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Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३४ परिचारणा

Hindi 593 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा देवा अपरियारगा, मनपरियारगा संखेज्जगुणा, सद्दपरियारगा असंखेज्जगुणा, रूवपरियारगा असंखेज्जगुणा, फासपरियारगा असंखेज्जगुणा, कायपरियारगा असंखेज्जगुणा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन कायपरिचारक यावत्‌ मनःपरिचारक और अपरिचारक देवों में से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम अपरिचारक देव हैं, उनसे संख्यातगुणे मनःपरिचारक देव हैं, उनसे असंख्यातगुणे शब्दपरिचारकदेव हैं, उनसे रूपपारिचारक देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे स्पर्शपरिचारक देव असंख्यातगुणे हैं और उनसे
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३५ वेदना

Hindi 596 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–सीता उसिणा सीतोसिणा। नेरइया णं भंते! किं सीतं वेदनं वेदेंति? उसिणं वेदनं वेदेंति? सीतोसिणं वेदनं वेदेंति? गोयमा! सियं पि वेदनं वेदेंति, उसिणं पि वेदनं वेदेंति, नो सीतोसिणं वेदनं वेदेंति। असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! सीयं पि वेदनं वेदेंति, उसिणं पि वेदनं वेदेंति, सीतोसिणं पि वेदनं वेदेंति। एवं जाव वेमानिया। कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। नेरइया णं भंते! किं दव्वओ वेदनं वेदेंति जाव किं भावओ वेदनं वेदेंति? गोयमा! दव्वओ वि वेदनं वेदेंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वेदना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की – शीतवेदना, उष्णवेदना और शीतोष्णवेदना। भगवन्‌ ! नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं, उष्णवेदना वेदते हैं, या शीतोष्णवेदना वेदते हैं ? गौतम ! शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी। कोई – कोई प्रत्येक (नरक – ) पृथ्वी में वेदनाओं के विषय में कहते हैं – रत्नप्रभापृथ्वी
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पद-३५ वेदना

Hindi 597 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–अब्भोवगमिया य ओवक्कमिया य नेरइया णं भंते! किं अब्भोवगमियं वेदनं वेदेंति? ओवक्कमियं वेदनं वेदेंति? गोयमा! नो अब्भोवगमियं वेदनं वेदेंति, ओवक्कमियं वेदनं वेदेंति। एवं जाव चउरिंदिया। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मनूसा य दुविहं पि वेदनं वेदेंति। वाणमंतर-जोइसिय-वेमानिया जहा नेरइया।

Translated Sutra: वेदना कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की – आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी। नैरयिक आभ्युप – गमिकी वेदना वेदते हैं या औपक्रमिकी ? गौतम ! वे औपक्रमिकी वेदना ही वेदते हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक कहना। पंचेन्द्रियतिर्यंच और मनुष्य दोनों प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३५ वेदना

Hindi 598 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–निदा य अनिदा य। नेरइया णं भंते! किं निदायं वेदनं वेदेंति? अनिदायं वेदनं वेदेंति? गोयमा! निदायं पि वेदनं वेदेंति अनिदायं पि वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइया निदायं पि वेदनं वेदेंति अनिदायं पि वेदनं वेदेंति? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सण्णिभूया य असण्णिभूया य। तत्थ णं जेते सण्णिभूया ते णं निदायं वेदनं वेदेंति, तत्थ णं जेते असण्णिभूया ते णं अनिदायं वेदनं वेदेंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–नेरइया निदायं पि वेदनं वेदेंति, अनिदायं पि वेदनं वेदेंति। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइयाणं

Translated Sutra: वेदना कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की – निदा और अनिदा। नारक निदावेदना वेदते हैं, य अनिदावेदना ? गौतम ! नारक दोनों वेदना वेदता है। क्योंकि – गौतम ! नारक दो प्रकार के हैं – संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत। जो संज्ञीभूत होते हैं, वे निदावेदना वेदते हैं और जो असंज्ञीभूत होते हैं, वे अनिदावेदना वेदते हैं। इसी प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 600 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए कसाय-समुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयासमुग्घाए आहारगसमुग्घाए केवलिसमुग्घाए। वेदनासमुग्घाए णं भंते! कतिसमइए पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पन्नत्ते। एवं जाव आहारगसमुग्घाए। केवलिसमुग्घाए णं भंते! कतिसमइए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते। नेरइयाणं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए। असुरकुमाराणं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! पंच

Translated Sutra: भगवन्‌ ! समुद्‌घात कितने हैं ? गौतम ! सात – वेदनासमुद्‌घात, कषायसमुद्‌घात, मारणान्तिकसमुद्‌घात, वैक्रियसमुद्‌घात, तैजससमुद्‌घात, आहारकसमुद्‌घात और केवलिसमुद्‌घात। भगवन्‌ ! वेदनासमुद्‌घात कितने समय का है ? गौतम ! असंख्यात समयोंवाले अन्तमुहूर्त्त का। इसी प्रकार आहारकसमुद्‌घात पर्यन्त कहना। केवलिसमुद्‌घात
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 601 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं असुरकुमारस्स वि, निरंतरं जाव वेमानियस्स। एवं जाव तेयगसमुग्घाए। एवं एते पंच चउवीसा दंडगा। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिन्नि। केवतिया पुरेक्खडा? कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं चत्तारि। एवं निरंतरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक – एक नारक के कितने वेदनासमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? हे गौतम ! अनन्त। भगवन्‌ भविष्य में कितने होने वाले हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमार से वैमानिक तक जानना। इसी प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 602 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अनंता। एवं जाव वेमानियाणं। एवं जाव तेयगसमुग्घाए। एवं एते वि पंच चउवीसा दंडगा। नेरइयाणं भंते! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! असंखेज्जा। एवं जाव वेमानियाणं, नवरं–वणप्फइकाइयाणं मनूसाण य इमं नाणत्तं– वणप्फइकाइयाणं भंते! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। मनूसाणं भंते! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। एवं पुरेक्खडा वि। नेरइयाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीता? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा?

Translated Sutra: नारकों के कितने वेदनासमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी वेदनासमुद्‌घात कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना। इसी प्रकार तैजससमुद्‌घात पर्यन्त समझना। इस प्रकार इन पाँचों समुद्‌घातों को चौबीसों दण्डकों में बहुवचन के रूप में समझ लेना। नारकों के कितने आहारकसमुद्‌घात अतीत हुए
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 603 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं असुरकुमारत्ते जाव वेमानियत्ते। एगमेगस्स णं भंते! असुरकुमारस्स नेरइयत्ते केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि तस्स सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता। एगमेगस्स णं भंते! असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा!

Translated Sutra: एक – एक नैरयिक के नारकत्व में कितने वेदनासमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त। कितने भावी होते हैं ? गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं। इसी प्रकार एक – एक नारक के असुरकुमारत्व यावत्‌ वैमानिकत्व में समझना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 604 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरे-क्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि एगुत्तरिया जाव अनंता। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता। एवं जाव नेरइयस्स थणियकुमारत्ते। पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए नेयव्वं, एवं जाव मनूसत्ते। वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते। जोतिसियत्ते अतीता अनंता, पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि सिय असंखेज्जा सिय अनंता।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक – एक नारक के नारकपर्याय में कितने कषायसमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी कितने होते हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके एक से लेकर यावत्‌ अनन्त हैं। एक – एक नारक के असुरकुमारपर्याय में कितने कषायसमुद्‌घात अतीत होते हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी कितने होते हैं ?
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 605 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मारणंतियसमुग्घाओ सट्ठाणे वि परट्ठाणे वि एगुत्तरियाए नेयव्वो जाव वेमानियस्स वेमानियत्ते। एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा। वेउव्वियसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्घाओ तहा निरवसेसो भाणियव्वो, नवरं–जस्स नत्थि तस्स न वुच्चति। एत्थ वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा। तेयगसमुग्घाओ जहा मारणंतियसमुग्घाओ, नवरं–जस्स अत्थि। एवं एते वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। एवं जाव वेमानियत्ते, नवरं–मनूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं

Translated Sutra: मारणान्तिकसमुद्‌घात स्वस्थान में भी और परस्थान में भी पूर्वोक्त एकोत्तरिका से समझ लेना, यावत्‌ वैमानिक का वैमानिकपर्याय में कहना। इसी प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में कहना। वैक्रियस – मुद्‌घात की समग्र वक्तव्यता कषायसमुद्‌घात के समान कहना। विशेष यह कि जिसके (वैक्रियसमुद्‌घात) नहीं होता, उसके
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 606 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! नेरइयत्ते केवतिया वेदनासमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अनंता। एवं जाव वेमानियत्ते। एवं सव्वजीवाणं भाणियव्वं जाव वेमानियाणं वेमानियत्ते। एवं जाव तेयगसमुग्घाओ, नवरं–उवउज्जिऊण नेयव्वं जस्सत्थि वेउव्वियतेयगा। नेरइयाणं भंते! नेरइयत्ते केवतिया आहारसमुग्घाता अतीता? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। एवं जाव वेमानियत्ते, नवरं–मनूसत्ते अतीता असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा। एवं जाव वेमानियाणं, नवरं–वणस्सइका-इयाणं मनूसत्ते अतीता अनंता, पुरेक्खडा अनंता। मनूसाणं मनूसत्ते अतीता सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (बहुत – से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने वेदनासमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक जानना। इसी प्रकार सर्व जीवों के यावत्‌ वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में समझना। इसी प्रकार तैजससमुद्‌घात पर्यन्त कहना। विशेष यह कि जिसके वैक्रिय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 607 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं वेयणासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं वेउव्विय-समुग्घाएणं तेयगसमुग्घाएणं आहारगसमुग्घाएणं केवलिसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आहारसमुग्घाएणं समोहया, केवलिसमुग्घाएणं समोहया संखे-ज्जगुणा, तेयगसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया अनंतगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेदना-समुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेज्जगुणा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिसमुद्‌घात से समवहत एवं असमवहत जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम आहारकस – मुद्‌घात से समवहत जीव हैं, (उनसे) केवलिसमुद्‌घात से समवहत जीव संख्यातगुणा है, उनसे तैजससमुद्‌घात से समवहत जीव असंख्यातगुणा है, उनसे वैक्रियसमुद्‌घात
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 608 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो मारणंतियसमुग्घाएणं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा नेरइया मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेदनासमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा। एतेसि णं भंते! असुरकुमाराणं वेदनासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं वेउव्वियसमुग्घाएणं तेयगसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन वेदना, कषाय, मारणान्तिक एवं वैक्रियसमुद्‌घात से समवहत और असमवहत नैरयिकों में अल्पबहुत्व – गौतम ! सबसे कम मारणान्तिकसमुद्‌घात से समवहत नैरयिक हैं, उनसे वैक्रियसमुद्‌घातवाले असंख्यात गुणा हैं, उनसे कषायसमुद्‌घातवाले नैरयिक संख्यातगुणा हैं, उनसे वेदनासमुद्‌घात से समवहत नारक संख्यातगुणा हैं,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 609 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसायसमुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसायसमुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहसमुग्घाए मानसमुग्घाए मायासमुग्घाए लोभसमुग्घाए। नेरइयाणं भंते! कति कसायसमुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसायसमुग्घाया पन्नत्ता। एवं जाव वेमानियाणं। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवइया कोहसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव वेमानियस्स। एवं जाव लोभसमुग्घाए। एते चत्तारि दंडगा। नेरइयाणं भंते! केवतिया कोहसमुग्घाया अतीता? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कषायसमुद्‌घात कितने हैं ? गौतम ! चार – क्रोधसमुद्‌घात, मानससमुद्‌घात, मायासमुद्‌घात और लोभसमुद्‌घात। नारकों के कितने कषायसमुद्‌घात हैं ? गौतम ! चारों हैं। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना। एक – एक नारक के कितने क्रोधसमुद्‌घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी कितने होते हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं, किसी
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 610 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं कोहसमुग्घाएणं मानसमुग्घाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्घाएण य समोहयाणं अकसायसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसायसमुग्घाएणं समोहया, मानसमुग्घा-एणं समोहया अनंतगुणा, कोहसमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखेज्जगुणा। एतेसि णं भंते! नेरइयाणं कोहसमुग्घाएणं मानसमुग्घाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्रोध, मान, माया और लोभसमुद्‌घात से तथा अकषायसमुद्‌घात से समवहत और असमवहत जीवों से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम अकषायसमुद्‌घात से समवहत जीव हैं, उनसे मानकषायवाले अनन्तगुणे हैं, उनसे क्रोधसमुद्‌घात वाले विशेषाधिक हैं, उनसे मायासमु – द्‌घात वाले विशेषाधिक हैं, उनसे लोभसमुद्‌घातवाले
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 611 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! छ छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयगसमुग्घाए आहारग-समुग्घाए। नेरइयाणं भंते! कति छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए। असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! पंच छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयगसमुग्घाए। एगिंदिय-विगलिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! तिन्नि छाउमत्थिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! छाद्मस्थिकसमुद्‌घात कितने हैं ? गौतम ! छह – वेदनासमुद्‌घात, कषायसमुद्‌घात, मारणान्तिक – समुद्‌घात, वैक्रियसमुद्‌घात, तैजससमुद्‌घात और आहारकसमुद्‌घात। नारकों में कितने छाद्मस्थिकसमुद्‌घात हैं ? गौतम ! चार – वेदनासमुद्‌घात, कषायसमुद्‌घात, मारणान्तिकसमुद्‌घात और वैक्रियसमुद्‌घात। असुरकुमारों
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 612 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेदनासमुग्घाए समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं नियमा छद्दिसिं एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे। से णं भंते! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे? केवइकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण वा एवइकालस्स अफुण्णे एवइकालस्स फुडे। ते णं भंते! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुभति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तस्स। ते णं भंते! पोग्गला निच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयानं जीवाइं सत्ताइं अभिहणंति वत्तेंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वेदनासमुद्‌घात से समवहत हुआ जीव समवहत होकर जिन पुद्‌गलों को निकालता है, भंते ! उन पुद्‌गलों से कितना क्षेत्र परिपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और स्थूलता की अपेक्षा शरीरप्रमाण क्षेत्र को नियम से छहों दिशाओं में व्याप्त करता है। इतना क्षेत्र आपूर्ण और इतना ही क्षेत्र स्पृष्ट होता है। वह
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 613 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं विदिसिं वा एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे। से णं भंते! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे? केवतिकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे। सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि। एवं नेरइए वि, नवरं–आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मारणान्तिकसमुद्‌घात के द्वारा समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्‌गलों को आत्म – प्रदेशों से पृथक्‌ करता है, उन पुद्‌गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाण क्षेत्र तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग तथा उत्कृष्ट असंख्यात योजन
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 614 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठंति? हंता गोयमा! अनगारस्स भावियप्पणो केवलिसमुग्घाएणं समो-हयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठंति। छउमत्थे णं भंते! मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेण वा फासं जाणति पासति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–छउमत्थे णं मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वि वण्णेणं वण्णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! केवलिसमुद्‌घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा – पुद्‌गल हैं, वे पुद्‌गल सूक्ष्म हैं? वे समस्त लोक को स्पर्श करके रहते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा – पुद्‌गलों के चक्षु – इन्द्रिय से वर्ण को, घ्राणेन्द्रिय से गन्ध को, रसनेन्द्रिय से रस को, अथवा स्पर्शेन्द्रिय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 615 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कम्हा णं भंते! केवली समुग्घायं गच्छति? गोयमा! केवलिस्स चत्तारि कम्मंसा अक्खीणा अवेदिया अनिज्जिण्णा भवंति, तं जहा–वेयणिज्जे आउए णामे गोए। सव्वबहुप्पएसे से वेदणिज्जे कम्मे भवति, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवति। विसमं समं करेति, बंधणेहिं ठितीहि य । विसमसमीकरणयाए, बंधणेहिं ठितीहि य ॥ एवं खलु केवली समोहण्णति, एवं खलु समुग्घायं गच्छति। सव्वे वि णं भंते! केवली समोहण्णंति? सव्वे वि णं भंते! केवली समुग्घायं गच्छंति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! किस प्रयोजन से केवली समुद्‌घात करते हैं ? गौतम ! केवली के चार कर्मांश क्षीण नहीं हुए हैं, वेदन नहीं किए हैं, निर्जरा प्राप्त नहीं हुए हैं, वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र। उनका वेदनीयकर्म सबसे अधिक प्रदेशी होता है। आयुकर्म सबसे कमप्रदेशी होता है। वे बन्धनों और स्थितियों से विषम को सम करते हैं। बन्धनों और स्थितियों
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पद-३६ समुद्घात

Hindi 618 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिसमइए णं भंते! आउज्जीकरणे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आउज्जी-करणे पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आवर्जीकरण कितने समय का है ? गौतम ! असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त्त का है।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 619 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिसमइए णं भंते! केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेति, बिइए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेइ, पंचमे समए लोगं पडिसाहरति, छट्ठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता ततो पच्छा सरीरत्थे भवति। से णं भंते! तहासमुग्घायगते किं मनजोगं जुंजति? वइजोगं जुंजति? कायजोगं जुंजति? गोयमा! नो मनजोगं जुंजइ, नो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजति। कायजोगण्णं भंते! जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजति? ओरालियमीसासरीर-कायजोगं जुंजति? किं वेउव्वियसरीरकायजोगं जुंजति? वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! केवलिसमुद्‌घात कितने समय का है ? गौतम ! आठ समय का, – प्रथम समय में दण्ड करता है, द्वितीय समय में कपाट, तृतीय समय में मन्थान, चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, पंचम समय में लोक – पूरण को सिकोड़ता है, छठे समय में मन्थान को, सातवें समय में कपाट को और आठवें समय में दण्ड को सिकोड़ता है और दण्ड का संकोच करते ही शरीरस्थ
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 620 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासमुग्घायगते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं तओ पडिनियत्तति, पडिनियत्तित्ता ततो पच्छा मनजोगं पि जुंजति वइजोगं पि जुंजति कायजोगं पि जुंजति। मनजोगण्णं जुंजमाणे किं सच्चमनजोगं जुंजति? मोसमनजोगं जुंजति? सच्चामोसमनजोगं जुंजति? असच्चामोसमनजोगं जुंजति? गोयमा! सच्चमनजोगं जुंजति, नो मोसमनजोगं जुंजति नो सच्चामोसमनजोगं जुंजति, असच्चामोसमनजोगं पि जुंजइ। वइजोगं जुंजमाणे किं सच्चवइजोगं जुंजति? मोसवइजोगं जुंजति? सच्चामोसवइजोगं जुंजति? असच्चामोसवइजोगं जुंजति? गोयमा! सच्चवइजोगं जुंजति, नो मोसवइजोगं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप समुद्‌घात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं, क्या वह सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। पहले वे उससे प्रतिनिवृत्त होते हैं। तत्प – श्चात्‌ वे मनोयोग, वचनयोग और काययोग का भी उपयोग करते हैं। भगवन्‌ ! मनोयोग का उपयोग करता हुआ केवलिसमुद्‌घात
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 621 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासजोगी सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्ज-गुणपरिहीणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं दोच्चं वइजोगं निरुंभति, तओ अनंतरं च णं सुहुमस्स पनगजीवस्स अपज्ज-त्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं निरुंभति। से णं एतेणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभति, निरुंभित्ता काय-जोगं निरुंभति, निरुंभित्ता जोगनिरोहं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत्‌ सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते। वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 261 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा। एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मनुस्साणं मनुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य अट्ठगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवाओ मनुस्सीओ, मनुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्ज-गुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ નૈરયિક, તિર્યંચયોનિક, મનુષ્ય, દેવ અને સિદ્ધોમાં પાંચ ગતિના સંક્ષેપથી કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડા મનુષ્યો છે, નૈરયિકો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, દેવો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, સિદ્ધો તેનાથી અનંત – ગણા, તેનાથી તિર્યંચો અનંતગણા છે. ભગવન્‌ ! આ નૈરયિક, તિર્યંચયોનિક, તિર્યંચયોનિક સ્ત્રી,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 262 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अणिंदियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, अनिंदिया अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा, सइंदिया विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अपज्जत्तगाणं कतरे कतरे-हिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया अप्पज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ ઇન્દ્રિયવાળા, એકેન્દ્રિય, બેઇન્દ્રિય, તેઇન્દ્રિય, ચઉરિન્દ્રિય, પંચેન્દ્રિય, અનિન્દ્રિય જીવોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડાં પંચેન્દ્રિયો છે, ચઉરિન્દ્રિય વિશેષાધિક, તેઇન્દ્રિયો વિશેષાધિક, બેઇન્દ્રિયો વિશેષાધિક, અનિન્દ્રિયો અનંતગણા, એકેન્દ્રિયો અનંતગણા, સઇન્દ્રિય
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 263 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सति-काइयाणं अकाइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया अनंतगुणा, वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सकाइया विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सतिकाइयाणं तसकाइयाण य अपज्जत्तगाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया अपज्जत्तगा, तेउकाइया अपज्जत्तगा

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ સકાયિક, પૃથ્વીકાયિક, અપ્‌કાયિક, તેઉકાયિક, વાયુકાયિક, વનસ્પતિકાયિક, ત્રસકાયિક, અકાયિકોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે? ગૌતમ! સૌથી થોડાં ત્રસકાયિક, તેનાથી તેઉકાયિક અસંખ્યાતગણા, પૃથ્વીકાયિક તેનાથી વિશેષાધિક, અપ્‌કાયિક તેનાથી વિશેષાધિક, વાયુકાયિક તેનાથી વિશેષાધિક, અકાયિક તેનાથી અનંતગણા,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 264 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमणिओयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम-आउकाइया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा असंखेज्जगुणा, सुहुम-वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! सुहुमअपज्जत्तगाणं सुहुमपुढविकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमआउकाइया-पज्जत्तयाणं सुहुमतेउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवणस्सइकाइयापज्ज-त्तयाणं सुहुमनिगोदापज्जत्तयाणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! સૂક્ષ્મો, સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિકો, સૂક્ષ્મ અપ્‌કાયિકો, સૂક્ષ્મ તેઉકાયિકો, સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકો, સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિકો, સૂક્ષ્મ નિગોદોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડાં સૂક્ષ્મ તેઉકાયિકો છે, સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક – અપ્‌કાયિક – વાયુકાયિક ક્રમશઃ વિશેષાધિક છે. સૂક્ષ્મ નિગોદો
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 265 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादर-वाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतस-काइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरा तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया असंखेज्ज-गुणा, बादरा निगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अनंतगुणा, बादरा विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! बादरअपज्जत्तगाणं बादरपुढविकाइयअपज्जत्तगाणं बादरआउकाइय-अपज्जत्तगाणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ બાદરો, બાદર પૃથ્વીકાયિક, બાદર અપ્‌કાયિક, બાદર તેઉકાયિક, બાદર વાયુકાયિક, બાદર વનસ્પતિકાયિક, પ્રત્યેક શરીર બાદર વનસ્પતિકાયિક, બાદર નિગોદ, બાદર ત્રસકાયિકોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડાં બાદર ત્રસકાયિક, બાદર તેઉકાયિક અસંખ્યાતગણા, પ્રત્યેક શરીર બાદર વનસ્પતિકાયિક અસંખ્યાતગણા,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Gujarati 378 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! मनुस्से महिसे आसे हत्थो सीहे वग्घे वगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ? हंता गोयमा! मनुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ। अह भंते! मनुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ? हंता गोयमा! मनुस्सा जाव चिल्ललगा सव्वा सा बहुवऊ। अह भंते! मनुस्सी महिसी बलवा हत्थिणिया सीही वग्घी वगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरी सियाली विराली सुणिया कोलसुणिया कोक्कंतिया ससिया चित्तिया चिल्ललिया जा यावन्ना तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवऊ? हंता गोयमा! मनुस्सी जाव

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! મનુષ્ય, પાડો, અશ્વ, હાથી, સિંહ, વાઘ, વરુ, દીપડો, રીંછ, તરક્ષ, ગડો, શિયાળ, બિલાડો, કૂતરો, શિકારી કૂતરો, લોંકડી, સસલો, ચિત્તો, ચિલ્લલક, તે સિવાયના બીજા તેવા પ્રકારના તે બધાં એકવચન છે ? ગૌતમ ! તેઓ એકવચન છે. ભગવન્‌ ! મનુષ્યો યાવત્‌ ચિલ્લલકો આદિ બધાં બહુવચન છે ? હા, ગૌતમ ! છે. ભગવન્‌ ! માનુષી, ભેંસ, ઘોડી, હાથણી, સિંહણ, વાઘણ,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Gujarati 379 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भासा णं भंते! किमादीया किंपहवा किंसंठिया किंपज्जवसिया? गोयमा! भासा णं जीवादीया सरीरपहवा वज्जसंठिया लोगंतपज्जवसिया पन्नत्ता।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૭૯. ભગવન્‌ ! ભાષાની આદિ શું છે ? શાથી ઉત્પન્ન થાય છે? આકાર કેવો છે? અંત ક્યાં થાય છે ? ગૌતમ ! ભાષાની આદિ જીવ છે, શરીરથી ઉપજે છે, વજ્ર આકારે છે, લોકાંતે તેનો અંત થાય છે. સૂત્ર– ૩૮૦. ભાષા ક્યાંથી ઉપજે છે ? કેટલા સમયે ભાષા બોલે છે ? ભાષા કેટલા પ્રકારે છે ? કેટલી ભાષા બોલવા યોગ્ય છે ? સૂત્ર– ૩૮૧. શરીરથી ભાષા ઉપજે છે, બે
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 162 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया य। से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्ख-जोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अही अयगरा आसालिया महोरगा। से किं तं अही? अही दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वीकरा य मउलिणो य। से किं तं दव्वीकरा? दव्वीकरा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–आसीविसा दिट्ठीविसा उग्गविसा भोगविसा तयाविसा लालाविसा उस्सासविसा निस्सासविसा कण्हसप्पा सेदसप्पा काओदरा दब्भपुप्फा

Translated Sutra: પરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક કેટલા ભેદે છે ? તે બે ભેદે કહેલ છે – ઉરપરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, ભુજપરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક. તે ઉરપરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક કેટલા ભેદે છે ? તે ચાર ભેદે છે – અહી, અજગર, આસાલિક, મહોરગ. તે અહીં કેટલા ભેદે છે ? બે ભેદે છે – દર્વીકર,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 166 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–समुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य। से किं तं सम्मुच्छिममनुस्सा? सम्मुच्छिममनुस्सा एगागारा पन्नत्ता। कहि णं भंते! सम्मुच्छिममनुस्सा सम्मुच्छंति? गोयमा! अंतोमनुस्सखेत्ते पणतालीसाए जोयणसयसहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीव-समुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पन्नाए अंतरदीवएसु गब्भवक्कंतियमनुस्साणं चेव उच्चारेसु वा पासवणेसु वा खेलेसु वा सिंघाणेसु वा वंतेसु वा पित्तेसु वा पूएसु वा सोणिएसु वा सुक्केसु वा सुक्कपोग्गलपरिसाडेसु वा विगतजीव-कलेवरेसु वा थीपुरिससंजोएसु वा गामनिद्धमणेसु वा?

Translated Sutra: [૧] તે મનુષ્યો કેટલા ભેદે છે ? બે ભેદે – સંમૂર્ચ્છિમ અને ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક. તે સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો કેટલા ભેદે છે ? ભગવન્‌ ! તે સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો ક્યાં સંમૂર્ચ્છે છે ? ગૌતમ ! પીસ્તાળીશ લાખ યોજન પ્રમાણ મનુષ્ય ક્ષેત્રમાં અઢી દ્વીપ અને સમુદ્રોમાં પંદર કર્મભૂમિમાં, ત્રીશ અકર્મભૂમિમાં તથા છપ્પન અંતર્દ્વીપોમાં
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 192 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा– रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमप्पभाए तमतमप्पभाए इसीपब्भाराए। अहोलोए–पायालेसु भवनेसु भवनपत्थडेसु निरएसु निरयावलियासु निरयपत्थडेसु। उड्ढलोए–कप्पेसु विमानेसु विमानावलियासु विमानपत्थडेसु। तिरियलोए–टंकेसु कूडेसु सेलेसु सिहरीसु पब्भारेसु विजएसु वक्खारेसु वासेसु वासहरपव्वएसु वेलासु वेइयासु दारेसु तोरणेसु दीवेसु समुद्देसु। एत्थ णं बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइ-भागे, समुग्घाएणं लोयस्स

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! બાદર પર્યાપ્તા પૃથ્વીકાયોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? હે ગૌતમ ! સ્વસ્થાનથી આઠે પૃથ્વીમાં કહ્યા છે. તે આ – રત્નપ્રભા, શર્કરાપ્રભા, વાલુકાપ્રભા, પંકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, તમઃપ્રભા, તમસ્તમઃપ્રભા, ઇષત્‌પ્રાગ્ભારા. અધોલોકમાં પાતાળ કળશોમાં, ભવનો, ભવનપ્રસ્તટો, નરકો, નરકાવલિકા, નરકપ્રસ્તટોમાં હોય છે. ઉર્ધ્વલોકમાં
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 193 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! सट्ठाणेणं सत्तसु घनवाएसु सत्तसु घनवायवलएसु सत्तसु तनुवाएसु सत्तसु तनुवायवलएसु। अहोलोए–पायालेसु भवनेसु भवनपत्थडेसु भवनछिंद्देसु भवनणिक्खुडेसु निरएसु निरयावलियासु निरयपत्थडेसु निरयछिद्देसु निरयणिक्खुडेसु। उड्ढलोए–कप्पेसु विमानेसु वियाणावलियासु विमानपत्थडेसु विमानछिद्देसु विमानणिक्खुडेसु। तिरियलोए–पाईण-पडीण-दाहिण-उदीण सव्वेसु चेव लोगागासछिद्देसु लोय-निक्खुड्डेसु य। एत्थ णं बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखे-ज्जेसु भागेसु, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जेसु

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા બાદર વાયુકાયિકોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ગૌતમ ! સ્વસ્થાનની અપેક્ષાએ સાત ઘનવાતમાં, સાત ઘનવાત વલયોમાં, સાત તનુવાતમાં, સાત તનુવાત વલયમાં, અધોલોકમાં – પાતાળ, ભવન, ભવનપ્રસ્તટ, ભવનછિદ્ર, ભવનનિષ્કુટ, નરક, નરકાવલિ, નરકપ્રસ્તટ, નરકછિદ્ર, નરકનિષ્કૂટોમાં, ઉર્ધ્વલોકમાં કલ્પ, વિમાન, વિમાનવલિકા, વિમાન
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 194 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! बेइंदियाणं पज्जत्तगापज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढलोए तदेक्कदेसभागे। अहोलोए तदेक्कदेसभागे। तिरियलोए–अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु। एत्थ णं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। कहि णं भंते! बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता?

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા બેઇન્દ્રિયોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ગૌતમ ! ઉર્ધ્વલોકમાં તેના એક ભાગમાં, અધોલોકના એક ભાગમાં, તિર્છાલોકમાં – કૂવા, તળાવ, નદી, દ્રહ, વાવ, પુષ્કરિણી, દીર્ઘિકા, ગુંજાલિકા, સરોવર, સરપંક્તિ, સરસર – પંક્તિ, બિલો, બિલ પંક્તિ, ઝરણા, પ્રવાહ, છિલ્લર, પલ્વલ, વપ્ર, દ્વીપ, સમુદ્ર અને બધા જળાશય, જળ સ્થાનોમાં
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 195 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! नेरइया परिवसंति? गोयमा! सट्ठाणेणं सत्तसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमप्पभाए तमतमप्पभाए, एत्थ णं नेरइयाणं चउरासीति निरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं नरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिया निच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगनिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरया असुभा नरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા નૈરયિકના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌ ! નૈરયિકો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! સ્વસ્થાન વડે સાતે પૃથ્વીમાં – રત્નપ્રભા, શર્કરાપ્રભા, વાલુકાપ્રભા, પંકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, તમઃપ્રભા, તમસ્તમપ્રભા. અહીં નૈરયિકોના ૮૪ – લાખ નરકાવાસો કહ્યા છે. તે નરકો અંદરથી ગોળ, બહારથી ચોરસ, નીચે અસ્ત્રાની આકૃતિવાળા
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 196 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइया परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसत-सहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभापुढविनेरइयाणं तीसं निरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता निच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसप्पभा मेद-वसापूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगनिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૬. ભગવન્‌ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તાના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌! રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૧,૮૦,૦૦૦ યોજન બાહલ્યના ઉપર – નીચેના એક – એક હજાર યોજન છોડીને વચ્ચેના ૧,૭૮,૦૦૦ યોજન પ્રમાણ ભાગમાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકોનો ૩૦ લાખ નરકાવાસો કહ્યા
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 201 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए, अहोलोए तदेक्कदेसभाए, तिरियलोए– अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु बावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु। एत्थ णं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइ भागे।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ઉર્ધ્વલોકના એક દેશ ભાગમાં, અધોલોકના એક દેશ ભાગમાં, તીર્છાલોકમાં કૂવા, તળાવ, નદી, દ્રહ, વાવ, પુષ્કરિણી, દીર્ઘિકા, ગુંજાલિકા, સર, સરપંક્તિ, સરસરપંક્તિ, બિલ, બિલપંક્તિ, ઉજ્‌ર્ઝર, નિજ્‌ર્ઝર, ચિલ્લલ, પલ્લલ, વપ્ર, દ્વીપ, સમુદ્ર, સર્વે
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 202 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मनुस्साणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! अंतोमनुस्सखेत्ते पणतालीसाए जोयणसत-सहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पनाए अंतरदीवेसु, एत्थ णं मनुस्साणं पज्जत्ता-पज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइ भागे, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા મનુષ્યોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ૪૫ – લાખ યોજન મનુષ્યક્ષેત્રમાં અઢી દ્વીપ – સમુદ્રોમાં, ૧૫ – કર્મભૂમિમાં, ૩૦ – અકર્મભૂમિમાં, ૫૬ – અંતર્દ્વીપોમાં પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા મનુષ્યોના સ્થાનો કહ્યા છે. ઉપપાત અને સ્વસ્થાનથી લોકા અસંખ્યાતમાં ભાગમાં છે. સમુદ્‌ઘાત સર્વલોકમાં
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 203 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! भवनवासी देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं भवनवासीणं देवाणं सत भवनकोडीओ बावत्तरिं च भवनावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भवना बाहिं वट्टा अंतो समचउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किन्नंतर- विउलगंभीरखातप्परिहा पाणारट्टालय-कवाड-तोरग-पडिदुवारदेसभागा जंत-सयग्घि-मुसल-मुसुंढि-परिवारिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयाल-कोट्ठगरइया

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૩. ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા ભવનવાસી દેવોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ભગવન્‌! ભવનવાસી દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીની ૧,૮૦,૦૦૦ યોજનની જાડાઈના ઉપર – નીચેના એક – એક હજાર છોડીને વચ્ચેના ૧,૭૮,૦૦૦ યોજન ભાગમાં ભવનવાસી દેવોના સાતક્રોડ બોંતેર લાખ ભવનો છે. તે ભવનો બહારથી ગોળ, અંદરથી ચોરસ, નીચે
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 217 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वाणमंतरा देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वि एगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किन्नंतरविउलगंभीरखायपरिहा पागारट्टालय कबाड तोरण पडिदुवारदेसभागा जंत सयग्घि मुसल मुसुंढिपरिवारिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोट्ठगरइया

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! વ્યંતરોમાં પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા દેવોના સ્થાનો ક્યાં કહેલા છે ? ભગવન્‌ ! વ્યંતર દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૧૦૦૦ યોજન પ્રમાણ જાડા રત્નમય કાંડના ઉપર – નીચેના ૧૦૦ યોજન છોડીને વચ્ચેના ૮૦૦ યોજનમાં અહીં વ્યંતર દેવોના તિર્છા ભૂમિ સંબંધી અસંખ્યાતા લાખો નગરો છે એમ કહેલ છે. તે ભૌમેય નગરો
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 218 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! पिसाया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणाययस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु एत्थ णं पिसायाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जानगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भोमेज्जानगरा बाहिं वट्टा जहा ओहिओ भवनवण्णओ तहा भाणितव्वो जाव पडिरूवा। एत्थ णं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे पिसाया देवा परिवसंति–महिड्ढिया जहा ओहिया जाव

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૧૮. ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા પિશાચ દેવોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌ ! પિશાચ દેવો ક્યાં રહે છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના હજાર યોજન જાડા રત્નમય કાંડના ઉપર – નીચેના સો – સો યોજન છોડીને વચ્ચેના ૮૦૦ યોજનમાં પિશાચ દેવોના તીર્છા અસંખ્યાત લાખ ભૌમેય નગરો છે. એમ કહેલ છે. તે ભૌમેયનગરો બહારના ભાગે ગોળ છે
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 225 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जोइसियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! जोइसिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तानउते जोयणसते उड्ढं उप्पइत्ता दसुत्तरे जोयणसतबाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसये, एत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोइसियविमानावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं विमाना अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिता सव्वफालियामया अब्भुग्गयमूसियपहसिया इव विविहमणि कनग रतणभत्तिचित्ता वाउद्धुतविजयवेजयंतीपडागछत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगन-तलमणुलिहमाणसिहरा जालंतररत्तणपंजरुम्मिलिय व्व मणि-कनगभूमियागा वियसियसयवत्त-पुंडरीय

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા જ્યોતિષ્ક દેવોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌! જ્યોતિષ્ક દેવો ક્યાં રહે છે? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી ૭૯૦ યોજન ઉપર જઈએ એટલે ૧૧૦ યોજન પહોળા અને તીર્છા અસંખ્યાતા યોજન પ્રમાણ ક્ષેત્રમાં જ્યોતિષ્ક દેવોનો નિવાસ છે. અહીં જ્યોતિષ્ક દેવોના તીર્છા અસંખ્યાતા લાખ
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 226 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेमानियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वेमानिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद- बंभलोय-लंतय- महासुक्क-सहस्सार- आणय-पाणय- आरण-अच्चुत- गेवेज्ज-अनुत्तरेसु, एत्थ णं वेमानियाणं देवाणं चउरासीइ विमानावाससतसहस्सा सत्तानउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाना भवंतीति मक्खातं। ते णं विमाना सव्वरतणामया

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા વૈમાનિક દેવોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ભગવન્‌ ! વૈમાનિક દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી ઊંચે ચંદ્ર – સૂર્ય – ગ્રહ – નક્ષત્ર – તારારૂપથી ઘણા સેંકડો યોજન, ઘણા હજારો યોજન, ઘણા લાખો યોજન, ઘણા કરોડ યોજનો, ઘણા કોડાકોડી યોજનો ઉપર દૂર જઈએ એટલે અહીં સૌધર્મ,
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 227 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सोहम्मगदेवा परिवसंति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्ततारारूवाणं बहूइं जोयणसताणि बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे पन्नत्ते–पाईण-पडीणायते उदीण-दाहिणवित्थिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे असंखेज्जाओ जोयण-कोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडा-कोडीओ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા સૌધર્મદેવોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌ ! સૌધર્મ દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના અતિસમ રમણીય ભૂમિભાગથી યાવત્‌ ઊંચે દૂર ગયા પછી અહીં સૌધર્મ નામે કલ્પ કહેલ છે. પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબો, ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળો, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 228 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! ईसानगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! ईसानगदेवा परिवसंति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं जाव उप्पइत्ता, एत्थ णं ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते–पाईण पडीणायते उदीण-दाहिणविच्छिण्णे एवं जहा सोहम्मे जाव पडिरूवे। तत्थ णं ईसाणदेवगाणं अट्ठावीसं विमानावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। ते णं विमाना सव्वरयणामया जाव पडिरूवा। तेसि णं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–अंकवडेंसए फलिहवडेंसए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨૮. ભગવન્‌ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા ઈશાન દેવોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ભગવન્‌ ! ઈશાન દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની ઉત્તરે આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ – રમણીય ભૂમિભાગથી ઉપર ચંદ્ર – સૂર્ય – ગ્રહ – નક્ષત્ર – તારારૂપથી ઘણા સો યોજન, ઘણા હજારો યોજન યાવત્‌ ઉર્ધ્વ જઈને ઈશાન નામ કલ્પ કહેલ
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 235 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩૫. ભગવન્‌ ! સિદ્ધોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ભગવન્‌ ! સિદ્ધો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! સર્વાર્થસિદ્ધ મહા – વિમાનની ઉપરની સ્તૂપિકાથી બાર યોજન ઊંચે ઇષત્‌ પ્રાગ્ભારા નામે પૃથ્વી છે. તે ૪૫ – લાખ યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી છે. તેની પરિધિ ૧,૪૨,૩૦,૨૪૯ યોજનથી કંઈક અધિક છે. ઇષત્‌ પ્રાગ્ભારા પૃથ્વીના બહુમધ્ય દેશભાગનું આઠ
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 266 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाणं बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउ-काइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइ-काइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ સૂક્ષ્મો, સૂક્ષ્મ એવા પૃથ્વીકાયિક – અપ્‌કાયિક – તેઉકાયિક – વાયુકાયિક – વનસ્પતિકાયિક – નિગોદ, બાદર, બાદર પૃથ્વીકાયિક – અપ્‌કાયિક – તેઉકાયિક – વાયુકાયિક – વનસ્પતિકાયિક, પ્રત્યેક શરીરી બાદર વનસ્પતિકાયિક, બાદર નિગોદો, બાદર ત્રસકાયિકોમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય, વિશેષ છે? ગૌતમ ! સૌથી થોડાં બાદર ત્રસકાયિકો
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Gujarati 267 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सजोगीणं मनजोगीणं वइजोगीणं कायजोगीणं अजोगीणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मनजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा, अजोगी अनंतगुणा, कायजोगी अनंतगुणा, सजोगी विसेसाहिया।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ સયોગી, મનોયોગી, વચનયોગી, કાયયોગી અને અયોગીમાં કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય, વિશેષ છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડા જીવો મનોયોગી છે, વચનયોગી અસંખ્યાતગણા, અયોગી અનંતગણા, કાયયોગી અનંતગણા, સયોગી તેનાથી વિશેષાધિક છે.
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