Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1003960 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-९ |
Translated Chapter : |
शतक-९ |
Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Translated Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम |
Sutra Number : | 460 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। बहुसालए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते जाव वहुजणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं–चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा नामं माहणी होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव पियदंसणा सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा पज्जुवासइ। तए णं से उसभदत्ते माहणे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव देवानंदा माहणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता देवानंदं माहणिं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिए! समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु देवानुप्पिए! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मि-यस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामो णं देवानुप्पिए! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवा-समो। एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणगामियत्ताए भविस्सइ। तए णं सा देवानंदा माहणी उसभदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणी हट्ठ तुट्ठचित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु उसभदत्तस्स माहणस्स एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ। तए णं से उसभदत्ते माहणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! लहुकर-णजुत्त-जोइय-समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगेहिं, जंबूणयामयकलावजुत्त-पतिविसिट्ठेहिं, रययामयघंटा-सुत्तरज्जुयपवरकंचणनत्थ-पग्गहोग्गहियएहिं, नीलुप्पलकयामेलएहिं, पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिरयण-घंटियाजालपरिगयं, सुजायजुगजोत्तरज्जुयजुग-पसत्थ-सुविरचियनिमियं, पवरलक्खणोववेयं-धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एवमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा उसभदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ तुट्ठचित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ताणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त जाव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से उसभदत्ते माहणे ण्हाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिणिक्खमति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे। तए णं सा देवानंदा माहणी ण्हाया जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा बहूहिं खुज्जाहिं, चिलातियाहिं जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-थेरकंचुइज्ज-महत्तरगवंदपरिक्खित्ता अंतेउराओ निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। तए णं से उसभदत्ते माहणे देवानंदाए माहणीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे समाणे नियगपरियालसंपरिवुडे माहणकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थ करातिसए पासइ, पासित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छाति, तं जहा–१. सच्चित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए ३. एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं ४. चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य था। उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह आढ्य, दीप्त, प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में निपुण था। स्कन्दक तपास की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से नयों में निष्णात था। वह श्रमणों का उपासक, जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता, पुण्य – पाप के तत्त्व को उपलब्ध, यावत् आत्मा को भावित करता हुआ विहरण करता था। उस ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी (धर्मपत्नी) थी। उसके हाथ – पैर सुकुमाल थे, यावत् उसका दर्शन भी प्रिय था। उसका रूप सुन्दर था। वह श्रमणोपासिका थी, जीव – अजीव आदि तत्त्वों की जानकार थी तथा पुण्य – पाप के रहस्य को उपलब्ध की हुई थी, यावत् विहरण करती थी। उस काल और उस समय में महावीर स्वामी वहाँ पधारे। समवसरण लगा। परिषद् यावत् पर्युपासना करने लगी। तदनन्तर इस बात को सुनकर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण अत्यन्त हर्षित और सन्तुष्ट हुआ, यावत् हृदय में उल्लसित हुआ और जहाँ देवानन्दा ब्राह्मणी थी, वहाँ आया और उसके पास आकर इस प्रकार बोला – हे देवानुप्रिये ! धर्म की आदि करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर आकाश में रहे हुए चक्र से युक्त यावत् सुखपूर्ववक विहार करते हुए यहाँ पधारे है, यावत् बहुशालक नामक चैत्य में योग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरण करते है। हे देवानुप्रिये ! उन तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम – गौत्र के श्रवण से भी महाफल प्राप्त होता है, तो उनके सम्मुख जाने, वन्दन – नमस्कार करने, प्रश्न पूछने और पर्युपासना करने आदि से होने वाले फल के विषय में तो कहना ही क्या ! एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन के श्रवण से महान् फल होता है, तो फिर विपुल अर्थ को ग्रहण करने से महाफल हो, इसमें तो कहना ही क्या हे ! इसलिए हे देवानुप्रिये ! हम चलें और श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन – नमन करें यावत् उनकी पर्युपासना करें। यह कार्य हमारे लिए इस भव में तथा परभव में हित के लिए, सुख के लिए, क्षमता के लिए, निःश्रेयस, के लिए और आनुगामकिता के लिए होगा। तत्पश्चात् ऋषभदत्त ब्राह्मण से इस प्रकार का कथन सुन कर देवानन्दा ब्राह्मणी हृदय में अत्यन्त हर्षित यावत् उल्लसित हुई और उसने दोनो हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि करके ऋषभदत्त ब्राह्मण के कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया। तत्पश्चात् उस ऋषभदत्त ब्राह्मण ने अपने कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया और इस प्रकार कहा – देवानुप्रियो ! शीघ्र चलने वाले, प्रशस्त, सदृशरूप वाले, समान खुर और पूंछ वाले, एक समान सींग वाले, स्वर्णनिर्मित कलापों से युक्त, उत्तम गति वाले, चांदी की घंटियो से युक्त, स्वर्णमय नाथ द्वारा नाथे हुए, नील कमल की कलंगी वाले दो उत्तम युवा बैलों से युक्त, अनेक प्रकार की मणिमय घंटियो के समूह से व्याप्त, उत्तम काष्ठस्य जुए और जीत की उत्तम दो डोरियों से युक्त, प्रवर लक्षणों से युक्त धार्मिक श्रेष्ठ यान शीघ्र तैयार करके यहाँ उपस्थित करो और इस आज्ञा को वापिस करो अर्थात् इस आज्ञा का पालन करके मुझे सूचना करो। जब ऋषभदत्त ब्राह्मण ने उन कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा, तब वे उसे सुनकर अत्यन्त हर्षित यावत् हृदय में आनन्दित हुए और मस्तक पर अंजलि करके कहा – स्वामिन ! आपकी यह आज्ञा हमें मान्य है – । इस प्रकार कह कर विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया और शीघ्र ही द्रुतगामी दो बैलों से युक्त यावत् श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार करके उपस्थित किया, यावत् उनकी आज्ञा के पालन की सूचना दी। तदनन्तर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण स्नान यावत् अल्पभार और महामूल्य वाले आभूषणो से अपने शरीर को अलंकृत किये हुए अपने धर से बाहर निकला। जहाँ बाहरी उपस्थापनशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ था, वहाँ आया। उस रथ पर आरूढ हुआ। तब देवानन्दा ब्राह्मणी ने भी स्नान किया, यावत् अल्पभार वाले महामूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। फिर बहुत सी कुब्जा दासिंयो तथा चिलात देश की दासिंयो के साथ यावत् अन्तःपुर से निकली। जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ खड़ा था, वहाँ आई। उस श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हुई। वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हो अपने परिवार से परिवृत्त होकर ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ निकला और बहुशालक नामक उद्यान में आया। वहाँ तीर्थकर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देखा। देखते ही उसने श्रेष्ठ धार्मिक रथ को ठहराया और उस श्रेष्ठ – धर्म – रथ से नीचे उतरा। वह श्रमण भगवान् महावीर के पास पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक गया। वे पाँच अभिगम है – (१) सचित द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि; द्वितीय शतक में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना से उपासना करने लगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam mahanakumdaggame nayare hottha–vannao. Bahusalae cheie–vannao. Tattha nam mahanakumdaggame nayare usabhadatte namam mahane parivasai–addhe ditte vitte java vahujanassa aparibhue rivveda-jajuvveda-samaveda-athavvanaveda-itihasapamchamanam nighamtuchhatthanam–chaunham vedanam samgovamganam sarahassanam sarae dharae parae sadamgavi satthitamtavisarae, samkhane sikkha kappe vagarane chhamde nirutte jotisamayane, annesu ya bahusu bambhannaesu nayesu suparinitthie samanovasae abhigayajivajive uvaladdhapunnapave java ahapariggahiehim tavokammehim appanam bhavemane viharai. Tassa nam usabhadattassa mahanassa devanamda namam mahani hottha–sukumalapanipaya java piyadamsana suruva samanovasiya abhigayajivajiva uvaladdhapunnapava java ahapariggahiehim tavokammehim appanam bhavemani viharai. Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe. Parisa pajjuvasai. Tae nam se usabhadatte mahane imise kahae laddhatthe samane hattha tutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae jeneva devanamda mahani teneva uvagachchhati, uvagachchhitta devanamdam mahanim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Samane bhagavam mahavire adigare java savvannu savvadarisi agasagaenam chakkenam java suhamsuhenam viharamane bahusalae cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam mahapphalam khalu devanuppie! Taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana-vamdana-namamsana-padipuchchhana-pajjuvasanayae? Egassa vi ariyassa dhammi-yassa suvayanassa savanayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhamo nam devanuppie! Samanam bhagavam mahaviram vamdamo namamsamo sakkaremo sammanemo kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuva-samo. Eyam ne ihabhave ya parabhave ya hiyae suhae khamae nissesae anagamiyattae bhavissai. Tae nam sa devanamda mahani usabhadattenam mahanenam evam vutta samani hattha tutthachittamanamdiya namdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamana hiyaya karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu usabhadattassa mahanassa eyamattham vinaenam padisunei. Tae nam se usabhadatte mahane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Lahukara-najutta-joiya-samakhuravalihana-samalihiyasimgehim, jambunayamayakalavajutta-pativisitthehim, rayayamayaghamta-suttarajjuyapavarakamchananattha-paggahoggahiyaehim, niluppalakayamelaehim, pavaragonajuvanaehim nanamanirayana-ghamtiyajalaparigayam, sujayajugajottarajjuyajuga-pasattha-suvirachiyanimiyam, pavaralakkhanovaveyam-dhammiyam janappavaram juttameva uvatthaveha, uvatthavetta mama evamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa usabhadattenam mahanenam evam vutta samana hattha tutthachittamanamdiya namdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamanahiyaya karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahattanae vinaenam vayanam padisunemti, padisunetta khippameva lahukaranajutta java dhammiyam janappavaram juttameva uvatthavetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se usabhadatte mahane nhae java appamahagghabharanalamkiyasarire sao gihao padinikkhamati, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva dhammie janappavare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhammiyam janappavaram durudhe. Tae nam sa devanamda mahani nhaya java appamahagghabharanalamkiyasarira bahuhim khujjahim, chilatiyahim java chediyachakkavala-varisadhara-therakamchuijja-mahattaragavamdaparikkhitta amteurao niggachchhati, niggachchhitta jeneva bahiriya uvatthanasala, jeneva dhammie janappavare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhammiyam janappavaram durudha. Tae nam se usabhadatte mahane devanamdae mahanie saddhim dhammiyam janappavaram durudhe samane niyagapariyalasamparivude mahanakumdaggamam nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva bahusalae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chhattadie tittha karatisae pasai, pasitta dhammiyam janappavaram thavei, thavetta dhammiyao janappavarao pachchoruhai, pachchoruhitta samanam bhagavam mahaviram pamchavihenam abhigamenam abhigachchhati, tam jaha–1. Sachchittanam davvanam viosaranayae 2. Achittanam davvanam aviosaranayae 3. Egasadienam uttarasamgakaranenam 4. Chakkhupphase amjalippaggahenam 5. Manaso egattikaranenam jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta tivihae pajjuvasanae pajjuvasai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura samaya mem brahmanakundagrama namaka nagara tha. Vaham bahushala namaka chaitya tha. Usa brahmanakundagrama nagara mem rishabhadatta nama ka brahmana rahata tha. Vaha adhya, dipta, prasiddha, yavat aparibhuta tha. Vaha rigveda, yajurveda, samaveda aura atharvanaveda mem nipuna tha. Skandaka tapasa ki taraha vaha bhi brahmanom ke anya bahuta se nayom mem nishnata tha. Vaha shramanom ka upasaka, jiva – ajiva adi tattvom ka jnyata, punya – papa ke tattva ko upalabdha, yavat atma ko bhavita karata hua viharana karata tha. Usa rishabhadatta brahmana ki devananda nama ki brahmani (dharmapatni) thi. Usake hatha – paira sukumala the, yavat usaka darshana bhi priya tha. Usaka rupa sundara tha. Vaha shramanopasika thi, jiva – ajiva adi tattvom ki janakara thi tatha punya – papa ke rahasya ko upalabdha ki hui thi, yavat viharana karati thi. Usa kala aura usa samaya mem mahavira svami vaham padhare. Samavasarana laga. Parishad yavat paryupasana karane lagi. Tadanantara isa bata ko sunakara vaha rishabhadatta brahmana atyanta harshita aura santushta hua, yavat hridaya mem ullasita hua aura jaham devananda brahmani thi, vaham aya aura usake pasa akara isa prakara bola – he devanupriye ! Dharma ki adi karane vale yavat sarvajnya sarvadarshi shramana bhagavan mahavira akasha mem rahe hue chakra se yukta yavat sukhapurvavaka vihara karate hue yaham padhare hai, yavat bahushalaka namaka chaitya mem yogya avagraha grahana karake yavat vicharana karate hai. He devanupriye ! Una tatharupa arihanta bhagavan ke nama – gautra ke shravana se bhi mahaphala prapta hota hai, to unake sammukha jane, vandana – namaskara karane, prashna puchhane aura paryupasana karane adi se hone vale phala ke vishaya mem to kahana hi kya ! Eka bhi arya aura dharmika suvachana ke shravana se mahan phala hota hai, to phira vipula artha ko grahana karane se mahaphala ho, isamem to kahana hi kya he ! Isalie he devanupriye ! Hama chalem aura shramana bhagavan mahavira ko vandana – namana karem yavat unaki paryupasana karem. Yaha karya hamare lie isa bhava mem tatha parabhava mem hita ke lie, sukha ke lie, kshamata ke lie, nihshreyasa, ke lie aura anugamakita ke lie hoga. Tatpashchat rishabhadatta brahmana se isa prakara ka kathana suna kara devananda brahmani hridaya mem atyanta harshita yavat ullasita hui aura usane dono hatha jora kara mastaka para amjali karake rishabhadatta brahmana ke kathana ko vinayapurvaka svikara kiya. Tatpashchat usa rishabhadatta brahmana ne apane kautumbika purusho ko bulaya aura isa prakara kaha – devanupriyo ! Shighra chalane vale, prashasta, sadrisharupa vale, samana khura aura pumchha vale, eka samana simga vale, svarnanirmita kalapom se yukta, uttama gati vale, chamdi ki ghamtiyo se yukta, svarnamaya natha dvara nathe hue, nila kamala ki kalamgi vale do uttama yuva bailom se yukta, aneka prakara ki manimaya ghamtiyo ke samuha se vyapta, uttama kashthasya jue aura jita ki uttama do doriyom se yukta, pravara lakshanom se yukta dharmika shreshtha yana shighra taiyara karake yaham upasthita karo aura isa ajnya ko vapisa karo arthat isa ajnya ka palana karake mujhe suchana karo. Jaba rishabhadatta brahmana ne una kautumbika purushom ko isa prakara kaha, taba ve use sunakara atyanta harshita yavat hridaya mem anandita hue aura mastaka para amjali karake kaha – svamina ! Apaki yaha ajnya hamem manya hai –\. Isa prakara kaha kara vinayapurvaka unake vachanom ko svikara kiya aura shighra hi drutagami do bailom se yukta yavat shreshtha dharmika ratha ko taiyara karake upasthita kiya, yavat unaki ajnya ke palana ki suchana di. Tadanantara vaha rishabhadatta brahmana snana yavat alpabhara aura mahamulya vale abhushano se apane sharira ko alamkrita kiye hue apane dhara se bahara nikala. Jaham bahari upasthapanashala thi aura jaham shreshtha dharmika ratha tha, vaham aya. Usa ratha para arudha hua. Taba devananda brahmani ne bhi snana kiya, yavat alpabhara vale mahamulya abhushanom se sharira ko sushobhita kiya. Phira bahuta si kubja dasimyo tatha chilata desha ki dasimyo ke satha yavat antahpura se nikali. Jaham bahara ki upasthanashala thi aura jaham shreshtha dharmika ratha khara tha, vaham ai. Usa shreshtha dharmika ratha para arudha hui. Vaha rishabhadatta brahmana devananda brahmani ke satha shreshtha dharmika ratha para arudha ho apane parivara se parivritta hokara brahmanakundagrama namaka nagara ke madhya mem hota hua nikala aura bahushalaka namaka udyana mem aya. Vaham tirthakara bhagavan ke chhatra adi atishayom ko dekha. Dekhate hi usane shreshtha dharmika ratha ko thaharaya aura usa shreshtha – dharma – ratha se niche utara. Vaha shramana bhagavan mahavira ke pasa pamcha prakara ke abhigamapurvaka gaya. Ve pamcha abhigama hai – (1) sachita dravyom ka tyaga karana ityadi; dvitiya shataka mem kahe anusara yavat tina prakara ki paryupasana se upasana karane laga. |