Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004270 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१९ |
Translated Chapter : |
शतक-१९ |
Section : | उद्देशक-८ निवृत्ति | Translated Section : | उद्देशक-८ निवृत्ति |
Sutra Number : | 770 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं० एगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव पंचिंदियजीव-निव्वत्ती एगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुढविक्काइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव वणस्सइकाइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती। पुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती य, बादरपुढवि-काइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती य। एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा वड्डगबंधो तेयगसरीरस्स जाव–सव्वट्ठ सिद्धअनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– पज्जत्तगसव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानिय-देवपंचिंदियजीवनिव्वत्ती य, अपज्जत्तगसव्वट्ठसिद्धाणुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदिय-जीवनिव्वत्ती य। कतिविहा णं भंते! कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती जाव अंतराइयकम्म- निव्वत्ती। नेरइयाणं भंते! कतिविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा– नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती जाव अंतराइयकम्म-निव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं० ओरालियसरीरनिव्वत्ती जाव कम्मासरीरनिव्वत्ती नेरइयाणं भंते! कतिविहा सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं–नायव्वं जस्स जइ सरीराणि। कतिविहा णं भंते! सव्विंदियनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा सव्विंदियनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियनिव्वत्ती जाव फासिंदिय-निव्वत्ती। एवं नेरइयाणं जाव थणिय-कुमाराणं। पुढविकाइयाणं–पुच्छा। गोयमा! एगा फासिंदियनिव्वत्ती पन्नत्ता। एवं जस्स जति इंदियाणि जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! भासानिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा भासानिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–सच्चभासानिव्वत्ती, मोसभासानिव्वत्ती, सच्चामोसभासा निव्वत्ती, असच्चामोसभासानिव्वत्ती। एवं एगिंदियवज्जं जस्स जा भासा जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! मणनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा मणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणनिव्वत्ती जाव असच्चामोसमण-निव्वत्ती। एवं एगिंदियविगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! कसायनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा कसायनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसायनिव्वत्ती जाव लोभकसाय-निव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! वण्णनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा वण्णनिव्वत्ती, तं जहा–कालावण्णनिव्वत्ती जाव सुक्किलावण्णनिव्वत्ती। एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं। एवं गंधनिव्वत्ती दुविहा जाव वेमाणियाणं। रसनिव्वत्ती पंचविहा जाव वेमाणियाणं। फासनिव्वत्ती अट्ठविहा जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! संठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती जाव हुंडसंठाण-निव्वत्ती। नेरइयाणं–पुच्छा। गोयमा! एगा हुंडसंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता। असुरकुमाराणं–पुच्छा। गोयमा! एगा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता। एवं जाव थणियकुमाराणं। पुढविकाइयाणं–पुच्छा। गोयमा! एगा मसूरचंदसंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता। एवं जस्स जं संठाणं जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! सण्णानिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा सण्णानिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–आहारसण्णानिव्वत्ती जाव परिग्गह-सण्णा-निव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! लेस्सानिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा लेस्सानिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेस्सानिव्वत्ती जाव सुक्कलेस्सा-निव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति लेस्साओ। कतिविहा णं भंते! दिट्ठीनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा दिट्ठीनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–सम्मादिट्ठिनिव्वत्ती, मिच्छादिट्ठिनिव्वत्ती, सम्मा-मिच्छादिट्ठिनिव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जतिविहा दिट्ठी। कतिविहा णं भंते! नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–आभिनिबोहियनाणनिव्वत्ती जाव केवल-नाणनिव्वत्ती। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति नाणा। कतिविहा णं भंते! अन्नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा अन्नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–मइअन्नाणनिव्वत्ती, सुयअन्नाणनिव्वत्ती, विभंग-नाणनिव्वत्ती। एवं जस्स जति अन्नाणा जाव वेमाणियाणं। कतिविहा णं भंते! जोगनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा जोगनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–मनजोगनिव्वत्ती, वइजोगनिव्वत्ती, काय-जोगनिव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जतिविहो जोगो। कतिविहा णं भंते! उवओगनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा उवओगनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा– सागारोवओगनिव्वत्ती, अनागारोवओग-निव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – पृथ्वी – कायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति और बादर – पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। इस अभिलाप द्वारा आठवें शतक के बृहद् बन्धाधिकार में कथित तैजस शरीर के भेदों के समान यहाँ भी जानना चाहिए, यावत् – भगवन् ! सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिकदेवपंचेन्द्रि – यजीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की – पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिक – देवपंचे – न्द्रियजीवनिर्वृत्ति और अपर्याप्तसर्वार्थसिद्ध – अनुत्तरौपपातिकवैमानिकदेवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! कर्मनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की – ज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति। भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की कर्मनिर्वृत्ति कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की – ज्ञानावरणीयकर्मनिवृत्ति, यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति। इसी प्रकार वैमानिकों तक की कर्मनिर्वृत्ति के विषयमें जानना। भगवन् ! शरीरनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – औदारिकशरीरनिर्वृत्ति यावत् कार्मणशरीरनिर्वृत्ति। भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की शरीरनिर्वृत्ति कही गई है ? गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जितने शरीर हों, उतनी निर्वृत्ति कहनी चाहिए। भगवन् ! सर्वेन्द्रियनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – श्रोत्रेन्द्रियनिर्वृत्ति यावत् स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति। इस प्रकार नैरयिकों से लेकर स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितनी इन्द्रियनिर्वृत्ति है ? गौतम ! एक मात्र स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति कही गई है। इसी प्रकार जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उतनी इन्द्रियनिर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए। भगवन् ! भाषानिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की – सत्यभाषानिर्वृत्ति, मृषा – भाषानिर्वृत्ति, सत्यामृषाभाषानिर्वृत्ति और असत्याऽमृषाभाषनिर्वृत्ति। इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक, जिसके जो भाषा हो, उसके उतनी भाषानिर्वृत्ति कहनी चाहिए। भगवन् ! मनोनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की – सत्यमनोनिर्वृत्ति, यावत् असत्यामृषामनोनिर्वृत्ति। इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना चाहिए। भगवन् ! कषाय – निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की – क्रोधकषायनिर्वृत्ति यावत् लोभकषायनिर्वृत्ति। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! वर्णनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है? गौतम ! पाँच प्रकार की – कृष्णवर्णनिर्वृत्ति, यावत् शुक्लवर्णनिर्वृत्ति। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त समग्र वर्ण – निर्वृत्ति कहनी चाहिए। इसी प्रकार दो प्रकार की गन्ध – निर्वृत्ति, इसी तरह पाँच प्रकार की रस – निवृत्ति एवं आठ प्रकार की स्पर्श – निर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए। भगवन् ! संस्थान – निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! छह प्रकार की – समचतुरस्रसंस्थान – निर्वृत्ति यावत् हुण्डकसंस्थान – निर्वृत्ति। भगवन् ! नैरयिकों के संस्थान – निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! एकमात्र हुण्डकसंस्थाननिवृत्ति कही गई है। भगवन् ! असुरकुमारों के कितने प्रकार की संस्थाननिर्वृत्ति कही गई है? गौतम ! एकमात्र समचतुरस्रसंस्थाननिर्वृत्ति कही गई है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थाननिर्वृत्ति कितनी है ? गौतम ! उनके एकमात्र मसूर चन्द्र – संस्थान – निर्वृत्ति कही गई है। इसी प्रकार जिसके जो संस्थान हो, तदनुसार निर्वृत्ति वैमानिकों तक कहनी चाहिए। भगवन् ! संज्ञानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की – आहारसंज्ञानिर्वृत्ति यावत् परिग्रह – संज्ञानिर्वृत्ति। इस प्रकार वैमानिकों तक, (संज्ञानिर्वृत्ति का कथन करना चाहिए)। भगवन् ! लेश्यानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! छह प्रकार की – कृष्णलेश्यानिवृत्ति यावत् शुक्ललेश्यानिर्वृत्ति। इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जिसके जितनी लेश्याएं हों, उतनी ही लेश्यानिर्वृत्ति कहनी चाहिए। भगवन् ! दृष्टिनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की – सम्यग्दृष्टिनिर्वृत्ति, मिथ्या – दृष्टिनिर्वृत्ति और सम्यग्मिथ्यादृष्टिनिर्वृत्ति। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जिसके जो दृष्टि हो, (तदनुसार दृष्टिनिर्वृत्त कहना चाहिए)। भगवन् ! ज्ञाननिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! ज्ञान – निर्वृत्ति पाँच प्रकार की कही गई है, यथा – आभिनिबोधिकज्ञान – निर्वृत्ति यावत् केवलज्ञान – निर्वृत्ति। इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर जिसमें जितने ज्ञान हों, तदनुसार उसमें उतनी ज्ञाननिर्वृत्ति (कहनी चाहिए)। भगवन् ! अज्ञाननिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की – मति – अज्ञाननिर्वृत्ति, श्रुत – अज्ञाननिर्वृत्ति और विभंगज्ञाननिर्वृत्ति। इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त, जिसके जितने अज्ञान हों, (तदनुसार अज्ञाननिर्वृत्ति कहनी चाहिए)। भगवन् ! योगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की – मनोयोगनिर्वृत्ति, वचनयोग – निर्वृत्ति और काययोगनिर्वृत्ति। इस प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने योग हों, (तदनुसार उतनी योगनिर्वृत्ति कहनी चाहिए)। भगवन् ! उपयोगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! दो प्रकार की – साकारोपयोग – निवृत्ति और अनाकारोपयोग – निवृत्ति। इस प्रकार उपयोगनिर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त (कहना चाहिए)। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kativiha nam bhamte! Jivanivvatti pannatta? Goyama! Pamchaviha jivanivvatti pannatta, tam0 egimdiyajivanivvatti java pamchimdiyajiva-nivvatti Egimdiyajivanivvatti nam bhamte! Kativiha pannatta? Goyama! Pamchaviha pannatta, tam jaha– pudhavikkaiyaegimdiyajivanivvatti java vanassaikaiya-egimdiyajivanivvatti. Pudhavikaiyaegimdiyajivanivvatti nam bhamte! Kativiha pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha– suhumapudhavikaiyaegimdiyajivanivvatti ya, badarapudhavi-kaiya-egimdiyajivanivvatti ya. Evam eenam abhilavenam bhedo jaha vaddagabamdho teyagasarirassa java–savvattha siddhaanuttarovavatiyakappatitavemaniyadevapamchimdiyajivanivvatti nam bhamte! Kativiha pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha– pajjattagasavvatthasiddhaanuttarovavatiyakappatitavemaniya-devapamchimdiyajivanivvatti ya, apajjattagasavvatthasiddhanuttarovavatiyakappatitavemaniyadevapamchimdiya-jivanivvatti ya. Kativiha nam bhamte! Kammanivvatti pannatta? Goyama! Atthaviha kammanivvatti pannatta, tam jaha–nanavaranijjakammanivvatti java amtaraiyakamma- nivvatti. Neraiyanam bhamte! Kativiha kammanivvatti pannatta? Goyama! Atthaviha kammanivvatti pannatta, tam jaha– nanavaranijjakammanivvatti java amtaraiyakamma-nivvatti. Evam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Sariranivvatti pannatta? Goyama! Pamchaviha sariranivvatti pannatta, tam0 oraliyasariranivvatti java kammasariranivvatti Neraiyanam bhamte! Kativiha sariranivvatti pannatta? Evam cheva. Evam java vemaniyanam, navaram–nayavvam jassa jai sarirani. Kativiha nam bhamte! Savvimdiyanivvatti pannatta? Goyama! Pamchaviha savvimdiyanivvatti pannatta, tam jaha–soimdiyanivvatti java phasimdiya-nivvatti. Evam neraiyanam java thaniya-kumaranam. Pudhavikaiyanam–puchchha. Goyama! Ega phasimdiyanivvatti pannatta. Evam jassa jati imdiyani java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Bhasanivvatti pannatta? Goyama! Chauvviha bhasanivvatti pannatta, tam jaha–sachchabhasanivvatti, mosabhasanivvatti, sachchamosabhasa nivvatti, asachchamosabhasanivvatti. Evam egimdiyavajjam jassa ja bhasa java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Mananivvatti pannatta? Goyama! Chauvviha mananivvatti pannatta, tam jaha–sachchamananivvatti java asachchamosamana-nivvatti. Evam egimdiyavigalimdiyavajjam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Kasayanivvatti pannatta? Goyama! Chauvviha kasayanivvatti pannatta, tam jaha–kohakasayanivvatti java lobhakasaya-nivvatti. Evam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Vannanivvatti pannatta? Goyama! Pamchaviha vannanivvatti, tam jaha–kalavannanivvatti java sukkilavannanivvatti. Evam niravasesam java vemaniyanam. Evam gamdhanivvatti duviha java vemaniyanam. Rasanivvatti pamchaviha java vemaniyanam. Phasanivvatti atthaviha java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Samthananivvatti pannatta? Goyama! Chhavviha samthananivvatti pannatta, tam jaha samachauramsasamthananivvatti java humdasamthana-nivvatti. Neraiyanam–puchchha. Goyama! Ega humdasamthananivvatti pannatta. Asurakumaranam–puchchha. Goyama! Ega samachauramsasamthananivvatti pannatta. Evam java thaniyakumaranam. Pudhavikaiyanam–puchchha. Goyama! Ega masurachamdasamthananivvatti pannatta. Evam jassa jam samthanam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Sannanivvatti pannatta? Goyama! Chauvviha sannanivvatti pannatta, tam jaha–aharasannanivvatti java pariggaha-sanna-nivvatti. Evam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Lessanivvatti pannatta? Goyama! Chhavviha lessanivvatti pannatta, tam jaha–kanhalessanivvatti java sukkalessa-nivvatti. Evam java vemaniyanam, jassa jati lessao. Kativiha nam bhamte! Ditthinivvatti pannatta? Goyama! Tiviha ditthinivvatti pannatta, tam jaha–sammaditthinivvatti, michchhaditthinivvatti, samma-michchhaditthinivvatti. Evam java vemaniyanam, jassa jativiha ditthi. Kativiha nam bhamte! Nananivvatti pannatta? Goyama! Pamchaviha nananivvatti pannatta, tam jaha–abhinibohiyanananivvatti java kevala-nananivvatti. Evam egimdiyavajjam java vemaniyanam, jassa jati nana. Kativiha nam bhamte! Annananivvatti pannatta? Goyama! Tiviha annananivvatti pannatta, tam jaha–maiannananivvatti, suyaannananivvatti, vibhamga-nananivvatti. Evam jassa jati annana java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Joganivvatti pannatta? Goyama! Tiviha joganivvatti pannatta, tam jaha–manajoganivvatti, vaijoganivvatti, kaya-joganivvatti. Evam java vemaniyanam, jassa jativiho jogo. Kativiha nam bhamte! Uvaoganivvatti pannatta? Goyama! Duviha uvaoganivvatti pannatta, tam jaha– sagarovaoganivvatti, anagarovaoga-nivvatti. Evam java vemaniyanam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jivanirvritti kitane prakara ki hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki – ekendriya – jivanirvritti yavat pamchendriya – jivanirvritti. Bhagavan ! Ekendriya – jivanirvritti kitane prakara ki hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki – prithvi – kayika – ekendriya – jivanirvritti yavat vanaspatikayika – ekendriya – jivanirvritti. Bhagavan ! Prithvikayika – ekendriya – jivanirvritti kitane prakara ki hai\? Gautama ! Do prakara ki – sukshmaprithvikayika – ekendriya – jivanirvritti aura badara – prithvikayika – ekendriya – jivanirvritti. Isa abhilapa dvara athavem shataka ke brihad bandhadhikara mem kathita taijasa sharira ke bhedom ke samana yaham bhi janana chahie, yavat – bhagavan ! Sarvarthasiddhaanuttaraupapatikavaimanikadevapamchendri – yajivanirvritti kitane prakara ki hai\? Gautama ! Do prakara ki – paryaptasarvarthasiddhaanuttaraupapatikavaimanika – devapamche – ndriyajivanirvritti aura aparyaptasarvarthasiddha – anuttaraupapatikavaimanikadevapamchendriyajivanirvritti. Bhagavan ! Karmanirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Atha prakara ki – jnyanavaraniyakarmanirvritti yavat antarayakarmanirvritti. Bhagavan ! Nairayikom ki kitane prakara ki karmanirvritti kahi gai hai\? Gautama ! Atha prakara ki – jnyanavaraniyakarmanivritti, yavat antarayakarmanirvritti. Isi prakara vaimanikom taka ki karmanirvritti ke vishayamem janana. Bhagavan ! Shariranirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki – audarikashariranirvritti yavat karmanashariranirvritti. Bhagavan ! Nairayikom ki kitane prakara ki shariranirvritti kahi gai hai\? Gautama ! Purvavat. Isi prakara vaimanikom paryanta kahana chahie. Vishesha yaha hai ki jisake jitane sharira hom, utani nirvritti kahani chahie. Bhagavan ! Sarvendriyanirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki – shrotrendriyanirvritti yavat sparshendriyanirvritti. Isa prakara nairayikom se lekara stanitakumarom paryanta janana chahie. Bhagavan ! Prithvikayika jivom ki kitani indriyanirvritti hai\? Gautama ! Eka matra sparshendriyanirvritti kahi gai hai. Isi prakara jisake jitani indriyam hom utani indriyanirvritti vaimanikom paryanta kahani chahie. Bhagavan ! Bhashanirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chara prakara ki – satyabhashanirvritti, mrisha – bhashanirvritti, satyamrishabhashanirvritti aura asatyamrishabhashanirvritti. Isa prakara ekendriya ko chhorakara vaimanikom taka, jisake jo bhasha ho, usake utani bhashanirvritti kahani chahie. Bhagavan ! Manonirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chara prakara ki – satyamanonirvritti, yavat asatyamrishamanonirvritti. Isi prakara ekendriya aura vikalendriya ko chhorakara vaimanikom taka kahana chahie. Bhagavan ! Kashaya – nirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chara prakara ki – krodhakashayanirvritti yavat lobhakashayanirvritti. Isi prakara yavat vaimanikom paryanta kahana chahie. Bhagavan ! Varnanirvritti kitane prakara ki hai? Gautama ! Pamcha prakara ki – krishnavarnanirvritti, yavat shuklavarnanirvritti. Isi prakara vaimanikom paryanta samagra varna – nirvritti kahani chahie. Isi prakara do prakara ki gandha – nirvritti, isi taraha pamcha prakara ki rasa – nivritti evam atha prakara ki sparsha – nirvritti vaimanikom paryanta kahani chahie. Bhagavan ! Samsthana – nirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chhaha prakara ki – samachaturasrasamsthana – nirvritti yavat hundakasamsthana – nirvritti. Bhagavan ! Nairayikom ke samsthana – nirvritti kitane prakara ki kahi hai\? Gautama ! Ekamatra hundakasamsthananivritti kahi gai hai. Bhagavan ! Asurakumarom ke kitane prakara ki samsthananirvritti kahi gai hai? Gautama ! Ekamatra samachaturasrasamsthananirvritti kahi gai hai. Isi prakara stanitakumarom paryanta kahana chahie. Bhagavan ! Prithvikayika jivom ke samsthananirvritti kitani hai\? Gautama ! Unake ekamatra masura chandra – samsthana – nirvritti kahi gai hai. Isi prakara jisake jo samsthana ho, tadanusara nirvritti vaimanikom taka kahani chahie. Bhagavan ! Samjnyanivritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chara prakara ki – aharasamjnyanirvritti yavat parigraha – samjnyanirvritti. Isa prakara vaimanikom taka, (samjnyanirvritti ka kathana karana chahie). Bhagavan ! Leshyanivritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Chhaha prakara ki – krishnaleshyanivritti yavat shuklaleshyanirvritti. Isa prakara vaimanikom paryanta jisake jitani leshyaem hom, utani hi leshyanirvritti kahani chahie. Bhagavan ! Drishtinirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Tina prakara ki – samyagdrishtinirvritti, mithya – drishtinirvritti aura samyagmithyadrishtinirvritti. Isi prakara vaimanika paryanta jisake jo drishti ho, (tadanusara drishtinirvritta kahana chahie). Bhagavan ! Jnyananirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Jnyana – nirvritti pamcha prakara ki kahi gai hai, yatha – abhinibodhikajnyana – nirvritti yavat kevalajnyana – nirvritti. Isa prakara ekendriya ko chhorakara jisamem jitane jnyana hom, tadanusara usamem utani jnyananirvritti (kahani chahie). Bhagavan ! Ajnyananirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Tina prakara ki – mati – ajnyananirvritti, shruta – ajnyananirvritti aura vibhamgajnyananirvritti. Isa prakara vaimanikom paryanta, jisake jitane ajnyana hom, (tadanusara ajnyananirvritti kahani chahie). Bhagavan ! Yoganirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Tina prakara ki – manoyoganirvritti, vachanayoga – nirvritti aura kayayoganirvritti. Isa prakara vaimanikom taka jisake jitane yoga hom, (tadanusara utani yoganirvritti kahani chahie). Bhagavan ! Upayoganirvritti kitane prakara ki kahi gai hai\? Gautama ! Do prakara ki – sakaropayoga – nivritti aura anakaropayoga – nivritti. Isa prakara upayoganirvritti vaimanikom paryanta (kahana chahie). |