Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004790 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 90 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नामं जनवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी नामं नयरी होत्था। तत्थ णं संखे नामं कासीराया होत्था। तए णं तीसे मल्लीए विदेहवररायकन्नाए अन्नया कयाइं तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था। तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! इमस्स दिव्वस्स कुंडजुयलस्स संधिं संघाडेह, [संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह?] । तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगारभिसियासु निवेसेइ, निवेसेत्ता बहूहिं आएहिं य उवाएहिं य उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधिं घडित्तए, नो चेव णं संचाएइ घडित्तए। तए णं सा सुवण्णगारसेणी जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु सामी! अज्ज तुम्हे अम्हे सद्दावेह, जाव संधिं संघा-डेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं अम्हे तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हामो, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगार-भिसियाओ तेणेव उवगच्छामो जाव नो संचाएमो संधिं संघाडेत्तए। तए णं अम्हे सामी! एयस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स अन्नं सरिसयं कुंडलजुयलं घडेमो। तए णं से कुंभए राया तीसे सुवण्णगारसेणीए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसि मिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु एवं वयासी–केस णं तुब्भे कलाया णं भवह, जे णं तुब्भे इमस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स नो संचाएह संधिं संघाडित्तए? ते सुवण्णगारे निव्विसए आणवेइ। तए णं ते सुवण्णगारा कुंभगेणं रन्ना निव्विसया आणत्ता समाणा जेणेव साइं-साइं गिहाइं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाए रायहाणीए मज्झंमज्झेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता विदेहस्स जनवयस्स मज्झंमज्झेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता जेणेव कासी जनवए जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अग्गुज्जाणंसि सगडी -सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता पाहुडं उवणेंति, उवनेत्ताएवं वयासी–अम्हे णं सामी! मिहिलाओ कुंभएण रन्ना निव्विसया आणत्ता समाणा इह हव्वमागया। तं इच्छामी णं सामी! तुब्भं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसिउं। तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी–किं णं तुब्भे देवानुप्पिया! कुंभएणं रन्ना निव्विसया आणत्ता? तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! कुंभगस्स रन्नो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणिं सद्दावेइ जाव निव्विसया आणत्ता। तं एएणं कारणेणं सामी! अम्हे कुंभएणं रन्ना निव्विसया आणत्ता। तए णं से संखे कासीराया सुवण्णगारे एवं वयासी–केरिसिया णं देवानुप्पिया! कुंभगस्स रन्नो धूया पभावई-देवीए अत्तया मल्ली विदेहरायवरकन्ना? तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी–नो खलु सामी! अण्णा कावि तारिसिया देवकन्ना वा असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा० जारिसिया णं मल्ली विदेहवररायकन्ना। तए णं से संखे कासीराया कुंडल-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जाव मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए संखेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में काशी नामक जनपद था। उस जनपद में वाराणसी नामक नगरी थी। उसमें काशीराज शंख नामक राजा था। एक बार किसी समय विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली के उस दिव्य कुण्डल – युगल का जोड़ खुल गया। तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकार की श्रेणी को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! इस दिव्य कुण्डलयुगल के जोड़ को साँध दो।’ तत्पश्चात् सुवर्णकारों की श्रेणी ने ‘तथा – ठीक है’, इस प्रकार कहकर इस अर्थ को स्वीकार किया। उस दिव्य कुण्डलयुगल को ग्रहण किया। जहाँ सुवर्णकारों के स्थान थे, वहाँ आए। उन स्थानों पर कुण्डलयुगल रखा। उस कुण्डलयुगल को परिणत करते हुए उसका जोड़ साँधना चाहा, परन्तु साँधने में समर्थ न हो सके। तत्पश्चात् वह सुवर्णकार श्रेणी, कुम्भ राजा के पास आई। आकर दोनो हाथ जोड़कर और जय – विजय शब्दों से बधाकर इस प्रकार निवेदन किया – ‘स्वामिन् ! आज आपने हम लोगों को बुलाकर यह आदेश दिया था कि कुण्डलयुगल की संधि जोड़कर मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ। हम अपने स्थानों पर गए, बहुत उपाय किये, परन्तु इस संधि को जोड़ने के लिए शक्तिमान न हो सके। अत एव हे स्वामिन् ! हम दिव्य कुण्डलयुगल सरीखा दूसरा कुण्डल युगल बना दें।’ सुवर्णकारों का कथन सूनकर और हृदयंगम करके कुम्भ राजा ऋद्ध हो गया। ललाट पर तीन सलवट डालकर इस प्रकार कहने लगा – ‘अरे ! तुम कैसे सुनार हो, इस कुण्डलयुगल का जोड़ भी साँध नहीं सकते ?’ ऐसा कहकर उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी। तत्पश्चात् कुम्भ राजा द्वारा देशनिर्वासन की आज्ञा पाए हुए वे सुवर्णकार अपने – अपने घर आकर अपने भांड, पात्र और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी के बीचोंबीच होकर नीकले। विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ काशी जनपद था और जहाँ वाराणसी नगरी थी, वहाँ आए। उत्तम उद्यान में गाड़ी – गाड़े छोड़कर महान अर्थ वाले राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार लेकर, वाराणसी नगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ काशीराज शंख था वहाँ आए। दोनों हाथ जोड़कर यावत् जय – विजय शब्दों से बधाकर वह उपहार राजा के सामने रखकर शंख राजा से इस प्रकार निवेदन किया। ‘हे स्वामिन् ! राजा कुम्भ के द्वारा मिथिला नगरी से निर्वासित हुए हम सीधे यहाँ आए हैं। हे स्वामिन् ! हम आपकी भुजाओं की छाया ग्रहण किये हुए निर्भय और उद्वेगरहित होकर सुख – शान्तिपूर्वक निवास करना चाहते हैं।’ तब काशीराज शंख ने उन सुवर्णकारों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! कुम्भ राजा ने तुम्हें देश – नीकाले की आज्ञा क्यों दी ?’ तब सुवर्णकारों ने शंख राजा से कहा – ‘स्वामिन् ! कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा मल्ली कुमारी के कुण्डलयुगल का जोड़ खुल गया था। तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाया। यावत् देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी।’ शंख राजा ने सुवर्णकारों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती की आत्मजा विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली कैसी है ?’ तब सुवर्णकारों ने शंख राजा से कहा – ‘स्वामिन्! जैसी विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली है, वैसी कोई देवकन्या यावत् कोई राजकुमारी भी नहीं है। कुण्डल की जोड़ी से जनित हर्ष वाले शंख राजा ने दूत को बुलाया यावत् मिथिला जाने को रवाना हो गया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam kasi namam janavae hottha. Tattha nam vanarasi namam nayari hottha. Tattha nam samkhe namam kasiraya hottha. Tae nam tise mallie videhavararayakannae annaya kayaim tassa divvassa kumdalajuyalassa samdhi visamghadie yavi hottha. Tae nam se kumbhae raya suvannagarasenim saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Imassa divvassa kumdajuyalassa samdhim samghadeha, [samghadetta eyamanattiyam pachchappinaha?]. Tae nam sa suvannagaraseni eyamattham tahatti padisunei, padisunetta tam divvam kumdalajuyalam genhai, genhitta jeneva suvannagarabhisiyao teneva uvagachchhai, uvagachchhitta suvannagarabhisiyasu nivesei, nivesetta bahuhim aehim ya uvaehim ya uppattiyahi ya venaiyahi ya kammayahi ya parinamiyahi ya buddhihi parinamemana ichchhamti tassa divvassa kumdalajuyalassa samdhim ghadittae, no cheva nam samchaei ghadittae. Tae nam sa suvannagaraseni jeneva kumbhae raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta evam vayasi–evam khalu sami! Ajja tumhe amhe saddaveha, java samdhim samgha-detta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam amhe tam divvam kumdalajuyalam genhamo, genhitta jeneva suvannagara-bhisiyao teneva uvagachchhamo java no samchaemo samdhim samghadettae. Tae nam amhe sami! Eyassa divvassa kumdalajuyalassa annam sarisayam kumdalajuyalam ghademo. Tae nam se kumbhae raya tise suvannagarasenie amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte rutthe kuvie chamdikkie misi misemane tivaliyam bhiudim nidale sahattu evam vayasi–kesa nam tubbhe kalaya nam bhavaha, je nam tubbhe imassa divvassa kumdalajuyalassa no samchaeha samdhim samghadittae? Te suvannagare nivvisae anavei. Tae nam te suvannagara kumbhagenam ranna nivvisaya anatta samana jeneva saim-saim gihaim teneva uvagachchhati, uvagachchhitta sabhamdamattovagaranamayae mihilae rayahanie majjhammajjhenam nikkhamamti, nikkhamitta videhassa janavayassa majjhammajjhenam nikkhamamti, nikkhamitta jeneva kasi janavae jeneva vanarasi nayari teneva uvagachchhati, uvagachchhitta aggujjanamsi sagadi -sagadam moemti, moetta mahattham java pahudam genhamti, genhitta vanarasie nayarie majjhammajjhenam jeneva samkhe kasiraya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavemti, vaddhavetta pahudam uvanemti, uvanettaevam vayasi–amhe nam sami! Mihilao kumbhaena ranna nivvisaya anatta samana iha havvamagaya. Tam ichchhami nam sami! Tubbham bahuchchhayapariggahiya nibbhaya niruvvigga suhamsuhenam parivasium. Tae nam samkhe kasiraya te suvannagare evam vayasi–kim nam tubbhe devanuppiya! Kumbhaenam ranna nivvisaya anatta? Tae nam te suvannagara samkham kasirayam evam vayasi–evam khalu sami! Kumbhagassa ranno dhuyae pabhavaie devie attayae mallie videharayavarakannae kumdalajuyalassa samdhi visamghadie. Tae nam se kumbhae raya suvannagarasenim saddavei java nivvisaya anatta. Tam eenam karanenam sami! Amhe kumbhaenam ranna nivvisaya anatta. Tae nam se samkhe kasiraya suvannagare evam vayasi–kerisiya nam devanuppiya! Kumbhagassa ranno dhuya pabhavai-devie attaya malli videharayavarakanna? Tae nam te suvannagara samkham kasirayam evam vayasi–no khalu sami! Anna kavi tarisiya devakanna va asurakanna va nagakanna va jakkhakanna va gamdhavvakanna va rayakanna va0 jarisiya nam malli videhavararayakanna. Tae nam se samkhe kasiraya kumdala-janiya-hase duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–java mallim videharayavarakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due samkhenam evam vutte samane hatthatutthe java jeneva mihila nayari teneva paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem kashi namaka janapada tha. Usa janapada mem varanasi namaka nagari thi. Usamem kashiraja shamkha namaka raja tha. Eka bara kisi samaya videharaja ki uttama kanya malli ke usa divya kundala – yugala ka jora khula gaya. Taba kumbha raja ne suvarnakara ki shreni ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Isa divya kundalayugala ke jora ko samdha do.’ tatpashchat suvarnakarom ki shreni ne ‘tatha – thika hai’, isa prakara kahakara isa artha ko svikara kiya. Usa divya kundalayugala ko grahana kiya. Jaham suvarnakarom ke sthana the, vaham ae. Una sthanom para kundalayugala rakha. Usa kundalayugala ko parinata karate hue usaka jora samdhana chaha, parantu samdhane mem samartha na ho sake. Tatpashchat vaha suvarnakara shreni, kumbha raja ke pasa ai. Akara dono hatha jorakara aura jaya – vijaya shabdom se badhakara isa prakara nivedana kiya – ‘svamin ! Aja apane hama logom ko bulakara yaha adesha diya tha ki kundalayugala ki samdhi jorakara meri ajnya vapisa lautao. Hama apane sthanom para gae, bahuta upaya kiye, parantu isa samdhi ko jorane ke lie shaktimana na ho sake. Ata eva he svamin ! Hama divya kundalayugala sarikha dusara kundala yugala bana dem.’ suvarnakarom ka kathana sunakara aura hridayamgama karake kumbha raja riddha ho gaya. Lalata para tina salavata dalakara isa prakara kahane laga – ‘are ! Tuma kaise sunara ho, isa kundalayugala ka jora bhi samdha nahim sakate\?’ aisa kahakara unhem deshanirvasana ki ajnya de di. Tatpashchat kumbha raja dvara deshanirvasana ki ajnya pae hue ve suvarnakara apane – apane ghara akara apane bhamda, patra aura upakarana adi lekara mithila nagari ke bichombicha hokara nikale. Videha janapada ke madhya mem hokara jaham kashi janapada tha aura jaham varanasi nagari thi, vaham ae. Uttama udyana mem gari – gare chhorakara mahana artha vale raja ke yogya bahumulya upahara lekara, varanasi nagari ke bichombicha hokara jaham kashiraja shamkha tha vaham ae. Donom hatha jorakara yavat jaya – vijaya shabdom se badhakara vaha upahara raja ke samane rakhakara shamkha raja se isa prakara nivedana kiya. ‘He svamin ! Raja kumbha ke dvara mithila nagari se nirvasita hue hama sidhe yaham ae haim. He svamin ! Hama apaki bhujaom ki chhaya grahana kiye hue nirbhaya aura udvegarahita hokara sukha – shantipurvaka nivasa karana chahate haim.’ taba kashiraja shamkha ne una suvarnakarom se kaha – ‘devanupriyo ! Kumbha raja ne tumhem desha – nikale ki ajnya kyom di\?’ taba suvarnakarom ne shamkha raja se kaha – ‘svamin ! Kumbha raja ki putri aura prabhavati devi ki atmaja malli kumari ke kundalayugala ka jora khula gaya tha. Taba kumbha raja ne suvarnakarom ki shreni ko bulaya. Yavat deshanirvasana ki ajnya de di.’ shamkha raja ne suvarnakarom se kaha – ‘devanupriyo ! Kumbha raja ki putri aura prabhavati ki atmaja videharaja ki shreshtha kanya malli kaisi hai\?’ taba suvarnakarom ne shamkha raja se kaha – ‘svamin! Jaisi videharaja ki shreshtha kanya malli hai, vaisi koi devakanya yavat koi rajakumari bhi nahim hai. Kundala ki jori se janita harsha vale shamkha raja ne duta ko bulaya yavat mithila jane ko ravana ho gaya. |