Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1003949 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-९ |
Translated Chapter : |
शतक-९ |
Section : | उद्देशक-३१ अशोच्चा | Translated Section : | उद्देशक-३१ अशोच्चा |
Sutra Number : | 449 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से णं भंते! किं उड्ढं होज्जा? अहे होज्जा? तिरियं होज्जा? गोयमा! उड्ढं वा होज्जा, अहे वा होज्जा, तिरियं वा होज्जा। उड्ढं होमाणे सद्दावइ-वियडावइ-गंधावइ-मालवंतपरियाएसु वट्ट-वेयड्ढपव्वएसु होज्जा, साहरणं पडुच्च सोमनसवने वा पंडगवने वा होज्जा। अहे होमाणे गड्डाए वा दरीए वा होज्जा, साहरणं पडुच्च पायाले वा भवने वा होज्जा। तिरियं होमाणे पन्नरससु कम्मभूमीसु होज्जा, साहरणं पडुच्च अड्ढाइज्जदीव-समुद्द तदेक्कदे-सभाए होज्जा। ते णं भंते! एगसमए णं केवतिया होज्जा? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खिय-उवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, अत्थेगतिए असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए जाव अत्थेगतिए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगतिए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! वे असोच्चा कवली ऊर्ध्वलोक में होते है, अधोलोक में होते हैं या तिर्यक्लोक में होते हैं ? गौतम ! वे तीनो लोक में भी होते हैं। यदि ऊर्ध्वलोक में होते हैं तो शब्दापाती, विकटापाती, गन्धापाती और माल्यवन्त नामक वृत (वैताढ्य) पर्वतों में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा सौमनसवन में अथवा पाण्डुकवन में होते हैं। यदि अधोलोक में होते हैं तो गर्त्ता में अथवा गुफ़ा में होते है तथा संहरण की अपेक्षा पातालकलशों में अथवा भवनवासी देवों के भवनों में होते हैं। यदि तिर्यग्लोक में होते हैं तो पन्द्रह कर्मभूमि में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा अढाई द्वीप और समुद्रों के एक भाग में होते हैं। भगवन् ! वे असोच्चा केवली एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दस होते हैं। इसलिए हे गौतम ! मैं एसा कहता हुँ कि केवली यावत् केवलि – पाक्षिक की उपासिका से धर्मश्रवण किये बिना ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म – श्रवण प्राप्त होता है और किसी को नहीं होता; यावत् कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न कर लेता है और कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se nam bhamte! Kim uddham hojja? Ahe hojja? Tiriyam hojja? Goyama! Uddham va hojja, ahe va hojja, tiriyam va hojja. Uddham homane saddavai-viyadavai-gamdhavai-malavamtapariyaesu vatta-veyaddhapavvaesu hojja, saharanam paduchcha somanasavane va pamdagavane va hojja. Ahe homane gaddae va darie va hojja, saharanam paduchcha payale va bhavane va hojja. Tiriyam homane pannarasasu kammabhumisu hojja, saharanam paduchcha addhaijjadiva-samudda tadekkade-sabhae hojja. Te nam bhamte! Egasamae nam kevatiya hojja? Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam dasa. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–asochcha nam kevalissa va java tappakkhiya-uvasiyae va atthegatie kevalipannattam dhammam labhejja savanayae, atthegatie asochcha nam kevalissa va java tappakkhiyauvasiyae va kevalipannattam dhammam no labhejja savanayae java atthegatie kevalananam uppadejja, atthegatie kevalananam no uppadejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Ve asochcha kavali urdhvaloka mem hote hai, adholoka mem hote haim ya tiryakloka mem hote haim\? Gautama ! Ve tino loka mem bhi hote haim. Yadi urdhvaloka mem hote haim to shabdapati, vikatapati, gandhapati aura malyavanta namaka vrita (vaitadhya) parvatom mem hote haim tatha samharana ki apeksha saumanasavana mem athava pandukavana mem hote haim. Yadi adholoka mem hote haim to gartta mem athava gufa mem hote hai tatha samharana ki apeksha patalakalashom mem athava bhavanavasi devom ke bhavanom mem hote haim. Yadi tiryagloka mem hote haim to pandraha karmabhumi mem hote haim tatha samharana ki apeksha adhai dvipa aura samudrom ke eka bhaga mem hote haim. Bhagavan ! Ve asochcha kevali eka samaya mem kitane hote haim\? Gautama ! Ve jaghanya eka, do athava tina aura utkrishta dasa hote haim. Isalie he gautama ! Maim esa kahata hum ki kevali yavat kevali – pakshika ki upasika se dharmashravana kiye bina hi kisi jiva ko kevaliprarupita dharma – shravana prapta hota hai aura kisi ko nahim hota; yavat koi jiva kevalajnyana utpanna kara leta hai aura koi jiva kevalajnyana utpanna nahim kara pata. |