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Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Gujarati 1534 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा पुढवीजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૩૪. પૃથ્વીકાય જીવના બે ભેદ છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. તે બંનેના પણ વળી બબ્બે ભેદો છે – પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત. સૂત્ર– ૧૫૩૫. બાદર પર્યાપ્ત પૃથ્વીકાય જીવના બે ભેદો છે – શ્લક્ષ્ણ અર્થાત્‌ મૃદુ અને ખર – કઠોર, આ મૃદુના પણ સાત ભેદો છે. સૂત્ર– ૧૫૩૬. કૃષ્ણ, નીલ, રક્ત, પીત, શ્વેત એવી પાંડુ માટી, પનક અને ખર અર્થાત્‌ કઠોર
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Gujarati 1556 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૫૬. વનસ્પતિના જીવોના બે ભેદ છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. તે બંનેના પણ બબ્બે ભેદો છે – પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત. સૂત્ર– ૧૫૫૭. બાદર પર્યાપ્ત વનસ્પતિકાય જીવોના બે ભેદ છે – સાધારણ શરીર૦ અને પ્રત્યેક શરીર૦ સૂત્ર– ૧૫૫૮. પ્રત્યેક શરીર વનસ્પતિકાયના જીવોના અનેક પ્રકારો છે. જેમ કે – વૃક્ષ, ગુચ્છ, ગુલ્મ, લતા, વલ્લી અને
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Gujarati 1609 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउरिंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૦૯. ચઉરિન્દ્રિય જીવના બે ભેદો વર્ણવેલ છે – પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત. તેના ભેદો મારી પાસેથી સાંભળો. સૂત્ર– ૧૬૧૦. અંધિકા, પોતિકા, મક્ષિકા, મશક, મચ્છર, ભ્રમર, કીડ, પતંગ, ઢિંકુણ, કુંકુણ, સૂત્ર– ૧૬૧૧. કુક્કુડ, શૃંગિરિટી, નંદાવર્ત્ત, વીંછી, ડોલ, ભૃંગરીટક, વિરણી, અક્ષિવેધક, સૂત્ર– ૧૬૧૨. અક્ષિલ, માગધ, અક્ષિરોડક, વિચિત્ર,
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Gujarati 1658 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनुया दुविहभेया उ ते मे कियत्तओ सुण । संमुच्छिमा य मनुया गब्भवक्कंतिया तहा ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૫૮. મનુષ્યોના બે ભેદો છે – સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્ય અને ગર્ભજ મનુષ્ય. હું તેનું વર્ણન કરું છું, તે કહીશ. સૂત્ર– ૧૬૫૯. ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક – ગર્ભજ મનુષ્યના ત્રણ ભેદો છે – અકર્મભૂમિક, કર્મભૂમિક અને અંતર્દ્વીપક. સૂત્ર– ૧૬૬૦. કર્મભૂમિક મનુષ્યોના પંદર, અકર્મભૂમિક મનુષ્યોના ત્રીશ, અંતર્દ્વીપક મનુષ્યોના અઠ્ઠાવીશ
Vanhidasha वह्निदशा Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ निषध

Hindi 3 Sutra Upang-12 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए

Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत्‌ संप्राप्त भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती – नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर – दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था। स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१ मृगापुत्र

Hindi 9 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवानुप्पिया! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा–सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्ठकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्ठकूडे

Translated Sutra: तदनन्तर उक्त सोलह प्रकार के भयंकर रोगों से खेद को प्राप्त वह एकादि नामक प्रान्ताधिपति सेवकों को बुलाकर कहता है – ‘‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और विजयवर्द्धमान खेट के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और साधारण मार्ग पर जाकर अत्यन्त ऊंचे स्वरों से इस तरह घोषणा करो – ‘हे देवानुप्रियो ! एकादि प्रान्तपति के शरीर
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-२ उज्झितक

Hindi 12 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे। तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था। तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरे लक्खण वंजण गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंग-सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गओ, जहा कूणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य गओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयलेसे

Translated Sutra: उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नामक एक धनी सार्थवाह निवास करता था। उस विजयमित्र की अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर से सम्पन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नामक सर्वाङ्गसम्पन्न और रूपवान्‌ बालक था। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर वाणिजग्राम नामक नगर में
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-३ अभग्नसेन

Hindi 23 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे एगं महं महइमहालियं कूडागारसालं कारेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं। तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्ज-कलियं अनेगतालाचराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सालाडवीए चोरपल्लीए। तत्थ णं तुब्भे अभग्गसेणं चोरसेनावइं करयल परिग्गहियं

Translated Sutra: तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल राजा ने पुरिमताल नगर में महती सुन्दर व अत्यन्त विशाल, मन में हर्ष उत्पन्न करने वाली, दर्शनीय, जिसे देखने पर भी आँखें न थकें ऐसी सैकड़ों स्तम्भों वाली कूटाकारशाला बनवायी। उसके बाद महाबल नरेश ने किसी समय उस षड्‌यन्त्र के लिए बनवाई कूटाकारशाला के निमित्त उच्छुल्क यावत्‌ दश दिन के प्रमोद
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-९ देवदत्त

Hindi 33 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी– एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। पुढवीवडेंसए उज्जाने। धरणो जक्खो। वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया। तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे। कण्हसिरी भारिया। तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण–पंचिंदियसरीरा। तेणं

Translated Sutra: यदि भगवन्‌ ! यावत्‌ नवम अध्ययन का उत्क्षेप जान लेना चाहिए। जम्बू ! उस काल तथा उस समय में रोहीतक नाम का नगर था। वह ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध था। पृथिवी – अवतंसक नामक उद्यान था। उसमें धारण नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ वैश्रमणदत्त नाम का राजा था। श्रीदेवी नामक रानी थी। युवराज पद से अलंकृत पुष्पनंदी कुमार था।
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१० अंजूश्री

Hindi 34 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया। तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए

Translated Sutra: अहो भगवन्‌ ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत्‌। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक

अध्ययन-१ सुबाहुकुमार

Hindi 37 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे । तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे। तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे । तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे। तस्स

Translated Sutra: हे भदन्त ! यावत्‌ मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं तो हे भगवन्‌ ! सुख – विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? श्रीसुधर्मा स्वामी ने श्रीजम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नामका एक बड़ा ऋद्ध
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक

अध्ययन-८ भद्रनंदि

Hindi 44 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठमस्स उक्खेवओ। सुघोसं नयरं। देवरमणं उज्जाणं। वीरसेनो जक्खो। अज्जुनो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंच-सया जाव पुव्वभवे। महाघोसे नयरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे।

Translated Sutra: सुघोष नगर था। देवरमण उद्यान था। वीरसेन यक्ष का यक्षायतन था। अर्जुन राजा था। तत्त्ववती रानी थी और भद्रानन्दी राजकुमार था। उसका श्रीदेवी आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया। पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा – हे गौतम ! महाघोष
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१ मृगापुत्र

Gujarati 6 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्न कोऊहल्ले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે ભગવંતના મુખ્ય શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર યાવત્‌ વિચરતા હતા. પછી તે ગૌતમસ્વામીએ તે જાત્યંધ પુરુષને જોયો. જોઈને જાતશ્રદ્ધ આદિ થઈને કહ્યું – ભગવન્‌ ! કોઈ પુરુષ જાત્યંધ, જાત્યંધરૂપ હોય ? હા, હોય. ભગવન્ ! તે પુરુષ જાતિઅંધ, જાતિઅંધરૂપ કેવી રીતે છે ? હે ગૌતમ ! આ જ મૃગગ્રામ નગરમાં વિજયક્ષત્રિયનો પુત્ર, મૃગાદેવીનો
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१ मृगापुत्र

Gujarati 9 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवानुप्पिया! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा–सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्ठकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्ठकूडे

Translated Sutra: ત્યારપછી તે ઇક્કાઈ રાષ્ટ્રકૂટે ૧૬ – રોગાંતકથી અભિભૂત થઈને કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો! તમે જાઓ, વિજય વર્ધમાન ખેટકના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, મહાપથ, પથમાં મોટા – મોટા શબ્દોથી ‌ઉદ્‌ઘોષણા કરતા – કરતા આ પ્રમાણે કહો – દેવાનુપ્રિય ! અહીં ઇક્કાઈ રાષ્ટ્રકૂટના શરીરમાં ૧૬ – રોગાંતકો
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-२ उज्झितक

Gujarati 12 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे। तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था। तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरे लक्खण वंजण गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंग-सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गओ, जहा कूणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य गओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयलेसे

Translated Sutra: તે વાણિજ્યગ્રામમાં વિજયમિત્ર નામે આઢ્ય સાર્થવાહ વસતો હતો. તેને સુભદ્રા નામે પૂર્ણ પંચેન્દ્રિય પત્ની હતી. તે વિજયમિત્રનો પુત્ર અને સુભદ્રા ભાર્યાનો આત્મજ ઉજ્ઝિતક નામે સર્વાંગ સંપન્ન યાવત્‌ સુરૂપ પુત્ર હતો. તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પધાર્યા, પર્ષદના નીકળી, રાજા પણ કોણિક માફક નીકળ્યો, ભગવંતે ધર્મ
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-२ उज्झितक

Gujarati 14 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया [चिच्ची?] सद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए। तए णं तस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता विपलाइत्था। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा

Translated Sutra: તે બાળક જન્મતાની સાથે મોટા મોટા શબ્દોથી ઘોષ કરતો, વિરસ શબ્દ કરતો, બૂમો પાડવા લાગ્યો. તે બાળકની બૂમો આદિ શબ્દો સાંભળી, સમજી હસ્તિનાપુર નગરના ઘણા નગરપશુ યાવત્‌ વૃષભો ભયભીત થયા, ઉદ્વિગ્ન થયા, સર્વે દિશામાં ભાગી ગયા. ત્યારે તેના માતાપિતાએ આ પ્રમાણે નામ પાડ્યું – અમારો આ બાળક જન્મતા જ મોટા મોટા શબ્દોથી ચીસો પાડવા
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-३ अभग्नसेन

Gujarati 20 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पन्ने–अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु पुरिमताले नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झंमज्झेणं पडि-निक्खमइ जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए

Translated Sutra: ત્યારે તે ગૌતમસ્વામીએ તે પુરુષને જોયો, જોઈને આ આવા પ્રકારે આધ્યાત્મિક, પ્રાર્થિત વિચાર આવ્યો. યાવત્‌ પૂર્વવત્‌ ત્યાંથી નીકળ્યા, એમ કહ્યું – ભગવન્‌ ! હું આપની આજ્ઞા પામી પૂર્વવત્‌ ગૌચરી લેવા નીકળ્યો યાવત્‌ આ પુરુષને આવા કષ્ટમાં જોયો, તો હે ભગવન ! આ પુરુષ પૂર્વભવે કોણ હતો ? આદિ. હે ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જંબૂદ્વીપ
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-३ अभग्नसेन

Gujarati 23 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे एगं महं महइमहालियं कूडागारसालं कारेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं। तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्ज-कलियं अनेगतालाचराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सालाडवीए चोरपल्लीए। तत्थ णं तुब्भे अभग्गसेणं चोरसेनावइं करयल परिग्गहियं

Translated Sutra: ત્યારપછી તે મહાબલરાજાએ અન્ય કોઈ દિવસે પુરિમતાલ નગરમાં એક મોટી મહતિ મહાલિકા કૂટાકારશાળા કરાવી. તે અનેક શત સ્તંભ ઉપર રહેલી, પ્રાસાદીય, દર્શનીય હતી. પછી મહાબલ રાજાએ અન્ય કોઈ દિને પુરિમતાલ નગરે શુલ્ક રહિત યાવત્‌ દશ દિવસનો પ્રમોદ – મહોત્સવની ઘોષણા કરાવી, પછી કૌટુંબિકપુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-४ शकट

Gujarati 24 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहंजणी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। तीसे णं साहंजनीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाने होत्था। तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। तस्स णं महचंदस्स रन्नो सुसेने नामं अमच्चे

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના ત્રીજા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ચોથાનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે સાહંજણી નામે નગરી હતી, તે ઋદ્ધ – નિર્ભય – સમૃદ્ધ હતી. તે સાહંજણીની બહાર ઉત્તર – પૂર્વ દિશિભાગમાં દેવરમણ નામે ઉદ્યાન
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त

Gujarati 28 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववन्ने। से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं। तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव

Translated Sutra: ત્યારપછી તે મહેશ્વરદત્ત પુરોહિત ઉક્ત અશુભકર્મ વડે ઘણા જ પાપકર્મોને ઉપાર્જીને ૩૦૦૦ વર્ષનું પરમ આયુ પાળીને, મૃત્યુ અવસરે મૃત્યુ પામી પાંચમી નરકમાં ઉત્કૃષ્ટ ૧૭ – સાગરોપમ સ્થિતિક નરકમાં ઉત્પન્ન થયો. તે ત્યાંથી અનંતર ઉદ્વર્તીને આ જ કૌશાંબી નગરીમાં સોમદત્ત પુરોહિતની વસુદત્તા પત્નીના પુત્રપણે ઉત્પન્ન થયો
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-६ नंदिसेन्न

Gujarati 29 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी। भंडीरे उज्जाने। सुदरिसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिवद्धने कुमारे–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया। तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था–साम दंड भेय उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त नयविहण्णू। तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના પાચમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો છટ્ઠાનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે મથુરા નામે નગરી હતી. ભંડીર ઉદ્યાન હતું, ત્યાં સુદર્શન યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. ત્યાં શ્રીદામ રાજા, બંધુશ્રી રાણી,
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-७ उदुंबरदत्त

Gujarati 31 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे। तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया। तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया। तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના છટ્ઠાઅધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો સાતમાંનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે પાડલખંડ નગર હતું, ત્યાં વનખંડ નામે ઉદ્યાન હતું, ઉંબરદત્ત યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. તે નગરમાં સિદ્ધાર્થ રાજા હતો.
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-८ शौर्यदत्त

Gujarati 32 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राया। तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था। तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ–अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा। तस्स

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે શૌર્યપુર નગર હતું, શૌર્યાવતંસક ઉદ્યાન હતું, શૌર્ય યક્ષ હતો, શૌર્યદત્ત રાજા હતો તે શૌર્યપુર નગરની બહાર ઈશાનખૂણામાં
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-९ देवदत्त

Gujarati 33 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी– एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। पुढवीवडेंसए उज्जाने। धरणो जक्खो। वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया। तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे। कण्हसिरी भारिया। तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण–पंचिंदियसरीरा। तेणं

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે રોહીતક નામે ઋદ્ધ – સમૃદ્ધ નગર હતું. પૃથ્વીવતંસક ઉદ્યાન હતું, ધરણ યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. વૈશ્રમણ દત્ત રાજા, શ્રી
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१० अंजूश्री

Gujarati 34 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया। तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્‌ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્‌ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – જંબૂ ! નિશ્ચે, તે કાળે, તે સમયે વર્દ્ધમાનપુર નગર હતું. વિજયવર્દ્ધમાન ઉદ્યાન, માણિભદ્ર યક્ષ, વિજયમિત્ર રાજા. ત્યાં ધનદેવ નામે આઢ્ય સાર્થવાહ,
Vipakasutra વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक

अध्ययन-१ सुबाहुकुमार

Gujarati 37 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे । तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे। तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे । तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे। तस्स

Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે સુખવિપાકના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! તેના પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ છે ? ત્યારે સુધર્માસ્વામીએ જંબૂ અણગારને કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તશીર્ષ નામે ઋદ્ધ – સમૃદ્ધ નગર હતું. તે હસ્તશીર્ષ નગરની બહાર ઈશાનકોણમાં પુષ્પકરંડક નામે ઉદ્યાન હતું, તે સર્વઋતુક ફળ – ફૂલ આદિથી યુક્ત
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 62 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेज्जा एगमासं वा दुमासं वा तिमासं वा चउमासं वा पंचमासं वा छम्मासं वा वत्थए। ते अन्नमन्नं संभुंजंति, अन्नमन्नं नो संभुंजंति मासं, तओ पच्छा सव्वे वि एगओ संभुंजंति।

Translated Sutra: कईं पड़िहारी (प्रायश्चित्त सेवन करनेवाले) और कईं अपड़िहारी यानि कि दोष रहित साधु इकट्ठे बसना चाहे तो वैयावच्च आदि की कारण से एक, दो, तीन, चार, पाँच या छह मास साथ रहे तो साथ आहार करे या न करे, उसके बाद एक मास साथ में आहार करे। (वृत्तिगत विशेष) स्पष्टीकरण इस यह है कि जो पड़िहारी की वैयावच्च करते हैं ऐसे अपड़िहारी साथ आहार
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 74 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं।

Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 115 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्क-मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्ठियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: कोई साधु आज्ञा बिना अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवर्ते, चार या पाँच रात्रि के अलावा आज्ञा बिना रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोवे, फिर से प्रतिक्रमण करे, आज्ञा बिना जितने दिन रहे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। साधु के संयम भाव को टिकाए रखने के लिए दूसरी बार स्थविर की आज्ञा माँगकर रहे। उस साधु
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 114 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: ચર્યામાં પ્રવિષ્ટ સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિની અવધિમાં સ્થવિરોને જુએ તો તે સાધુઓને તે જ આલોચના તે જ પ્રતિકમલ અને કલ્પ પર્યન્ત રહેવાને માટે તે અવગ્રહની જ પૂર્વાનુજ્ઞા રહેતી હોય છે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 1 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं।

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આ વ્યવહાર છેદસૂત્રમાં દશ ઉદ્દેશાઓ છે. દશે ઉદ્દેશા મળીને કુલ ૨૮૫ સૂત્રો નોંધાયેલા છે. વ્યવહાર સૂત્રનું ભાષ્ય હાલ ઉપલબ્ધ છે. તેના ઉપર પૂજ્ય મલયગિરિજીની ટીકા રચાયેલી છે. જે બંને અમારા ‘આગમ – સુત્તાણી સટીકં’માં છપાયેલા છે. અમારી ઇચ્છા સંપૂર્ણ અનુવાદની હોવા છતાં, વડીલોમાં સટીક – અનુવાદ પ્રગટ કરવા
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Gujarati 155 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे हत्थकम्मपडिसेवणपत्ते आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं। जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: જ્યાં અનેક સ્ત્રી પુરુષો મોહોદયથી મૈથુન સેવન કરતા હોય, ત્યાં તે જોઈને. કોઈ સાધુ હસ્તકર્મના સંકલ્પથી કોઈ અચિત્ત સ્રોતમાં શુક્રપુદ્‌ગલ કાઢે તો તેમને અનુદ્‌ઘાતિક માસિક પ્રાયશ્ચિત્ત આવે છે. જ્યાં અનેક સ્ત્રી – પુરુષો મૈથુન સેવન કરે છે, ત્યાં જો સાધુ મૈથુન સેવનના સંકલ્પથી કોઈ સચિત્ત સ્રોતમાં શુક્ર પુદ્‌ગલ
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