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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1134 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परियट्टणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
परियट्टणाए णं वंजणाइं जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ। Translated Sutra: भन्ते ! परावर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? परावर्तना से व्यंजन स्थिर होता है। और जीव पदानुसारिता आदि व्यंजन – लब्धि को प्राप्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1135 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनुप्पेहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
अनुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धनियबंधनबद्धाओ सिढिलबंधनबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयाओ पकरेइ, तिव्वानुभावाओ मंदानुभावाओ पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ। असाया-वेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीइवयइ। Translated Sutra: भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से जीव आयुष् कर्म छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है। उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है। उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है। बहुकर्म प्रदेशों को अल्प – प्रदेशों में परिवर्तित करता है। आयुष् | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1136 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मकहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ। धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ। पवयणभावे णं जीवे आगमिसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबंधइ। Translated Sutra: भन्ते ! धर्मकथा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? धर्मकथा से जीव कर्मों की निर्जरा करता है और प्रवचन की प्रभावना करता है। प्रवचन की प्रभावना करनेवाला जीव भविष्य में शुभ फल देने वाले कर्मों का बन्ध करता है | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1137 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयस्स आराहणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
सुयस्स आराहणयाए णं अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ। Translated Sutra: भन्ते ! श्रुत की आराधना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रुत की आराधना से जीव अज्ञान का क्षय करता है और क्लेश को प्राप्त नहीं होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1138 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगग्गमणसन्निवेसणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
एगग्गमणसन्निवेसणयाए णं चित्तनिरोहं करेइ। Translated Sutra: भन्ते ! मन को एकाग्रता में संनिवेशन करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन को एकाग्रता में स्थापित करने से चित्त का निरोध होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1139 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संजमेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ। Translated Sutra: भन्ते ! संयम से जीव को क्या प्राप्त होता है ? संयम से आश्रव के निरोध को प्राप्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1140 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तवेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
तवेणं वोदाणं जणयइ। Translated Sutra: भन्ते ! तप से जीव को क्या प्राप्त होता है ? तप से जीव पूर्व संचित कर्मों का क्षय करके व्यवदान को प्राप्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1141 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वोदाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
वोदाणेणं अकिरियं जणयइ। अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? व्यवदान से जीव को अक्रिया प्राप्त होती है। अक्रिय होने से वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1142 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहसाएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
सुहसाएणं अनुस्सुयत्तं जणयइ। अनुस्सुयाए णं जीवे अनुकंपए अनुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्मं खवेइ। Translated Sutra: भन्ते ! वैषयिक सुखों की स्पृहा के निवारण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सुख – शात से विषयों के प्रति अनुत्सुकता होती है। अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पा करने वाला, अनुद्भट, शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1143 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पडिबद्धयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ। निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ। Translated Sutra: भन्ते ! अप्रतिबद्धता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? अप्रतिबद्धता से जीव निस्संग होता है। निस्संग होने से जीव एकाकी होता है, एकाग्रचित्त होता है। दिन – रात सदा सर्वत्र विरक्त और अप्रतिबद्ध होकर विचरण करता है | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1144 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] विवित्तसयणासणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
विवित्तसयणासणयाए णं चरित्तगुत्तिं जणयइ। चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगंतरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! विविक्त शयनासन से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विविक्त शयनासन से जीव चारित्र की रक्षा करता है। चारित्र की रक्षा करने वाला विविक्ताहारी दृढ चारित्री, एकान्तप्रिय, मोक्ष भाव से संपन्न जीव आठ प्रकार के कर्मों की ग्रन्थि का निर्जरण करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1145 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] विनियट्टणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
विनियट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुट्ठेइ, पुव्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंतं संसारकंतारं वीइवयइ। Translated Sutra: भन्ते ! विनिवर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विनिवर्तना से – मन और इन्द्रियों को विषयों से अलग रखने की साधना से जीव पाप कर्म न करने के लिए उद्यत रहता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा से कर्मों को निवृत्त करता है। चार अन्तवाले संसार कान्तार को शीघ्र ही पार कर जाता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1146 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संभोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
संभोगपच्चक्खाणेणं आलंबणाइं खवेइ। निरालंबणस्स य आययट्ठिया जोगा भवंति। सएणं लाभेण संतुस्सइ, परलाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ। परलाभं अना-सायमाणे अतक्केमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अनभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। Translated Sutra: भन्ते ! सम्भोग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सम्भोग (एक – दूसरे के साथ सहभोजन आदि के संपर्क) के प्रत्याख्यान से परावलम्बन से निरालम्ब होता है। निरालम्ब होने से उसके सारे प्रयत्न आयतार्थ हो जाते हैं। स्वयं के उपार्जित लाभ से सन्तुष्ट होता है। दूसरों के लाभ का आस्वादन नहीं करता है। उसकी कल्पना, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1147 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवहिपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमंथं जणयइ। निरुवहिए णं जीवे निक्कंखे उवहिमंतरेण य न संकिलिस्सई। Translated Sutra: भन्ते ! उपधि के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उपधि प्रत्याख्यान से जीव निर्विघ्न स्वाध्याय को प्राप्त होता है। उपधिरहित जीव आकांक्षा से मुक्त होकर उपधि के अभाव में क्लेश को प्राप्त नहीं होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1148 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आहारपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
आहारपच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिंदइ, वोच्छिंदित्ता जीवे आहारमंतरेणं न संकिलिस्सइ। Translated Sutra: भन्ते ! आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवन की आशंसा के प्रयत्नों को विच्छिन्न कर देता है। जीवन की कामना के प्रयत्नों को छोड़कर वह आहार के अभाव में भी क्लेश को प्राप्त नहीं होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1149 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कसायपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ। वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! कषाय के प्रत्याख्यान – से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कषाय के प्रत्याख्यान से वीतरागभाव को प्राप्त होता है। वीतरागभाव को प्राप्त जीव सुख – दुःख में सम हो जाता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1150 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जोगपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ पुव्वबद्धं निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! योग – प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन, वचन, काय से सम्बन्धित योग – प्रत्याख्यान से अयोगत्व को प्राप्त होता है। अयोगी जीव नए कर्मों का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1151 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सरीरपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
सरीरपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तणं निव्वत्तेइ। सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्ग-मुवगए परमसुही भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! शरीर प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के विशिष्ट गुणों को प्राप्त होता है। सिद्धों के विशिष्ट गुणों से सम्पन्न जीव लोकाग्र में पहुँचकर परम सुख को प्राप्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1152 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सहायपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ। एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्पज्झंज्झे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ। Translated Sutra: भन्ते! सहाय – प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सहाय – प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त होता है। एकीभाव प्राप्त साधक एकाग्रता भावना करता हुआ विग्रहकारी शब्द, वाक्कलह झगड़ा – टंटा, क्रोधादि कषाय तथा तू, तू, मैं, मैं आदि से मुक्त रहता है। संयम और संवर में व्यापकता प्राप्त कर समाधिसम्पन्न होता | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1153 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भत्तपच्चक्खाणेणं अनेगाइं भवसयाइं निरुंभइ। Translated Sutra: भन्ते ! भक्त प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भक्त – प्रत्याख्यान से जीव अनेक प्रकार के सैकड़ों भवों का, जन्म – मरणों का निरोध करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1154 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सब्भावपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
सब्भावच्चक्खाणेणं अनियट्टिं जणयइ। अनियट्टिपडिवन्ने य अनगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तं जहा–वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: भन्ते ! सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव अनिवृत्ति को प्राप्त होता है। अनिवृत्ति को प्राप्त अनगार केवली के शेष रहे हुए वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र – इन चार भवोपग्राही कर्मों का क्षय करता है। वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1155 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिरूवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ। लहुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइंदिए विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! प्रतिरूपता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिरूपता से – जिनकल्प जैसे आचार के पालन से जीव उपकरणों की लघुता को प्राप्त होता है। लघुभूत होकर जीव अप्रमत्त, प्रकट लिंगवाला, प्रशस्त लिंगवाला, विशुद्ध सम्यक्त्व से सम्पन्न, सत्त्व और समिति से परिपूर्ण, सर्व प्राण, भूत जीव और सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1156 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वेयावच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबंधइ। Translated Sutra: भन्ते ! वैयावृत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वैयावृत्य से जीव तीर्थंकर नाम – गोत्र को उपार्जता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1157 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वगुणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणयइ। अपुणरावत्तिं पत्तए य णं जीवे सारीरमानसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! सर्वगुणसंपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सर्वगुणसंपन्नता से जीव अपुनरावृत्ति को प्राप्त होता है। वह जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी नहीं होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1158 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वीयरागयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
वीयरागयाए णं नेहानुबंधनानि तण्हानुबंधनानि य वोच्छिंदइ मनुस्सेसु सद्दफरिसरसरूवगंधेसु चेव विरज्जइ। Translated Sutra: भन्ते ! वीतरागता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वीतरागता से जीव स्नेह और तृष्णा के अनुबन्धनों का विच्छेद करता है। मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध से विरक्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1159 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] खंतीए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
खंतीए णं परीसहे जिणइ। Translated Sutra: भन्ते ! क्षान्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्षान्ति से जीव परीषहों पर विजय प्राप्त करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1160 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मुत्तीए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ। अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! मुक्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मुक्ति से जीव अकिंचनता को प्राप्त होता है। अकिंचन जीव अर्थ के लोभी जनों से अप्रार्थनीय हो जाता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1161 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
अज्जवयाए णं काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ। अविसंवायण-संपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! ऋजुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ऋजुता से जीव काय, भाव, भाषा की सरलता और अविसंवाद को प्राप्त होता है। अविसंवाद – सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1162 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मद्दवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
मद्दवयाए णं अनुस्सियत्तं जणयइ। अनुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाइं निट्ठवेइ। Translated Sutra: भन्ते ! मृदुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को प्राप्त होता है। अनुद्धत जीव मृदु – मार्दवभाव से सम्पन्न होता है। आठ मद – स्थानों को विनष्ट करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1163 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भावसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावसच्चेणं भावविसोहिं जणयइ। भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठेइ, अरहंतपन्नतस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठित्ता परलोगधम्मस्स आराहए हवइ। Translated Sutra: भन्ते ! भाव – सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भाव – सत्य से जीव भाव – विशुद्धि को प्राप्त होता है। भाव – विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होता है। अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होकर परलोक में भी धर्म का आराधक होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1164 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] करणसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
करणसच्चेणं करणसत्तिं जणयइ। करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ। Translated Sutra: भन्ते ! करण सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? करण सत्य से जीव करणशक्ति को प्राप्त होता है। करणसत्य में वर्तमान जीव ‘यथावादी तथाकारी’ होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1175 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरित्तसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ। सेलेसिं पडिवन्ने य अनगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: भन्ते ! चारित्र – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चारित्र – सम्पन्नता से जीव शैलेशीभाव को प्राप्त होता है। शैलेशी भाव को प्राप्त अनगार चार केवलि – सत्क कर्मों का क्षय करता है। तत्पश्चात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1176 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सोइंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
सोइंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर शब्दनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1177 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चक्खिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
चक्खिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइय कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! चक्षुष् – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चक्षुष् – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर रूपनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1178 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] घाणिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
घाणिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु गंधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! घ्राण – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? घ्राण – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर गन्धनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1179 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जिब्भिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
जिब्भिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! जिह्वा – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? जिह्वा – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। फिर रसनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1180 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] फासिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
फासिंदियनिग्गहेणं मणुन्नामनुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! स्पर्शन – इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्पर्शन – इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में होने वाले राग – द्वेष का निग्रह करता है। फिर स्पर्श – निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1181 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कोहविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
कोहविजएणं खंतिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! क्रोध – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्रोध – विजय से जीव क्षान्ति को प्राप्त होता है। क्रोध – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्व – बद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1182 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मानविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
मानविजएणं मद्दवं जणयइ, मानवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! मान – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मान – विजय से जीव मृदुता को प्राप्त होता है। मान – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1183 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मायाविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! माया – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मायाविजय से ऋजुता को प्राप्त होता है। माया – वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1184 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] लोभविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
लोभविजएणं संतोसीभावं जनयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। Translated Sutra: भन्ते ! लोभ – विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? लोभ – विजय से जीव सन्तोष – भाव को प्राप्त होता है। लोभ – वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1185 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
पेज्जदोसमिच्छादंसणविजएणं नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अब्भुट्ठेइ। अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुव्विं अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्जं पंचविहं अंतरायं एए तिन्नि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ।
तओ पच्छा अनुत्तरं अनंतं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ। जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बंधइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं।
तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं तइयसमए निज्जिण्णं तं बद्धं पुट्ठं उदीरियं Translated Sutra: भन्ते ! राग, द्वेष और मिथ्यादर्शन के विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? राग, द्वेष और मिथ्या – दर्शन के विजय से जीव ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए उद्यत होता है। आठ प्रकार की कर्म – ग्रन्थि को खोलने के लिए सर्व प्रथम मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों का क्रमशः क्षय करता है। अनन्तर ज्ञानावरणीय कर्म | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1186 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कज्झाणं ज्झायमाणे तप्पढमयाए मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता आनापाननिरोहं करेइ, करेत्ता ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारद्धाए य णं अनगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कज्झाणं ज्झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ। Translated Sutra: केवल ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् शेष आयु को भोगता हुआ, जब अन्तर्मुहूर्त्तपरिणाम आयु शेष रहती है, तब वह योग निरोध में प्रवृत्त होता है। तब ‘सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति’ नामक शुक्ल – ध्यान को ध्याता हुआ प्रथम मनोयोग का निरोध करता है, अनन्तर वचनयोग का निरोध करता है, उसके पश्चात् आनापान का निरोध करता है। श्वासोच्छ्वास | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1187 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ ओरालियकम्माइं च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्व-दुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: उसके बाद वह औदारिक और कार्मण शरीर को सदा के लिए पूर्णरूप से छोड़ता है। फिर ऋजु श्रेणि को प्राप्त होता है और एक समय में अस्पृशद्गतिरूप ऊर्ध्वगति से बिना मोड़ लिए सीधे लोकाग्र में जाकर साकारोपयुक्त – ज्ञानोपयोगी सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है। सभी दुःखों का अन्त करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1188 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परूविए दंसिए उवदंसिए।
Translated Sutra: श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा सम्यक्त्व – पराक्रम अध्ययन का यह पूर्वोक्त अर्थ आख्यात है, प्रज्ञापित है, प्ररूपित है, दर्शित है और उपदर्शित है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Gujarati | 1112 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–
इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अनुपालइत्ता बहवे जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ ! ભગવંતે જે કહેલ છે, તે મેં સાંભળેલ છે. આ ‘સમ્યક્ત્વ પરાક્રમ’ અધ્યયનમાં કાશ્યપ ગોત્રીય શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે જે પ્રરૂપણા કરી છે, તેની સમ્યક્ શ્રદ્ધા, પ્રતીતિ, રૂચિ, સ્પર્શ અને પાલનથી, તરીને, કીર્તનથી, શુદ્ધ કરીને, આરાધના કરવાથી આજ્ઞાનુસાર અનુપાલન કરવાથી, ઘણા જીવ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Gujarati | 1113 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तं जहा–
संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थए ९ वंदणए १०
पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २०
परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमण-सन्निवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २९ अप्पडिबद्धया ३०
विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियट्टणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे Translated Sutra: તેનો આ અર્થ છે, જે આ પ્રમાણે કહેવાય છે – ૧. સંવેગ, ૨. નિર્વેદ, ૩. ધર્મશ્રદ્ધા, ૪. ગુરુ અને સાધર્મિક શુશ્રૂષા, ૫. આલોચના, ૬. નિંદા, ૭. ગર્હા, ૮. સામાયિક, ૯. ચતુર્વિંશતિ સ્તવ, ૧૦. વંદન, ૧૧. પ્રતિક્રમણ, ૧૨. કાયોત્સર્ગ, ૧૩. પચ્ચક્ખાણ, ૧૪. સ્તવ, સ્તુતિ મંગલ, ૧૫. કાળ પ્રતિલેખના, ૧૬. પ્રાયશ્ચિત્તકરણ, ૧૭. ક્ષમાપના, ૧૮. સ્વાધ્યાય, ૧૯. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Gujarati | 1114 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संवेगेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
संवेगेणं अनुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ। अनुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अनंतानुबंधि कोहमानमायालोभे खवेइ, कम्मं न बंधइ, तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ। दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ। सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ। Translated Sutra: ભગવન્ ! સંવેગથી જીવને શું પ્રાપ્ત થશે ? સંવેગથી જીવ અનુત્તર ધર્મશ્રદ્ધાને પામશે. પરમ ધર્મશ્રદ્ધાથી શીઘ્ર સંવેગ આવે છે. અનંતાનુબંધી ક્રોધ, માન, માયા, લોભનો ક્ષય કરે છે, નવા કર્મોને બાંધતો નથી. અનંતાનુબંધી કષાય ક્ષીણ થતા મિથ્યાત્વ વિશુદ્ધિ કરી દર્શનનો આરાધક થાય છે. દર્શન વિશોધિ દ્વારા વિશુદ્ધ થઈ કેટલાક જીવો | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Gujarati | 1115 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निव्वेएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
निव्वेएणं दिव्वमानुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ। सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चायं करेइ। आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ। Translated Sutra: ભગવન્ ! નિર્વેદથી જીવને શું પ્રાપ્ત થાય છે? નિર્વેદથી જીવ દેવ, મનુષ્ય અને તિર્યંચ સંબંધી કામભોગોમાં શીઘ્ર નિર્વેદ પામે છે. બધા વિષયોમાં વિરક્ત થાય છે. થઈને આરંભનો પરિત્યાગ કરે છે. આરંભનો પરિત્યાગ કરી સંસાર માર્ગનો વિચ્છેદ કરે છે અને સિદ્ધિ માર્ગને પ્રાપ્ત થાય છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Gujarati | 1116 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मसद्धाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
धम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ, आगारधम्मं च णं चयइ अनगारे णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ। Translated Sutra: ભગવન્ ! ધર્મશ્રદ્ધાથી જીવને શું પ્રાપ્ત થાય છે ? ધર્મશ્રદ્ધા વડે જીવ સાત સુખોની આસક્તિથી વિરક્ત થાય છે. અગાર ધર્મનો ત્યાગ કરે છે. અણગાર થઈને છેદન, ભેદન આદિ શારીરિક તથા સંયોગાદિ માનસિક દુઃખોનો વિચ્છેદ કરે છે. અવ્યાબાધ સુખને પામે છે. |