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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 412 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तह उत्तमट्ठकाले देहे निरवेक्खयं उवगएणं ।
तिलछेत्तलावगा इव आयंका विसहियव्वा उ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 457 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तम्मि सिलायलपुहवी पंच वि देहट्ठिईसुमुणियत्था ।
कालगया उववन्ना पंच वि अपराजियविमाणे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 499 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] महुरा जियसत्तुसुओ अनगारो कालवेसिओ ‘रोगे’ ।
मोग्गल्लसेलसिहरे खइओ किर सुरसियालेणं १६ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 502 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] महुराइ इंददत्तो ‘सक्कारा’ पायछेयणे सड्ढो १९ ।
‘पन्नाइ’ अज्जकालग सागरखमणो य दिट्ठंतो २० ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 508 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अरुणसिहं दट्ठूणं मच्छो सण्णी महासमुद्दम्मि ।
हा! न गहिओ त्ति काले झस त्ति संवेगमावन्नो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 510 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] खगतुंडभिन्नदेहो दूसहसूरग्गितावियसरीरो ।
कालं काऊण सुरो उववन्नो, एव सहणिज्जं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 520 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमम्मि कप्पम्मि ।
सिरितिलयम्मि विमाने उक्कोसठिई सुरो जाओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 601 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] बहुसो अनुभूयाइं अईयकालम्मि सव्वदुक्खाइं ।
पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जनो धम्मं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 634 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मानुस्स-देस-कुल-काल-जाइ-इंदियबलोवयाणं च ।
विन्नाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 2 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जयइ सुयाणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ ।
जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥ Translated Sutra: समग्र श्रुतज्ञान के मूलस्रोत, वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम, लोकों के गुरु महात्मा महावीर सदा जयवन्त हैं। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 31 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणम्मि दंसणम्मि य, तव-विनए णिच्चकालमुज्जुत्तं ।
अज्जं नंदिलक्खमणं, सिरसा वंदे पसण्णमनं ॥ Translated Sutra: ज्ञान, दर्शन, तप और विनयादि गुणों में सर्वदा उद्यत तथा राग – द्वेष विहीन प्रसन्नमना, अनेक गुणों से सम्पन्न आर्य नन्दिल क्षपण को सिर नमाकर वन्दन करता हूँ। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 34 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अयलपुरा निक्खंते, कालियसुय-आनुओगिए धीरे ।
बंभद्दीवग-सीहे, वायगपयमुत्तमं पत्ते ॥ Translated Sutra: जो अचलपुर में दीक्षित हुए और कालिक श्रुत की व्याख्या में से दक्ष तथा धीर थे, उत्तम वाचक पद को प्राप्त ऐसे ब्रह्मद्वीपिक शाखा के आर्य सिंह को वन्दन करता हूँ। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 37 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालियसुयअनुओगस्स धारए धारए य पुव्वाणं ।
हिमवंतखमासमणे, वंदे नागज्जुणायरिए ॥ Translated Sutra: कालिक सूत्र सम्बन्धी अनुयोग और उत्पादन आदि पूर्वों के धारक, ऐसे हिमवन्त क्षमाश्रमण को और नागार्जुनाचार्य को वन्दन करता हूँ। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 45 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे अन्ने भगवंते, कालिय-सुय-आनुओगिए धीरे ।
ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥ Translated Sutra: इस अनुयोगधर स्थविरों और आचार्यों से अतिरिक्त अन्य जो भी कालिक सूत्रों के ज्ञाता और अनुयोगधर धीर आचार्य भगवन्त हुए हैं, उन सभी को प्रणाम करके (मैं देव वाचक) ज्ञान की प्ररूपणा करूँगा। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 67 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंगुलमावलियाणं, भागमसंखेज्ज दोसु संखेज्जा ।
अंगुलमावलियंतो, आवलिया अंगुल-पुहत्तं ॥ Translated Sutra: क्षेत्र और काल के आश्रित – अवधिज्ञानी यदि क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें या – संख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका के असंख्यातवें या संख्यातवें भाग को जानता है। यदि अंगुलप्रमाण क्षेत्र देखे तो काल से आवलिका से कुछ कम देखे और यदि सम्पूर्ण आवलिका प्रमाण काल देखे तो क्षेत्र से अंगुलपृथक्त्व प्रमाण | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 68 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हत्थम्मि मुहुत्तंतो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्वो ।
जोयणदिवसपुहत्तं, पक्खंतो पन्नवीसाओ ॥ Translated Sutra: यदि क्षेत्र से एक हस्तपर्यंत देखे तो काल से एक मुहूर्त्त से कुछ न्यून देखे और काल से दिन से कुछ कम देखे तो क्षेत्र से एक गव्यूति परिमाण देखता है। यदि क्षेत्र से योजन परिमाण देखता है तो काल से दिवस पृथक्त्व देखता है। यदि काल से किञ्चित् न्यून पक्ष देखे तो क्षेत्र से पच्चीस योजन पर्यन्त देखता है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 69 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भरहम्मि अद्धमासो, जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो ।
वासं च मनुयलोए, वासपुहत्तं च रुयगम्मि ॥ Translated Sutra: यदि क्षेत्र से सम्पूर्ण भरतक्षेत्र को देखे तो काल से अर्धमास परिमित भूत, भविष्यत् एवं वर्तमान, तीनों कालों को जाने। यदि क्षेत्र से जम्बूद्वीप पर्यन्त देखता है तो काल से एक मास से भी अधिक देखता है। यदि क्षेत्र से मनुष्यलोक परिमाण क्षेत्र देखे तो काल से एक वर्ष पर्यन्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल देखता है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 70 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखेज्जम्मि उ काले, दीवसमुद्दा वि हुंति संखेज्जा ।
कालम्मि असंखेज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥ Translated Sutra: अवधिज्ञानी यदि काल से संख्यात काल को जाने तो क्षेत्र से भी संख्यात द्वीप – समुद्र पर्यन्त जानता है और असंख्यात काल जानने पर क्षेत्र से द्वीपों एवं समुद्रों की भजना जानना। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 71 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढीए ।
वुड्ढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खेत्तकाला उ ॥ Translated Sutra: काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव चारों की अवश्य वृद्धि होती है। क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की भजना है। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल भजनीय होते हैं। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 72 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं ।
अंगुलसेढीमित्ते, ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: काल सूक्ष्म होता है किन्तु क्षेत्र उससे भी सूक्ष्म होता है, क्योंकि एक अङ्गुल मात्र श्रेणी रूप क्षेत्र में आकाश के प्रदेश असंख्यात अवसर्पिणियों के समय जितने होते हैं। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 77 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा– दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अनंताइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ। उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ।
खेत्तओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं जाणइ पासइ। उक्कोसेणं असंखेज्जाइं अलोगे लोयमेत्ताइं खंडाइं जाणइ पासइ।
कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं जाणइ पासइ। उक्कोसेणं असंखेज्जाओ ओसप्पिणीओ उस्स-प्पिणीओ अईयमणागयं च कालं जाणइ पासइ।
भावओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अनंते भावे जाणइ पासइ। उक्कोसेण वि अनंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ। Translated Sutra: अवधिज्ञान संक्षिप्त में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से – अवधिज्ञानी जघन्यतः अनन्त रूपी द्रव्यों की और है। उत्कृष्ट समस्त रूपी द्रव्यों को जानता – देखता है। क्षेत्र से – अवधिज्ञानी जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भागमात्र क्षेत्र को और उत्कृष्ट अलोक में लोकपरिमित | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 78 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओही भवपच्चइओ, गुणपच्चइओ य वन्निओ एसो ।
तस्स य बहू विगप्पा, दव्वे खेत्ते य काले य ॥ Translated Sutra: – यह अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक दो प्रकार से है। और उसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप से बहुत – से विकल्प हैं। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 82 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च दुविहं उप्पज्जइ, तं जहा–उज्जुमई य विउलमई य।
तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं उज्जुमई अनंते अनंतपएसिए खंधे जाणइ पासइ। ते चेव विउलमई अब्भहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाणइ पासइ।
खेत्तओ णं उज्जुमई अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डागपयरे, उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोमनुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु, पन्नरससु कम्मभूमीसु, तीसाए अकम्मभूमीसु, छप्पन्नए अंतरदीवगेसु, सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ। तं चेव विउलमई अड्ढाइज्जेहिमंगुलेहिं अब्भहियतरं Translated Sutra: मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है। ऋजुमति, विपुलमति। यह संक्षेप से चार प्रकार से है। द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से। द्रव्य से – ऋजुमति अनन्त अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों को जानता व देखता है, और विपुलमति उन्हीं स्कन्धों को कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से जानता व देखता है। क्षेत्र से – ऋजुमति | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 89 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ।
खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ।
कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ।
भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ। Translated Sutra: संक्षेप में वह चार प्रकार का है – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। केवलज्ञानी द्रव्य से सर्वद्रव्यों को, क्षेत्र से सर्व लोकालोक क्षेत्र को, काल से भूत, वर्तमान और भविष्यत् तीनों कालों को और भाव से सर्व द्रव्यों के सर्व भावों – पर्यायों को जानता व देखता है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 97 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वमदिट्ठमसुयमवेइय-तक्खणविसुद्धगहियत्था ।
अव्वाहय-फलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ॥ Translated Sutra: जिस बुद्धि के द्वारा पहले बिना देखे और बिना सुने ही पदार्थों के विशुद्ध अर्थ को तत्काल ही ग्रहण कर लिया जाता है और जिससे अव्याहत – फल का योग होता है, वह औत्पत्तिकी बुद्धि है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 119 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गहे इक्कसामइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं। Translated Sutra: अवग्रह ज्ञान का काल एक समय मात्र का है। ईहा का अन्तर्मुहूर्त्त, अवाय भी अन्तर्मुहूर्त्त तथा धारणा का काल संख्यात अथवा असंख्यात काल है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 120 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिनिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि–पडि-बोहगदिट्ठंतेण, मल्लगदिट्ठंतेण य।
से किं तं पडिबोहगदिट्ठंतेणं?
पडिबोहगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वुत्तं पडिबोहेज्जा–अमुगा! अमुग! त्ति। तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी–किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? एवं वदंतं चोयगं पन्नवए एवं वयासी–
नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला Translated Sutra: – चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूँगा। कोई व्यक्ति किसी गुप्त पुरुष को – ‘‘हे अमुक ! हे अमुक !’’ इस प्रकार कह कर जगाए। ‘‘भगवन् ! क्या ऐसा | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 121 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ, न पासइ।
खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ।
कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ, न पासइ।
भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ। Translated Sutra: – वह मतिज्ञान संक्षेप में चार प्रकार का है। – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। मतिज्ञानी द्रव्य से सामान्यतः सर्व द्रव्यों को जानता है, किन्तु देखता नहीं। क्षेत्र से सामान्यतः सर्व क्षेत्र को जानता है, किन्तु देखता नहीं। काल से सामान्यतः तीनों कालों को जानता है, किन्तु देखता नहीं। भाव से सामान्यतः | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 124 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उग्गह इक्कं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु ।
कालमसंखं संखं, च धारणा होइ नायव्वा ॥ Translated Sutra: – अवग्रह ज्ञान का काल एक समय, ईहा और अवायज्ञान का समय अर्द्धमुहूर्त्त तथा धारणा का काल – परिमाण संख्यात व असंख्यात काल पर्यन्त समझना। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 133 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सन्निसुयं?
सन्निसुयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालिओवएसेणं हेऊवएसेणं दिट्ठिवाओवएसेणं।
से किं तं कालिओवएसेणं?
कालिओवएसेणं–जस्स णं अत्थि ईहा, अपोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा– से णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं नत्थि ईहा, अपोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा– से णं असण्णीति लब्भइ। से त्तं कालिओवएसेणं।
से किं तं हेऊवएसेणं?
हेऊवएसेणं–जस्स णं अत्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती–से णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती–से णं असण्णीति लब्भइ। से त्तं हेऊवएसेणं।
से किं तं दिट्ठिवाओवएसेणं?
दिट्ठिवाओवएसेणं–सन्निसुयस्स सण्णी ति लब्भइ, असन्निसुयस्स Translated Sutra: – संज्ञिश्रुत कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार का, कालिका – उपदेश से, हेतु – उपदेश से और दृष्टिवाद – उपदेश से। कालिक – उपदेश से जिसे ईहा, अपोह, निश्चय, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता, विमर्श। उक्त प्रकार से जिस प्राणी की विचारधारा हो, वह संज्ञी है। जिसके ईहा, अपाय, मार्गणा, गवेषणा, चिंता और विमर्श नहीं हों, वह असंज्ञी है। संज्ञी | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 136 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अनाइयं अपज्जवसियं च?
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं– वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं।
तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
खेत्तओ णं–पंचभरहाइं पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सप-ज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
कालओ णं–ओसप्पिणिं उस्सप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणिं नोउस्स-प्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
भावओ णं–जे जया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: – सादि सपर्यवसित और अनादि अपर्यवसितश्रुत का क्या स्वरूप है ? यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं, और द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से आदि अन्त रहित है। यह श्रुतज्ञान संक्षेप में चार प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से, एक पुरुष | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 139 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विनय-वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जंति।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे
आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसनकाला, पंचासीइं समुद्देसनकाला, अट्ठारस-पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: – आचार नामक अंगसूत्र का क्या स्वरूप है ? उसमें बाह्य – आभ्यंतर परिग्रह से रहित श्रमण निर्ग्रन्थों का आचार, गोचर – भिक्षा के ग्रहण करने की विधि, विनय, विनय का फल, ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा, बोलने योग्य एवं त्याज्य भाषा, चरण – व्रतादि, करणपिण्डविशुद्धि आदि, संयम का निर्वाह और अभिग्रह धारण करके विचरण करना इत्यादि | |||||||||
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Hindi | 140 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ। जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जंति। ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ
सूयगडे णं आसीयस्स किरियावाइ-सयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं– तिण्हं तेसट्ठाणं पावादुय-सयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ।
सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए बिइए अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तेत्तीसं उद्देसनकाला, तेत्तीसं समुद्देसनकाला, Translated Sutra: – सूत्रकृत में किस विषय का वर्णन है ? सूत्रकृत में षड्द्रव्यात्मक लोक, केवल आकाश द्रव्यमल अलोक, लोकालोक दोनों सूचित किये जाते हैं। इसी प्रकार जीव, अजीव और जीवाजीव की सूचना है। स्वमत, परमत और स्व – परमत की है। सूत्रकृत में १८० कियावादियों के, ८४ अक्रियावादियों के, ६७ अज्ञानवादियों और ३२ विनयवादियों के, इस प्रकार | |||||||||
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Hindi | 141 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठाणे?
ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जंति, जीवाजीवा ठाविज्जंति। ससमए ठावि-ज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ। लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ।
ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाइं, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ आघविज्जंति।
ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणग-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ
ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगह-णीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, एगवीसं उद्देसनकाला, एगवीसं Translated Sutra: – भगवन् ! स्थानाङ्गश्रुत क्या है ? स्थान में अथवा स्थान के द्वारा जीव, अजीव और जीवाजीव की स्थापना की जाती है। स्वसमय, परसमय एवं उभय पक्षों की स्थापना की जाती है। लोक, अलोक और लोकालोक की स्थापना की जाती है। स्थान में या स्थान के द्वारा टङ्क पर्वत कूट, पर्वत, शिखर वाले पर्वत, पर्वत के ऊपर हस्तिकुम्भ की आकृति सदृश्य | |||||||||
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Hindi | 142 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समवाए?
समवाए णं जीवा समासिज्जंति, अजीवा समासिज्जंति, जीवाजीवा समासिज्जंति। ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-परसमए समासिज्जइ। लोए समासिज्जइ, अलोए समासिज्जइ, लोयालोए समासिज्जइ
समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसय-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ। दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिज्जइ।
समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए चउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसनकाले, एगे समुद्देसन काले, एगे चोयाले Translated Sutra: – समवायश्रुत का विषय क्या है ? समवाय सूत्र में यथावस्थित रूप से जीवों, अजीवों और जीवाजीवों का आश्रयण किया गया है। स्वदर्शन, परदर्शन और स्वपरदर्शन का आश्रयण किया गया है। लोक अलोक और लोकालोक आश्रयण किये जाते हैं। समवाय में एक से लेकर सौ स्थान तक भावों की प्ररूपणा है और द्वादशाङ्ग गणिपिटक का संक्षेप में परिचय | |||||||||
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Hindi | 143 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जंति। ससमए विआहिज्जति, परसमए विआहिज्जति, ससमय-परसमए विआहिज्जति। लोए विआहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालोए विआहिज्जति।
वियाहस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साइं, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता Translated Sutra: व्याख्याप्रज्ञप्ति में क्या वर्णन है? व्याख्याप्रज्ञप्ति में जीवों की, अजीवों की तथा जीवाजीवों की व्याख्या है। स्वसमय, परसमय और स्व – पर – उभय सिद्धान्तों की तथा लोक, अलोक और लोकालोक के स्वरूप का व्याख्यान है। परिमित वाचनाऍं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ – श्लोक विशेष, संख्यात निर्युक्तियाँ, संख्यात | |||||||||
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Hindi | 144 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमनाइं, देवलोग-गमनाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइं। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाइं। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओवक्खाइया-सयाइं– एवमेव सपुव्वावरेणं अद्धट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति त्ति मक्खायं।
नायाधम्मकहाणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों के नगरों, उद्यानों, चैत्यों, वनखण्डों व भगवान् के समवसरणों का तथा राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक संबंधी ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, दीक्षा, पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधान – तप, संलेखना, भक्त – प्रत्याख्यान, पादपोप | |||||||||
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Hindi | 145 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिव-ज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, Translated Sutra: उपासकदशा नामक अंग किस प्रकार है ? उपासकदशा में श्रमणोपासकों के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धिविशेष, भोग – परित्याग, दीक्षा, संयम की पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, शीलव्रत – गुणव्रत, विरमणव्रत – प्रत्याख्यान, पौषधोपवास का धारण करना, प्रतिमाओं | |||||||||
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Hindi | 146 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्व-ज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसनकाला, अट्ठ समुद्देसन-काला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा Translated Sutra: – अन्तकृद्दशा – श्रुत किस प्रकार का है ? अन्तकृद्दशा में अन्तकृत् महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक और परलोक की ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या और दीक्षापर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, संलेखना, भक्त – प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अन्तक्रिया | |||||||||
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Hindi | 147 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववायाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोस-रणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोग-परिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अनुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए नवमे Translated Sutra: भगवन् ! अनुत्तरौपपातिक – दशा सूत्र में क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिक दशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होनेवाले आत्माओं के नगर, उद्यान, व्यन्तरायन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऋद्धिविशेष, भोगों का परित्याग, दीक्षा, संयमपर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, प्रतिमाग्रहण, उपसर्ग, अंतिम | |||||||||
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Hindi | 148 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाइं?
पण्हावागरणेसु णं अट्ठुत्तरं परिणसयं, अट्ठुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखे-ज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसनकाला पणयालीसं समुद्देसनकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है ? प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न हैं, १०८ अप्रश्न हैं, १०८ प्रश्नाप्रश्न हैं। अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा आदर्शप्रश्न। इनके अतिरिक्त अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन हैं। नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ हुए मुनियों के दिव्य संवाद भी हैं। परिमित वाचनाऍं हैं। संख्यात | |||||||||
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Hindi | 149 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुयं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाइं, संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ। से त्तं दुहविवागा।
से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, Translated Sutra: भगवन् ! विपाकश्रुत किस प्रकार का है ? विपाकश्रुत में शुभाशुभ कर्मों के फल – विपाक हैं। उस विपाकश्रुत में दस दुःखविपाक और दस सुखविपाक अध्ययन हैं। दुःखविपाक में दुःखरूप फल भोगनेवालों के नगर, उद्यान, वनखंड चैत्य, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इह – परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल | |||||||||
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नन्दीसूत्र |
Hindi | 154 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए।
से किं तं अनुओगे?
अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य।
से किं तं मूलपढमानुओगे?
मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं Translated Sutra: भगवन् ! अनुयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है, मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवंतों के पूर्व भवों, देवलोक में जाना, आयुष्य, च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति, शिष्य | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 157 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति।
इच्चेइयं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्संति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्नकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कंतारं वीईवयंति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार कंतारं वीईवइस्संति।
इच्चेइयं Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में अनन्त जीवों ने विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार में भ्रमण किया। इसी प्रकार वर्तमानकाल में परिमित जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार में भ्रमण कर रहे हैं – इसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आगामी काल में अनन्त जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Hindi | 164 | Sutra | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अणुन्ना?
अणुन्ना छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दव्वाणुण्णा खेत्ताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा।
से किं तं नामाणुण्णा?
नामाणुण्णा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा अणुण्ण त्ति णामं कीरइ।
से त्तं नामाणुण्णा।
से किं तं ठवणाणुण्णा?
ठवणाणुण्णा–जं णं कट्ठकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्खे वा वराडए वा एगे वा अणेगे वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा अणुण्ण त्ति ठवणा ठविज्जति। से त्तं ठवणाणुण्णा।
नाम-ठवणाणं को पतिविसेसो?
नामं आवकहियं, Translated Sutra: वह अनुज्ञा क्या है ? अनुज्ञा छह प्रकार से है – नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। वह नाम अनुज्ञा क्या है ? जिसका जीव या अजीव, जीवो या अजीवो, तदुभय या तदुभयो अनुज्ञा ऐसा नाम हो वह नाम अनुज्ञा। वह स्थापना अनुज्ञा क्या है ? जो भी कोई काष्ठ, पत्थर, लेप, चित्र, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम ऐसे एक या अनेक अक्ष आदि | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Hindi | 165 | Gatha | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किमणुण्ण? कस्स णुण्णा? केवतिकालं पवत्तियाणुण्णा? ।
आदिकर पुरिमताले, पवत्तिया उसभसेणस्स ॥ Translated Sutra: ऋषभसेन नामक आदिनाथ प्रभु के शिष्यने अनुज्ञा विषयक कथन किया उसका अनुज्ञा, उरीमणी, नमणी इत्यादि बीस नाम है। सूत्र – २–४ | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Hindi | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: ज्ञान के पाँच भेद हैं – आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल। उसमें चार ज्ञानों की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है। श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है। यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के हैं या अंगबाह्य के ? दोनों के उद्देश आदि होते हैं। जो | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 70 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखेज्जम्मि उ काले, दीवसमुद्दा वि हुंति संखेज्जा ।
कालम्मि असंखेज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 71 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढीए ।
वुड्ढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खेत्तकाला उ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭ |