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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 248 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. दंदे य २. बहुव्वीही, ३. कम्मधारए ४. दिऊ तहा ।
५. तप्पुरिस ६. व्वईभावे, ७. एगसेसे य सत्तमे ॥ Translated Sutra: द्वन्द्व, बहुव्रीहि, कर्मधारय, द्विगु, तत्पुरुष, अव्ययीभाव और एकशेष। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 259 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंगुले? अंगुले तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयंगुले उस्सेहंगुले पमाणंगुले।
से किं तं आयंगुले? आयंगुले–जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाइं मुहं, नवमुहाइं पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे मानजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ। Translated Sutra: अंगुल क्या है ? अंगुल तीन प्रकार का है – आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल। आत्मांगुल किसे कहते हैं ? जिस काल में जो मनुष्य होते हैं उनके अंगुल आत्मांगुल हैं। उनके अपने – अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है। नौ मुख प्रमाण वाला पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 260 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माणुम्माणप्पमाणजुत्ता, लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया ।
उत्तमकुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा ॥ Translated Sutra: जो पुरुष मान – उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा लक्षणों एवं व्यंजनो से और मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना। ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं। अधम पुरुष ९६ अंगुल और मध्यम पुरुष १०४ अंगुल ऊंचे होते हैं। ये हीन | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 302 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माता पुत्तं जहा नट्ठं, जुवाणं पुणरागतं ।
काई पच्चभिजाणेज्जा, पुव्वलिंगेण केणई ॥ Translated Sutra: माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्र्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है। जैसे – देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत् – अनुमान है। शेषवत् – अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है। कार्येण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 319 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अत्थाहिगारे? अत्थाहिगारे–जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अर्थाधिकार क्या है ? (आवश्यकसूत्र के) जिस अध्ययन का जो अर्थ – वर्ण्य विषय है उसका कथन अर्था – धिकार कहलाता है। यथा – सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन – स्तुति करना है। तृतीय अध्ययन का अर्थ गुणवान् पुरुषों को वन्दना, नमस्कार करना है। चौथे में आचार में हुई स्खलनाओं की निन्दा करने का अर्थाधिकार है। कायोत्सर्ग | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 337 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुत्तानुगमे य निज्जुत्तिअनुगमे य।
से किं तं निज्जुत्तिअनुगमे? निज्जुत्तिअनुगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–निक्खेवनिज्जुत्ति-अनुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे? निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे अनुगए। से तं निक्खेव-निज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे? उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे–इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतव्वे, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अनुगम का क्या है ? अनुगम के दो भेद हैं। सूत्रानुगम और निर्युक्त्यनुगम। निर्यक्त्यनुगम के तीन प्रकार हैं। यथा – निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम और सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम। (नाम स्थापना आदि रूप) निक्षेप की निर्युक्ति का अनुगम पूर्ववत् जानना। आयुष्मन् ! उपोद्घातनिर्युक्ति | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 53 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सचित्ते दव्वखंधे?
सचित्ते दव्वखंधे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–हयखंधे गयखंधे किन्नरखंधे किंपुरिसखंधे महोरगखंधे उसभखंधे।
से तं सचित्ते दव्वखंधे। Translated Sutra: સચિત્ત દ્રવ્યસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સચિત્ત દ્રવ્યસ્કંધના અનેક પ્રકાર છે. યથા – અશ્વસ્કંધ, ગજ – સ્કંધ, કિન્નરસ્કંધ, કિંપુરુષ સ્કંધ, મહોરગસ્કંધ, વૃષભસ્કંધ. આ સચિત્ત દ્રવ્યસ્કંધનું સ્વરૂપ જાણવુ. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: [૧] ‘દ્વિનામ’નું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વિનામના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. એકાક્ષરિક અને ૨. અનેકાક્ષરિક. એકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકાક્ષરિક દ્વિનામના અનેક પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – હ્રી દેવી., શ્રી લક્ષ્મી દેવી., ધી બુદ્ધિ., સ્ત્રી વગેરે એકાક્ષરિક દ્વિનામ છે. અનેકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 152 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं पुण नामं तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव ।
एएसिं तिण्हंपि य, अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥ Translated Sutra: ત્રિનામના પ્રકારાન્તરે ત્રણ પ્રકાર છે. ૧. સ્ત્રીનામ, ૨. પુરુષનામ અને ૩. નપુંસક નામ. આ ત્રણે પ્રકારના નામનો બોધ અંતિમ અક્ષર ઉપરથી થાય. પુરુષ નામના અંતે આ, ઈ, ઊ, ઓ – આ ચારમાંથી કોઈ એક વર્ણ હોય છે તથા સ્ત્રી નામોના અંતમાં ‘ઓ’ છોડીને શેષ આ, ઈ, ઊ વર્ણ હોય છે. જે શબ્દોના અંતમાં અં, ઇં, ઉં વર્ણ હોય તે નપુંસક લિંગવાળા જાણવા. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 161 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए।
से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य।
से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए।
से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य।
से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे Translated Sutra: [૧] છ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? છ નામમાં છ પ્રકારના ભાવ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક, ૨. ઔપશમિક, ૩. ક્ષાયિક, ૪. ક્ષાયોપશમિક, ૫. પારિણામિક, ૬. સાન્નિપાતિક. [૨] ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔદયિક ભાવના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ઉદય અને ઉદયનિષ્પન્ન. ઉદય – ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠ પ્રકારના | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 175 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: આ સાત સ્વરોના સાત સ્વર લક્ષણ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ષડ્જ સ્વરવાળા મનુષ્ય વૃત્તિ – આજીવિકા પ્રાપ્ત કરે છે. તેનો પ્રયત્ન વ્યર્થ જતો નથી. તેને ગોધન, પુત્ર, મિત્રનો સંયોગ થાય છે. તે સ્ત્રીઓને પ્રિય હોય છે. ઋષભ સ્વરવાળા મનુષ્ય ઐશ્વર્યશાળી હોય છે. તે સેનાપતિત્વ, ધન – ધાન્ય, વસ્ત્ર, ગંધ, અલંકાર, સ્ત્રી, શયનાસન વગેરે | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 248 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. दंदे य २. बहुव्वीही, ३. कम्मधारए ४. दिऊ तहा ।
५. तप्पुरिस ६. व्वईभावे, ७. एगसेसे य सत्तमे ॥ Translated Sutra: સામાસિક ભાવપ્રમાણ નિષ્પન્ન નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સામાસિક નામ નિષ્પન્નતાના કારણરૂપ સમાસ સાત છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. દ્વન્દ્વ, ૨. બહુવ્રીહિ, ૩. કર્મધારય, ૪. દ્વિગુ, ૫. તત્પુરુષ, ૬. અવ્યયીભાવ, ૭. એકશેષ. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: [૧] દ્વન્દ્વ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વન્દ્વ સમાસના ઉદાહરણો – દાંત અને ઔષ્ટ – હોઠ તે દંતોષ્ઠ, સ્તનો અને ઉદર તે સ્તનોદર, વસ્ત્ર અને પાત્ર તે વસ્ત્રપાત્ર, અશ્વ અને મહિષ તે અશ્વમહિષ, સાપ અને નોળિયો તે સાપનોળિયો. આ દ્વન્દ્વ સમાસ છે. [૨] બહુવ્રીહિ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? બહુવ્રીહિ સમાસમાં આ પર્વત ઉપર વિકસિત કુટજ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 259 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंगुले? अंगुले तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयंगुले उस्सेहंगुले पमाणंगुले।
से किं तं आयंगुले? आयंगुले–जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाइं मुहं, नवमुहाइं पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे मानजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૯. અંગુલના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આત્માંગુલ, ૨. ઉત્સેધાંગુલ, ૩. પ્રમાણાંગુલ. આત્માંગુલ કોને કહેવાય છે ? જે કાળમાં, જે મનુષ્ય હોય તે કાળમાં, તે મનુષ્યના અંગુલને આત્માંગુલ કહેવાય છે. પોતાના બાર અંગુલ પ્રમાણ મુખ હોય છે અને તેવા નવમુખ પ્રમાણ એકસો આઠ અંગુલની. ઊંચાઈવાળા પુરુષ પ્રમાણયુક્ત મનાય | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 265 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ सुहुमो ठप्पो।
से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ।
१. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
२. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। Translated Sutra: પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરમાણુ બે પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. સૂક્ષ્મ પરમાણુ ૨. વ્યવહાર પરમાણુ. બે પ્રકારના પરમાણુમાંથી સૂક્ષ્મ પરમાણુનો અહીં અધિકાર ન હોવાથી તે સ્થાપનીય છે અર્થાત્ તેનું વર્ણન ન કરતા વ્યવહાર પરમાણુનું વર્ણન શાસ્ત્રકાર કરે છે. વ્યાવહારિક પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અનંતાનંત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 303 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहा–खतेण वा वणेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा। से तं पुव्ववं।
से किं तं सेसवं? सेसवं पंचविहं पन्नत्तं, तं–कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं।
से किं तं कज्जेणं? कज्जेणं–संखं सद्देणं, भेरिं तालिएणं, वसभं ढिंकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, हत्थिं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं। से तं कज्जेणं।
से किं तं कारणेणं? कारणेणं–तंतवो पडस्स कारणं न पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं न कडो वीरणका-रणं, मप्पिंडो घडस्स कारणं न घडो मप्पिंडकारणं। से तं कारणेणं।
से किं तं गुणेणं? गुणेणं–सुवण्णं निकसेणं, पुप्फं गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसाएणं, वत्थं फासेणं। से तं गुणेणं।
से किं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૩ થી ૩૦૫. [૧] શેષવત્ અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શેષવત અનુમાનના પાંચ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાર્યથી, ૨. કારણથી, ૩. ગુણથી, ૪. અવયવથી, ૫. આશ્રયથી. કાર્યલિંગ જન્ય શેષવત અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કાર્ય જોઈને કારણનું જ્ઞાન થાય તેને કાર્ય લિંગજન્ય શેષવત અનુમાન કહે છે. દા.ત. શંખનો ધ્વનિ સાંભળી શંખનું જ્ઞાન, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: [૧] નયપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નયપ્રમાણના ત્રણ પ્રકાર છે. ત્રણ દૃષ્ટાંતથી તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કર્યું છે.. ૧. પ્રસ્થકના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૨. વસતિના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૩. પ્રદેશના દૃષ્ટાંત દ્વારા. [૨] પ્રસ્થકનું દૃષ્ટાંત શું છે ? કોઈ પુરુષ કુહાડી લઈ વન તરફ જતો હોય, તેને વનમાં જતા જોઈને કોઈ મનુષ્યે પૂછ્યું, તમે ક્યાં | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 337 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुत्तानुगमे य निज्जुत्तिअनुगमे य।
से किं तं निज्जुत्तिअनुगमे? निज्जुत्तिअनुगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–निक्खेवनिज्जुत्ति-अनुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे? निक्खेवनिज्जुत्तिअनुगमे अनुगए। से तं निक्खेव-निज्जुत्तिअनुगमे।
से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे? उवग्घायनिज्जुत्तिअनुगमे–इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतव्वे, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૩૭. [૧] અનુગમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અનુગમના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – સૂત્રાનુગમ અને નિર્યુક્ત્યનુગમ. [૨] નિર્યુક્ત્યનુગમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નિર્યુક્ત્યનુગમના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નિક્ષેપ નિર્યુક્ત્યનુગમ, ૨. ઉપોદ્ઘાત નિર્યુક્ત્યનુગમ, ૩. સૂત્રસ્પર્શિક નિર્યુક્ત્યનુગમ. નિક્ષેપ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 54 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्कंडे चिरभाविय ते पुरिसा मरणदेसकालम्मि ।
पुव्वकयकम्मपरिभावणाए पच्छा परिवडंति ॥ Translated Sutra: दीर्घकाल के अभ्यास बिना अकाल में (अनशन करनेवाले) वो पुरुष मरण के अवसर पर पहले किए हुए कर्म के योग से पीछे भ्रष्ट होते हैं। (दुर्गति में जाते हैं)। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 55 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा चंदगविज्झं सकारणं उज्जुएण पुरिसेणं ।
जीवो अविरहियगुणो कायव्वो मोक्खमग्गम्मि ॥ Translated Sutra: उसके लिए राधावेध (को साधनेवाले पुरुष) की तरह लक्ष्यपूर्वक उद्यमवाले पुरुष मोक्षमार्ग की जिस तरह साधना करते हैं उसी तरह अपने आत्मा को ज्ञानादि गुण के सहित करना चाहिए। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 61 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता एगं पि सिलोगं जो पुरिसो मरणदेसकालम्मि ।
आराहणोवउत्तो चिंतंतो राहगो होइ ॥ Translated Sutra: उस के लिए मरण के अवसर में आराधना के उपयोगवाला जो पुरुष एक श्लोक की भी चिंतवना करता रहे तो वह आराधक होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 65 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि हु मरियव्वे वरं खु धीरत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: धीर पुरुष को भी मरना पड़ता है, कायर पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय से मरना है, तो धीरपन से मरना ही यकीनन सुन्दर है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 66 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीलेण वि मरियव्वं, निस्सीलेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि हु मरियव्वे वरं खु सीलत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: शीलवान को भी मरना पड़ता है, शील रहित पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय कर के मरना है, तो शील सहित मरना ही निश्चय से प्रशंसनीय है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 11 | Sutra | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि भंते! उत्तमट्ठं पडिक्कमामि
अईयं पडिक्कमामि १ अनागयं पडिक्कमामि २ पच्चुप्पन्नं पडिक्कमामि ३ कयं पडिक्कमामि १ कारियं पडिक्कमामि २ अनुमोइयं पडिक्कमामि ३, मिच्छत्तं पडिक्कमामि १ असंजमं पडिक्कमामि २ कसायं पडिक्कमामि ३ पावपओगं पडिक्कमामि ४, मिच्छादंसण परिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा; अन्नाणंझाणे १ अनायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ मानंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोभंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तण्हंझाणे Translated Sutra: હે ભગવન ! હું ઉત્તમાર્થને સાધવા અર્થાત અનશન કરવાને ઇચ્છુ છું. હું ભૂતકાળના, ભાવિમાં થનારા અને વર્તમાનના પાપ વ્યાપારને પ્રતિક્રમુ છું. કરેલા, કરાવેલા અને અનુમોદિત પાપને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાત્વ, અસંયમ કષાય અને પાપપ્રયોગને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાદર્શનના પરિણામને વિશે, આલોક કે પરલોકને વિશે, સચિત્ત કે અચિત્તને | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 53 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कयपरिकम्मो अनियाणो ईहिऊण मइ-बुद्धी ।
पच्छा मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छामि ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩. પૂર્વે અભ્યાસ કરેલ અને નિયાણારહિત થયેલો એવો હું મતિ અને બુદ્ધિથી વિચારીને, પછી કષાય રોકનારો હું જલદી મરણ અંગીકાર કરીશ. સૂત્ર– ૫૪. ચિરકાળના અભ્યાસ વિના, અકાળે અનશન કરનારા તે પુરુષો, મરણકાળે પૂર્વકૃત કર્મના યોગે પાછા પડે છે અર્થાત દુર્ગતિમાં જાય છે.. સૂત્ર– ૫૫. તેથી ચંદ્રકવેધ્ય પુરુષવત્ હેતુપૂર્વક | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 59 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न हु तम्मि देसकाले सक्को बारसविहो सुयक्खंधो ।
सव्वो अणुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૯. તે મરણના અવસરે અતિશય સમર્થ ચિત્તવાળાને માટે પણ બાર અંગરૂપ સર્વ શ્રુતસ્કંધનું ચિંતવન કરવાનું શક્ય નથી. સૂત્ર– ૬૦. વીતરાગના માર્ગમાં જે એક પણ પદથી મનુષ્ય વારંવાર વૈરાગ્ય પામે છે, તે પદનાં ચિંતવન સહિતનું મરણ તારે મરવા યોગ્ય છે. સૂત્ર– ૬૧. તે માટે મરણના અવસરમાં આરાધનાના ઉપયોગવાળો જે પુરુષ એક પણ શ્લોક | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 64 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं अलद्धपुव्वं जिनवयणसुभासियं अमियभूयं ।
गहिओ सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૪. જિનવચન સુભાષિત અમૃતરૂપ અને પૂર્વે નહીં પામેલ એવું આત્મતત્ત્વ પામીને મેં શુભ ગતિનો માર્ગ ગ્રહણ કર્યો છે, તેથી હું મરણથી બીતો નથી. સૂત્ર– ૬૫. ધીરપુરુષે પણ મરવું પડે છે અને કાયરપુરુષે પણ મરવું પડે છે. બંનેએ પણ નિશ્ચયે મરવાનું છે, તો ધીરપણે મરવું એ નિશ્ચે સુંદર છે. સૂત્ર– ૬૬. શીલવાળાએ પણ મરવું પડે, શીલ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 71 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह नाम कोइ मिच्छो, नगरगुणे बहुविहे वियाणंतो ।
न चएइ परिकहेउं, उवमाए तहिं असंतीए ॥ Translated Sutra: जैसे कोई असभ्य वनवासी पुरुष नगर के अनेकविध गुणों को जानता हुआ भी वन में वैसी कोई उपमा नहीं पाता हुआ उस के गुणों का वर्णन नहीं कर सकता। उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है। उसकी कोई उपमा नहीं है। फिर भी विशेष रूप से उपमा द्वारा उसे समझाया जा रहा है, सूनें। सूत्र – ७१, ७२ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 73 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई ।
तण्हाछुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥ Translated Sutra: जैसे कोई पुरुष अपने द्वारा चाहे गए सभी गुणों – विशेषताओं से युक्त भोजन कर, भूख – प्यास से मुक्त होकर अपरिमित तृप्ति का अनुभव करता है, उसी प्रकार – सर्वकालतृप्त, अनुपम शान्तियुक्त सिद्ध शाश्वत तथा अव्याबाध परम सुख में निमग्न रहते हैं। सूत्र – ७३, ७४ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 2 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए पुव्वपुरिस पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयद्दिए लाउल्लोइय महिए गोसीससरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचुंलितले उवचिय-वंदनकलसे वंदनघड सुकय तोरण पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त विउल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम-कलावे पंचवण्ण सरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय Translated Sutra: उस चम्पा नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य था। वह चिरकाल से चला आ रहा था। पूर्व पुरुष उसकी प्राचीनता की चर्चा करते रहते थे। वह सुप्रसिद्ध था। वह चढ़ावा, भेंट आदि के रूप में प्राप्त सम्पत्ति से युक्त था। वह कीर्तित था, न्यायशील था। वह छत्र, ध्वजा, घण्टा तथा पताका युक्त था। छोटी और बड़ी झण्डियों से | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 6 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान् पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं कोणियस्स रन्नो एक्के पुरिसे विउल कय वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं निवेदेइ।
तस्स णं पुरिसस्स बहवे अन्ने पुरिसा दिन्न भत्ति भत्त वेयणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं निवेदेंति। Translated Sutra: राजा कूणिक के यहाँ पर्याप्त वेतन पर भगवान महावीर के कार्यकलाप को सूचित करने वाला एक वार्ता – निवेदक पुरुष नियुक्त था, जो भगवान के प्रतिदिन के विहारक्रम आदि प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में राजा को निवेदन करता था। उसने अन्य अनेक व्यक्तियों को भोजन तथा वेतन पर नियुक्त कर रखा था, जो भगवान की प्रतिदिन की प्रवृत्तियों | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे–
... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ...
...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि Translated Sutra: भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सूनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेक जनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका, केयूर, मुकूट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे – राजा के गले में लम्बी माला लटक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 24 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के समीप पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत – ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए। वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहासप्रिय थे। उन्हें गंभीर हास्य | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 2 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए पुव्वपुरिस पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयद्दिए लाउल्लोइय महिए गोसीससरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचुंलितले उवचिय-वंदनकलसे वंदनघड सुकय तोरण पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त विउल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम-कलावे पंचवण्ण सरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय Translated Sutra: તે ચંપાનગરીની બહાર ઉત્તર – પૂર્વ દિશામાં પૂર્ણભદ્ર નામક ચૈત્ય(મંદિર) હતું. તે ઘણું પ્રાચીન હતું. તે પૂર્વ પુરુષ પ્રશંસિત, પ્રાચીન, શબ્દિત, કીર્તિત અને ખ્યાતી પામેલ હતું, તે ચૈત્ય, છત્ર – ધ્વજ – ઘંટ પતાકા સહિત, પતાકાતિપતાકાથી સુશોભિત હતું. ત્યાં સફાઈ માટે મોરપીંછી હતી. ત્યાં ઓટલો હતો. તે ચૈત્યની ભૂમિ ગોબરાદિથી | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 6 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए Translated Sutra: તે ચંપાનગરીમાં કૂણિક નામે રાજા વસતો હતો. તે મહાહિમવંત પર્વતની સમાન મહંત, મલય – મેરુ અને મહેન્દ્ર પર્વત સદૃશ પ્રધાન હતો. અત્યંત વિશુદ્ધ દીર્ઘ રાજકુલ વંશમાં જન્મેલો હતો. નિરંતર રાજલક્ષણ વિરાજિત અંગોપાંગ – યુક્ત હતો. ઘણા લોકો દ્વારા બહુમાન્ય અને પૂજિત હતો. સર્વગુણ સમૃદ્ધ હતો. તે શુદ્ધ ક્ષત્રિયવંશમાં જન્મેલ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 8 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं कोणियस्स रन्नो एक्के पुरिसे विउल कय वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं निवेदेइ।
तस्स णं पुरिसस्स बहवे अन्ने पुरिसा दिन्न भत्ति भत्त वेयणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं निवेदेंति। Translated Sutra: તે કોણિક રાજાએ એક પુરુષ વિપુલ વેતનથી ભગવંતની પ્રવૃત્તિના (ગમનાગમનના) સમાચાર આપવાને માટે, ભગવંત ની દૈવસિક પ્રવૃત્તિ નિવેદન માટે રાખેલ હતો. તે પુરુષે બીજા ઘણા પુરુષોને દૈનિક ભોજન તથા વેતન આપીને ભગવંતના ગમનાગમન તથા ભગવંતની દૈનિક પ્રવૃત્તિના નિવેદનને માટે રાખેલા હતા. | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 10 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे–
... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર, જે શ્રુત અને ચારિત્ર ધર્મના – આદિકર, તીર્થની સ્થાપના કરનાર – તીર્થકર, સ્વયં બોધ પામેલા – સ્વયંસંબુદ્ધ, જ્ઞાનાદિ અનંત ગુણોથી – પુરુષોત્તમ, કર્મ શત્રુ નાશ કર્તા હોવાથી – પુરુષસિંહ, શ્વેત કમળ સમ નિર્મલ અને નિર્લેપ – પુરુષવરપુંડરિક, ઉત્તમ હાથીની જેમ બીજા ઉપર વિજય મેળવનાર | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 12 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ...
...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે ભંભસારપુત્ર કોણિકરાજાએ તે પ્રવૃત્તિ નિવેદક પાસે આ વૃત્તાંત સાંભળી, સમજીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ આનંદિત હૃદયી થયો. ઉત્તમ કમળ સમાન નયન વદન વિકસિત થયા. હર્ષાતિરેકથી રાજાના હાથના ઉત્તમ કડા, બાહુરક્ષિકા, કેયુર, મુગટ, કુંડલ, વક્ષઃસ્થળ ઉપર શોભિત હાર કંપિત થયા. ગળામાં લટકતી લાંબી માળા, આભૂષણ ધર રાજા, સંભ્રમ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 24 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની સમીપે ઘણા વ્યંતરદેવો પ્રગટ થયા. તે પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિંનર, કિંપુરુષ, ભુજગપતિ અને મહાકાય તથા ગંધર્વનિકાયગણ નિપુણ ગીતરતિક એવા અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કુહંડ, પતક વ્યંતર દેવો પ્રગટ થયા. તેઓ ચંચળ – ચપળ ચિત્તવાળા, ક્રીડા – પરિહાસ પ્રિય, ગંભીર હસિત | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: [૧] ત્યારે ચંપાનગરીના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, ચતુર્મુખ, મહાપથ, પથમાં મોટા જનશબ્દ, જનવ્યૂહ, જનબોલ, જનકલકલ, જન – ઉર્મિ, જનઉત્કલિકા, જન – સન્નિપાતમાં ઘણા લોકો પરસ્પર આમ કહેતા – બોલતા – પ્રજ્ઞાપના કરતા – પ્રરૂપણા કરતા હતા કે હે દેવાનુપ્રિયો ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીર આદિકર તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ યાવત્ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે ભંભસારપુત્ર કુણિક રાજા, બલવ્યાપૃતના આ અર્થને સાંભળી, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ હૃદયી થઈને જ્યાં અટ્ટનશાળા છે, ત્યાં આવે છે. આવીને અટ્ટનશાળામાં પ્રવેશે છે, પ્રવેશીને અનેક વ્યાયામ યોગ્ય વલ્ગન, વ્યામર્દન, મલ્લયુદ્ધ કરવા વડે શ્રાંત, પરિશ્રાંત થઈને શતપાક – સહસ્રપાક, દર્પણીય, મદનીય, બૃંહણીય, સુગંધી |