Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004789
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Section : Translated Section :
Sutra Number : 89 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जनवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। तीसे णं सुबाहूए दारियाए अन्नया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्था। तए णं ते रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्ठियं जाणइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, तं तुब्भे णं रायमग्गमोगाढंसि चउक्कंसि जल-थलय-दसद्धवण्णं मल्लं साहरह जाव एगं महं सिरिदामगंडं गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह। ते वि तहेव ओलयंति। तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुवण्णगार-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! राय-मग्गमोगाडंसि पुप्फमंडवंसि नानाविहपंचवण्णेहिं तंदुलेहिं नगरं आलिहह, तस्स बहुमज्झदेसभाए पट्टयं रएह, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेनाए महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे सुबाहुं दारियं पुरओ कट्टु जेणेव रायमग्गे जेणेव पुप्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पुप्फमंडवे अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। तए णं ताओ अंतेउरियाओ सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरुहेंति दुरुहेत्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं ण्हाणेंति, ण्हाणेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता पिउणो पायवंदियं उवणेंति। तए णं सुबाहु दारिया जेणेव रुप्पी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। तए णं से रुप्पी राया सुबाहुं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसित्ता सुबाहुए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य जायविम्हए वरिसघरं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुमं णं देवानुप्पिया! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर-नगर जाव सण्णिवेसाइं आहिंडसि, बहूण य राईसर जाव सत्थवाह-पभिईणं गिहाणि अनुप्पविससि, तं अत्थियाइं ते कस्सइ रन्नो वा ईसरस्स वा कहिंचि एयारिसए मज्जणए दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमीसे सुबाहूए दारियाए मज्जणए? तए णं से वरिसघरे रुप्पिं रायं करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु सामी! अहं अन्नया तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं गए। तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णी धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए सज्जणए दिट्ठे। तस्स णं मज्जणगस्स इमे सुबाहुए दारियाए मज्जणए सयसहस्सइमंपि कालं न अग्घइ। तए णं से रुप्पी राया वरिसघरस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म मज्जणग-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जाव मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए रुप्पिणा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में कुणाल नामक जनपद था। उस जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी थी। उसमें कुणाल देश का अधिपति रुक्मि नामक राजा था। रुक्मि राजा की पुत्री और धारिणी – देवी की कूंख से जन्मी सुबाहु नामक कन्या थी। उसके हाथ – पैर आदि सब अवयव सुन्दर थे। वय, रूप, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। उस सुबाहु बालिका का किसी समय चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया। तब कुणालाधिपति रुक्मि राजा ने सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया जाना। कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! कल सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव होगा। अत एव तुम राजमार्ग के मध्य में, चौक में जल और थल में उत्पन्न होने वाले पाँच वर्णों के फूल लाओ और एक सुगंध छोड़ने वाली श्रीदामकाण्ड छत में लटकाओ।’ यह आज्ञा सूनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार कार्य किया। तत्पश्चात्‌ कुणाल देश के अधिपति रुक्मि राजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाकर कहा – ‘हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही राजमार्ग के मध्य में, पुष्पमंडप में विविध प्रकार के पंचरंगे चावलों से नगर का अवलोकन करो – नगर का चित्रण करो। उसके ठीक मध्य भाग में एक पाट रखो।’ यह सूनकर उन्होंने इसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाई। तत्पश्चात्‌ कुणालाधिपति रुक्मि हाथी के श्रेष्ठ स्कन्ध पर आरूढ़ हुआ। चतुरंगी सेना, बड़े – बड़े योद्धाओं और अंतःपुर के परिवार आदि से परिवृत्त होकर सुबाहु कुमारी को आगे करके, जहाँ राजमार्ग था और जहाँ पुष्प मंडप था, वहाँ आया। हाथी के स्कन्ध से नीचे ऊतरकर पुष्पमंडप में प्रवेश किया। पूर्व दिशा की ओर मुख करके उत्तम सिंहासन पर आसीन हुआ। तत्पश्चात्‌ अन्तःपुर की स्त्रियों ने सुबाहु कुमारी को उस पाठ कर बिठा कर चाँदी और सोने आदि के कलशों से उसे स्नान कराया। सब अलंकारों से विभूषित किया। फिर पिता के चरणों में प्रणाम करने के लिए लाई। तब सुबाहु कुमारी रुक्मि राजा के पास आई। आकर उसने पिता के चरणों का स्पर्श किया। उस समय रुक्मि राजा ने सुबाहु कुमारी को अपनी गोद में बिठा लिया। बिठाकर सुबाहु कुमारी के रूप, यौवन और लावण्य को देखने से उसे विस्मय हुआ। उसने वर्षधर को बुलाया। इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दौत्य कार्य से बहुत – से ग्रामों, आकरों, नगरों यावत्‌ सन्निवेशों में भ्रमण करते हो और अनेक राजाओं, राजकुमारों यावत्‌ सार्थवाहों आदि के गृह में प्रवेश करते हो, तो तुमने कहीं भी किसी राजा या ईश्वर के यहाँ ऐसा मज्जनक पहले देखा है, जैसा इस सुबाहु कुमारी का मज्जन – महोत्सव है ?’ वर्षधर ने रुक्मि राजा से हाथ जोड़कर मस्तक पर हाथ घूमाकर अंजलिबद्ध होकर कहा – ‘हे स्वामिन्‌ ! एक बार मैं आपके दूत के रूप में मिथिला गया था। मैंने वहाँ कुंभ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली का स्नान – महोत्सव देखा था। सुबाहु कुमारी का यह मज्जन – उत्सव उस मज्जन – महोत्सव के लाखवें अंश को भी नहीं पा सकता। वर्षधर से यह बात सूनकर और हृदय में धारण करके, मज्जन – महोत्सव का वृत्तांत सूनने से जनित हर्ष वाले रुक्मि राजा ने दूत को बुलाया। शेष पूर्ववत्‌। दूत को बुलाकर कहा – दूत मिथिला नगरी जाने को रवाना हुआ।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam kunala nama janavae hottha. Tattha nam savatthi nama nayari hottha. Tattha nam ruppi kunalahivai nama raya hottha. Tassa nam ruppissa dhuya dharinie devie attaya subahu nama dariya hottha–sukumalapanipaya ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha ukkitthasarira jaya yavi hottha. Tise nam subahue dariyae annaya chaummasiya-majjanae jae yavi hottha. Tae nam te ruppi kunalahivai subahue dariyae chaummasiya-majjanayam uvatthiyam janai, janitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Subahue dariyae kallam chaummasiya-majjanae bhavissai, tam tubbhe nam rayamaggamogadhamsi chaukkamsi jala-thalaya-dasaddhavannam mallam saharaha java egam maham siridamagamdam gamdhaddhanim muyamtam ulloyamsi olaeha. Te vi taheva olayamti. Tae nam se ruppi kunalahivai suvannagara-seni saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Raya-maggamogadamsi pupphamamdavamsi nanavihapamchavannehim tamdulehim nagaram alihaha, tassa bahumajjhadesabhae pattayam raeha, eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva pachchappinamti. Tae nam se ruppi kunalahivai hatthikhamdhavaragae chauramginie senae mahaya bhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitte amteura-pariyala-samparivude subahum dariyam purao kattu jeneva rayamagge jeneva pupphamamdave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta hatthikhamdhao pachchoruhai, pachchoruhitta pupphamamdave anuppavisai, anuppavisitta sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne. Tae nam tao amteuriyao subahum dariyam pattayamsi duruhemti duruhetta seyapiyaehim kalasehim nhanemti, nhanetta savvalamkaravibhusiyam karemti, karetta piuno payavamdiyam uvanemti. Tae nam subahu dariya jeneva ruppi raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta payaggahanam karei. Tae nam se ruppi raya subahum dariyam amke nivesei, nivesitta subahue dariyae ruvena ya jovvanena ya lavannena ya jayavimhae varisagharam saddavei, saddavetta evam vayasi–tumam nam devanuppiya! Mama dochchenam bahuni gamagara-nagara java sannivesaim ahimdasi, bahuna ya raisara java satthavaha-pabhiinam gihani anuppavisasi, tam atthiyaim te kassai ranno va isarassa va kahimchi eyarisae majjanae ditthapuvve, jarisae nam imise subahue dariyae majjanae? Tae nam se varisaghare ruppim rayam karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu sami! Aham annaya tubbham dochchenam mihilam gae. Tattha nam mae kumbhagassa ranni dhuyae pabhavaie devie attayae mallie videharayavarakannagae sajjanae ditthe. Tassa nam majjanagassa ime subahue dariyae majjanae sayasahassaimampi kalam na agghai. Tae nam se ruppi raya varisagharassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma majjanaga-janiya-hase duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–java mallim videharayavarakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due ruppina evam vutte samane hatthatutthe java jeneva mihila nayari teneva paharettha gamanae.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem kunala namaka janapada tha. Usa janapada mem shravasti namaka nagari thi. Usamem kunala desha ka adhipati rukmi namaka raja tha. Rukmi raja ki putri aura dharini – devi ki kumkha se janmi subahu namaka kanya thi. Usake hatha – paira adi saba avayava sundara the. Vaya, rupa, yauvana mem aura lavanya mem utkrishta thi aura utkrishta sharira vali thi. Usa subahu balika ka kisi samaya chaturmasika snana ka utsava aya. Taba kunaladhipati rukmi raja ne subahu balika ke chaturmasika snana ka utsava aya jana. Kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘he devanupriyo ! Kala subahu balika ke chaturmasika snana ka utsava hoga. Ata eva tuma rajamarga ke madhya mem, chauka mem jala aura thala mem utpanna hone vale pamcha varnom ke phula lao aura eka sugamdha chhorane vali shridamakanda chhata mem latakao.’ yaha ajnya sunakara una kautumbika purushom ne usi prakara karya kiya. Tatpashchat kunala desha ke adhipati rukmi raja ne suvarnakarom ki shreni ko bulakara kaha – ‘he devanupriyo! Shighra hi rajamarga ke madhya mem, pushpamamdapa mem vividha prakara ke pamcharamge chavalom se nagara ka avalokana karo – nagara ka chitrana karo. Usake thika madhya bhaga mem eka pata rakho.’ yaha sunakara unhomne isi prakara karya karake ajnya vapisa lautai. Tatpashchat kunaladhipati rukmi hathi ke shreshtha skandha para arurha hua. Chaturamgi sena, bare – bare yoddhaom aura amtahpura ke parivara adi se parivritta hokara subahu kumari ko age karake, jaham rajamarga tha aura jaham pushpa mamdapa tha, vaham aya. Hathi ke skandha se niche utarakara pushpamamdapa mem pravesha kiya. Purva disha ki ora mukha karake uttama simhasana para asina hua. Tatpashchat antahpura ki striyom ne subahu kumari ko usa patha kara bitha kara chamdi aura sone adi ke kalashom se use snana karaya. Saba alamkarom se vibhushita kiya. Phira pita ke charanom mem pranama karane ke lie lai. Taba subahu kumari rukmi raja ke pasa ai. Akara usane pita ke charanom ka sparsha kiya. Usa samaya rukmi raja ne subahu kumari ko apani goda mem bitha liya. Bithakara subahu kumari ke rupa, yauvana aura lavanya ko dekhane se use vismaya hua. Usane varshadhara ko bulaya. Isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Tuma mere dautya karya se bahuta – se gramom, akarom, nagarom yavat sanniveshom mem bhramana karate ho aura aneka rajaom, rajakumarom yavat sarthavahom adi ke griha mem pravesha karate ho, to tumane kahim bhi kisi raja ya ishvara ke yaham aisa majjanaka pahale dekha hai, jaisa isa subahu kumari ka majjana – mahotsava hai\?’ varshadhara ne rukmi raja se hatha jorakara mastaka para hatha ghumakara amjalibaddha hokara kaha – ‘he svamin ! Eka bara maim apake duta ke rupa mem mithila gaya tha. Maimne vaham kumbha raja ki putri aura prabhavati devi ki atmaja videharaja ki uttama kanya malli ka snana – mahotsava dekha tha. Subahu kumari ka yaha majjana – utsava usa majjana – mahotsava ke lakhavem amsha ko bhi nahim pa sakata. Varshadhara se yaha bata sunakara aura hridaya mem dharana karake, majjana – mahotsava ka vrittamta sunane se janita harsha vale rukmi raja ne duta ko bulaya. Shesha purvavat. Duta ko bulakara kaha – duta mithila nagari jane ko ravana hua.