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Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१. मङ्गलसूत्र Hindi 9 View Detail
Mool Sutra: पंचमहव्वयतुंगा, तक्कालिय-सपरसमय-सुदधारा। णाणागुणगणभरिया, आइरिया मम पसीदंतु।।९।।

Translated Sutra: पंच महाव्रतों से समुन्नत, तत्कालीन स्वसमय और परसमय रूप श्रुत के ज्ञाता तथा नाना गुणसमूह से परिपूर्ण आचार्य मुझ पर प्रसन्न हों।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

२. जिनशासनसूत्र Hindi 17 View Detail
Mool Sutra: जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं। तं सव्वजीवसरणं, णंददु जिणसासणं सुइरं।।१।।

Translated Sutra: जिसमें लीन होकर जीव अनन्त संसार-सागर को पार कर जाते हैं तथा जो समस्त जीवों के लिए शरणभूत है, वह जिनशासन चिरकाल तक समृद्ध रहे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

५. संसारचक्रसूत्र Hindi 46 View Detail
Mool Sutra: खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्था णउ कामभोगा।।२।।

Translated Sutra: ये काम-भोग क्षणभर सुख और चिरकाल तक दुःख देनेवाले हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देनेवाले हैं, संसार-मुक्ति के विरोधी और अनर्थों की खान हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

७. मिथ्यात्वसूत्र Hindi 67 View Detail
Mool Sutra: हा ! जह मोहियमइणा, सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं। भीमे भवकंतारे, सुचिरं भमियं भयकरम्मि।।१।।

Translated Sutra: हा ! खेद है कि सुगति का मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति भयानक तथा घोर भव-वन में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र Hindi 82 View Detail
Mool Sutra: धम्मो मंगलमुक्किट्ठं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमंसंति जस्स धम्मे सया मणो।।१।।

Translated Sutra: धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र Hindi 93 View Detail
Mool Sutra: मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते। एवं अदत्ताणि समाययंतो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो।।१२।।

Translated Sutra: असत्य भाषण के पश्चात् मनुष्य यह सोचकर दुःखी होता है कि वह झूठ बोलकर भी सफल नहीं हो सका। असत्य भाषण से पूर्व इसलिए व्याकुल रहता है कि वह दूसरे को ठगने का संकल्प करता है। वह इसलिए भी दुःखी रहता है कि कहीं कोई उसके असत्य को जान न ले। इस प्रकार असत्य-व्यवहार का अन्त दुःखदायी ही होता है। इसी तरह विषयों में अतृप्त होकर
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र Hindi 104 View Detail
Mool Sutra: जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्ठिकुव्वइ। साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ त्ति वुच्चई।।२३।।

Translated Sutra: त्यागी वही कहलाता है, जो कान्त और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर उनकी ओर से पीठ फेर लेता है और स्वाधीनतापूर्वक भोगों का त्याग करता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र Hindi 135 View Detail
Mool Sutra: कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो।।१४।।

Translated Sutra: क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, मान विनय को नष्ट करता है, माया मैत्री को नष्ट करती है और लोभ सब कुछ नष्ट करता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र Hindi 136 View Detail
Mool Sutra: उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं चऽज्जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे।।१५।।

Translated Sutra: क्षमा से क्रोध का हनन करें, मार्दव से मान को जीतें, आर्जव से माया को और सन्तोष से लोभ को जीतें।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र Hindi 138 View Detail
Mool Sutra: से जाणमजाणं वा कट्टुं आहम्मिअं पयं। संवरे खिप्पमप्पाणं, बीयं तं न समायरे।।१७।।

Translated Sutra: जान या अजान में कोई अधर्म कार्य हो जाय तो अपनी आत्मा को उससे तुरन्त हटा लेना चाहिए, फिर दूसरी बार वह कार्य न किया जाय।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१२. अहिंसासूत्र Hindi 148 View Detail
Mool Sutra: सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं। तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं।।२।।

Translated Sutra: सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं। इसलिए प्राणवध को भयानक जानकर निर्ग्रन्थ उसका वर्जन करते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१२. अहिंसासूत्र Hindi 149 View Detail
Mool Sutra: जावंति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा। ते जाणमजाणं वा, ण हणे णो वि घायए।।३।।

Translated Sutra: लोक में जितने भी त्रस और स्थावर प्राणी हैं, निर्ग्रन्थ जान या अजान में उनका हनन न करे और न कराये।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१३. अप्रमादसूत्र Hindi 160 View Detail
Mool Sutra: इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्चं इमं अकिच्चं। तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ?।।१।।

Translated Sutra: यह मेरे पास है और यह नहीं है, वह मुझे करना है और यह नहीं करना है -- इस प्रकार वृथा बकवास करते हुए पुरुष को उठानेवाला (काल) उठा लेता है। इस स्थिति में प्रमाद कैसे किया जाय ?
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१४. शिक्षासूत्र Hindi 170 View Detail
Mool Sutra: विवत्ती अविणीअस्स, संपत्ती विणीअस्स य। जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छइ।।१।।

Translated Sutra: अविनयी के ज्ञान आदि गुण नष्ट हो जाते हैं, यह उसकी विपत्ति है और विनयी को ज्ञान आदि गुणों की सम्प्राप्ति होती है, (यह उसकी सम्पत्ति है। इन दोनों बातों को जाननेवाला ही ग्रहण और आसेवनरूप) सच्ची शिक्षा प्राप्त करता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१४. शिक्षासूत्र Hindi 174 View Detail
Mool Sutra: नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावयई परं। सुआणि अ अहिज्जित्ता, रओ सुअसमाहिए।।५।।

Translated Sutra: अध्ययन के द्वारा व्यक्ति को ज्ञान और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है। वह स्वयं धर्म में स्थित होता है और दूसरों को भी स्थिर करता है तथा अनेक प्रकार के श्रुत का अध्ययन कर वह श्रुतसमाधि में रत हो जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र Hindi 201 View Detail
Mool Sutra: सोवण्णियं पि णियलं, बंधदि कालायसं पि जह पुरिसं। बंधदि एवं जीवं, सुहमसुहं वा कदं कम्मं।।१०।।

Translated Sutra: बेड़ी सोने की हो चाहे लोहे की, पुरुष को दोनों ही बेड़ियाँ बाँधती हैं। इसी प्रकार जीव को उसके शुभ-अशुभ कर्म बाँधते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 226 View Detail
Mool Sutra: किं बहुणा भणिएणं, जे सिद्धा णरवरा गए काले। सिज्झिहिंति जे वि भविया, तं जाणइ सम्ममाहप्पं।।८।।

Translated Sutra: अधिक क्या कहें ? अतीतकाल में जो श्रेष्ठजन सिद्ध हुए हैं और जो आगे सिद्ध होंगे, वह सम्यक्त्व का ही माहात्म्य है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 240 View Detail
Mool Sutra: जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेणं। तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिप्पमिवक्खलीणं।।२२।।

Translated Sutra: जब कभी अपने में दुष्प्रयोग की प्रवृत्ति दिखायी दे, उसे तत्काल ही मन, वचन, काय से धीर (सम्यग्दृष्टि) समेट ले, जैसे कि जातिवंत घोड़ा रास के द्वारा शीघ्र ही सीधे रास्ते पर आ जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१९. सम्यग्ज्ञानसूत्र Hindi 245 View Detail
Mool Sutra: सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं। उभयं पि जाणए सोच्चा, जं छेयं तं समायरे।।१।।

Translated Sutra: (साधक) सुनकर ही कल्याण या आत्महित का मार्ग जान सकता है। सुनकर ही पाप या अहित का मार्ग जाना जा सकता है। अतः सुनकर ही हित और अहित दोनों का मार्ग जानकर जो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२०. सम्यक्‌चारित्रसूत्र Hindi 282 View Detail
Mool Sutra: मदमाणमायलोह-विवज्जियभावो दु भावसुद्धि त्ति। परिकहियं भव्वाणं, लोयालोयप्पदरिसीहिं।।२१।।

Translated Sutra: मद, मान, माया और लोभ से रहित भाव ही भावशुद्धि है, ऐसा लोकालोक के ज्ञाता-द्रष्टा सर्वज्ञदेव का भव्यजीवों के लिए उपदेश है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 295 View Detail
Mool Sutra: जरा जाव न पीलेइ, वाही जाव न वड्ढई। जाविंदिया न हायंति, ताव धम्मं समायरे।।८।।

Translated Sutra: जब तक बुढ़ापा नहीं सताता, जब तक व्याधियाँ (रोगादि) नहीं बढ़तीं और इन्द्रियाँ अशक्त (अक्षम) नहीं हो जाती, तब तक (यथाशक्ति) धर्माचरण कर लेना चाहिए। (क्योंकि बाद में अशक्त एवं असमर्थ देहेन्द्रियों से धर्माचरण नहीं हो सकेगा।)
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 322 View Detail
Mool Sutra: अट्ठेण तं न बंधइ, जमणट्ठेणं तु थोवबहुभावा। अट्ठे कालाईया, नियामगा न उ अणट्ठाए।।२२।।

Translated Sutra: प्रयोजनवश कार्य करने से अल्प कर्मबन्ध होता है और बिना प्रयोजन कार्य करने से अधिक कर्मबन्ध होता है। क्योंकि सप्रयोजन कार्य में तो देश-काल आदि परिस्थितियों की सापेक्षता रहती है, लेकिन निष्प्रयोजन प्रवृत्ति तो सदा ही (अमर्यादितरूप से) की जा सकती है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 327 View Detail
Mool Sutra: सामाइयम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा। एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा।।२७।।

Translated Sutra: सामायिक करने से (सामायिक-काल में) श्रावक श्रमण के समान (सर्व सावद्ययोग से रहित एवं समताभावयुक्त) हो जाता है। अतएव अनेक प्रकार से सामायिक करनी चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२३. श्रावकधर्मसूत्र Hindi 330 View Detail
Mool Sutra: अन्नाईणं सुद्धाणं, कप्पणिज्जाण देसकालजुत्तं। दाणं जईणमुचियं, गिहीण सिक्खावयं भणियं।।३०।।

Translated Sutra: उद्गम आदि दोषों से रहित देशकालानुकूल, शुद्ध अन्नादिक का उचित रीति से (मुनि आदि संयमियों को) दान देना गृहस्थों का अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत है। (इसका यह भी अर्थ है कि जो व्रती-त्यागी बिना किसी पूर्वसूचना के अ-तिथि रूप में आते हैं उनको अपने भोजन में संविभागी बनाना चाहिए।)
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 338 View Detail
Mool Sutra: बहवे इमे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो। न लवे असाहुं साहु त्ति, साहुं साहु त्ति आलवे।।३।।

Translated Sutra: (परन्तु) ऐसे भी बहुत से असाधु हैं जिन्हें संसार में साधु कहा जाता है। (लेकिन) असाधु को साधु नहीं कहना चाहिए, साधु को ही साधु कहना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 339 View Detail
Mool Sutra: नाणदंसणसंपण्णं, संजमे य तवे रयं। एवं गुणसमाउत्तं, संजयं साहुमालवे।।४।।

Translated Sutra: ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न, संयम और तप में लीन तथा इसी प्रकार के गुणों से युक्त संयमी को ही साधु कहना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 342 View Detail
Mool Sutra: गुणेहि साहू अगुणेहिऽसाहू, गिण्हाहि साहूगुण मुंचऽसाहू। वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो।।७।।

Translated Sutra: (कोई भी) गुणों से साधु होता है और अगुणों से असाधु। अतः साधु के गुणों को ग्रहण करो और असाधुता का त्याग करो। आत्मा को आत्मा के द्वारा जानते हुए जो राग-द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 344 View Detail
Mool Sutra: बहुं सुणेइ कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पेच्छइ। न य दिट्ठं सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ।।९।।

Translated Sutra: गोचरी अर्थात् भिक्षा के लिए निकला हुआ साधु कानों से बहुत-सी अच्छी-बुरी बातें सुनता है और आँखों से बहुत-सी अच्छी-बुरी वस्तुएँ देखता है, किन्तु सब-कुछ देख-सुनकर भी वह किसीसे कुछ कहता नहीं है। अर्थात् उदासीन रहता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 351 View Detail
Mool Sutra: खुहं पिवासं दुस्सेज्जं, सीउण्हं अरई भयं। अहियासे अव्वहिओ, देहे दुक्खं महाफलं।।१६।।

Translated Sutra: भूख, प्यास, दुःशय्या (ऊँची-नीची पथरीली भूमि) ठंड, गर्मी, अरति, भय आदि को बिना दुःखी हुए सहन करना चाहिए। क्योंकि दैहिक दुःखों को समभावपूर्वक सहन करना महाफलदायी होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 352 View Detail
Mool Sutra: अहो निच्चं तवोकम्मं, सव्वबुद्धेहिं वण्णियं। जाय लज्जासमा वित्ती, एगभत्तं च भोयणं।।१७।।

Translated Sutra: अहो, सभी ज्ञानियों ने ऐसे तप-अनुष्ठान का उपदेश किया है जिसमें संयमानुकूल वर्तन के साथ-साथ दिन में केवल एक बार भोजन विहित है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 371 View Detail
Mool Sutra: चित्तमंतमचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुं। दंतसोहणमेत्तं पि, ओग्गहंसि अजाइया।।८।।

Translated Sutra: सचेतन अथवा अचेतन, अल्प अथवा बहुत, यहाँ तक कि दाँत साफ करने की सींक तक भी साधु बिना दिये ग्रहण नहीं करते।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 372 View Detail
Mool Sutra: अइभूमिं न गच्छेज्जा, गोयरग्गगओ मुणी। कुलस्स भूमिं जाणित्ता, मियं भूमिं परक्कमे।।९।।

Translated Sutra: गोचरी के लिए जानेवाले मुनि को वर्जित भूमि में प्रवेश नहीं करना चाहिए। कुल की भूमि को जानकर मितभूमि तक ही जाना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 373 View Detail
Mool Sutra: मूलमेअमहम्मस्स, महादोससमुस्सयं। तम्हा मेहुणसंसग्गिं, निग्गंथा वज्जयंति णं।।१०।।

Translated Sutra: मैथुन-संसर्ग अधर्म का मूल है, महान् दोषों का समूह है। इसलिए ब्रह्मचर्य-व्रती निर्ग्रन्थ साधु मैथुन-सेवन का सर्वथा त्याग करते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 378 View Detail
Mool Sutra: आहारे व विहारे, देसं कालं समं खमं उवधिं। जाणित्ता ते समणो, वट्टदि जदि अप्पलेवी सो।।१५।।

Translated Sutra: आहार अथवा विहार में देश, काल, श्रम, अपनी सामर्थ्य तथा उपधि को जानकर श्रमण यदि बरतता है तो वह अल्पलेपी होता है, अर्थात् उसे अल्प ही बन्ध होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 379 View Detail
Mool Sutra: न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा। मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा।।१६।।

Translated Sutra: ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर ने (वस्तुगत) परिग्रह को परिग्रह नहीं कहा है। उन महर्षि ने मूर्च्छा को ही परिग्रह कहा है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 381 View Detail
Mool Sutra: संथारसेज्जासणभत्तपाणे, अप्पिच्छया अइलाभे वि संते। एवमप्पाणमभितोसएज्जा, संतोसपाहन्नरए स पुज्जो।।१८।।

Translated Sutra: संस्तारक, शय्या, आसन और आहार का अतिलाभ होने पर भी जो अल्प इच्छा रखते हुए अल्प से अपने को संतुष्ट रखता है, अधिक ग्रहण नहीं करता, वह संतोष में ही प्रधान रूप से अनुरक्त रहनेवाला साधु पूज्य है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 382 View Detail
Mool Sutra: अत्थंगयम्मि आइच्चे, पुरत्था अ अणुग्गए। आहारमाइयं सव्वं, मणसा वि ण पत्थए।।१९।।

Translated Sutra: सम्पूर्ण परिग्रह से रहित, समरसी साधु को सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व किसी भी प्रकार के आहार आदि की इच्छा मन में नहीं लानी चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 383 View Detail
Mool Sutra: संति मे सुहुमा पाणा, तसा अदुव थावरा। जाइं राओ अपासंतो, कहमेसणियं चरे ?।।२०।।

Translated Sutra: इस धरती पर ऐसे त्रस और स्थावर सूक्ष्म जीव सदैव व्याप्त रहते हैं जो रात्रि के अन्धकार में दिखाई नहीं पड़ते। अतः ऐसे समय में साधु के द्वारा आहार की शुद्ध गवेषणा कैसे हो सकती है ?
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 395 View Detail
Mool Sutra: जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए। जयं भुंजंतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ।।१२।।

Translated Sutra: यतनाचार (विवेक या उपयोग) पूर्वक चलने, यतनाचारपूर्वक रहने, यतनाचारपूर्वक बैठने, यतनाचारपूर्वक सोने, यतनाचारपूर्वक खाने और यतनाचारपूर्वक बोलने से साधु को पाप-कर्म का बंध नहीं होता।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 398 View Detail
Mool Sutra: तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया। तं उज्जुअं न गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे।।१५।।

Translated Sutra: गमन करते समय इस बात की भी पूरी सावधानी रखनी चाहिए कि नाना प्रकार के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आदि इधर-उधर से चारे-दाने के लिए मार्ग में इकट्ठा हो गये हों तो उनके सामने भी नहीं जाना चाहिए, ताकि वे भयग्रस्त न हों।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 400 View Detail
Mool Sutra: तहेव फरुसा भासा, गुरुभूओवघाइणी। सच्चावि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो।।१७।।

Translated Sutra: तथा कठोर और प्राणियों का उपघात करनेवाली, चोट पहुँचानेवाली भाषा भी न बोले। ऐसा सत्य-वचन भी न बोले जिससे पाप का बन्ध होता हो।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 401 View Detail
Mool Sutra: तहेव काणं काणे त्ति, पंडगं पंडगे त्ति वा। वाहियं वा वि रोगि त्ति, तेणं चोरे त्ति नो वए।।१८।।

Translated Sutra: इसी प्रकार काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, व्याधिग्रस्त को रोगी और चोर को चोर भी न कहे।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 403 View Detail
Mool Sutra: दिट्ठं मियं असंदिद्धं, पडिपुण्णं वियंजियं। अयंपिरमणुव्विग्गं, भासं निसिर अत्तवं।।२०।।

Translated Sutra: आत्मवान् मुनि ऐसी भाषा बोले जो आँखों देखी बात को कहती हो, मित (संक्षिप्त) हो, सन्देहास्पद न हो, स्वर-व्यंजन आदि से पूर्ण हो, व्यक्त हो, बोलने पर भी न बोली गयी जैसी अर्थात् सहज हो और उद्वेगरहित हो।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 404 View Detail
Mool Sutra: दुल्लहा उ मुहायाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा। मुहादाई मुहाजीवी, दोवि गच्छंति सोग्गइं।।२१।।

Translated Sutra: मुधादायी-निष्प्रयोजन देनेवाले--दुर्लभ हैं और मुधाजीवी--भिक्षा पर जीवन यापन करनेवाले--भी दुर्लभ हैं। मुधादायी और मुधाजीवी दोनों ही साक्षात् या परम्परा से सुगति या मोक्ष प्राप्त करते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 407 View Detail
Mool Sutra: जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं। ण य पुप्फं किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं।।२४।।

Translated Sutra: जैसे भ्रमर पुष्पों को तनिक भी पीड़ा पहुँचाये बिना रस ग्रहण करता है और अपने को तृप्त करता है, वैसे ही लोक में विचरण करनेवाले बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से रहित श्रमण दाता को किसी भी प्रकार का कष्ट दिये बिना उसके द्वारा दिया गया प्रासुक आहार ग्रहण करते हैं। यही उनकी एषणा समिति है। संदर्भ ४०७-४०८
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 408 View Detail
Mool Sutra: एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो। विहंगमा व पुप्फेसु, दाणभत्तेसणेरया।।२५।।

Translated Sutra: कृपया देखें ४०७; संदर्भ ४०७-४०८
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२७. आवश्यकसूत्र Hindi 428 View Detail
Mool Sutra: दव्वे खेत्ते काले, भावे य कयावराहसोहणयं। णिंदणगरहणजुत्तो, मणवचकायेण पडिक्कमणं।।१२।।

Translated Sutra: निन्दा तथा गर्हा से युक्त साधु का मन वचन काय के द्वारा, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के व्रताचरणविषयक दोषों या अपराधों की आचार्य के समक्ष आलोचनापूर्वक शुद्धि करना प्रतिक्रमण कहलाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२७. आवश्यकसूत्र Hindi 434 View Detail
Mool Sutra: देवस्सियणियमादिसु, जहुत्तमाणेण उत्तकालम्हि। जिणगुणचिंतणजुत्तो, काउसग्गो तणुविसग्गो।।१८।।

Translated Sutra: दिन, रात, पक्ष, मास, चातुर्मास आदि में किये जानेवाले प्रतिक्रमण आदि शास्त्रोक्त नियमों के अनुसार सत्ताईस श्वासोच्छ्वास तक अथवा उपयुक्त काल तक जिनेन्द्रभगवान् के गुणों का चिन्तवन करते हुए शरीर का ममत्व त्याग देना कायोत्सर्ग नामक आवश्यक है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 445 View Detail
Mool Sutra: बलं थामं च पेहाए, सद्धामारोग्गमप्पणो। खेत्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजुंजए।।७।।

Translated Sutra: अपने बल, तेज, श्रद्धा तथा आरोग्य का निरीक्षण करके तथा क्षेत्र और काल को जानकर अपने को उपवास में नियुक्त करना चाहिए। (क्योंकि शक्ति से अधिक उपवास करने से हानि होती है।)
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२९. ध्यानसूत्र Hindi 504 View Detail
Mool Sutra: जह चिरसंचियमिंधण-मनलो पवणसहिओ दुयं दहइ। तह कम्मेधणममियं, खणेण झाणानलो डहइ।।२१।।

Translated Sutra: जैसे चिरसंचित ईंधन को वायु से उद्दीप्त आग तत्काल जला डालती है, वैसे ही ध्यानरूपी अग्नि अपरिमित कर्म-ईंधन को क्षणभर में भस्म कर डालती है।
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