Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002875 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-९ |
Translated Chapter : |
स्थान-९ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 875 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति । तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमनुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्वजीवाणं आगइं गतिं ठियं चयणं उववायं तक्कं मनोमानसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मनसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ तए णं से भगवं तेणं अनुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुआसुराइं लोगं अभिसमेच्चा समणाणं निग्गंथाणं स नेरइए जाव पंचमहव्वयाइं स भावनाइं छ जीवनिकाया धम्मं देसेमाणे विहरिस्सति {[पाठांतर] ‘से णं भयवं जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयाहिति तं चेव दिवसं सयमेयमेतारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हिहिति– जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिहिंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते सव्वे सम्मं ‘सहिस्सइ खमिस्सइ’ तितिक्खिस्सइ अहियास्सिसइ। तए णं से भगवं अनगारे भविस्सति– इरियासमिते भासासमिते एवं जहा वद्धमानसामी तं चेव नीरवसेसं जाव अव्वावारविउसजोगजुत्ते। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहिं संवच्छरेहिं वीतिक्कंतेहिं तेरसहि य पक्खेहिं तेरसमस्स णं संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अनुत्तरेणं नाणेणं जहा भावनाते केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति। जिने भविस्सति केवली सव्वननू सव्वदरिसी सनेरइय जाव पंच महव्वयाइं सभावनाइं छच्च जीवनिकाए धम्मं देसेमाणे विहरिस्सति। [इति पाठांतर]} से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं एगे आरंभठाणे पन्नत्ते। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं एगं आरंभठाणं पन्नवेहिति। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं दुविहे बंधणे पन्नत्ते, तं जहा–पेज्जबंधने य, दोसबंधने य। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं दुविहं बंधणं पन्नवेहिति, तं जहा–पेज्जबंधणं च, दोसबंधणं च। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं तओ दंडा पन्नत्ता, तं जहा–मनदंडे, वयदंडे, कायदंडे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं तओ दंडे पन्नवेहिति, तं जहा–मनोदंडं, वयदंडं, कायदंडं। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए, मानकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं चत्तारि कसाए पन्नवेहिति, तं जहा–कोहकसायं, मानकसायं, मायाकसायं, लोभकसायं। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं पंच कामगुणा पन्नत्ता, तं जहा– सद्दे, रूवे, गंधे, रसे फासे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं पंच कामगुणे पन्नवेहिति, तं जहा–सद्दं, रूवं, गंधं, रसं, फासं। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं छज्जीवणिकाया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। एवामेव महा-पउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं छज्जीवणिकाए पन्नवेहिति, तं जहा– पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए, तसकाइए। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं सत्त भयट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–इहलोगभए, परलोगभए, आदानभए, अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं सत्त भयट्ठाणे पन्नवेहिति, तं जहा–इहलोगभयं परलोगभयं आदानभयं अकम्हाभयं वेयणभयं मरणभयं असिलोगभयं। एवं अट्ठ मयट्ठाणे, नव बंभचेरगुत्तीओ, दसविधे समणधम्मे, एवं जाव तेत्तीसमासातणाउत्ति। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्ध- वित्तीओ पन्नत्ताओ। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं नग्गभावं मुंडभावं अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अनुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं कट्ठसेज्जं केसलोयं बंभचेरवासं परघरपवेसं लद्धावलद्धवित्ती पन्नवेहिति। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मीसज्जाएति वा अज्झोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसट्ठे अभिहडेति वा कंतारभत्तेति वा दुब्भिक्खभत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तेति वा पाहुणभत्तेति वा दुब्भिक्खभत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तेति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति वा फलभोयणेति वा बीयभोयणेति वा हरियभोयणेति वा पडिसिद्धे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं आधाकम्मियं वा उद्देसियं वा मीसज्जायं वा अज्झोयरयं वा पूतियं कीतं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलए धम्मे पन्नत्ते। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहव्वतियं सपडिक्कमणं अचेलगं धम्मं पन्नवेहिति। से जहानामए अज्जो! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिक्खावतिए–दुवालसविधे सावगधम्मे पन्नत्ते। एवामेव महा पउमेवि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुव्वतियं सत्तसिक्खावतियं–दुवालसविधं सावगधम्मं पन्नवेस्सति। से जहानामए अज्जो! मए समणाणं निग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति वा रायपिंडेति वा पडि-सिद्धे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं सेज्जातरपिंडं वा रायपिंडं वा पडिसेहिस्सति। से जहानामए अज्जो! मम नव गणा एगारस गणधरा। एवामेव महापउमस्सवि अरहतो नव गणा एगारस गणधरा भविस्संति। से जहानामए अज्जो! अह तीसं वासाइं अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, दुवालय संवच्छराइं तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं बुज्झिस्सं मुच्चिस्सं परिनिव्वाइस्सं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं। एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाइं अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वाहिती, दुवालस संवच्छराइं तेरसपक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बालायीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती बुज्झिहिती मुच्चिहिती परिनिव्वाइहिती सव्व-दुक्खाणमंतं काहिती– | ||
Sutra Meaning : | उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा – अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक। ये अण्डज – हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज – हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक – मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं। ये प्रग्रहिक – पात्र आदि मेरे हैं। ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस – जिस दिशा में विचरना चाहेंगे उस – उस दिशा में स्वेच्छापूर्वक शुद्ध भाव से, गर्वरहित तथा सर्वथा ममत्व रहित होकर संयम से आत्मा को पवित्र करते हुए विचरेंगे। उन विमलवाहन भगवान को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वसति और विहार की उत्कृष्ट आराधना करने से सरलता, मृदुता, लघुता, क्षमा, निर्लोभता, मन, वचन, काया की गुप्ति, सत्य, संयम, तप, शौच और निर्वाण मार्ग की विवेकपूर्वक आराधना करने से शुक्ल – ध्यान ध्याते हुए अनन्त, सर्वोत्कृष्ट बाधा रहित यावत् – केवल ज्ञान – दर्शन उत्पन्न होगा तब वे भगवान अर्हन्त एवं जिन होंगे। केवलज्ञान – दर्शन से वे देव, मनुष्यों एवं असुरों से परिपूर्ण लोक के समस्त पर्यायों को देखेंगे। सम्पूर्ण लोक के सभी जीवों की आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, तर्क, मानसिक भाव, मुक्त, कृत, सेवित प्रगट कर्मों और गुप्त कर्मों को जानेंगे अर्थात् उनसे कोई कार्य छिपा नहीं रहेगा। वे पूज्य भगवान सम्पूर्ण लोक में उस समय के मन, वचन और कायिक योग में वर्तमान सर्व जीवों के सर्व भावों को देखते हुए विचरेंगे। उस समय वे भगवान केवलज्ञान, केवल दर्शन से समस्त लोक को जानकर श्रमण निर्ग्रन्थों के पच्चीस भावना सहित पाँच महाव्रतों का तथा छ जीवनिकाय धर्म का उपदेश देंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहा है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहेंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहे हैं उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहेंगे, यथा – राग बन्धन और द्वेष बन्धन। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहे हैं, उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहेंगे, यथा – मनदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड। इस प्रकार चार कषाय, पाँच कामगुण, छ जीवनिकाय, सात भयस्थान, आठ मदस्थान, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति, दश श्रमणधर्म यावत् तैंतीस आशातना पर्यन्त कहें। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का नग्नभाव, मुण्डभाव, अस्नान, अदन्तधावन, छत्ररहित रहना जूते न पहनना, भू – शय्या, फलक शय्या, काष्ठ शय्या, केश लोच, ब्रह्मचर्य पालन, गृहस्थ के घर से आहार आदि लेना, मान – अपमान में समान रहना आदि की प्ररूपणा करेंगे। हे आर्यो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों को आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूर्वक, पूतिक, क्रीत, अप – मित्यक, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वछलिका भक्त, प्राधूर्णक, मूल – भोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन, हरितभोजन लेने का निषेध किया है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों को आधा कर्म यावत् – हरित भोजन लेने का निषेध करेंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का प्रतिक्रमण सहित पंच महाव्रत अचेलक धर्म कहा है इसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों का प्रतिक्रमण सहित यावत् अचेलक धर्म कहेंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक धर्म कहा है, उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी पाँच अणुव्रत यावत् श्रावक धर्म कहेंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों को शय्यातर पिंड और राजपिंड लेने का निषेध किया है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों को शय्यातर पिंड और राजपिंड लेने का निषेध करेंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मेरे नौ गण और इग्यारह गणधर हैं, उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त के भी नौ गण और इग्यारह गणधर होंगे। हे आर्यो ! जिस प्रकार मैं तीस वर्ष गृहस्थ पर्याय में रहकर मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुआ, बारह वर्ष और तेरह पक्ष न्यून तीस वर्ष का केवली पर्याय, बयालीस वर्ष का श्रमण पर्याय और बहत्तर वर्ष का पूर्णायु भोगकर सिद्ध होऊंग यावत् सब दुःखों का अन्त करूँगा इसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी तीस वर्ष गृहस्थावास में रहकर यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] natthi nam tassa bhagavamtassa katthai padibamdhe bhavissai, se ya padibamdhe chauvvihe pannatta tam jaha- amdaei va poyaei va uggahei va paggahiei va, jam nam jam nam disam ichchhai tam nam tam nam disam apadibaddhe suchibhue lahubhue anappagamthe samjamenam appanam bhavemane viharissai, Tassa nam bhagavamtassa anuttarenam nanenam anuttarenam damsanenam anuttarenam charittenam evam alaenam viharenam ajjavenam maddavenam laghavenam khamttie muttie guttie sachcha samjama tava guna suchariya soya chiya phala-parinivvanamaggenam appanam bhavemanassa jhanamtariyae vattamanassa anamte anuttare nivvaghae niravarane kasine padipunne kevalavarananadamsane samuppajihiti. Tae nam se bhagavam arahe jine bhavissati kevali savvannu savvadarisi sadevamanuasurassa logassa pariyagam janai pasai savvaloe savvajivanam agaim gatim thiyam chayanam uvavayam takkam manomanasiyam bhuttam kadam pariseviyam avikammam rahokammam araha arahassa bhagi tam tam kalam manasavayasakaie joge vattamananam savvaloe savvajivanam savvabhave janamane pasamane viharissai Tae nam se bhagavam tenam anuttarenam kevalavarananadamsanenam sadevamanuasuraim logam abhisamechcha samananam niggamthanam sa neraie java pamchamahavvayaim sa bhavanaim chha jivanikaya dhammam desemane viharissati {[pathamtara] ‘se nam bhayavam jam cheva divasam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayahiti tam cheva divasam sayameyametaruvam abhiggaham abhiginhihiti– je kei uvasagga uppajjihimti, tam jaha– divva va manusa va tirikkhajoniya va te savve sammam ‘sahissai khamissai’ titikkhissai ahiyassisai. Tae nam se bhagavam anagare bhavissati– iriyasamite bhasasamite evam jaha vaddhamanasami tam cheva niravasesam java avvavaraviusajogajutte. Tassa nam bhagavamtassa etenam viharenam viharamanassa duvalasahim samvachchharehim vitikkamtehim terasahi ya pakkhehim terasamassa nam samvachchharassa amtara vattamanassa anuttarenam nanenam jaha bhavanate kevalavarananadamsane samuppajihiti. Jine bhavissati kevali savvananu savvadarisi saneraiya java pamcha mahavvayaim sabhavanaim chhachcha jivanikae dhammam desemane viharissati. [iti pathamtara]} Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam ege arambhathane pannatte. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam egam arambhathanam pannavehiti. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam duvihe bamdhane pannatte, tam jaha–pejjabamdhane ya, dosabamdhane ya. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam duviham bamdhanam pannavehiti, tam jaha–pejjabamdhanam cha, dosabamdhanam cha. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam tao damda pannatta, tam jaha–manadamde, vayadamde, kayadamde. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam tao damde pannavehiti, tam jaha–manodamdam, vayadamdam, kayadamdam. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam chattari kasaya pannatta, tam jaha–kohakasae, manakasae, mayakasae, lobhakasae. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam chattari kasae pannavehiti, tam jaha–kohakasayam, manakasayam, mayakasayam, lobhakasayam. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam pamcha kamaguna pannatta, tam jaha– sadde, ruve, gamdhe, rase phase. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam pamcha kamagune pannavehiti, tam jaha–saddam, ruvam, gamdham, rasam, phasam. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam chhajjivanikaya pannatta, tam jaha–pudhavikaiya, aukaiya, teukaiya, vaukaiya, vanassaikaiya, tasakaiya. Evameva maha-paumevi araha samananam niggamthanam chhajjivanikae pannavehiti, tam jaha– pudhavikaie, aukaie, teukaie, vaukaie, vanassaikaie, tasakaie. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam satta bhayatthana pannatta, tam jaha–ihalogabhae, paralogabhae, adanabhae, akamhabhae, veyanabhae, maranabhae, asilogabhae. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam satta bhayatthane pannavehiti, tam jaha–ihalogabhayam paralogabhayam adanabhayam akamhabhayam veyanabhayam maranabhayam asilogabhayam. Evam attha mayatthane, nava bambhacheraguttio, dasavidhe samanadhamme, evam java tettisamasatanautti. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam naggabhave mumdabhave anhanae adamtavanae achchhattae anuvahanae bhumisejja phalagasejja katthasejja kesaloe bambhacheravase paragharapavese laddhavaladdha- vittio pannattao. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam naggabhavam mumdabhavam anhanayam adamtavanayam achchhattayam anuvahanayam bhumisejjam phalagasejjam katthasejjam kesaloyam bambhacheravasam paragharapavesam laddhavaladdhavitti pannavehiti. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam adhakammieti va uddesieti va misajjaeti va ajjhoyaraeti va putie kite pamichche achchhejje anisatthe abhihadeti va kamtarabhatteti va dubbhikkhabhatteti va gilanabhatteti va vaddaliyabhatteti va pahunabhatteti va dubbhikkhabhatteti va gilanabhatteti va vaddaliyabhatteti va pahunabhatteti va mulabhoyaneti va kamdabhoyaneti va phalabhoyaneti va biyabhoyaneti va hariyabhoyaneti va padisiddhe. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam adhakammiyam va uddesiyam va misajjayam va ajjhoyarayam va putiyam kitam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam va kamtarabhattam va dubbhikkhabhattam va gilanabhattam va vaddaliyabhattam va pahunabhattam va mulabhoyanam va kamdabhoyanam va phalabhoyanam va biyabhoyanam va haritabhoyanam va padisehissati. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam pamchamahavvatie sapadikkamane achelae dhamme pannatte. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam pamchamahavvatiyam sapadikkamanam achelagam dhammam pannavehiti. Se jahanamae ajjo! Mae samanovasaganam pamchanuvvatie sattasikkhavatie–duvalasavidhe savagadhamme pannatte. Evameva maha paumevi araha samanovasaganam pamchanuvvatiyam sattasikkhavatiyam–duvalasavidham savagadhammam pannavessati. Se jahanamae ajjo! Mae samananam niggamthanam sejjatarapimdeti va rayapimdeti va padi-siddhe. Evameva mahapaumevi araha samananam niggamthanam sejjatarapimdam va rayapimdam va padisehissati. Se jahanamae ajjo! Mama nava gana egarasa ganadhara. Evameva mahapaumassavi arahato nava gana egarasa ganadhara bhavissamti. Se jahanamae ajjo! Aha tisam vasaim agaravasamajjhe vasitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, duvalaya samvachchharaim terasa pakkha chhaumatthapariyagam paunitta terasahim pakkhehim unagaim tisam vasaim kevalipariyagam paunitta, bayalisam vasaim samannapariyagam paunitta, bavattarivasaim savvauyam palaitta sijjhissam bujjhissam muchchissam parinivvaissam savvadukkhanamamtam karessam. Evameva mahapaumevi araha tisam vasaim agaravasamajjhe vasitta mumde bhavitta agarao anagariyam pavvahiti, duvalasa samvachchharaim terasapakkha chhaumatthapariyagam paunitta, terasahim pakkhehim unagaim tisam vasaim kevalipariyagam paunitta, balayisam vasaim samannapariyagam paunitta, bavattarivasaim savvauyam palaitta sijjhihiti bujjhihiti muchchihiti parinivvaihiti savva-dukkhanamamtam kahiti– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Una vimalavahana bhagavana ka kisi mem pratibamdha (mamatva) nahim hoga. Pratibamdha chara prakara ke haim, yatha – andaja, potaja, avagrahika, pragrahika. Ye andaja – hamsa adi mere haim, ye potaja – hathi adi mere haim, ye avagrahika – makana, pata, phalaka adi mere haim. Ye pragrahika – patra adi mere haim. Aisa mamatvabhava nahim hoga. Ve vimalavahana bhagavana jisa – jisa disha mem vicharana chahemge usa – usa disha mem svechchhapurvaka shuddha bhava se, garvarahita tatha sarvatha mamatva rahita hokara samyama se atma ko pavitra karate hue vicharemge. Una vimalavahana bhagavana ko jnyana, darshana, charitra, vasati aura vihara ki utkrishta aradhana karane se saralata, mriduta, laghuta, kshama, nirlobhata, mana, vachana, kaya ki gupti, satya, samyama, tapa, shaucha aura nirvana marga ki vivekapurvaka aradhana karane se shukla – dhyana dhyate hue ananta, sarvotkrishta badha rahita yavat – kevala jnyana – darshana utpanna hoga taba ve bhagavana arhanta evam jina homge. Kevalajnyana – darshana se ve deva, manushyom evam asurom se paripurna loka ke samasta paryayom ko dekhemge. Sampurna loka ke sabhi jivom ki agati, gati, sthiti, chyavana, upapata, tarka, manasika bhava, mukta, krita, sevita pragata karmom aura gupta karmom ko janemge arthat unase koi karya chhipa nahim rahega. Ve pujya bhagavana sampurna loka mem usa samaya ke mana, vachana aura kayika yoga mem vartamana sarva jivom ke sarva bhavom ko dekhate hue vicharemge. Usa samaya ve bhagavana kevalajnyana, kevala darshana se samasta loka ko janakara shramana nirgranthom ke pachchisa bhavana sahita pamcha mahavratom ka tatha chha jivanikaya dharma ka upadesha demge. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ka eka arambha sthana kaha hai usi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ka eka arambha sthana kahemge. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ke do bandhana kahe haim usi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ke do bandhana kahemge, yatha – raga bandhana aura dvesha bandhana. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ke tina danda kahe haim, usi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ke tina danda kahemge, yatha – manadanda, vachanadanda aura kayadanda. Isa prakara chara kashaya, pamcha kamaguna, chha jivanikaya, sata bhayasthana, atha madasthana, nau brahmacharya gupti, dasha shramanadharma yavat taimtisa ashatana paryanta kahem. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ka nagnabhava, mundabhava, asnana, adantadhavana, chhatrarahita rahana jute na pahanana, bhu – shayya, phalaka shayya, kashtha shayya, kesha locha, brahmacharya palana, grihastha ke ghara se ahara adi lena, mana – apamana mem samana rahana adi ki prarupana karemge. He aryo ! Maimne shramana nirgranthom ko adhakarma, auddeshika, mishrajata, adhyavapurvaka, putika, krita, apa – mityaka, achchhedya, anisrishta, abhyahrita, kantarabhakta, durbhikshabhakta, glanabhakta, vachhalika bhakta, pradhurnaka, mula – bhojana, kandabhojana, phalabhojana, bijabhojana, haritabhojana lene ka nishedha kiya hai usi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ko adha karma yavat – harita bhojana lene ka nishedha karemge. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ka pratikramana sahita pamcha mahavrata achelaka dharma kaha hai isi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ka pratikramana sahita yavat achelaka dharma kahemge. He aryo ! Jisa prakara maimne pamcha anuvrata aura sata shikshavrata rupa baraha prakara ka shravaka dharma kaha hai, usi prakara mahapadma arhanta bhi pamcha anuvrata yavat shravaka dharma kahemge. He aryo ! Jisa prakara maimne shramana nirgranthom ko shayyatara pimda aura rajapimda lene ka nishedha kiya hai usi prakara mahapadma arhanta bhi shramana nirgranthom ko shayyatara pimda aura rajapimda lene ka nishedha karemge. He aryo ! Jisa prakara mere nau gana aura igyaraha ganadhara haim, usi prakara mahapadma arhanta ke bhi nau gana aura igyaraha ganadhara homge. He aryo ! Jisa prakara maim tisa varsha grihastha paryaya mem rahakara mundita yavat pravrajita hua, baraha varsha aura teraha paksha nyuna tisa varsha ka kevali paryaya, bayalisa varsha ka shramana paryaya aura bahattara varsha ka purnayu bhogakara siddha houmga yavat saba duhkhom ka anta karumga isi prakara mahapadma arhanta bhi tisa varsha grihasthavasa mem rahakara yavat saba duhkhom ka anta karemge. |