Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004788 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 88 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से अरहन्नए निरुवसग्गमिति कट्टु पडिमं पारेइ। तए णं ते अरहन्नगपामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेंति, लंबेत्ता सगडि-सागडं सज्जंति, तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडि-सागडं संकामेंति संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविंति जोवित्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च गेण्हंति, गेण्हित्ता मिहिलाए रायहाणीए अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च उवणेंति। तए णं कुंभए राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लिं विदेहवररायकन्नं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं मल्लीए विदेहरायकन्नगाए पिणद्धेइ, पिणद्धेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से कुंभए राया ते अरहन्नगपामोक्खे संजत्ता-नावावाणियगे विपुलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं अरहन्नग-पामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भंडववहरणं करेंति, पडिभंडे गेण्हंति, गेण्हित्ता सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता भंडं संकामेंति, संकामेत्ता दक्खिणाणुकुलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेंति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडी-सागडं संकामेंति, संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविति, जोवित्ता जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चंपाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं उवणेंति। तए णं चंदच्छाए अंगराया तं महत्थं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते अरहन्नगपामोक्खे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाइं आहिंडइ, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेहिं ओगाहेइ, तं अत्थियाइं भे केइ कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते अरहन्नगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्तगा-नावावाणियगा परिवसामो। तए णं अम्हे अन्नया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च गेण्हामो तहेव अहीन-अइरित्तं जाव कुंभगस्स रन्नो उवणेमो। तए णं से कुंभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणद्धेइ, पिणद्धेत्ता पडिविसज्जेइ। तं एस णं सामी! अम्हेहिं कुंभगरायभवणंसि मल्ली विदेहरायवरकन्ना अच्छेरए दिट्ठे। तं नो खलु अण्णा कावि तारिसिया देवकन्ना वा असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा० जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना। तए णं चंदच्छाए अरहन्नगपामोक्खे सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं चंदच्छाए वाणियग-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जाव मल्लिं विदेहराय-वरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए चंदच्छाएणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् अर्हन्नक ने उपसर्ग टल गया जानकर प्रतिमा पारी तदनन्तकर वे अर्हन्नक आदि यावत् नौका – वणिक् दक्षिण दिशा के अनुकूल पवन के कारण जहाँ गम्भीर नामक पोतपट्टन था, वहाँ आए। आकर उस पोत को रोका। गाड़ी – गाड़े तैयार करके वह गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड को गाड़ी – गाड़ों में भरा। जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ आकर मिथिला नगरी के बाहर उत्तम उद्यान में गाड़ी – गाड़े छोड़कर मिथिला नगरी में जाने के लिए वह महान् अर्थ वाली, महामूल्य वाली, महान् जनों के योग्य, विपुल और राजा के योग्य भेंट और कुंडलों की जोड़ी ली। लेकर मिथिला नगरी में प्रवेश किया। जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आए। आकर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर अंजलि करके वह महान अर्थ वाली भेंट और वह दिव्य कुंडलयुगल राजा के समीप ले गये, यावत् राजा के सामने रख दिया। तत्पश्चात् कुंभ राजा ने उन नौकावणिकों की वह बहुमूल्य भेंट यावत् अंगीकार की। अंगीकार करके विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली को बुलाया। बुलाकर वह दिव्य कुंडलयुगल विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली को पहनाया और उसे बिदा कर दिया। तत्पश्चात् कुंभ राजा ने उन अर्हन्नक आदि नौकावणिकों का विपुल अशन आदि से तथा वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकार से सत्कार किया। उनका शुल्क माफ कर दिया। राजमार्ग पर उनको उत्तरा – आवास दिया और फिर उन्हें बिदा किया। तत्पश्चात् वे अर्हन्नक आदि सांयात्रिक वणिक्, जहाँ राजमार्ग पर आवास था, वहाँ आए। आकर भाण्ड का व्यापार करने लगे। उन्होंने प्रतिभांड खरीद कर उससे गाड़ी – गाड़े भरे। जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ आए। आकर के पोतवहन सजाया – तैयार किया। तैयार करके उसमें सब भांड भरा। भरकर दक्षिण दिशा के अनुकूल वायु के कारण जहाँ चम्पा नगरी का पोतस्थान था, वहाँ आए। पोत को रोककर गाड़ी – गाड़े ठीक करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य – चार प्रकार का भांड उनमें भरा। भरकर यावत् बहुमूल्य भेंट और दिव्य कुण्डलयुगल ग्रहण किया। ग्रहण करके जहाँ अंगराज चन्द्रच्छाय था, वहाँ आए। आकर वह बहुमूल्य भेंट राजा के सामने रखी। तत्पश्चात् चन्द्रच्छाय अंगराज ने उस दिव्य एवं महामूल्यवान कुण्डलयुगल का स्वीकार किया। स्वीकार करके उन अर्हन्नक आदि से इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रियों ! आप बहुत से ग्रामों, आकरों आदि में भ्रमण करते हो तथा बार – बार लवणसमुद्रमें जहाज द्वारा प्रवेश करते हो तो आपने पहले किसी जगह कोई भी आश्चर्य देखा है? तब उन अर्हन्नक आदि वणिकों ने चन्द्रच्छाय नामक अङ्गदेश के राजा से इस प्रकार कहा – हे स्वामिन् ! हम अर्हन्नक आदि बहुत – से सांयात्रिक नौकावणिक इसी चम्पानगरी में निवास करते हैं। एक बार किसी समय हम गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड भर कर यावत् कुम्भ राजा के पास पहुँचे और भेंट उसके सामने रखी। उस समय कुम्भ ने मल्ली नामक विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या को वह दिव्य कुंडलयुगल पहनाकर उसे बिदा कर दिया। तो हे स्वामिन् ! हमने कुम्भ राजा के भवन में विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या मल्ली आश्चर्य रूप में देखी है। मल्ली नामक विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या जैसी सुन्दर है, वैसी दूसरी कोई देवकन्या, असुरकन्या, नागकन्या, यक्षकन्या, गंधर्वकन्या या राजकन्या नहीं है। तत्पश्चात् चन्द्रच्छाय राजा ने अर्हन्नक आदि का सत्कार – सम्मान करके बिदा किया। तदनन्तर वणिकों के कथन से चन्द्रच्छाय को अत्यन्त हर्ष हुआ। उसने दूत को बुलाकर कहा – इत्यादि कथन सब पहले के समान ही कहना। भले ही वह कन्या मेरे सारे राज्य के मूल्य की हो, तो भी स्वीकार करना। दूत हर्षित होकर मल्ली कुमारी की मंगनी के लिए चल दिया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se arahannae niruvasaggamiti kattu padimam parei. Tae nam te arahannagapamokkha samjatta-navavaniyaga dakkhinanukulenam vaenam jeneva gambhirae poyatthane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta poyam lambemti, lambetta sagadi-sagadam sajjamti, tam ganimam dharimam mejjam parichchhejjam cha sagadi-sagadam samkamemti samkametta sagadi-sagadam jovimti jovitta jeneva mihila teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta mihilae rayahanie bahiya aggujjanamsi sagadi-sagadam moemti, moetta mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam divvam kumdalajuyalam cha genhamti, genhitta mihilae rayahanie anuppavisamti, anuppavisitta jeneva kumbhae raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam divvam kumdalajuyalam cha uvanemti. Tae nam kumbhae raya tesim samjatta-navavaniyaganam tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam divvam kumdalajuyalam cha padichchhai, padichchhitta mallim videhavararayakannam saddavei, saddavetta tam divvam kumdalajuyalam mallie videharayakannagae pinaddhei, pinaddhetta padivisajjei. Tae nam se kumbhae raya te arahannagapamokkhe samjatta-navavaniyage vipulenam vattha-gamdha-mallalamkarena ya sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta ussukkam viyarai, viyaritta rayamaggamogadhe ya avase viyarai, viyaritta padivisajjei. Tae nam arahannaga-pamokkha samjatta-navavaniyaga jeneva rayamaggamogadhe avase teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhamdavavaharanam karemti, padibhamde genhamti, genhitta sagadi-sagadam bharemti, bharetta jeneva gambhirae poyapattane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta poyavahanam sajjemti, sajjetta bhamdam samkamemti, samkametta dakkhinanukulenam vaenam jeneva champae poyatthane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta poyam lambemti, lambetta sagadi-sagadam sajjemti, sajjetta tam ganimam dharimam mejjam parichchhejjam cha sagadi-sagadam samkamemti, samkametta sagadi-sagadam joviti, jovitta jeneva champanayari teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta champae rayahanie bahiya aggujjanamsi sagadi-sagadam moemti, moetta mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam divvam cha kumdalajuyalam genhamti, genhitta jeneva chamdachchhae amgaraya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam divvam cha kumdalajuyalam uvanemti. Tae nam chamdachchhae amgaraya tam mahattham pahudam divvam cha kumdalajuyalam padichchhai, padichchhitta te arahannagapamokkhe evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Bahuni gamagara java sannivesaim ahimdai, lavanasamuddam cha abhikkhanam-abhikkhanam poyavahanehim ogahei, tam atthiyaim bhe kei kahimchi achchherae ditthapuvve? Tae nam te arahannagapamokkha chamdachchhayam amgarayam evam vayasi–evam khalu sami! Amhe iheva champae nayarie arahannagapamokkha bahave samjattaga-navavaniyaga parivasamo. Tae nam amhe annaya kayai ganimam cha dharimam cha mejjam cha parichchhejjam cha genhamo taheva ahina-airittam java kumbhagassa ranno uvanemo. Tae nam se kumbhae mallie videharayavarakannae tam divvam kumdalajuyalam pinaddhei, pinaddhetta padivisajjei. Tam esa nam sami! Amhehim kumbhagarayabhavanamsi malli videharayavarakanna achchherae ditthe. Tam no khalu anna kavi tarisiya devakanna va asurakanna va nagakanna va jakkhakanna va gamdhavvakanna va rayakanna va0 jarisiya nam malli videharayavarakanna. Tae nam chamdachchhae arahannagapamokkhe sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta ussukkam viyarai, viyaritta padivisajjei. Tae nam chamdachchhae vaniyaga-janiyahase duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–java mallim videharaya-varakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due chamdachchhaenam evam vutte samane hatthatutthe java paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat arhannaka ne upasarga tala gaya janakara pratima pari tadanantakara ve arhannaka adi yavat nauka – vanik dakshina disha ke anukula pavana ke karana jaham gambhira namaka potapattana tha, vaham ae. Akara usa pota ko roka. Gari – gare taiyara karake vaha ganima, dharima, meya aura parichchhedya bhamda ko gari – garom mem bhara. Jaham mithila nagari thi, vaham akara mithila nagari ke bahara uttama udyana mem gari – gare chhorakara mithila nagari mem jane ke lie vaha mahan artha vali, mahamulya vali, mahan janom ke yogya, vipula aura raja ke yogya bhemta aura kumdalom ki jori li. Lekara mithila nagari mem pravesha kiya. Jaham kumbha raja tha, vaham ae. Akara donom hatha jorakara, mastaka para amjali karake vaha mahana artha vali bhemta aura vaha divya kumdalayugala raja ke samipa le gaye, yavat raja ke samane rakha diya. Tatpashchat kumbha raja ne una naukavanikom ki vaha bahumulya bhemta yavat amgikara ki. Amgikara karake videha ki uttama rajakumari malli ko bulaya. Bulakara vaha divya kumdalayugala videha ki shreshtha rajakumari malli ko pahanaya aura use bida kara diya. Tatpashchat kumbha raja ne una arhannaka adi naukavanikom ka vipula ashana adi se tatha vastra, gandha, mala aura alamkara se satkara kiya. Unaka shulka mapha kara diya. Rajamarga para unako uttara – avasa diya aura phira unhem bida kiya. Tatpashchat ve arhannaka adi samyatrika vanik, jaham rajamarga para avasa tha, vaham ae. Akara bhanda ka vyapara karane lage. Unhomne pratibhamda kharida kara usase gari – gare bhare. Jaham gambhira potapattana tha, vaham ae. Akara ke potavahana sajaya – taiyara kiya. Taiyara karake usamem saba bhamda bhara. Bharakara dakshina disha ke anukula vayu ke karana jaham champa nagari ka potasthana tha, vaham ae. Pota ko rokakara gari – gare thika karake ganima, dharima, meya aura parichchhedya – chara prakara ka bhamda unamem bhara. Bharakara yavat bahumulya bhemta aura divya kundalayugala grahana kiya. Grahana karake jaham amgaraja chandrachchhaya tha, vaham ae. Akara vaha bahumulya bhemta raja ke samane rakhi. Tatpashchat chandrachchhaya amgaraja ne usa divya evam mahamulyavana kundalayugala ka svikara kiya. Svikara karake una arhannaka adi se isa prakara kaha – ‘he devanupriyom ! Apa bahuta se gramom, akarom adi mem bhramana karate ho tatha bara – bara lavanasamudramem jahaja dvara pravesha karate ho to apane pahale kisi jagaha koi bhi ashcharya dekha hai? Taba una arhannaka adi vanikom ne chandrachchhaya namaka angadesha ke raja se isa prakara kaha – he svamin ! Hama arhannaka adi bahuta – se samyatrika naukavanika isi champanagari mem nivasa karate haim. Eka bara kisi samaya hama ganima, dharima, meya aura parichchhedya bhamda bhara kara yavat kumbha raja ke pasa pahumche aura bhemta usake samane rakhi. Usa samaya kumbha ne malli namaka videha raja ki shreshtha kanya ko vaha divya kumdalayugala pahanakara use bida kara diya. To he svamin ! Hamane kumbha raja ke bhavana mem videha raja ki shreshtha kanya malli ashcharya rupa mem dekhi hai. Malli namaka videha raja ki shreshtha kanya jaisi sundara hai, vaisi dusari koi devakanya, asurakanya, nagakanya, yakshakanya, gamdharvakanya ya rajakanya nahim hai. Tatpashchat chandrachchhaya raja ne arhannaka adi ka satkara – sammana karake bida kiya. Tadanantara vanikom ke kathana se chandrachchhaya ko atyanta harsha hua. Usane duta ko bulakara kaha – ityadi kathana saba pahale ke samana hi kahana. Bhale hi vaha kanya mere sare rajya ke mulya ki ho, to bhi svikara karana. Duta harshita hokara malli kumari ki mamgani ke lie chala diya. |