga tattha vi saim va raim va dhiim va alabhamana jeneva uttarille vanasamde teneva uvagachchhamti. Tattha nam vavisu ya java alidharaesu ya suhamsuhenam abhiramamana-abhiramamana viharamti Tae nam te magamdiya-daraga tattha vi saim va raim va dhiim va alabhamana jeneva pachchatthimille vanasamde teneva uvagachchhamti. Tattha nam vavisu ya java alidharaesu ya suhamsuhenam abhiramamana-abhiramamana viharamti. Tae nam te magamdiya-daraga tattha vi saim va raim va dhiim va alabhamana annamannam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe rayanadivadevaya evam vayasi–evam khalu aham devanuppiya! Sakkavayana-samdesenam sutthienam lavanahivaina niutta java ma nam tubbham sariragassa vavatti bhavissai. Tam bhaviyavvam ettha karanenam. Tam seyam khalu amham dakkhinillam vanasamdam gamittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta jeneva dakkhinille vanasamde teneva paharettha gamanae. Tao nam gamdhe niddhai, se jahanamae–ahimade i va java anitthatarae cheva. Tae nam te magamdiya-daraga tenam asubhenam gamdhenam abhibhuya samana saehim-saehim uttarijjehim asaim piheti, pihetta jeneva dakkhinille vanasamde teneva uvagaya. Tattha nam maham egam aghayanam pasamti–atthiyarasi-saya-samkulam bhima-darisanijjam egam cha tattha sulaiyam purisam kalunaim katthaim vissaraim kuvamanam pasamti, bhiya tattha tasiya uvvigga samjayabhaya jeneva se sulaie purise teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam sulaiyam purisam evam vayasi–esa nam devanuppiya! Kassaghayane? Tumam cha nam ke kao va iham havvamagae? Kena va imeyaruvam avayam pavie? Tae nam se sulaie purise te magamdiya-darage evam vayasi–esa nam devanuppiya! Rayanadivadevayae aghayane. Aham nam devanuppiya! Jambuddivao divao bharahao vasao kogamdae asavaniyae vipulam paniyabhamdamayae piyavahanenam lavanasamuddam oyae. Tae nam aham poyavahana-vivattie nivvudda-bhamdasare egam phalagakhamdam asaemi. Tae nam aham ovujjhamane-ovujjhamane rayanadivamtenam samvudhe. Tae nam sa rayanadivadevaya mamam pasai, pasitta mama genhai, genhitta mae saddhim viulaim bhogabhogaim bhumjamani viharai. Tae nam sa rayanadivadevaya annaya kayai ahalahusagamsi avarahamsi parikuviya samani mamam eyaruvam avayam pavei. Tam na najjai nam devanuppiya! Tubbham pi imesim sariraganam ka manne avai bhavissai? | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ve makandiputra devi ke chale jane para eka muhurtta mem hi usa uttama prasada mem sukhada smriti, rati aura dhriti nahim pate hue apasa mem kahane lage – ‘devanupriya ! Ratnadvipa ki devi ne hamase kaha hai ki – shakrendra ke vachanadesha se lavana – samudra ke adhipati deva susthita ne mujhe yaha karya saumpa hai, yavat tuma dakshina disha ke vanakhanda mem mata jana, hamem purva disha ke vanakhanda mem chalana chahie. Ve purva disha ke vanakhanda mem ae. Akara usa vana ke bavari adi mem yavat krira karate hue vallimamdapa adi mem yavat vihara karane lage. Tatpashchat ve makandiputra vaham bhi sukhada smriti yavat shanti na pate hue anukrama se uttara disha aura pashchima disha ke vanakhanda mem gae. Vaham jakara bavariyom mem yavat vallimamdapom mem vihara karane lage. Taba ve makandiputra vaham bhi sukha rupa smriti yavat shanti na pate hue apasa mem kahane lage – ‘he devanupriya ! Ratnadvipa ki devi ne hamase aisa kaha hai ki – yavat tuma dakshina disha ke vana – khanda mem mata jana. To isamem koi karana hona chahie. Ata eva hamem dakshina disha ke vanakhanda mem bhi jana chahie.’ isa prakara kahakara unhomne eka dusare ke isa vichara ko svikara karake unhomne dakshina disha ke vanakhanda mem jane ka samkalpa kiya – ravana hue. Dakshinadisha se durgamdha phutane lagi, jaise koi sampa ka mrita kalevara ho, yavat usase bhi adhika anishta durgamdha ane lagi. Una makandiputromne usa ashubha durgamdha se ghabarakara apane – apane uttariya vastrom se mumha dhamka lie. Mumha dhamka kara dakshinadisha ke vanakhandamem pahumche. Vaham unhomne eka bara vadhasthana dekha. Dekhakara saikarom harom ke samuha se vyapta, dekhanemem bhayamkara usa sthana para shuli charhaye hue eka purusha ko karuna, virasa, kashtamaya shabda karate dekha. Use dekhakara ve dara gae. Unhem bara bhaya utpanna hua. Phira ve shuli para charhaya purusha ke pasa pahumche aura bole – ‘he devanupriya! Yaha vadhasthana kisaka hai? Tuma kauna ho? Kisa lie yaham ae the? Kisane tumhem isa vipatti mem dala?’ Taba shuli para charhe usa purusha ne makandiputrom se isa prakara kaha – he devanupriyo ! Yaha ratnadvipa ki devi ka vadhasthana hai. Devanupriyo ! Maim jambudvipa ke bharatakshetra mem sthita kakamdi nagari ka nivasi ashvom ka vyapari hum. Maim bahuta – se ashva aura bhandopakarana potavahana mem bharakara lavanasamudra mem chala. Tatpashchat potavahana ke bhagna ho jane se mera saba uttama bhandopakarana duba gaya. Mujhe patiya ka eka tukara mila gaya. Usi ke sahare tirata – tirata maim ratnadvipa ke samipa a pahumcha. Usi samaya ratnadvipa ki devi ne mujhe avadhijnyana se dekha. Dekhakara usane mujhe grahana kara liya – apane kabje mem kara liya, vaha mere satha vipula kamabhoga bhogane lagi. Tatpashchat ratnadvipa ki vaha devi eka bara, kisi samaya, eka chhote – se aparadha para atyanta kupita ho gai aura usine mujhe isa vipada mem pahumchaya hai. Devanupriyo ! Nahim maluma tumhare isa sharira ko bhi kauna – si apatti prapta hogi\?’ |