Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000060 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
Section : | उद्देशक-७ वायुकाय | Translated Section : | उद्देशक-७ वायुकाय |
Sutra Number : | 60 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति य। फरिसं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति। एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं वाउ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वाउ-सत्थ समारंभावेज्जा, नेवन्नेवाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वाउ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे | ||
Sutra Meaning : | मैं कहता हूँ – संपातिम – प्राणी होते हैं। वे वायु से प्रताड़ित होकर नीचे गिर जाते हैं। वे प्राणी वायु का स्पर्श होने से सिकुड़ जाते हैं। जब वे वायु – स्पर्श से संघातित होते हैं, तब मूर्च्छित हो जाते हैं। जब वे जीव मूर्च्छा को प्राप्त होते हैं तो वहाँ मर भी जाते हैं। जो वहाँ वायुकायिक जीवों का समारंभ करता है, वह इन आरंभों से वास्तव में अनजान है। जो वायुकायिक जीवों पर शस्त्र – समारंभ नहीं करता, वास्तव में उसने आरंभ को जान लिया है। यह जानकर बुद्धिमान मनुष्य स्वयं वायुकाय का समारंभ न करे। दूसरों से वायुकाय का समारंभ न करवाए। वायुकाय का समारंभ करने वालों का अनुमोदन न करे। जिसने वायुकाय के शस्त्र – समारंभ को जान लिया है, वही मुनि परिज्ञातकर्मा (हिंसा का त्यागी) है ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bemi–appege amdhamabbhe, appege amdhamachchhe. Appege payamabbhe, appege payamachchhe. Appege sampamarae, appege uddavae. Se bemi–samti sampaima pana, ahachcha sampayamti ya. Pharisam cha khalu puttha, ege samghayamavajjamti. Je tattha samghayamavajjamti, te tattha pariyavajjamti, je tattha pariyavajjamti, te tattha uddayamti. Ettha sattham samarambhamanassa ichchete arambha aparinnaya bhavamti. Ettha sattham asamarambhamanassa ichchete arambha parinnaya bhavamti. Tam parinnaya mehavi neva sayam vau-sattham samarambhejja, nevannehim vau-sattha samarambhavejja, nevannevau-sattham samarambhamte samanujanejja. Jassete vau-sattha-samarambha parinnaya bhavamti, se hu muni parinnaya-kamme | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Maim kahata hum – sampatima – prani hote haim. Ve vayu se pratarita hokara niche gira jate haim. Ve prani vayu ka sparsha hone se sikura jate haim. Jaba ve vayu – sparsha se samghatita hote haim, taba murchchhita ho jate haim. Jaba ve jiva murchchha ko prapta hote haim to vaham mara bhi jate haim. Jo vaham vayukayika jivom ka samarambha karata hai, vaha ina arambhom se vastava mem anajana hai. Jo vayukayika jivom para shastra – samarambha nahim karata, vastava mem usane arambha ko jana liya hai. Yaha janakara buddhimana manushya svayam vayukaya ka samarambha na kare. Dusarom se vayukaya ka samarambha na karavae. Vayukaya ka samarambha karane valom ka anumodana na kare. Jisane vayukaya ke shastra – samarambha ko jana liya hai, vahi muni parijnyatakarma (himsa ka tyagi) hai aisa maim kahata hum. |