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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Hindi | 325 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धिं गोयम! लोयं गच्छसि ।
खेमं च सिवं अनुत्तरं समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: तू देहमुक्त सिद्धत्व को प्राप्त कराने वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि लोक को प्राप्त करेगा। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Hindi | 326 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बुद्धे परिनिव्वुडे चरे गामगए नगरे व संजए ।
संतिमग्गं च बूहए समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: बुद्ध – तत्त्वज्ञ और उपशान्त होकर पूर्ण संयत भाव से तू गांव एवं नगर में विचरण कर। शान्ति मार्ग को बढ़ा। गौतम ! इसमें समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 581 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजओ नाम नामेणं तहा गोत्तेण गोयमे ।
गद्दभाली ममायरिया विज्जाचरणपारगा ॥ Translated Sutra: संजय मुनि – ‘‘मेरा नाम संजय है। मेरा गोत्र गौतम है। विद्या और चरण के पारगामी ‘गर्दभालि’ मेरे आचार्य हैं।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२२ रथनेमीय |
Hindi | 801 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोरिट्ठनेमिनामो उ लक्खणस्सरसंजुओ ।
अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥ Translated Sutra: वह अरिष्टनेमि सुस्वरत्व एवं लक्षणों से युक्त था। १००८ शुभ लक्षणों का धारक भी था। उसका गोत्र गौतम था और वह वर्ण से श्याम था। वह वज्रऋषभ नाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थानवाला था। उसका उदर मछली के उदर जैसा कोमल था। राजमती कन्या उसकी भार्या बने, यह याचना केशव ने की। यह महान राजा की कन्या सुशील, सुन्दर, सर्वलक्षण | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 874 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: ‘‘गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर कर दिया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। यह अचेलक धर्म वर्द्धमान ने बताया है, और यह सान्तरोत्तर धर्म महायशस्वी पार्श्व ने प्रतिपादन किया है। एक ही कार्य से प्रवृत्त दोनों में भेद का कारण क्या है ? मेधावी ! लिंग के इन दो | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 877 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केसिमेवं बुवाण तु गोयमो इणमब्बवी ।
विण्णाणेन समागम्म धम्मसाहणमिच्छियं ॥ Translated Sutra: तब गौतम ने कहा – विशिष्ट ज्ञान से अच्छी तरह धर्म के साधनों को जानकर ही उन की अनुमति दी गई है। नाना प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना लोगों की प्रतीति के लिए है। संयमयात्रा के निर्वाह के लिए और मैं साधु हूँ, – यथाप्रसंग इसका बोध रहने के लिए ही लोक में लिंग का प्रयोजन है। वास्तव में दोनों तीर्थंकरों का एक ही सिद्धान्त | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 880 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह तो दूर कर दिया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उस विषय में भी मुझे कहें। गौतम! अनेक सहस्र शत्रुओं के बीच में तुम खड़े हो। वे तुम्हें जीतना चाहते हैं। तुमने उन्हें कैसे जीता ? सूत्र – ८८०, ८८१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 882 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस ।
दसहा उ जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिनामहं ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – एक को जीतने से पाँच जीत लिए गए और पाँच को जीत लेने से दस जीत लिए गए। दसों को जीतकर मैंने सब शत्रुओं को जीत लिया। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 883 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: गौतम ! वे शत्रु कौन होते हैं ? केशी ने गौतम को कहा। गौतमने कहा – मुने ! न जीता हुआ अपना आत्मा ही शत्रु है। कषाय और इन्द्रियाँ भी शत्रु हैं। उन्हें जीतकर नीति के अनुसार मैं विचरण करता हूँ। सूत्र – ८८३, ८८४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 885 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: ‘‘गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उस विषय में भी मुझे कहें। इस संसार में बहुत से जीव पाश से बद्ध हैं। मुने ! तुम बन्धन से मुक्त और लघुभूत होकर कैसे विचरण करते हो ?’’ सूत्र – ८८५, ८८६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 887 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ते पासे सव्वसो छित्ता निहंतूण उवायओ ।
मुक्कपासो लहुब्भूओ विहरामि अहं मुनी! ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – ’’मुने ! उन बन्धनों को सब प्रकार से काट कर, उपायों से विनष्ट कर मैं बन्धनमुक्त और हलका होकर विचरण करता हूँ।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 888 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पासा य इइ के वुत्ता? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: गौतम ! वे बन्धन कौन से हैं ? केशी ने गौतम को पूछा। गौतम ने कहा – | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 890 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है, गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। गौतम ! हृदय के भीतर उत्पन्न एक लता है। उसको विष – तुल्य फल लगते हैं। उसे तुमने कैसे उखाड़ा? सूत्र – ८९०, ८९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 892 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित्ता समूलियं ।
विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – उस लता को सर्वथा काटकर एवं जड़ से उखाड़ कर नीति के अनुसार मैं विचरण करता हूँ। अतः मैं विष – फल खाने से मुक्त हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 893 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लया य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वह लता कौनसी है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – भवतृष्णा ही भयंकर लता है। उसके भयंकर परिपाक वाले फल लगते हैं। हे महामुने ! उसे जड़ से उखाड़कर मैं नीति के अनुसार विचरण करता हूँ। सूत्र – ८९३, ८९४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 895 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। घोर प्रचण्ड अग्नियाँ प्रज्वलित हैं। वे जीवों को जलाती हैं। उन्हें तुमने कैसे बुझाया ? सूत्र – ८९५, ८९६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 897 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महामेहप्पसूयाओ गिज्झ वारि जलुत्तमं ।
सिंचामि सययं देहं सित्ता नो व डहंति मे ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – महामेघ से प्रसूत पवित्र – जल को लेकर मैं उन अग्नियों का निरन्तर सिंचन करता हूँ। अतः सिंचन की गई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 898 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अग्गी य इइ के वुत्ता? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वे कौन – सी अग्नियाँ है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – कषाय अग्नियाँ हैं। श्रुत, शील और तप जल है। श्रुत, शील, तप रूप जल – धारा से बुझी हुई और नष्ट हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं। सूत्र – ८९८, ८९९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 900 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा सन्देह दूर किया है। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व दौड़ रहा है। गौतम ! तुम उस पर चढ़े हुए हो। वह तुम्हें उन्मार्ग पर कैसे नहीं ले जाता है ? सूत्र – ९००, ९०१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 902 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पधावंतं निगिण्हामि सुयरस्सीसमाहियं ।
न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – दौड़ते हुए अश्व को मैं श्रुतरश्मि से – वश में करता हूँ। मेरे अधीन हुआ अश्व उन्मार्ग पर नहीं जाता है, अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 903 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अस्से य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: अश्व किसे कहा गया है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – मन ही साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व है, जो चारों तरफ दौड़ता है। उसे मैं अच्छी तरह वश में करता हूँ। धर्मशिक्षा से वह कन्थक अश्व हो गया है।’’ सूत्र – ९०३, ९०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 905 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। गौतम ! लोक में कुमार्ग बहुत हैं, जिससे लोग भटक जाते हैं। मार्ग पर चलते हुए तुम क्यों नहीं भटकते हो ? सूत्र – ९०५, ९०६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 907 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य मग्गेण गच्छंति जे य उम्मग्गपट्ठिया ।
ते सव्वे विइया मज्झं तो न नस्सामहं मुनी ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – जो सन्मार्ग में चलते हैं और जो उन्मार्ग से चलते हैं, उन सबको मैं जानता हूँ। अतः हे मुने! मैं नही भटकता हूँ।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 908 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मग्गे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: मार्ग किसे कहते हैं ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाखण्डी लोग उन्मार्ग पर चलते हैं। सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और वही उत्तम मार्ग है। सूत्र – ९०८, ९०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 910 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। मुने ! महान् जलप्रवाह के वेग से बहते – डूबते हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप तुम किसे मानते हो ?’’ सूत्र – ९१०, ९११ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 912 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्थि एगो महादीवो वारिमज्झं महालओ ।
महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – जल के बीच एक विशाल महाद्वीप है। वहाँ महान् जलप्रवाह के वेग की गति नहीं है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 913 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दीवे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वह महाद्वीप कौन सा है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – जरा – मरण के वेग से बहते – डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है। सूत्र – ९१३, ९१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 915 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया, मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही है। तुम उस पर चढ़कर कैसे पार जा सकोगे ? सूत्र – ९१५, ९१६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 917 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गामिणी ।
जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिनी ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – जो नौका छिद्रयुक्त है, वह पार नहीं जा सकती। जो छिद्ररहित है वही नौका पार जाती है | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 918 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नावा य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वह नौका कौन सी है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – शरीर नौका है, जीव नाविक है और संसार समुद्र है, जिसे महर्षि तैर जाते हैं। सूत्र – ९१८, ९१९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 920 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। भयंकर गाढ अन्धकार में बहुत से प्राणी रह रहे हैं। सम्पूर्ण लोक में प्राणियों के लिए कौन प्रकाश करेगा? सूत्र – ९२०, ९२१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 922 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उग्गओ विमलो भानू सव्वलोगप्पभंकरो ।
सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – सम्पूर्ण जगत् में प्रकाश करने वाला निर्मल सूर्य उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 923 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भानू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वह सूर्य कौन है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – जिसका संसार क्षीण हो गया है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन – भास्कर उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा। सूत्र – ९२३, ९२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 925 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें। मुने ! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए तुम क्षेम, शिव और अनाबाध – कौन – सा स्थान मानते हो ? सूत्र – ९२५, ९२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 927 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरारुहं ।
जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ॥ Translated Sutra: गणधर गौतम – लोक के अग्र – भाग में एक ऐसा स्थान है, जहाँ जरा नहीं है, मृत्यु नहीं है, व्याधि और वेदना नहीं है। परन्तु वहाँ पहुँचना बहुत कठिन है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 928 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ठाणे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: वह स्थान कौन सा है। केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – जिस स्थान को महर्षि प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है। क्षेम, शिव और अनाबाध है। भव – प्रवाह का अन्त करनेवाले मुनि जिसे प्राप्त कर शोक से मुक्त हो जाते हैं, वह स्थान लोक के अग्रभाग में शाश्वत रूप से अवस्थित है, जहाँ पहुँच पाना | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 931 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
नमो ते संसयाईय! सव्वसुत्तमहोयही! ॥ Translated Sutra: गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह भी दूर किया। हे संशयातीत ! सर्व श्रुत के महोदधि ! तुम्हें मेरा नमस्कार है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 932 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरक्कमे ।
अभिवंदित्ता सिरसा गोयमं तु महायसं ॥ Translated Sutra: इस प्रकार संशय के दूर होने पर घोर पराक्रमी केशीकुमार, महान् यशस्वी गौतम को वन्दना कर – प्रथम और अन्तिम जिनों के द्वारा उपदिष्ट एवं सुखावह पंचमहाव्रतरूप धर्म के मार्ग में भाव से प्रविष्ट हुए। सूत्र – ९३२, ९३३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 934 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे ।
सुयसीलसमुक्करिसो महत्थत्थविनिच्छओ ॥ Translated Sutra: वहाँ तिन्दुक उद्यान में केशी और गौतम दोनों का जो यह सतत समागम हुआ, उसमें श्रुत तथा शील का उत्कर्ष और महान् तत्त्वों के अर्थों का विनिश्चय हुआ। समग्र सभा धर्मचर्या से संतुष्ट हुई। अतः सन्मार्ग में समुपस्थित उसने भगवान् केशी और गौतम की स्तुति की कि वे दोनों प्रसन्न रहें। – ऐसा मैं कहता हूँ। सूत्र – ९३४, ९३ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 867 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुच्छामि ते महाभाग! केसा गोयममब्बवी ।
तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ Translated Sutra: કેશીએ ગૌતમને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે મહાભાગ ! હું તમને કાંઈક પૂછવા ઇચ્છું છું. કેશીએ આમ કહેતા ગૌતમે કહ્યું – હે પૂજ્ય ! જેવી ઇચ્છા હોય તે પૂછો. પછી અનુજ્ઞા પામીને કેશીએ ગૌતમને આમ કહ્યું – સૂત્ર સંદર્ભ– ૮૬૭, ૮૬૮ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 871 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ केसिं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ।
पण्णा समिक्खए धम्मं तत्तं तत्तविनिच्छयं ॥ Translated Sutra: કેશીશ્રમણે આમ કહેતા, ગૌતમે તેને આ પ્રમાણે કહ્યું – તત્ત્વનો નિર્ણય જેમાં થાય છે, એવા ધર્મતત્ત્વની સમીક્ષા પ્રજ્ઞા કરે છે. પહેલાં તીર્થંકરના સાધુ ઋજુ અને જડ હોય છે. અંતિમ તીર્થંકરના વક્ર અને જડ હોય છે. મધ્યમના તીર્થંકરોના સાધુ ઋજુ અને પ્રાજ્ઞ હોય છે, તેથી ધર્મ બે પ્રકારે છે. પહેલાં તીર્થંકરના સાધુને કલ્પને | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 874 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥ Translated Sutra: હે ગૌતમ ! તમારી પ્રજ્ઞા શ્રેષ્ઠ છે. તમે મારો આ સંદેહ દૂર કર્યો. મારો એક બીજો પણ સંદેહ છે. હે ગૌતમ ! તે પણ મને કહો. આ અચેલક ધર્મ વર્દ્ધમાન સ્વામીએ કહ્યો અને આ સાંતરોત્તર ધર્મ મહાયશસ્વી પાર્શ્વએ પ્રતિપાદિત કર્યો છે. એક જ કાર્ય માટે પ્રવૃત્ત બંનેમાં ભેદનું શું કારણ ? હે મેધાવી ! આ બે પ્રકારના લિંગમાં તમને કોઈ સંશય થતો | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 860 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह ते तत्थ सीसाणं विण्णाय पवितक्कियं ।
समागमे कयमई उभओ केसिगोयमा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૬૦. કેશી અને ગૌતમ બંનેએ શિષ્યોના પ્રવિતર્કિતને જાણીને પરસ્પર મળવાનો વિચાર કર્યો. સૂત્ર– ૮૬૧. કેશી શ્રમણના કુળને જ્યેષ્ઠ કુળ જાણીને પ્રતિરૂપજ્ઞ ગૌતમ શિષ્ય સંઘની સાથે તિંદુક વનમાં આવ્યા. સૂત્ર– ૮૬૨. ગૌતમને આવતા જોઈને કેશી કુમાર શ્રમણે તેમની સમ્યક્ પ્રકારે પ્રતિરૂપ પ્રતિપત્તિ કરી. સૂત્ર– ૮૬૩. ગૌતમને | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 291 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए ।
एवं मनुयाण जीवियं समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: જેમ સમય વીતતા વૃક્ષનું સૂકું સફેદ પાન પડી જાય છે, તેવું જ મનુષ્ય જીવન છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણ માત્ર પણ પ્રમાદ ન કર. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 292 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुसग्गे जह ओसबिंदुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए ।
एवं मनुयाण जीवियं समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: કુશના અગ્રભાગ ઉપર રહેલા ઓસના બિંદુની માફક મનુષ્યનું જીવન ક્ષણિક છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્ર પણ પ્રમાદ ન કર. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 293 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहुपच्चवायए ।
विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: આ અલ્પકાલીન આયુષ્યમાં, વિઘ્નોથી પ્રતિહત જીવનમાં જ પૂર્વસંચિત કર્મરજને દૂર કરવાની છે માટે હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્ર પણ પ્રમાદ ન કર. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 294 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुलहे खलु मानुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं ।
गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: વિશ્વના બધા પ્રાણીઓને ચિરકાળે પણ મનુષ્યભવની પ્રાપ્તિ દુર્લભ છે. કર્મોનો વિપાક ઘણો તીવ્ર છે, તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્રનો પ્રમાદ ન કર. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 295 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૯૫. પૃથ્વીકાયમાં ગયેલો જીવ ઉત્કૃષ્ટ અસંખ્યકાળ સુધી રહે છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્રનો પણ પ્રમાદ કરીશ નહીં. સૂત્ર– ૨૯૬. અપ્કાયમાં ગયેલો જીવ ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યકાળ સુધી રહે છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્રનો પણ પ્રમાદ કરીશ નહીં. સૂત્ર– ૨૯૭. તેઉકાયમાં ગયેલો જીવ ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યકાળ સુધી રહે છે, તેથી હે ગૌતમ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 305 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहेहिं कम्मेहिं ।
जीवो पमायबहुलो समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: પ્રમાદ બહુલ જીવ શુભાશુભ કર્મોને કારણે એ પ્રમાણે સંસારમાં પરિભ્રમણ કરે છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્ર પણ પ્રમાદ કરવો નહીં. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Gujarati | 306 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लद्धूण वि मानुसत्तणं आरिअत्तं पुनरावि दुल्लहं ।
बहवे दसुया मिलेक्खुया समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૬. દુર્લભ મનુષ્યત્વ પામીને પણ આર્યત્વ પામવું દુર્લભ છે. કેમ કે ઘણા દસ્યુ અને મ્લેચ્છ હોય છે, તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણમાત્ર પ્રમાદ ન કર. સૂત્ર– ૩૦૭. આર્યત્વ પ્રાપ્ત થયા પછી પણ અહીન પંચેન્દ્રિયત્વ દુર્લભ છે. ઘણા વિકલેન્દ્રિયો દેખાય છે. તેથી હે ગૌતમ ! ક્ષણ માત્ર પ્રમાદ ન કર. સૂત્ર– ૩૦૮. અહીન પંચેન્દ્રિયત્વની |