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Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

12. उत्तम शौच (सन्तोष) Hindi 275 View Detail
Mool Sutra: किं ब्राह्मणा ज्योतिः समारभमाणाः, उदकेन शुद्धिं बाह्यां विमार्गयथ। यां मार्गयथ बाह्यं विशुद्धिं, न तत् स्विष्टं कुशला वदन्ति ।।

Translated Sutra: हे ब्राह्मणो! तुम लोग यज्ञ में अग्नि का आरम्भ तथा जल द्वारा बाह्य शुद्धि की गवेषणा क्यों करते हो? कुशल पुरुष केवल इस बाह्य शुद्धि को अच्छा नहीं समझता।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

12. उत्तम शौच (सन्तोष) Hindi 276 View Detail
Mool Sutra: समसन्तोषजलेन, यः धोवति तीव्रलोभमलपुंजम्। भोजनगृद्धिविहीनः, तस्य शौचं भवेत् विमलम् ।।

Translated Sutra: जो मुनि समताभाव और सन्तोषरूपी जल से तृष्णा और लोभ रूपी मल के पुंज को धोता है, तथा भोजन में गृद्ध नहीं होता, उसके निर्मल शौच धर्म होता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

12. उत्तम शौच (सन्तोष) Hindi 277 View Detail
Mool Sutra: यथा लाभः तथा लोभः, लोभाल्लोभः प्रवर्धते। द्विमाषकृतं कार्यं, कोट्या अपि न निष्ठितम् ।।

Translated Sutra: ज्यों-ज्यों लाभ बढ़ता है त्यों-त्यों लोभ भी बढ़ता है। देखो! जिस कपिल ब्राह्मण को पहले केवल दो माशा स्वर्ण की इच्छा थी, राजा का आश्वासन पाकर वह लोभ बाद में करोड़ों माशा से भी पूरा न हो सका।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

14. उत्तम आकिंचन्य (कस्य स्विद्धनम्) Hindi 285 View Detail
Mool Sutra: सुखं वसामो जीवामः, येषां नो नास्ति किंचन। मिथिलायां दह्यमानायां, न मे दह्यते किंचन ।।

Translated Sutra: मैं सुखपूर्वक रहता हूँ और सुखपूर्वक जीता हूँ। मिथिला नगरी में मेरा कुछ भी नहीं है। इसलिए इन महलों के जलने पर भी मेरा कुछ नहीं जलता है। (राजा जनक का यह भाव ही आकिंचन्य धर्म है।)
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

1. लोक सूत्र Hindi 287 View Detail
Mool Sutra: धर्मः अधर्मः आकाशः, कालः पुद्गलाः जन्तवः। एष लोक इति प्रज्ञप्तो, जिनैर्वरदर्शिभिः ।।

Translated Sutra: धर्म, अधर्म आकाश, काल, अनन्त पुद्गल और अनन्त जीव, ये छह प्रकार के स्वतः सिद्ध द्रव्य हैं। उत्तम दृष्टि सम्पन्न जिनेन्द्र भगवान ने इनके समुदाय को ही लोक कहा है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

3. पुद्गल द्रव्य (तन्मात्रा महाभूत) Hindi 294 View Detail
Mool Sutra: भेदसंघाताभ्यां च पूर्यन्ते गलन्ते चेति पूरणगलना- त्मिकां क्रियामन्तर्भाव्य पुद्गलशब्दोऽन्वर्थः ।।

Translated Sutra: परस्पर में मिलकर स्कन्धों या भूतों को उत्पन्न करते हैं
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

3. पुद्गल द्रव्य (तन्मात्रा महाभूत) Hindi 295 View Detail
Mool Sutra: स्कन्धाश्य स्कन्धदेशाश्च, तत्प्रदेशास्तथैव च। परमाणवश्च बोद्धव्याः, रूपिणश्च चतुर्विधः ।।

Translated Sutra: रूपी द्रव्य अर्थात् पुद्गल चार प्रकार का है - स्कन्ध, स्कन्धदेश, प्रदेश व परमाणु।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

4. आकाश द्रव्य Hindi 301 View Detail
Mool Sutra: चेतनरहितममूर्त्तंमवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्। लोकालोकद्विभेदं, तन्नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम् ।।

Translated Sutra: आकाश द्रव्य अचेतन है, अमूर्तीक है, सर्वगत अर्थात् विभु है। सर्व द्रव्यों को अवगाह या अवकाश देना इसका लक्षण है। वह दो भागों में विभक्त है - लोकाकाश और अलोकाकाश।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

4. आकाश द्रव्य Hindi 302 View Detail
Mool Sutra: धर्माधर्मौ कालः, पुद्गलजीवाः च सन्ति यावतिके। आकाशे सः लोकः, ततः परतः अलोकः उक्तः ।।

Translated Sutra: (यद्यपि आकाश विभु है, परन्तु षट्द्रव्यमयी यह अखिल सृष्टि उसके मध्यवर्ती मात्र अति तुच्छ क्षेत्र में स्थित है) धर्म अधर्म काल पुद्गल व जीव ये पाँच द्रव्य उस आकाश के जितने भाग में अवस्थित हैं, वह `लोक' है और शेष अनन्त आकाश `अलोक' कहलाता है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

5. धर्म तथा अधर्म द्रव्य Hindi 303 View Detail
Mool Sutra: उदकं यथा मत्स्यानां, गमनानुग्रहकरं भवति लोके। तथा जीवपुद्गलानां, धर्मं द्रव्यं विजानीहि ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार मछली के लिए जल उदासीन रूप से सहकारी है, उसी प्रकार जीव तथा पुद्गल दोनों द्रव्यों को धर्म द्रव्य गमन में उदासीन रूप से सहकारी है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

5. धर्म तथा अधर्म द्रव्य Hindi 304 View Detail
Mool Sutra: यथा भवति धर्मद्रव्यं तथा तज्जानीहि द्रव्यमधर्माख्यं। स्थितिक्रियायुक्तानां, कारणभुतं तु पृथिवीव ।।

Translated Sutra: धर्म द्रव्य की ही भाँति अधर्म द्रव्य को भी जानना चाहिए। क्रियायुक्त जीव व पुद्गल के ठहरने में यह उनके लिए उदासीन रूप से सहकारी होता है, जिस प्रकार स्वयं ठहरने में समर्थ होते हुए भी हम पृथिवी का आधार लिये बिना इस आकाश में कहीं ठहर नहीं सकते।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

6. काल द्रव्य Hindi 307 View Detail
Mool Sutra: सद्भावस्वभावानां, जीवानां तथा च पुद्गलानां च। परिवर्तनसम्भूतः, कालो नियमेन प्रज्ञप्तः ।।

Translated Sutra: सत्तास्वभावी जीव व पुद्गलों की वर्तना व परिवर्तना में जो धर्म-द्रव्य की भाँति ही उदासीन निमित्त है, उसे ही निश्चय से काल द्रव्य कहा गया है।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

1. तत्त्व-निर्देश Hindi 310 View Detail
Mool Sutra: जीवाजीवाश्च बन्धश्च, पुण्यं पापाऽऽस्रवस्तथा। संवरो निर्जरा मोक्षः, सन्त्येते तथ्या नव ।।

Translated Sutra: तत्त्व नौ हैं-जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव संवर, निर्जरा व मोक्ष। (आगे क्रमशः इनका कथन किया गया है।)
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

4. संवर तत्त्व (कर्म-निरोध) Hindi 321 View Detail
Mool Sutra: पंचसमितित्रिगुप्तः, अकषायो जितेन्द्रियः। अगौरवश्च निश्शल्यः, जीवो भवत्यनास्रवः ।।

Translated Sutra: पाँच समिति, तीन गुप्ति, कषायनिग्रह, इन्द्रिय-जय, निर्भयता, निश्शल्यता इत्यादि संवर के अंग हैं, क्योंकि इनसे जीव अनास्रव हो जाता है।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) Hindi 334 View Detail
Mool Sutra: यथा महातडागस्य सन्निरुद्धे जलागमे। उत्सिंचनेन, क्रमेण शोषणा भवेत् ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार किसी बड़े भारी तालाब में जलागमन के द्वार को रोक कर उसका जल निकाल देने पर वह सूर्य ताप से शीघ्र ही सूख जाता है। उसी प्रकार संयमी साधु पाप-कर्मों के द्वार को अर्थात् राग-द्वेष को रोक कर तपस्या के द्वारा करोड़ों भवों के संचित कर्मों को नष्ट कर देता है। -[अज्ञानी जितने कर्म करोड़ों भवों में खपाता है, ज्ञानी
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) Hindi 335 View Detail
Mool Sutra: एवं तु संयतस्यापि, पापकर्म निरास्रवे। भवकोटिसंचितं कर्मं, तपसा निर्जीयते ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३३४; संदर्भ ३३४-३३५
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 354 View Detail
Mool Sutra: त्यक्त्वा द्विपदं च चतुष्पदं च, क्षेत्रं गृहं धन-धान्यं च सर्वम्। कर्मात्मद्वितीयः अवशः प्रयाति, परं भवं सुन्दरं पावकं वा ।।

Translated Sutra: सुन्दर या असुन्दर जन्म धारण करते समय, अपने पूर्व-संचित कर्मों को साथ लेकर, प्राणी अकेला ही प्रयाण करता है। अपने सुख के लिए बड़े परिश्रम से पाले गये दास दासी तथा गाय घोड़ा आदि सब यहीं छूट जाते हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 362 View Detail
Mool Sutra: गुणानामाश्रयो द्रव्यं, एकद्रव्याश्रिताः गुणाः। लक्षणं पर्यायाणां तु, उभयोराश्रिता भवन्ति ।।

Translated Sutra: द्रव्य गुणों का आश्रय होता है। प्रत्येक द्रव्य के आश्रित अनेक गुण रहते हैं, जैसे कि एक आम्रफल में रूप रसादि अनेक गुण पाये जाते हैं। (द्रव्य से पृथक् गुण पाये नहीं जाते हैं।) पर्यायों का लक्षण उभयाश्रित है।
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18. आम्नाय अधिकार

2. देश-कालानुसार जैनधर्म में परिवर्तन Hindi 412 View Detail
Mool Sutra: एककार्यप्रपन्नयोः, विशेषे किन्नु कारणम्। धर्मे द्विविधे मेधाविन्! कथं विप्रत्ययो न ते ।।

Translated Sutra: (भगवान् महावीर ने पंचव्रतों का उपदेश किया और उनके पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्व ने चार व्रतों का। इस विषय में केशी ऋषि गौतम गणधर से शंका करते हैं, कि) हे मेधाविन्! एक ही कार्य में प्रवृत्त होने वाले दो तीर्थंकरों के धर्मों में यह विशेष भेद होने का कारण क्या है? तथा धर्म के दो भेद हो जाने पर भी आपको संशय क्यों नहीं होता
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18. आम्नाय अधिकार

2. देश-कालानुसार जैनधर्म में परिवर्तन Hindi 413 View Detail
Mool Sutra: पूर्वेषां दुर्विशोध्यस्तु, चरमाणां दुरनुपालकः। कल्प्यो मध्यमगानां तु, सुविशोध्यः सुपालकः ।।

Translated Sutra: यहाँ गौतम उत्तर देते हैं कि प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ में युग का आदि होने के कारण व्यक्तियों की प्रकृति सरल परन्तु बुद्धि जड़ होती है, इसलिए उन्हें धर्म समझाना कठिन पड़ता है। चरम तीर्थ में प्रकृति वक्र हो जाने के कारण धर्म को समझ कर भी उसका पालन कठिन होता है। मध्यवर्ती तीर्थों में समझना व पालना दोनों सरल होते ह
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18. आम्नाय अधिकार

2. देश-कालानुसार जैनधर्म में परिवर्तन Hindi 414 View Detail
Mool Sutra: चातुर्यामश्च यो धर्मः, योऽयं पंचशिक्षितः। देशितो वर्द्धमानेन, पार्श्वेन च महामुनिना ।।

Translated Sutra: यही कारण है कि भगवान् पार्श्व के आम्नाय में जो चातुर्याम मार्ग प्रचलित था, उसी को भगवान् महावीर ने पंचशिक्षा रूप कर दिया।
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 419 View Detail
Mool Sutra: अचेलस्य यो धर्मः, योऽयं सान्तरोत्तरः। देशितो वर्द्धमानेन, पार्श्वेण च महायशसा ।।

Translated Sutra: हे गौतम! यद्यपि भगवान् महावीर ने तो अचेलक धर्म का ही उपदेश दिया है, परन्तु उनके पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्व का मार्ग सचेल भी है।
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 421 View Detail
Mool Sutra: प्रतीत्यार्थं च लोकस्य, नानाविधविकल्पनम्। यात्रार्थं ग्रहणार्थं च, लोके लिंगप्रयोजनम् ।।

Translated Sutra: इतना होने पर भी लोक-प्रतीति के अर्थ, हेमन्त व वर्षा आदि ऋतुओं में सुविधापूर्वक संयम का निर्वाह करने के लिए, तथा सम्यक्त्व व ज्ञानादि को ग्रहण व धारण करने के लिए लोक में बाह्य लिंग का भी अपना स्थान अवश्य है।
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 422 View Detail
Mool Sutra: स्त्रीपुरुषसिद्धाश्च, तथैव च नपुंसकाः। स्वलिंगाः अन्यलिंगाश्च, गृहिलिंगास्तथैव च ।।

Translated Sutra: (सभी लिंगों से मोक्ष प्राप्त हो सकता है, क्योंकि सिद्ध कई प्रकार के कहे गये हैं) यथा-स्त्रीलिंग से मुक्त होने वाले सिद्ध, पुरुषलिंग से मुक्त होने वाले सिद्ध, नपुंसक-लिंग से मुक्त होनेवाले सिद्ध, जिन-लिंग से मुक्त होनेवाले सिद्ध, आजीवक आदि अन्य लिंगों से मुक्त होने वाले सिद्ध, और गृहस्थलिंग से मुक्त होने वाले
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 425 View Detail
Mool Sutra: य एतान् वर्जयेद्दोषान्, धर्मोपकरणादृते। तस्य त्वग्रहणं युक्तं, यः स्याज्जिन इव प्रभुः ।।

Translated Sutra: जो साधु आचार विषयक दोषों को जिनेन्द्र भगवान् की भाँति बिना उपकरणों के ही टालने को समर्थ हैं, उनके लिए इनका न ग्रहण करना ही युक्त है (परन्तु जो ऐसा करने में समर्थ नहीं हैं वे अपनी सामर्थ्य व शक्ति के अनुसार हीनाधिक वस्त्र पात्र आदि उपकरण ग्रहण करते हैं।)
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 121 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए

Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्‌भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 122 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अभिजिए णं मए नियगबल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमेणं चुल्ल-हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ,

Translated Sutra: राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था। एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ – मैंने अपना बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है। इसलिए अब उचित है, मैं विराट्‌ राज्याभिषेक – समारोह आयोजित करवाऊं, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन राजा भरत, स्नान कर बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 215 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या – आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत्‌ अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव – देवियों से संपरिवृत्त, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्य – ध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 227 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने। से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं,

Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 240 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामानियसाहस्सीहिं, तायत्तीसाए तावत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चत्तालीसाए आयरक्खदेव-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारि-पडिपुण्णेहिं चंदनकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टि-याहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं महया-महया तित्थयराभिसेएणं

Translated Sutra: देवेन्द्र अच्युत अपने १०००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति – देवों तथा ४०००० अंगरक्षक देवों से परिवृत्त होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित गलवे में मोली बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 83 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसुं पि ॥

Translated Sutra: प्राणातिपात, पंचेन्द्रिय का घात, अरुचि या गर्व से मैथुनसेवन, उत्कृष्ट से मृषावाद – अदत्तादान या परिग्रह का सेवन करे इस तरह बार – बार करनेवाले को मूल प्रायश्चित्त।
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 84 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु । दंसण-चरित्तवंते चियत्त-किच्चे य सेहे य ॥

Translated Sutra: तप गर्विष्ठ, तप सेवन में असमर्थ, तप की अश्रद्धा करते, मूल – उत्तर गुण में दोष लगानेवाले या भंजक, दर्शन और चारित्र से पतीत दर्शन आदि कर्तव्य को छोड़नेवाला, ऐसा शैक्ष को भी (शैक्ष आदि सर्व को) मूल प्रायश्चित्त आता है।
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 85 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-दुगे य मूलकम्मे य । भिक्खुम्मि य विहिय-तवे ऽनवट्ठ-पारंचियं पत्ते ॥

Translated Sutra: अति अवसन्न, गृहस्थ या अन्यतीर्थिक के भेद को हिंसा आदि कारण से सेवन करनेवाला, स्त्री गर्भ का आदान या विनाश करनेवाला ऐसा साधु – उसे तप बताया गया है ऐसा तप – छेद या मूल, अनवस्थाप्य या पारंचित प्रायश्चित्त उसे अतिक्रमे तो पर्याय छेद, अनवस्थाप्य, पारंचित तप पूरा होने पर उसे मूल प्रायश्चित्त में स्थापना करना। मूल
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 86 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छेएण उ परियाए ऽनवट्ठ-पारंचियावसाणे य । मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८५
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 83 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसुं पि ॥

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત અનુવાદ: પ્રાણાતિપાત પંચેન્દ્રિયનો ઘાત, અરૂચિ અથવા ગર્વથી મૈથુન સેવન, ઉત્કૃષ્ટથી મૃષાવાદ, અદત્તાદાન કે પરિગ્રહ સેવન, એકવાર કે વારંવાર કરનારને મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત.
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 84 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु । दंसण-चरित्तवंते चियत्त-किच्चे य सेहे य ॥

Translated Sutra: તપગર્વિષ્ઠ હોય, તપ સેવનમાં અસમર્થ હોય અથવા તપની અશ્રદ્ધા કરનારા એવા હોય મુળગુણ અને ઉત્તરગુણમાં દોષ લગાડનારા કે મૂળગુણ અને ઉત્તરગુણના ભંજક હોય, દર્શન અને ચારિત્રથી પતીત હોય કે, દર્શન આદિ કર્તવ્યને છોડનારો એવો હોય, એવા શૈક્ષ આદિ સર્વેને મૂળ પ્રાયશ્ચિત્ત આવે.
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 85 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-दुगे य मूलकम्मे य । भिक्खुम्मि य विहिय-तवे ऽनवट्ठ-पारंचियं पत्ते ॥

Translated Sutra: બે ગાથાનો સંયુક્ત અર્થ બતાવેલ છે અત્યંત અવસન્ન, ગૃહસ્થ કે અન્યતીર્થિકના વેશને, હિંસા આદિ કારણથી સેવતો સ્ત્રી ગર્ભનું આદાન કે વિનાશ કરતો એવો સાધુ તેને જે તપ કહેવાયેલું હોય તેવું કોઈ પણ પ્રાયશ્ચિત્ત જે તપ પ્રાયશ્ચિત્ત હોય, છેદ અથવા મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત હોય, અનવસ્થાપ્ય કે પારાંચિત પ્રાયશ્ચિત્ત હોય. એમાંના કોઈપણ
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 86 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छेएण उ परियाए ऽनवट्ठ-पारंचियावसाणे य । मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૫
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

मनुष्य उद्देशक Hindi 145 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति... ...एगोरुयदीवे णं दीवे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 173 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पन्नत्ता? गोयमा! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया नाम रायहाणी पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पन्नत्ता। सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे सक्कोसाइं छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं तिन्नि सद्धकोसाइं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! विजयदेव की विजया नामक राजधानी कहाँ है ? गौतम ! विजयद्वार के पूर्व में तीरछे असंख्य द्वीप – समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जंबूद्वीप में बारह हजार योजन जाने पर है जो बारह हजार योजन की लम्बी – चौड़ी है तथा सैंतीस हजार नौ सौ अड़तालीस योजन से कुछ अधिक परिधि है। वह विजया राजधानी चारों ओर से एक प्राकार से
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 165 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ

Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं,
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 168 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता। ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा

Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो प्रकण्ठक हैं। ये चार योजन के लम्बे – चौड़े और दो योजन की मोटाईवाले हैं। ये सर्व वज्ररत्न के हैं, स्वच्छ हैं यावत्‌ प्रतिरूप हैं। इन के ऊपर अलग – अलग प्रासादा – वतंसक हैं। ये प्रासादावतंसक चार योजन के ऊंचे और दो योजन के लम्बे – चौड़े हैं। चारों तरफ से नीकलती हुई
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

ज्योतिष्क उद्देशक Hindi 315 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 332 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता। सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि। लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा। अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं। सोहम्मीसानेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 173 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पन्नत्ता? गोयमा! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया नाम रायहाणी पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पन्नत्ता। सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे सक्कोसाइं छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं तिन्नि सद्धकोसाइं

Translated Sutra: વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની ક્યાં કહી છે ? ગૌતમ ! વિજયદ્વારના પૂર્વમાં તિર્છા અસંખ્ય દ્વીપ – સમુદ્ર ઓળંગ્યા પછી અન્ય જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ૧૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની છે. તે ૧૨,૦૦૦ યોજન લાંબી – પહોળી અને ૪૭,૯૪૮ યોજનથી કંઈક વિશેષાધિક પરિધિ કહી છે. તે એક પ્રાકાર વડે ઘેરાયેલ છે. તે પ્રાકાર
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

ज्योतिष्क उद्देशक Gujarati 315 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! ચંદ્રવિમાનને કેટલા હજાર દેવ વહન કરે છે ? ગૌતમ ! ચંદ્રવિમાનને કુલ ૧૬,૦૦૦ દેવ વહન કરે છે. તેમાં પૂર્વના ૪૦૦૦ દેવો સિંહરૂપ ધારણ કરી ઉઠાવે છે. તે સિંહ શ્વેત, સુભગ, સુપ્રભ, શંખતલ સમાન વિમલ, નિર્મલ, ઘન દહીં, ગાયનું દૂધ, ફીણ, ચાંદીના સમૂહ સમાન શ્વેત પ્રભાવાળો છે. તેની આંખ મધની ગોળી સમાન પીળી છે, મુખમાં સ્થિત સુંદર
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 132 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ने गेण्हं, सिमिणंते वि न पत्थं मनसा वि मेहुणं। परिग्गहं न काहामि मुलुत्तर-गुण-खलणं तहा॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १३०
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1514 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तीए मयहरीए तेहिं से तंदुलमल्लगे पयच्छिए किं वा णं सा वि य मयहरी तत्थेव तेसिं समं असेस कम्मक्खयं काऊणं परिणिव्वुडा हवेज्ज त्ति। गोयमा तीए मयहरिए तस्स णं तंदुल मल्लगस्सट्ठाए तीए माहणीए धूय त्ति काऊणं गच्छमाणी अवंतराले चेव अवहरिया सा सुज्जसिरी, जहा णं मज्झं गोरसं परिभोत्तूणं कहिं गच्छसि संपयं त्ति। आह वच्चामो गोउलं। अन्नं च–जइ तुमं मज्झं विनीया हवेज्जा, ता अहयं तुज्झं जहिच्छाए ते कालियं बहु गुल घएणं अणुदियहं पायसं पयच्छिहामि। जाव णं एयं भणिया ताव णं गया सा सुज्जसिरि तीए मयहरीए सद्धिं ति। तेहिं पि परलोगाणुट्ठाणेक्क सुहज्झवसायाखित्तमाणसेहिं न

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो महियारी – गोकुलपति बीबी को उन्होंने डांग से भरा भाजन दिया कि न दिया ? या तो वो महियारी उन के साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाई थी ? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढ़ने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समझकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया। फिर मधु, दूध खाकर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 531 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं जहा–मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क-कंचणगए परमरम्मे। नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए॥

Translated Sutra: लाख योजन प्रमाण मेरु पर्वत जैसे ऊंचे, मणिसमुद्र से शोभायमान, सुवर्णमय, परम मनोहर, नयन और मन को आनन्द देनेवाला, अति विज्ञानपूर्ण, अति मजबूत, दिखाई न दे उस तरह जुड़ दिया हो ऐसा, अति घिसकर मुलायम बनाया हुआ, जिसके हिस्से अच्छी तरह से बाँटे गए हैं ऐसा कईं शिखरयुक्त, कईं घंट और ध्वजा सहित, श्रेष्ठ तोरण युक्त कदम – कदम पर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 595 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एवं स सुत्तत्थोभयत्तगं चिइ-वंदणा-विहाणं अहिज्जेत्ता णं तओ सुपसत्थे सोहणे तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससी-बले। (२) जहा सत्तीए जग-गुरूणं संपाइय-पूओवयारेणं पडिलाहियसाहुवग्गेण य, भत्तिब्भर-निब्भरेणं, रोमंच-कंचुपुलइज्जमाणतणू सहरिसविसट्ट वयणारविंदेणं, सद्धा-संवेग-विवेग-परम-वेरग्ग-मूलं विणिहय-घनराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मल-कलंकेण (३) सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-सुभ-सुभयरऽनुसमय-समुल्लसंत-सुपसत्थज्झवसायगएणं, भुवण-गुरु-जियणंद पडिमा विणिवेसिय-नयन-मानसेणं अनन्नं-माणसेगग्ग-चित्तयाए य। (४) धन्नो हं पुन्नो हं ति जिन-वंदणाइ-सहलीकयजम्मो त्ति इइ मन्नमानेणं, विरइय-कर-कमलंजलिणा,

Translated Sutra: इस प्रकार सूत्र, अर्थ और उभय सहित चैत्यवंदन आदि विधान पढ़कर उसके बाद शुभ तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र योग, लग्न और चन्द्रबल का योग हुआ हो उस समय यथाशक्ति जगद्‌गुरु तीर्थंकर भगवंत को पूजने लायक उपकरण इकट्ठे करके साधु भगवंत को प्रतिलाभी का भक्ति पूर्ण हृदयवाला रोमांचित बनकर पुलकित हुए शरीरवाला, हर्षित हुए मुखारविंदवाला,
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