Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003584 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१ |
Translated Chapter : |
शतक-१ |
Section : | उद्देशक-७ नैरयिक | Translated Section : | उद्देशक-७ नैरयिक |
Sutra Number : | 84 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किं आहारमाहारेइ? गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेइ, तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ। जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ, तं जहा–सोइंदियत्ताए, चक्खिंदियत्ताए, घाणिंदियत्ताए, रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए, अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा। जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारमाहारित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ, सव्वओ परिणामेइ, सव्वओ उस्ससइ, सव्वओ निस्ससइ; अभिक्खणं आहारेइ, अभिक्खणं परिणामेइ, अभिक्खणं उस्ससइ, अभिक्खणं निस्ससइ; आहच्च आहारेइ, आहच्च परिणामेइ, आहच्च उस्ससइ, आहच्च निस्ससइ। माउजीवरसहरणी, पुत्तजीवरसहरणी, माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवफुडा–तम्हा आहारेइ, तम्हा परिणामेइ। अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा–तम्हा चिणाइ, तम्हा उवचिणाइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवे णं गब्भगए समाणे नो पभू मुहेणं कावलियं आहारमाहारित्तए। कइ णं भंते! माइयंगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ माइयंगा पन्नत्ता, तं जहा–मंसे, सोणिए, मत्थुलुंगे। कइ णं भंते! पेतियंगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ पेतियंगा पन्नत्ता, तं जहा–अट्ठि, अट्ठिमिंजा, केस-मंसु-रोम-नहे। अम्मापेइए णं भंते! सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठइ? गोयमा! जावइयं से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अव्वावन्ने भवइ एवतियं कालं संचिट्ठइ, अहे णं समए-समए वोयसिज्जमाणे -वोयसिज्जमाणे चरिमकालसमयंसि वोच्छिण्णे भवइ। जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा? गोयमा! से णं सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए पराणीयं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुभइ, निच्छुभित्ता वेउव्वियसमुग्घाएण समोहण्णइ, समोहणित्ता चाउरंगिणिं सेनं विउव्वइ, विउव्वित्ता चाउरंगिणीए सेनाए पराणीएणं सद्धिं संगामं संगामेइ। से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिए रज्जपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज नेरइएसु उववज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा? गोयमा! से णं सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ भवइ संवेगजायसड्ढे तिव्व-धम्माणुरागरत्ते। से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज देवलोगेसु उववज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–अत्थेगइए उव-वज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासल्लए वा अंबखुज्जए वा गच्छेज्ज वा? चिट्ठेज्ज वा? निसीएज्ज वा? तुयट्टेज्ज वा? माउए सुयमाणीए सुवइ? जागरमाणीए जागरइ? सुहियाए सुहिए भवइ? दुहियाए दुहिए भवइ? हंता गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिट्ठेज्ज वा निसीएज्ज वा तुय-ट्टेज्ज वा। माउए सुयमाणीए सुवइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ। अहे णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छति सममागच्छति, तिरियमा-गच्छति विनिहायमावज्जति। वण्णवज्झाणि य से कम्माइं बद्धाइं पुट्ठाइं निहत्ताइं कडाइं पट्ठवियाइं अभिनिविट्ठाइं अभि-समण्णागयाइं उदिण्णाइं–नो उवसं-ताइं भवंति, तओ भवइ दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अनिट्ठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीनस्सरे दीनस्सरे अनिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे असुभस्सरे अमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणाएज्जवयणे पच्चायाए या वि भवइ। वण्णवज्झाणि य से कम्माइं नो बद्धाइं नो पुट्ठाइं नो निहत्ताइं नो कडाइं नो पट्ठवियाइं नो अभिनिविट्ठाइं नो अभिसमण्णागयाइं नो उदिण्णाइं–उवसंताइं भवंति, तओ भवइ सुरूवे सुवण्णे सुगंधे सुरसे सुफासे इट्ठे कंते पिए सुभे मणुण्णे मणामे अहीणस्सरे अदीणस्सरे इट्ठस्सरे कंतस्सरे पियस्सरे सुभस्सरे मणुन्नस्सरे मणामस्सरे आदेज्जवयणे पच्चायाए या वि भवइ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त (परिपूर्ण) जीव, वीर्यलब्धि द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन सूनकर, अवधारण (विचार) करके अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर नीकालता है, बाहर नीकालकर वैक्रियसमुद्घात से समवहत होकर चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करता है। चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करके उस सेना से शत्रुसेना के साथ युद्ध करता है। वह अर्थ का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थाकांक्षी, राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी तथा अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, भोग – पिपासु एवं कामपिपासु, उन्हीं चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्नशील, उन्हीं में सावधानता – युक्त, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला, और उन्हीं भावनाओं से भावित, यदि उसी (समय के) अन्तर में मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम ! यावत् – कोई जीव नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। भगवन् ! गर्भस्थ जीव क्या देवलोक में जाता है ? हे गौतम ! कोई जीव जाता है, और कोई नहीं जाता। भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, तथारूप श्रमण या माहन के पास एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन सूनकर, अवधारण करके शीघ्र ही संवेग से धर्मश्रद्धालु बनकर, धर्म में तीव्र अनुराग से रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष का कामी, धर्माकांक्षी, पुण्याकांक्षी, स्वर्ग का आकांक्षी, मोक्षाकांक्षी तथा धर्मपीपासु, पुण्यपीपासु, स्वर्गपीपासु एवं मोक्षपीपासु, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसी में अध्यवसित, उसी में तीव्र प्रयत्नशील, उसी में सावधानतायुक्त, उसी के लिए अर्पित होकर क्रिया करने वाला, उसी की भावनाओं से भावित जीव ऐसे ही अन्तर में मृत्यु को प्राप्त हो तो देवलोक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम ! कोई जीव देवलोक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या चित्त – लेटा हुआ होता है, या करवट वाला होता है, अथवा आम के समान कुबड़ा होता है, या खड़ा होता है, बैठा होता है या पड़ा हुआ होता है, तथा माता जब सो रही हो तो सोया होता है, माता जब जागती हो तो जागता है, माता के सुखी होने पर सुखी होता है, एवं माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है ? हाँ, गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव यावत् – जब माता दुःखित हो तो दुःखी होता है। इसके पश्चात् प्रसवकाल में अगर वह गर्भगत जीव मस्तक द्वारा या पैरों द्वारा (गर्भ से) बाहर आए तब तो ठीक तरह आता है, यदि वह टेढ़ा होकर आए तो मर जाता है। गर्भ से नीकलने के पश्चात् उस जीव के कर्म यदि अशुभरूप में बंधे हों, स्पृष्ट हों, निधत्त हों, कृत हों, प्रस्थापित हों, अभिनिविष्ट हों, अमिसमन्वागत हों, उदीर्ण हों, और उपशान्त न हों, तो वह जीव कुरूप, कुवर्ण दुर्गन्ध वाला, कुरस वाला, कुस्पर्श वाला, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनाम, हीन स्वर वाला, दीन स्वर वाला, अनिष्ट अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ एवं अमनाम स्वर वाला; तथा अनादेय वचन वाला होता है, और यदि उस जीव के कर्म अशुभरूप में न बँधे हुए हों तो, उसके उपर्युक्त सब बातें प्रशस्त होती हैं यावत् – वह आदेयवचन वाला होता है।’ ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Gabbhagae samane kim aharamaharei? Goyama! Jam se maya nanavihao rasavigatio aharamaharei, tadekadesenam oyamaharei. Jivassa nam bhamte! Gabbhagayassa samanassa atthi uchchare i va pasavane i va khele i va simghane i va vamte i va pitte i va? No inatthe samatthe. Se kenatthenam? Goyama! Jive nam gabbhagae samane jamaharei tam chinai, tam jaha–soimdiyattae, chakkhimdiyattae, ghanimdiyattae, rasimdiyattae phasimdiyattae, atthi-atthimimja-kesa-mamsu-roma-nahattae. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–jivassa nam gabbhagayassa samanassa natthi uchchare i va pasavane i va khele i va simghane i va vamte i va pitte i va. Jive nam bhamte! Gabbhagae samane pabhu muhenam kavaliyam aharamaharittae? Goyama! No inatthe samatthe. Se kenatthenam? Goyama! Jive nam gabbhagae samane savvao aharei, savvao parinamei, savvao ussasai, savvao nissasai; abhikkhanam aharei, abhikkhanam parinamei, abhikkhanam ussasai, abhikkhanam nissasai; ahachcha aharei, ahachcha parinamei, ahachcha ussasai, ahachcha nissasai. Maujivarasaharani, puttajivarasaharani, maujivapadibaddha puttajivaphuda–tamha aharei, tamha parinamei. Avara vi ya nam puttajivapadibaddha maujivaphuda–tamha chinai, tamha uvachinai. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–jive nam gabbhagae samane no pabhu muhenam kavaliyam aharamaharittae. Kai nam bhamte! Maiyamga pannatta? Goyama! Tao maiyamga pannatta, tam jaha–mamse, sonie, matthulumge. Kai nam bhamte! Petiyamga pannatta? Goyama! Tao petiyamga pannatta, tam jaha–atthi, atthimimja, kesa-mamsu-roma-nahe. Ammapeie nam bhamte! Sarirae kevaiyam kalam samchitthai? Goyama! Javaiyam se kalam bhavadharanijje sarirae avvavanne bhavai evatiyam kalam samchitthai, ahe nam samae-samae voyasijjamane -voyasijjamane charimakalasamayamsi vochchhinne bhavai. Jive nam bhamte! Gabbhagae samane neraiesu uvavajjejja? Goyama! Atthegaie uvavajjejja, atthegaie no uvavajjejja. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegaie uvavajjejja, atthegaie no uvavajjejja? Goyama! Se nam sanni pamchimdie savvahim pajjattihim pajjattae viriyaladdhie veuvviyaladdhie paraniyam agayam sochcha nisamma paese nichchhubhai, nichchhubhitta veuvviyasamugghaena samohannai, samohanitta chauramginim senam viuvvai, viuvvitta chauramginie senae paranienam saddhim samgamam samgamei. Se nam jive atthakamae rajjakamae bhogakamae kamakamae, atthakamkhie rajjakamkhie bhogakamkhie kamakamkhie, atthapivasie rajjapivasie bhogapivasie kamapivasie, tachchitte tammane tallese tadajjhavasie tattivvajjhavasane tadatthovautte tadappiyakarane tabbhavanabhavie, eyamsi nam amtaramsi kalam karejja neraiesu uvavajjai. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai– atthegaie uvavajjejja, atthegaie no uvavajjejja. Jive nam bhamte! Gabbhagae samane devalogesu uvavajjejja? Goyama! Atthegaie uvavajjejja, atthegaie no uvavajjejja. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegaie uvavajjejja, atthegaie no uvavajjejja? Goyama! Se nam sanni pamchimdie savvahim pajjattihim pajjattae taharuvassa samanassa va mahanassa va amtie egamavi ariyam dhammiyam suvayanam sochcha nisamma tao bhavai samvegajayasaddhe tivva-dhammanuragaratte. Se nam jive dhammakamae punnakamae saggakamae mokkhakamae, dhammakamkhie punnakamkhie saggakamkhie mokkhakamkhie, dhammapivasie punnapivasie saggapivasie mokkhapivasie, tachchitte tammane tallese tadajjhavasie tattivvajjhavasane tadatthovautte tadappiyakarane tabbhavanabhavie, eyamsi nam amtaramsi kalam karejja devalogesu uvavajjai. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–atthegaie uva-vajjejja, atthegaie no uvavajjejja. Jive nam bhamte! Gabbhagae samane uttanae va pasallae va ambakhujjae va gachchhejja va? Chitthejja va? Nisiejja va? Tuyattejja va? Maue suyamanie suvai? Jagaramanie jagarai? Suhiyae suhie bhavai? Duhiyae duhie bhavai? Hamta goyama! Jive nam gabbhagae samane uttanae va pasallae va ambakhujjae va achchhejja va chitthejja va nisiejja va tuya-ttejja va. Maue suyamanie suvai, jagaramanie jagarai, suhiyae suhie bhavai duhiyae duhie bhavai. Ahe nam pasavanakalasamayamsi sisena va paehim va agachchhati samamagachchhati, tiriyama-gachchhati vinihayamavajjati. Vannavajjhani ya se kammaim baddhaim putthaim nihattaim kadaim patthaviyaim abhinivitthaim abhi-samannagayaim udinnaim–no uvasam-taim bhavamti, tao bhavai duruve duvanne duggamdhe durase duphase anitthe akamte appie asubhe amanunne amaname hinassare dinassare anitthassare akamtassare appiyassare asubhassare amanunnassare amanamassare anaejjavayane pachchayae ya vi bhavai. Vannavajjhani ya se kammaim no baddhaim no putthaim no nihattaim no kadaim no patthaviyaim no abhinivitthaim no abhisamannagayaim no udinnaim–uvasamtaim bhavamti, tao bhavai suruve suvanne sugamdhe surase suphase itthe kamte pie subhe manunne maname ahinassare adinassare itthassare kamtassare piyassare subhassare manunnassare manamassare adejjavayane pachchayae ya vi bhavai. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Garbha mem raha hua jiva kya narakom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Koi utpanna hota hai aura koi nahim utpanna hota. Bhagavan ! Isaka kya karana hai\? Gautama ! Garbha mem raha hua samjnyi pamchendriya aura samasta paryaptiyom se paryapta (paripurna) jiva, viryalabdhi dvara, vaikriyalabdhi dvara shatrusena ka agamana sunakara, avadharana (vichara) karake apane atmapradeshom ko garbha se bahara nikalata hai, bahara nikalakara vaikriyasamudghata se samavahata hokara chaturamgini sena ki vikriya karata hai. Chaturamgini sena ki vikriya karake usa sena se shatrusena ke satha yuddha karata hai. Vaha artha ka kami, rajya ka kami, bhoga ka kami, kama ka kami, arthakamkshi, rajyakamkshi, bhogakamkshi, kamakamkshi tatha artha ka pyasa, rajya ka pyasa, bhoga – pipasu evam kamapipasu, unhim chitta vala, unhim mem mana vala, unhim mem atmaparinama vala, unhim mem adhyavasita, unhim mem prayatnashila, unhim mem savadhanata – yukta, unhim ke lie kriya karane vala, aura unhim bhavanaom se bhavita, yadi usi (samaya ke) antara mem mrityu ko prapta ho to vaha naraka mem utpanna hota hai. Isalie he gautama ! Yavat – koi jiva naraka mem utpanna hota hai aura koi nahim utpanna hota. Bhagavan ! Garbhastha jiva kya devaloka mem jata hai\? He gautama ! Koi jiva jata hai, aura koi nahim jata. Bhagavan ! Isaka kya karana hai\? Gautama ! Garbha mem raha hua samjnyi pamchendriya aura saba paryaptiyom se paryapta jiva, tatharupa shramana ya mahana ke pasa eka bhi arya aura dharmika suvachana sunakara, avadharana karake shighra hi samvega se dharmashraddhalu banakara, dharma mem tivra anuraga se rakta hokara, vaha dharma ka kami, punya ka kami, svarga ka kami, moksha ka kami, dharmakamkshi, punyakamkshi, svarga ka akamkshi, mokshakamkshi tatha dharmapipasu, punyapipasu, svargapipasu evam mokshapipasu, usi mem chitta vala, usi mem mana vala, usi mem atmaparinama vala, usi mem adhyavasita, usi mem tivra prayatnashila, usi mem savadhanatayukta, usi ke lie arpita hokara kriya karane vala, usi ki bhavanaom se bhavita jiva aise hi antara mem mrityu ko prapta ho to devaloka mem utpanna hota hai. Isalie he gautama ! Koi jiva devaloka mem utpanna hota hai aura koi nahim utpanna hota. Bhagavan ! Garbha mem raha hua jiva kya chitta – leta hua hota hai, ya karavata vala hota hai, athava ama ke samana kubara hota hai, ya khara hota hai, baitha hota hai ya para hua hota hai, tatha mata jaba so rahi ho to soya hota hai, mata jaba jagati ho to jagata hai, mata ke sukhi hone para sukhi hota hai, evam mata ke duhkhi hone para duhkhi hota hai\? Ham, gautama ! Garbha mem raha hua jiva yavat – jaba mata duhkhita ho to duhkhi hota hai. Isake pashchat prasavakala mem agara vaha garbhagata jiva mastaka dvara ya pairom dvara (garbha se) bahara ae taba to thika taraha ata hai, yadi vaha terha hokara ae to mara jata hai. Garbha se nikalane ke pashchat usa jiva ke karma yadi ashubharupa mem bamdhe hom, sprishta hom, nidhatta hom, krita hom, prasthapita hom, abhinivishta hom, amisamanvagata hom, udirna hom, aura upashanta na hom, to vaha jiva kurupa, kuvarna durgandha vala, kurasa vala, kusparsha vala, anishta, akanta, apriya, ashubha, amanojnya, amanama, hina svara vala, dina svara vala, anishta akanta, apriya, ashubha, amanojnya evam amanama svara vala; tatha anadeya vachana vala hota hai, aura yadi usa jiva ke karma ashubharupa mem na bamdhe hue hom to, usake uparyukta saba batem prashasta hoti haim yavat – vaha adeyavachana vala hota hai.’ ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |