Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004344 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा | Translated Section : | उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा |
Sutra Number : | 844 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्स-ट्ठितीएसु, उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसो सो चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स गमगो भाणियव्वो जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं देसूणाइं पंच पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, तस्स वि एस चेव वत्तव्वया, नवरं–ठिती जहन्नेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं देसूणाइं चत्तारि पलिओवमाइं, उक्कोसेणं देसूणाइं पंच पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जहन्नकालट्ठितियस्स तहेव निरवसेसं। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तहेव तिन्नि गमगा जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, नवरं–नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्ज-वासाउयं? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय? गोयमा! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय। पज्जत्तसंखेज्ज-वासाउय-सण्णि-पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं। एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स वत्तव्वया तहेव इह वि नवसु वि गमएसु, नवरं–नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव। जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं सण्णिमनुस्सेहिंतो? असण्णिमनुस्सेहिंतो? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो, जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जाव–असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं। एवं जहेव असंखेज्ज-वासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं नागकुमारेसु आदिल्ला तिन्नि गमगा तहेव इमस्स वि, नवरं–पढमबितिएसु गमएसु सरीरोगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाइं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। तइयगमे ओगाहणा जहन्नेणं देसूणाइं दो गाउयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। सेसं तं चेव। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेव निरवसेसं। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव उक्कोस कालट्ठितियस्स असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, नवरं– नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखज्ज? अपज्जत्त-संखेज्ज? गोयमा! पज्जत्तसंखेज्ज, नो अपज्जत्तसंखेज्ज। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं देसूणदोपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जे-ज्जा। एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स सच्चेव लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु, नवरं–नाग-कुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत् उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन् !) यदि वे (नागकुमार) तिर्यंचों से आते हैं, तो इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। असुरकुमारों के अनुसार इनकी भी वक्तव्यता, यावत् असंज्ञी – पर्यन्त कहना। भगवन् ! यदि वे संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंख्येय से ? दोनों से। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षा – युष्क पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों के समान यहाँ भी भवादेश तक गमक कहना चाहिए। काल की अपेक्षा से – जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटिकवर्ष और उत्कृष्ट देशोन पाँच पल्योपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। यही जघन्यकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके भी कहनी चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना। उत्कृष्ट काल स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो भी यही कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य देशोन दो पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। भवादेश तक शेष पूर्ववत्। काल की अपेक्षा से – जघन्य देशोन चार पल्योपम और उत्कृष्ट देशोन पाँच पल्योपम। यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो अथवा स्वयं उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो, तो उसके भी तीनों गमक, असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंचयोनिक के तीनों गमकों समान कहने। विशेष यह कि यहाँ नाग – कुमार की स्थिति और संवेध जानना। शेष सब वर्णन असुरकुमारोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंचयोनिक समान जानना। भगवन् ! यदि वे (नागकुमार) संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क वाले से ? गौतम ! वे पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच, जो नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारोंमें उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है; इत्यादि जैसे असुरकुमारों के उत्पन्न होनेवाले संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंच की वक्तव्यता कही है, वैसे यहाँ नौ ही गमकों में कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना। भगवन् ! यदि वह (नागकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य मनुष्यों की वक्तव्यता का समान जानीए। यावत् – भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले में। इस प्रकार असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों के नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी आदि के तीन गमक जानने चाहिए। परन्तु पहले और दूसरे गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य सातिरेक पाँच सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। तीसरे गमक में अवगाहना जघन्य देशोन दो गाऊ और तीन गाऊ की होती है। शेष पूर्ववत् यदि वह स्वयं (नागकुमार), जघन्य काल की स्थिति वाला हो, तो उसके तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य के समान समझिए। यदि वह (नागकुमार) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके सम्बन्ध में भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असंख्यातवर्षीय संज्ञी मनुष्य के समान वक्तव्यता जाननी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्। भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं तो पर्याप्त या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ? गौतम ! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं। भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य नागकुमारों में उत्पन्न हो तो कितनी काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति के नागकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की वक्तव्यता के समान किन्तु स्थिति और संवेध नागकुमारों के समान जानना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] rayagihe java evam vayasi–nagakumaranam bhamte! Kaohimto uvavajjamti–kim neraiehimto uvavajjamti? Tirikkhajoniya-manussa-devehimto uvavajjamti? Goyama! No neraiehimto uvavajjamti, tirikkhajoniehimto uvavajjamti, manussehimto uvavajjamti, no devehimto uvavajjamti. Jai tirikkhajoniehimto? Evam jaha asurakumaranam vattavvaya taha etesim pi java asannitti. Jai sannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauya? Asamkhejjavasauya? Goyama! Samkhejjavasauya, asamkhejjavasauya java uvavajjamti. Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie nagakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassa-tthitiesu, ukkosenam desunadupaliovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avaseso so cheva asurakumaresu uvavajjamanassa gamago bhaniyavvo java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam satirega puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam desunaim pamcha paliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–nagakumaratthitim samveham cha janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, tassa vi esa cheva vattavvaya, navaram–thiti jahannenam desunaim do paliovamaim, ukkosenam tinni paliovamaim. Sesam tam cheva java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam desunaim chattari paliovamaim, ukkosenam desunaim pamcha paliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa vi tisu vi gamaesu jaheva asurakumaresu uvavajjamanassa jahannakalatthitiyassa taheva niravasesam. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, tassa vi taheva tinni gamaga jaha asurakumaresu uvavajjamanassa, Navaram–nagakumaratthitim samveham cha janejja. Sesam tam cheva. Jai samkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti– kim pajjattasamkhejja-vasauyam? Apajjattasamkhejjavasauya? Goyama! Pajjattasamkhejjavasauya, no apajjattasamkhejjavasauya. Pajjattasamkhejja-vasauya-sanni-pamchimdiya-tirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie nagakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasa vasasahassaim, ukkosenam desunaim do paliovamaim. Evam jaheva asurakumaresu uvavajjamanassa vattavvaya taheva iha vi navasu vi gamaesu, navaram–nagakumaratthitim samveham cha janejja. Sesam tam cheva. Jai manussehimto uvavajjamti–kim sannimanussehimto? Asannimanussehimto? Goyama! Sannimanussehimto, no asannimanussehimto, jaha asurakumaresu uvavajjamanassa java–asamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie nagakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam desunaim do paliovamaim. Evam jaheva asamkhejja-vasauyanam tirikkhajoniyanam nagakumaresu adilla tinni gamaga taheva imassa vi, navaram–padhamabitiesu gamaesu sarirogahana jahannenam satiregaim pamchadhanusayaim, ukkosenam tinni gauyaim. Taiyagame ogahana jahannenam desunaim do gauyaim, ukkosenam tinni gauyaim. Sesam tam cheva. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa tisu vi gamaesu jaha tassa cheva asurakumaresu uvavajjamanassa taheva niravasesam. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, tassa tisu vi gamaesu jaha tassa cheva ukkosa kalatthitiyassa asurakumaresu uvavajjamanassa, navaram– nagakumaratthitim samveham cha janejja. Sesam tam cheva. Jai samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti– kim pajjattasamkhajja? Apajjatta-samkhejja? Goyama! Pajjattasamkhejja, no apajjattasamkhejja. Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie nagakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam desunadopaliovamatthitiesu uvavajje-jja. Evam jaheva asurakumaresu uvavajjamanassa sachcheva laddhi niravasesa navasu gamaesu, navaram–naga-kumaratthiti samveham cha janejja. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Rajagriha nagara mem gautamasvami ne yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Nagakumara kaham se akara utpanna hote haim? Ve nairayikom se yavat utpanna hote haim, devom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve na to nairayikom se aura na devom se akara utpanna hote haim, ve tiryamchayonikom se ya manushyom se akara utpanna hote haim. (bhagavan !) yadi ve (nagakumara) tiryamchom se ate haim, to ityadi purvavat prashna. Asurakumarom ke anusara inaki bhi vaktavyata, yavat asamjnyi – paryanta kahana. Bhagavan ! Yadi ve samjnyi pamchendriya tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim to kya ve samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchom se akara utpanna hote haim, ya asamkhyeya se\? Donom se. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika jiva, kitane kala ki sthiti vale nagakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta deshona do palyopama ki sthiti vale. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? (gautama !) asurakumarom mem utpanna hone vale asamkhyeya varsha – yushka pamchendriya – tiryamchom ke samana yaham bhi bhavadesha taka gamaka kahana chahie. Kala ki apeksha se – jaghanya dasa hajara varsha adhika satireka purvakotikavarsha aura utkrishta deshona pamcha palyopama; itane kala taka yavat gamanagamana karata hai. Yahi jaghanyakala ki sthiti vale nagakumarom mem utpanna ho, to usake bhi kahani chahie. Vishesha yaha hai ki yaham nagakumarom ki sthiti aura samvedha janana. Utkrishta kala sthitivale nagakumarom mem utpanna ho, to bhi yahi kahani chahie. Vishesha yaha hai ki usaki sthiti jaghanya deshona do palyopama ki aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Bhavadesha taka shesha purvavat. Kala ki apeksha se – jaghanya deshona chara palyopama aura utkrishta deshona pamcha palyopama. Yadi vaha svayam jaghanya kala ki sthiti vale nagakumarom mem utpanna hua ho athava svayam utkrishtakala ki sthiti vale nagakumarom mem utpanna hua ho, to usake bhi tinom gamaka, asurakumarom mem utpanna hone vale tiryamchayonika ke tinom gamakom samana kahane. Vishesha yaha ki yaham naga – kumara ki sthiti aura samvedha janana. Shesha saba varnana asurakumarommem utpanna honevale tiryamchayonika samana janana. Bhagavan ! Yadi ve (nagakumara) samkhyata varsha ki ayuvale samjnyi pamchendriyatiryamchayonikom se akara utpanna hote haim, to kya ve paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya tiryamchom se akara utpanna hote haim ya aparyapta samkhyeya varshayushka vale se\? Gautama ! Ve paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamcha, jo nagakumarom mem utpanna hone yogya ho, to vaha kitane kala ki sthiti vale nagakumarommem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya 10000 varsha aura utkrishta deshona do palyopama ki sthitivale nagakumarom mem utpanna hota hai; ityadi jaise asurakumarom ke utpanna honevale samjnyi – pamchendriya tiryamcha ki vaktavyata kahi hai, vaise yaham nau hi gamakom mem kahani chahie. Parantu vishesha yaha ki yaham nagakumarom ki sthiti aura samvedha janana. Bhagavan ! Yadi vaha (nagakumara) manushyom se akara utpanna hote haim, to ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim, ya asamjnyi manushyom se\? Gautama ! Samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim, ityadi asurakumarom mem utpanna hone yogya manushyom ki vaktavyata ka samana janie. Yavat – bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi manushya, kitane kala ki sthiti vale nagakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha aura utkrishta deshona do palyopama ki sthiti vale mem. Isa prakara asamkhyata varsha ki ayu vale tiryamchom ke nagakumarom mem utpanna hone sambandhi adi ke tina gamaka janane chahie. Parantu pahale aura dusare gamaka mem sharira ki avagahana jaghanya satireka pamcha sau dhanusha aura utkrishta tina gau hoti hai. Tisare gamaka mem avagahana jaghanya deshona do gau aura tina gau ki hoti hai. Shesha purvavat Yadi vaha svayam (nagakumara), jaghanya kala ki sthiti vala ho, to usake tinom gamakom mem asurakumarom mem utpanna hone yogya asamkhyata varsha ki ayushya vale samjnyi manushya ke samana samajhie. Yadi vaha (nagakumara) svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho, to usake sambandha mem bhi tinom gamakom mem asurakumarom mem utpanna hone yogya utkrishta kala ki sthiti vale asamkhyatavarshiya samjnyi manushya ke samana vaktavyata janani chahie. Parantu vishesha yaha hai ki yaham nagakumarom ki sthiti aura samvedha janana chahie. Shesha purvavat. Bhagavan ! Yadi ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se ate haim to paryapta ya aparyapta samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se ate haim\? Gautama ! Ve paryapta samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se ate haim. Bhagavan ! Paryapta samkhyata varsha ki ayu vala samjnyi manushya nagakumarom mem utpanna ho to kitani kala ki sthiti valom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasha hajara varsha aura utkrishta deshona do palyopama ki sthiti ke nagakumarom mem utpanna hota hai, ityadi asurakumarom mem utpanna hone vale manushya ki vaktavyata ke samana kintu sthiti aura samvedha nagakumarom ke samana janana chahie. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |