Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003877 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-७ |
Translated Chapter : |
शतक-७ |
Section : | उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक | Translated Section : | उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक |
Sutra Number : | 377 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, पोग्गल-त्थिकायं। एगं च णं समणे नायपुत्ते जीवत्थिकायं अरूविकायं जीवकायं पन्नवेति। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अरूविकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवत्थिकायं। एगं च णं समणे नायपुत्ते पोग्गलत्थिकायं रूविकायं अजीवकायं पन्नवेति। से कहमेयं मण्णे एवं? तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव गुणसिलए चेइए समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जतं भत्त-पानं पडिग्गाहित्ता रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमइ, अतुरियमचवलमसंभंतं जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे तेसिं अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीईवयति। तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासंति, पासित्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविप्पकडा, अयं च णं गोयमे अम्हं अदूरसामंतेणं वीईवयइ, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं गोयमं एयमट्ठं पुच्छित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमट्ठं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी– एवं खलु गोयमा! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तं चेव जाव रूविकायं अजीवकायं पन्नवेति। से कहमेयं गोयमा! एवं? तए णं से भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–नो खलु वयं देवानुप्पिया! अत्थिभावं नत्थि त्ति वदामो, नत्थिभावं अत्थि त्ति वदामो। अम्हे णं देवानुप्पिया! सव्वं अत्थिभावं अत्थि त्ति वदामो, सव्वं नत्थिभावं नत्थि त्ति वदामो। तं चेयसा खलु तुब्भे देवानुप्पिया! एयमट्ठं सयमेव पच्चुवेक्खह त्ति कट्टु ते अन्नउत्थिए एवं वदासी, वदित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव भत्त-पाणं पडिदंसेति, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे जाव पज्जुवासति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे महाकहापडिवण्णे या वि होत्था। कालोदाई य तं देसं हव्वमागए। कालोदाईति! समणे भगवं महावीरे कालोदाइं एवं वयासी–से नूनं भे कालोदाई! अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अयमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति तहेव जाव से कहमेयं मण्णे एवं? से नूनं कालोदाई! अत्थे समत्थे? हंता अत्थि। तं सच्चे णं एसमट्ठे कालोदाई! अहं पंचत्थिकायं पन्नवेमि, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं अहं चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेमि, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थि-कायं, आगासत्थिकायं, पोग्गलत्थिकायं। एगं च णं अहं जीवत्थिकायं अरूवीकायं जीवकायं पन्नवेमि। तत्थ णं अहं चत्तारि अत्थिए अरूवीकाए पन्नवेमि, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवत्थिकायं। एगं च णं अहं पोग्गलत्थिकायं रूविकायं पन्नवेमि। तए णं से कालोदाई समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–एयंसि णं भंते! धम्मत्थिकायंसि, अधम्मत्थिकायंसि, आगासत्थिकायंसि अरूविकायंसि अजीवकायंसि चक्किया केइ आसइत्तए वा? सइत्तए वा? चिठ्ठइत्तए वा? निसीइत्तए वा? तुयट्टित्तए वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। कालोदाई! एगंसि णं पोग्गलत्थिकायंसि रूविकायंसि अजीवकायंसि चक्किया केइ आसइत्तए वा, सइत्तए वा, चिट्ठइत्तए वा, निसीइत्तए वा, तुयट्टित्तए वा। एयंसि णं भंते! पोग्गलत्थिकायंसि रूविकायंसि अजीवकायंसि जीवाणं पावा कम्मा पावफल-विवागसंजुत्ता कज्जंति? नो तिणट्ठे समट्ठे। कालोदाई! एयंसि णं जीवत्थिकायंसि अरूविकायंसि जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति। एत्थ णं से कालोदाई संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतियं धम्मं निसामेत्तए। एवं जहा खंदए तहेव पव्वइए, तहेव एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था यावत् (एक) पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के पास थोड़ी दूर पर बहुत से अन्यतीर्थि रहते थे, यथा – कालोदयी, शैलोदाई शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्नपालक, शैलपालक, शंखपालक और सुहस्ती गृहपति। किसी समय सब अन्यतीर्थिक एक स्थान पर आए, एकत्रित हुए और सुखपूर्वक भलीभाँति बैठे। फिर उनमें परस्पर इस प्रकार का वार्तालाप प्रारम्भ हुआ – ‘ऐसा (सूना) है कि श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकायों का निरूपण करते हैं, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय। इनमें से चार अस्तिकायों को श्रमण ज्ञातपुत्र ‘अजीव – काय’ बताते हैं। धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय। एक जीवास्तिकाय को श्रमण ज्ञातपुत्र ‘अरूपी’ और जीवकाय बतलाते हैं। उन पाँच अस्तिकायों में से चार अस्तिकायों को श्रमण ज्ञातपुत्र अरूपीकाय बतलाते हैं। धर्मास्तिकाय, यावत् जीवास्तिकाय। एक पुद्गलास्तिकाय को ही श्रमण ज्ञातपुत्र रूपीकाय और अजीवकाय कहते हैं। उनकी यह बात कैसे मानी जाए ? उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर यावत् गुणशील चैत्य में पधारे, वहाँ उनका समवसरण लगा। यावत् परीषद् (धर्मोपदेश सूनकर) वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, दूसरे शतक के निर्ग्रन्थ उद्देशक में कहे अनुसार भिक्षाचारी के लिए पर्यटन करते हुए यथापर्याप्त आहार – पानी ग्रहण करके राजगृह नगर से यावत्, त्वरारहित, चपलतारहित, सम्भ्रान्ततारहित, यावत् ईर्यासमिति का शोधन करते – करते अन्यतीर्थिकों के पास से होकर नीकले। तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने भगवान गौतम को थोड़ी दूर से जाते हुए देखा। देखकर उन्होंने एक – दूसरे को बुलाया। बुलाकर एक – दूसरे से इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! बात ऐसी है कि (पंचास्तिकाय सम्बन्धी) यह बात हमारे लिए – अज्ञात है। यह गौतम हमसे थोड़ी ही दूर पर जा रहे हैं। इसलिए हे देवानुप्रियो ! हमारे लिए गौतम से यह अर्थ पूछना श्रेयस्कर है, ऐसा विचार करके उन्होंने परस्पर इस सम्बन्ध में परामर्श किया। जहाँ भगवान गौतम थे, वहाँ उनके पास आए। उन्होंने भगवान गौतम से इस प्रकार पूछा – हे गौतम ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पंच अस्तिकाय की प्ररूपणा करते हैं, जैसे – धर्मास्तिकाय यावत् आकाशास्तिकाय। यावत् ‘एक पुद्गलास्तिकाय को ही श्रमण ज्ञातपुत्र रूपीकाय और अजीव काय कहते हैं; यहाँ तक अपनी सारी चर्चा उन्होंने गौतम से कही। हे भदन्त गौतम ! यह बात ऐसे कैसे है ? इस पर भगवान गौतम ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! हम अस्तिभाव को नास्ति, ऐसा नहीं कहते, इसी प्रकार ‘नास्तिभाव’ को अस्ति ऐसा नहीं कहते। हे देवानुप्रियो ! हम सभी अस्तिभावों को अस्ति, ऐसा कहते हैं और समस्त नास्तिभावों को नास्ति, ऐसा कहते हैं। अतः हे देवानुप्रियो ! आप स्वयं अपने ज्ञान से इस बात पर चिन्तन करीए।’ जैसा भगवान बतलाते हैं, वैसा ही है। इस प्रकार कहकर श्री गौतमस्वामी गुणशीलक चैत्य में जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आए और द्वीतिय शतक के निर्ग्रन्थ उद्देशक में बताये अनुसार यावत् आहार – पानी भगवान को दिखलाया। श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके उनसे न बहुत दूर और न बहुत निकट रहकर यावत् उपासना करने लगे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर – प्रतिपन्न थे। उसी समय कालोदयी उस स्थल में आ पहुँचा। श्रमण भगवान महावीर ने कालोदयी से पूछा – ‘हे कालोदायी ! क्या वास्तव में, किसी समय एक जगह सभी साथ आये हुए और एकत्र सुखपूर्वक बैठे हुए तुम सब में पंचास्तिकाय के सम्बन्ध में विचार हुआ था कि यावत् ‘यह बात कैसे मानी जाए ?’ क्या यह बात यथार्थ है ? ‘हाँ, यथार्थ है।’ (भगवान – ) ‘हे कालोदायी ! पंचास्तिकायसम्बन्धी यह बात सत्य है। मैं धर्मास्तिकाय से पुद्गलास्तिकाय पर्यन्त पंच अस्तिकाय की प्ररूपणा करता हूँ। उनसे चार अस्तिकायों को मैं अजीवकाय बतलाता हूँ। यावत् पूर्व कथितानुसार एक पुद्गलास्तिकाय को मैं रूपीकाय बतलाता हूँ। तब कालोदायी ने श्रमण भगवान महावीर से पूछा – भगवन् ! क्या धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, इन अरूपी अजीवकायों पर कोई बैठने, सोने, खड़े रहने, नीचे बैठने यावत् करवट बदलने, आदि क्रियाएं करने में समर्थ है ? हे कालोदायी ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एक पुद्गलास्तिकाय ही रूपी अजीवकाय है, जिस पर कोई भी बैठने, सोने या यावत् करवट बदलने आदि क्रियाएं करने में समर्थ है। भगवन् ! जीवों को पापफलविपाक से संयुक्त करने वाले पापकर्म, क्या इस रूपीकाय और अजीवकाय को लगते हैं ? क्या इस रूपीकाय और अजीवकायरूप पुद्गलास्तिकाय में पापकर्म लगते हैं ? कालोदायि ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (भगवन् !) क्या इस अरूपी जीवास्तिकाय में जीवों को पापफलविपाक से युक्त पापकर्म लगते हैं ? हाँ, लगते हैं। (समाधान पाकर) कालोदायी बोधि को प्राप्त हुआ। फिर उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके उसने कहा – ‘भगवन् ! मैं आपसे धर्म – श्रवण करना चाहता हूँ।’ भगवान ने उसे धर्म – श्रवण कराया। फिर जैसे स्कन्दक ने भगवान से प्रव्रज्या अंगीकार की थी वैसे ही कालोदायी भगवान के पास प्रव्रजित हुआ। उसी प्रकार उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् कालोदायी अनगार विचरण करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare hottha–vannao. Gunasilae cheie–vannao java pudhavisilapattao. Tassa nam gunasilayassa cheiyassa adurasamamte bahave annautthiya parivasamti, tam jaha–kalodai, selodai, sevalodai, udae, namudae, nammudae, annavalae, selavalae, samkhavalae, suhatthi gahavai. Tae nam tesim annautthiyanam annaya kayai egayao sahiyanam samuvagayanam sannivitthanam sannisannanam ayameyaruve mihokahasamullave samuppajjittha–evam khalu samane nayaputte pamcha atthikae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam java poggalatthikayam. Tattha nam samane nayaputte chattari atthikae ajivakae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthikayam, agasatthikayam, poggala-tthikayam. Egam cha nam samane nayaputte jivatthikayam aruvikayam jivakayam pannaveti. Tattha nam samane nayaputte chattari atthikae aruvikae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthikayam, agasatthikayam, jivatthikayam. Egam cha nam samane nayaputte poggalatthikayam ruvikayam ajivakayam pannaveti. Se kahameyam manne evam? Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire java gunasilae cheie samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare goyame gottenam java bhikkhayariyae adamane ahapajjatam bhatta-panam padiggahitta rayagihao nagarao padinikkhamai, aturiyamachavalamasambhamtam jugamtarapaloyanae ditthie purao riyam sohemane-sohemane tesim annautthiyanam adurasamamtenam viivayati. Tae nam te annautthiya bhagavam goyamam adurasamamtenam viivayamanam pasamti, pasitta annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amham ima kaha avippakada, ayam cha nam goyame amham adurasamamtenam viivayai, tam seyam khalu devanuppiya! Amham goyamam eyamattham puchchhittae tti kattu annamannassa amtie eyamattham padisunamti, padisunitta jeneva bhagavam goyame teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam goyamam evam vayasi– Evam khalu goyama! Tava dhammayarie dhammovadesae samane nayaputte pamcha atthikae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam java poggalatthikayam. Tam cheva java ruvikayam ajivakayam pannaveti. Se kahameyam goyama! Evam? Tae nam se bhagavam goyame te annautthie evam vayasi–no khalu vayam devanuppiya! Atthibhavam natthi tti vadamo, natthibhavam atthi tti vadamo. Amhe nam devanuppiya! Savvam atthibhavam atthi tti vadamo, savvam natthibhavam natthi tti vadamo. Tam cheyasa khalu tubbhe devanuppiya! Eyamattham sayameva pachchuvekkhaha tti kattu te annautthie evam vadasi, vaditta jeneva gunasilae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai java bhatta-panam padidamseti, padidamsetta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne java pajjuvasati. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire mahakahapadivanne ya vi hottha. Kalodai ya tam desam havvamagae. Kalodaiti! Samane bhagavam mahavire kalodaim evam vayasi–se nunam bhe kalodai! Annaya kayai egayao sahiyanam samuvagayanam sannivitthanam sannisannanam ayameyaruve mihokaha-samullave samuppajjittha–evam khalu samane nayaputte pamcha atthikae pannaveti taheva java se kahameyam manne evam? Se nunam kalodai! Atthe samatthe? Hamta atthi. Tam sachche nam esamatthe kalodai! Aham pamchatthikayam pannavemi, tam jaha–dhammatthikayam java poggalatthikayam. Tattha nam aham chattari atthikae ajivakae pannavemi, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthi-kayam, agasatthikayam, poggalatthikayam. Egam cha nam aham jivatthikayam aruvikayam jivakayam pannavemi. Tattha nam aham chattari atthie aruvikae pannavemi, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthikayam, agasatthikayam, jivatthikayam. Egam cha nam aham poggalatthikayam ruvikayam pannavemi. Tae nam se kalodai samanam bhagavam mahaviram evam vadasi–eyamsi nam bhamte! Dhammatthikayamsi, adhammatthikayamsi, agasatthikayamsi aruvikayamsi ajivakayamsi chakkiya kei asaittae va? Saittae va? Chiththaittae va? Nisiittae va? Tuyattittae va? No tinatthe samatthe. Kalodai! Egamsi nam poggalatthikayamsi ruvikayamsi ajivakayamsi chakkiya kei asaittae va, saittae va, chitthaittae va, nisiittae va, tuyattittae va. Eyamsi nam bhamte! Poggalatthikayamsi ruvikayamsi ajivakayamsi jivanam pava kamma pavaphala-vivagasamjutta kajjamti? No tinatthe samatthe. Kalodai! Eyamsi nam jivatthikayamsi aruvikayamsi jivanam pava kamma pavaphalavivagasamjutta kajjamti. Ettha nam se kalodai sambuddhe samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Ichchhami nam bhamte! Tubbham amtiyam dhammam nisamettae. Evam jaha khamdae taheva pavvaie, taheva ekkarasa amgaim ahijjai java vichittehim tavokammehim appanam bhavemane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Vaham gunashilaka namaka chaitya tha yavat (eka) prithvi shilapattaka tha. Usa gunashilaka chaitya ke pasa thori dura para bahuta se anyatirthi rahate the, yatha – kalodayi, shailodai shaivalodayi, udaya, namodaya, narmodaya, annapalaka, shailapalaka, shamkhapalaka aura suhasti grihapati. Kisi samaya saba anyatirthika eka sthana para ae, ekatrita hue aura sukhapurvaka bhalibhamti baithe. Phira unamem paraspara isa prakara ka vartalapa prarambha hua – ‘aisa (suna) hai ki shramana jnyataputra pamcha astikayom ka nirupana karate haim, yatha – dharmastikaya, adharmastikaya, akashastikaya, pudgalastikaya aura jivastikaya. Inamem se chara astikayom ko shramana jnyataputra ‘ajiva – kaya’ batate haim. Dharmastikaya yavat pudgalastikaya. Eka jivastikaya ko shramana jnyataputra ‘arupi’ aura jivakaya batalate haim. Una pamcha astikayom mem se chara astikayom ko shramana jnyataputra arupikaya batalate haim. Dharmastikaya, yavat jivastikaya. Eka pudgalastikaya ko hi shramana jnyataputra rupikaya aura ajivakaya kahate haim. Unaki yaha bata kaise mani jae\? Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira yavat gunashila chaitya mem padhare, vaham unaka samavasarana laga. Yavat parishad (dharmopadesha sunakara) vapisa chali gai. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha antevasi gautamagotriya indrabhuti namaka anagara, dusare shataka ke nirgrantha uddeshaka mem kahe anusara bhikshachari ke lie paryatana karate hue yathaparyapta ahara – pani grahana karake rajagriha nagara se yavat, tvararahita, chapalatarahita, sambhrantatarahita, yavat iryasamiti ka shodhana karate – karate anyatirthikom ke pasa se hokara nikale. Tatpashchat una anyatirthikom ne bhagavana gautama ko thori dura se jate hue dekha. Dekhakara unhomne eka – dusare ko bulaya. Bulakara eka – dusare se isa prakara kaha – he devanupriyo ! Bata aisi hai ki (pamchastikaya sambandhi) yaha bata hamare lie – ajnyata hai. Yaha gautama hamase thori hi dura para ja rahe haim. Isalie he devanupriyo ! Hamare lie gautama se yaha artha puchhana shreyaskara hai, aisa vichara karake unhomne paraspara isa sambandha mem paramarsha kiya. Jaham bhagavana gautama the, vaham unake pasa ae. Unhomne bhagavana gautama se isa prakara puchha – He gautama ! Tumhare dharmacharya, dharmopadeshaka shramana jnyataputra pamcha astikaya ki prarupana karate haim, jaise – dharmastikaya yavat akashastikaya. Yavat ‘eka pudgalastikaya ko hi shramana jnyataputra rupikaya aura ajiva kaya kahate haim; yaham taka apani sari charcha unhomne gautama se kahi. He bhadanta gautama ! Yaha bata aise kaise hai\? Isa para bhagavana gautama ne una anyatirthikom se kaha – ‘he devanupriyo ! Hama astibhava ko nasti, aisa nahim kahate, isi prakara ‘nastibhava’ ko asti aisa nahim kahate. He devanupriyo ! Hama sabhi astibhavom ko asti, aisa kahate haim aura samasta nastibhavom ko nasti, aisa kahate haim. Atah he devanupriyo ! Apa svayam apane jnyana se isa bata para chintana karie.’ jaisa bhagavana batalate haim, vaisa hi hai. Isa prakara kahakara shri gautamasvami gunashilaka chaitya mem jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham unake pasa ae aura dvitiya shataka ke nirgrantha uddeshaka mem bataye anusara yavat ahara – pani bhagavana ko dikhalaya. Shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara karake unase na bahuta dura aura na bahuta nikata rahakara yavat upasana karane lage. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira – pratipanna the. Usi samaya kalodayi usa sthala mem a pahumcha. Shramana bhagavana mahavira ne kalodayi se puchha – ‘he kalodayi ! Kya vastava mem, kisi samaya eka jagaha sabhi satha aye hue aura ekatra sukhapurvaka baithe hue tuma saba mem pamchastikaya ke sambandha mem vichara hua tha ki yavat ‘yaha bata kaise mani jae\?’ kya yaha bata yathartha hai\? ‘ham, yathartha hai.’ (bhagavana – ) ‘he kalodayi ! Pamchastikayasambandhi yaha bata satya hai. Maim dharmastikaya se pudgalastikaya paryanta pamcha astikaya ki prarupana karata hum. Unase chara astikayom ko maim ajivakaya batalata hum. Yavat purva kathitanusara eka pudgalastikaya ko maim rupikaya batalata hum. Taba kalodayi ne shramana bhagavana mahavira se puchha – bhagavan ! Kya dharmastikaya, adharmastikaya aura akashastikaya, ina arupi ajivakayom para koi baithane, sone, khare rahane, niche baithane yavat karavata badalane, adi kriyaem karane mem samartha hai\? He kalodayi ! Yaha artha samartha nahim hai. Eka pudgalastikaya hi rupi ajivakaya hai, jisa para koi bhi baithane, sone ya yavat karavata badalane adi kriyaem karane mem samartha hai. Bhagavan ! Jivom ko papaphalavipaka se samyukta karane vale papakarma, kya isa rupikaya aura ajivakaya ko lagate haim\? Kya isa rupikaya aura ajivakayarupa pudgalastikaya mem papakarma lagate haim\? Kalodayi ! Yaha artha samartha nahim hai. (bhagavan !) kya isa arupi jivastikaya mem jivom ko papaphalavipaka se yukta papakarma lagate haim\? Ham, lagate haim. (samadhana pakara) kalodayi bodhi ko prapta hua. Phira usane shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake usane kaha – ‘bhagavan ! Maim apase dharma – shravana karana chahata hum.’ bhagavana ne use dharma – shravana karaya. Phira jaise skandaka ne bhagavana se pravrajya amgikara ki thi vaise hi kalodayi bhagavana ke pasa pravrajita hua. Usi prakara usane gyaraha amgom ka adhyayana kiya yavat kalodayi anagara vicharana karane lage. |