Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004067
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१३

Translated Chapter :

शतक-१३

Section : उद्देशक-२ देव Translated Section : उद्देशक-२ देव
Sutra Number : 567 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया। भवनवासी णं भंते! देवा कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–असुरकुमारा–एवं भेओ जहा बितियसए देवुद्देसए जाव अपराजिया, सव्वट्ठसिद्धगा। केवतिया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! चोयट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि। चोयट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु एग-समएणं केवतिया असुर-कुमारा उववज्जंति जाव केवतिया तेउलेस्सा उववज्जंति? केवतिया कण्ह-पक्खिया उववज्जंति? एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा, तहेव वागरणं, नवरं–दोहिं वेदेहिं उव-वज्जंति, नपुंसगवेयगा न उववज्जंति, सेसं तं चेव। उव्वट्टंतगा वि तहेव, नवरं–असण्णी उव्वट्टंति। ओहिनाणी ओहिदंसणी य ण उव्वट्टंति, सेसं तं चेव। पण्णत्तएसु तहेव, नवरं–संखेज्जगा इत्थिवेदगा पन्नत्ता, एवं पुरिसवेदगा वि, नपुंसगवेदगा नत्थि। कोहकसाई सिय अत्थि सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा पन्नत्ता। एवं मानकसाई मायकसाई। संखेज्जा लोभकसाई पन्नत्ता, सेसं तं चेव। तिसु वि गमएसु चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं–तिसु वि गमएसु असंखेज्जा भाणियव्वा जाव असंखेज्जा अचरिमा पन्नत्ता। केवतिया णं भंते! नागकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता? एवं जाव थणियकुमारा, नवरं–जत्थ जत्तिया भवणा। केवतिया णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा, नो असंखेज्जवित्थडा। संखेज्जेसु णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवतिया वाणमंतरा उववज्जंति? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणियव्वा वाणमंतराण वि तिन्नि गमगा। केवतिया णं भंते! जोइसियविमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा जोइसियविमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण वि तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं–एगा तेउलेस्सा। उववज्जंतेसु पन्नत्तेसु य असण्णी नत्थि, सेसं तं चेव। सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवतिया विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! बत्तीसं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्ज-वित्थडा वि। सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसाए विमानावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु विमानेसु एगसमएणं केवतिया सोहम्मा देवा उववज्जंति? केवतिया तेउलेस्सा उववज्जंति? एवं जहा जोइसियाणं तिन्नि गमगा तहेव तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं–तिसु वि संखेज्जा भाणियव्वा, ओहिनाणी ओहिदंसणी य चयावेयव्वा, सेसं तं चेव। असंखेज्जवित्थडेसु एवं चेव तिन्नि गमगा, नवरं–तिसु वि गमएसु असंखेज्जा भाणियव्वा। ओहिनाणी ओहिदंसणी य संखेज्जा चयंति, सेसं तं चेव। एवं जहा सोहम्मे वत्तव्वया भणिया तहा ईसाने वि छ गमगा भाणियव्वा सणंकुमारे एवं चेव, नवरं–इत्थीवेयगा उववज्जंतेसु पन्नत्तेसु य न भण्णंति, असण्णी तिसु वि गमएसु न भण्णंति, सेसं तं चेव। एवं जाव सहस्सारे, नाणत्तं विमानेसु लेस्सासु य, सेसं तं चेव। आणय-पाणएसु णं भंते! कप्पेसु केवतिया विमानावाससया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि विमानावाससया पन्नत्ता। तेणं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि। एवं संखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा जहा सहस्सारे, असंखेज्जवित्थडेसु उववज्जंतेसु चयंतेसु य एवं चेव संखेज्जा भाणियव्वा, पन्नत्तेसु असंखेज्जा, नवरं– नोइंदियोवउत्ता अनंतरोववन्नगा अनंतरोवगाढगा अनंतराहारगा अनंतर-पज्ज-त्तगा य एएसिं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा पन्नत्ता, सेसा असंखेज्जा भाणियव्वा। आरण-अच्चुएसु एवं चेव जहा आणय-पाणएसु, नाणत्तं विमानेसु। एवं गेवेज्जगा वि। कति णं भंते! अनुत्तरविमाना पन्नत्ता? गोयमा! पंच अनुत्तरविमाना पन्नत्ता। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य। पंचसु णं भंते! अनुत्तरविमानेसु संखेज्जवित्थडे विमाने एगसमएणं केवतिया अनुत्तरोववाइया उववज्जंति? केवतिया सुक्कलेस्सा उववज्जंति–पुच्छा तहेव। गोयमा! पंचसु णं अनुत्तरविमानेसु संखेज्जवित्थडे अनुत्तरविमाने एगसमएणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा अनुत्तरोववाइया उववज्जंति, एवं जहा गेवेज्जविमानेसु संखेज्जवित्थडेसु, नवरं–किण्हपक्खिया, अभवसिद्धिया, तिसु अन्नाणेसु एए न उववज्जंति, न चयंति, न वि पन्नत्तएसु भाणियव्वा, अचरिमा वि खोडिज्जंति जाव संखेज्जा चरिमा पन्नत्ता, सेसं तं चेव। असंखेज्जवित्थडेसु वि एए न भण्णंति, नवरं–अचरिमा अत्थि, सेसं जहा गेवेज्जएसु असंखेज्जवित्थडेसु जाव असंखेज्जा अचरिमा पन्नत्ता। चोयट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मद्दिट्ठी असुरकुमारा उववज्जंति? मिच्छदिट्ठी असुरकुमारा उववज्जंति? एवं जहा रयणप्पभाए तिन्नि आलावगा भणिया तहा भाणियव्वा। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि तिन्नि गमगा, एवं जाव गेवे-ज्जविमाने, अनुत्तरविमानेसु एवं चेव, नवरं–तिसु वि आलावएसु मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी य न भण्णंति, सेसं तं चेव। से नूनं भंते! कण्हलेस्से नीललेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु देवेसु उववज्जंति? हंता गोयमा! एवं जहेव नेरइएसु पढमे उद्देसए तहेव भाणियव्वं। नीललेस्साए वि जहेव नेरइयाणं, जहा नीललेस्साए एवं जाव पम्हलेस्सेसु, सुक्कलेस्सेसु एवं चेव, नवरं–लेस्सट्ठाणेसु विसुज्झमाणेसु-विसुज्झमाणेसु सुक्कलेस्सं परिणमंति, परिणमित्ता सुक्कलेस्सेसु देवेसु उववज्जंति। से तेणट्ठेणं जाव उववज्जंति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भगवन्‌ ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दस प्रकार के यथा – असुरकुमार यावत्‌ स्तनित कुमार। इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वीतिय शतक के सप्तम देवोद्देशक के अनुसार यावत्‌ सर्वार्थसिद्ध तक जानना। भगवन्‌ ! असुरकुमार देवों के कितने लाख आवास हैं ? गौतम ! चौंसठ लाख। भगवन्‌ ! असुरकुमार देवों के आवास वे संख्यात योजन विस्तार वाले हैं या असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं ? गौतम ! (वे) संख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं और असंख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं। भगवन्‌ ! असुरकुमारों के चौंसठ लाख आवासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले असुरकुमारावासों में एक समय में कितने असुरकुमार उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ कितने तेजोलेश्यी उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी के प्रश्नोत्तर समान यहाँ भी उसी प्रकार समझ लेना। विशेष यह है कि यहाँ दो वेदों सहित उत्पन्न होते हैं, नपुंसकवेदी उत्पन्न नहीं होते। शेष पूर्ववत्‌। उद्वर्त्तना के विषय में भी उसी प्रकार जानना विशेषता यह है कि असंज्ञी भी उद्वर्त्तना करते हैं। अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उद्वर्त्तना नहीं करते। शेष पूर्ववत्‌। सत्ता के विषय में, प्रथमोद्देशक अनुसार कहना। किन्तु विशेष यह है कि वहाँ संख्यात स्त्रीवेदक हैं और संख्यात पुरुषवेदक हैं, नपुंसकवेदक नहीं हैं। क्रोधकषायी कदाचित्‌ होते हैं, कदाचित्‌ नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं। इसी प्रकार मानकषायी और मायाकषायी के विषय में कहना। लोभकषायी संख्यात कहे गए हैं। शेष कथन पूर्ववत्‌। (संख्यात विस्तृत आवासों में) उत्पाद, उद्वर्त्तना और सत्ता, इन तीनों के आलापकों में चार लेश्याएं कहना। असंख्यात योजन विस्तार वाले असुरकुमारा – वासों के विषय में भी इसी प्रकार कहना। विशेषता इतनी है कि पूर्वोक्त तीनों आलापकों में ‘असंख्यात’ कहना तथा ‘असंख्यात अचरम कहे गए हैं,’ यहाँ तक कहना। नागकुमार देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? (गौतम !) पूर्वोक्त रूप से (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार तक (उसी प्रकार) कहना चाहिए। विशेष इतना है कि जहाँ जितने लाख भवन हों, वहाँ उतने लाख भवन कहने चाहिए। भगवन्‌ ! वाणव्यन्तर देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? गौतम ! असंख्यात लाख आवास। भगवन्‌ ! वे संख्येय विस्तृत हैं अथवा असंख्येय ? गौतम ! वे संख्येय विस्तृत हैं, असंख्येयविस्तृत नहीं हैं। भगवन्‌! वाणव्यन्तरदेवों के संख्येयविस्तृत आवासों में एक समय में कितने वाणव्यन्तर देव उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) असुरकुमार देवों के संख्येय विस्तृत आवासों के समान वाणव्यन्तर देवों के भी तीनों आलापक कहने चाहिए। भगवन्‌ ! ज्योतिष्क देवों के कितने लाख विमानावास हैं ? गौतम ! असंख्यात लाख। भगवन्‌ ! वे संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय ? गौतम ! संख्येय विस्तृत होते हैं। तथा वाणव्यन्तर देवों के समान ज्योतिष्क देवों के विषय में तीन आलापक कहना। विशेषता यह है कि इनमें केवल एक तेजोलेश्या ही होती है। व्यन्तरदेवों में असंज्ञी उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहा गया था, किन्तु इनमें असंज्ञी उत्पन्न नहीं होते (न ही उद्वर्त्तते हैं और न च्यवते हैं)। शेष पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास हैं ? गौतम ! बत्तीस लाख। भगवन्‌ ! वे विमानावास संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ? गौतम ! वे संख्येय विस्तृत भी हैं और असंख्येय विस्तृत भी हैं। भगवन्‌ ! सौधर्मकल्प के बत्तीस लाख विमानावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में एक समय में कितने सौधर्म देव उत्पन्न होते हैं ? और तेजोलेश्या वाले सौधर्मदेव कितने उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्कदेवों के समान यहाँ भी तीन आलापक कहने चाहिए। विशेष इतना है कि तीनों आलापकों में ‘संख्यात’ पाठ कहना तथा अवधिज्ञानी – अवधि – दर्शनी का च्यवन भी कहना। शेष पूर्ववत्‌। असंख्यात योजन विस्तृत सौधर्म – विमानावासों के भी इसी प्रकार तीनों आलापक कहने चाहिए। विशेष इतना है कि ‘संख्यात’ के बदले ‘असंख्यात’ कहना। किन्तु असंख्येय – योजन – विस्तृत विमानावासों में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी तो ‘संख्यात’ ही च्यवते हैं। शेष पूर्ववत्‌। सौधर्म देवलोक के समान ईशान देवलोक के विषय में भी छह आलापक कहने चाहिए। सनत्कुमार देवलोक के विषय में इसी प्रकार जानना। विशेष इतना कि सनत्कुमार देवों में स्त्रीवेदक उत्पन्न नहीं होते, सत्ताविषयक गमकों में भी स्त्रीवेदी नहीं कहे जाते। यहाँ तीनों आलापकों में असंज्ञी पाठ नहीं कहना। शेष पूर्ववत्‌ समझना। इसी प्रकार यावत्‌ सहस्रार देवलोक तक कहना। यहाँ अन्तर विमानों की संख्या और लेश्या के विषय में है। शेष पूर्वोक्तवत्‌। भगवन्‌ ! आनत और प्राणत देवलोकों में कितने सौ विमानावास हैं ? गौतम ! चार सौ। भगवन्‌ ! वे संख्यात योजन विस्तृत हैं या असंख्यात योजन विस्तृत ? गौतम ! वे संख्यात योजन विस्तृत भी हैं और असंख्यात योजन विस्तृत भी हैं। संख्यात योजन विस्तार वाले विमानावासों के विषय में सहस्रार देवलोक के समान तीन आलापक कहना। असंख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में उत्पाद और च्यवन के विषय में ‘संख्यात’ कहना एवं ‘सत्ता’ में असंख्यात कहना। इतना विशेष है कि नोइन्द्रियोपयुक्त अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ, अनन्तराहारक और अनन्तर – पर्याप्तक, ये पाँच जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात हैं। शेष असंख्यात कहना। आनत और प्राणत के समान आरण और अच्युत कल्प के विषय में भी कहना। विमानों की संख्या में विभिन्नता है। इसी प्रकार नौ ग्रैवेयक देवलोकों के विषय में भी कहना। भगवन्‌ ! अनुत्तर विमान कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच। भगवन्‌ ! वे संख्यात योजन विस्तृत हैं या असंख्यात योजन ? गौतम ! (उनमें से एक) संख्यात योजन विस्तृत है और (चार) असंख्यात योजन विस्तृत हैं। भगवन्‌ ! पाँच अनुत्तरविमानों में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमान में एक समय में कितने अनुत्तरौपपातिक देव उत्पन्न होते हैं, कितने शुक्ललेश्यी उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पाँच अनुत्तरविमानों में से संख्यात योजन विस्तृत (‘सर्वार्थसिद्ध’ नामक) अनुतरविमान में एक समय में, जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अनुत्तरौपपातिक देव उत्पन्न होते हैं। संख्यात योजन विस्तृत ग्रैवेयक विमानों के समान यहाँ भी कहना। विशेषता यह है कि कृष्णपाक्षिक अभव्यसिद्धिक तथा तीन अज्ञान वाले जीव, यहाँ उत्पन्न नहीं होते, न ही च्यवते हैं और सत्ता में भी इनका कथन नहीं करना। इसी प्रकार ‘अचरम’ का निषेध करना, यावत्‌ संख्यात चरम कहे गए हैं। शेष पूर्ववत्‌। असंख्यात योजन विस्तार वाले चार अनुत्तरविमानों में ये (पूर्वोक्त कृष्णपाक्षिक आदि जीव पूर्वोक्त तीनों आलापकों में) नहीं कहे गए हैं। विशेषता इतनी ही है कि अचरम जीव भी होते हैं। असंख्यात योजन विस्तृत ग्रैवेयक विमानों के समान यहाँ भी अवशिष्ट सब कथन यावत्‌ असंख्यात अचरम जीव कहे गये हैं, यहाँ तक करना। भगवन्‌ ! क्या असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख असुरकुमारावासों में से संख्यात योजन विस्तृत असुर – कुमारावासों में सम्यग्दृष्टि असुरकुमार उत्पन्न होते हैं अथवा मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होते हैं, या मिश्र दृष्टि उत्पन्न होते हैं? (गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी के सम्बन्ध में कहे तीन आलापक यहाँ भी कहने चाहिए और असंख्यात योजन विस्तृत असुरकुमारावासों के विषय में भी इसी प्रकार तीन आलापक कहना। इसी प्रकार यावत्‌ ग्रैवेयकविमानों तथा अनुत्तरविमानों में भी इसी प्रकार कहना। विशेष बात यह है कि अनुत्तरविमानों के तीनों आलापकों में मिथ्यादृष्टि और सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि का कथन नहीं करना। शेष पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्यी नीललेश्यी यावत्‌ शुक्ललेश्यी होकर जीव कृष्णलेश्यी देवों में उत्पन्न हो जाता है? हाँ, गौतम ! जिस प्रकार (तेरहवें शतक के) प्रथम उद्देशक में नैरयिकों के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। नीललेश्यी के विषय में भी उसी प्रकार कहना चाहिए, इसी प्रकार यावत्‌ पद्मलेश्यी देवों के विषय में कहना। शुक्ललेश्यी देवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना। विशेषता यह है कि लेश्यास्थान विशुद्ध होते – होते शुक्ललेश्या में परिणत हो जाते हैं। शुक्ललेश्या में परिणत होने के पश्चात्‌ ही (वे जीव) शुक्ललेश्यी देवों में उत्पन्न होते हैं। इस कारण से हे गौतम ! ‘उत्पन्न होते हैं’ ऐसा कहा गया है। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kativiha nam bhamte! Deva pannatta? Goyama! Chauvviha deva pannatta, tam jaha–bhavanavasi, vanamamtara, joisiya, vemaniya. Bhavanavasi nam bhamte! Deva kativiha pannatta? Goyama! Dasaviha pannatta, tam jaha–asurakumara–evam bheo jaha bitiyasae devuddesae java aparajiya, savvatthasiddhaga. Kevatiya nam bhamte! Asurakumaravasasayasahassa pannatta? Goyama! Choyatthim asurakumaravasasayasahassa pannatta. Te nam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Asamkhejjavitthada? Goyama! Samkhejjavitthada vi, asamkhejjavitthada vi. Choyatthie nam bhamte! Asurakumaravasasayasahassesu samkhejjavitthadesu asurakumaravasesu ega-samaenam kevatiya asura-kumara uvavajjamti java kevatiya teulessa uvavajjamti? Kevatiya kanha-pakkhiya uvavajjamti? Evam jaha rayanappabhae taheva puchchha, taheva vagaranam, navaram–dohim vedehim uva-vajjamti, napumsagaveyaga na uvavajjamti, sesam tam cheva. Uvvattamtaga vi taheva, navaram–asanni uvvattamti. Ohinani ohidamsani ya na uvvattamti, sesam tam cheva. Pannattaesu taheva, navaram–samkhejjaga itthivedaga pannatta, evam purisavedaga vi, napumsagavedaga natthi. Kohakasai siya atthi siya natthi. Jai atthi jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja pannatta. Evam manakasai mayakasai. Samkhejja lobhakasai pannatta, sesam tam cheva. Tisu vi gamaesu chattari lessao bhaniyavvao. Evam asamkhejjavitthadesu vi, navaram–tisu vi gamaesu asamkhejja bhaniyavva java asamkhejja acharima pannatta. Kevatiya nam bhamte! Nagakumaravasasayasahassa pannatta? Evam java thaniyakumara, navaram–jattha jattiya bhavana. Kevatiya nam bhamte! Vanamamtaravasasayasahassa pannatta? Goyama! Asamkhejja vanamamtaravasasayasahassa pannatta. Te nam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Asamkhejjavitthada? Goyama! Samkhejjavitthada, no asamkhejjavitthada. Samkhejjesu nam bhamte! Vanamamtaravasasayasahassesu egasamaenam kevatiya vanamamtara uvavajjamti? Evam jaha asurakumaranam samkhejjavitthadesu tinni gamaga taheva bhaniyavva vanamamtarana vi tinni gamaga. Kevatiya nam bhamte! Joisiyavimanavasasayasahassa pannatta? Goyama! Asamkhejja joisiyavimanavasasayasahassa pannatta. Te nam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Evam jaha vanamamtaranam taha joisiyana vi tinni gamaga bhaniyavva, navaram–ega teulessa. Uvavajjamtesu pannattesu ya asanni natthi, sesam tam cheva. Sohamme nam bhamte! Kappe kevatiya vimanavasasayasahassa pannatta? Goyama! Battisam vimanavasasayasahassa pannatta. Te nam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Asamkhejjavitthada? Goyama! Samkhejjavitthada vi, asamkhejja-vitthada vi. Sohamme nam bhamte! Kappe battisae vimanavasasayasahassesu samkhejjavitthadesu vimanesu egasamaenam kevatiya sohamma deva uvavajjamti? Kevatiya teulessa uvavajjamti? Evam jaha joisiyanam tinni gamaga taheva tinni gamaga bhaniyavva, navaram–tisu vi samkhejja bhaniyavva, ohinani ohidamsani ya chayaveyavva, sesam tam cheva. Asamkhejjavitthadesu evam cheva tinni gamaga, navaram–tisu vi gamaesu asamkhejja bhaniyavva. Ohinani ohidamsani ya samkhejja chayamti, sesam tam cheva. Evam jaha sohamme vattavvaya bhaniya taha isane vi chha gamaga bhaniyavva sanamkumare evam cheva, navaram–itthiveyaga uvavajjamtesu pannattesu ya na bhannamti, asanni tisu vi gamaesu na bhannamti, sesam tam cheva. Evam java sahassare, nanattam vimanesu lessasu ya, sesam tam cheva. Anaya-panaesu nam bhamte! Kappesu kevatiya vimanavasasaya pannatta? Goyama! Chattari vimanavasasaya pannatta. Tenam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Asamkhejjavitthada? Goyama! Samkhejjavitthada vi, asamkhejjavitthada vi. Evam samkhejjavitthadesu tinni gamaga jaha sahassare, asamkhejjavitthadesu uvavajjamtesu chayamtesu ya evam cheva samkhejja bhaniyavva, pannattesu asamkhejja, navaram– noimdiyovautta anamtarovavannaga anamtarovagadhaga anamtaraharaga anamtara-pajja-ttaga ya eesim jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja pannatta, sesa asamkhejja bhaniyavva. Arana-achchuesu evam cheva jaha anaya-panaesu, nanattam vimanesu. Evam gevejjaga vi. Kati nam bhamte! Anuttaravimana pannatta? Goyama! Pamcha anuttaravimana pannatta. Te nam bhamte! Kim samkhejjavitthada? Asamkhejjavitthada? Goyama! Samkhejjavitthade ya asamkhejjavitthada ya. Pamchasu nam bhamte! Anuttaravimanesu samkhejjavitthade vimane egasamaenam kevatiya anuttarovavaiya uvavajjamti? Kevatiya sukkalessa uvavajjamti–puchchha taheva. Goyama! Pamchasu nam anuttaravimanesu samkhejjavitthade anuttaravimane egasamaenam jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja anuttarovavaiya uvavajjamti, evam jaha gevejjavimanesu samkhejjavitthadesu, navaram–kinhapakkhiya, abhavasiddhiya, tisu annanesu ee na uvavajjamti, na chayamti, na vi pannattaesu bhaniyavva, acharima vi khodijjamti java samkhejja charima pannatta, sesam tam cheva. Asamkhejjavitthadesu vi ee na bhannamti, navaram–acharima atthi, sesam jaha gevejjaesu asamkhejjavitthadesu java asamkhejja acharima pannatta. Choyatthie nam bhamte! Asurakumaravasasayasahassesu samkhejjavitthadesu asurakumaravasesu kim sammadditthi asurakumara uvavajjamti? Michchhaditthi asurakumara uvavajjamti? Evam jaha rayanappabhae tinni alavaga bhaniya taha bhaniyavva. Evam asamkhejjavitthadesu vi tinni gamaga, evam java geve-jjavimane, anuttaravimanesu evam cheva, navaram–tisu vi alavaesu michchhaditthi sammamichchhaditthi ya na bhannamti, sesam tam cheva. Se nunam bhamte! Kanhalesse nilalesse java sukkalesse bhavitta kanhalessesu devesu uvavajjamti? Hamta goyama! Evam jaheva neraiesu padhame uddesae taheva bhaniyavvam. Nilalessae vi jaheva neraiyanam, jaha nilalessae evam java pamhalessesu, sukkalessesu evam cheva, navaram–lessatthanesu visujjhamanesu-visujjhamanesu sukkalessam parinamamti, parinamitta sukkalessesu devesu uvavajjamti. Se tenatthenam java uvavajjamti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Deva kitane prakara ke kahe gae haim\? Gautama ! Deva chara prakara ke kahe gae haim, yatha – bhavanavasi, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika. Bhagavan ! Bhavanavasi deva kitane prakara ke kahe haim\? Gautama ! Dasa prakara ke yatha – asurakumara yavat stanita kumara. Isa prakara bhavanavasi adi devom ke bhedom ka varnana dvitiya shataka ke saptama devoddeshaka ke anusara yavat sarvarthasiddha taka janana. Bhagavan ! Asurakumara devom ke kitane lakha avasa haim\? Gautama ! Chaumsatha lakha. Bhagavan ! Asurakumara devom ke avasa ve samkhyata yojana vistara vale haim ya asamkhyata yojana vistara vale haim\? Gautama ! (ve) samkhyata yojana vistara vale bhi haim aura asamkhyata yojana vistara vale bhi haim. Bhagavan ! Asurakumarom ke chaumsatha lakha avasom mem se samkhyata yojana vistara vale asurakumaravasom mem eka samaya mem kitane asurakumara utpanna hote haim, yavat kitane tejoleshyi utpanna hote haim\? (gautama !) ratnaprabhaprithvi ke prashnottara samana yaham bhi usi prakara samajha lena. Vishesha yaha hai ki yaham do vedom sahita utpanna hote haim, napumsakavedi utpanna nahim hote. Shesha purvavat. Udvarttana ke vishaya mem bhi usi prakara janana visheshata yaha hai ki asamjnyi bhi udvarttana karate haim. Avadhijnyani aura avadhidarshani udvarttana nahim karate. Shesha purvavat. Satta ke vishaya mem, prathamoddeshaka anusara kahana. Kintu vishesha yaha hai ki vaham samkhyata strivedaka haim aura samkhyata purushavedaka haim, napumsakavedaka nahim haim. Krodhakashayi kadachit hote haim, kadachit nahim hote. Yadi hote haim to jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata hote haim. Isi prakara manakashayi aura mayakashayi ke vishaya mem kahana. Lobhakashayi samkhyata kahe gae haim. Shesha kathana purvavat. (samkhyata vistrita avasom mem) utpada, udvarttana aura satta, ina tinom ke alapakom mem chara leshyaem kahana. Asamkhyata yojana vistara vale asurakumara – vasom ke vishaya mem bhi isi prakara kahana. Visheshata itani hai ki purvokta tinom alapakom mem ‘asamkhyata’ kahana tatha ‘asamkhyata acharama kahe gae haim,’ yaham taka kahana. Nagakumara devom ke kitane lakha avasa kahe gae haim\? (gautama !) purvokta rupa se (nagakumara se lekara) stanitakumara taka (usi prakara) kahana chahie. Vishesha itana hai ki jaham jitane lakha bhavana hom, vaham utane lakha bhavana kahane chahie. Bhagavan ! Vanavyantara devom ke kitane lakha avasa kahe gae haim\? Gautama ! Asamkhyata lakha avasa. Bhagavan ! Ve samkhyeya vistrita haim athava asamkhyeya\? Gautama ! Ve samkhyeya vistrita haim, asamkhyeyavistrita nahim haim. Bhagavan! Vanavyantaradevom ke samkhyeyavistrita avasom mem eka samaya mem kitane vanavyantara deva utpanna hote haim\? (gautama !) asurakumara devom ke samkhyeya vistrita avasom ke samana vanavyantara devom ke bhi tinom alapaka kahane chahie. Bhagavan ! Jyotishka devom ke kitane lakha vimanavasa haim\? Gautama ! Asamkhyata lakha. Bhagavan ! Ve samkhyeya vistrita haim ya asamkhyeya\? Gautama ! Samkhyeya vistrita hote haim. Tatha vanavyantara devom ke samana jyotishka devom ke vishaya mem tina alapaka kahana. Visheshata yaha hai ki inamem kevala eka tejoleshya hi hoti hai. Vyantaradevom mem asamjnyi utpanna hote haim, aisa kaha gaya tha, kintu inamem asamjnyi utpanna nahim hote (na hi udvarttate haim aura na chyavate haim). Shesha purvavat. Bhagavan ! Saudharmakalpa mem kitane lakha vimanavasa haim\? Gautama ! Battisa lakha. Bhagavan ! Ve vimanavasa samkhyeya vistrita haim ya asamkhyeya vistrita\? Gautama ! Ve samkhyeya vistrita bhi haim aura asamkhyeya vistrita bhi haim. Bhagavan ! Saudharmakalpa ke battisa lakha vimanavasom mem se samkhyata yojana vistara vale vimanom mem eka samaya mem kitane saudharma deva utpanna hote haim\? Aura tejoleshya vale saudharmadeva kitane utpanna hote haim\? Jyotishkadevom ke samana yaham bhi tina alapaka kahane chahie. Vishesha itana hai ki tinom alapakom mem ‘samkhyata’ patha kahana tatha avadhijnyani – avadhi – darshani ka chyavana bhi kahana. Shesha purvavat. Asamkhyata yojana vistrita saudharma – vimanavasom ke bhi isi prakara tinom alapaka kahane chahie. Vishesha itana hai ki ‘samkhyata’ ke badale ‘asamkhyata’ kahana. Kintu asamkhyeya – yojana – vistrita vimanavasom mem se avadhijnyani aura avadhidarshani to ‘samkhyata’ hi chyavate haim. Shesha purvavat. Saudharma devaloka ke samana ishana devaloka ke vishaya mem bhi chhaha alapaka kahane chahie. Sanatkumara devaloka ke vishaya mem isi prakara janana. Vishesha itana ki sanatkumara devom mem strivedaka utpanna nahim hote, sattavishayaka gamakom mem bhi strivedi nahim kahe jate. Yaham tinom alapakom mem asamjnyi patha nahim kahana. Shesha purvavat samajhana. Isi prakara yavat sahasrara devaloka taka kahana. Yaham antara vimanom ki samkhya aura leshya ke vishaya mem hai. Shesha purvoktavat. Bhagavan ! Anata aura pranata devalokom mem kitane sau vimanavasa haim\? Gautama ! Chara sau. Bhagavan ! Ve samkhyata yojana vistrita haim ya asamkhyata yojana vistrita\? Gautama ! Ve samkhyata yojana vistrita bhi haim aura asamkhyata yojana vistrita bhi haim. Samkhyata yojana vistara vale vimanavasom ke vishaya mem sahasrara devaloka ke samana tina alapaka kahana. Asamkhyata yojana vistara vale vimanom mem utpada aura chyavana ke vishaya mem ‘samkhyata’ kahana evam ‘satta’ mem asamkhyata kahana. Itana vishesha hai ki noindriyopayukta anantaropapannaka, anantaravagadha, anantaraharaka aura anantara – paryaptaka, ye pamcha jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata haim. Shesha asamkhyata kahana. Anata aura pranata ke samana arana aura achyuta kalpa ke vishaya mem bhi kahana. Vimanom ki samkhya mem vibhinnata hai. Isi prakara nau graiveyaka devalokom ke vishaya mem bhi kahana. Bhagavan ! Anuttara vimana kitane kahe gae haim\? Gautama ! Pamcha. Bhagavan ! Ve samkhyata yojana vistrita haim ya asamkhyata yojana\? Gautama ! (unamem se eka) samkhyata yojana vistrita hai aura (chara) asamkhyata yojana vistrita haim. Bhagavan ! Pamcha anuttaravimanom mem se samkhyata yojana vistara vale vimana mem eka samaya mem kitane anuttaraupapatika deva utpanna hote haim, kitane shuklaleshyi utpanna hote haim, ityadi prashna. Gautama ! Pamcha anuttaravimanom mem se samkhyata yojana vistrita (‘sarvarthasiddha’ namaka) anutaravimana mem eka samaya mem, jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata anuttaraupapatika deva utpanna hote haim. Samkhyata yojana vistrita graiveyaka vimanom ke samana yaham bhi kahana. Visheshata yaha hai ki krishnapakshika abhavyasiddhika tatha tina ajnyana vale jiva, yaham utpanna nahim hote, na hi chyavate haim aura satta mem bhi inaka kathana nahim karana. Isi prakara ‘acharama’ ka nishedha karana, yavat samkhyata charama kahe gae haim. Shesha purvavat. Asamkhyata yojana vistara vale chara anuttaravimanom mem ye (purvokta krishnapakshika adi jiva purvokta tinom alapakom mem) nahim kahe gae haim. Visheshata itani hi hai ki acharama jiva bhi hote haim. Asamkhyata yojana vistrita graiveyaka vimanom ke samana yaham bhi avashishta saba kathana yavat asamkhyata acharama jiva kahe gaye haim, yaham taka karana. Bhagavan ! Kya asurakumara devom ke chaumsatha lakha asurakumaravasom mem se samkhyata yojana vistrita asura – kumaravasom mem samyagdrishti asurakumara utpanna hote haim athava mithyadrishti utpanna hote haim, ya mishra drishti utpanna hote haim? (gautama !) ratnaprabhaprithvi ke sambandha mem kahe tina alapaka yaham bhi kahane chahie aura asamkhyata yojana vistrita asurakumaravasom ke vishaya mem bhi isi prakara tina alapaka kahana. Isi prakara yavat graiveyakavimanom tatha anuttaravimanom mem bhi isi prakara kahana. Vishesha bata yaha hai ki anuttaravimanom ke tinom alapakom mem mithyadrishti aura samyagmithyadrishti ka kathana nahim karana. Shesha purvavat. Bhagavan ! Kya krishnaleshyi nilaleshyi yavat shuklaleshyi hokara jiva krishnaleshyi devom mem utpanna ho jata hai? Ham, gautama ! Jisa prakara (terahavem shataka ke) prathama uddeshaka mem nairayikom ke vishaya mem kaha, usi prakara yaham bhi kahana chahie. Nilaleshyi ke vishaya mem bhi usi prakara kahana chahie, isi prakara yavat padmaleshyi devom ke vishaya mem kahana. Shuklaleshyi devom ke vishaya mem bhi isi prakara kahana. Visheshata yaha hai ki leshyasthana vishuddha hote – hote shuklaleshya mem parinata ho jate haim. Shuklaleshya mem parinata hone ke pashchat hi (ve jiva) shuklaleshyi devom mem utpanna hote haim. Isa karana se he gautama ! ‘utpanna hote haim’ aisa kaha gaya hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai.