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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 489 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अधेलोगे णं पंच अनुत्तरा महतिमहालया महानिरया पन्नत्ता, तं जहा–काले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अप्पतिट्ठाणे।
उड्ढलोगे णं पंच अनुत्तरा महतिमहालया महाविमाणा पन्नत्ता, तं जहा– विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते, सव्वट्ठसिद्धे। Translated Sutra: अधोलोक में पाँच भयंकर बड़ी नरके हैं। यथा – काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान – ऊर्ध्व लोक में पाँच महाविमान हैं, यथा – विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजयंत, सर्वार्थसिद्धमहाविमान। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 497 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं–एतेसिं णं धण्णाणं कुट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भगवन् ! चणा, मसूर, तिल, मूँग, उड़द, बाल, कुलथ, चँवला, तुवर और कालाचणा कोठे में रखे हुए इन धान्यों की कितनी स्थिति है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट पाँच वर्ष। इसके पश्चात् योनि (जीवोत्पत्ति – स्थान) कुमला जाती है और शनैः शनैः योनि विच्छेद हो जाता है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 520 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा नाइक्कमंति, तं जहा–अंतोहिंतो वा बाहिं नीणेमाणा, बाहीहिंतो वा निब्बाहिं नीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा वा, अणुन्नवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्वयमाणा। Translated Sutra: छः कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कालगत साधर्मिक के प्रति आदरभाव करे तो आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है। यथा – उपाश्रय से बाहर नीकलना हो, उपाश्रय से बाहर से जंगल में ले जाना हो, मृत को बाँधना हो, जागरण करना हो, अनुज्ञापन कना हो, चूपचाप साथ जावे तो। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 535 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा ओसप्पिणी पन्नत्ता, तं जहा– सुसम-सुसमा, सुसमा, सुसम-दूसमा, दूसम-सुसमा, दूसमा, दूसम-दूसमा।
छव्विहा उस्सप्पिणी पन्नत्ता, तं जहा– दुस्सम-दुस्समा, दुस्समा, दुस्सम-सुसमा, सुसम-दुस्समा, सुसमा, सुसम-सुसमा। Translated Sutra: अवसर्पिणी काल छः प्रकार का है, सुषम – सुषमा यावत् दुषम – दुषमा। उत्सर्पिणी काल छः प्रकार का है, यथा – दुषम दुःषमा यावत् सुषम सुषमा। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 536 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुया छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुसा छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं पन्नत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुया छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं भविस्संति, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालइस्संति।
जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु-उत्तरकुरुकुरासु मनुया छ धणुस्सहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता, Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में अतीत उत्सर्पिणी के सुषम – सुषमा काल में मनुष्य छः हजार धनुष के ऊंचे थे, और उनका परमायु तीन पल्योपमों का था। जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में इस उत्सर्पिणी के सुषम – सुषमा काल में मनुष्यों की ऊंचाई और उनका परमायु पूर्ववत् ही था। जम्बूद्वीपवर्ती भरत और | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 544 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छद्दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्ढा, अधा।
छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए।
छहिं दिसाहिं जीवाणं– आगई वक्कंती आहारे वुड्ढी निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे नाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–
पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अघाए।
एवं पंचिंदियतिरिक्खजोनियाणवि।
मनुस्साणवि। Translated Sutra: दिशाएं छः हैं यथा – पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व, अधो। उक्त छह दिशाओं में जीवों की गति होती है। इसी प्रकार जीवों की आगति, व्युत्क्रान्ति, आहार, शरीर की वृद्धि, शरीर की हानि, शरीर की विकुर्वणा, गतिपर्याय, वेदनादि समुद्घात, दिन – रात आदि काल का संयोग, अवधि आदि दर्शन से सामान्य ज्ञान, अवधि आदि ज्ञान से विशेष | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 581 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– सामाइयकप्पट्ठिती, छेओवट्ठावणियकप्पट्ठिती, नीव्विसमाण-कप्पट्ठिती, नीव्विट्ठकप्पट्ठिती, जिनकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती। Translated Sutra: कल्प – साध्याचार – की व्यवस्था छः प्रकार की है, यथा – सामायिक कल्पस्थिति – सामायिक सम्बन्धी मर्यादा। छेदोपस्थापनिक कल्पस्थिति – शैक्षकाल पूर्ण होने पर पंच महाव्रत धारण कराने की मर्यादा। निर्विसमान कल्प – स्थिति – परिहार विशुद्धि तप स्वीकार करने वाले की मर्यादा। निर्विष्ठ कल्पस्थिति – पारिहारिक तप पूरा | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 589 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहे पडिक्कमणे पन्नत्ते, तं जहा–उच्चारपडिक्कमणे, पासवणपडिक्कमणे, इत्तरिए, आवकहिए, जंकिंचिमिच्छा, सोमनंतिए। Translated Sutra: प्रतिक्रमण छः प्रकार के हैं, यथा – उच्चार प्रतिक्रमण – मल को परठकर स्थान पर आवे और मार्ग में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करे। प्रश्रवण प्रतिक्रमण – मूत्र परठकर पूर्ववत् प्रतिक्रमण करे। इत्वरिक प्रतिक्रमण – थोड़े काल का प्रतिक्रमण, यथा – दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण या रात्रि सम्बन्धी प्रतिक्रमण। यावज्जीवन का | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 591 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं छट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–पुढविकाइयनिव्वत्तिए, आउकाइयनिव्वत्तिए, तेउकाइयनिव्वत्तिए, वाउकाइयनिव्वत्तिए, वणस्सइ-काइयनिव्वत्तिए, तसकायनिव्वत्तिए।
एवं–चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह निज्जरा चेव।
छप्पएसिया णं खंधा अनंता पन्नत्ता।
छप्पएसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता।
छसमयट्ठितीया पोग्गला अनंता पन्नत्ता।
छगुणकालगा पोग्गला जाव छगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता। Translated Sutra: जीवों ने छः स्थानों में अर्जित पुद्गलों को पाप कर्म के रूप में एकत्रित किया है। एकत्रित करते हैं और एकत्रित करेंगे। यथा – पृथ्वीकाय निवर्तित यावत् त्रसकाय निवर्तित। इसी प्रकार पाप कर्म के रूप में चय, उपचय, बंध, उदीरण, वेदन और निर्जरा सम्बन्धी सूत्र हैं। छः प्रदेशी स्कन्ध अनन्त हैं। छः प्रदेशों में स्थित | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 595 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पन्नत्ता, तं जहा–
१. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं सम्मं पउंजित्ता भवति।
३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते कालेकाले सम्ममनुप्पवाइत्ता भवति।
४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्ममब्भुट्ठित्ता भवति।
५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, नो अनापुच्छियचारी।
६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अनुप्पण्णाइं उवगरणाइं सम्मं उप्पाइत्ता भवति।
७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि पुव्वुप्पण्णाइं उवकरणाइं सम्मं सारक्खेत्ता Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय सात प्रकार के गण का संग्रह करते हैं। यथा – आचार्य और उपाध्याय गण में रहने वाले साधुओं को सम्यक् प्रकार से आज्ञा (विधि अर्थात् कर्तव्य के लिए आदेश) या धारणा (अकृत्य का निषेध) करे। आगे पांचवे स्थान में कहे अनुसार (यावत् आचार्य और उपाध्याय गच्छ को पूछकर प्रवृत्ति करे किन्तु गच्छ को पूछे बिना | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 596 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त पिंडेसणाओ पन्नत्ताओ।
सत्त पानेसणाओ पन्नत्ताओ।
सत्त उग्गहपडिमाओ पन्नत्ताओ।
सत्तसतिक्कया पन्नत्ता।
सत्त महज्झयणा पन्नत्ता।
सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपन्नत्ताए राइंदिएहिं एगेण य छन्नउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति। Translated Sutra: पिण्डैषणा सात प्रकार की कही गई है, यथा – असंसृष्टा – देने योग्य आहार से हाथ या पात्र लिप्त न हो ऐसी भिक्षा लेना। संसृष्टा – देने योग्य आहार से हाथ या पात्र लिप्त हो ऐसी भिक्षा लेना। उद्धृता – गृहस्थ अपने लिए राँधने के वासण में से आहार बाहर नीकाले व ऐसा आहार ले। अल्पलेपा – जिस आहार से पात्र में लेप न लगे ऐसा आहार | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 611 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं ।
छट्ठं च सारसा कोंचा, नेसायं सत्तमं गजो ॥ Translated Sutra: पंचम कोयल के कण्ठ से नीकलता है। धैवत सारस या क्रौंच के कण्ठ से नीकलता है। निषाद हाथी के कण्ठ से नीकलता है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 630 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा कतो संभवंति? गीतस्स का भवति जोणी?
कतिसमया उस्साया? कति वा गीतस्स आगारा? ॥ Translated Sutra: सात स्वर कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गेय की योनि कौन सी होती है ? उच्छ्वास काल कितने समय का है ? गेय के आकार कितने हैं ? | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 641 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विस्सरं पुण केरिसी?
सामा गायइ मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च ।
गोरी गायति चउरं, काण विलंबं दुतं अंधा ॥ Translated Sutra: श्यामा (किंचित् काली) स्त्री। काली (धन के समान श्याम रंग वाली)। काली। गौरी (गौरवर्ण वाली)। काणी अंधी। पिंगला – भूरे वर्ण वाली। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 654 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] विमलवाहने णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छिंसु, तं जहा– Translated Sutra: विमलवाहन कुलकर के काल में सात प्रकार के कल्पवृक्ष उपभोग में आते थे। यथा – मद्यांगा, भृंगा, चित्रांगा, चित्ररसा, मण्यंगा, अनग्ना, कल्पवृक्ष। सूत्र – ६५४, ६५५ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 658 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तहिं ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तं जहा–अकाले वरिसइ, काले न वरिसइ, असाधू पुज्जंति, साधु न पुज्जंति, गुरूहिं जणो मिच्छं पडिवण्णो, मनोदुहता, वइदुहता।
सत्तहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा– अकाले न वरिसइ, काले वरिसइ, असाधू न पुज्जंति, साधू पुज्जंति, गुरूहिं जनो सम्मं पडिवण्णो, मणोसुहता, वइसुहता। Translated Sutra: दुषमकाल के सात लक्षण हैं, यथा – अकाल में वर्षा होना, वर्षाकाल में वर्षा न होना, असाधु जनों की पूजा होना, साधु जनों की पूजा न होना, गुरु के प्रति लोगों का मिथ्याभाव होना, मानसिक दुःख, वाणी का दुःख। सुषमकाल के सात लक्षण हैं, यथा – अकाल में वर्षा नहं होती है, वर्षाकाल में वर्षा होती है, असाधु की पूजा नहीं होती है, साधु | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 663 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सत्त य वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्ठाणे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने। Translated Sutra: ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सात धनुष के ऊंचे थे। वे सातसौ वर्ष का पूर्वायु होने पर, सातवीं पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नरकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुए। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 669 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त विकहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, मिउकालुणिया, दंसणभेयणी, चरित्तभेयणी। Translated Sutra: सात विकथाएं कही गई है, यथा – स्त्री कथा, भक्त (आहार) कथा, देश कथा, राज कथा, मृदुकारिणी कथा, दर्शनभेदिनी, चारित्र भेदिनी। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 672 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अध भंते! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोद्दूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं–एतेसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: प्रश्न – हे भगवन् ! अलसी, कुसुभ, कोद्रव, कांग, रल, सण, सरसों और मूले के बीज। इन धान्यों को कोठे में, पाले में यावत् ढाँककर रखे तो उन धान्यों की योनि कितने काल तक सचित्त रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट – सात संवत्सर। पश्चात् योनि म्लान हो जाती है – यावत् योनि नष्ट हो जाती है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 680 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिस्सरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त दीवा पन्नत्ता, तं जहा– जंबुद्दीवे, धायइसंडे, पोक्खरवरे, वरुणवरे, खीरवरे, घयवरे, खोयवरे। नंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त समुद्दा पन्नत्ता, तं जहा– लवणे, कालोदे, पुक्खरोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घओदे, खोओदे। Translated Sutra: नन्दीश्वर द्वीप में सात द्वीप है। यथा – जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप, पुष्करवरद्वीप, वरुणवरद्वीप, क्षीरवर – द्वीप, धृतवरद्वीप और क्षोदवरद्वीप। नन्दीश्वर द्वीप में सात समुद्र हैं। यथा – लवण समुद्र, कालोद समुद्र, पुष्करोद समुद्र, करुणोद समुद्र, खीरोद समुद्र, धृतोद समुद्र और क्षोदोद समुद्र। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 686 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविहे विनए पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए, दंसणविनए, चरित्तविनए, मनविनए, वइविनए,
कायविनए, लोगोवयारविनए।
पसत्थमणविनए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–अपावए, असावज्जे, अकिरिए, निरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे।
अपसत्थमनविनए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–पावए, सावज्जे, सकिरिए, सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे।
पसत्थवइविनए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–अपावए, असावज्जे, अकिरिए, निरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे।
अपसत्थवइविनए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–पावए, सावज्जे, सकिरिए, सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे।
पसत्थकायविनए सत्तविधे पन्नत्ते, Translated Sutra: विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा – ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय, मन विनय, वचन विनय, काय विनय, लोकोपचार विनय। प्रशस्त मन विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा – अपापक – शुभ चिंतन रूप विनय, असावद्य – चोरी आदि निन्दित कर्म रहित, अक्रिय – कायिकादि क्रिया रहित, निरुपक्लेश – शोकादि पीड़ा रहित, अनाश्रवकर – प्राणा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 688 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणणिण्हगा पन्नत्ता, तं जहा–बहुरता, जीवपएसिया, अव-त्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया।
एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा–जमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले।
एतेसि णं सत्तण्हं पवयणनिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, तं जहा– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में सात प्रवचननिह्नव हुए, यथा – बहुरत – दीर्घकाल में वस्तु की उत्पत्ति मानने वाले, जीव प्रदेशिका – अन्तिम जीव प्रदेश में जीवत्व मानने वाले, अव्यक्तिका – साधु आदि को संदिग्ध दृष्टि से देखने वाले, सामुच्छिदेका – क्षणिक भाव मानने वाले, दो क्रिया – एक समय में दो क्रिया मानने वाले, त्रैराशिका | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 702 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिव-ज्जेज्जा, तं जहा– करिंसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविनए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ
अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा–
१. मायिस्स णं अस्सिं लोए गरहिते भवति।
२. उववाए Translated Sutra: आठ कारणों से मायावी माया करके न आलोयणा करता है, न प्रतिक्रमण करता है, यावत् – न प्रायश्चित्त स्वीकारता है, यथा – मैंने पापकर्म किया है अब मैं उस पाप की निन्दा कैसे करूँ ? मैं वर्तमान में भी पाप करता हूँ अतः मैं पाप की आलोचना कैसे करूँ ? मैं भविष्य में भी यह पाप करूँगा – अतः मैं आलोचना कैसे करूँ ? मेरी अपकीर्ति होगी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 714 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधा वयणविभत्ती पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: वचन विभक्ति आठ प्रकार की कही गई है, यथा – निर्देश में प्रथमा – वह, यह, मैं। उपदेश में द्वीतिया – यह करो। इस श्लोक को पढ़ो। करण में तृतीया – मैंने कुण्ड बनाया। सम्प्रदान में चतुर्थी – नमः स्वस्ति, स्वाहा के योग में। अपादान में पंचमी – पृथक् करने में तथा ग्रहण करने में, यथा – कूप से जल नीकाल, कोठी में से धान्य ग्रहण | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 720 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हवइ पुण सत्तमी तमिमम्मि आहारकालभावे य ।
आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! त्ति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७१४ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 730 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधे अद्धोवमिए पन्नत्ते, तं जहा–पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी, उस्सप्पिणी, पोग्गल-परियट्टे, तीतद्धा, अणागतद्धा, सव्वद्धा। Translated Sutra: औपमिक काल आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा – पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गल – परावर्तन, अतीतकाल, भविष्यकाल, सर्वकाल। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 743 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कालोदे णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: कालोद समुद्र की वलयाकार चौड़ाई आठ लाख योजन की है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 781 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ कप्पा तिरियमिस्सोववन्नगा पन्नत्ता, तं जहा–सोहम्मे, ईसाने, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे।
एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा पन्नत्ता, तं जहा– सक्के, ईसाने, सनंकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे।
एतेसि णं अट्ठण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा पन्नत्ता, तं जहा–पालए, पुप्फए, सोमनसे, सिरिवच्छे, नंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमने, मणोरमे। Translated Sutra: तिर्यंच और मनुष्यों की उत्पत्ति वाले आठ काल (देवलोक) हैं, यथा – सौधर्म यावत् सहस्त्रारेन्द्र। इन आठ कल्पों में आठ इन्द्र हैं, यथा – शक्रेन्द्र यावत् सहस्त्रारेन्द्र। इन आठ इन्द्रोंके आठ यान विमान हैं – पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नंदावर्त, कामक्रम, प्रीतिमद, विमल | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 815 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगे णं महानिधी नव-नव जोयणाइं विक्खंभेणं पन्नत्ते।
एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स नव महानिहिओ पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: प्रत्येक चक्रवर्ती की नौ महानिधियाँ हैं, और प्रत्येक महानिधि नौ नौ योजन की चौड़ी हैं। यथा – नैसर्प, पाँडुक, पिंगल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक और शंख। सूत्र – ८१५, ८१६ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 816 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण महापउमे ।
काले य महाकाले, मानवग महानिही संखे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८१५ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 822 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले कालण्णाणं, भव्व पुराणं च तीसु वासेसु ।
सिप्पसतं कम्माणि य, तिन्नि पयाए हियकराइं ॥ Translated Sutra: काल महानिधि – काल, शिल्प, कृषि का ज्ञान उत्पन्न होता है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 823 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च ।
रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥ Translated Sutra: महाकाल महानिधि – इसके प्रभाव से लोहा, चाँदी, सोना, मणी, मोती, स्फटिकशिला और प्रवाल आदि के खानों की उत्पत्ति होती है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: हे आर्य ! यह श्रेणिक राजा मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतक नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की नारकीय स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होगा और अति तीव्र यावत् – असह्य वेदना भोगेगा। यह उस नरक से नीकलकर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्यपर्वत के समीप पुण्ड्र जनपद के शतद्वार | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 875 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ,
तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति Translated Sutra: उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा – अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक। ये अण्डज – हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज – हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक – मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं। ये प्रग्रहिक – पात्र आदि मेरे हैं। ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस – जिस | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 881 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभेणं अरहा कोसलिएणं इमीसे ओसप्पिणीए नवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं वोइक्कंताहिं तित्थे पवत्तिते। Translated Sutra: कौशलिक भगवान ऋषभदेव न इस अवसर्पिणी में नौ क्रोड़ाक्रोड़ सागरोपम काल बीतने पर तीर्थ प्रवर्ताया। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 888 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा लोगट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा–
१. जण्णं जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायंति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता।
२. जण्णं जीवाणं सया समितं पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता।
३. जण्णं जीवाणं सया समितं मोहणिज्जे पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता।
४. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता।
५. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं तसा पाणा वोच्छिज्जिस्संति ‘थावरा पाणा भविस्संति’, थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति–एवंप्पेगा Translated Sutra: लोक स्थिति दस प्रकार की है, यथा – जीव मरकर बार – बार लोक में ही उत्पन्न होते हैं। जीव सदा पापकर्म करते हैं। जीव सदा मोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं। तीन काल में जीव अजीव नहीं होते हैं और अजीव जीव नहीं होते हैं। तीन काल में त्रसप्राणी और स्थावर प्राणी विच्छिन्न नहीं होते हैं। तीन काल में लोक अलोक नहीं होता है और | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 891 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस इंदियत्था तीता पन्नत्ता, तं जहा– देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिंसु। सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणिंसु। देसेणवि एगे रूवाइं पासिंसु। सव्वेणवि एगे रूवाइं पासिंसु। देसेणवि एगे गंधाइं जिंघिंसु। सव्वेणवि एगे गंधाइं जिंघिंसु। देसेणवि एगे रसाइं आसादेंसु। सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेंसु। देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेंसु। सव्वेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेंसु।
[सूत्र] दस इंदियत्था पडुप्पण्णा पन्नत्ता, तं जहा–देसेणवि एगे सद्दाइं सुणेंति। सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणेंति। देसेणवि एगे रूवाइं पासंति। सव्वेणवि एगे रूवाइं पासंति। देसेणवि एगे गंधाइं जिंघंति। सव्वेणवि एगे गंधाइं जिंघंति। Translated Sutra: इन्द्रियों के दश विषय अतीत काल के हैं, यथा – अतीत में एक व्यक्ति ने एक देश से शब्द सूना। अतीत में एक व्यक्ति ने सर्व देश से शब्द सूना। इसी प्रकार रूप, रस, गंध और स्पर्श के दो – दो भेद हैं। इन्द्रियों के दश विषय वर्तमान काल के हैं, यथा – वर्तमान में एक व्यक्ति एक देश से शब्द सूनता है। वर्तमान में एक व्यक्ति सर्व देश | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 901 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे अंतलिक्खए असज्झाइए पन्नत्ते, तं जहा–उक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विज्जुते, निग्घाते, जुवए, उक्खालित्ते, धूमिया, महिया, रयुग्घाते।
दसविधे ओरालिए असज्झाइए पन्नत्ते, तं जहा–अट्ठि, मंसे, सोणिते, असुइसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराए, सूरोवराए, पडणे, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे। Translated Sutra: आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का है, यथा – उल्कापात – आकाश से प्रकाश पुंज का गिरना। दिशादाह – महानगर के दाह के समान आकाश में प्रकाश का दिखाई देना। गर्जना – आकाश में गर्जना होना। विद्युत – अकाल में विद्युत चमकना। निर्घात – आकाश में व्यन्तर देव कृत महाध्वनि अथवा भूकम्प की ध्वनि। जूयग – संध्या और चन्द्रप्रभा | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 918 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे दवियाणुओगे पन्नत्ते, तं जहा–दवियाणुओगे, माउयाणुओगे, एगट्ठियाणुओगे, करणाणुओगे, अप्पितणप्पिते, भाविताभाविते, बाहिराबाहिरे, सासतासासते, तहनाणे, अतहनाणे। Translated Sutra: द्रव्यानुयोग दस प्रकार का है, यथा – द्रव्यानुयोग, जीवादि द्रव्यों का चिन्तन यथा – गुण – पर्यायवद् द्रव्यम्। मातृकानुयोग – उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीन पदों का चिन्तन। यथा – उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्। एकार्थिका – नुयोग – एक अर्थ वाले शब्दों का चिन्तन। यथा – जीव, प्राण, भूत और सत्त्व इन एकार्थवाची | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 919 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पन्नत्ते
चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारन्नो सोमप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ते।
चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारन्नो जमप्पभे उप्पातपव्वते एवं चेव।
एवं वरुणस्सवि। एवं वेसमणस्सवि।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पन्नत्ते।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स Translated Sutra: असुरेन्द्र चमर का तिगिच्छा कूट उत्पात पर्वत मूल में दस – सौ बाईस (१०२२) योजन चौड़ा है। असुरेन्द्र चमर के सोम लोकपाल का सोमप्रभ उत्पाद पर्वत दस सौ (एक हजार) योजन का ऊंचा है, दस सौ (एक हजार) गाऊ का भूमि में गहरा है, मूल में (भूमि पर) दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है। असुरेन्द्र चमर के यम – लोकपाल का यमप्रभ उत्पात पर्वत का | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 922 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे अनंतए पन्नत्ते, तं जहा–नामानंतए ठवनानंतए, दव्वानंतए, गणणानंतए, पएसानंतए, एगणोनंतए, दुहणोनंतए, देसवित्थारानंतए, सव्ववित्थारानंतए सासतानंतए। Translated Sutra: अनन्तक दश प्रकार के हैं, यथा – नाम अनन्तक – सचित्त या अचित्त वस्तु का अनन्तक नाम। स्थापना अनन्तक – अक्ष आदि में किसी पदार्थ में अनन्त की स्थापना। द्रव्य अनन्तक – जीव द्रव्य या पुद्गल द्रव्य का अनन्त पना। गणना – अनन्तक एक, दो, तीन इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त पर्यन्त गिनती करना। प्रदेश अनन्तक – आकाश | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 948 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे विसेसे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: विशेष दोष दस प्रकार के हैं। यथा – वस्तु – पक्ष में प्रत्यक्ष निराकृत आदि दोष का कथन, तज्जातदोष – जाति कुल आदि दोष का देना, दोष – मतिभंगादि पूर्वोक्त आठ दोषों की अधिकता, एकार्थिक दोष – समानार्थक शब्द कहना, कारणदोष – कारण को विशेष महत्त्व देना, प्रत्युत्पन्नदोष – वर्तमान में उत्पन्न दोष का विशेष रूप से कथन, नित्यदोष | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 950 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे सुद्ध वायाणुओगे पन्नत्ते, तं जहा– चंकारे, मंकारे, पिंकारे, सेयंकारे, एगत्ते, पुधत्ते, संजूहे, संकामिते, भिण्णे। Translated Sutra: शुद्ध वागनुयोग दस प्रकार का है, यथा – चकारानुयोग – वाक्य में आने वाले ‘च’ का विचार। मकारानुयोग – वाक्य में आने वाले ‘म’ का विचार। अपिकारानुयोग – ‘अपि’ शब्द का विचार। सेकारानुयोग – आनन्तर्यादि सूचक ‘से’ शब्द का विचार। सायंकारानुयोग – ठीक अर्थ में प्रयुक्त ‘सायं’ का विचार। एकत्वानुयोग – एक वचन के सम्बन्ध | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 952 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुकंपा संगहे चेव, भये कालुणिएति य लज्जाए गारवेणं च ।
अहम्मे उण सत्तमे धम्मे य अट्ठमे वुत्ते, काहीति य कतंति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९५१ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 957 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: प्रत्याख्यान दस प्रकार के हैं, यथा – अनागत प्रत्याख्यान – भविष्य में तप करने से आचार्यादि की सेवा में बाधा आने की सम्भावना होने पर पहले तप कर लेना। अतिक्रान्त प्रत्याख्यान – आचार्यादि की सेवा में किसी प्रकार की बाधा न आवे इस संकल्प से जो तप अतीत में नहीं किया जा सका उस तप को वर्तमान में करना। कोटी सहित प्रत्याख्यान | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 960 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्छा मिच्छा तहुक्कारो, आवस्सिया य निसीहिया आपुच्छणा य पडिपुच्छा ।
छंदणा य निमंतणा उवसंपया य काले, सामायारी दसविहं तु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९५९ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 961 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा–
१. एगं च णं ‘महं घोररूवदित्तधरं’ तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे।
२. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयनामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुए। यथा – प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड़ जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए। द्वीतिय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 976 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणीए।
दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणीए। Translated Sutra: दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण उत्सर्पिणीकाल है। दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण अवसर्पिणीकाल हैं | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 979 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे आसंसप्पओगे पन्नत्ते, तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, दुहओलोगा-संसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामासंसप्पओगे, भोगासंसप्पओगे, लाभा-संसप्पओगे, पूयासंसप्पओगे, सक्कारासंसप्पओगे। Translated Sutra: आशंसा प्रयोग दश प्रकार के हैं, यथा – इहलोक आशंसा प्रयोग – मैं अपने तप के प्रभाव से चक्रवर्ती आदि होऊं। परलोक आशंसा प्रयोग – मैं अपने तप के प्रभाव से इन्द्र अथवा सामान्य देव बनूँ, उभयलोक आशंसा प्रयोग – मैं अपने तप के प्रभाव से इस भव में चक्रवर्ती बनूँ और परभव में इन्द्र बनूँ। जीवित आशंसा प्रयोग – मैं चिरकाल तक | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 985 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसहिं ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तं जहा– अकाले वरिसइ, काले न वरिसइ, असाहू पूइज्जंति, साहू न पूइज्जंति, गुरुसु जनो मिच्छं पडिवन्नो, अमणुन्ना सद्दा, अमणुन्ना रूवा, अमणुन्ना गंधा, अमणुन्ना रसा, अमणुन्नाफासा।
दसहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा– अकाले ण वरिसति, काले वरिसति, असाहू न पूइज्जंति, साहू पूइज्जंति, गुरुसु जणो सम्मं पडिवण्णो, मणुन्ना सद्दा, मणुन्ना रूवा, मणुन्ना गंधा, मणुन्ना रसा, मणुन्ना फासा। Translated Sutra: दश लक्षणों से पूर्ण दुषम काल जाना जाता है, यथा – अकाल में वर्षा हो, काल में वर्षा न हो, असाधु की पूजा हो, साधु की पूजा न हो, माता पिता आदि का विनय न करे, अमनोज्ञ शब्द यावत् स्पर्श। दश कारणों से पूर्ण सुषमकाल जाना जाता है, यथा – अकाल में वर्षा न हो, शेष पूर्व कथित से विपरीत यावत् मनोज्ञ स्पर्श। |