Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (44304)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 403 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावई अप्पनो सअट्ठाए अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, विज्झावेज्ज वा। अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एते खलु अगणिकायं उज्जालंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झावेंतु वा मा वा विज्झावेंतु। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे [सागारिए?] उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक मकान में साधु का निवास करना इसलिए भी कर्मबन्ध का कारण है कि उसमें गृह – स्वामी अपने प्रयोजन के लिए अग्निकाय को उज्जवलित – प्रज्वलित करेगा, प्रज्वलित अग्नि को बुझाएगा। वहाँ रहते हुए भिक्षु के मन में कदाचित्‌ ऊंचे – नीचे परिणाम आ सकते हैं कि ये गृहस्थ अग्नि को उज्ज्वलित करे अथवा उज्जवलित न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 404 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, ‘हिरण्णे वा’, ‘सुवण्णे वा’, कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयनावली वा, तरुणियं वा कुमारिं अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा–एरिसिया वा सा नो वा एरिसिया–इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे [सागारिए?] उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक जगह निवास करना साधु के लिए कर्मबन्ध का कारण है। जैसे कि उस मकान में गृहस्थ के कुण्डल, करधनी, मणि, मुक्ता, चाँदी, सोना या सोने के कड़े, बाजूबंद, तीनलड़ा – हार, फूलमाला, अठारह लड़ी का हार, नौ लड़ी का हार, एकावली हार, मुक्तावली हार, या कनकावली हार, रत्नावली हार, अथवा वस्त्रा – भूषण आदि से अलंकृत और विभूषित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 405 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइणीओ वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ -सुण्हाओ वा, गाहावइ-धाईओ वा, गाहावइ-दासीओ वा, गाहावइ-कम्मकरीओ वा। तासिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, नो खलु एतेसिं कप्पइ मेहुणं धम्मं परियारणाए आउट्टित्तए। जा य खलु एएहिं सद्धिं मेहुणं धम्मं परियारणाए आउट्टेज्जा, पुत्तं खलु सा लभेज्जा–ओयस्सिं तेयस्सिं वच्चस्सिं जसस्सिं संप-राइयं आलोयण-दरिसणिज्जं। एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म तासिं च णं अन्नय्ररि सड्ढी तं तवस्सिं भिक्खुं

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ एक स्थान में निवास करने वाले साधु के लिए कि उसमें गृहपत्नीयाँ, गृहस्थ की पुत्रियाँ, पुत्रवधूएं, उसकी धायमाताएं, दासियाँ या नौकरानियाँ भी रहेंगी। उनमें कभी परस्पर ऐसा वार्तालाप भी होना सम्भव है कि, ‘ये जो श्रमण भगवान होते हैं, वे शीलवान, वयस्क, गुणवान, संयमी, शान्त, ब्रह्मचारी एवं मैथुन धर्म से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-१ असमनोज्ञ विमोक्ष Hindi 214 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो सव्वावंति च णं पडियक्कं ‘जीवेहिं कम्मसमारंभे णं’। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं एतेहिं काएहिं दंडं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं एतेहिं काएहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवन्नेएतेहिं काएहिं दंडं समारंभंते वि समणुजाणेज्जा। जेवण्णे एतेहिं काएहिं दंडं समारंभंति, तेसिं पि वयं लज्जामो। तं परिण्णाय मेहावी तं वा दंडं, अन्नं वा दंडं, नोदंडभी दंडं समारंभेज्जासि।

Translated Sutra: ऊंची, नीची एवं तीरछी, सब दिशाओं में सब प्रकार से एकेन्द्रियादि जीवों में से प्रत्येक को लेकर कर्म – समारम्भ किया जाता है। मेधावी साधक उसका परिज्ञान करके, स्वयं इन षट्‌जीवनिकायों के प्रति दण्ड समारम्भ न करे, न दूसरों से इन जीवनिकायों के प्रति दण्ड समारम्भ करवाए और न ही जीवनिकायों के प्रति दण्ड समारम्भ करने
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 215 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिट्ठेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा, सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभारायतणंसि वा, हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावती बूया–आउसंतो समणा! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेतेमि, आवसहं वा समुस्सिणोमि, से भुंजह वसह आउसंतो समणा! भिक्खू तं गाहावतिं समणसं सवयसं पडियाइक्खे–आउसंतो गाहावती! नो खलु ते वयणं आढामि, नो खलु ते वयणं

Translated Sutra: वह भिक्षु कहीं जा रहा हो, श्मशान में, सून मकान में, पर्वत की गुफा में, वृक्ष के नीचे, कुम्भारशाला में या गाँव के बाहर कहीं खड़ा हो, बैठा हो या लेटा हुआ हो अथवा कहीं भी विहार कर रहा हो, उस समय कोई गृहपति उसके पास आकर कहे – ‘‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! मैं आपके लिए अशन, पान, खाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादप्रोंछन; प्राण, भूत, जीव
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 216 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिट्ठेज्ज वा, निसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभारायतणंसि वा, हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावती आयगयाए पेहाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ, आवसहं वा समुस्सिनाति तं भिक्खुं परिघासेउं। तं च भिक्खू जाणेज्जा– सहसम्मइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं

Translated Sutra: वह भिक्षु जा रहा है, यावत्‌ लेटा हुआ है, अथवा कहीं भी विचरण कर रहा है, उस समय उस भिक्षु के पास आकर कोई गृहपति अपने आत्मगत भावों को प्रकट किये बिना प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के समारम्भपूर्वक अशन, पान आदि बनवाता है, साधु के उद्देश्य से मोल लेकर, यावत्‌ घर से लाकर देना चाहता है या उपाश्रय कराता है, वह उस भिक्षु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 217 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खुं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति– ‘से हंता! हणह, खणह, छिंदह, दहह, पचह, आलुंपह, विलुंपह, सहसाकारेह, विप्परामुसह’ – ते फासे ‘धीरो पुट्ठो’ अहियासए। अदुवा आयार-गोयरमाइक्खे, तक्किया ण मणेलिसं। ‘अनुपुव्वेण सम्मं पडिलेहाए आयगुत्ते। अदुवा गुत्ती गोयरस्स’। बुद्धेहिं एयं पवेदितं–

Translated Sutra: भिक्षु से पूछकर या बिना पूछे ही किसी गृहस्थ द्वारा ये (आहारादि पदार्थ) भिक्षु के समक्ष भेंट के रूप में लाकर रख देने पर (जब मुनि उन्हें स्वीकार नहीं करता), तब वह उसे परिताप देता है; मारता है, अथवा अपने नौकरों को आदेश देता है कि इसको पीटो, घायल कर दो, इसके हाथ – पैर आदि काट डालो, उसे जला दो, इसका माँस पकाओ, इसके वस्त्रादि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 218 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से समणुण्णे असमणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा णोपाएज्जा, णोनिमंतेज्जा, णोकुज्जा वेयावाडियं–परं आढायमाणे

Translated Sutra: वह समनोज्ञ मुनि असमनोज्ञ साधु को अशन – पान आदि तथा वस्त्र – पात्र आदि पदार्थ अत्यन्त आदरपूर्वक न दे, न उन्हें देने के लिए निमन्त्रित करे और न ही उनका वैयावृत्य करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-२ अकल्पनीय विमोक्ष Hindi 219 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धम्ममायाणह, पवेइयं माहणेण मतिमया–समणुण्णे समणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाएज्जा, णिमंतेज्जा, कुज्जा वेयावडियं–परं आढायमाणे।

Translated Sutra: मतिमान्‌ महामाहन श्री वर्द्धमान स्वामी द्वारा प्रतिपादित धर्म को भली – भाँति समझ लो कि समनोज्ञ साधु समनोज्ञ साधु को आदरपूर्वक अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन आदि दे, उन्हें देने के लिए मनुहार करे, उनका वैयावृत्य करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 220 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मज्झिमेणं वयसा एगे, संबुज्झमाणा समुट्ठिता। ‘सोच्चा वई मेहावी’, पंडियाणं निसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते। ते अणवकंखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिग्गहमाणा नो ‘परिग्गहावंतो सव्वावंतो’ च णं लोगंसि। णिहाय दंडं पाणेहिं, पावं कम्मं अकुव्वमाणे, एस महं अगंथे वियाहिए। ओए जुतिमस्स खेयण्णे उववायं चवणं च नच्चा।

Translated Sutra: कुछ व्यक्ति मध्यम वय में भी संबोधि प्राप्त करके मुनिधर्म में दीक्षित होने के लिए उद्यत होते हैं। तीर्थंकर तथा श्रुतज्ञानी आदि पण्डितों के वचन सूनकर, मेधावी साधक (समता का आश्रय ले, क्योंकि) आर्यों ने समता में धर्म कहा है, अथवा तीर्थंकरों ने समभाव से धर्म कहा है। वे कामभोगों की आकांक्षा न रखनेवाले, प्राणियों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 221 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आहारोवचया देहा, परिसह-पभंगुरा। पासगेहे सव्विंदिएहिं परिगिलायमाणेहिं।

Translated Sutra: शरीर आहार से उपचित होते हैं, परीषहों के आघात से भग्न हो जाते हैं; किन्तु तुम देखो, आहार के अभाव में कईं साधक क्षुधा से पीड़ित होकर सभी इन्द्रियों से ग्लान हो जाते हैं। राग – द्वेष से रहित भिक्षु दया का पालन करता है
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 222 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ओए दयं दयइ। जे सन्निहाण सत्थस्स खेयण्णे। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयण्णे समयण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे। दुहओ छेत्ता नियाइ।

Translated Sutra: जो भिक्षु सन्निधान – (आहारादि के संचय) के शस्त्र (संयमघातक प्रवृत्ति) का मर्मज्ञ है। वह भिक्षु कालज्ञ, बलज्ञ, मात्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ, समयज्ञ होता है। वह परिग्रह पर ममत्व न करने वाला, उचित समय पर अनुष्ठान करने वाला, किसी प्रकार की मिथ्या आग्रहयुक्त प्रतिज्ञा से रहित एवं राग और द्वेष के बन्धनों को छेदन करके
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित Hindi 223 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं भिक्खुं सीयफास-परिवेवमाणगायं उवसंकमित्तु गाहावई बूया–आउसंतो समणा! नो खलु ते गामधम्मा उव्वाहंति? आउसंतो गाहावई! नो खलु मम गामधम्मा उव्वाहंति। सीयफासं नो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए। नो खलु मे कप्पति अगणिकायं उज्जालेत्तए वा पज्जालेत्तए वा, कायं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा अन्नेसिं वा वयणाओ। सिया से एवं वदंतस्स परो अगणिकायं उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता कायं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए।

Translated Sutra: शीत – स्पर्श से काँपते हुए शरीर वाले उस भिक्षु के पास आकर कोई गृहपति कहे – आयुष्मान्‌ श्रमण ! क्या तुम्हें ग्रामधर्म (इन्द्रिय – विषय) तो पीड़ित नहीं कर रहे हैं ? (इस पर मुनि कहता है) आयुष्मन्‌ गृहपति ! मुझे ग्राम – धर्म पीड़ित नहीं कर रहे हैं, किन्तु मेरा शरीर दुर्बल होने के कारण मैं शीत – स्पर्श को सहन करने में समर्थ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 224 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं, तस्स णं नो एवं भवति–चउत्थं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं।

Translated Sutra: जो भिक्षु तीन वस्त्र और चौथा पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि ‘मैं चौथे वस्त्र की याचना करूँगा। वह यथा – एषणीय वस्त्रों की याचना करे और यथापरिगृहीत वस्त्रों को धारण करे। वह उन वस्त्रों को न तो धोए और न रंगे, न धोए – रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे। दूसरे ग्रामों में जाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 225 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा संतरुत्तरे। अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले।

Translated Sutra: जब भिक्षु यह जान ले कि ‘हेमन्त ऋतु’ बीत गई है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह जिन – जिन वस्त्रों को जीर्ण समझे, उनका परित्याग कर दे। उन यथापरिजीर्ण वस्त्रों का परित्याग करके या तो एक अन्तर (सूती) वस्त्र और उत्तर (ऊनी) वस्त्र साथ में रखे; अथवा वह एकशाटक वाला होकर रहे। अथवा वह अचेलक हो जाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 226 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति।

Translated Sutra: (इस प्रकार) लाघवता को लाता या उसका चिन्तन करता हुआ वह उस वस्त्रपरित्यागी मुनि के (सहज में ही) तप सध जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 227 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जमेयं भगवया पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: भगवान ने जिस प्रकार से इस (उपधि – विमोक्ष) का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में गहराई – पूर्वक जानकर सब प्रकार से सर्वात्मना (उसमें निहित) समत्व को सम्यक्‌ प्रकार से जाने व कार्यान्वित करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-४ वेहासनादि मरण Hindi 228 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीय-फासं अहियासित्तए, से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे। तवस्सिनो हु तं सेयं, जमेगे विहमाइए। तत्थावि तस्स कालपरियाए। से वि तत्थ विअंतिकारए। इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं।

Translated Sutra: जिस भिक्षु को यह प्रतीत हो कि मैं आक्रान्त हो गया हूँ, और मैं इस अनुकूल परीषहों को सहन करने में समर्थ नहीं हूँ, (वैसी स्थिति में) कोई – कोई संयम का धनी भिक्षु स्वयं को प्राप्त सम्पूर्ण प्रज्ञान एवं अन्तःकरण से उस उपसर्ग के वश न हो कर उसका सेवन न करने के लिए दूर हो जाता है। उस तपस्वी भिक्षु के लिए वही श्रेयस्कर है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Hindi 229 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायतइएहिं, तस्स णं नो एवं भवति–तइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा। अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा। णोधोएज्जा, णोरएज्जा, णोधोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेत्ता– अदुवा एगसाडे। अदुवा अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। जस्स

Translated Sutra: जो भिक्षु दो वस्त्र और तीसरे पात्र रखने की प्रतिज्ञा में स्थित है, उसके मन में यह विकल्प नहीं उठता कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूँ। वह अपनी कल्पमर्यादानुसार ग्रहणीय वस्त्रों की याचना करे। इससे आगे वस्त्र – विमोक्ष के सम्बन्ध में पूर्ववत्‌ समझ लेना चाहिए। यदि भिक्षु यह जाने कि हेमन्त ऋतु व्यतीत हो गई है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-५ ग्लान भक्त परिज्ञा Hindi 230 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे–अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहिं, गिलानो अगिलाणेहिं, अभिकंख साह-म्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि। अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलानो गिलाणस्स, अभिकंख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए। आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्टु पइण्णं णोआणक्खेस्सामि, आहडं च णोसाति-ज्जिस्सामि। ‘लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए

Translated Sutra: जिस भिक्षु का यह प्रकल्प होता है कि मैं ग्लान हूँ, मेरे साधर्मिक साधु अग्लान हैं, उन्होंने मुझे सेवा करने का वचन दिया है, यद्यपि मैंने अपनी सेवा के लिए उनसे निवेदन नहीं किया है, तथापि निर्जरा की अभिकांक्षा से साधर्मिकों द्वारा की जाने वाली सेवा मैं रुचिपूर्वक स्वीकार करूँगा। (१) (अथवा) मेरा साधर्मिक भिक्षु ग्लान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 231 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स नो एवं भवइ–बिइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा। अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेत्ता– ‘अदुवा अचेले’। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: जो भिक्षु एक वस्त्र और दूसरा पात्र रखने की प्रतिज्ञा स्वीकार कर चूका है, उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि में दूसे वस्त्र की याचना करूँगा। वह यथा – एषणीय वस्त्र की याचना करे। यहाँ से लेकर आगे ‘ग्रीष्मऋतु आ गई’ तक का वर्णन पूर्ववत्‌। भिक्षु यह जान जाए कि अब ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 232 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ–एगो अहमंसि, न मे अत्थि कोइ, न याहमवि कस्सइ, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवइ। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: जिस भिक्षु के मन में ऐसा अध्यवसाय हो जाए कि ‘मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है, और न मैं किसी का हूँ,’ वह अपनी आत्मा को एकाकी ही समझे। (इस प्रकार) लाघव का सर्वतोमुखी विचार करता हुआ (वह सहाय – विमोक्ष करे तो) उसे तप सहज में प्राप्त हो जाता है। भगवान ने इसका जिस रूप में प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 233 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेमाणे णोवामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारेज्जा आसाएमाणे, दाहिणाओ वा हणुयाओ वामं हणुयं नो संचारेज्जा आसाएमाणे, से अणासायमाणे। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवइ। जमेयं भगवता पवेइयं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी अशन आदि आहार करते समय आस्वाद लेते हुए बाँए जबड़े से दाहिने जबड़े में न ले जाए, दाहिने जबड़े से बाँए जबड़े में न ले जाए। यह अनास्वाद वृत्ति से लाघव का समग्र चिन्तन करते हुए (आहार करे)। (स्वाद – विमोक्ष से) वह तप का सहज लाभ प्राप्त करता है। भगवान ने जिस रूप में स्वाद – विमोक्ष का प्रतिपादन किया है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 234 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–से ‘गिलामि च’ खलु अहं इमंसि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेत्ता, कसाए पयणुए किच्चा, समाहियच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे।

Translated Sutra: जिस भिक्षु के मन में ऐसा अध्यवसाय हो जाता है कि सचमुच मैं इस समय इस शरीर को वहन करने में क्रमशः ग्लान हो रहा हूँ, वह भिक्षु क्रमशः आहार का संवर्तन करे और कषायों को कृश करे। समाधियुक्त लेश्या वाला तथा फलक की तरह शरीर और कषाय दोनों ओर से कृश बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के लिए उत्थित होकर शरीर के सन्ताप को शान्त कर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण Hindi 235 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, निगमं वा, रायहाणिं वा, ‘तणाइं जाएज्जा, तणाइं जाएत्ता, से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंगपणग-दग मट्टिय-मक्कडासंताणए, ‘पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तणाइं संथरेज्जा, तणाइं संथरेत्ता’ एत्थ वि समए इत्तरियं कुज्जा। तं सच्चं सच्चावादी ओए तिण्णे छिन्न-कहंकहे आतीतट्ठे अनातीते वेच्चाण भेउरं कायं, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सिं ‘विस्सं भइत्ता’ भेरवमणुचिण्णे। तत्थावि

Translated Sutra: क्रमशः ग्राम में, नगर में, खेड़े में, कर्बट में, मडंब में, पट्टन में, द्रोणमुख में, आकर में, आश्रम में, सन्निवेश में, निगम में या राजधानी में प्रवेश करके घास की याचना करे। उसे लेकर एकान्त में चला जाए। वहाँ जाकर जहाँ कीड़े आदि के अंडे, जीव – जन्तु, बीज, हरियाली, ओस, उदक, चींटियों के बिल, फफूँदी, काई, पानी का दलदल या मकड़ी के
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 236 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अचेले परिवुसिते, ‘तस्स णं’ एवं भवति–चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए, सीयफासं अहियासि-त्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दंस-मसगफास अहियासित्तए, एगतरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं चहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडि-बंधणं धारित्तए।

Translated Sutra: जो भिक्षु अचेल – कल्प में स्थित है, उस भिक्षु का ऐसा अभिप्राय हो कि मैं घास के स्पर्श सहन कर सकता हूँ, गर्मी का स्पर्श सहन कर सकता हूँ, डाँस और मच्छरों के काटने को सह सकता हूँ, एक जाति के या भिन्न – भिन्न जाति, नाना प्रकार के अनुकूल या प्रतिकूल स्पर्शों को सहन करने में समर्थ हूँ, किन्तु मैं लज्जा निवारणार्थ प्रति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 237 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सोयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, गयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: अथवा उस (अचेलकल्प) में ही पराक्रम करते हुए लज्जाजयी अचेल भिक्षु को बार – बार घास का स्पर्श चूभता है, शीत का स्पर्श होता है, गर्मी का स्पर्श होता है, डाँस और मच्छर काटते हैं, फिर भी वह अचेल उन एक – जातीय या भिन्न – भिन्न जातीय नाना प्रकार के स्पर्शों को सहन करे। लाघव का सर्वांगीण चिन्तन करता हुआ (वह अचेल रहे)। अचेल
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 238 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–अहं च खलु अन्नेसिं भिक्खूणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलइस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि। जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–अहं च खलु अन्नेसिं भिक्खूणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु दलइस्सामि, आहडं च णोसातिज्जिस्सामि। जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–अहं च खलु ‘अन्नेसिं भिक्खूणं’ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु णोदलइस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि। जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति–अहं खलु अन्नेसिं भिक्खूणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्टु णोदलइस्सामि, आहडं च नो सातिज्जिस्सामि। अहं च खलु तेण अहाइरित्तेणं अहेसणिज्जेणं

Translated Sutra: जिस भिक्षु को ऐसी प्रतिज्ञा होती है कि मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि लाकर दूँगा और उनके द्वारा लाये हुए का सेवन करूँगा। (१) अथवा जिस भिक्षु की ऐसी प्रतिज्ञा होती है कि मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि लाकर दूँगा, लेकिन उनके द्वारा लाये हुए का सेवन नहीं करूँगा। (२) अथवा जिस भिक्षु की ऐसी प्रतिज्ञा होती है कि मैं दूसरे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 239 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति– से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं आणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेत्ता कसाए पयणुए किच्चा समाहिअच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे। अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, निगमं वा, रायहाणिं वा, तणाइं जाएज्जा, तणाइं जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय

Translated Sutra: जिस भिक्षु के मन में यह अध्यवसाय होता है कि मैं वास्तव में इस समय इस शरीर को क्रमशः वहन करने में ग्लान हो रहा हूँ। वह भिक्षु क्रमशः आहार का संक्षेप करे। आहार को क्रमशः घटाता हुआ कषायों को भी कृश करे। यों करता हुआ समाधिपूर्ण लेश्या वाला तथा फलक की तरह शरीर और कषाय, दोनों ओर से कृश बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 240 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘आणुपुव्वी-विमोहाइं’, जाइं धीरा समासज्ज । वसुमंतो मइमंतो, सव्वं नच्चा अणेलिसं ॥

Translated Sutra: जो (भक्तप्रत्याख्यान, इंगितमरण एवं प्रायोपगमन, ये तीन) विमोह क्रमशः हैं, धैर्यवान्‌, संयम का धनी एवं मतिमान्‌ भिक्षु उनको प्राप्त करके सब कुछ जानकर एक अद्वितीय (समाधिमरण को अपनाए)।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 241 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं पि विदित्ताणं, बुद्धा धम्मस्स पारगा । अणुपुव्वीए संखाए, आरंभाओ तिउट्टति ॥

Translated Sutra: वे धर्म के पारगामी प्रबुद्ध भिक्षु दोनों प्रकार से हेयता का अनुभव करके क्रम से विमोक्ष का अवसर जान – कर आरंभ से सम्बन्ध तोड़ लेते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 242 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कसाए पयणुए किच्चा, अप्पाहारो तितिक्खए । अह भिक्खू गिलाएज्जा, आहारस्सेव अंतियं ॥

Translated Sutra: वह कषायों को कृश करके, अल्पाहारी बनकर परीषहों एवं दुर्वचनों को सहन करता है, यदि ग्लानि को प्राप्त होता है, तो भी आहार के पास न जाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 243 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवियं नाभिकंखेज्जा, मरणं णोवि पत्थए । दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविते मरणे तहा ॥

Translated Sutra: (संलेखना एवं अनशन – साधना में स्थित श्रमण) न तो जीने की आकांक्षा करे, न मरने की अभिलाषा करे। जीवन और मरण दोनों में भी आसक्त न हो।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 244 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मज्झत्थो णिज्जरापेही, समाहिमणुपालए । अंतो बहिं विउसिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥

Translated Sutra: वह मध्यस्थ और निर्जरा की भावना वाला भिक्षु समाधि का अनुपालन करे। आन्तरिक तथा बाह्य पदार्थों का व्युत्सर्ग करके शुद्ध अध्यात्मएषणा करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 245 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं किंचुवक्कमं जाणे, आउक्खेमस्स अप्पनो । तस्सेव अंतरद्धाए, खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए ॥

Translated Sutra: यदि अपनी आयु के क्षेम में जरा – सा भी उपक्रम जान पड़े तो उस संलेखना काल के मध्य में ही पण्डित भिक्षु शीघ्र पण्डितमरण को अपना ले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 246 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गामे वा अदुवा रण्णे, थंडिलं पडिलेहिया । अप्पपाणं तु विण्णाय, तणाइं संथरे मुनी ॥

Translated Sutra: (संलेखन – साधक) ग्राम या वन में जाकर स्थण्डिलभूमि का प्रतिलेखन करे, उसे जीव – जन्तुरहित स्थान जानकर मुनि (वहीं) घास बिछा ले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 247 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणाहारो तुअट्टेज्जा, पुट्ठो तत्थहियासए । नातिवेलं उवचरे, माणुस्सेहिं वि पुट्ठओ ॥

Translated Sutra: वह वहीं निराहार हो कर लेट जाए। उस समय परीषहों और उपसर्गों से आक्रान्त होने पर सहन करे। मनुष्यकृत उपसर्गों से आक्रान्त होने पर भी मर्यादा का उल्लंघन न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 248 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्ढमहेचरा । भुंजंति मंस-सोणियं, ण छणे ण पमज्जए ॥

Translated Sutra: जो रेंगने वाले प्राणी हैं, या जो आकाश में उड़ने वाले हैं, या जो बिलों में रहते हैं, वे कदाचित्‌ अनशनधारी मुनि के शरीर का माँस नोचे और रक्त पीए तो मुनि न तो उन्हें मारे और न ही रजोहरणादि से प्रमार्जन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 249 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाणा देहं विहिंसंति, ठाणाओ य विउब्भमे । ‘आसवेहिं विवित्तेहिं’ तिप्पमाणेऽहियासए ॥

Translated Sutra: (वह मुनि ऐसा चिन्तन करे) ये प्राणी मेरे शरीर का विघात कर रहे हैं, (मेरे ज्ञानादि आत्मगुणों का नहीं, वह उस स्थान से उठकर अन्यत्र न जाए।) आस्रवों से पृथक्‌ हो जाने के कारण तृप्ति अनुभव करता हुआ (उन उपसर्गों को) सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 250 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंथेहिं विवित्तेहिं, आउ-कालस्स पारए । पग्गहियतरग चेयं, दवियस्स वियाणतो ॥

Translated Sutra: उस संलेखना – साधक की ग्रन्थियाँ खुल जाती हैं, आयुष्य के काल का पारगाम हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 251 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए । आयवज्जं पडीयारं, विजहिज्जा तिहा तिहा ॥

Translated Sutra: ज्ञात – पुत्र ने भक्तप्रत्याख्यान से भिन्न इंगितमरण अनशन का यह आचार – धर्म बताया है। इसमें किसी भी अंगोपांग के व्यापार का, किसी दूसरे के सहारे का मन, वचन और काया से तथा कृत – कारित – अनुमोदित रूप से त्याग करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 252 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हरिएसु ण णिवज्जेज्जा, थंडिलं ‘मुनिआ सए’ विउसिज्ज अणाहारो, पुट्ठो तत्थहियासए ॥

Translated Sutra: वह हरियाली पर शयन न करे, स्थण्डिल को देखकर वहाँ सोए। वह निराहार उपधि का व्युत्सर्ग करके परीषहों तथा उपसर्गों से स्पृष्ट होने पर उन्हें सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 253 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंदिएहिं गिलायंते, समियं साहरे मुनी । तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए ॥

Translated Sutra: आहारादि का परित्यागी मुनि इन्द्रियों से ग्लान होने पर समित होकर हाथ – पैर आदि सिकोड़े। जो अचल है तथा समाहित है, वह परिमित भूमि में शरीर – चेष्टा करता हुआ भी निन्दा का पात्र नहीं होता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 254 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभिक्कमे पडिक्कमे, संकुचए पसारए । काय-साहारणट्ठाए, एत्थ वावि अचेयणे ॥

Translated Sutra: वह शरीर – संधारणार्थ गमन और आगमन करे, सिकोड़े और पसारे। इसमें भी अचेतन की तरह रहे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 255 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परक्कमे परिकिलंते, अदुवा चिट्ठे अहायते । ठाणेण परिकिलंते, णिसिएज्जा य अंतसो ॥

Translated Sutra: बैठा – बैठा थक जाए तो चले, या थक जाने पर बैठ जाए, अथवा सीधा खड़ा हो जाए, या लेट जाए। खड़े होने में कष्ट होता हो तो अन्त में बैठ जाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 256 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘आसीणे णेलिसं’ मरणं, इंदियाणि समीरए । कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ॥

Translated Sutra: इस अद्वितीय मरण की साधना में लीन मुनि अपनी इन्द्रियों को सम्यक्‌ रूप से संचालित करे। घुन – दीमक वाले काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का सहारा न लेकर घुन आदि रहित व निश्छिद्र काष्ठ – स्तम्भ या पट्टे का अन्वेषण करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 257 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । ततो उक्कसे अप्पाणं, सव्वे फासेहियासए ॥

Translated Sutra: जिससे वज्रवत्‌ कर्म उत्पन्न हो, ऐसी वस्तु का सहारा न ले। उससे या दुर्ध्यान से अपने आपको हटा ले और उपस्थित सभी दुःखस्पर्शों को सहन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 258 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयं चायततरे सिया, जो एवं अणुपालए । सव्वगायणिरोधेवि, ठाणातो ण विउब्भमे ॥

Translated Sutra: यह अनशन विशिष्टतर है, पार करने योग्य है। जो विधि से अनुपालन करता है, वह सारा शरीर अकड़ जाने पर भी अपने स्थान से चलित नहीं होता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 259 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे । अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥

Translated Sutra: यह उत्तम धर्म है। यह पूर्व स्थानद्वय से प्रकृष्टतर ग्रह वाला है। साधक स्थण्डिलस्थान का सम्यक्‌ निरीक्षण करके वहाँ स्थिर होकर रहे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-८ अनशन मरण Hindi 260 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, न मे देहे परीसहा ॥

Translated Sutra: अचित्त को प्राप्त करके वहाँ अपने आपको स्थापित कर दे। शरीर का सब प्रकार से व्युत्सर्ग कर दे। परीषह उपस्थित होने पर ऐसी भावना करे – ‘‘यह शरीर ही मेरा नहीं है, तब परीषह (जनित दुःख मुझे कैसे होंगे ?)
Showing 401 to 450 of 44304 Results