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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 77 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुक्करं खलु भो! निच्चं अनगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥

Translated Sutra: वास्तव में अनगार भिक्षु ही यह चर्या सदा से ही दुष्कर रही है कि उसे वस्त्र, पात्र, आहारादि सब कुछ याचना से मिलता है। उसके पास कुछ भी अयाचित नहीं होता है। गोचरी के लिए घर में प्रविष्ट साधु के लिए गृहस्थ के सामने हाथ फैलाना सरल नहीं है, अतः ‘गृहवास ही श्रेष्ठ है’ – मुनि ऐसा चिन्तन न करे। सूत्र – ७७, ७८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 79 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्ठिए । लद्धे पिंडे अलद्धे वा नानुतप्पेज्ज संजए ॥

Translated Sutra: गृहस्थों के घरों में भोजन तैयार हो जाने पर आहार की एषणा करे। आहार थोड़ा मिले, या न मिले, पर संयमी मुनि इसके लिए अनुताप न करे। ‘आज मुझे कुछ नहीं मिला, संभव है, कल मिल जाय’ – जो ऐसा सोचता है, उसे अलाभ कष्ट नहीं देता। सूत्र – ७९, ८०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 81 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नच्चा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहट्टिए । अदीनो थावए पन्नं पुट्ठो तत्थहियासए ॥

Translated Sutra: ‘कर्मों के उदय से रोग उत्पन्न होता है’ – ऐसा जानकर वेदना से पीड़ित होने पर दीन न बने। व्याधि से विचलित प्रज्ञा को स्थिर बनाए और प्राप्त पीड़ा को समभाव से सहे। आत्मगवेषक मुनि चिकित्सा का अभिनन्दन न करे, समाधिपूर्वक रहे। यही उसका श्रामण्य है कि वह रोग उत्पन्न होने पर चिकित्सा न करे, न कराए। सूत्र – ८१, ८२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 83 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ॥

Translated Sutra: अचेलक और रूक्षशरीरी संयत तपस्वी साधु को घास पर सोने से शरीर को कष्ट होता है। गर्मी पड़ने से घास पर सोते समय बहुत वेदना होती है, यह जान करके तृण – स्पर्श से पीड़ित मुनि वस्त्र धारण नहीं करते हैं। सूत्र – ८३, ८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 85 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किलिन्नगाए मेहावी पंकेण व रएण वा । घिंसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए ॥

Translated Sutra: ग्रीष्म ऋतु में मैल से, रज से अथवा परिताप से शरीर के लिप्त हो जाने पर मेधावी मुनि साता के लिए विलाप न करे। निर्जरार्थी मुनि अनुत्तर आर्यधर्म को पाकर शरीर – विनाश के अन्तिम क्षणों तक भी शरीर पर जल्ल – स्वैद – जन्य मैल को रहने दे। सूत्र – ८५, ८६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 87 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभिवायणमब्भुट्ठाणं सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडिसेवंति न तेसिं पीहए मुनी ॥

Translated Sutra: राजा आदि द्वारा किए गए अभिवादन, सत्कार एवं निमन्त्रण को जो अन्य भिक्षु स्वीकार करते हैं, मुनि उनकी स्पृहा न करे। अनुत्कर्ष, अल्प इच्छावाला, अज्ञात कुलों से भिक्षा लेनेवाला अलोलुप भिक्षु रसों में गृद्ध – आसक्त न हो। प्रज्ञावान्‌ दूसरों को सम्मान पाते देख अनुताप न करे। सूत्र – ८७, ८८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 89 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से नूनं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥

Translated Sutra: ‘‘निश्चय ही मैंने पूर्व काल में अज्ञानरूप फल देनेवाले अपकर्म किए हैं, जिससे मैं किसी के द्वारा किसी विषय में पूछे जाने पर कुछ भी उत्तर देना नहीं जानता हूँ।’’ ‘अज्ञानरूप फल देने वाले पूर्वकृत कर्म परिपक्व होने पर उदय में आते हैं’ – इस प्रकार कर्म के विपाक को जानकर मुनि अपने को आश्वस्त करे। सूत्र – ८९, ९०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 91 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निरट्ठगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाण पावगं ॥

Translated Sutra: ‘‘मैं व्यर्थ में ही मैथुनादि सांसारिक सुखों से विरक्त हुआ, इन्द्रिय और मन का संवरण किया। क्योंकि धर्म कल्याण – कारी है या पापकारी है, यह मैं प्रत्यक्ष तो कुछ देख पाता नहीं हूँ – ’’ ऐसा मुनि न सोचे। ‘‘तप और उपधान को स्वीकार करता हूँ, प्रतिमाओं का भी पालन कर रहा हूँ, इस प्रकार विशिष्ट साधनापथ पर विहरण करने पर भी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 93 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि नूनं परे लोए इड्ढी वावि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिंतए ॥

Translated Sutra: ‘‘निश्चय ही परलोक नहीं है, तपस्वी की ऋद्धि भी नहीं है, मैं तो धर्म के नाम पर ठगा गया हूँ’’ – ‘‘पूर्व काल में जिन हुए थे, वर्तमान में हैं और भविष्य में होंगे’’ – ऐसा जो कहते हैं, वे झूठ बोलते हैं – भिक्षु ऐसा चिन्तन न करे। सूत्र – ९३, ९४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 96 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो । मानुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥

Translated Sutra: इस संसार में प्राणियों के लिए चार परम अंग दुर्लभ हैं – मनुष्यत्व, सद्धर्म का श्रवण, श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 97 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समावन्नाण संसारे नानागोत्तासु जाइसु । कम्मा नानाविहा कट्टु पुढो विस्संभिया पया ॥

Translated Sutra: नाना प्रकार के कर्मों को करके नानाविध जातियों में उत्पन्न होकर, पृथक्‌ – पृथक्‌ रूप से प्रत्येक संसारी जीव समस्त विश्व को स्पर्श कर लेते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 98 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया । एगया आसुरं कायं आहाकम्मेहिं गच्छई ॥

Translated Sutra: अपने कृत कर्मों के अनुसार जीव कभी देवलोक में, कभी नरक में और कभी असुर निकाय में जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 99 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगया खत्तिओ होइ तओ चंडाल बोक्कसो । तओ कीड-पयंगो य तओ कुंथु-पिवीलिया ॥

Translated Sutra: यह जीव कभी क्षत्रिय, कभी चाण्डाल, कभी बुक्कस, कभी कुंथु और कभी चींटी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 100 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमावट्टजोणीसु पाणिणो कम्मकिब्बिसा । न निविज्जंति संसारे सव्वट्ठे सु व खत्तिया ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार क्षत्रिय लोग चिरकाल तक समग्र ऐश्वर्य एवं सुखसाधनों का उपभोग करने पर भी निर्वेद – को प्राप्त नहीं होते, उसी प्रकार कर्मों से मलिन जीव अनादि काल से आवर्तस्वरूप योनिचक्र में भ्रमण करते हुए भी संसार दशा से निर्वेद नहीं पाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 101 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कम्मसंगेहिं सम्मूढा दुक्खिया बहुवेयणा । अमानुसासु जोणीसु विणिहम्मंति पाणिणो ॥

Translated Sutra: कर्मों के संग से अति मूढ, दुःखित और अत्यन्त वेदना से युक्त प्राणी मनुष्येतर योनियों में जन्म लेकर पुनः पुनः विनिघात पाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 103 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मानुस्सं विग्गहं लद्धुं सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा पडिवज्जंति तवं खंतिमहिंसयं ॥

Translated Sutra: मनुष्यशरीर प्राप्त होने पर भी धर्म का श्रवण दुर्लभ है, जिसे सुनकर जीव तप, क्षमा और अहिंसा को प्राप्त करते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 104 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आहच्च सवणं लद्धुं सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा नेआउयं मग्गं बहवे परिभस्सई ॥

Translated Sutra: कदाचित्‌ धर्म का श्रवण हो भी जाए, फिर भी उस पर श्रद्धा होना परम दुर्लभ है। बहुत से लोग नैयायिक मार्ग को सुनकर भी उससे विचलित हो जाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 106 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मानुसत्तंमि आयाओ जो धम्मं सोच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लद्धुं संवुडे निद्धणे रयं ॥

Translated Sutra: मनुष्यत्व प्राप्त कर जो धर्म को सुनता है, उसमें श्रद्धा करता है, वह तपस्वी संयम में पुरुषार्थ कर संवृत होता है, कर्म रज को दूर करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 111 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया । उवेंति मानुसं जोणिं से दसंगेऽभिजायई ॥

Translated Sutra: वहां देवलोक में यथास्थान अपनी काल – मर्यादा तक ठहरकर, आयु क्षय होने पर वे देव वहाँ से लौटते हैं, और मनुष्य योनि को प्राप्त होते हैं। वे वहाँ दशांग से युक्त होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 112 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खेत्तं वत्थुं हिरण्णं च पसवो दास-पोरुसं । चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उववज्जई ॥

Translated Sutra: क्षेत्रभूमि, वास्तु, स्वर्ण, पशु और दास ये चार काम – स्कन्ध जहां होते हैं, वहाँ वे उत्पन्न होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 113 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायंके महापन्ने अभिजाए जसोबले ॥

Translated Sutra: वे सन्मित्रों से युक्त, ज्ञातिमान्‌, उच्च गोत्रवाले, सुन्दर वर्णवाले, नीरोग, महाप्राज्ञ, अभिजात, यशस्वी और बलवान होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 116 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते कण्णू विहिंसा अजया गहिंति ॥

Translated Sutra: टूटा जीवन सांधा नहीं जा सकता, अतः प्रमाद मत करो, वृद्धावस्था में कोई शरण नहीं है। यह विचारो कि ‘प्रमादी, हिंसक और असंयमी मनुष्य समय पर किसकी शरण लेंगे’।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 117 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे पावकम्मेहि धनं मनूसा समाययंती अमइं गहाय । पहाय ते पास पयट्टिए नरे वेरानुबद्धा नरयं उवेंति ॥

Translated Sutra: जो मनुष्य अज्ञानता के कारण पाप – प्रवृत्तियों से धन का उपार्जन करते हैं, वे वासना के जाल में पड़े हुए और वैर से बंधे मरने के बाद नरक में जाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 118 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एवं पया पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ॥

Translated Sutra: जैसे संधि – मुख में पकड़ा गया पापकारी चोर अपने कर्म से छेदा जाता है, वैसे ही जीव अपने कृत कर्मों के कारण लोक तथा परलोक में छेदा जाता है। किए हुए कर्मों को भोगे बिना छूटकारा नहीं है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 119 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसारमावन्न परस्स अट्ठा साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उवेंति ॥

Translated Sutra: संसारी जीव अपने और अन्य बंधु – बांधवों के लिए साधारण कर्म करता है, किन्तु उस कर्म के फलोदय के समय कोई भी बन्धु बन्धुता नहीं दिखाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 120 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते इमंमि लोए अदुवा परत्था । दीवप्पणट्ठे व अनंतमोहे नेयाउयं दट्ठुमदट्ठुमेव ॥

Translated Sutra: प्रमत्त मनुष्य इस लोक में और परलोक में धन से त्राण – नहीं पाता है। दीप बुझ गया हो उसको पहले प्रकाश में देखा हुआ मार्ग भी न देखे हुए जैसा हो जाता है, वैसे ही अनन्त मोह के कारण प्रमत्त व्यक्ति मोक्ष – मार्ग को देखता हुआ भी नहीं देखता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 121 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पंडिए आसुपन्ने । घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं भारुंडपक्खी व चरप्पमत्तो ॥

Translated Sutra: आशुप्रज्ञावाला ज्ञानी साधक सोए हुए लोगों में भी प्रतिक्षण जागता रहे। प्रमाद में एक क्षण के लिए भी विश्वास न करे। समय भयंकर है, शरीर दुर्बल है। अतः भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमादी होकर विचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 122 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चरे पयाइं परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मन्नमाणो । लाभंतरे जीविय वूहइत्ता पच्छा परिण्णाय मलावधंसी ॥

Translated Sutra: साधक पग – पग पर दोषों की संभावना को ध्यान में रखता हुआ चले, छोटे दोष को भी पाश समझकर सावधान रहे। नये गुणों के लाभ के लिए जीवन सुरक्षित रखे। और जब लाभ न होता दीखे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर को छोड़े।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 123 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाइं वासाइं चरप्पमत्तो तम्हा मुनी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥

Translated Sutra: शिक्षित और वर्म धारी अश्व जैसे युद्ध से पार हो जाता है, वैसे ही स्वच्छंदता निरोधक साधक संसार से पार हो जाता है। पूर्व जीवन में अप्रमत्त होकर विचरण करनेवाला मुनि शीघ्र ही मोक्ष पाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 124 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयंमि कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥

Translated Sutra: ‘जो पूर्व जीवन में अप्रमत्त नहीं रहता, वह बाद में भी अप्रमत्त नहीं हो पाता है’ यह ज्ञानी जनों की धारणा है। ‘अभी क्या है, बाद में अन्तिम समय अप्रमत्त हो जाऐंगे’ यह शाश्वतवादियों की मिथ्या धारणा है। पूर्व जीवन में प्रमत्त रहनेवाला व्यक्ति, आयु के शिथिल होने पर मृत्यु के समय, शरीर छूटने की स्थिति आने पर विषाद पाता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 125 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी अप्पाणरक्खी चरमप्पमत्तो ॥

Translated Sutra: कोई भी तत्काल विवेक को प्राप्त नहीं कर सकता। अतः अभी से कामनाओं का परित्याग कर, सन्मार्ग में उपस्थित होकर, समत्व दृष्टि से लोक को अच्छी तरह जानकर आत्मरक्षक महर्षि अप्रमत्त होकर विचरे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 128 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे संखया तुच्छ परप्पवाई ते पिज्ज-दोसाणुगया परज्झा । एए अहम्मे त्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीरभेओ ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो व्यक्ति संस्कारहीन, तुच्छ और परप्रवादी हैं, जो राग और द्वेष में फँसे हुए हैं, वासनाओं के दास हैं, वे ‘धर्म रहित हैं’ – ऐसा जानकर साधक उनसे दूर रहे। शरीर – भेद के अन्तिम क्षणों तक सद्‌गुणों की आराधना करे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 129 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अन्नवंसि महोहंसि एगे तिन्ने दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापन्ने इमं पट्ठमुदाहरे ॥

Translated Sutra: संसार सागर की भाँति है, उसका प्रवाह विशाल है, उसे तैर कर पार पहुँचना अतीव कष्टसाध्य है। फिर भी कुछ लोग पार कर गये हैं। उन्हीं में से एक महाप्राज्ञ (महावीर) ने यह स्पष्ट किया था। मृत्यु के दो भेद हैं – अकाम मरण और सकाम मरण। सूत्र – १२९, १३०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 132 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । कामगिद्धे जहा बाले भिसं कूराइं कुव्वई ॥

Translated Sutra: महावीर ने दो स्थानों में से प्रथम स्थान के विषय में कहा है कि काम – भोग में आसक्त बाल जीव – अज्ञानी आत्मा क्रूर कर्म करता है। जो काम – भोगों में आसक्त होता है, वह कूट की ओर जाता है। वह कहता है – ‘‘परलोक तो मैंने देखा नहीं है। और यह रति सुख है – ’’ ‘‘वर्तमान के ये कामभोग – सम्बन्धी सुख तो हस्तगत हैं। भविष्य में मिलने
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 135 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जनेन सद्धिं होक्खामि इइ बाले पगब्भई । काम-भोगानुराएणं केसं संपडिवज्जई ॥

Translated Sutra: ‘‘मैं तो आम लोगों के साथ रहूँगा। ऐसा मानकर अज्ञानी मनुष्य भ्रष्ट हो जाता है। किन्तु वह कामभोग के अनुराग से कष्ट ही पाता है। फिर वह त्रस एवं स्थावर जीवों के प्रति दण्ड का प्रयोग करता है। प्रयोजन से अथवा निष्प्रयोजन ही प्राणीसमूह की हिंसा करता है। जो हिंसक, बाल – अज्ञानी, मृषावादी, मायावी, चुगलखोर तथा शठ होता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 141 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थोववाइयं ठाणं जहा मेयमनुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गच्छंतो सो पच्छा परितप्पई ॥

Translated Sutra: उन नरकों में औपपातिक स्थिति है। आयुष्य क्षीण होने के पश्चात्‌ अपने कृतकर्मों के अनुसार वहाँ जाता हुआ प्राणी परिताप करता है। जैसे कोई गाड़ीवान्‌ समतल महान्‌ मार्ग को जानता हुआ भी उसे छोड़कर विषम मार्ग से चल पड़ता है और तब गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है। इसी प्रकार जो धर्म का उल्लंघन कर अधर्म को स्वीकार करता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 144 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ से मरणंतम्मि बाले संतस्सई भया । अकाममरणं मरई धुत्ते व कलिना जिए ॥

Translated Sutra: मृत्यु के समय वह अज्ञानी परलोक के भय से संत्रस्त होता है। एक ही दाव में सब कुछ हार जानेवाले धूर्त की तरह शोक करता हुआ अकाम मरण से मरता है। यह अज्ञानी जीवों के अकाम मरण का प्रतिपादन किया है। अब पण्डितों के सकाम मरण को मुझसे सुनो – सूत्र – १४४, १४५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 146 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मरणं पि सपुण्णाणं जहा मेयमनुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं संजयाण वुसीमओ ॥

Translated Sutra: जैसा कि मैंने परम्परा से सुना है कि – संयत और जितेन्द्रिय पुण्यात्माओं का मरण अतिप्रसन्न और आघातरहित होता है। यह सकाम मरण न सभी भिक्षुओं को प्राप्त होता है और न सभी गृहस्थों को। गृहस्थ नाना प्रकार के शीलों से सम्पन्न होते हैं, जब कि बहुत से भिक्षु भी विषम – शीलवाले होते हैं। सूत्र – १४६, १४७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 149 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चीराजिनं नगिनिणं जडी-संघाडि-मुंडिणं । एयाणि वि न तायंति दुस्सीलं परियागयं ॥

Translated Sutra: दुराचारी साधु को वस्त्र, अजिन, नग्नत्व, जटा, गुदड़ी, शिरोमुंडन आदि बाह्याचार, नरकगति में जाने से नहीं बचा सकते। भिक्षावृत्ति से निर्वाह करनेवाला भी यदि दुःशील है तो वह नरक से मुक्त नहीं हो सकता है। भिक्षु हो अथवा गृहस्थ, यदि वह सुव्रती है, तो स्वर्ग में जाता है। सूत्र – १४९, १५०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 151 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगारि-सामाइयंगाइं सड्ढी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं एगरायं न हावए ॥

Translated Sutra: श्रद्धावान्‌ गृहस्थ सामायिक साधना के सभी अंगों का काया से स्पर्श करे, कृष्ण और शुक्ल पक्षों में पौषध व्रत को एक रात्रि के लिए भी न छोड़े। इस प्रकार धर्मशिक्षा से सम्पन्न सुव्रती गृहवास में रहता हुआ भी मानवीय औदारिक शरीर को छोड़कर देवलोक में जाता है। सूत्र – १५१, १५२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 154 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उत्तराइं विमोहाइं जुइमंतानुपुव्वसो । समाइण्णाइं जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो ॥

Translated Sutra: देवताओं के आवास अनुक्रम से ऊर्ध्व, मोहरहित, द्युतिमान्‌ तथा देवों से परिव्याप्त होते हैं। उनमें रहने वाले देव यशस्वी – दीर्घायु, ऋद्धिमान्‌, दीप्तिमान्‌, इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले और अभी – अभी उत्पन्न हुए हों, ऐसी भव्य कांति वाले एवं सूर्य के समान अत्यन्त तेजस्वी होते हैं। सूत्र – १५४, १५५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 156 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ताणि ठाणाणि गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संति परिनिव्वुडा ॥

Translated Sutra: भिक्षु हो या गृहस्थ, जो हिंसा आदि से निवृत्त होते हैं, वे संयम और तप का अभ्यास कर उक्त देवलोकों में जाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 158 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ॥

Translated Sutra: बालमरण और पंडितमरण की परस्पर तुलना करके मेधावी साधक विशिष्ट सकाम मरण को स्वीकार करे, और मरण काल में दया धर्म एवं क्षमा से पवित्र तथाभूत आत्मा से प्रसन्न रहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 159 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ काले अभिप्पेए सड्ढी तालिसमंतिए । विनएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ॥

Translated Sutra: जब मरण – काल आए, तो जिस श्रद्धा से प्रव्रज्या स्वीकार की थी, तदनुसार ही भिक्षु गुरु के समीप पीडाजन्य लोमहर्ष को दूर करे तथा शान्तिभाव से शरीर के भेद की प्रतीक्षा करे। मृत्यु का समय आने पर मुनि भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन में से किसी एक को स्वीकार कर सकाम मरण से शरीर को छोड़ता है। – ऐसा मैं कहता हू सूत्र –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 161 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जावंतऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पंति बहुसो मूढा संसारंमि अनंतए ॥

Translated Sutra: जितने अविद्यावान्‌ हैं, वे सब दुःख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ अनन्त संसार में बार – बार लुप्त होते हैं। इसलिए पण्डित पुरुष अनेकविध बन्धनों की एवं जातिपथों की समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और विश्व के सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखे। सूत्र – १६१, १६२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 163 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माया पिया ण्हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाय लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥

Translated Sutra: अपने ही कृत कर्मों से लुप्त मेरी रक्षा करने में माता – पिता, पुत्रवधू, भाई, पत्नी तथा औरस पुत्र समर्थ नहीं हैं। सम्यक्‌ द्रष्टा साधक अपनी स्वतंत्र बुद्धि से इस अर्थ की सत्यता को देखे। आसक्ति तथा स्नेह का छेदन करे। किसी के पूर्व परिचय की भी अभिलाषा न करे। सूत्र – १६३, १६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 165 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गवासं मणिकुंडलं पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं कामरूवी भविस्ससि ॥

Translated Sutra: गौ, बैल, घोड़ा, मणि, कुण्डल, पशु, दास और अन्य सहयोगी पुरुष – इन सबका परित्याग करने वाला साधक परलोक में कामरूपी देव होगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 166 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थावरं जंगमं चेव धनं धन्नं उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मेहिं नालं दुक्खाउ मोयणे ॥

Translated Sutra: कर्मों से दुःख पाते हुए प्राणी को स्थावर – जंगम संपत्ति, धन, धान्य और गृहोपकरण भी दुःख से मुक्त करने में समर्थ नहीं होते।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 167 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए ॥

Translated Sutra: ‘सबको सब तरह से सुख प्रिय है, सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है’ – यह जानकर भय और वैर से उपरत साधक किसी भी प्राणी की हिंसा न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 168 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयाणं नरयं दिस्स नायएज्ज तणामवि । दोगुंछी अप्पणो पाए दिन्नं भुंजेज्ज भोयणं ॥

Translated Sutra: अदत्तादान नरक है, यह जानकर बिना दिया हुआ एक तिनका भी मुनि न ले। असंयम के प्रति जुगुप्सा रखनेवाला मुनि अपने पात्र में दिया हुआ ही भोजन करे।
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