Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002961 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-१० |
Translated Chapter : |
स्थान-१० |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 961 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं ‘महं घोररूवदित्तधरं’ तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयनामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ९. एगं च णं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं नियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १०. एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरिं सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं भगवता महावीरेणं मोहणिज्जे कम्मे मूलओ उग्घाइते। २. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। ३. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे ससमय-परसमयियं चित्तविचित्तं दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पन्नवेति परूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति, तं जहा– आयारं, सूयगडं, ठाणं, समवायं, विवाहपण्णत्तिं, नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अनुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हा-वागरणाइं, विवागसुयं दिट्ठिवायं। ४. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणा मयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे दुविहं धम्मं पन्नवेति, तं जहा–अगारधम्मं च, अनगारधम्मं च। ५. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउव्वण्णाइण्णे संघे, तं जहा– समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ। ६. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे चउव्विहे देवे पन्नवेति, तं जहा– भवनवासी, वाणमंतरे, जोइसिए, वेमाणिए। ७. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्स-कलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता ण पडिबुद्धे, तं णं समणेणं भगवता महावीरेणं अणादिए अणवदग्गे दीहमद्धे चाउरंते संसारकंतारे तिण्णे। ८. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने। ९. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं हरि-वेरुलिय वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सदेवमनुयासुर लोगे उराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगा परिगुव्वंति– इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे। १०. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरिं सीहासन-वरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगते केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेति पन्नवेति परूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति। | ||
Sutra Meaning : | श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुए। यथा – प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड़ जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए। द्वीतिय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, चौथे स्वप्न में – सर्व रत्नमय मोटी मालाओं की एक जोड़ी को देखकर जागृत हुए, पाँचवे स्वप्न में श्वेत गायों के एक समूह को देखकर जागृत हुए, छठे स्वप्न में कमल फूलों से आच्छादित एक महान पद्म सरोवर को देखकर जागृत हुए, सातवे स्वप्न में – एक सहस्त्र तरंगी महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ जानकर जागृत हुए आठवे स्वप्न में एक महान तेजस्वी सूर्य को देखकर जागृत हुए। नौवे स्वप्न में एक महान मानुषोत्तर पर्वत को वैडूर्यमणि वर्ण वाली अपनी आँतों से परिवेष्टित देखकर जागृत हुए। दसवे स्वप्न में महान मेरु पर्वत की चूलिका पर स्वयं को सिंहासनस्थ देखकर जागृत हुए। प्रथम स्वप्न में ताल पिशाच को पराजित देखने का अर्थ यह है कि – भगवान महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट कर दिया। द्वीतिय स्वप्न में श्वेत पाँखों वाले पुंस्कोकिल को देखने का अर्थ यह है कि भगवान महावीर शुक्ल ध्यान में रमण कर रहे थे। तृतीय स्वप्न में विचित्र रंग की पङ्खों वाले पुंस्कोकिल को देखने का अर्थ यह है कि भगवान महावीर ने स्वसमय और परसमय के प्रतिपादन से चित्रविचित्र द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक का सामान्य कथन किया, विशेष कथन किया, प्ररूपण किया, युक्तिपूर्वक क्रियाओं के स्वरूप का दर्शन निदर्शन किया। यथा – आचाराङ्ग यावत् दृष्टिवाद। चतुर्थ स्वप्न में सर्व रत्नमय माला युगल को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म कहा – यथा – आगार धर्म और अणगार धर्म। पाँचवे स्वप्न में श्वेत गो – वर्ग को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर के चार प्रकार का संघ था। श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक, श्राविकाएं। छठे स्वप्न में पद्म सरोवर को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों का प्रतिपादन किया। यथा – १. भवनपति, २. वाणव्यन्तर, ३. ज्योतिष्क, ४. वैमानिक। सातवे स्वप्न में सहस्रतरंगी सागर को भुजाओं से तिरने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग वाली गति रूप विकट भवाटवी को पार किया। आठवे स्वप्न में तेजस्वी सूर्य को देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर को अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन उत्पन्न हुआ। नौवे स्वप्न में आँतों से परिवेष्टित मानुषोत्तर पर्वत को देखने का अर्थ यह है कि इस लोक के देव, मनुष्य और असुरों में श्रमण भगवान महावीर की कीर्ति एवं प्रशंसा इस प्रकार फैल रही है कि श्रमण भगवान महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी सर्वसंशयोच्छेदक एवं जगद्वत्सल हैं। दसवे स्वप्न में चूलिका पर स्वयं को सिंहासनस्थ देखने का अर्थ यह है कि श्रमण भगवान महावीर देव, मनुष्यों और असुरों की परीषद में केवली प्रज्ञप्त धर्म का सामान्य से कथन करते हैं यावत् समस्त नयों को युक्तिपूर्वक समझाते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] samane bhagavam mahavire chhaumatthakaliyae amtimaraiyamsi ime dasa mahasumine pasitta nam padibuddhe, tam jaha– 1. Egam cha nam ‘maham ghoraruvadittadharam’ talapisayam sumine parajitam pasitta nam padibuddhe. 2. Egam cha nam maham sukkilapakkhagam pumsakoilagam sumine pasitta nam padibuddhe. 3. Egam cha nam maham chittavichittapakkhagam pumsakoilam suvine pasitta nam padibuddhe. 4. Egam cha nam maham damadugam savvarayanamayam sumine pasitta nam padibuddhe. 5. Egam cha nam maham setam govaggam sumine pasitta nam padibuddhe. 6. Egam cha nam maham paumasaram savvao samamta kusumitam sumine pasitta nam padibuddhe. 7. Egam cha nam maham sagaram ummi-vichi-sahassakalitam bhuyahim tinnam sumine pasitta nam padibuddhe. 8. Egam cha nam maham dinayaram teyasa jalamtam sumine pasitta nam padibuddhe. 9. Egam cha nam maham hariveruliyavannabhenam niyaenamamtenam manusuttaram pavvatam savvato samamta avedhiyam Parivedhiyam sumine pasitta nam padibuddhe. 10. Egam cha nam maham mamdare pavvate mamdarachuliyae uvarim sihasanavaragayamattanam sumine pasitta nam Padibuddhe. 1. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham ghoraruvadittadharam talapisayam sumine parajitam pasitta nam padibuddhe, tannam samanenam bhagavata mahavirenam mohanijje kamme mulao ugghaite. 2. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham sukkilapakkhagam pumsakoilagam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire sukkajjhanovagae viharai. 3. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham chittavichittapakkhagam pumsakoilam suvine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire sasamaya-parasamayiyam chittavichittam duvalasamgam ganipidagam aghaveti pannaveti paruveti damseti nidamseti uvadamseti, tam jaha– ayaram, suyagadam, thanam, samavayam, vivahapannattim, nayadhammakahao, uvasagadasao, amtagadadasao, anuttarovavaiyadasao, panha-vagaranaim, vivagasuyam ditthivayam. 4. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham damadugam savvarayana mayam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire duviham dhammam pannaveti, tam jaha–agaradhammam cha, anagaradhammam cha. 5. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham setam govaggam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavao mahavirassa chauvvannainne samghe, tam jaha– samana, samanio, savaga, saviyao. 6. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham paumasaram savvao samamta kusumitam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire chauvvihe deve pannaveti, tam jaha– bhavanavasi, vanamamtare, joisie, vemanie. 7. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham sagaram ummi-vichi-sahassa-kalitam bhuyahim tinnam sumine pasitta na padibuddhe, tam nam samanenam bhagavata mahavirenam anadie anavadagge dihamaddhe chauramte samsarakamtare tinne. 8. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham dinayaram teyasa jalamtam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavao mahavirassa anamte anuttare nivvaghae niravarane kasine padipunne kevalavarananadamsane samuppanne. 9. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham hari-veruliya vannabhenam niyaenamamtenam manusuttaram pavvatam savvato samamta avedhiyam parivedhiyam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samanassa bhagavato mahavirassa sadevamanuyasura loge urala kitti-vanna-sadda-siloga pariguvvamti– Iti khalu samane bhagavam mahavire, iti khalu samane bhagavam mahavire. 10. Jannam samane bhagavam mahavire egam cha nam maham mamdare pavvate mamdarachuliyae uvarim sihasana-varagayamattanam sumine pasitta nam padibuddhe, tannam samane bhagavam mahavire sadevamanuyasurae parisae majjhagate kevalipannattam dhammam aghaveti pannaveti paruveti damseti nidamseti uvadamseti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Shramana bhagavana mahavira chhadmastha kala ki antima ratri mem ye dasa mahasvapna dekhakara jagrita hue. Yatha – prathama svapna mem eka maha bhayamkara jajvalyamana tara jitane lambe pishacha ko dekhakara jagrita hue. Dvitiya svapna mem eka shveta pamkhom vale maha pumskokila ko dekhakara jagrita hue, tritiya svapna mem eka vichitra ramga ki pamkhom vale maha pumskokila ko dekhakara jagrita hue, chauthe svapna mem – sarva ratnamaya moti malaom ki eka jori ko dekhakara jagrita hue, pamchave svapna mem shveta gayom ke eka samuha ko dekhakara jagrita hue, chhathe svapna mem kamala phulom se achchhadita eka mahana padma sarovara ko dekhakara jagrita hue, satave svapna mem – eka sahastra taramgi mahasagara ko apani bhujaom se tira hua janakara jagrita hue athave svapna mem eka mahana tejasvi surya ko dekhakara jagrita hue. Nauve svapna mem eka mahana manushottara parvata ko vaiduryamani varna vali apani amtom se pariveshtita dekhakara jagrita hue. Dasave svapna mem mahana meru parvata ki chulika para svayam ko simhasanastha dekhakara jagrita hue. Prathama svapna mem tala pishacha ko parajita dekhane ka artha yaha hai ki – bhagavana mahavira ne mohaniya karma ko samula nashta kara diya. Dvitiya svapna mem shveta pamkhom vale pumskokila ko dekhane ka artha yaha hai ki bhagavana mahavira shukla dhyana mem ramana kara rahe the. Tritiya svapna mem vichitra ramga ki pankhom vale pumskokila ko dekhane ka artha yaha hai ki bhagavana mahavira ne svasamaya aura parasamaya ke pratipadana se chitravichitra dvadashangarupa ganipitaka ka samanya kathana kiya, vishesha kathana kiya, prarupana kiya, yuktipurvaka kriyaom ke svarupa ka darshana nidarshana kiya. Yatha – acharanga yavat drishtivada. Chaturtha svapna mem sarva ratnamaya mala yugala ko dekhane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ne do prakara ka dharma kaha – yatha – agara dharma aura anagara dharma. Pamchave svapna mem shveta go – varga ko dekhane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ke chara prakara ka samgha tha. Shramana, shramaniyam, shravaka, shravikaem. Chhathe svapna mem padma sarovara ko dekhane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ne chara prakara ke devom ka pratipadana kiya. Yatha – 1. Bhavanapati, 2. Vanavyantara, 3. Jyotishka, 4. Vaimanika. Satave svapna mem sahasrataramgi sagara ko bhujaom se tirane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ne anadi ananta dirgha marga vali gati rupa vikata bhavatavi ko para kiya. Athave svapna mem tejasvi surya ko dekhane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira ko ananta jnyana, ananta darshana utpanna hua. Nauve svapna mem amtom se pariveshtita manushottara parvata ko dekhane ka artha yaha hai ki isa loka ke deva, manushya aura asurom mem shramana bhagavana mahavira ki kirti evam prashamsa isa prakara phaila rahi hai ki shramana bhagavana mahavira sarvajnya sarvadarshi sarvasamshayochchhedaka evam jagadvatsala haim. Dasave svapna mem chulika para svayam ko simhasanastha dekhane ka artha yaha hai ki shramana bhagavana mahavira deva, manushyom aura asurom ki parishada mem kevali prajnyapta dharma ka samanya se kathana karate haim yavat samasta nayom ko yuktipurvaka samajhate haim. |