Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002702 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-८ |
Translated Chapter : |
स्थान-८ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 702 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिव-ज्जेज्जा, तं जहा– करिंसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविनए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा– १. मायिस्स णं अस्सिं लोए गरहिते भवति। २. उववाए गरहिते भवति। ३. आयाती गरहिता भवति। ४. एगमवि मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा, नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, नत्थि तस्स आराहणा। ५. एगमवि मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा। ६. बहुओवि मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा, नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, नत्थि तस्स आराहणा। ७. बहुओवि मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा। ८. आयरिय-उवज्झायस्स वा मे अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा, से यं मममालोएज्जा मायी णं एसे। मायी णं मायं कट्टु से जहानामए अयागरेति वा तंबागरेति वा तउआगरेति वा सीसागरेति वा रुप्पागरेति वा सुवण्णागरेति वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा बुसागणीति वा नलागणीति वा दलागणीति वा सोंडियालिंछाणि वा भंडियालिंछाणि वा गोलियालिंछाणि वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुआवाएति वा इट्टावाएति वा जंतवाडचुल्लीति वा लोहारंबरिसाणि वा। तत्ताणि समजोतिभूताणि किंसुकफुल्लसमाणाणि उक्कासहस्साइं विनिम्मुयमाणाइं-विनिम्मुयमाणाइं, जालासहस्साइं पमुंचमाणाइं-पमुंचमाणाइं इंगालसहस्साइं पविक्खिरमाणाइं-पविक्खिरमाणाइं, अंतो-अंतो ज्झियायंति, एवामेव मायी मायं कट्टु अंतो-अंतो ज्झियाइ। जंवि य णं अन्ने केइ वदंति तंपि य णं मायी जाणति अहमेसे ‘अभिसंकिज्जामि-अभिसंकिज्जामि’। ‘मायी णं मायं कट्टु’ अनालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अन्नतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए ‘उववत्तारो भवंति’, तं जहा–नो महिड्ढिएसु नो महज्जुइएसु नो महाणुभागेसु नो महायसेसु नो महाबलेसु नो महासोक्खेसु नो दूरंगतिएसु नो चिरट्ठितिएसु। से णं तत्थ देवे भवति नो महिड्ढिए नो महज्जुइए नो महाणुभागे नो महायसे नो महाबले नो महासोक्खे नो दूरंगतिए नो चिरट्ठितिए। जावि य से तत्थ बाहिरब्भंतरिया परिसा भवति, सावि य णं नो आढाति नो परिजाणाति नो महरिहेणं आसणेणं उवनिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुट्ठंति– मा बहुं देवे! भासउ-भासउ। से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव मानुस्सए भवे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति, तं जहा–अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा किवणकुलाणि वा, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति। से णं तत्थ पुमे भवति दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अनिट्ठे अकंते अप्पिए अमणुन्ने अमनामे हीनस्सरे दीनस्सरे अनिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अपियस्सरे अमणुन्नस्सरे अमनामस्सरे अनाएज्जवयणे पच्चायाते। जावि य से तत्थ बाहिरब्भंतरिया परिसा भवति, सावि य णं नो आढाति नो परिजाणाति नो महरिहेणं आसणेणं उवनिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव अब्भुट्ठंति– मा बहुं अज्जउत्तो! भासउ-भासउ। मायी णं मायं कट्टु आलोचित-पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अन्नतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा– महिड्ढिएसु महज्जुइएसु महाणुभागेसु महायसेसु महाबलेसु महासोक्खेसु दूरगंतिएसु चिरट्ठितिएसु। से णं तत्थ देवे भवति महिड्ढिए महज्जुइए महानुभागे महायसे महाबले महासोक्खे दूरंगतिए चिरट्ठितिए हार-विराइय-वच्छे कडक-तुडित-थंभित-भुए अंगद -कुंडल-मट्ठ-गंडतल-कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणे विचित्तवत्थाभरणे विचित्तमालामउली कल्लाणग-पवर-वत्थ-परिहिते कल्ला-णग-‘पवर-गंध-मल्लानुलेवणधरे’ भासुरबोंदी पलंबवण-मालधरे दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रसेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघातेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे महयाहत-नट्ठ-गीत-वादित-तंती-तल-ताल-तुडित-घण-मुइंग-पडुप्पवादित -रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाने विहरइ। जावि य से तत्थ बाहिरब्भंतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाइ परिजाणाति महरिहेणं आसनेणं उवनिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुट्ठंति– बहुं देवे! भासउ-भासउ। से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव मानुस्सए भवे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विच्छिन्न-विउल-भवन-सयनासन-जाण-वाहणाइं ‘बहुधन-बहुजायरूव-रययाइं’ आओगपओग-संपउत्ताइं विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणाइं बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलय-प्पभूयाइं बहुजणस्स अपरिभूताइं, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति। से णं तत्थ पुमे भवति सुरूवे सुवण्णे सुगंधे सुरसे सुफासे इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे अहीनस्सरे अदीनस्सरे इट्ठस्सरे कंतस्सरे पियस्सरे मणुन्नस्सरे मनामस्सरे आदेज्जवयणे पच्चायाते। जावि य से तत्थ बाहिरब्भंतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाति परिजाणाति महरिहेणं आसनेणं उवनिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव अब्भुट्ठंति–बहुं अज्जउत्ते! भासउ-भासउ। | ||
Sutra Meaning : | आठ कारणों से मायावी माया करके न आलोयणा करता है, न प्रतिक्रमण करता है, यावत् – न प्रायश्चित्त स्वीकारता है, यथा – मैंने पापकर्म किया है अब मैं उस पाप की निन्दा कैसे करूँ ? मैं वर्तमान में भी पाप करता हूँ अतः मैं पाप की आलोचना कैसे करूँ ? मैं भविष्य में भी यह पाप करूँगा – अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? मेरी अपकीर्ति होगी अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? मेरा अपयश होगा अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? पूजा प्रतिष्ठा की हानि होगी अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? कीर्ति की हानि होगी अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? मेरे यश की हानि होगी अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? आठ कारणों से मायावी माया करके आलोयणा करता है – यावत् प्रायश्चित्त स्वीकार करता है, यथा – मायावी का यह लोक निन्दनीय होता है अतः मैं आलोचना करूँ। उपपात निन्दित होता है। भविष्य का जन्म निन्दनीय होता है। एक वक्त माया करे आलोचना न करे तो आराधक नहीं होता है। एक वक्त माया करके आलोचना करे तो आराधक होता है। अनेक बार माया करके आलचना न करे तो आराधक नहीं होता है। अनेक बार माया करके भी आलोचना करे तो आराधक होता है। मेरे आचार्य और उपाध्याय विशिष्ट ज्ञान वाले हैं, वे जानेंगे की ‘‘यह मायावी है’’ अतः मैं आलोचना करूँ – यावत् प्रायश्चित्त स्वीकार करूँ। माया करने पर मायावी का हृदय किस प्रकार पश्चात्ताप से दग्ध होता रहता है – यह यहाँ पर उपमा द्वारा बताया गया है। जिस प्रकार लोहा, ताँबा, कलई, शीशा, रूपा और सोना गलाने की भट्ठी, तिल, तुस, भूसा, नल और पत्तों की अग्नि। दारु बनाने की भट्ठी, मिट्टी के बरतन, गोले, कवेलु, ईंटे आदि पकाने का स्थान, गुड़ पकाने की भट्ठी और लुहार की भट्ठी में शूले के फूल और उल्कापात जैसे जाज्वल्यमान, हजारों चिनगारियाँ जिनसे उछल रही है ऐसे अंगारों के समान मायावी का हृदय पश्चात्ताप रूप अग्नि से निरन्तर जलता रहता है। मायावी को सदा ऐसी आशंका बनी रहती है कि ये सब लोग मेरे पर ही शंका करते हैं। मायावी माया करके आलोचना किये बिना यदि मरता है और देवों में उत्पन्न होता है तो वह महर्द्धिक देवों में यावत् सौधर्मादि देवलोकोंमें उत्पन्न नहीं होता है। उत्कृष्ट स्थिति वाले देवों में भी वह उत्पन्न नहीं होता है। उस देव की बाह्य या आभ्यन्तर परीषद् भी उसके सामने आती है लेकिन परीषद् के देव उस देव का आदर समादर नहीं करते हैं, तथा उसे आसन भी नहीं देते हैं। वह यदि किसी देव को कुछ कहता है तो चार पाँच देव उसके सामने आकर उसका अपमान करते हैं और कहते हैं कि बस अब अधिक कुछ न कहो। जो कुछ कहा यही बहुत है। आयु पूर्ण होने पर वह देव वहाँ से च्यवकर मनुष्यलोकमें हलके कुलोंमें उत्पन्न होता है। यथा – अन्त कुल, प्रांत कुल, तुच्छ कुल, दरिद्र कुल, भिक्षुक कुल, कृपण कुल आदि। इन कुलोंमें भी वह कुरूप, कुवर्ण, कुगन्ध, कुरस, कुस्पर्शवाला होता है। अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, हीनस्वर, दीनस्वर, अनिष्टस्वर, अकान्तस्वर, अप्रियस्वर, अमनोज्ञस्वर, अमनामस्वर और अनादेय वचन वाला वह होता है। उसके आसपास के लोग भी उसका आदर नहीं करते हैं। वह कुछ किसी को उपालम्भ देने लगता है तो उसे चार पाँच जने मिल कर रोकते हैं और कहने लगते हैं कि बस अब कुछ न कहो। किन्तु मायावी माया करने पर यदि आलोचना करके मरे तो वह ऋद्धिमान तथा उत्कृष्ट स्थिति वाला देव होता है, हार से उसका वक्षःस्थल सुशोभित होता है, हाथ में कंकण तथा मस्तक पर मुकुट आदि अनेक प्रकार के आभूषणों से वह सुन्दर शरीर से दैदीप्यमान होता है, वह दिव्य भोगोपभोगों को भोगता है। वह कुछ कहने लगता है तो उसे चार पाँच देव आकर उत्साहित करते हैं और कहने लगते हैं कि आप खूब बोले। वह देव देवलोक से च्यवकर मनुष्य लोक में उच्च कुलों में उत्पन्न होता है तो उसे सुन्दर शरीर प्राप्त होता है, आस – पास के लोग उसका बहुत आदर करते हैं तथा बोलने के लिए आग्रह करते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] atthahim thanehim mayi mayam kattu no aloejja, no padikkamejja, no nimdejja no garihejja, no viuttejja, no visohejja, no akaranayae abbhutthejja, no ahariham payachchhittam tavokammam padiva-jjejja, tam jaha– karimsu vaham, karemi vaham, karissami vaham, akitti va me siya, avanne va me siya, avinae va me siya, kitti va me parihaissai, jase va me parihaissai Atthahim thanehim mayi mayam kattu aloejja, padikkamejja, nimdejja, garihejja, viuttejja, visohejja, akaranayae abbhutthejja, ahariham payachchhittam tavokammam padivajjejja, tam jaha– 1. Mayissa nam assim loe garahite bhavati. 2. Uvavae garahite bhavati. 3. Ayati garahita bhavati. 4. Egamavi mayi mayam kattu no aloejja, no padikkamejja, no nimdejja, no garihejja, no viuttejja, no visohejja, no akaranayae abbhutthejja, no ahariham payachchhittam tavokammam padivajjejja, natthi tassa arahana. 5. Egamavi mayi mayam kattu aloejja, padikkamejja, nimdejja, garihejja, viuttejja, visohejja, akaranayae abbhutthejja, ahariham payachchhittam tavokammam padivajjejja, atthi tassa arahana. 6. Bahuovi mayi mayam kattu no aloejja, no padikkamejja, no nimdejja, no garihejja, no viuttejja, no visohejja, no akaranae abbhutthejja, no ahariham payachchhittam tavokammam padivajjejja, natthi tassa arahana. 7. Bahuovi mayi mayam kattu aloejja, padikkamejja, nimdejja, garihejja, viuttejja, visohejja, akaranayae abbhutthejja, ahariham payachchhittam tavokammam padivajjejja, atthi tassa arahana. 8. Ayariya-uvajjhayassa va me atisese nanadamsane samuppajjejja, se yam mamamaloejja mayi nam ese. Mayi nam mayam kattu se jahanamae ayagareti va tambagareti va tauagareti va sisagareti va ruppagareti va suvannagareti va tilaganiti va tusaganiti va busaganiti va nalaganiti va dalaganiti va somdiyalimchhani va bhamdiyalimchhani va goliyalimchhani va kumbharavaeti va kavelluavaeti va ittavaeti va jamtavadachulliti va loharambarisani va. Tattani samajotibhutani kimsukaphullasamanani ukkasahassaim vinimmuyamanaim-vinimmuyamanaim, jalasahassaim pamumchamanaim-pamumchamanaim imgalasahassaim pavikkhiramanaim-pavikkhiramanaim, amto-amto jjhiyayamti, evameva mayi mayam kattu amto-amto jjhiyai. Jamvi ya nam anne kei vadamti tampi ya nam mayi janati ahamese ‘abhisamkijjami-abhisamkijjami’. ‘mayi nam mayam kattu’ analoiyapadikkamte kalamase kalam kichcha annataresu devalogesu devattae ‘uvavattaro bhavamti’, tam jaha–no mahiddhiesu no mahajjuiesu no mahanubhagesu no mahayasesu no mahabalesu no mahasokkhesu no duramgatiesu no chiratthitiesu. Se nam tattha deve bhavati no mahiddhie no mahajjuie no mahanubhage no mahayase no mahabale no mahasokkhe no duramgatie no chiratthitie. Javi ya se tattha bahirabbhamtariya parisa bhavati, savi ya nam no adhati no parijanati no maharihenam asanenam uvanimamteti, bhasampi ya se bhasamanassa java chattari pamcha deva anutta cheva abbhutthamti– ma bahum deve! Bhasau-bhasau. Se nam tato devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thitikkhaenam anamtaram chayam chaitta iheva manussae bhave jaim imaim kulaim bhavamti, tam jaha–amtakulani va pamtakulani va tuchchhakulani va dariddakulani va bhikkhagakulani va kivanakulani va, tahappagaresu kulesu pumattae pachchayati. Se nam tattha pume bhavati duruve duvanne duggamdhe durase duphase anitthe akamte appie amanunne amaname hinassare dinassare anitthassare akamtassare apiyassare amanunnassare amanamassare anaejjavayane pachchayate. Javi ya se tattha bahirabbhamtariya parisa bhavati, savi ya nam no adhati no parijanati no maharihenam asanenam uvanimamteti, bhasampi ya se bhasamanassa java chattari pamcha jana anutta cheva abbhutthamti– ma bahum ajjautto! Bhasau-bhasau. Mayi nam mayam kattu alochita-padikkamte kalamase kalam kichcha annataresu devalogesu devattae uvavattaro bhavamti, tam jaha– mahiddhiesu mahajjuiesu mahanubhagesu mahayasesu mahabalesu mahasokkhesu duragamtiesu chiratthitiesu. Se nam tattha deve bhavati mahiddhie mahajjuie mahanubhage mahayase mahabale mahasokkhe duramgatie chiratthitie hara-viraiya-vachchhe kadaka-tudita-thambhita-bhue amgada -kumdala-mattha-gamdatala-kannapidhadhari vichittahatthabharane vichittavatthabharane vichittamalamauli kallanaga-pavara-vattha-parihite kalla-naga-‘pavara-gamdha-mallanulevanadhare’ bhasurabomdi palambavana-maladhare divvenam vannenam divvenam gamdhenam divvenam rasenam divvenam phasenam divvenam samghatenam divvenam samthanenam divvae iddhie divvae juie divvae pabhae divvae chhayae divvae achchie divvenam teenam divvae lessae dasa disao ujjovemane pabhasemane mahayahata-nattha-gita-vadita-tamti-tala-tala-tudita-ghana-muimga-paduppavadita -ravenam divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Javi ya se tattha bahirabbhamtariya parisa bhavati, savi ya nam adhai parijanati maharihenam asanenam uvanimamteti, bhasampi ya se bhasamanassa java chattari pamcha deva anutta cheva abbhutthamti– bahum deve! Bhasau-bhasau. Se nam tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thitikkhaenam anamtaram chayam chaitta iheva manussae bhave jaim imaim kulaim bhavamti–addhaim dittaim vichchhinna-viula-bhavana-sayanasana-jana-vahanaim ‘bahudhana-bahujayaruva-rayayaim’ aogapaoga-sampauttaim vichchhaddiya-paura-bhattapanaim bahudasi-dasa-go-mahisa-gavelaya-ppabhuyaim bahujanassa aparibhutaim, tahappagaresu kulesu pumattae pachchayati. Se nam tattha pume bhavati suruve suvanne sugamdhe surase suphase itthe kamte pie manunne maname ahinassare adinassare itthassare kamtassare piyassare manunnassare manamassare adejjavayane pachchayate. Javi ya se tattha bahirabbhamtariya parisa bhavati, savi ya nam adhati parijanati maharihenam asanenam uvanimamteti, bhasampi ya se bhasamanassa java chattari pamcha jana anutta cheva abbhutthamti–bahum ajjautte! Bhasau-bhasau. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Atha karanom se mayavi maya karake na aloyana karata hai, na pratikramana karata hai, yavat – na prayashchitta svikarata hai, yatha – maimne papakarma kiya hai aba maim usa papa ki ninda kaise karum\? Maim vartamana mem bhi papa karata hum atah maim papa ki alochana kaise karum\? Maim bhavishya mem bhi yaha papa karumga – atah maim alochana kaise karum\? Meri apakirti hogi atah maim alochana kaise karum\? Mera apayasha hoga atah maim alochana kaise karum\? Puja pratishtha ki hani hogi atah maim alochana kaise karum\? Kirti ki hani hogi atah maim alochana kaise karum\? Mere yasha ki hani hogi atah maim alochana kaise karum\? Atha karanom se mayavi maya karake aloyana karata hai – yavat prayashchitta svikara karata hai, yatha – mayavi ka yaha loka nindaniya hota hai atah maim alochana karum. Upapata nindita hota hai. Bhavishya ka janma nindaniya hota hai. Eka vakta maya kare alochana na kare to aradhaka nahim hota hai. Eka vakta maya karake alochana kare to aradhaka hota hai. Aneka bara maya karake alachana na kare to aradhaka nahim hota hai. Aneka bara maya karake bhi alochana kare to aradhaka hota hai. Mere acharya aura upadhyaya vishishta jnyana vale haim, ve janemge ki ‘‘yaha mayavi hai’’ atah maim alochana karum – yavat prayashchitta svikara karum. Maya karane para mayavi ka hridaya kisa prakara pashchattapa se dagdha hota rahata hai – yaha yaham para upama dvara bataya gaya hai. Jisa prakara loha, tamba, kalai, shisha, rupa aura sona galane ki bhatthi, tila, tusa, bhusa, nala aura pattom ki agni. Daru banane ki bhatthi, mitti ke baratana, gole, kavelu, imte adi pakane ka sthana, gura pakane ki bhatthi aura luhara ki bhatthi mem shule ke phula aura ulkapata jaise jajvalyamana, hajarom chinagariyam jinase uchhala rahi hai aise amgarom ke samana mayavi ka hridaya pashchattapa rupa agni se nirantara jalata rahata hai. Mayavi ko sada aisi ashamka bani rahati hai ki ye saba loga mere para hi shamka karate haim. Mayavi maya karake alochana kiye bina yadi marata hai aura devom mem utpanna hota hai to vaha maharddhika devom mem yavat saudharmadi devalokommem utpanna nahim hota hai. Utkrishta sthiti vale devom mem bhi vaha utpanna nahim hota hai. Usa deva ki bahya ya abhyantara parishad bhi usake samane ati hai lekina parishad ke deva usa deva ka adara samadara nahim karate haim, tatha use asana bhi nahim dete haim. Vaha yadi kisi deva ko kuchha kahata hai to chara pamcha deva usake samane akara usaka apamana karate haim aura kahate haim ki basa aba adhika kuchha na kaho. Jo kuchha kaha yahi bahuta hai. Ayu purna hone para vaha deva vaham se chyavakara manushyalokamem halake kulommem utpanna hota hai. Yatha – anta kula, pramta kula, tuchchha kula, daridra kula, bhikshuka kula, kripana kula adi. Ina kulommem bhi vaha kurupa, kuvarna, kugandha, kurasa, kusparshavala hota hai. Anishta, akanta, apriya, amanojnya, hinasvara, dinasvara, anishtasvara, akantasvara, apriyasvara, amanojnyasvara, amanamasvara aura anadeya vachana vala vaha hota hai. Usake asapasa ke loga bhi usaka adara nahim karate haim. Vaha kuchha kisi ko upalambha dene lagata hai to use chara pamcha jane mila kara rokate haim aura kahane lagate haim ki basa aba kuchha na kaho. Kintu mayavi maya karane para yadi alochana karake mare to vaha riddhimana tatha utkrishta sthiti vala deva hota hai, hara se usaka vakshahsthala sushobhita hota hai, hatha mem kamkana tatha mastaka para mukuta adi aneka prakara ke abhushanom se vaha sundara sharira se daidipyamana hota hai, vaha divya bhogopabhogom ko bhogata hai. Vaha kuchha kahane lagata hai to use chara pamcha deva akara utsahita karate haim aura kahane lagate haim ki apa khuba bole. Vaha deva devaloka se chyavakara manushya loka mem uchcha kulom mem utpanna hota hai to use sundara sharira prapta hota hai, asa – pasa ke loga usaka bahuta adara karate haim tatha bolane ke lie agraha karate haim. |