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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1690 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउद्दस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
लंतगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1691 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1692 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1693 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1694 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1695 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
आरणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1696 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बावीसं सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
अच्चुयम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1697 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ Translated Sutra: प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस जघन्य बाईस सागरोपम। द्वितीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट चौबीस जघन्य तेईस सागरोपम। तृतीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट पच्चीस, जघन्य चौबीस सागरोपम। चतुर्थ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट छब्बीस, जघन्य पच्चीस सागरोपम। पंचम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट सत्ताईस, जघन्य | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1698 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
बिइयम्मि जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1699 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पणवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
तइयम्मि जहन्नेणं चउवीसं सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1700 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छव्वीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
चउत्थम्मि जहन्नेणं सागरा पणुवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1701 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा सत्तवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
पंचमम्मि जहन्नेणं सागरा उ छवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1702 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा अट्ठवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
छट्ठम्मि जहन्नेणं सागरा सत्तवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1703 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा अउणतीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
सत्तमम्मि जहन्नेणं सागरा अट्ठवीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1704 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे ।
अट्ठमम्मि जहन्नेणं सागरा अउणतीसई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1705 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरा इक्कतीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
नवमम्मि जहन्नेणं तीसई सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1706 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सागराउ उक्कोसेण ठिई भवे ।
चउसुं पि विजयाईसुं जहन्नेणेक्कतीसई ॥ Translated Sutra: विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तैंतीस सागरोपम और जघन्य इकत्तीस सागरोपम हैं। महाविमान सर्वार्थसिद्ध के देवों की अजघन्य – अनुत्कृष्ट आयु – स्थिति तैंतीस सागरोपम हैं। सूत्र – १७०६, १७०७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1707 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजहन्नमनुक्कोसा तेत्तीसं सागरोवमा ।
महाविमाण सव्वट्ठे ठिई एसा वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७०६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1708 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई देवाणं तु वियाहिया ।
सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥ Translated Sutra: देवों की पूर्व – कथित जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। देव के शरीर को छोड़कर पुनः देव के शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १७०८, १७०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1709 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए देवाणं हुज्ज अंतरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७०८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1710 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्सओ ॥ Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद होते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1711 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संसारत्था य सिद्धा य इइ जीवा वियाहिया ।
रूविणो चेवरूवी य अजीवा दुविहा वि य ॥ Translated Sutra: इस प्रकार संसारी और सिद्ध जीवों का व्याख्यान किया गया। रूपी और अरूपी के भेद से दो प्रकार के अजीवों का भी व्याख्यान हो गया। जीव और अजीव के व्याख्यान को सुनकर और उसमें श्रद्धा करके ज्ञान एवं क्रिया आदि सभी नयों से अनुमत संयम में मुनि रमण करे। सूत्र – १७११, १७१२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1712 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ जीवमजीवे य सोच्चा सद्दहिऊण य ।
सव्वनयाण अणुमए रमेज्जा संजमे मुनी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७११ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1713 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ बहूणि वासाणि सामण्णमनुपालिया ।
इमेण कमजोगेण अप्पाणं संलिहे मुनी ॥ Translated Sutra: तदनन्तर अनेक वर्षों तक श्रामण्य का पालन करके मुनि इस अनुक्रम से आत्मा की संलेखना – विकारों से क्षीणता करे। उत्कृष्ट संलेखना बारह वर्ष की होती है। मध्यम एक वर्ष की और जघन्य छह मास की है। सूत्र – १७१३, १७१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1714 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बारसेव उ वासाइं संलेहुक्कोसिया भवे ।
संवच्छरं मज्झिमिया छम्मासा य जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७१३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1715 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमे वासचउक्कम्मि विगईनिज्जूहणं करे ।
बिइए वासचउक्कम्मि विचित्तं तु तवं चरे ॥ Translated Sutra: प्रथम चार वर्षों में दुग्ध आदि विकृतियों का त्याग करे, दूसरे चार वर्षों में विविध प्रकार का तप करे। फिर दो वर्षों तक एकान्तर तप करे। भोजन के दिन आचाम्ल करे। उसके बाद ग्यारहवें वर्ष में पहले छह महिनों तक कोई भी अतिविकृष्ट तप न करे। उसके बाद छह महिने तक विकृष्ट तप करे। इस पूरे वर्ष में परिमित आचाम्ल करे। बारहवें | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1716 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगंतरमायामं कट्टु संवच्छरे दुवे ।
तओ संवच्छरद्धं तु नाइविगिट्ठं तवं चरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७१५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1717 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ संवच्छरद्धं तु विगिट्ठं तु तवं चरे ।
परिमियं चेव आयामं तंमि संवच्छरे करे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७१५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1718 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कोडीसहियमायामं कट्टु संवच्छरे मुनी ।
मासद्धमासिएणं तु आहारेण तवं चरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७१५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1719 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंदप्पमाभिओगं किब्बिसियं मोहमासुरत्तं च ।
एयाओ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होंति ॥ Translated Sutra: कांदर्पी, आभियोगी, किल्विषिकी, मोही और आसुरी भावनाऍं दुर्गति देनेवाली हैं। ये मृत्यु के समय में संयम की विराधना करती है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1720 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छादंसणरत्ता सनियाणा हु हिंसगा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ Translated Sutra: जो मरते समय मिथ्या – दर्शन में अनुरक्त हैं, निदान से युक्त हैं और हिंसक हैं, उन्हें बोधि बहुत दुर्लभ है। जो सम्यग् – दर्शन में अनुरक्त हैं, निदान से रहित हैं, शुक्ल लेश्या में अवगाढ – प्रविष्ट हैं, उन्हें बोधि सुलभ है। जो मरते समय मिथ्या – दर्शन में अनुरक्त हैं, निदान सहित हैं, कृष्ण लेश्या में अवगाढ हैं, उन्हें | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1721 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा सुलहा तेसिं भवे बोही ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1722 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छादंसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा ।
इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1723 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेंति भावेण ।
अमला असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारी ॥ Translated Sutra: जो जिन – वचन में अनुरक्त हैं, जिनवचनों का भावपूर्वक आचरण करते हैं, वे निर्मल और रागादि से असंक्लिष्ट होकर परीतसंसारी होते हैं। जो जीव जिन – वचन से अपरिचित हैं, वे बेचारे अनेक बार बाल – मरण तथा अकाम – मरण से मरते रहेंगे। सूत्र – १७२३, १७२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1724 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव य बहूणि ।
मरिहिं ते वराया जिणवयणं जे न जाणंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1725 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुआगमविण्णाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही ।
एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ॥ Translated Sutra: जो अनेक शास्त्रों के वेत्ता, आलोचना करनेवालों को समाधि उत्पन्न करनेवाले और गुणग्राही होते हैं, वे इसी कारण आलोचना सुनने में समर्थ होते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1726 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंदप्पकोक्कुइयाइं तह सीलसहावहासविगहाहिं ।
विम्हावेंतो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ ॥ Translated Sutra: जो कन्दर्प, कौत्कुच्य करता है, तथा शील, स्वभाव, हास्य और विकथा से दूसरों को हँसाता है, वह कांदर्पी भावना का आचरण करता है। जो सुख, घृतादि रस और समृद्धि के लिए मंत्र, योग और भूति कर्म का प्रयोग करता है, वह अभियोगी भावना का आचरण करता है। जो ज्ञान की, केवल – ज्ञानी की, धर्माचार्य की, संघ की तथा साधुओं की निन्दा करता है, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1727 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मंताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजंति ।
सायरसइड्ढिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1728 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं ।
माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1729 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवि ।
एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1730 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य ।
अणायारभंडसेवा जम्मणणमरणाणि बंधंति ॥ Translated Sutra: जो शस्त्र से, विषभक्षण से, अथवा अग्नि में जलकर तथा पानी में डूबकर आत्महत्या करता है, जो साध्वाचार से विरुद्ध भाण्ड रखता है, वह अनेक जन्म – मरणों का बन्धन करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1731 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए ।
छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: इस प्रकार भव्य – जीवों को अभिप्रेत छत्तीस उत्तराध्ययनों को – उत्तम अध्यायों को प्रकट कर बुद्ध, ज्ञातवंशीय, भगवान् महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति।
जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था Translated Sutra: वह निर्णय नामक अण्डवणिक् नरक से नीकलकर विजय नामक चोर सेनापति की स्कन्दश्री भार्या के उदर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास परिपूर्ण होने पर स्कन्दश्री को यह दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं, जो मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धियों और परिजनों की महिलाओं तथा अन्य महिलाओं से परिवृत्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: अनुक्रम से कुमार अभग्नसेन ने बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था में प्रवेश किया। आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। विवाह में उसके माता – पिता ने आठ – आठ प्रकार की वस्तुएं प्रीतिदान में दीं और वह ऊंचे प्रासादों में रहकर मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करने लगा। तत्पश्चात् किसी समय वह विजय चोर सेनापति कालधर्म | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Hindi | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में पाटलिखंड नगर था। वहाँ वनखण्ड उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था। उस नगर में सिद्धार्थ राजा था। पाटलिखण्ड नगर में सागरदत्त नामक धनाढ्य सार्थवाह था। उसकी गङ्गदत्ता भार्या थी। उस सागरदत्त का पुत्र व गङ्गदत्ता भार्या का आत्मज उम्बरदत्त | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 21 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति।
जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था Translated Sutra: તે ત્યાંથી ઉદ્વર્તીને અનંતર આ જ શાલાટવી ચોરપલ્લીમાં વિજય ચોર સેનાપતિની સ્કંદશ્રી પત્નીની કુક્ષિમાં પુત્રપણે ઉત્પન્ન થયો. પછી સ્કંદશ્રીને અન્ય કોઈ દિને ત્રણ માસ પ્રતિપૂર્ણ થતા આ આવા સ્વરૂપનો દોહદ ઉત્પન્ન થયો. તે માતાઓ ધન્ય છે, જે ઘણા મિત્ર – જ્ઞાતિ – નિજક – સ્વજન – સંબંધી – પરિજન મહિલાઓ તથા બીજી પણ ચોર મહિલા | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: ત્યારપછી તે અભગ્નસેન કુમાર બાલભાવથી મુક્ત થયો. આઠ કન્યા સાથે લગ્ન થયા, યાવત્ આઠનો દાયજો મળ્યો. ઉપરી પ્રાસાદમાં ભોગ ભોગવતો વિચરે છે. પછી તે વિજય ચોર સેનાપતિ કોઈ દિવસે મૃત્યુ પામ્યો. પછી તે અભગ્નસેનકુમાર ૫૦૦ ચોરો સાથે પરીવરી રુદન – ક્રંદન – વિલાપ કરતો વિજય ચોરસેનાપતિનું મહાઋદ્ધિ સત્કારના સમુદયથી નીહરણ કર્યું, | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Gujarati | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના છટ્ઠાઅધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો સાતમાંનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે પાડલખંડ નગર હતું, ત્યાં વનખંડ નામે ઉદ્યાન હતું, ઉંબરદત્ત યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. તે નગરમાં સિદ્ધાર્થ રાજા હતો. |