Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003801 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-६ |
Translated Chapter : |
शतक-६ |
Section : | उद्देशक-६ भव्य | Translated Section : | उद्देशक-६ भव्य |
Sutra Number : | 301 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा। एवं जाव अहेसत्तमा पुढवी। जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए चउसट्ठीए असुर-कुमारावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारत्ताए उववज्जित्तए, जहा नेरइया तहा भाणियव्वा जाव थणियकुमारा। जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए असंखेज्जेसु पुढविकाइयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि पुढविकाइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं केवइयं गच्छेज्जा? केवइयं पाउणेज्जा? गोयमा! लोयंतं गच्छेज्जा, लोयंतं पाउणेज्जा। से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तं वा, संखेज्जइभागमेत्तं वा, वालग्गं वा, वालग्गपुहत्तं वा; एवं लिक्ख-जूय-जव-अंगुल जाव जोयणकोडिं वा, जोयणको-डाकोडिं वा संखेज्जेसु वा असंखेज्जेसु वा जोयणसहस्सेसु, लोगंते वा एगपएसियं सेढिं मोत्तूण असंखेज्जेसु पुढविकाइयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि पुढविकाइयावासंसि पुढवि-काइयत्ताए उववज्जेत्ता, तओ पच्छा आहारेज्ज वा,परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा। जहा पुरत्थिमे णं मंदरस्स पव्वयस्स आलावओ भणिओ, एवं दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं, उड्ढे, अहे। जहा पुढविकाइया तहा एगिंदियाणं सव्वेसिं एक्केक्कस्स छ आलावगा भाणियव्वा। जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता जे भविए असंखेज्जेसु बेइंदियावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि बेइंदियावासंसि बेइंदियत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? जहा नेरइया, एवं जाव अनुत्तरोववाइया। जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए पंचसु अनुत्तरेसु महति-महालएसु महाविमानेसु अन्नयरंसि अनुत्तरविमाणंसि अनुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? तं चेव जाव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन् ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है या शरीर बाँधता है; और कोई जीव वहाँ जाकर वापस लौटता है, वापस लौटकर यहाँ आता है। यहाँ आकर वह फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समवहत होता है। समवहत होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है। इसके पश्चात् आहार ग्रहण करता है, परिणमाता है और शरीर बाँधता है। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी पृथ्वी तक कहना भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर असुरकुमारों के चौंसठ लाख आवासों में से किसी एक आवास में उत्पन्न होने के योग्य है; क्या वह जीव वहाँ जाकर आहार करता है ? उस आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है ? गौतम ! नैरयिकों के समान असुरकुमारों से स्तनित – कुमारों तक कहना चाहिए। भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर असंख्येय लाख पृथ्वीकायिक – आवासों में से किसी एक पृथ्वीकायिक – आवास में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन्! वह जीव मंदर (मेरु) पर्वत से पूर्व में कितनी दूर जाता है ? और कितनी दूरी को प्राप्त करता है ? हे गौतम ! वह लोकान्त तक जाता है और लोकान्त को प्राप्त करता है। भगवन् ! क्या उपर्युक्त पृथ्वीकायिक जीव, वहाँ जाकर ही आहार करता है; आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, उस आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है; और कोई जीव वहाँ जाकर वापस लौट कर यहाँ आता है, फिर दूसरी बार मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत होकर मेरुपर्वत के पूर्व में अंगुल के असंख्येय भागमात्र, या संख्येय भागमात्र, या बालाग्र अथवा बालाग्र – पृथक्त्व, इसी तरह लिक्षा, यूका, यव, अंगुल यावत् करोड़ योजन, कोटा – कोटि योजन, संख्येय हजार योजन और असंख्येय हजार योजन में, अथवा एक प्रदेश श्रेणी को छोड़कर लोकान्त में पृथ्वीकाय के असंख्य लाख आवासों में से किसी आवास में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होता है उसके पश्चात् आहार करता है, यावत् शरीर बाँधता है। जिस प्रकार मेरुपर्वत की पूर्वदिशा के विषय में कथन किया गया है, उसी प्रकार से दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व और अधोदिशा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार से सभी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में एक – एक के छह – छह आलापक कहने चाहिए। भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत होकर द्वीन्द्रिय जीवों के असंख्येय लाख आवासों में से किसी एक आवास में द्वीन्द्रिय रूप में उत्पन्न होने वाला है; भगवन् ! क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, उस आहार को परिणमाता है, और शरीर बाँधता है ? गौतम ! नैरयिकों के समान द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक सब जीवों के लिए कथन करना। हे भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्घात से समवहत होकर महान् से महान् महाविमानरूप पंच अनुत्तरविमानों में से किसी एक अनुत्तरविमान में अनुत्तरौ – पपातिक देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है और शरीर बाँधता है ? गौतम ! पहले कहा गया है, उसी प्रकार कहना चाहिए हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Maranamtiyasamugghaenam samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasasayasahassesu annayaramsi nirayavasamsi neraiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Tatthagae cheva aharejja va? Parinamejja va? Sariram va bamdhejja? Goyama! Atthegatie tatthagae cheva aharejja va, parinamejja va, sariram va bamdhejja; atthegatie tao padiniyattati, tatto padiniyattitta ihamagachchhai, agachchhitta dochcham pi maranamtiyasamugghaenam samohannai, samohanitta imise rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasa-sayasahassesu annayaramsi nirayavasamsi neraiyattae uvavajjittae, tao pachchha aharejja va, parinamejja va, sariram va bamdhejja. Evam java ahesattama pudhavi. Jive nam bhamte! Maranamtiyasamugghaenam samohae, samohanitta je bhavie chausatthie asura-kumaravasa-sayasahassesu annayaramsi asurakumaravasamsi asurakumarattae uvavajjittae, jaha neraiya taha bhaniyavva java thaniyakumara. Jive nam bhamte! Maranamtiyasamugghaenam samohae, samohanitta je bhavie asamkhejjesu pudhavikaiyavasa-sayasahassesu annayaramsi pudhavikaiyavasamsi pudhavikaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Mamdarassa pavvayassa puratthime nam kevaiyam gachchhejja? Kevaiyam paunejja? Goyama! Loyamtam gachchhejja, loyamtam paunejja. Se nam bhamte! Tatthagae cheva aharejja va? Parinamejja va? Sariram va bamdhejja? Goyama! Atthegatie tatthagae cheva aharejja va, parinamejja va, sariram va bamdhejja; atthegatie tao padiniyattai, padiniyattitta ihamagachchhai, dochcham pi maranamtiyasamugghaenam samohannai, samohanitta mamdarassa pavvayassa puratthime nam amgulassa asamkhejjaibhagamettam va, samkhejjaibhagamettam va, valaggam va, valaggapuhattam va; evam likkha-juya-java-amgula java joyanakodim va, joyanako-dakodim va samkhejjesu va asamkhejjesu va joyanasahassesu, logamte va egapaesiyam sedhim mottuna asamkhejjesu pudhavikaiyavasasayasahassesu annayaramsi pudhavikaiyavasamsi pudhavi-kaiyattae uvavajjetta, tao pachchha aharejja va,parinamejja va, sariram va bamdhejja. Jaha puratthime nam mamdarassa pavvayassa alavao bhanio, evam dahine nam, pachchatthime nam, uttare nam, uddhe, ahe. Jaha pudhavikaiya taha egimdiyanam savvesim ekkekkassa chha alavaga bhaniyavva. Jive nam bhamte! Maranamtiyasamugghaenam samohannai, samohanitta je bhavie asamkhejjesu beimdiyavasa-sayasahassesu annayaramsi beimdiyavasamsi beimdiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Tatthagae cheva aharejja va? Parinamejja va? Sariram va bamdhejja? Jaha neraiya, evam java anuttarovavaiya. Jive nam bhamte! Maranamtiyasamugghaenam samohae, samohanitta je bhavie pamchasu anuttaresu mahati-mahalaesu mahavimanesu annayaramsi anuttaravimanamsi anuttarovavaiyadevattae uvavajjittae, se nam bhamte! Tatthagae cheva aharejja va? Parinamejja va? Sariram va bamdhejja? Tam cheva java aharejja va, parinamejja va, sariram va bamdhejja. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jo jiva maranantika – samudghata se samavahata hua hai aura samavahata hokara isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se kisi eka narakavasa mem nairayika rupa mem utpanna hone ke yogya hai, bhagavan ! Kya vaha vaham jakara ahara karata hai\? Ahara ko parinamata hai\? Aura sharira bamdhata hai\? Gautama ! Koi jiva vaham jakara hi ahara karata hai, ahara ko parinamata hai ya sharira bamdhata hai; aura koi jiva vaham jakara vapasa lautata hai, vapasa lautakara yaham ata hai. Yaham akara vaha phira dusari bara maranantika samudghata dvara samavahata hota hai. Samavahata hokara isa ratnaprabhaprithvi ke tisa lakha narakavasom mem se kisi eka narakavasa mem nairayika rupa se utpanna hota hai. Isake pashchat ahara grahana karata hai, parinamata hai aura sharira bamdhata hai. Isi prakara yavat adhah saptami prithvi taka kahana Bhagavan ! Jo jiva maranantika – samudghata se samavahata hua hai aura samavahata hokara asurakumarom ke chaumsatha lakha avasom mem se kisi eka avasa mem utpanna hone ke yogya hai; kya vaha jiva vaham jakara ahara karata hai\? Usa ahara ko parinamata hai aura sharira bamdhata hai\? Gautama ! Nairayikom ke samana asurakumarom se stanita – kumarom taka kahana chahie. Bhagavan ! Jo jiva maranantika – samudghata se samavahata hua hai aura samavahata hokara asamkhyeya lakha prithvikayika – avasom mem se kisi eka prithvikayika – avasa mem prithvikayika rupa se utpanna hone ke yogya hai, bhagavan! Vaha jiva mamdara (meru) parvata se purva mem kitani dura jata hai\? Aura kitani duri ko prapta karata hai\? He gautama ! Vaha lokanta taka jata hai aura lokanta ko prapta karata hai. Bhagavan ! Kya uparyukta prithvikayika jiva, vaham jakara hi ahara karata hai; ahara ko parinamata hai aura sharira bamdhata hai\? Gautama ! Koi jiva vaham jakara hi ahara karata hai, usa ahara ko parinamata hai aura sharira bamdhata hai; aura koi jiva vaham jakara vapasa lauta kara yaham ata hai, phira dusari bara maranantika – samudghata se samavahata hokara meruparvata ke purva mem amgula ke asamkhyeya bhagamatra, ya samkhyeya bhagamatra, ya balagra athava balagra – prithaktva, isi taraha liksha, yuka, yava, amgula yavat karora yojana, kota – koti yojana, samkhyeya hajara yojana aura asamkhyeya hajara yojana mem, athava eka pradesha shreni ko chhorakara lokanta mem prithvikaya ke asamkhya lakha avasom mem se kisi avasa mem prithvikayika rupa se utpanna hota hai usake pashchat ahara karata hai, yavat sharira bamdhata hai. Jisa prakara meruparvata ki purvadisha ke vishaya mem kathana kiya gaya hai, usi prakara se dakshina, pashchima, uttara, urdhva aura adhodisha ke sambandha mem kahana chahie. Jisa prakara prithvikayika jivom ke vishaya mem kaha gaya hai, usi prakara se sabhi ekendriya jivom ke vishaya mem eka – eka ke chhaha – chhaha alapaka kahane chahie. Bhagavan ! Jo jiva maranantika – samudghata se samavahata hokara dvindriya jivom ke asamkhyeya lakha avasom mem se kisi eka avasa mem dvindriya rupa mem utpanna hone vala hai; bhagavan ! Kya vaha jiva vaham jakara hi ahara karata hai, usa ahara ko parinamata hai, aura sharira bamdhata hai\? Gautama ! Nairayikom ke samana dvindriya jivom se lekara anuttaraupapatika devom taka saba jivom ke lie kathana karana. He bhagavan ! Jo jiva maranantika – samudghata se samavahata hokara mahan se mahan mahavimanarupa pamcha anuttaravimanom mem se kisi eka anuttaravimana mem anuttarau – papatika deva rupa mem utpanna hone vala hai, kya vaha jiva vaham jakara hi ahara karata hai, ahara ko parinamata hai aura sharira bamdhata hai\? Gautama ! Pahale kaha gaya hai, usi prakara kahana chahie he bhagavan ! Yaha isi prakara hai. |