Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1001644 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 644 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरे चउत्थे पुरिसजाते नियतिवाइए त्ति आहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा– आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं च णं एगइए सड्ढी भवति। कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु गमणाए। तत्थ अन्नतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते सुपन्नत्ते भवति। इह खलु दुवे पुरिसा भवंति–एगे पुरिसे किरियमाइक्खइ, एगे पुरिसे नोकिरियमाइक्खइ। जे य पुरिसे किरियमाइक्खइ, जे य पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ, दो वि ते पुरिसा तुल्ला एगट्ठा कारणमावण्णा। बाले पुन एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे। अहमंसि दुक्खामि वा सोयामि वा ‘जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा’, अहमेयमकासि। परो वा जं दुक्खइ वा सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पीडइ वा परितप्पइ वा, परो एयम-कासि। एवं से बाले सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे। मेहावी पुन एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे। अहमंसि दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा, नो अहं एयमकासि। परो वा जं दुक्खइ वा सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पीडइ वा परितप्पइ वा, नो परो एयमकासि। एवं से मेहावी सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे। [सूत्र] से बेमि–पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा जे तसथावरा पाणा ते एवं संघायमागच्छंति, ते एवं विप्परियायमावज्जंति, ते एवं विवेगमागच्छंति, ते एवं विहाणमागच्छंति, ते एवं संगइयंति उवेहाए। ते नो एयं विप्पडिवेदेंति, तं जहा–किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा निरए इ वा अनिरए इ वा। एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूव-रूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए। एवं ते अनारिया विप्पडिवण्णा [मामगं धम्मं पण्णवेंति?] । तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुय-क्खाते समणेति! वा माहणेति! वा। कामं खलु आउसो! तुमं पूययामो, तं जहा–असणेन वा पाणेन वा खाइमेन वा साइमेन वा वत्थेन वा पडिग्गहेन वा कंबलेन वा पायपुंछणेन वा। तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिंसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु। पुव्वामेव तेसिं णायं भवइ– समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्मं नो करिस्सामो समुट्ठाए। ते अप्पणा अप्पडिविरिया भवंति। सय माइयंति, अन्ने वि आइयावेंति, अन्नं पि आइयंतं समणुजाणंति। एवामेव ते इत्थि-कामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा। ते नो अप्पाणं समुच्छेदेंति नो परं समुच्छेदेंति, नो अन्नाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समुच्छेदेंति। पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता– इति ते नो हव्वाए नो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा। चउत्थे पुरिसजाते णियतिवाइए त्ति आहिए। इच्चेते चत्तारि पुरिसजाया नानापण्णा नानाछंदा ‘नानासीला नानादिट्ठी’ नानारुई नानारंभा नानाअज्झवसाणसंजुत्ता ‘पहीणा पुव्वसंजोगा’ आरियं मग्गं असंपत्ता इति ते नो हव्वाए नो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा। | ||
Sutra Meaning : | अब नियतिवादी नामक चौथे पुरुष का वर्णन किया गया है। इस मनुष्यलोक में पूर्वादि दिशाओं के वर्णन से यावत् प्रथम पुरुषोक्त पाठ के समान जानना। पूर्वोक्त राजा और उसके सभासदों में से कोई पुरुष धर्मश्रद्धालु होता है। उसे धर्मश्रद्धालु जान कर उसके निकट जाने का श्रमण और ब्राह्मण निश्चय करते हैं। यावत् वे उसके पास जाकर कहते हैं – ‘‘मैं आपको पूर्वपुरुषकथित और सुप्रज्ञप्त धर्म का उपदेश करता हूँ।’’ इस लोक में दो प्रकार के पुरुष होते हैं – एकपुरुष क्रिया का कथन करता है, दूसरा क्रिया का कथन नहीं करता। वे दोनों ही नियति के अधीन होने से समान हैं, तथा वे दोनों एक ही अर्थ वाले और एक ही कारण (नियतिवाद) को प्राप्त हैं। ये दोनों ही अज्ञानी हैं, अपने सुख दुःख के कारणभूत काल, कर्म तथा ईश्वर आदि को मानते हुए यह समझते हैं कि मैं जो कुछ भी दुःख पा रहा हूँ, शोक कर रहा हूँ, दुःख से आत्मनिन्दा कर रहा हूँ, या शारीरिक बल का नाश कर रहा हूँ, पीड़ा पा रहा हूँ, या संतप्त हो रहा हूँ, वह सब मेरे ही किये हुए कर्म हैं, तथा दूसरा जो दुःख पाता है, शोक करता है, आत्मनिन्दा करता है, शारीरिक बल का क्षय करता है, पीड़ित होता है या संतप्त होता है, वह सब उसके द्वारा किये हुए कर्म हैं। इस कारण वह अज्ञजीव स्वनिमित्तक तथा परनिमित्तक सुखदुःखादि को अपने तथा दूसरे के द्वारा कृत कर्मफल समझता है, परन्तु एकमात्र नियति को ही समस्त पदार्थों का कारण मानने वाला पुरुष तो यह समझता है कि ‘मैं जो कुछ दुःख भोगता हूँ, शोकमग्न होता हूँ या संतप्त होता हूँ, वे सब मेरे किये हुए कर्म नहीं है, तथा दूसरा पुरुष जो दुःख पाता है, शोक आदि से संतप्त – पीड़ित होता है, वह भी उसके द्वारा कृतकर्मों का फल नहीं है, इस प्रकार वह बुद्धिमान पुरुष अपने या दूसरे के निमित्त से प्राप्त हुए दुःख आदि को यों मानता है कि ये सब नियतिकृत हैं, किसी दूसरे के कारण से नहीं। अतः मैं कहता हूँ कि पूर्व आदि दिशाओं में रहने वाले जो त्रस एवं स्थावर प्राणी हैं, वे सब नियति के प्रभाव से ही औदारिक आदि शरीर की रचना को प्राप्त करते हैं, वे नियति के कारण ही बाल्य, युवा और वृद्ध अवस्था को प्राप्त करते हैं, वे नियतिवशात् ही शरीर से पृथक् होते हैं, काना, कुबड़ा आदि नाना प्रकार की दशाओं को प्राप्त करते हैं, नियति का आश्रय लेकर ही नाना प्रकार के सुख – दुःखों को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार नियति को ही समस्त अच्छे बूरे कार्यों का कारण मानने की कल्पना करके नियतिवादी आगे कही जाने वाली बातों को नहीं मानते – क्रिया, अक्रिया से लेकर प्रथम सूत्रोक्त नरक और नरक से अतिरिक्त गति तक के पदार्थ। इस प्रकार वे नियतिवाद के चक्र में पड़े हुए लोग नाना प्रकार के सावद्यकर्मों का अनुष्ठान करके कामभोगों का उपभोग करते हैं, इसी कारण वे अनार्य हैं, वे भ्रम में पड़े हैं। वे न तो इस लोक के होते हैं और न परलोक के अपितु कामभोगों में फँसकर कष्ट भोगते हैं। इस प्रकार ये पूर्वोक्त चार पुरुष भिन्न – भिन्न बुद्धि वाले, विभिन्न अभिप्राय वाले, विभिन्न शील वाले, पृथक् पृथक् दृष्टि वाले, नाना रुचि वाले, अलग – अलग आरम्भ धर्मानुष्ठान वाले तथा विभिन्न अध्यवसाय वाले हैं। इन्होंने पूर्वसंयोगों को तो छोड़ दिया, किन्तु आर्यमार्ग को अभी तक पाया नहीं है। इस कारण वे न तो इस लोक के रहते हैं और न ही परलोक के होते हैं, किन्तु बीच में ही कामभोगों में ग्रस्त होकर कष्ट पाते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavare chautthe purisajate niyativaie tti ahijjai–iha khalu painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti anupuvvenam logam uvavanna, tam jaha– ariya vege anariya vege, uchchagoya vege niyagoya vege, kayamamta vege hassamamta vege, suvanna vege duvanna vege, suruva vege duruva vege. Tesim cha nam manuyanam ege raya bhavati–mahahimavamta-malaya-mamdara-mahimdasare java pasamtadimbadamaram rajjam pasahemane viharati. Tassa nam ranno parisa bhavati– ugga uggaputta, bhoga bhogaputta, ikkhaga ikkhagaputta, naga nagaputta, koravva koravvaputta, bhatta bhattaputta, mahana mahanaputta, lechchhai lechchhaiputta, pasattharo pasatthaputta, senavai senavaiputta. Tesim cha nam egaie saddhi bhavati. Kamam tam samana va mahana va sampaharimsu gamanae. Tattha annatarenam dhammenam pannattaro, vayam imenam dhammenam pannavaissamo. Se evamayanaha bhayamtaro! Jaha me esa dhamme suyakkhate supannatte bhavati. Iha khalu duve purisa bhavamti–ege purise kiriyamaikkhai, ege purise nokiriyamaikkhai. Je ya purise kiriyamaikkhai, je ya purise nokiriyamaikkhai, do vi te purisa tulla egattha karanamavanna. Bale puna evam vippadivedeti karanamavanne. Ahamamsi dukkhami va soyami va ‘jurami va tippami va pidami va paritappami va’, ahameyamakasi. Paro va jam dukkhai va soyai va jurai va tippai va pidai va paritappai va, paro eyama-kasi. Evam se bale sakaranam va parakaranam va evam vippadivedeti karanamavanne. Mehavi puna evam vippadivedeti karanamavanne. Ahamamsi dukkhami va soyami va jurami va tippami va pidami va paritappami va, no aham eyamakasi. Paro va jam dukkhai va soyai va jurai va tippai va pidai va paritappai va, no paro eyamakasi. Evam se mehavi sakaranam va parakaranam va evam vippadivedeti karanamavanne. [sutra] se bemi–painam va padinam va udinam va dahinam va je tasathavara pana te evam samghayamagachchhamti, te evam vippariyayamavajjamti, te evam vivegamagachchhamti, te evam vihanamagachchhamti, te evam samgaiyamti uvehae. Te no eyam vippadivedemti, tam jaha–kiriya i va akiriya i va sukade i va dukkade i va kallane i va pavae i va sahu i va asahu i va siddhi i va asiddhi i va nirae i va anirae i va. Evam te viruvaruvehim kammasamarambhehim viruva-ruvaim kamabhogaim samarambhamti bhoyanae. Evam te anariya vippadivanna [mamagam dhammam pannavemti?]. Tam saddahamana tam pattiyamana tam roemana sadhu suya-kkhate samaneti! Va mahaneti! Va. Kamam khalu auso! Tumam puyayamo, tam jaha–asanena va panena va khaimena va saimena va vatthena va padiggahena va kambalena va payapumchhanena va. Tatthege puyanae samauttimsu, tatthege puyanae nikaimsu. Puvvameva tesim nayam bhavai– samana bhavissamo anagara akimchana aputta apasu paradattabhoino bhikkhuno, pavam kammam no karissamo samutthae. Te appana appadiviriya bhavamti. Saya maiyamti, anne vi aiyavemti, annam pi aiyamtam samanujanamti. Evameva te itthi-kamabhogehim muchchhiya giddha gadhiya ajjhovavanna luddha ragadosavasatta. Te no appanam samuchchhedemti no param samuchchhedemti, no annaim panaim bhuyaim jivaim sattaim samuchchhedemti. Pahina puvvasamjoga ariyam maggam asampatta– iti te no havvae no parae, amtara kamabhogesu visanna. Chautthe purisajate niyativaie tti ahie. Ichchete chattari purisajaya nanapanna nanachhamda ‘nanasila nanaditthi’ nanarui nanarambha nanaajjhavasanasamjutta ‘pahina puvvasamjoga’ ariyam maggam asampatta iti te no havvae no parae, amtara kamabhogesu visanna. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aba niyativadi namaka chauthe purusha ka varnana kiya gaya hai. Isa manushyaloka mem purvadi dishaom ke varnana se yavat prathama purushokta patha ke samana janana. Purvokta raja aura usake sabhasadom mem se koi purusha dharmashraddhalu hota hai. Use dharmashraddhalu jana kara usake nikata jane ka shramana aura brahmana nishchaya karate haim. Yavat ve usake pasa jakara kahate haim – ‘‘maim apako purvapurushakathita aura suprajnyapta dharma ka upadesha karata hum.’’ isa loka mem do prakara ke purusha hote haim – ekapurusha kriya ka kathana karata hai, dusara kriya ka kathana nahim karata. Ve donom hi niyati ke adhina hone se samana haim, tatha ve donom eka hi artha vale aura eka hi karana (niyativada) ko prapta haim. Ye donom hi ajnyani haim, apane sukha duhkha ke karanabhuta kala, karma tatha ishvara adi ko manate hue yaha samajhate haim ki maim jo kuchha bhi duhkha pa raha hum, shoka kara raha hum, duhkha se atmaninda kara raha hum, ya sharirika bala ka nasha kara raha hum, pira pa raha hum, ya samtapta ho raha hum, vaha saba mere hi kiye hue karma haim, tatha dusara jo duhkha pata hai, shoka karata hai, atmaninda karata hai, sharirika bala ka kshaya karata hai, pirita hota hai ya samtapta hota hai, vaha saba usake dvara kiye hue karma haim. Isa karana vaha ajnyajiva svanimittaka tatha paranimittaka sukhaduhkhadi ko apane tatha dusare ke dvara krita karmaphala samajhata hai, parantu ekamatra niyati ko hi samasta padarthom ka karana manane vala purusha to yaha samajhata hai ki ‘maim jo kuchha duhkha bhogata hum, shokamagna hota hum ya samtapta hota hum, ve saba mere kiye hue karma nahim hai, tatha dusara purusha jo duhkha pata hai, shoka adi se samtapta – pirita hota hai, vaha bhi usake dvara kritakarmom ka phala nahim hai, isa prakara vaha buddhimana purusha apane ya dusare ke nimitta se prapta hue duhkha adi ko yom manata hai ki ye saba niyatikrita haim, kisi dusare ke karana se nahim. Atah maim kahata hum ki purva adi dishaom mem rahane vale jo trasa evam sthavara prani haim, ve saba niyati ke prabhava se hi audarika adi sharira ki rachana ko prapta karate haim, ve niyati ke karana hi balya, yuva aura vriddha avastha ko prapta karate haim, ve niyativashat hi sharira se prithak hote haim, kana, kubara adi nana prakara ki dashaom ko prapta karate haim, niyati ka ashraya lekara hi nana prakara ke sukha – duhkhom ko prapta karate haim. Isa prakara niyati ko hi samasta achchhe bure karyom ka karana manane ki kalpana karake niyativadi age kahi jane vali batom ko nahim manate – kriya, akriya se lekara prathama sutrokta naraka aura naraka se atirikta gati taka ke padartha. Isa prakara ve niyativada ke chakra mem pare hue loga nana prakara ke savadyakarmom ka anushthana karake kamabhogom ka upabhoga karate haim, isi karana ve anarya haim, ve bhrama mem pare haim. Ve na to isa loka ke hote haim aura na paraloka ke apitu kamabhogom mem phamsakara kashta bhogate haim. Isa prakara ye purvokta chara purusha bhinna – bhinna buddhi vale, vibhinna abhipraya vale, vibhinna shila vale, prithak prithak drishti vale, nana ruchi vale, alaga – alaga arambha dharmanushthana vale tatha vibhinna adhyavasaya vale haim. Inhomne purvasamyogom ko to chhora diya, kintu aryamarga ko abhi taka paya nahim hai. Isa karana ve na to isa loka ke rahate haim aura na hi paraloka ke hote haim, kintu bicha mem hi kamabhogom mem grasta hokara kashta pate haim. |