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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 250 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिंडितो जइ हवेज्जा ।
सोनंतवग्गभइतो, सव्वागासे न माएज्जा ॥ Translated Sutra: एक सिद्ध के (प्रतिसमय के) सुखों की राशि, यदि सर्वकाल से पिण्डित की जाए, और उसे अनन्तवर्गमूलों से भाग दिया जाए, तो वह सुख भी सम्पूर्ण आकाश में नहीं समाएगा। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 254 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय सव्वकालतित्ता, अतुलं नेव्वाणमुवगया सिद्धा ।
सासयमव्वाबाहं, चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता ॥ Translated Sutra: वैसे ही सर्वकाल में तृप्त अतुल, शाश्वत, एवं अव्याबाध निर्वाण – सुख को प्राप्त सिद्ध भगवान् सुखी रहते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 283 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं दव्वट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए य एए तिन्नि वि तुल्ला दव्वट्ठयाए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, अद्धासमए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे।
एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थि-काय-अद्धासमयाणं पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए य एते णं दो Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय यावत् अद्धा – समय इन द्रव्यों में से, द्रव्य की अपेक्षा से कौन यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीनों ही तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प हैं; जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुण हैं; पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 296 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं संखेज्जपदेसियाणं असंखेज्जपदेसियाणं अनंतपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठपदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दव्वट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा; पदेसट्ठयाए–सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए, परमाणुपोग्गला अपदेस-ट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा; दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए–सव्वत्थोवा Translated Sutra: भगवन् ! इन परमाणुपुद्गलों तथा संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों में ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से – १. सबसे थोड़े अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं, २. परमाणुपुद्गल अनन्तगुणे हैं, ३. संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध संख्यातगुणे हैं, ४. असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 298 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं सागरोवमं।
अपज्जत्तयरयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की। भगवन् ! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 299 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] देवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं
अपज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
देवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयदेवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयदेवीणं Translated Sutra: भगवन् ! देवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम। अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्तक – देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तैंतीस सागरोपम की है। देवियों की स्थिति जघन्य | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 300 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
अपज्जत्तयपुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। अपर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बाईस हजार वर्ष है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 301 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं।
अपज्जत्तबेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तबेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं अंतो-मुहुत्तूणाइं।
तेइंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नं रातिंदियाइं।
अपज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नं रातिंदियाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
चउरिंदियाणं Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष। अपर्याप्त द्वीन्द्रिय स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त द्वीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बारह वर्ष है। त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 302 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतो-मुहुत्तं।
पज्जत्तयपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्व-कोडी।
अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। इनके अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। इनके पर्याप्त की जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम है। सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 303 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्साणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं
अपज्जत्तयमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सम्मुच्छिममनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
गब्भवक्कंतियमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमनुस्साणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्यों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम है। सम्मूर्च्छिम मनुष्यों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 304 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
अपज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं।
वाणमंतरीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
अपज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की है, उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। अपर्याप्त वाणव्यन्तर की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। पर्याप्तक वाण – व्यन्तर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 305 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं।
अपज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं।
जोइसिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं अद्ध पलिओवमं पण्णासवाससहस्समब्भहियं।
अपज्जत्तियाणं जोइसिणीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं जोइसिणीणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम है। अपर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 306 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वेमानियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तयवेमानियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयवेमानियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
वेमानिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं।
अपज्जत्तियाणं वेमानिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं वेमानिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं Translated Sutra: भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है। अपर्याप्तक वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तैंतीस सागरोपम है। वैमानिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 308 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! नेरइए नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिए हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्ज भागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुण-मब्भहिए वा। ठिईए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जइ हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्ज-भागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय हैं? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य से तुल्य है। प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना से – कथंचित् हीन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा अथवा असंख्यात – गुणा हीन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 309 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमाराणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असुरकुमाराणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए। ठितीए चउट्ठाणवडिए। कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए।
एवं नीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिद्दवण्णपज्जवेहिं सुक्किल्लवण्ण-पज्जवेहिं, सुब्भिगंधपज्जवेहिं दुब्भिगंधपज्जवेहिं, तित्तरसपज्जवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसाय-रसपज्जवेहिं अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपज्जवेहिं, कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपज्जवेहिं गरुयफासपज्जवेहिं Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना और स्थिति से चतुः – स्थानपतित है, इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, स्पर्श, ज्ञान, अज्ञान, दर्शन आदि पर्यायों से (पूर्वसूत्रवत्) षट्स्थानपतित | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 315 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति– जहन्नोगाहणगाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए नेरइए जहन्नोगाहणगस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहण-ट्ठयाए तुल्ले। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फास-पज्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते।अ
उवकोसोगाहणयाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–उक्कोसोगाहणयाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला नैरयिक, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य है; (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थान पतित है, और वर्णादि, तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थान पतित है। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 317 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए पुढविकाइए जहन्नोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि। अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–सट्ठाणे चउट्ठाण-वडिते।
जहन्नट्ठितीयाणं भंते! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हैं, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से, दो अज्ञानों से एवं अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 318 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए बेइंदिए जहन्नोगाहणगस्स बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि, नवरं–णाणा नत्थि। अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए जहा जहन्नोगाहणए, नवरं–सट्ठाणे ओगाहणाए चउट्ठाणवडिते।
जहन्नट्ठितीयाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीव, द्रव्य, प्रदेश तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण आदि दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा अचक्षु – दर्शन के से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 319 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नोगाहणयस्स पंचेंदियतिरिक्ख-जोणियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं दोहिं दंसणेहि छट्ठाणवडिते।
उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाण-वडिते। जहा उक्कोसोगाहणए Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंच द्रव्य, प्रदेशों, और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, दो ज्ञानों, अज्ञानों और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है। उत्कृष्ट अवगाहना | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 320 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! मनुस्साणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहन्नोगाहणगाणं मनुस्साणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए मनुस्से जहन्नोगाहणगस्स मणुसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते।
उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए–जदि हीने असंखेज्जभागहीने। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए। दो नाणा दो अन्नाणा दो दंसणा। अजहन्नमनुक्कोसगाहणए Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले मनुष्य द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण आदि से, एवं तीन ज्ञान, दो अज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है। उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में भी इसी प्रकार कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 324 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गलाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! परमाणुपोग्गलाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति– परमाणुपोग्गलाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाते तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्ज-भागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा।
कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने अनंतभागहीने Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अत्यधिक है। यदि हीन है, तो असंख्यातभाग हीन है, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 325 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नपदेसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता।
से केणट्ठेणं? गोयमा! जहन्नपदेसिते खंधे जहन्नपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए–जदि हीने पदेसहीने। अह अब्भहिए पदेसमब्भहिए। ठितीए चउट्ठाणवडिते वण्ण-गंध-रस-उवरिल्लचउफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते।
उक्कोसपएसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता।
से केणट्ठेणं? गोयमा! उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णादि-अट्ठफास-पज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
अजहन्नमनुक्कोसपदेसियाणं Translated Sutra: भगवन् ! जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक जघन्यप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्यप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन हो तो एक प्रदेशहीन और यदि अधिक हो तो भी एक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 327 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निरयगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
तिरियगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
मनुयगती णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारसा मुहुत्ता।
देवगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
सिद्धगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया सिज्झणयाए पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा।
निरयगती णं भंते! केवतियं कालं Translated Sutra: भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक। भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना। भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना। भगवन् ! देवगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 328 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि।
वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं।
पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं।
धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा – पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त तक। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः सात रात्रि – दिन तक उपपात से विरहित रहते हैं। वालुकापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक उपपात से विरहित रहते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 329 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
एवं सिद्धवज्जा उव्वट्टणा वि भाणितव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं–जोइसिय-वेमानिएसु चयणं ति अभिलावो कायव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्त्तना विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त। उपपात – विरह समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में ‘च्यवन’ शब्द कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-७ उच्छवास |
Hindi | 353 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! सततं संतयामेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
असुरकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं सातिरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा।
नागकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहत्तस्स। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा जाव नीससंति वा? गोयमा! वेमायाए आणमंति वा जाव नीससंति Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कितने काल से उच्छ्वास लेते और निःश्वास छोड़ते हैं ? गौतम ! सतत सदैव उच्छ्वास – निःश्वास लेते रहते हैं। भगवन् ! असुरकुमार ? गौतम ! वे जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः एक पक्ष में श्वास लेते और छोड़ते हैं। भगवन् ! नागकुमार ? गौतम ! वे जघन्य सात स्तोक और उत्कृष्टतः मुहूर्त्तपृथक्त्व में श्वास | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अलोगस्स णं भंते! अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठपदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं। पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा अलोगस्स चरिमंतपदेसा अचरिमंत-पदेसा अनंतगुणा, चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया। दव्वट्ठ- पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्व ट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाइं, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं, चरिमंतपदेसा असंखेज्जगुणा, अचरिमंतपदेसा Translated Sutra: भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्पबहुत्व – गौतम ! द्रव्य से – सबसे कम अलोक का एक अचरम है। उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं। अचरम और (बहुवच – नान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों से – सबसे कम अलोक के चरमान्तप्रदेश हैं, उनसे अनन्तगुणे अचर – मान्त प्रदेश हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 391 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अठियाइं गेण्हति? गोयमा! ठियाइं गेण्हति, नो अठियाइं गेण्हति।
जाइं भंते! ठियाइं गेण्हति ताइं किं दव्वओ गेण्हति? खेत्तओ गेण्हति? कालओ गेण्हति? भावओ गेण्हति? गोयमा! दव्वओ वि गेण्हति, खेत्तओ वि गेण्हति, कालओ वि गेण्हति, भावओ वि गेण्हति।
जाइं दव्वओ गेण्हति ताइं किं एगपएसियाइं गेण्हति दुपएसियाइं गेण्हति जाव अनंतपएसियाइं गेण्हति? गोयमा! नो एगपएसियाइं गेण्हति जाव नो असंखेज्जपएसियाइं गेण्हति, अनंतपएसियाइं गेण्हति।
जाइं खेत्तओ गेण्हति ताइं किं एगपएसोगाढाइं गेण्हति दुपएसोगाढाइं गेण्हति जाव असंखेज्जपएसोगाढाइं Translated Sutra: भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्थित द्रव्यों को ही ग्रहण करता है। भगवन् ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, उन्हें क्या द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से अथवा भाव से ग्रहण करता है ? गौतम ! वह द्रव्य से भी यावत् भाव | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 393 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं संतरं गेण्हति? निरंतरं गेण्हति? गोयमा! संतरं पि गेण्हति, निरंतरं पि गेण्हति। संतरं गिण्हमाणे जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अंतरं कट्टु गेण्हति। निरंतरं गिण्ह-माणे जहन्नेणं दो समए, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अनुसमयं अविरहियं निरंतरं गेण्हति।
जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाइं निसिरति ताइं किं संतरं निसिरति? निरंतरं निसिरति? गोयमा! संतरं निसिरति, नो निरंतरं निसिरति। संतरं णिसिरमाणे एगेणं समएणं गेण्हइ एगेणं समएणं निसिरति। एएणं गहणणिसिरणोवाएणं जहन्नेणं दुसमइयं उक्कोसेणं असंखेज्ज-समइयं Translated Sutra: भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें सान्तर ग्रहण करता है या निरन्तर ? गौतम ! दोनों। सान्तर ग्रहण करता हुआ जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात समय का अन्तर है और निरन्तर ग्रहण करता हुआ जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय प्रतिसमय बिना विरह के ग्रहण करता है। भगवन् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 394 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! दव्वाणं कतिविहे भेए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे भेए पन्नत्ते, तं जहा– खंडाभेए पयराभेए चुण्णियाभेए अनुतडियाभेए उक्करियाभेए।
से किं तं खंडाभेए? खंडाभेए–जण्णं अयखंडाण वा तउखंडाण वा तंबखंडाण वा सीसाखंडाण वा रययखंडाण वा जायरूवखंडाण वा खंडएण भेदे भवति। से त्तं खंडाभेदे।
से किं तं पयराभेदे? पयराभेए–जण्णं वंसाण वा वेत्ताण वा णलाण वा कदलीथंभाण वा अब्भपडलाण वा पयरएणं भेए भवति। से त्तं पयराभेदे।
से किं तं चुण्णियाभेए? जण्णं तिलचुण्णाण वा मुग्गचुण्णाण वा मासचुण्णाण वा पिप्पलि-चुण्णाण वा मिरियचुण्णाण वा सिंगबेरचुण्णाण वा चुण्णियाए भेदे भवति। से त्तं चुण्णियाभेदे।
से Translated Sutra: भगवन् ! उन द्रव्यों के भेद कितने हैं ? गौतम ! पाँच – खण्डभेद, प्रतरभेद, चूर्णिकाभेद, अनुतटिकाभेद और उत्कटिका भेद। वह खण्डभेद किस प्रकार का होता है ? खण्डभेद (वह है), जो लोहे, रांगे, शीशे, चाँदी अथवा सोने के खण्डों का, खण्डक से भेद करने पर होता है। वह प्रतरभेद क्या है ? जो बांसों, बेंतों, नलों, केले के स्तम्भों, अभ्रक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-११ भाषा |
Hindi | 396 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! सच्चभास-त्ताए निसिरति, नो मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए निसिरति, नो असच्चामोस-भासत्ताए निसिरति। एवं एगिंदियविगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि।
जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं मोसभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! नो सच्चभासत्ताए निसिरति, मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए Translated Sutra: भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्थितिद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औघिक जीव के समान कहना। विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करना। जैसे सत्यभाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहा है, वैसे ही मृषा तथा सत्यामृषाभाषा में | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१२ शरीर |
Hindi | 401 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवतिया णं भंते! ओरालियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जगा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा सिद्धाणं अनंतभागो।
केवतिया णं भंते! वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति Translated Sutra: भगवन् ! औदारिक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, काल से – वे असंख्यात उत्सर्पिणियों – अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से – अनन्तलोकप्रमाण हैं। द्रव्यतः – मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं। भगवन् ! वैक्रिय | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१२ शरीर |
Hindi | 402 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता जहा ओरालियमुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा।
नेरइयाणं भंते! केवइया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पि-णीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बीयवग्गमूलपडुप्पणं, अहव णं अंगुलबितिय-वग्गमूल-घनप्पमाणमेत्ताओ Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। बद्ध औदारिकशरीर उनके नहीं होते। मुक्त औदारिकशरीर अनन्त होते हैं, (औघिक) औदारिक मुक्त शरीरों के समान (यहाँ – नारयिकों के मुक्त औदारिकशरीरों में) भी कहना चाहिए। भगवन् ! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१२ शरीर |
Hindi | 403 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमाराणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! जहा नेरइयाणं ओरालिया भणिया तहेव एतेसिं पि भाणियव्वा।
असुरकुमाराणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स संखेज्जतिभागो। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा।
आहारयसरीरा जहा एतेसि णं चेव ओरालिया तहेव दुविहा भाणियव्वा।
तेयाकम्मसरीरा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! नैरयिकों के औदारिकशरीरों के समान इनके विषय में भी कहना। भगवन् ! असुरकुमारों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों में वे अपहृत होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१२ शरीर |
Hindi | 404 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा, सिद्धाणं अनंतभागो।
पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल से – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से वे असंख्यात लोक – प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 412 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–फुसमाणगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य।
संठाणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे।
भेयपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–खंडाभेदपरिणामे जाव उक्करियाभेदपरिणामे।
वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे।
गंधपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणामे Translated Sutra: भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का – स्पृशद्गतिपरिणाम और अस्पृशद्गतिपरि – णाम, अथवा दीर्घगतिपरिणा और ह्रस्वगतिपरिणाम। संस्थानपरिणाम पाँच प्रकार का है – परिमण्डलसंस्थान – परिणाम, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम। भेदपरिणाम पाँच प्रकार का है – खण्डभेदपरिणाम, यावत् उत्कटिका भेदपरिणाम। वर्णपरिणाम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१५ ईन्द्रिय |
उद्देशक-१ | Hindi | 428 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कंबलसाडए णं भंते! आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति? हंता! गोयमा! कंबलसाडए णं आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति।
थूणा णं भंते! उड्ढं ऊसिया समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति? हंता गोयमा! थूणा णं उड्ढं ऊसिया समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति।
आगासथिग्गले Translated Sutra: भगवन् ! कम्बलरूप शाटक आवेष्टित – परिवेष्टित किया हुआ जितने अवकाशान्तर को स्पर्श करके रहता है, (वह) फैलाया हुआ भी क्या उतने ही अवकाशान्तर को स्पर्श करके रहता है ? हाँ, गौतम ! रहता है। भगवन् ! स्थूणा ऊपर उठी हुई जितने क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है, क्या तिरछी लम्बी की हुई भी वह उतने ही क्षेत्र को अवगाहन करके रहती | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१५ ईन्द्रिय |
उद्देशक-१ | Hindi | 429 | Gatha | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, घायइ कालोय पुक्खरे वरुणे ।
खीर घत खोत नंदि य, अरुणवरे कुंडले रुयए ॥ Translated Sutra: जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, पुष्करद्वीप, वरुणद्वीप, क्षीरवर, घृतवर, क्षोद, नन्दीश्वर, अरुणवर, कुण्डलवर, रुचक। आभरण, वस्त्र, गन्ध, उत्पल, तिलक, पृथ्वी, निधि, रत्न, वर्षधर, द्रह, नदियाँ, विजय, वक्षस्कार, कल्प, इन्द्र। कुरु, मन्दर, आवास, कूट, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य, देव, नाग, यक्ष, भूत और स्वयम्भूरमण समुद्र | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१५ ईन्द्रिय |
उद्देशक-२ | Hindi | 433 | Gatha | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १ इंदिय-उवचय २ निव्वत्तणा य ३ समया भवे असंखेज्जा ।
४ लद्धी ५ उवओगद्धा, ६ अप्पाबहुए विसेसाहिया ॥ Translated Sutra: इन्द्रियोपचय, निर्वर्तना, निर्वर्तना के असंख्यात समय, लब्धि, उपयोगकाल, अल्पबहुत्वमें विशेषाधिक उपयोग काल, अवग्रह, अवाय, ईहा, व्यंजनावग्रह, अर्थावग्रह, अतीतबद्धपुरस्कृत द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय यह १२ द्वार हैं। सूत्र – ४३३, ४३४ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१५ ईन्द्रिय |
उद्देशक-२ | Hindi | 435 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए चक्खिंदिओवचए घाणिंदिओवचए जिब्भिंदिओवचए फासिंदिओवचए।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए जाव फासिंदिओवचए। एवं जाव वेमानियाणं। जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदिओवचयो भाणियव्वो।
कतिविहा णं भंते! इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियनि-व्वत्तणा जाव फासिंदियनिव्वत्तणा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जतिंदिया अत्थि।
सोइंदियनिव्वत्तणा णं भंते! कतिसमइया Translated Sutra: भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय, चक्षुरिन्द्रियोपचय, घ्राणेन्द्रियोपचय, जिह्वेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय। भगवन् ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय। इसी प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१६ प्रयोग |
Hindi | 441 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पओगगती ततगती बंधणच्छेदनगती उववायगती विहायगती।
से किं तं पओगगती? पओगगती पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगे भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती।
जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मासरीरकायप्पओगगती।
नेरइयाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण जस्स जतिविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमानियाणं।
जीवा णं भंते! किं सच्चमनप्पओगगती Translated Sutra: भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच – प्रयोगगति, ततगति, बन्धनछेदनगति, उपपात – गति और विहायोगति। वह प्रयोगगति क्या है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति। प्रयोग के समान प्रयोगगति भी कहना। भगवन् ! जीवों की प्रयोगगति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 463 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा।
से नूनं भंते! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति? हंता गोयमा! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो-भुज्जो परिणमति? गोयमा! से जहानामए–खीरे दूसिं पप्प सुद्धे वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो Translated Sutra: भगवन् ! लेश्याएं कितनी हैं ? गौतम ! छह – कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर उसी रूप में, उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शरूप में पुनः पुनः परिणत होती है ? हाँ, गौतम ! होती है। क्योंकी – जैसे छाछ आदि खटाई का जावण पाकर दूध अथवा शुद्ध वस्त्र, रंग पाकर उस रूप में, यावत् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 464 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सा णं भंते! वण्णेणं केरिसिया पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए–जीमूए इ वा अंजने इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवलवलए इ वा जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठए इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वा किण्हकेसरे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा, भवेतारूवा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अनिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुन्नतरिया चेव अमनामतरिया चेव वण्णेणं पन्नत्ता।
नीललेस्सा णं भंते! केरिसिया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए– भिंगे इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्या वर्ण से कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई जीमूत, अंजन, खंजन, कज्जल, गवल, गवल – वृन्द, जामुनफल, गीलाअरीठा, परपुष्ट, भ्रमर, भ्रमरों की पंक्ति, हाथी का बच्चा, काले केश, आकाशथिग्गल, काला अशोक, काला कनेर अथवा काला बन्धुजीवक हो। कृष्णलेश्या इससे भी अनिष्टतर है, अधिक अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अधिक अमनाम वर्णवाली | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 465 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सा णं भंते! केरिसिया आसाएणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए–निंबे इ वा निंबसारे इ वा निंबछल्ली इ वा निंबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफले इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुंबी इ वा कडुगतुंबीफले इ वा खारतउसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालि पुप्फे इ वा मियवालुंकी इ वा मियवालुंकीफले इ वा घोसाडिए इ वा घोसाडइफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा, भवेतारूवा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, कण्हलेस्सा णं एत्तो अनिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुन्नतरिया चेव अमणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
नीललेस्साए पुच्छा। गोयमा! से जहानामए– भंगी ति वा भंगीरए Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्या आस्वाद (रस) से कैसी कही है ? गौतम ! जैसे कोई नीम, नीमसार, नीमछाल, नीमक्वाथ हो, अथवा कटुज, कटुजफल, कटुजछाल, कटुज का क्वाथ हो, अथवा कड़वी तुम्बी, कटुक तुम्बीफल, कड़वी ककड़ी, कड़वी ककड़ी का फल, देवदाली, देवदाली पुष्प, मृगवालुंकी, मृगवालुंकी का फल, कड़वी घोषातिकी, कड़वी घोषातिकी फल, कृष्णकन्द अथवा वज्रकन्द | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 471 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ जीव २-३ गतिंदिय ४ काए, ५ जोगे ६ वेदे कसाय ८ लेस्सा य ।
९ सम्मत्त १० णाण ११ दंसण १२ संजय १३ उवओग आहारे ॥ Translated Sutra: जीव, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव (सिद्धिक), अस्ति (काय) और चरम, इन पदों की कायस्थिति जानना। भगवन् ! जीव कितने काल तक जीवपर्याय में रहता है ? गौतम ! सदाकाल। सूत्र – ४७१, ४७२ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 472 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १५ भासग १६ परित्त १७ पज्जत्त, १८ सुहुम १९ सण्णी २०-२१ भवत्थि २२ चरिमे य ।
एतेसिं तु पदाणं कायठिई होति नायव्वा ॥
[जीवे णं भंते! जीवे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सव्वद्धं।] Translated Sutra: देखो सूत्र ४७१ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 473 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागो।
तिरिक्खजोणिणी णं भंते! तिरिक्खजोणिणीति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तअब्भइयाइं। एवं मनूसे वि। मनूसी वि एवं चेव।
देवे णं भंते! देवे त्ति कालओ केवचिरं होइ? Translated Sutra: भगवन् ! नारक नारकत्वरूप में कितने काल रहता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम। भगवन् ! तिर्यंचयोनिक ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक। कालतः अनन्त उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्यात पुद्गलपरावर्तनों तक, वे पुद्गलपरावर्तन आवलिका के असंख्यातवें | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 474 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सइंदिए णं भंते! सइंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सइंदिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनाईए वा अपज्जवसिए, अनाईए वा सपज्जवसिए।
एगिंदिए णं भंते! एगिंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं वणप्फइकालो।
बेइंदिए णं भंते! बेइंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदियचउरिंदिए वि।
पंचेंदिए णं भंते! पंचेंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं।
अनिंदिए णं भंते! अणिंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सादीए अपज्जवसिए।
सइंदियअपज्जत्तए Translated Sutra: भगवन् ! सेन्द्रिय जीव सेन्द्रिय रूप में कितने काल रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं – अनादि – अनन्त और अनादि – सान्त। भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल – वनस्पतिकालपर्यन्त। द्वीन्द्रिय जीव द्वीन्द्रियरूप में जघन्य | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 475 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सकाइए णं भंते! सकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सकाइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए अनादीए वा सपज्जवसिए।
पुढविक्काइए णं भंते! पुढविक्काइए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। एवं आउ-तेउ-वाउक्काइया वि।
वणस्सइकाइया णं भंते! वणस्सइकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो।
तसकाइए Translated Sutra: भगवन् ! सकायिक जव सकायिकरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सकायिक दो प्रकार के हैं। अनादि – अनन्त और अनादि – सान्त। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल पृथ्वीकायिक पर्याययुक्त रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक; असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणीयों तक, क्षेत्र से – असंख्यात लोक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 476 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमे णं भंते! सुहुमे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा।
सुहुमपुढविक्काइए सुहुमआउक्काइए सुहुमतेउक्काइए सुहुमवाउक्काइए सुहुमवणप्फइ-क्काइए सुहुमनिगोदे वि जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा।
सुहुमअपज्जत्तए णं भंते! सुहुमअपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पुढविक्काइय-आउक्काइय-तेउक्काइय-वाउक्काइय-वणस्सइकाइयाण य एवं Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्म रूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल, कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणियों और क्षेत्रतः असंख्यातलोक तक। इसी प्रकार सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, यावत् सूक्ष्मवनस्पतिकायिक एवं सूक्ष्म निगोद भी समझ लेना। सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म |