Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000472 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-४ भाषाजात |
Section : | उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन | Translated Section : | उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन |
Sutra Number : | 472 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खिं वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा, से त्तं परिवूढकायं पेहाए नो एवं वएज्जा–थूले ति वा, पमेइले ति वा, वट्टे ति वा, वज्झे ति वा, पाइमे ति वा– एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खिं वा, सरीसिवं वा, जल-यरं वा, से त्तं परिवूढकायं पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा– परिवूढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चियमंससो-णिए ति वा, बहुपडिपुण्णइंदिए ति वा– एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए नो एवं वएज्जा, तं जहा– गाओ दोज्झाओ ति वा, दम्मे ति वा, गोरहे ति वा, ‘वाहिमा ति वा रहजोग्गाति वा’–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा–जुवंगवे ति वा, धेणू ति वा, रसवती ति वा, हस्से ति वा, महल्लए ति वा, महव्वए ति वा संवहणे ति वा– एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाइं पव्वयाइं वनानि य रुक्खा महल्ला पेहाए नो एवं वएज्जा, तं जहा–पासायजोग्गा ति वा, गिहजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा ति वा, ‘फलिहजोग्गा ति वा, अग्गलं’ नावा-उदगदोणि-पीढ-चंगबेर-णंगल-कुलिय-जंतलट्ठी-नाभि-गंडी-आसण-सयण-जाण-उवस्सय-जोग्गा ति वा–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाइं पव्वयाणि वनानि य रुक्खा महल्ला पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा –जातिमंता ति वा, दीहवट्टा ति वा, महालया ति वा, पयायसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासाइया ति वा, दरिसणीयाति वा, अभिरूवा ति वा, पडिरूवा ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया वनफला [अंबा?] पेहाए तहावि ते नो एवं वएज्जा, तं जहा–पक्का ति वा, पायखज्जा ति वा, वेलोचिया ति वा, टाला ति वा, वेहिया ति वा– एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया ‘वनफला अंबा’ पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा–असंथडा इ वा, बहुणिवट्टि-मफला ति वा, बहुसंभूया इ वा, भूयरूवा ति वा– एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए तहावि ताओ नो एवं वएज्जा, तं जहा–पक्का ति वा, नीलिया ति वा, छवीया ति वा, लाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा ति वा–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा– रूढा ति वा, बहुसंभूया ति वा, थिरा ति वा, ऊसढा ति वा, गब्भिया ति वा, पसूया ति वा ससारा ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | संयमशील साधु या साध्वी परिपुष्ट शरीर वाले किसी मनुष्य, बैल, यावत् किसी भी विशालकाय प्राणी को देखकर ऐसे कह सकता है कि यह पुष्ट शरीर वाला है, उपचितकाय है, दृढ़ संहनन वाला है, या इसके शरीर में रक्त – माँस संचित हो गया है, इसकी सभी इन्द्रियाँ परिपूर्ण हैं। इस प्रकार की असावद्य यावत् जीवोपघात से रहित भाषा बोले। साधु या साध्वी नाना प्रकार की गायों तथा गोजाति के पशुओं को देखकर ऐसा न कहे कि ये गायें दूहने योग्य हैं अथवा इनको दूहने का समय हो रहा है, तथा यह बैल दमन करने योग्य है, यह वृषभ छोटा है, या यह वहन करने योग्य है, यह रथ में जोतने योग्य है, इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा का प्रयोग न करे। इस प्रकार कह सकता है, जैसे कि – यह वृषभ जवान है, यह गाय प्रौढ़ है, दुधारू है, यह बैल बड़ा है, यह संवहन योग्य है। इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषा का प्रयोग करे। संयमी साधु या साध्वी किसी प्रयोजनवश किन्हीं बगीचों में, पर्वतों पर या वनों में जाकर वहाँ बड़े – बड़े वृक्षों को देखकर ऐसे न कहे, कि – यह वृक्ष (काटकर) मकान आदि में लगाने योग्य है, यह तोरण – नगर का मुख्य द्वार बनाने योग्य है, यह घर बनाने योग्य है, यह फलक (तख्त) बनाने योग्य है, इसकी अर्गला बन सकती है, या नाव बन सकती है, पानी की बड़ी कुंड़ी अथवा छोटी नौका बन सकती है, अथवा यह वृक्ष चौकी काष्ठमयी पात्री, हल, कुलिक, यंत्रयष्टि नाभि, काष्ठमय, अहरन, काष्ठ का आसन आदि बनाने के योग्य है अथवा काष्ठशय्या रथ आदि यान, उपाश्रय आदि के निर्माण के योग्य है। इस प्रकार सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा साधु न बोले। इस प्रकार कह सकते हैं कि ये वृक्ष उत्तम जाति के हैं, दीर्घ हैं, वृत्त हैं, ये महालय हैं, इनकी शाखाएं फट गई हैं, इनकी प्रशाखाएं दूर तक फैली हुई हैं, ये वृक्ष प्रासादीय हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं। इस प्रकार की असावद्य यावत् जीवोपघात – रहित भाषा का प्रयोग करे। साधु या साध्वी प्रचुर मात्रा में लगे हुए वन फलों को देखकर इस प्रकार न कहे जैसे कि – ये फल पक गए हैं, या पराल आदि में पकाकर खाने योग्य हैं, ये पक जाने से ग्रहण कालोचित फल हैं, अभी ये फल बहुत कोमल हैं, क्योंकि इनमें अभी गुठली नहीं पड़ी है, ये फल तोड़ने योग्य या दो टुकड़े करने योग्य है। इस प्रकार सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले। इस प्रकार कह सकता है, जैसे कि ये फल वाले वृक्ष असंतृत हैं, इनके फल प्रायः निष्पन्न हो चूके हैं, ये वृक्ष एक साथ बहुत – सी फलोत्पत्ति वाले हैं, या ये भूतरूप – कोमल फल हैं। इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात – रहित भाषा विचारपूर्वक बोले। साधु या साध्वी बहुत मात्रा में पैदा हुई औषधियों को देखकर यों न कहे, कि ये पक गई हैं, या ये अभी कच्ची या हरी हैं, ये छवि वाली हैं, ये अब काटने योग्य हैं, ये भूनने या सेकने योग्य हैं, इनमें बहुत – सी खाने योग्य हैं। इस प्रकार सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा साधु न बोले। इस प्रकार कह सकता है, कि इनमें बीज अंकुरित हो गए हैं, ये अब जम गई हैं, सुविकसित या निष्पन्नप्रायः हो गई हैं, या अब ये स्थिर हो गई हैं, ये ऊपर उठ गई हैं, ये भुट्टों, सिरों, या बालियों से रहित हैं, अब ये भुट्टों आदि से युक्त हैं, या धान्य – कणयुक्त हैं। साधु या साध्वी इस प्रकार निरवद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषा बोले। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va manussam va, gonam va, mahisam va, migam va, pasum va, pakkhim va, sarisivam va, jalayaram va, se ttam parivudhakayam pehae no evam vaejja–thule ti va, pameile ti va, vatte ti va, vajjhe ti va, paime ti va– eyappagaram bhasam savajjam java bhutovaghaiyam abhikamkha no bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va manussam va, gonam va, mahisam va, migam va, pasum va, pakkhim va, sarisivam va, jala-yaram va, se ttam parivudhakayam pehae evam vaejja, tam jaha– parivudhakae ti va, uvachiyakae ti va, thirasamghayane ti va, chiyamamsaso-nie ti va, bahupadipunnaimdie ti va– eyappagaram bhasam asavajjam java abhutovaghaiyam abhikamkha bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va viruvaruvao gao pehae no evam vaejja, tam jaha– gao dojjhao ti va, damme ti va, gorahe ti va, ‘vahima ti va rahajoggati va’–eyappagaram bhasam savajjam java bhutovaghaiyam abhikamkha no bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va viruvaruvao gao pehae evam vaejja, tam jaha–juvamgave ti va, dhenu ti va, rasavati ti va, hasse ti va, mahallae ti va, mahavvae ti va samvahane ti va– eyappagaram bhasam asavajjam java abhutovaghaiyam abhikamkha bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va taheva gamtumujjanaim pavvayaim vanani ya rukkha mahalla pehae no evam vaejja, tam jaha–pasayajogga ti va, gihajogga ti va, toranajogga ti va, ‘phalihajogga ti va, aggalam’ nava-udagadoni-pidha-chamgabera-namgala-kuliya-jamtalatthi-nabhi-gamdi-asana-sayana-jana-uvassaya-jogga ti va–eyappagaram bhasam savajjam java bhutovaghaiyam abhikamkha nobhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va taheva gamtumujjanaim pavvayani vanani ya rukkha mahalla pehae evam vaejja, tam jaha –jatimamta ti va, dihavatta ti va, mahalaya ti va, payayasala ti va, vidimasala ti va, pasaiya ti va, darisaniyati va, abhiruva ti va, padiruva ti va–eyappagaram bhasam asavajjam java abhutovaghaiyam abhikamkha bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va bahusambhuya vanaphala [amba?] pehae tahavi te no evam vaejja, tam jaha–pakka ti va, payakhajja ti va, velochiya ti va, tala ti va, vehiya ti va– eyappagaram bhasam savajjam java bhutovaghaiyam abhikamkha no bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va bahusambhuya ‘vanaphala amba’ pehae evam vaejja, tam jaha–asamthada i va, bahunivatti-maphala ti va, bahusambhuya i va, bhuyaruva ti va– eyappagaram bhasam asavajjam java abhutovaghaiyam abhikamkha bhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va bahusambhuyao osahio pehae tahavi tao no evam vaejja, tam jaha–pakka ti va, niliya ti va, chhaviya ti va, laima ti va, bhajjima ti va, bahukhajja ti va–eyappagaram bhasam savajjam java bhutovaghaiyam abhikamkha nobhasejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va bahusambhuyao osahio pehae evam vaejja, tam jaha– rudha ti va, bahusambhuya ti va, thira ti va, usadha ti va, gabbhiya ti va, pasuya ti va sasara ti va–eyappagaram bhasam asavajjam java abhutovaghaiyam abhikamkha bhasejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Samyamashila sadhu ya sadhvi paripushta sharira vale kisi manushya, baila, yavat kisi bhi vishalakaya prani ko dekhakara aise kaha sakata hai ki yaha pushta sharira vala hai, upachitakaya hai, drirha samhanana vala hai, ya isake sharira mem rakta – mamsa samchita ho gaya hai, isaki sabhi indriyam paripurna haim. Isa prakara ki asavadya yavat jivopaghata se rahita bhasha bole. Sadhu ya sadhvi nana prakara ki gayom tatha gojati ke pashuom ko dekhakara aisa na kahe ki ye gayem duhane yogya haim athava inako duhane ka samaya ho raha hai, tatha yaha baila damana karane yogya hai, yaha vrishabha chhota hai, ya yaha vahana karane yogya hai, yaha ratha mem jotane yogya hai, isa prakara ki savadya yavat jivopaghataka bhasha ka prayoga na kare. Isa prakara kaha sakata hai, jaise ki – yaha vrishabha javana hai, yaha gaya praurha hai, dudharu hai, yaha baila bara hai, yaha samvahana yogya hai. Isa prakara asavadya yavat jivopaghata rahita bhasha ka prayoga kare. Samyami sadhu ya sadhvi kisi prayojanavasha kinhim bagichom mem, parvatom para ya vanom mem jakara vaham bare – bare vrikshom ko dekhakara aise na kahe, ki – yaha vriksha (katakara) makana adi mem lagane yogya hai, yaha torana – nagara ka mukhya dvara banane yogya hai, yaha ghara banane yogya hai, yaha phalaka (takhta) banane yogya hai, isaki argala bana sakati hai, ya nava bana sakati hai, pani ki bari kumri athava chhoti nauka bana sakati hai, athava yaha vriksha chauki kashthamayi patri, hala, kulika, yamtrayashti nabhi, kashthamaya, aharana, kashtha ka asana adi banane ke yogya hai athava kashthashayya ratha adi yana, upashraya adi ke nirmana ke yogya hai. Isa prakara savadya yavat jivopaghatini bhasha sadhu na bole. Isa prakara kaha sakate haim ki ye vriksha uttama jati ke haim, dirgha haim, vritta haim, ye mahalaya haim, inaki shakhaem phata gai haim, inaki prashakhaem dura taka phaili hui haim, ye vriksha prasadiya haim, darshaniya haim, abhirupa haim, pratirupa haim. Isa prakara ki asavadya yavat jivopaghata – rahita bhasha ka prayoga kare. Sadhu ya sadhvi prachura matra mem lage hue vana phalom ko dekhakara isa prakara na kahe jaise ki – ye phala paka gae haim, ya parala adi mem pakakara khane yogya haim, ye paka jane se grahana kalochita phala haim, abhi ye phala bahuta komala haim, kyomki inamem abhi guthali nahim pari hai, ye phala torane yogya ya do tukare karane yogya hai. Isa prakara savadya yavat jivopaghatini bhasha na bole. Isa prakara kaha sakata hai, jaise ki ye phala vale vriksha asamtrita haim, inake phala prayah nishpanna ho chuke haim, ye vriksha eka satha bahuta – si phalotpatti vale haim, ya ye bhutarupa – komala phala haim. Isa prakara asavadya yavat jivopaghata – rahita bhasha vicharapurvaka bole. Sadhu ya sadhvi bahuta matra mem paida hui aushadhiyom ko dekhakara yom na kahe, ki ye paka gai haim, ya ye abhi kachchi ya hari haim, ye chhavi vali haim, ye aba katane yogya haim, ye bhunane ya sekane yogya haim, inamem bahuta – si khane yogya haim. Isa prakara savadya yavat jivopaghatini bhasha sadhu na bole. Isa prakara kaha sakata hai, ki inamem bija amkurita ho gae haim, ye aba jama gai haim, suvikasita ya nishpannaprayah ho gai haim, ya aba ye sthira ho gai haim, ye upara utha gai haim, ye bhuttom, sirom, ya baliyom se rahita haim, aba ye bhuttom adi se yukta haim, ya dhanya – kanayukta haim. Sadhu ya sadhvi isa prakara niravadya yavat jivopaghata rahita bhasha bole. |