Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (46)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-८ गजसुकुमाल

Hindi 13 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा। तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल, उस समय में द्वारका नगरीमें प्रथम अध्ययनमें किये गये वर्णन के अनुसार यावत्‌ अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान पधारे। उस काल, उस समय भगवान नेमिनाथ के अंतेवासी – शिष्य छ मुनि सहोदर भाई थे। वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 14 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला चिया? पुच्छा– जहा परिणया तहा चियावि। एवं–उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिण्णा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित पुद्‌गल चय को प्राप्त हुए ? हे गौतम ! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसी प्रकार उपचय को प्राप्त हुए; उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए। परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक – एक पद में चार प्रकार के पुद्‌गल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 16 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला भिज्जंति? गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव। नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला चिज्जंति? गोयमा! आहारदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति, तं० अणू चेव, बादरा चेव। एवं उवचिज्जंति। नेरइया णं भंते! कइविहे पोग्गले उदीरेंति? गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव। सेसावि एवं चेव भाणियव्वा–वेदेंति, निज्जरेंति। एवं–ओयट्टेंसु, ओयट्टेंति, ओयट्टिस्संति। संकामिंसु, संकामेंति, संकामिस्संति। निहत्तिंसु निहत्तेतिं, निहत्तिस्संति। निकाएंसु, निकायंति,

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्‌गल भेदे जाते हैं ? गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्‌गल भेदे जाते हैं। अणु (सूक्ष्म) और बादर। भगवन्‌ ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्‌गल चय किये जाते हैं ? गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्‌गलों का चय करते हैं, वे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 17 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भेदिया चिया उवचिया, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा । ओयट्टण संकामण, निहत्तण निकायणे तिविहकालो ॥

Translated Sutra: भेदे गए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेद गए और निर्जीण हुए (इसी प्रकार) अपवर्त्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन (इन पिछले चार) पदोंमें भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए। हे भगवन्! नारक जीव जिन पुद्‌गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 18 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति, ते किं तीतकालसमए गेण्हंति? पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति? अनागयकालसमए गेण्हंति? गोयमा! नो तीयकालसमए गेण्हंति, पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति, तो अनागयकालसमए गेण्हंति। नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति, ते किं तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति? पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति? गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति? गोयमा! तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति। एवं–वेदेंति, निज्जरेंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नारक जीवप्रदेशों से चलित कर्म को बाँधते हैं, या अचलित कर्म को बाँधते हैं ? गौतम ! (वे) चलित कर्म को नहीं बाँधते, (किन्तु) अचलित कर्म को बाँधते हैं। इसी प्रकार अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं, अचलित कर्म का ही वेदन करते हैं, अपवर्त्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्ति करते हैं और निकाचन करते हैं। इन सब
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 35 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं करिंसु? हंता करिंसु। तं भंते! किं १. देसेणं देसं करिंसु? २. देसेणं सव्वं करिंसु? ३. सव्वेणं देसं करिंसु? ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु? गोयमा! १. नो देसेणं देसं करिंसु, २. नो देसेणं सव्वं करिंसु, ३. नो सव्वेणं देसं करिंसु। ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु। एएणं अभिलावेणं दंडओ भाणियव्वो, जाव वेमाणियाणं। एवं करेंति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं करिस्संति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं चिए, चिणिंसु, चिणंति, चिणिस्संति। उवचिए, उवचिणिंसु, उवचिणंति, उवचिणिस्संति। उदीरेंसु, दीरेंति उदीरिस्संति। वेदेंसु, वेदेंति, वेदिस्संति। निज्जरेंसु, निज्जरेंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय कर्म का उपार्जन किया है ? हाँ, गौतम ! किया है। भगवन्‌ ! क्या वह देश से देशकृत है ? पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक तक करना। इस प्रकार ‘कहते हैं’ यह आलापक भी यावत्‌ वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करते हैं’ यह आलापक भी यावत्‌ वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करेंगे’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 43 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति? अप्पणा चेव गरहति? अप्पणा चेव संवरेति? हंता गोयमा! अप्पणा चेव उदीरेति। अप्पणा चेव गरहति। अप्पणा चेव संवरेति। जं णं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति, अप्पणा चेव गरहति, अप्पणा चेव संवरेति, तं किं–१. उदिण्णं उदीरेति? २. अनुदिण्णं उदीरेति? ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति? ४. उदयानंतर-पच्छाकडं कम्मं उदीरेति? गोयमा! १. नो उदिण्णं उदीरेति। २. नो अनुदिण्णं उदीरेति। ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति। ४. नो उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेति। जं णं भंते! अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति, तं किं उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव अपने आपसे ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्हा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? हाँ, गौतम ! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्हा और संवर करता है। भगवन्‌ ! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्हा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण की उदीरणा करता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 220 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं। जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि? हंता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ (श्री गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या ईषत्पुरोवात (ओस आदि से कुछ स्निग्ध, या गीली हवा), पथ्यवात (वनस्पति आदि के लिए हितकर वायु), मन्दवात (धीमे – धीमे चलने वाली हवा), तथा महावात, प्रचण्ड तूफानी वायु बहती है ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त वायु (हवाएं) बहती हैं। भगवन्‌ ! पूर्व दिशा से ईषत्पुरोवात,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 334 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुक्खी भंते! दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे। दुक्खी भंते! नेरइए दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे। एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं पंच दंडगा नेयव्वा–१. दुक्खी दुक्खेणं फुडे २. दुक्खी दुक्खं परियायइ ३. दुक्खी दुक्खं उदीरेइ ४. दुक्खी दुक्खं वेदेति ५. दुक्खी दुक्खं निज्जरेति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अथवा अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी जीव ही दुःख से स्पृष्ट होता है, किन्तु अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता। भगवन्‌ ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१ उत्पल Hindi 495 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उववाओ परिमाणं अवहारुच्चत्त बंध वेदे य। उदए उदीरणाए लेसा दिट्ठी य नाणे य ॥

Translated Sutra: १. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. ऊंचाई (अवगाहना), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान। तथा – १२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण – रसादि, १५. उच्छ्‌वास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध। २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-१ शाल्यादि Hindi 807 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– अह भंते! साली-वीही-गोधूम-जव-जवजवाणं–एएसि णं भंते! जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? जहा वक्कंतीए तहेव उववाओ, नवरं–देववज्जं। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसे। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ते णं भंते! जीवा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! अब शालि, व्रीहि, गोधूम – (यावत्‌) जौ, जवजव, इन सब धान्यों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर अथवा तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्ति – पद के अनुसार उपपात समझना चाहिए। विशेष यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ Hindi 899 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १६-१७. जोगुवओग १८. कसाए, १९. लेसा २. परिणाम २१. बंध २२. वेदे य । २३. कम्मोदीरण २४. उवसंपजहन्न, २५. सण्णा य २६. आहारे ॥

Translated Sutra: योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, परिणाम, बन्ध, वेद, कर्मों की उदीरणा, उपसंपत्‌, संज्ञा, आहार। तथा –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ Hindi 923 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति? गोयमा! आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेति। बउसे–पुच्छा। गोयमा! सत्तविहउदीरए वा, अट्ठविहउदीरए वा, छव्विहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेति, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेति, छ उदीरेमाणे आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेति। पडिसेवणाकुसीले एवं चेव। कसायकुसीले–पुच्छा। गोयमा! सत्तविहउदीरए वा, अट्ठविहउदीरए वा, छव्विहउदीरए वा, पंचविहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेति, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेति, छ उदीरेमाणे आउयवेयणिज्जवज्जाओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। भगवन्‌ ! बकुश ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्म – प्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 949 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, एवं जहा बउसे। एवं जाव परिहारविसुद्धिए। सुहुमसंपरागसंजए–पुच्छा। गोयमा! आउय-मोहणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ बंधति। अहक्खायसंजए जहा सिणाए। सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति? गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति। एवं जाव सुहुमसंपराए। अहक्खाए–पुच्छा। गोयमा! सत्तविहवेदए वा, चउव्विहवेदए वा। सत्त वेदेमाणे मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति, चत्तारि वेदेमाणे वेयणिज्जाउय-नामगोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति। सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति? गोयमा! सत्तविहउदीरए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात या आठ; इत्यादि बकुश के समान जानना। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना। भगवन्‌ ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! आयुष्य और मोहनय कर्म को छोड़कर शेष छह। यथाख्यातसंयत स्नातक के समान हैं। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 965 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य। से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे। से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन्‌ ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत्‌ षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय

शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित

Hindi 1066 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? तहेव पढमुद्देसओ सण्णीणं नवरं–बंध-वेद-उदइ-उदीरण-लेस्स-बंधग-सण्ण-कसाय-वेदबंधगा य एयाणि जहा बेंदियाणं। कण्ह-लेस्साणं वेदो तिविहो, अवेदगा नत्थि। संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरो-वमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं। एवं ठिती वि, नवरं–ठितीए अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं न भण्णंति। सेसं जहा एएसिं चेव पढमे उद्देसए जाव अनंतखुत्तो। एवं सोलससु वि जुम्मेसु। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा सण्णिपंचिंदियपढमसमयउद्देसए तहेव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णलेश्यी कृतयुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! संज्ञी के प्रथम उद्देशक अनुसार जानना। विशेष यह है कि बन्ध, वेद, उदय, उदीरणा, लेश्या, बन्धक, संज्ञा, कषाय और वेदबंधक, इन सभी का कथन द्वीन्द्रियजीव – सम्बन्धी कथन समान है। कृष्णलेश्यी संज्ञी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय

शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित

Hindi 1067 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं नीललेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असं-खेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं काउलेस्ससतं पि, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि। एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं तेउलेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि, नवरं– नोसण्णोवउत्ता वा। एवं तिसु वि

Translated Sutra: नीललेश्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है। पहले, तीसरे, पाँचवे इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्‌। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’ इसी प्रकार कापोतलेश्या
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Gujarati 43 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति? अप्पणा चेव गरहति? अप्पणा चेव संवरेति? हंता गोयमा! अप्पणा चेव उदीरेति। अप्पणा चेव गरहति। अप्पणा चेव संवरेति। जं णं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति, अप्पणा चेव गरहति, अप्पणा चेव संवरेति, तं किं–१. उदिण्णं उदीरेति? २. अनुदिण्णं उदीरेति? ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति? ४. उदयानंतर-पच्छाकडं कम्मं उदीरेति? गोयमा! १. नो उदिण्णं उदीरेति। २. नो अनुदिण्णं उदीरेति। ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति। ४. नो उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेति। जं णं भंते! अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति, तं किं उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું જીવ પોતાની મેળે જ કાંક્ષા મોહનીય કર્મને ઉદીરે છે ? આપમેળે જ ગર્હે છે ? આપમેળે જ સંવરે છે ? હા, ગૌતમ ! જીવ સ્વયં તેની ઉદીરણા, ગર્હા અને સંવર કરે છે. ભગવન્‌ ! જે તે આપમેળે જ ઉદીરે છે, ગર્હે છે અને સંવરે છે, તો શું ઉદીર્ણ(ઉદયમાં આવેલા)ને ઉદીરે છે? અનુદીર્ણ(ઉદયમાં ન આવેલા)ને ઉદીરે છે ? અનુદીર્ણ અને ઉદીરણા યોગ્યને
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१ उत्पल Gujarati 495 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उववाओ परिमाणं अवहारुच्चत्त बंध वेदे य। उदए उदीरणाए लेसा दिट्ठी य नाणे य ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: અહીં ત્રણ દ્વારગાથા વડે આ ઉદ્દેશાના ૩૩ દ્વારોના નામોનો ઉલ્લેખ છે. તે આ પ્રમાણે – અનુવાદ: સૂત્ર– ૪૯૫. ઉપપાત, પરિમાણ, અપહાર, ઉંચાઈ, બંધ, વેદ, ઉદય, ઉદીરણા, લેશ્યા, દૃષ્ટિ, જ્ઞાન. સૂત્ર– ૪૯૬. યોગ, ઉપયોગ, વર્ણ, રસાદિ, ઉચ્છ્‌વાસ, આહાર, વિરતિ, ક્રિયા, બંધ, સંજ્ઞા, કષાય, સ્ત્રીવેદ, બંધ. સૂત્ર– ૪૯૭. સંજ્ઞી, ઇન્દ્રિય,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-१ शाल्यादि Gujarati 807 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– अह भंते! साली-वीही-गोधूम-जव-जवजवाणं–एएसि णं भंते! जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? जहा वक्कंतीए तहेव उववाओ, नवरं–देववज्जं। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसे। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ते णं भंते! जीवा

Translated Sutra: રાજગૃહ નગરમાં યાવત્‌ આમ પૂછ્યું – ભગવન્‌ ! શાલી, વ્રીહી, ઘઉં, જવ, જવજવ આ ધાન્યોના જીવો ભગવન્‌ ! મૂળરૂપે ઉત્પન્ન થાય, ભગવન્‌ ? તે જીવો ક્યાંથી આવી ઉત્પન્ન થાય છે ? શું નૈરયિકથી કે તિર્યંચ, મનુષ્ય, વથી ? વ્યુત્ક્રાંતિ પદમાં કહ્યા મુજબ ઉત્પાદ કહેવો. વિશેષ એ કે – દેવનું વર્જન કરવું. ભગવન્‌ ! તે જીવો એક સમયે કેટલા ઉપજે ?
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय

शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित

Gujarati 1067 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं नीललेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असं-खेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं काउलेस्ससतं पि, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि। एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं तेउलेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि, नवरं– नोसण्णोवउत्ता वा। एवं तिसु वि

Translated Sutra: એ પ્રમાણે નીલલેશ્યી શતક છે. વિશેષ એ – સંચિઠ્ઠણા – જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ દશ સાગરોપમ અને પલ્યોપમનો અસંખ્યાતમો ભાગ અધિક. એ પ્રમાણે સ્થિતિ. એ રીતે ત્રણે ઉદ્દેશામાં છે, બાકી પૂર્વવત્‌. × – એ પ્રમાણે કાપોતલેશ્યી શતક પણ છે. વિશેષ એ – સંચિઠ્ઠણા જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ સાગરોપમ અને પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ અધિક. એ રીતે
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ महाचारकथा

Hindi 261 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनिलस्स समारंभं बुद्धा मन्नंति तारिसं । सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ॥

Translated Sutra: तीर्थंकरदेव वायु के समारम्भ को अग्निसमारम्भ के सदृश ही मानते हैं। यह सावद्य – बहुल है। अतः यह षट्‌काय के त्राता साधुओं के द्वारा आसेवित नहीं है। ताड़ के पंखे से, पत्र से, वृक्ष की शाखा से, स्वयं हवा करना तथा दूसरों से करवाना नहीं चाहते और अनुमोदन भी नहीं करते हैं। जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल या रजोहरण हैं, उनके
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 340 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसवदारे निरुंभित्ता अप्पमादी भवे जया। बंधे सप्पं बहु वेदे, जइ सम्मत्तं सुनिम्मलं॥

Translated Sutra: यदि सम्यक्‌त्व की निर्मलता सहित आनेवाले आश्रवद्वार बंध करके जब वहाँ अप्रमादी बने तब वहाँ बंध अल्प करे और काफी निर्जरा करे, आश्रवद्वार बंध करके जब प्रभु की आज्ञा का खंड़न न करे और ज्ञान – दर्शन चारित्र से दृढ़ बने तब पहले के बांधे हुए सर्व कर्म खपा दे और अल्प स्थितिवाले कर्म बाँधे, उदय न हुए हो वैसे वैसे कर्म भी
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 771 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य ति-सट्ठि-भेयं चक्खूरागग्गु दीरणिं साहू। अज्जाओ निरिक्खेज्जा तं गोयम केरिसं गच्छं॥

Translated Sutra: जिसमें ६३ भेदवाले चक्षुरागाग्नि की उदीरणा हो उस तरह से साधु – साध्वी की ओर दृष्टि करे तो गच्छ के लिए कौन – सी मर्यादा सँभाली जाए ?
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 786 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मंतराय-भीए भीए संसार-गब्भ-वसहीनं। णोदीरिज्ज कसाए मुनी मुनीणं तयं गच्छं॥

Translated Sutra: धर्म के अंतराय से भयभीत, संसार के गर्भावास से डरे हुए मुनि अन्य मुनि को कषाय की उदीरणा न करे, वो गच्छ।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 886 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उस्सग्गं ता तुमं बुज्झ, सिद्धंतेयं जहट्ठियं। तवंतरा उदयं तस्स महंतं आसि, गोयमा॥

Translated Sutra: सिद्धान्त में जिस प्रकार उत्सर्ग बताए हैं उसे अच्छी तरह से समझना। हे गौतम ! तप करने के बावजूद भी उसे भोगावली कर्म का महा उदय था। तो भी उसे विषय की उदीरणा पैदा हुई तब आँठ गुना घोर महातप किया तो भी उसके विषय का उदय नहीं रुकता। तब भी विष भक्षण किया। पर्वत पर से भृगुपात किया। अनशन करने की अभिलाषा की। वैसा करते हुए
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥

Translated Sutra: ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१४ कषाय

Hindi 417 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणंति? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइया जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइया जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय किया ? गौतम ! चार कारणों से – क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। भगवन्‌ ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म – प्रकृतियों का चय करते हैं ? गौतम ! चार कारणों से – क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। भगवन्‌
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१४ कषाय

Hindi 418 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयपइट्ठिय खेत्तं, पडुच्चणंतानुबंधि आभोगे । चिण उवचिण बंध उईर वेय तह निज्जरा चेव ॥

Translated Sutra: आत्मप्रतिष्ठित, क्षेत्र की अपेक्षा से, अनन्तानुबन्धी, आभोग, अष्ट कर्मप्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा यह पद सहित सूत्र कथन हुआ।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२३ कर्मप्रकृति

उद्देशक-१ Hindi 539 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं निव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अनुभावे पन्नत्ते? गोयमा! नाणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अनुभावे पन्नत्ते, तं जहा–सोयावरणे सोयाविण्णाणावरणे णेत्तावरणे णेत्तविण्णाणावरणे घाणावरणे घाणविण्णाणावरणे रसावरणे रसविण्णाणावरणे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव के द्वारा बद्ध, स्पृष्ट, बद्ध और स्पृष्ट किये हुए, सचित्त, चित्त और अपचित्त किये हुए, किञ्चित्‌विपाक को प्राप्त, विपाक को प्राप्त, फल को प्राप्त तथा उदयप्राप्त, जीव के द्वारा कृत, निष्पादित और परिणामित, स्वयं के द्वारा दूसरे के द्वारा या दोनों के द्वारा उदीरणा – प्राप्त, ज्ञानावरणीयकर्म का, गति को,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ अब्रह्म

Hindi 20 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु। अवरे परदारेहिं हम्मंति विसुणिया घननासं सयणविप्पनासं च पाउणंति। परस्स दाराओ जे अविरया मेहुण-सण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मनुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्तओ, जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं, रोगत्ता वाहिया य वड्ढेंति रोय-वाही, दुवे य लोया दुआराहगा भवंति–इहलोए चेव परलोए–परस्स दाराओ जे अविरया। तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया

Translated Sutra: जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अत्यन्त आसक्त है और मूढता अथवा से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों से घात करते हैं। कोई – कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब धन का विनाश और स्वजनों का सर्वथा
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 8 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका। कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते? सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क

Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Hindi 11 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया। अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति

Translated Sutra: यह असत्य कितनेक पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्तवाले, क्रुद्ध, लुब्ध, भय उत्पन्न करने वाले, हँसी करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर, खण्डरक्ष, जुआरी, गिरवी रखने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहनेवाले, कुलिंगी – वेषधारी, छल करनेवाले, वणिक्‌, खोटा नापने – तोलनेवाले, नकली सिक्कों
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 16 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं। तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि

Translated Sutra: इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा – पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है। तत्पश्चात्‌ चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर – हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-४ Hindi 100 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–पेज्जबंधे चेव, दोसबंधे चेव। जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं बंधंति, तं जहा–रागेण चेव, दोसेण चेव। जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं उदीरेंति, तं जहा–अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए। जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं वेदेंति, तं जहा–अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए। जीवा णं दोहिं ठाणेहिं कम्मं निज्जरेति, तं जहा–अब्भोवगमियाए चेव वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए।

Translated Sutra: दो राशियाँ कही गई हैं, यथा – जीव – राशि और अजीव – राशि। बंध दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – राग – बंध और द्वेष – बंध। जीव दो प्रकार से पाप कर्म बाँधते हैं, यथा – राग से और द्वेष से। जीव दो प्रकार से पाप कर्मों की उदीरणा करते हैं, आभ्युपगमिक (स्वेच्छा से) वेदना से, औपक्रमिक (कर्मोदय वश) वेदना से। इसी तरह दो प्रकार से जीव
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-४ Hindi 125 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं दुट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–तसकायनिव्वत्तिए चेव, थावरकायनिव्वत्तिए चेव। जीवा णं दुट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा, बंधिसु वा बंधेंति वा बंधिस्संति वा, उदीरिंसु वा उदीरेंति वा उदीरिस्संति वा, वेदेंसु वा वेदेंति वा वेदिस्संति वा, निज्जरिंसु वा निज्जरेंति वा निज्जरिस्संति वा, तं जहा–तसकायनिव्वत्तिए चेव, थावरकायनिव्वत्तिए चेव।

Translated Sutra: जीव ने द्विस्थान निर्वर्तक (अथवा इन कथ्यमान स्थानों में जन्म लेकर उपार्जित अथवा इन दो स्थानों में जन्म लेने से निवृत्ति होने वाले) पुद्‌गलों को पापकर्मरूप से एकत्रित किये हैं, एकत्रित करते हैं और एकत्रित करेंगे, वे इस प्रकार हैं, यथा – त्रसकाय निवर्तित और स्थावरकाय निवर्तित। इसी तरह उपचय किये, उपचय करते हैं
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 247 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं तिट्ठाणनिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–इत्थिनिव्वत्तिते पुरिसनिव्वत्तिते, नपुंसगनिव्वत्तिते। एवं–चिण-उवचिण-बंध उदीर-वेद तह निज्जरा चेव।

Translated Sutra: जीवों ने तीन स्थानों में अर्जित पुद्‌गलों को पापकर्म रूप में एकत्रित किए, करते हैं और करेंगे, यथा – स्त्री – वेदनिवर्तित, पुरुषवेदनिवर्तित, नपुंसकवेदनिवर्तित। पुद्‌गलों का एकत्रित करना, वृद्धि करना, बंध, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा का भी इसी तरह कथन समझना चाहिए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 264 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं चउहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिंसु, तं जहा–कोहेणं, मानेणं, मायाए, लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं। जीवा णं चउहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा–कोहेणं, मानेणं, मायाए, लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं। जीवा णं चउहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा–कोहेणं, मानेणं, मायाए, लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं– उवचिणिंसु उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिंसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरिंसु उदीरिंति उदीरिस्संति, वेदेंसु वेदेंति वेदिस्संति, निज्जरेंसु निज्जरेंति निज्जरिस्संति जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: चार कारणों से जीवों ने आठ कर्म – प्रकृतियों का चयन किया है, यथा – क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से इसी प्रकार वैमानिकों तक समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार ‘ग्रहण करते हैं’ यह दण्डक भी जान लेना चाहिए। इसी प्रकार ‘ग्रहण करेंगे’ यह दण्डक भी समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार चयन के तीन दण्डक हुए। इसी प्रकार उपचय किया, करते
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 269 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आवातभद्दए नाममेगे नो संवासभद्दए, संवासभद्दए नाममेगे नो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि, एगे नो आवातभद्दए नो संवासभद्दए। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो नाममेगे वज्जं पासति नो परस्स, परस्स नाममेगे वज्जं पासति नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं पासति परस्सवि, एगो नो अप्पणो वज्जं पासति नो परस्स। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो नाममेगे वज्जं उदीरेइ नो परस्स, परस्स नाममेगे वज्जं उदीरेइ नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं उदीरेइ परस्सवि, एगे नो अप्पणो वज्जं उदीरेइ नो परस्स। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो

Translated Sutra: चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा – कोई प्रथम मिलन में वार्तालाप से भद्र लगते हैं, परन्तु सहवास से अभद्र मालूम होते हैं, कोई सहवास से भद्र मालूम होते हैं पर प्रथम मिलन में अभद्र लगते हैं, कोई प्रथम मिलन में भी भद्र होते हैं और सहवास से भी भद्र मालूम होते हैं, कोई प्रथम मिलन में भी भद्र नहीं लगते और सहवास से भी भद्र
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 517 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं पंचट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–एगिंदियनिव्वत्तिए, बेइंदियनिव्वत्तिए, तेइंदियनिव्वत्तिए, चउरिंदियनिव्वत्तिए, पंचिंदियनिव्वत्तिए। एवं–चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेद तह निज्जरा चेव। पंचपएसिया खंधा अनंता पन्नत्ता। पंचपएसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता जाव पंचगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता।

Translated Sutra: जीवों ने पाँच स्थानों में कर्म पुद्‌गलों को पाप कर्म रूप में चयन किया, करते हैं और करेंगे। यथा – एकेन्द्रिय रूप में यावत्‌ पंचेन्द्रिय रूप में। इसी प्रकार उपचय, बंध, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा सम्बन्धी सूत्रक हैं। पाँच प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त हैं। पाँच प्रदेशावगाढ़ पुद्‌गल अनन्त हैं। पाँच समयाश्रित पुद्‌गल
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 697 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं सत्तट्ठाणनिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–नेरइयनिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणियनिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणिणीनिव्वत्तिते, मनुस्सनिव्वत्तिते, मनुस्सीनिव्वत्तिते, देवनिव्वत्तिते देवीनिव्वत्तिते। एवं– चिण-उवचिण-बंध-उदीरवेइ तह निज्जरा चेव।

Translated Sutra: जीवों ने सात स्थानों में निवर्तित (संचित) पुद्‌गल पाप कर्म के रूप में चयन किये हैं, चयन करते हैं और चयन करेंगे। इसी प्रकार उपचयन, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन – तीन दण्डक कहें।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 701 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–नाणावरणिज्जं, दरिसणावरणिज्जं, वेयणिज्जं, मोहणिज्जं, आउयं, नामं गोत्तं, अंतराइयं। नेरइया णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा एवं चेव। एवं निरंतरं जाव वेमाणियाणं। जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा एवं चेव। एवं–चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह निज्जरा चेव। ‘एते छ चउवीसा दंडगा’ भाणियव्वा।

Translated Sutra: जीवों ने आठ कर्म प्रकृतियों का चयन किया है, करते हैं और करेंगे। यथा – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय। नैरयिकों ने आठ कर्म प्रकृतियों का चयन किया है, करते हैं और करेंगे। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहें। इसी प्रकार उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के सूत्र कहें। प्रत्येक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 799 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं अट्ठठाणनिव्वतिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–पढमसमयनेरइयनिव्वत्तिते, अपढमसमयनेरइयनिव्वत्तिते, पढमसमयतिरियनिव्वत्तिते, अपढम-समयतिरियनिव्वत्तिते पढमसमयमणुयनिव्वत्तिते, अपढमसमयमणुयनिव्वत्तिते, पढमसमयदेव-निव्वत्तिते, अपढमसमयदेवनिव्वत्तिते। एवं–चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेद तह निज्जरा चेव। अट्ठपएसिया खंधा अनंता पन्नत्ता। अट्ठपएसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता जाव अट्ठगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता।

Translated Sutra: जीवों ने आठ स्थानों में निवर्तित – संचित पुद्‌गल पापकर्म के रूप में चयन किए हैं, चयन करते हैं और चयन करेंगे। यथा – प्रथम समय नैरयिक निवर्तित यावत्‌ – अप्रथम समय देव निवर्तित। इसी प्रकार उपचयन, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन तीन दण्डक कहने चाहिए। आठ प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। अष्ट प्रदेशावगाढ़ पुद्‌गल
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 1010 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं दसठाणनिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–पढमसमयएगिंदियनिव्वत्तिए, अपढमसमयएगिंदियनिव्वत्तिए, पढमसमयबेइंदियनिव्वत्तिए, अपढम समयबेइंदियनिव्वत्तिए, पढमसमयतेइंदियनिव्वत्तिए, अपढमसमयतेइंदियनिव्वत्तिए, पढमसमय- चउरिंदियनिव्वत्तिए, अपढमसमयचउरिंदियनिव्वत्तिए, पढमसमयपंचिंदियनिव्वत्तिए, अपढमसमय-पंचिंदियनिव्वत्तिए। एवं–चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह निज्जरा चेव। दसपएसिया खंधा अनंता पन्नत्ता। दसपएसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता। दससमयठितीया पोग्गला अनंता पन्नत्ता। दसगुणकालगा पोग्गला अनंता पन्नत्ता। एवं

Translated Sutra: दस स्थानों में बद्ध पुद्‌गल जीवों ने पाप कर्म रूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे। यथा – प्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय द्वारा निवर्तित यावत्‌ – अप्रथमसमयोत्पन्न पंचेन्द्रिय द्वारा निवर्तित पुद्‌गल जीवों ने पाप कर्मरूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे। इसी प्रकार चय, उपचय, बन्ध,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१३ यथातथ्य

Hindi 561 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे कोहणे होइ जगट्ठभासो विओसितं ‘जे य’ उदीरएज्जा । अद्धे व से दंडपहं गहाय अविओसिते घासति पावकम्मो ॥

Translated Sutra: जो क्रोधी है, वह अशिष्टभाषी है, जो अनुपशान्त पापकर्मी उपशान्त की उदीरणा करता है वह दण्डपथ को ग्रहण कर फँस जाता है।
Showing 1 to 50 of 46 Results