Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1004145 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Translated Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 645 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं से आनंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंद थेरं एवं वयासी–एवं खलु आनंदा! इत्तो चिरातीयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया अत्थत्थी अत्थलुद्धा अत्थगवेसी अत्थकंखिया अत्थपिवासा अत्थ-गवेसणयाए नाणाविहविउलपणियभंडमायाए सगडीसागडेणं सुबहुं भत्तपाणं पत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं अणोहियं छिन्नावायं दीहमद्धं अडविं अनुप्पविट्ठा। तए णं तेसिं वणियाणं तीसे अगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए किंचि देस अनुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्वगहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुज्जमाणे-परिभुज्जमाणे ज्झोणे। तए णं ते वणिया ज्झीणोदगा समाणा तण्हाए परब्भमाणा अन्नमन्ने सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए किंचि देसं अनुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्व-गहिए उदए अनुपुव्वेणं परिभुज्जमाणे-परिभुज्जमाणे ज्झीणे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेत्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तीसे णं अगामियाए जाव अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेंति, उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा एगं महं वणसंडं आसादेंति–किण्हं किण्होभासं जाव महामेहनिकुरंबभूयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं। तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगं वम्मीयं आसादेंति। तस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पूओ अब्भुग्गयाओ, अभिनिसढाओ, तिरियं सुसंपग्गहियाओ, अहे पन्नगद्धरूवाओ, पन्नगद्धसंठाणसंठियाओ, पासादियाओ दरिसणिज्जाओ अभिरू-वाओ पडिरूवाओ। तए णं ते वणिया हट्ठतुट्ठा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे इमीसे अगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणेहिं इमे वणसंडे आसादिए –किण्हे किण्होभासे। इमस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए इमे वम्मीए आसादिए। इमस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पूओ अब्भुग्गयाओ, अभिनिसढाओ, तिरियं सुसंपग्गहियाओ, अहे पन्नगद्धरूवाओ, पन्नगद्धसंठाणसंठियाओ, पासादियाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स पढमं वप्पु भिंदित्तए, अवियाइं ओरालं उदगरयणं अस्सादेस्सामो। तए णं ते वणिया अन्नमन्नस्स अंतियं एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स पढमं वप्पुं भिंदंति। ते णं तत्थ अच्छं पत्थं जच्चं तणुयं फालियवण्णाभं ओरालं उदगरयणं आसादेंति। तए णं ते वणिया हट्ठतुट्ठा पाणियं पिबंति, पिबित्ता वाहणाइं पज्जेंति, पज्जेत्ता भायणाइं भरेंति, भरेत्ता दोच्चं पि अन्नमन्नं एवं वदासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हेहिं इमस्स वम्मी-यस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पुं भिंदित्तए, अवियाइं एत्थ ओरालं सुवण्णरयणं अस्सादेस्सामो। तए णं वणिया अन्नमन्नस्स अंतियं एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पुं भिंदंति। ते णं तत्थ अच्छं जच्चं तावणिज्जं महत्थं महग्घं महरिहं ओरालं सुवण्णरयणं अस्सादेंति। तए णं ते वणिया हट्ठतुट्ठा भायणाइं भरेंति, भरेत्ता पवहणाइं भरेंति, भरेत्ता तच्चं पि अन्नमन्नं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पुं भिंदित्तए, अवियाइं एत्थं ओरालं मणिरयणं अस्सादेस्सामो। तए णं ते वणिया अन्नमन्नस्स अंतियं एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पुं भिंदंति। ते णं तत्थ विमलं निम्मलं नित्तलं निक्कलं महत्थं महग्घं महरिहं ओरालं मणिरयणं अस्सादेंति। तए णं ते वणिया हट्ठतुट्ठा भायणाइं भरेंति, भरेत्ता पवहणाइं भरेंति, भरेत्ता चउत्थं पि अन्नमन्नं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले मणिरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स चउत्थं पि वप्पुं भिंदित्तए, अवियाइं उत्तमं महग्घं महरिहं ओरालं वइररयणं अस्सादेस्सामो। तए णं तेसिं वणियाणं एगे वणिए हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेसिए हिय-सुह-निस्सेसकामए ते वणिए एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले मणिरयणे अस्सादिए, तं होउ अलाहि पज्जत्तं णे, एसा चउत्थी वप्पू मा भिज्जउ, चउत्थी णं वप्पू सउवसग्गा यावि होत्था। तए णं ते वणिया तस्स वणियस्स हियकामगस्स सुहकामगस्स पत्थकामगस्स आणुकंपियस्स निस्सेसियस्स हिय-सुह-निस्सेसकामगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमट्ठं नो सद्दहंति, नो पत्तियंति नो रोयंति, एयमट्ठं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोएमाणा तस्स वम्मीयस्स चउत्थं पि वप्पुं भिंदंति। ते णं तत्थ उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाविसं अतिकायं महाकायं मसिमूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं जमलजुयल-चंचलचलंतजीहं धरणितलवेणिभूयं उक्कड-फुड-कुडिल-जडुल-कक्खड-विकड-फडाडोवकरणदच्छं लोहागर-धम्ममाण-धमधमेंतघोसं अनागलियचंडतिव्वरोसं समुहं तुरियं चवलं घमंतं दिट्ठीविसं सप्पं संघट्टेंति। तए णं से दिट्ठीविसे सप्पे तेहिं वणिएहिं संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सणियं-सणियं उट्ठेइ, उट्ठेत्ता सरसरसरस्स वम्मीयस्स सिहरतलं द्रुहति, द्रुहित्ता आदिच्चं निज्झाति, निज्झाइत्ता ते वणिए अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोएति। तए णं ते वणिया तेणं दिट्ठीविसेनं सप्पेणं अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोइया समाणा खिप्पामेव सभंडमत्तोवगरणमायाए एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासी कया यावि होत्था। तत्थ णं जे से वणिए तेसिं वणियाणं हियकामए सुहका-मए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेसिए हिय-सुह-निस्सेसकामए से णं आनुकंपियाए देवयाए सभंडमत्तोवगरणमायाए नियगं नगरं साहिए। एवामेव आनंदा! तव वि धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं नायपुत्तेणं ओराले परियाए अस्सादिए, ओराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगा सदेवमनुयासुरे लोए पुव्वंति, गुव्वंति, थुव्वंति–इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे। तं जदि मे से अज्ज किंचि वि वदति तो णं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेमि, जहा वा वालेणं ते वणिया। तुमं च णं आनंदा! सारक्खामि संगोवामि जहा वा से वणिए तेसिं वणियाणं हियकामए जाव निस्सेसकामए आणुकंपि-याए देवयाए सभंडमत्तोवगरणमायाए नियगं नगरं साहिए। तं गच्छ णं तुमं आनंदा! तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स नायपुत्तस्स एयमट्ठं परिकहेहि। तए णं से आनंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे भीए जाव संजायभए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्ख-मित्ता सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं भंते! छट्ठक्खमणपारणगंसि तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे सावत्थीए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाएअडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूर-सामंते वीइवयामि, तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं अहं गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते, तेणेव उवागच्छामि। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी–एवं खलु आनंदा! इओ चिरातीयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया एवं तं चेव सव्वं निरवसेसं भाणियव्वं जाव नियगं नगरं साहिए। तं गच्छ णं तुमं आनंदा! तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स नायपुत्तस्स एयमट्ठं परिकहेहिं। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत् – गौतमस्वामी के समान भगवान से आज्ञा मांगी और उसी प्रकार ऊंच, नीच और मध्यम कुलों में यावत् भिक्षार्थ पर्यटन करता हुआ हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दुकान के पास से गुजरा। जब मंखलिपुत्र गोशालक ने आनन्द स्थविर को हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दुकान के निकट से जाते हुए देखा, तो बोला – ‘अरे आनन्द ! यहाँ आओ, एक महान दृष्टान्त सून लो।’ गोशालक के द्वार इस प्रकार कहने पर आनन्द स्थविर, हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दुकान में (बैठे) गोशालक के पास आया। तदनन्तर मंखलिपुत्र गोशालक ने आनन्द स्थविर से इस प्रकार कहा – हे आनन्द ! आज से बहुत वर्षों पहले की बात है। कईं उच्च एवं नीची स्थिति के धनार्थी, धनलोलुप, धन के गवेषक, अर्थाकांक्षी, अर्थपीपासु वणिक्, धन की खोज में नाना प्रकार के किराने की सुन्दर वस्तुएं, अनेक गाड़े – गाड़ियों में भरकर और पर्याप्त भोजन – पान रूप पाथेय लेकर ग्रामरहित, जल – प्रवाह से रहित सार्थ आदि के आगमन से विहीन तथा लम्बे पथ वाली एक महा – अटवी में प्रविष्ट हुए। ‘ग्रामरहित, जल – प्रवाहरहित, सार्थों के आवागमन से रहित उस दीर्घमार्ग वाली अटवी के कुछ भाग में, उन वणिकों के पहुँचने के बाद, अपने साथ पहले का लिया हुआ पानी क्रमशः पीते – पीते समाप्त हो गया। ‘जल समाप्त हो जाने से तृषा से पीड़ित वे वणिक् एक दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहने लगे – ‘देवानुप्रियो ! इस अग्राम्य यावत् महाअटवी के कुछ भाग से पहुँचते ही हमारे साथ में पहले से लिया पानी क्रमशः पीते – पीते समाप्त हो गया है, इसलिए अब हमें इसी अग्राम्य यावत् अटवी में चारों ओर पानी की शोध – खोज करना श्रेयस्कर है। इस प्रकार विचार करके उन वणिकों ने परस्पर इस बात को स्वीकार किया और उस ग्रामरहित यावत् अटवी में वे सब चारों ओर पानी की शोध – खोज करने लगे। तब वे एक महान् वनखण्ड में पहुँचे, जो श्याम, श्याम – आभा से युक्त यावत् प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् सुन्दर था। उस वनखण्ड के ठीक मध्यभाग में उन्होंने एक बड़ा वल्मीक देखा। उस वल्मीक के सिंह के स्कन्ध के केसराल के समान ऊंचे उठे हुए चार शिखराकार – शरीर थे। वे शिखर तिरछे फैले हुए थे। नीचे अर्द्धसर्प के समान थे। अर्द्ध सर्पाकार वल्मीक आह्लादोत्पादक यावत् सुन्दर थे। ‘उस वाल्मीक को देखकर वे वणिक् हर्षित और सन्तुष्ट होकर और परस्पर एक दूसरे को बुलाकर यों कहने लगे – ‘हे देवानुप्रियो ! इस अग्राम्य यावत् अटवी में सब ओर पानी की शोध – खोज करते हुए हमें यह महान् वन – खण्ड मिला है, जो श्याम एवं श्याम – आभा के समान है, इत्यादि। इस वल्मीक के चार ऊंचे उठे हुए यावत् सुन्दर शिखर है। इसलिए हे देवानुप्रियो ! हमें इस वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ना श्रेयस्कर है; जिससे हमें यहाँ बहुत – सा उत्तम उदक मिलेगा।’ फिर उस वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ते हैं, जिसमें से उन्हें स्वच्छ, पथ्य – कारक, उत्तम, हल्का और स्फटिक के वर्ण जैसा श्वेत बहुत – सा श्रेष्ठ जल प्राप्त हुआ। ‘इसके बाद वे वणिक हर्षित और सन्तुष्ट हुए। उन्होंने वह पानी पिया, अपने बैलों आदि वाहनों को पिलाया और पानी के बर्तन भर लिए। ‘तत्पश्चात् उन्होंने दूसरी बार भी परस्पर इस प्रकार वार्तालाप किया – हे देवानुप्रियो ! हमें इस वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ने से बहुत – सा उत्तम जल प्राप्त हुआ है। अतः देवानुप्रियो ! अब हमें इस वल्मीक के द्वीतिय शिखर को तोड़ना श्रेयस्कर है, जिससे हमें पर्याप्त उत्तम स्वर्ण प्राप्त हो। उन्होंने उस वल्मीक के द्वीतिय शिखर को भी तोड़ा। उसमें से उन्हें स्वच्छ उत्तम जाति का, ताप को सहन करने योग्य महार्घ – महार्ह पर्याप्त स्वर्णरत्न मिला। ‘स्वर्ण प्राप्त होने से वे वणिक् हर्षित और सन्तुष्ट हुए। फिर उन्होंने अपने बर्तन भर लिए और वाहनों को भी भर लिया’ ‘फिर तीसरी बार भी उन्होंने परस्पर इस प्रकार परामर्श किया – देवानुप्रियो ! हमने इस वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ने से प्रचुर उत्तम जल प्राप्त किया, फिर दूसरे शिखर को तोड़ने से विपुल उत्तम स्वर्ण प्राप्त किया। अतः हे देवानुप्रियो ! हमें अब इस वल्मीक के तृतीय शिखर को तोड़ना श्रेयस्कर है, जिससे कि हमें वहाँ उदार मणिरत्न प्राप्त हों। उन्होंने उस वल्मीक के तृतीय शिखर को भी तोड़ डाला। उसमें से उन्हें विमल, निर्मल, अत्यन्त गोल, निष्कल महान् अर्थ वाले, महामूल्यवान्, महार्ह, उदार मणिरत्न प्राप्त हुए। ‘इन्हें देखकर वे वणिक् अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने मणियों से अपने बर्तन भर लिए, फिर उन्होंने अपने वाहन भी भर लिए। तत्पश्चात् वे वणिक् चौथी बार भी परस्पर विचार – विमर्श करने लगे – हे देवानुप्रियो ! हमें इस वल्मीक के प्रथम शिखर को तोड़ने से प्रचुर उत्तम जल प्राप्त हुआ, यावत् तीसरे शिखर को तोड़ने से हमें उदार मणिरत्न प्राप्त हुए। अतः अब हमें इस वल्मीक के चौथे शिखर को भी तोड़ना श्रेयस्कर है, जिससे हे देवानुप्रियो ! हमें उसमें से उत्तम, महामूल्यवान, महार्ह एवं उदार वज्ररत्न प्राप्त होंगे। ‘यह सूनकर उन वणिकों में एक वणिक्’ जो उन सबका हितैषी, सुखकामी, पथ्यकामी, अनुकम्पक और निःश्रेयसकारी तथा हित – सुख – निःश्रेयसकामी था, उसने अपने उन साथी वणिकों से कहा – देवानुप्रियो ! अतः अब बस कीजिए। अपने लिए इतना ही पर्याप्त है। अब यह चौथा शिखर मत तोड़ो। कदाचित् चौथा शिखर तोड़ना हमारे लिए उपद्रवकारी हो सकता है। ’उस समय हितैषी, सुखकामी यावत् हित – सुख – निःश्रेयस्कामी उस वणिक् ने इस कथन यावत् प्ररूपण पर उन वणिकों ने श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। उन्होंने उस वल्मीक के चतुर्थ शिखर को भी तोड़ डाला। शिखर टूटते ही वहाँ उन्हें एक दृष्टिविष सर्प का स्पर्श हुआ, जो उग्रविष वाला, प्रचण्ड विषधर, घोरविषयुक्त, महाविष से युक्त, अतिकाय, महाकाय, मसि और मूषा के समान काला, दृष्टि के विष से रोषपूर्ण, अंजन – पुंज के समान कान्ति वाला, लाल – लाल आँखों वाला, चपल एवं चलती हुई दो जिह्वा वाला, पृथ्वीतल की वेणी के समान, उत्कट स्पष्ट कुटिल जटिल कर्कश विकट फटाटोप करने में दक्ष, लोहार की धौंकनी के समान धमधमायमान शब्द करने वाला, अप्रत्याशित प्रचण्ड एवं तीव्र रोष वाला, कुक्कुर के मुख से भसने के समान, त्वरित चपल एवं धम – धम शब्द वाला था। उस दृष्टिविष सर्प का उन वणिकों से स्पर्श होते ही वह अत्यन्त कुपित हुआ। यावत् मिसमिसाट शब्द करता हुआ शनैः शनैः उठा और सरसराहट करता हुआ वल्मीक के शिखर – तल पर चढ़ गया। फिर उसने सूर्य की ओर टकटकी लगा कर देखा। उसने उस वणिक्वर्ग की ओर अनिमेष दृष्टि से चारों ओर देखा। उस दृष्टिविष सर्प द्वारा वे वणिक् सब ओर अनिमेष दृष्टि से देखने पर किराने के समान आदि माल एवं बर्तनों व उपकरणों सहित एक ही प्रहार से कूटाघात के समान तत्काल जलाकर राख का ढेर कर दिए गए। उन वणिकों में से जो वणिक् उन वणिकों का हितकामी यावत् हित – सुख – निःश्रेयसकामी था उस पर नागदेवता ने अनुकम्पायुक्त होकर भण्डोपकरण सहित उसे अपने नगर में पहुँचा दिया। ‘इसी प्रकार, हे आनन्द ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र ने उदार पर्याय प्राप्त की है। देवों, मनुष्यों और असुरों सहित इस लोक में ‘श्रमण भगवान महावीर’, श्रमण भगवान महावीर’ इस रूप में उनकी उदार कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक फैल रहे हैं, गुंजायमान हो रहे हैं, स्तुति के विषय बन रहे हैं। इससे अधिक की लालसा करके यदि वे आज से मुझे कुछ भी कहेंगे, तो जिस प्रकार उस सर्पराज ने एक ही प्रहार से उन वणिकों को कूटाघात के समान जलाकर भस्मराशि कर डाला, उसी प्रकार मैं भी अपने तप और तेज से एक ही प्रहार में उन्हें भस्मराशि कर डालूँगा। जिस प्रकार उन वणिकों के हितकामी यावत् निःश्रेयसकामी वणिक पर उस नागदेवता ने अनुकम्पा की और उसे भण्डोपकरण सहित अपने नगर में पहुँचा दिया था, उसी प्रकार हे आनन्द ! मैं भी तुम्हारा संरक्षण और संगोपन करूँगा। इसलिए, हे आनन्द ! तुम जाओ और अपने धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह बात कह दो।’ उस समय मंखलिपुत्र गोशालक के द्वारा आनन्द स्थविर को इस प्रकार कहे जाने पर आनन्द स्थविर भयभीत हो गए, यावत् उनके मन में डर बैठ गया। वह मंखलिपुत्र गोशालक के पास से हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकले और शीघ्र एवं त्वरितगति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में से होकर जहाँ कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए। तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, फिर वन्दन – नमस्कार करके यों बोले – भगवन् ! मैं आज छठ – खमण के पारणे के लिए आपकी आज्ञा प्राप्त कर श्रावस्ती नगरी में यावत् जा रहा था, तब मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझे देखा और बुलाकर कहा – ‘हे आनन्द ! यहाँ आओ और मेरे एक दृष्टान्त को सून लो।’ ‘हे आनन्द ! आज से बहुत काल पहले कईं उन्नत और अवनत वणिक् इत्यादि समग्र वर्णन पूर्ववत्, यावत् – अपने नगर पहुँचा दिया’ अतः हे आनन्द ! तुम जाओ और अपने धर्मोपदेशक को यावत् कह देना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa amtevasi anamde namam there pagaibhaddae java vinie chhattham-chhatthenam anikkhittenam tavokammenam samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se anamde there chhatthakkhamanaparanagamsi padhamae porisie evam jaha goyamasami taheva apuchchhai, taheva java uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane halahalae kumbhakarie kumbhakaravanassa adurasamamte vii-vayai. Tae nam se gosale mamkhaliputte anamdam theram halahalae kumbhakarie kumbhakaravanassa adura-samamtenam viivayamanam pasai, pasitta evam vayasi–ehi tava anamda! Io egam maham uvamiyam nisamehi. Tae nam se anamde there gosalenam mamkhaliputtenam evam vutte samane jeneva halahalae kumbhakarie kumbhakaravane, jeneva gosale mamkhaliputte teneva uvagachchhai. Tae nam se gosale mamkhaliputte anamda theram evam vayasi–evam khalu anamda! Itto chiratiyae addhae kei uchchavaya vaniya atthatthi atthaluddha atthagavesi atthakamkhiya atthapivasa attha-gavesanayae nanavihaviulapaniyabhamdamayae sagadisagadenam subahum bhattapanam patthayanam gahaya egam maham agamiyam anohiyam chhinnavayam dihamaddham adavim anuppavittha. Tae nam tesim vaniyanam tise agamiyae anohiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie kimchi desa anuppattanam samananam se puvvagahie udae anupuvvenam paribhujjamane-paribhujjamane jjhone. Tae nam te vaniya jjhinodaga samana tanhae parabbhamana annamanne saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amham imise agamiyae anohiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie kimchi desam anuppattanam samananam se puvva-gahie udae anupuvvenam paribhujjamane-paribhujjamane jjhine, tam seyam khalu devanuppiya! Amham imise agamiyae java adavie udagassa savvao samamta maggana-gavesanam karettae tti kattu annamannassa amtie eyamattham padisunemti, padisunetta tise nam agamiyae java adavie udagassa savvao samamta maggana-gavesanam karemti, udagassa savvao samamta maggana-gavesanam karemana egam maham vanasamdam asademti–kinham kinhobhasam java mahamehanikurambabhuyam pasadiyam darisanijjam abhiruvam padiruvam. Tassa nam vanasamdassa bahumajjhadesabhae, ettha nam mahegam vammiyam asademti. Tassa nam vammiyassa chattari vappuo abbhuggayao, abhinisadhao, tiriyam susampaggahiyao, ahe pannagaddharuvao, pannagaddhasamthanasamthiyao, pasadiyao darisanijjao abhiru-vao padiruvao. Tae nam te vaniya hatthatuttha annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe imise agamiyae anohiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie udagassa savvao samamta maggana-gavesanam karemanehim ime vanasamde asadie –kinhe kinhobhase. Imassa nam vanasamdassa bahumajjhadesabhae ime vammie asadie. Imassa nam vammiyassa chattari vappuo abbhuggayao, abhinisadhao, tiriyam susampaggahiyao, ahe pannagaddharuvao, pannagaddhasamthanasamthiyao, pasadiyao darisanijjao abhiruvao padiruvao tam seyam khalu devanuppiya! Amham imassa vammiyassa padhamam vappu bhimdittae, aviyaim oralam udagarayanam assadessamo. Tae nam te vaniya annamannassa amtiyam eyamattham padisunemti, padisunetta tassa vammiyassa padhamam vappum bhimdamti. Te nam tattha achchham pattham jachcham tanuyam phaliyavannabham oralam udagarayanam asademti. Tae nam te vaniya hatthatuttha paniyam pibamti, pibitta vahanaim pajjemti, pajjetta bhayanaim bharemti, bharetta dochcham pi annamannam evam vadasi–evam khalu devanuppiya! Amhehim imassa vammi-yassa padhamae vappue bhinnae orale udagarayane assadie, tam seyam khalu devanuppiya! Amham imassa vammiyassa dochcham pi vappum bhimdittae, aviyaim ettha oralam suvannarayanam assadessamo. Tae nam vaniya annamannassa amtiyam eyamattham padisunemti, padisunetta tassa vammiyassa dochcham pi vappum bhimdamti. Te nam tattha achchham jachcham tavanijjam mahattham mahaggham mahariham oralam suvannarayanam assademti. Tae nam te vaniya hatthatuttha bhayanaim bharemti, bharetta pavahanaim bharemti, bharetta tachcham pi annamannam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe imassa vammiyassa padhamae vappue bhinnae orale udagarayane assadie, dochchae vappue bhinnae orale suvannarayane assadie, tam seyam khalu devanuppiya! Amham imassa vammiyassa tachcham pi vappum bhimdittae, aviyaim ettham oralam manirayanam assadessamo. Tae nam te vaniya annamannassa amtiyam eyamattham padisunemti, padisunetta tassa vammiyassa tachcham pi vappum bhimdamti. Te nam tattha vimalam nimmalam nittalam nikkalam mahattham mahaggham mahariham oralam manirayanam assademti. Tae nam te vaniya hatthatuttha bhayanaim bharemti, bharetta pavahanaim bharemti, bharetta chauttham pi annamannam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe imassa vammiyassa padhamae vappue bhinnae orale udagarayane assadie, dochchae vappue bhinnae orale suvannarayane assadie, tachchae vappue bhinnae orale manirayane assadie, tam seyam khalu devanuppiya! Amham imassa vammiyassa chauttham pi vappum bhimdittae, aviyaim uttamam mahaggham mahariham oralam vairarayanam assadessamo. Tae nam tesim vaniyanam ege vanie hiyakamae suhakamae patthakamae anukampie nissesie hiya-suha-nissesakamae te vanie evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe imassa vammiyassa padhamae vappue bhinnae orale udagarayane assadie, dochchae vappue bhinnae orale suvannarayane assadie, tachchae vappue bhinnae orale manirayane assadie, tam hou alahi pajjattam ne, esa chautthi vappu ma bhijjau, chautthi nam vappu sauvasagga yavi hottha. Tae nam te vaniya tassa vaniyassa hiyakamagassa suhakamagassa patthakamagassa anukampiyassa nissesiyassa hiya-suha-nissesakamagassa evamaikkhamanassa java paruvemanassa eyamattham no saddahamti, no pattiyamti no royamti, eyamattham asaddahamana apattiyamana aroemana tassa vammiyassa chauttham pi vappum bhimdamti. Te nam tattha uggavisam chamdavisam ghoravisam mahavisam atikayam mahakayam masimusakalagam nayanavisarosapunnam amjanapumja-nigarappagasam rattachchham jamalajuyala-chamchalachalamtajiham dharanitalavenibhuyam ukkada-phuda-kudila-jadula-kakkhada-vikada-phadadovakaranadachchham lohagara-dhammamana-dhamadhamemtaghosam anagaliyachamdativvarosam samuham turiyam chavalam ghamamtam ditthivisam sappam samghattemti. Tae nam se ditthivise sappe tehim vaniehim samghattie samane asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane saniyam-saniyam utthei, utthetta sarasarasarassa vammiyassa siharatalam druhati, druhitta adichcham nijjhati, nijjhaitta te vanie animisae ditthie savvao samamta samabhiloeti. Tae nam te vaniya tenam ditthivisenam sappenam animisae ditthie savvao samamta samabhiloiya samana khippameva sabhamdamattovagaranamayae egahachcham kudahachcham bhasarasi kaya yavi hottha. Tattha nam je se vanie tesim vaniyanam hiyakamae suhaka-mae patthakamae anukampie nissesie hiya-suha-nissesakamae se nam anukampiyae devayae sabhamdamattovagaranamayae niyagam nagaram sahie. Evameva anamda! Tava vi dhammayarienam dhammovaesaenam samanenam nayaputtenam orale pariyae assadie, orala kitti-vanna-sadda-siloga sadevamanuyasure loe puvvamti, guvvamti, thuvvamti–iti khalu samane bhagavam mahavire, iti khalu samane bhagavam mahavire. Tam jadi me se ajja kimchi vi vadati to nam tavenam teenam egahachcham kudahachcham bhasarasim karemi, jaha va valenam te vaniya. Tumam cha nam anamda! Sarakkhami samgovami jaha va se vanie tesim vaniyanam hiyakamae java nissesakamae anukampi-yae devayae sabhamdamattovagaranamayae niyagam nagaram sahie. Tam gachchha nam tumam anamda! Tava dhammayariyassa dhammovaesagassa samanassa nayaputtassa eyamattham parikahehi. Tae nam se anamde there gosalenam mamkhaliputtenam evam vutte samane bhie java samjayabhae gosalassa mamkhaliputtassa amtiyao halahalae kumbhakarie kumbhakaravanao padinikkhamati, padinikkha-mitta siggham turiyam savatthim nagarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu aham bhamte! Chhatthakkhamanaparanagamsi tubbhehim abbhanunnae samane savatthie nagarie uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyaeadamane halahalae kumbhakarie kumbhakaravanassa adura-samamte viivayami, tae nam gosale mamkhaliputte mamam halahalae kumbhakarie kumbhakaravanassa adurasamamtenam viivayamanam pasitta evam vayasi–ehi tava anamda! Io egam maham uvamiyam nisamehi. Tae nam aham gosalenam mamkhaliputtenam evam vutte samane jeneva halahalae kumbhakarie kumbhakaravane, jeneva gosale mamkhaliputte, teneva uvagachchhami. Tae nam se gosale mamkhaliputte mamam evam vayasi–evam khalu anamda! Io chiratiyae addhae kei uchchavaya vaniya evam tam cheva savvam niravasesam bhaniyavvam java niyagam nagaram sahie. Tam gachchha nam tumam anamda! Tava dhammayariyassa dhammovaesagassa samanassa nayaputtassa eyamattham parikahehim. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ka antevasi ananda namaka sthavira tha. Vaha prakriti se bhadra yavat vinita tha aura nirantara chhatha – chhatha ka tapashcharana karata hua aura samyama evam tapa se apani atma ko bhavita karata hua vicharata tha. Usa dina ananda sthavira ne apane chhathakshamana ke parane ke dina prathama paurushi mem svadhyaya kiya, yavat – gautamasvami ke samana bhagavana se ajnya mamgi aura usi prakara umcha, nicha aura madhyama kulom mem yavat bhikshartha paryatana karata hua halahala kumbharina ki bartanom ki dukana ke pasa se gujara. Jaba mamkhaliputra goshalaka ne ananda sthavira ko halahala kumbharina ki bartanom ki dukana ke nikata se jate hue dekha, to bola – ‘are ananda ! Yaham ao, eka mahana drishtanta suna lo.’ goshalaka ke dvara isa prakara kahane para ananda sthavira, halahala kumbharina ki bartanom ki dukana mem (baithe) goshalaka ke pasa aya. Tadanantara mamkhaliputra goshalaka ne ananda sthavira se isa prakara kaha – he ananda ! Aja se bahuta varshom pahale ki bata hai. Kaim uchcha evam nichi sthiti ke dhanarthi, dhanalolupa, dhana ke gaveshaka, arthakamkshi, arthapipasu vanik, dhana ki khoja mem nana prakara ke kirane ki sundara vastuem, aneka gare – gariyom mem bharakara aura paryapta bhojana – pana rupa patheya lekara gramarahita, jala – pravaha se rahita sartha adi ke agamana se vihina tatha lambe patha vali eka maha – atavi mem pravishta hue. ‘gramarahita, jala – pravaharahita, sarthom ke avagamana se rahita usa dirghamarga vali atavi ke kuchha bhaga mem, una vanikom ke pahumchane ke bada, apane satha pahale ka liya hua pani kramashah pite – pite samapta ho gaya. ‘Jala samapta ho jane se trisha se pirita ve vanik eka dusare ko bulakara isa prakara kahane lage – ‘devanupriyo ! Isa agramya yavat mahaatavi ke kuchha bhaga se pahumchate hi hamare satha mem pahale se liya pani kramashah pite – pite samapta ho gaya hai, isalie aba hamem isi agramya yavat atavi mem charom ora pani ki shodha – khoja karana shreyaskara hai. Isa prakara vichara karake una vanikom ne paraspara isa bata ko svikara kiya aura usa gramarahita yavat atavi mem ve saba charom ora pani ki shodha – khoja karane lage. Taba ve eka mahan vanakhanda mem pahumche, jo shyama, shyama – abha se yukta yavat prasannata utpanna karane vala yavat sundara tha. Usa vanakhanda ke thika madhyabhaga mem unhomne eka bara valmika dekha. Usa valmika ke simha ke skandha ke kesarala ke samana umche uthe hue chara shikharakara – sharira the. Ve shikhara tirachhe phaile hue the. Niche arddhasarpa ke samana the. Arddha sarpakara valmika ahladotpadaka yavat sundara the. ‘usa valmika ko dekhakara ve vanik harshita aura santushta hokara aura paraspara eka dusare ko bulakara yom kahane lage – ‘he devanupriyo ! Isa agramya yavat atavi mem saba ora pani ki shodha – khoja karate hue hamem yaha mahan vana – khanda mila hai, jo shyama evam shyama – abha ke samana hai, ityadi. Isa valmika ke chara umche uthe hue yavat sundara shikhara hai. Isalie he devanupriyo ! Hamem isa valmika ke prathama shikhara ko torana shreyaskara hai; jisase hamem yaham bahuta – sa uttama udaka milega.’ phira usa valmika ke prathama shikhara ko torate haim, jisamem se unhem svachchha, pathya – karaka, uttama, halka aura sphatika ke varna jaisa shveta bahuta – sa shreshtha jala prapta hua. ‘isake bada ve vanika harshita aura santushta hue. Unhomne vaha pani piya, apane bailom adi vahanom ko pilaya aura pani ke bartana bhara lie. ‘Tatpashchat unhomne dusari bara bhi paraspara isa prakara vartalapa kiya – he devanupriyo ! Hamem isa valmika ke prathama shikhara ko torane se bahuta – sa uttama jala prapta hua hai. Atah devanupriyo ! Aba hamem isa valmika ke dvitiya shikhara ko torana shreyaskara hai, jisase hamem paryapta uttama svarna prapta ho. Unhomne usa valmika ke dvitiya shikhara ko bhi tora. Usamem se unhem svachchha uttama jati ka, tapa ko sahana karane yogya mahargha – maharha paryapta svarnaratna mila. ‘svarna prapta hone se ve vanik harshita aura santushta hue. Phira unhomne apane bartana bhara lie aura vahanom ko bhi bhara liya’ ‘phira tisari bara bhi unhomne paraspara isa prakara paramarsha kiya – devanupriyo ! Hamane isa valmika ke prathama shikhara ko torane se prachura uttama jala prapta kiya, phira dusare shikhara ko torane se vipula uttama svarna prapta kiya. Atah he devanupriyo ! Hamem aba isa valmika ke tritiya shikhara ko torana shreyaskara hai, jisase ki hamem vaham udara maniratna prapta hom. Unhomne usa valmika ke tritiya shikhara ko bhi tora dala. Usamem se unhem vimala, nirmala, atyanta gola, nishkala mahan artha vale, mahamulyavan, maharha, udara maniratna prapta hue. ‘inhem dekhakara ve vanik atyanta prasanna evam santushta hue. Unhomne maniyom se apane bartana bhara lie, phira unhomne apane vahana bhi bhara lie. Tatpashchat ve vanik chauthi bara bhi paraspara vichara – vimarsha karane lage – he devanupriyo ! Hamem isa valmika ke prathama shikhara ko torane se prachura uttama jala prapta hua, yavat tisare shikhara ko torane se hamem udara maniratna prapta hue. Atah aba hamem isa valmika ke chauthe shikhara ko bhi torana shreyaskara hai, jisase he devanupriyo ! Hamem usamem se uttama, mahamulyavana, maharha evam udara vajraratna prapta homge. ‘yaha sunakara una vanikom mem eka vanik’ jo una sabaka hitaishi, sukhakami, pathyakami, anukampaka aura nihshreyasakari tatha hita – sukha – nihshreyasakami tha, usane apane una sathi vanikom se kaha – devanupriyo ! Atah aba basa kijie. Apane lie itana hi paryapta hai. Aba yaha chautha shikhara mata toro. Kadachit chautha shikhara torana hamare lie upadravakari ho sakata hai. ’usa samaya hitaishi, sukhakami yavat hita – sukha – nihshreyaskami usa vanik ne isa kathana yavat prarupana para una vanikom ne shraddha, pratiti aura ruchi nahim ki. Unhomne usa valmika ke chaturtha shikhara ko bhi tora dala. Shikhara tutate hi vaham unhem eka drishtivisha sarpa ka sparsha hua, jo ugravisha vala, prachanda vishadhara, ghoravishayukta, mahavisha se yukta, atikaya, mahakaya, masi aura musha ke samana kala, drishti ke visha se roshapurna, amjana – pumja ke samana kanti vala, lala – lala amkhom vala, chapala evam chalati hui do jihva vala, prithvitala ki veni ke samana, utkata spashta kutila jatila karkasha vikata phatatopa karane mem daksha, lohara ki dhaumkani ke samana dhamadhamayamana shabda karane vala, apratyashita prachanda evam tivra rosha vala, kukkura ke mukha se bhasane ke samana, tvarita chapala evam dhama – dhama shabda vala tha. Usa drishtivisha sarpa ka una vanikom se sparsha hote hi vaha atyanta kupita hua. Yavat misamisata shabda karata hua shanaih shanaih utha aura sarasarahata karata hua valmika ke shikhara – tala para charha gaya. Phira usane surya ki ora takataki laga kara dekha. Usane usa vanikvarga ki ora animesha drishti se charom ora dekha. Usa drishtivisha sarpa dvara ve vanik saba ora animesha drishti se dekhane para kirane ke samana adi mala evam bartanom va upakaranom sahita eka hi prahara se kutaghata ke samana tatkala jalakara rakha ka dhera kara die gae. Una vanikom mem se jo vanik una vanikom ka hitakami yavat hita – sukha – nihshreyasakami tha usa para nagadevata ne anukampayukta hokara bhandopakarana sahita use apane nagara mem pahumcha diya. ‘Isi prakara, he ananda ! Tumhare dharmacharya, dharmopadeshaka shramana jnyataputra ne udara paryaya prapta ki hai. Devom, manushyom aura asurom sahita isa loka mem ‘shramana bhagavana mahavira’, shramana bhagavana mahavira’ isa rupa mem unaki udara kirti, varna, shabda aura shloka phaila rahe haim, gumjayamana ho rahe haim, stuti ke vishaya bana rahe haim. Isase adhika ki lalasa karake yadi ve aja se mujhe kuchha bhi kahemge, to jisa prakara usa sarparaja ne eka hi prahara se una vanikom ko kutaghata ke samana jalakara bhasmarashi kara dala, usi prakara maim bhi apane tapa aura teja se eka hi prahara mem unhem bhasmarashi kara dalumga. Jisa prakara una vanikom ke hitakami yavat nihshreyasakami vanika para usa nagadevata ne anukampa ki aura use bhandopakarana sahita apane nagara mem pahumcha diya tha, usi prakara he ananda ! Maim bhi tumhara samrakshana aura samgopana karumga. Isalie, he ananda ! Tuma jao aura apane dharmacharya dharmopadeshaka shramana jnyataputra ko yaha bata kaha do.’ usa samaya mamkhaliputra goshalaka ke dvara ananda sthavira ko isa prakara kahe jane para ananda sthavira bhayabhita ho gae, yavat unake mana mem dara baitha gaya. Vaha mamkhaliputra goshalaka ke pasa se halahala kumbhakari ki dukana se nikale aura shighra evam tvaritagati se shravasti nagari ke madhya mem se hokara jaham koshthaka udyana mem shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham ae. Tina bara dahini ora se pradakshina ki, phira vandana – namaskara karake yom bole – bhagavan ! Maim aja chhatha – khamana ke parane ke lie apaki ajnya prapta kara shravasti nagari mem yavat ja raha tha, taba mamkhaliputra goshalaka ne mujhe dekha aura bulakara kaha – ‘he ananda ! Yaham ao aura mere eka drishtanta ko suna lo.’ ‘he ananda ! Aja se bahuta kala pahale kaim unnata aura avanata vanik ityadi samagra varnana purvavat, yavat – apane nagara pahumcha diya’ atah he ananda ! Tuma jao aura apane dharmopadeshaka ko yavat kaha dena. |