Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004023 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-११ काल | Translated Section : | उद्देशक-११ काल |
Sutra Number : | 523 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नामं अनगारे जाइसंपन्ने वण्णओ जहा केसि-सामिस्स जाव पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणापुरे नगरे, जेणेव सहसंबवने उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ। तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महयाजणसद्दं वा जणवूहं वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पास-माणस्स वा एवं जहा जमाली तहेव चिंता, तहेव कंचुइज्ज-पुरिसं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिया! अज्ज हत्थिणापुरे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति। तए णं से कंचुइ-पुरिसे महब्बलेणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे धम्मघोसस्स अनगारस्स आगमणगहियवि-णिच्छए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महब्बलं कुमारं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– नो खलु देवानुप्पिया! अज्ज हत्थिणापुरे नगरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति। एवं खलु देवानुप्पिया! अज्ज विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नामं अनगारे हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया सहसंबवने उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा, भोगा जाव निग्गच्छंति। तए णं से महब्बले कुमारे तहेव रहवरेणं निग्गच्छति। धम्मकहा जहा केसिसामिस्स। सो वि तहेव अम्मापियरं आपुच्छइ, नवरं–धम्मघोसस्स अनगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। तहेव वुत्तपडिवुत्तिया, नवरं–इमाओ य ते जाया! विउलरायकुलबालियाओ कलाकुसल-सव्वकाललालिय-सुहोचियाओ सेसं तं चेव जाव ताहे अकामाइं चेव महब्बलकुमारं एवं वयासी–तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासित्तए। तए णं से महब्बले कुमारे अम्मापिउ-वयणमनुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, एवं जहा सिवभद्दस्स तहेव सयाभिसेओ भाणियव्वो जाव अभिसिं-चति, करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महब्बलं कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेति, वद्धावेत्ता एवं वयासी–भण जाया! किं देमो? किं पयच्छामो? सेसं जहा जमालिस्स तहेव जाव– तए णं से महब्बले अनगारे धम्मघोसस्स अनगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाइं चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जि-त्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाइं दुवा-लस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं, बहूइं जोयणसयाइं, बहूइं जोयणसहस्साइं, बहूइं जोयणसयसहस्साइं, बहूओ जोयणकोडीओ, बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंदे कप्पे वीईवइत्ता बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं महब्बलस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं तुमं सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाइं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्ता तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणिय-ग्गामे नगरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाए। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में तेरहवे तीर्थंकर अरहंत विमलनाथ के धर्मघोष अनगार थे। वे जातिसम्पन्न इत्यादि केशी स्वामी के समान थे, यावत् पाँच सौ अनगारों के परिवार के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए हस्ति – नापुर नगर में सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे। हस्तिनापुर नगर के शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत – से लोग मुनि – आगमन की परस्पर चर्चा करने लगे यावत् जनता पर्युपासना करने लगी। बहुत – से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सूनकर जमालिकुमार के समान महाबल कुमार को भी विचार हुआ उसने अपने कंचूकी पुरुष को बुलाकर कारण पूछा। कंचुकी पुरुष ने भी निवेदन किया – देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थंकर के प्रशिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं। इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् यावत् महाबल कुमार भी जमालिकुमार की तरह उत्तम रथ पर बैठकर उन्हें वन्दना करने गया। धर्मघोष अनगार ने भी केशीस्वामी के समान धर्मोपदेश दिया। सूनकर महाबल कुमार को भी जमालिकुमार के समान वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसी प्रकार माता – पिता से अनगार धर्म में प्रव्रजित होने की अनुमति माँगी। विशेष यह है कि धर्मघोष अनगार से मैं मुण्डित होकर आगारवास से अनगार धर्म में प्रव्रजित होना चाहता हूँ। जमालिकुमार के समान उत्तर – प्रत्युत्तर हुए। विशेष यह है कि माता – पिता ने महाबल कुमार से कहा – हे पुत्र ! यह विपुल धर्म और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुईं कला – कुशल आठ कुलबालाओं को छोड़कर तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? इत्यादि यावत् माता – पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से कहा – ‘हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए भी तुम्हारी राज्यश्री देखना चाहते हैं।’ यह सूनकर महाबल कुमार चूप रहे। इसके पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, शिवभद्र के राज्याभिषेक अनुसार महाबल कुमार के राज्याभिषेक का वर्णन समझ लेना, यावत् राज्याभिषेक किया, फिर हाथ जोड़कर महाबल कुमार को जय – विजय शब्दों से बधाया; तथा कहा – हे पुत्र ! कहो, हम तुम्हें क्या देवें ? तुम्हारे लिए हम क्या करें ? इत्यादि जमालि के समान जानना, यावत् महाबल कुमार ने धर्मघोष अनगार से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। दीक्षाग्रहण के पश्चात् महाबल अनगार ने धर्मघोष अनगार के पास सामायिक आदि चौदह पूर्वों का अध्ययन किया तथा उपवास, बेला, तेला आदि बहुत – से विचित्र तपःकर्मों से आत्मा को भावित करते हुए पूरे बारह वर्ष तक श्रमणपर्याय का पालन किया और अन्त में मासिक संलेखना से साठ भक्त अनशन द्वारा छेदन कर आलोचना – प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्वक काल के अवसर पर काल करके ऊर्ध्वलोक में चन्द्र और सूर्य से भी ऊपर बहुत दूर, अम्बड़ के समान यावत् ब्रह्मलोककल्प में देवरूप में उत्पन्न हुए। महाबलदेव की दस सागरोपम की स्थिति थी। हे सुदर्शन ! वही महाबल का जीव तुम हो। तुम वहाँ दस सागरोपम तक दिव्य भोगों को भोगते हुए रह करके, वहाँ दस सागरोपम की स्थिति पूर्ण करके, वहाँ के आयुष्य का, स्थिति का और भव का क्षय होने पर वहाँ से च्यवकर सीधे इस भरतक्षेत्र में वाणिज्यग्राम – नगर में, श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न हुए हो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam vimalassa arahao paoppae dhammaghose namam anagare jaisampanne vannao jaha kesi-samissa java pamchahim anagarasaehim saddhim samparivude puvvanupuvvim charamane gamanuggamam duijjamane jeneva hatthinapure nagare, jeneva sahasambavane ujjane, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhai, oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam hatthinapure nagare simghadaga-tiya-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu mahaya janasadde i va java parisa pajjuvasai. Tae nam tassa mahabbalassa kumarassa tam mahayajanasaddam va janavuham va java janasannivayam va sunamanassa va pasa-manassa va evam jaha jamali taheva chimta, taheva kamchuijja-purisam saddaveti, saddavetta evam vayasi–kinnam devanuppiya! Ajja hatthinapure nayare imdamahe i va java niggachchhamti. Tae nam se kamchui-purise mahabbalenam kumarenam evam vutte samane hatthatutthe dhammaghosassa anagarassa agamanagahiyavi-nichchhae karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu mahabbalam kumaram jaenam vijaenam baddhavei, baddhavetta evam vayasi– no khalu devanuppiya! Ajja hatthinapure nagare imdamahe i va java niggachchhamti. Evam khalu devanuppiya! Ajja vimalassa arahao paoppae dhammaghose namam anagare hatthinapurassa nagarassa bahiya sahasambavane ujjane ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai, tae nam ete bahave ugga, bhoga java niggachchhamti. Tae nam se mahabbale kumare taheva rahavarenam niggachchhati. Dhammakaha jaha kesisamissa. So vi taheva ammapiyaram apuchchhai, navaram–dhammaghosassa anagarassa amtiyam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Taheva vuttapadivuttiya, navaram–imao ya te jaya! Viularayakulabaliyao kalakusala-savvakalalaliya-suhochiyao sesam tam cheva java tahe akamaim cheva mahabbalakumaram evam vayasi–tam ichchhamo te jaya! Egadivasamavi rajjasirim pasittae. Tae nam se mahabbale kumare ammapiu-vayanamanuyattamane tusinie samchitthai. Tae nam se bale raya kodumbiyapurise saddavei, evam jaha sivabhaddassa taheva sayabhiseo bhaniyavvo java abhisim-chati, karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu mahabbalam kumaram jaenam vijaenam vaddhaveti, vaddhavetta evam vayasi–bhana jaya! Kim demo? Kim payachchhamo? Sesam jaha jamalissa taheva java– Tae nam se mahabbale anagare dhammaghosassa anagarassa amtiyam samaiyamaiyaim choddasa puvvaim ahijjai, ahijji-tta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddha-masakhamanehim vichittehim tavokammehim appanam bhavemane bahupadipunnaim duva-lasa vasaim samannapariyagam paunai, paunitta masiyae samlehanae attanam jjhusitta, satthim bhattaim anasanae chhedetta aloiya padikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha uddham chamdima-suriya-gahagana-nakkhatta-tararuvanam bahuim joyanaim, bahuim joyanasayaim, bahuim joyanasahassaim, bahuim joyanasayasahassaim, bahuo joyanakodio, bahuo joyanakodakodio uddham duram uppaitta sohammi-sana-sanamkumara-mahimde kappe viivaitta bambhaloe kappe devattae uvavanne. Tattha nam atthegatiyanam devanam dasa sagarovamaim thiti pannatta. Tattha nam mahabbalassa vi devassa dasa sagarovamaim thiti pannatta. Se nam tumam sudamsana! Bambhaloge kappe dasa sagarovamaim divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharitta tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta iheva vaniya-ggame nagare setthikulamsi puttattae pachchayae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem terahave tirthamkara arahamta vimalanatha ke dharmaghosha anagara the. Ve jatisampanna ityadi keshi svami ke samana the, yavat pamcha sau anagarom ke parivara ke satha anukrama se vihara karate hue hasti – napura nagara mem sahasramravana udyana mem padhare aura yathayogya avagraha grahana karake samyama aura tapa se apani atma ko bhavita karate hue vicharana karane lage. Hastinapura nagara ke shrimgataka, trika yavat rajamargom para bahuta – se loga muni – agamana ki paraspara charcha karane lage yavat janata paryupasana karane lagi. Bahuta – se manushyom ka kolahala evam charcha sunakara jamalikumara ke samana mahabala kumara ko bhi vichara hua usane apane kamchuki purusha ko bulakara karana puchha. Kamchuki purusha ne bhi nivedana kiya – devanupriya ! Vimalanatha tirthamkara ke prashishya shri dharmaghosha anagara yaham padhare haim. Ityadi saba varnana purvavat yavat mahabala kumara bhi jamalikumara ki taraha uttama ratha para baithakara unhem vandana karane gaya. Dharmaghosha anagara ne bhi keshisvami ke samana dharmopadesha diya. Sunakara mahabala kumara ko bhi jamalikumara ke samana vairagya utpanna hua. Usi prakara mata – pita se anagara dharma mem pravrajita hone ki anumati mamgi. Vishesha yaha hai ki dharmaghosha anagara se maim mundita hokara agaravasa se anagara dharma mem pravrajita hona chahata hum. Jamalikumara ke samana uttara – pratyuttara hue. Vishesha yaha hai ki mata – pita ne mahabala kumara se kaha – he putra ! Yaha vipula dharma aura uttama rajakula mem utpanna huim kala – kushala atha kulabalaom ko chhorakara tuma kyom diksha le rahe ho\? Ityadi yavat mata – pita ne anichchhapurvaka mahabala kumara se kaha – ‘he putra ! Hama eka dina ke lie bhi tumhari rajyashri dekhana chahate haim.’ yaha sunakara mahabala kumara chupa rahe. Isake pashchat bala raja ne kautumbika purushom ko bulaya, shivabhadra ke rajyabhisheka anusara mahabala kumara ke rajyabhisheka ka varnana samajha lena, yavat rajyabhisheka kiya, phira hatha jorakara mahabala kumara ko jaya – vijaya shabdom se badhaya; tatha kaha – he putra ! Kaho, hama tumhem kya devem\? Tumhare lie hama kya karem\? Ityadi jamali ke samana janana, yavat mahabala kumara ne dharmaghosha anagara se pravrajya grahana kara li. Dikshagrahana ke pashchat mahabala anagara ne dharmaghosha anagara ke pasa samayika adi chaudaha purvom ka adhyayana kiya tatha upavasa, bela, tela adi bahuta – se vichitra tapahkarmom se atma ko bhavita karate hue pure baraha varsha taka shramanaparyaya ka palana kiya aura anta mem masika samlekhana se satha bhakta anashana dvara chhedana kara alochana – pratikramana kara samadhipurvaka kala ke avasara para kala karake urdhvaloka mem chandra aura surya se bhi upara bahuta dura, ambara ke samana yavat brahmalokakalpa mem devarupa mem utpanna hue. Mahabaladeva ki dasa sagaropama ki sthiti thi. He sudarshana ! Vahi mahabala ka jiva tuma ho. Tuma vaham dasa sagaropama taka divya bhogom ko bhogate hue raha karake, vaham dasa sagaropama ki sthiti purna karake, vaham ke ayushya ka, sthiti ka aura bhava ka kshaya hone para vaham se chyavakara sidhe isa bharatakshetra mem vanijyagrama – nagara mem, shreshthikula mem putrarupa se utpanna hue ho. |