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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 102 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठिं च इत्थियाओ, मच्छा मनुया य सत्तमिं जंति ।
एसो खलु उववातो, नेरइयाणं तु नातव्वो ॥
जाव अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया नो असन्नीहिंतो उववज्जंति जाव नो इत्थियाहिंतो उववज्जंति, मच्छमनुस्सेहिंतो उववज्जंति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया एक्कसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववज्जंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा केवति-कालेणं अवहिता सिता? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक – एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है ? गौतम ! नैरयिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 103 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी– नेवट्ठी नेव छिरा नवि ण्हारू। जे पोग्गला अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुहा अमणुन्ना अमणामा, ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पन्नत्ता, तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया तेवि हुंडसंठिता पन्नत्ता। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरगा केरिसगा वण्णेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संहनन क्या है ? गौतम ! कोई संहनन नहीं है, क्योंकि उनके शरीर में हड्डियाँ नहीं है, शिराएं नहीं हैं, स्नायु नहीं हैं। जो पुद्गल अनिष्ट और अमणाम होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 105 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का।
नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 106 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेवि उक्कोसेणवि ठिती भाणितव्वा जाव अधेसत्तमाए। Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य से और उत्कर्ष से पन्नवणा के स्थितिपद अनुसार अधःसप्तमीपृथ्वी तक कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 119 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] भिन्नमुहुत्तो नरएसु, तिरियमणुएसु होंति चत्तारि ।
देवेसु अद्धमासो, उक्कोसि विउव्वणा भणिया ॥ Translated Sutra: नारकों में अन्तर्मुहूर्त्त, तिर्यक् और मनुष्य में चार अन्तर्मुहूर्त्त और देवों में पन्द्रह दिन का उत्तर विकुर्वणा का उत्कृष्ट अवस्थानकाल है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 125 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अच्छिनिमीलियमेत्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं ।
नरए नेरइयाणं, अहोनिसं पच्चमाणाणं ॥ Translated Sutra: रात – दिन दुःखों से पचते हुए नैरयिकों को नरक में पलक मूँदने मात्र काल के लिए भी सुख नहीं है किन्तु दुःख ही दुःख सदा उनके साथ लगा हुआ है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 126 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तेयाकम्मसरीरा, सुहुमसरीरा य जे अपज्जत्ता ।
जीवेण मुक्कमेत्ता, वच्चंति सहस्ससो भेयं ॥ Translated Sutra: तैजस – कार्मण शरीर, सूक्ष्मशरीर और अपर्याप्त जीवों के शरीर जीव के द्वारा छोड़े जाते ही तत्काल हजारों खण्डों में खण्डित होकर बिखर जाते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 128 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ य भिन्नमुहुत्तो, पोग्गल असुहा य होइ अस्साओ ।
उववाओ उप्पाओ, अच्छि सरीरा उ बोद्धव्वा ॥ Translated Sutra: इन गाथाओं में विकुर्वणा का अवस्थानकाल, अनिष्ट पुद्गलों का परिणमन, अशुभ विकुर्वणा, नित्य असाता, उपपात काल में क्षणिक साता, ऊपर छटपटाते हुए उछलना, अक्षिनिमेष के लिए भी साता न होना, वैक्रियशरीर का बिखरना तथा नारकों को होनेवाली सैकड़ों प्रकार की वेदनाओं का उल्लेख किया गया है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 131 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि।
ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि–तिन्नि नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
ते णं भंते! जीवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! तिविधावि।
ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि।
ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति? –किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह – कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं। गौतम ! तीनों। भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 135 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधा णं भंते! पुढवी पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा पुढवी पन्नत्ता, तं जहा–सण्हपुढवी सुद्धपुढवी वालुयापुढवी मनोसिलापुढवी सक्करापुढवी खरपुढवी।
सण्हपुढवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगं वाससहस्सं।
सुद्धपुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस वाससहस्साइं।
वालुयापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चोद्दस वाससहस्साइं।
मनोसिलापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सोलस वाससहस्साइं।
सक्करापुढवीपुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस वाससहस्साइं।
खरपुढवीपुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! पृथ्वी कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! छह प्रकार की – श्लक्ष्णपृथ्वी, शुद्धपृथ्वी, बालुका – पृथ्वी, मनःशिलापृथ्वी, शर्करापृथ्वी और खरपृथ्वी। हे भगवन् ! श्लक्ष्णपृथ्वी की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष। शुद्धपृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-२ | Hindi | 136 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पडुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स णिल्लेवा सिता? गोयमा! जहन्नपदे असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं, उक्कोसपदेवि असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं– जहन्नपदातो उक्कोसपए असंखेज्जगुणा। एवं जाव पडुप्पन्नवाउक्काइया।
पडुप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता? गोयमा! पडुप्पन्नवणप्फइ-काइया जहन्नपदे अपदा उक्कोसपदेवि अपदा– पडुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं नत्थि निल्लेवणा।
पडुप्पन्नतसकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिया? गोयमा! पडुप्पन्नतसकाइया जहन्नपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स, उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपुहत्तस्स– जहन्नपदा उक्कोसपदे Translated Sutra: भगवन् ! अभिनव (तत्काल उत्पद्यमान) पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य से और उत्कृष्ट से भी असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल में निर्लेप (खाली) हो सकते हैं। यहाँ जघन्य पद से उत्कृष्ट पद में असंख्यातगुण अधिकता जानना। इसी प्रकार अभिनव वायुकायिक तक की वक्तव्यता जानना। भगवन् ! अभिनव | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 140 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
से किं तं संमुच्छिममनुस्सा? संमुच्छिममनुस्सा एगागारा पन्नत्ता।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतोमनुस्सखेत्ते जहा पन्नवणाए जाव अंतोमुहुत्तद्धाउया चेव कालं पकरेंति। सेत्तं संमुच्छिममनुस्सा। Translated Sutra: हे भगवन् ! मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! एक ही प्रकार के। भगवन् ! ये सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र अनुसार यहाँ कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 156 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाया। अब्भिंतरिया समिता, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया।
चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? बाहिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए चउवीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ बाहिरियाए परिसाए बत्तीसं देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
चमरस्स णं Translated Sutra: हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चंडा और जाता। आभ्यन्तर पर्षदा समिता, मध्यम परिषदा चंडा और बाह्य परिषदा जाया कहलाती है। गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा में २४०००, मध्यम परिषदा में २८००० और बाह्य परिषदा में ३२००० देव हैं। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 157 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवना पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव बली, एत्थ वइरोयणिंदे वइरोयणराया परिवसति जाव विहरति।
बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिया चंडा जाया। अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया।
बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवसिया पन्नत्ता? गोयमा! बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पन्नत्ता, मज्झिमियाए Translated Sutra: हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! स्थान पद के समान कहना यावत् वहाँ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की कितनी पर्षदा हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाता। आभ्यन्तर परिषदा समिता कहलाती | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 158 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! नागकुमाराणं देवाणं भवना पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव दाहिणिल्लावि पुच्छियव्वा जाव घरणे इत्थ नागकुमारिंदे नागकुमारराया परिवसति जाव विहरति।
धरणस्स णं भंते! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ, ताओ चेव जहा चमरस्स।
धरणस्स णं भंते! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवीसया पन्नत्ता? गोयमा! धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए सट्ठिं देवसहस्साइं, मज्झिमियाए परिसाए सत्तरिं देव-सहस्साइं, बाहिरियाए असीतिदेवसहस्साइं, अब्भिंतरियाए Translated Sutra: हे भगवन् ! नागकुमार देवों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! स्थानपद समान जानना यावत् वहाँ नागकुमारेन्द्र और नागकुमारराज धरण रहता है यावत् दिव्यभोगों को भोगता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नाग – कुमारराज धरण की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन परिषदाएं कही गई हैं। उनके नाम पूर्ववत्। गौतम ! नागकुमारेन्द्र | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 159 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं भोमेज्जा नगरा पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव विहरंति।
कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं भोमेज्जा नगरा पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव विहरंति, कालमहाकाला य तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाव विहरंति।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं पिसायकुमाराणं जाव विहरंति, काले य एत्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महिड्ढिए जाव विहरति।
कालस्स णं भंते! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–ईसा तुडिया दढरहा। अब्भिंतरिया ईसा, मज्झिमिया तुडिया, बाहिरिया दढरहा।
कालस्स णं भंते! पिसायकुमारिंदस्स Translated Sutra: हे भगवन् ! वानव्यन्तर देवों के भवन कहाँ हैं ? स्थानपद के समान कहना यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विचरते हैं। हे भगवन् ! पिशाचदेवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? स्थानपद समान जानना यावत् दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। वहाँ काल और महाकाल नाम के दो पिशाचकुमारराज रहते हैं यावत् विचरते हैं। हे भगवन् ! दक्षिण | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 160 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जोतिसियाणं देवाणं विमाना पन्नत्ता? कहि णं भंते! जोतिसिया देवा परिवसंति? गोयमा! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउए जोयणसते उड्ढं उप्पतित्ता दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले, एत्थ णं जोतिसियाणं देवाणं तिरिय-मसंखेज्जा जोतिसियविमानावाससतसहस्सा भवंतीतिमक्खायं। ते णं विमाना अद्धकविट्ठकसंठाण-संठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिमसूरिया य, एत्थ णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो परिवसंति महिड्ढिया जाव विहरंति।
चंदस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ तं जहा–तुंबा तुडिया पव्वा। Translated Sutra: हे भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमान कहाँ हैं ? ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! द्वीपसमुद्रों से ऊपर और इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जान पर एक सौ दस योजन प्रमाण ऊंचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। वे विमान आधे कपीठ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 163 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर ठीक मध्यभाग में एक विशाल पद्मवरवेदिका है। वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पाँच सौ धनुष विस्तारवाली है। वह सर्वरत्नमय है। उसकी परिधि जगती के मध्यभाग की परिधि के बराबर है। यह पद्मवरवेदिका सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, यावत् अभिरूप, प्रतिरूप है। उसके नेम वज्ररत्न के बने हुए हैं, उसके मूलपाद रिष्टरत्न | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर एक बड़ा विशाल वनखण्ड है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोल विस्तार वाला है और उसकी परिधि जगती की परिधि के समान ही है। वह वनखण्ड काला है और काला ही दिखाई देता है। यावत् उस वनखण्ड के वृक्षों के मूल बहुत दूर तक जमीन के भीतर गहरे गये हुए हैं, वे प्रशस्त किशलय वाले, प्रशस्त पत्रवाले | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 165 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 167 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीताए महानदीए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उढ्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, ...
...सेए वरकनगथूभियागे ईहामिय उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गतवइरवेदियापरिगताभिरामे विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालिणीए रूवगसहस्सकलिए Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का विजयद्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर तथा जंबूद्वीप के पूर्वान्त में तथा लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम भाग में सीता महानदी के ऊपर जंबूद्वीप का विजयद्वार है। यह द्वार आठ योजन का ऊंचा, चार योजन का चौड़ा और इतना ही इसका | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 169 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दो दो तोरणा पन्नत्ता। वण्णओ जाव सहस्स-पत्तहत्थगा
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो नागदंतगा पन्नत्ता। नागदंतावण्णओ उवरिमनागदंता नत्थि।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो हयसंघाडा दोदो गयसंघाडा एवं नरकिन्नरकिंपुरिस-महोरगगंधव्वउसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा।
दोदो पउमलयाओ जाव पडिरूवाओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो दिसासोवत्थिया पन्नत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो वंदनकलसा पन्नत्ता। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों ओर दोनों नैषेधिकाओं में दो दो तोरण कहे गये हैं। यावत् उन पर आठ – आठ मंगलद्रव्य और छत्रातिछत्र हैं। उन तोरणों के आगे दो दो शालभंजिकाएं हैं। उन तोरणों के आगे दो दो नागदंतक हैं। उन नागदंतकों में बहुत सी काले सूत में गूँथी हुई विस्तृत पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् वे अतीव शोभा से युक्त | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: तब वह विजयदेव शानदार इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त हो जाने पर सिंहासन से उठकर अभिषेकसभा के पूर्व दिशा के द्वार से बाहर नीकलता है और अलंकारसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है। फिर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठा। तदनन्तर उस विजयदेव की सामानिकपर्षदा के देवों ने आभियोगिक | |||||||||
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द्वीप समुद्र | Hindi | 181 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पुरत्थिमेणं पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासनेसु निसीयंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अब्भिंतरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। एवं दक्खिणेणं मज्झिमियाए परिसाए दस देव-साहस्सीओ जाव निसीदंति। दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पत्तेयंपत्तेयं जाव निसीदंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स Translated Sutra: तब उस विजयदेव के चार हजार सामानिक देव पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तरपूर्व में पहले से रखे हुए चार हजार भद्रासनों पर बैठते हैं। चार अग्रमहिषियाँ पूर्वदिशा में पहले से रखे हुए भद्रासनों पर बैठती हैं। उस विजय – देव के दक्षिणपूर्व दिशा में आभ्यन्तर पर्षदा के आठ हजार देव हुए भद्रासनों पर बैठते हैं। उस विजयदेव की | |||||||||
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जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 202 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कम्हा णं भंते! लवणे समुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगंअतिरेगं वड्ढति वा हायति वा? गोयमा! जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चउद्दिसिं बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ लवणसमुद्दं पंचाणउतिं-पंचाणउतिं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि महइमहालया महालिंजरसंठाणसंठिया महापायाला पन्नत्ता, तं जहा– वलयामुहे केयुए जूयए ईसरे। ते णं महापाताला एगमेगं जोयण-सयसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसतसहस्सं विक्खंभेणं, उवरिं मुहमूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं।
तेसि णं महापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणसतबाहल्ला Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र का पानी चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों में अतिशय बढ़ता है और फिर कम हो जाता है, इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप की चारों दिशाओं में बाहरी वेदिकान्त से लवणसमुद्र में ९५००० योजन आगे जाने पर महाकुम्भ के आकार विशाल चार महापातालकलश है, वलयामुख, केयूप, यूप और ईश्वर ये पातालकलश | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 211 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! धायइसंडस्स दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयं णं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता, सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, बारस जोयणसहस्साइं तहेव विक्खंभ परिक्खेवो, भूमिभागो पासायवडिंसया मणिपेढिया सीहासना सपरिवारा अट्ठो तहेव, रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अन्नंमि धायइसंडे दीवे, सेसं तं चेव
एवं सूरदीवावि, नवरं–धायइसंडस्स दीवस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंताओ कालोयं णं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ Translated Sutra: हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! धातकीखण्डद्वीप की पूर्वी वेदि – कान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर धातकीखण्ड के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं। (धातकी – खण्ड में १२ चन्द्र हैं।) वे सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। ये बारह हजार योजन के लम्बे – चौड़े हैं। | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 212 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! कालोयगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! कालोयसमुद्दस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयण्णं समुद्दं पच्चत्थिमेण बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कालोयगचंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अन्नंमि कालोयसमुद्दे बारस जोयणसहस्साइं तं चेव सव्वं जाव चंदा देवा, चंदा देवा।
एवं सूराणवि, नवरं–कालोयस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंतातो कालोयसमुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अन्नंमि कालोयसमुद्दे तहेव Translated Sutra: हे भगवन् ! कालोदधिसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? हे गौतम ! कालोदधिसमुद्र के पूर्वीय वेदिकांत से कालोदधिसमुद्र के पश्चिम में १२००० योजन आगे जाने पर हैं। ये सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। शेष सब पूर्ववत्। इसी प्रकार कालोदधिसमुद्र के सूर्यद्वीपों के संबंध में भी जानना। विशेषता यह है कि कालोदधिसमुद्र | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 213 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमे नामा अनुगंतव्वा– Translated Sutra: द्वीप और समुद्रों में से कितनेक द्वीपों और समुद्रों के नाम इस प्रकार हैं – जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र, वारुणिवरद्वीप, वारुणिवरसमुद्र, क्षीरवरद्वीप, क्षीरवरसमुद्र, घृतवरद्वीप, घृतवरसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नंदीश्वरद्वीप, नंदीश्वर समुद्र, | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 214 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइकालोदपुक्खरे वरुणे ।
खीरधय खोयणंदी, अरुनवरे कुंडले रुयगे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१३ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 224 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणसमुद्दं धायइसंडे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
धायइसंडे णं भंते! दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
धायइसंडे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, इगयालीसं जोयणसतसहस्साइं दसजोयण-सहस्साइं नव य एगट्ठे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? Translated Sutra: धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है, लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! वह समचक्रवाल संस्थान – संस्थित है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का चक्रवाल – विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवाल – विष्कम्भ वाला | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 228 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडं णं दीवं कालोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ।
कालोदे णं भंते! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
कालोदे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एकाणउतिं जोयणसयसहस्साइं सत्तरिं च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ।
कालोयस्स णं भंते! समुद्दस्स Translated Sutra: गोल और वलयाकार आकृति का कालोदसमुद्र धातकीखण्डद्वीप को सब ओर से घेर कर रहा हुआ है। भगवन् ! कालोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! कालोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थित है। गौतम ! कालोदसमुद्र का आठ लाख योजन चक्रवालविष्कम्भ है और ९११७६०५ योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 230 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। कालोदस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा पुक्खरवरदीवं पुट्ठा? तहेव। एवं पुक्खरवरदीवस्सवि।
कालोदे णं भंते! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता तहेव भाणियव्वं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–कालोए समुद्दे? कालोए समुद्दे? गोयमा! कालोयस्स णं समुद्दस्स उदके आसले मासले पेसले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसे पन्नत्ते। काल-महाकाला य दो देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव निच्चे।
कालोए णं भंते! समुद्दे कति चंदा पभासिंसु वा पुच्छा। गोयमा! कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति Translated Sutra: भगवन् ! कालोदसमुद्र के प्रदेश पुष्करवरद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? इत्यादि पूर्ववत्, यावत् पुष्करवरद्वीप के जीव मरकर कालोदसमुद्र में कोई उत्पन्न होते हैं और कोई नहीं। भगवन् ! कालोदसमुद्र, कालोदसमुद्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! कालोदसमुद्र का पानी आस्वाद्य है, मांसल, पेशल, काला और उड़द की राशि के वर्ण का है और | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 231 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता ।
कालोदधिम्मि एते चरंति सबद्धलेसागा ॥ Translated Sutra: कालोदधि में ४२ चन्द्र और ४२ सूर्य सम्बद्ध लेश्यावाले विचरण करते हैं।११७६ नक्षत्र और ३६९६ महाग्रह और २८१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। सूत्र – २३१–२३४ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 233 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सयसहस्साइं ।
नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३१ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 235 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्क-वालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! सोलस जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बानउति च सय-सहस्साइं अउनानउतिं च सहस्सा अट्ठ य चउनउया परिक्खेवेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 270 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढति चंदो? परिहाणी केण होइ चंदस्स?
कालो वा जोण्हो वा, केणनुभावेण चंदस्स? ॥ Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रमा शुक्लपक्ष में क्यों बढ़ता है और कृष्णपक्ष में क्यों घटता है ? किस कारण से कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं ? कृष्ण राहु – विमान चन्द्रमा से सदा चार अंगुल दूर रहकर चन्द्रविमान के नीचे चलता है। वह शुक्लपक्ष में धीरे – धीरे चन्द्रमा को प्रकट करता है और कृष्णपक्ष में धीरे – धीरे उसे ढ़ंक लेता है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 272 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं बावट्ठिं, दिवसेदिवसे उ सुक्कपक्खस्स ।
जं परिवड्ढइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 274 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढइ चंदो, परिहाणी एव होइ चंदस्स ।
कालो वा जोण्हा वा, तेणनुभावेण चंदस्स ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 287 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मानुसुत्तरे णं भंते! पव्वते केवतियं उड्ढं उच्चत्तेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं मूले विक्खंभेणं? केवतियं मज्झे विक्खंभेणं? केवतियं उवरिं विक्खंभेणं? केवतियं अंतो गिरिपरिरएणं? केवतियं बाहिं गिरिपरिरएणं? केवतियं मज्झे गिरि परिरएणं? केवतियं उवरिं गिरिपरिरएणं?
गोयमा! मानुसुत्तरे णं पव्वते सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेणं, मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे Translated Sutra: हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है। ४३० योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है। यह मूल में १०२२ योजन चौड़ा है, मध्य में ७२३ योजन चौड़ा और ऊपर ४२४ योजन चौड़ा है। पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं, वे ज्योतिष्क देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं या सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं या (ज्योतिष्क) विमानों में उत्पन्न हुए हैं ? वे गतिशील हैं या गतिरहित हैं ? गतिशील और गति को प्राप्त हुए हैं ? गौतम ! वे देव ज्योतिष्क विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 291 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वरुनवरण्णं दीवं वरुणोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागार संठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठंति। पुक्खरोदवत्तव्वता जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वरुणोदे समुद्दे? वरुणोदे समुद्दे? गोयमा! वरुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए–चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाइ वा वरसीधूति वा वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुप्फासवेइ वा फलासवेइ वा चोयासवेइ वा मधूति वा मेरएति वा जातिप्पसन्नाइ वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणेइ वा सुपक्कखोयरसेइ वा अट्ठपिट्ठनिट्ठिताइ वा जंबूफलकालियाइ वा वरपसण्णाइ वा उक्कोसमदपत्ता आसला मासला पेसला ईसिं ओट्ठावलंबिणी Translated Sutra: वरुणोद नामक समुद्र, जो गोल और वलयाकार रूप से संस्थित है, वरुणवरद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है। वह वरुणोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है। इत्यादि पूर्ववत्। विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर, प्रदेशों की स्पर्शना, जीवोत्पत्ति और अर्थ सम्बन्धी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 293 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खीरोदण्णं समुद्दं घयवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव–
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयवरे दीवे? घयवरे दीवे? गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव विहरंति, नवरं–घयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादो सव्वकनगमया, कनगकनगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं।
जोतिसं संखेज्जं।
घयवरण्णं दीवं घयोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव–
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयोदे समुद्दे? घयोदे समुद्दे? गोयमा! घयोदस्स Translated Sutra: वर्तुल और वलयाकार संस्थान – संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहाँ तक का वर्णन पूर्ववत्। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान – स्थान | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 322 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं।
देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं।
सूरविमाणे देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं।
देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससतेहिमब्भहियं।
गहविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
देवीणं जहन्नेणं, चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
नक्खत्तविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान में देवों की कितनी स्थिति है ? प्रज्ञापना में स्थितिपद के अनुसार तारारूप पर्यन्त जानना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-१ | Hindi | 325 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाता, अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाता।
सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव बाहिरियाए पुच्छा। गोयमा! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ मज्झिमियाए परिसाए चोद्दस देव-साहस्सीओ पन्नत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, तहा अब्भिंतरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाया। आभ्यंतर पर्षदा को समिता, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद में १२००० देव, मध्यम परिषद में १४००० देव और बाह्य परिषद में १६००० देव हैं। आभ्यन्तर परिषद में ७०० देवियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 330 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 342 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं मनुस्सा। देवा जहा नेरइया।
नेरइए णं भंते! नेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? जहा कायट्ठिती देवाणवि एवं चेव।
तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं।
मनुस्से णं भंते! मनुस्सेति कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं।
नेरइयस्स णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। मनुष्यों की भी यहीं है। देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जानना। देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है। तिर्यंक की कायस्थिति जघन्य | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पंचविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया।
से किं तं एगिंदिया? एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं जाव पंचिंदिया दुविहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
बेइंदिया जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिंदियस्स छम्मासा, पंचिंदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं।
एगिंदियअपज्जत्तगस्स णं केवतियं Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पाँच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा – एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय। भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! दो, पर्याप्त और अपर्याप्त। पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो – दो भेद कहना। भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 347 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
आउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, तेउकाइयस्स तिन्नि राइंदियाइं, वाउकाइयस्स तिन्नि वास-सहस्साइं, वणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, तसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। पज्जत्तगाणं सव्वेसिं उक्को-सिया ठिती अंतोमुहुत्तूणा। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। इसी प्रकार सबकी स्थिति कहना। त्रसकायिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। सब अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण है। सब पर्याप्तकों |