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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-१ रतिवाक्या |
Hindi | 524 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया ।
काएण वाया अदु मानसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिनवयणमहिट्ठिज्जासि ॥
–त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: बुद्धिमान् मनुष्य इस प्रकार सम्यक् विचार कर तथा विविध प्रकार के लाभ और उनके उपायों को विशेष रूप से जान कर तीन गुप्तियों से गुप्त होकर जिनवचन का आश्रय लें। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 525 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासियं ।
जं सुणित्तु सपुन्नाणं धम्मे उप्पज्जए मई ॥ Translated Sutra: मैं उस चूलिका को कहूँगा, जो श्रुत है, केवली – भाषित है, जिसे सुन कर पुण्यशाली जीवों की धर्म में मति उत्पन्न होती है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 526 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसोयपट्ठिए बहुजनम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं ।
पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥ Translated Sutra: (नदी के जलप्रवाह में गिर कर समुद्र की ओर बहते हुए काष्ठ के समान) बहुत – से लोग अनुस्रोत संसार – समुद्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, किन्तु जो मुक्त होना चाहता है, जिसे प्रतिस्रोत होकर संयम के प्रवाह में गति करने का लक्ष्य प्राप्त है, उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर ले जाना चाहिए। अनुस्रोत संसार है और प्रतिस्रोत | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 527 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसोयसुहोलोगो पडिसोओ आसवो सुविहियाणं ।
अनुसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५२६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 528 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं ।
चरिया गुणा य नियमा य होंति साहूण दट्ठव्वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५२६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 529 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनिएयवासो समुयाणचरिया अण्णायउंछं पइरिक्कया य ।
अप्पोवही कलहविवज्जणा य विहारचरिया इसिणं पसत्था ॥ Translated Sutra: अनियतवास, समुदान – चर्या, अज्ञातकुलों से भिक्षा – ग्रहण, एकान्त स्थान में निवास, अल्प – उपधि और कलह – विवर्जन; यह विहारचर्या ऋषियों के लिए प्रशस्त है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 530 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आइण्णओमाणविवज्जणा य ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे ।
संसट्ठकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ठ जई जएज्जा ॥ Translated Sutra: आकीर्ण और अवमान नामक भोज का विवर्जन एवं प्रायः दृष्टस्थान से लाए हुए भक्त – पान का ग्रहण, (ऋषियों के लिए प्रशस्त है।) भिक्षु संसृष्टकल्प से ही भिक्षाचर्या करें। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 531 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अमज्जमंसासि अमच्छरीया अभिक्खणं निव्विगइं गओ य ।
अभिक्खणं काउस्सग्गकारी सज्झायजोगे पयओ हवेज्जा ॥ Translated Sutra: साधु मद्य और मांस का अभोजी हो, अमत्सरी हो, बार – बार विषयों को सेवन न करनेवाला हो, बार – बार कायोत्सर्ग करनेवाला और स्वाध्याय के योगो में प्रयत्नशील हो। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 532 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न पडिण्णवेज्जा सयणासणाइं सेज्जं निसेज्जं तह भत्तपानं ।
गामे कुले वा नगरे व देसे ममत्तभावं न कहिं चि कुज्जा ॥ Translated Sutra: यह शयन, आसन, शय्या, निषद्या तथा भक्त – पान आदि जब मैं लौट कर आऊं, तब मुझे ही देना ऐसी प्रतिज्ञा न दिलाए। किसी ग्राम, नगर, कुल, देश पर या किसी भी स्थान पर ममत्वभाव न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 533 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा अभिवायणं वंदण पूयणं च ।
असंकिलिट्ठेहिं समं वसेज्जा मुनी चरित्तस्स जओ न हानी ॥ Translated Sutra: मुनि गृहस्थ का वैयावृत्त्य न करे। गृहस्थ का अभिवादन, वन्दन और पूजन भी न करे। मुनि संक्लेशरहित साधुओं के साथ रहे, जिससे गुणों की हानि न हो। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 534 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न या लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा ।
एक्को वि पावाइं विवज्जयंतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥ Translated Sutra: कदाचित् गुणों में अधिक अथवा गुणों में समान निपुण सहायक साधु न मिले तो पापकर्मों को वर्जित करता हुआ, कामभोगों में अनासक्त रहकर अकेला ही विहार करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 535 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरं चावि परं पमाणं बीयं च वासं न तहिं वसेज्जा ।
सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू सुत्तस्स अत्थो जह आणवेइ ॥ Translated Sutra: वर्षाकाल में चार मास और अन्य ऋतुओं में एक मास रहने का उत्कृष्ट प्रमाण है। वहीं दूसरे वर्ष नहीं रहना चाहिए। सूत्र का अर्थ जिस प्रकार आज्ञा दे, भिक्षु उसी प्रकार सूत्र के मार्ग से चले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 536 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपिक्खई अप्पगमप्पएणं ।
किं मे कडं? किं च मे किच्चसेसं? किं सक्कणिज्जं न समायरामि? ॥ Translated Sutra: जो साधु रात्रि के प्रथम प्रहर और पिछले प्रहर में अपनी आत्मा का अपनी आत्मा द्वारा सम्प्रेक्षण करता है कि – मैंने क्या किया है ? मेरे लिए क्या कृत्य शेष रहा है ? वह कौन – सा कार्य है, जो मेरे द्वारा शक्य है, किन्तु मैं नहीं कर रहा हूँ ? क्या मेरी स्खलना को दूसरा कोई देखता है ? अथवा क्या अपनी भूल को मैं स्वयं देखता हूँ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 537 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं मे परो पासइ? किं व अप्पा? किं वाहं खलियं न विवज्जयामि? ।
इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो अनागयं नो पडिबंध कुज्जा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५३६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 538 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं काएण वाया अदु मानसेणं ।
तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा आइन्नओ खिप्पमिव क्खलीणं ॥ Translated Sutra: जिस क्रिया में भी तन से, वाणी से अथवा मन से (अपने को) दुष्प्रयुक्त देखे, वहीं (उसी क्रिया में) धीर सम्भल जाए, जैसे जातिमान् अश्व लगाम खींचते ही शीघ्र संभल जाता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 539 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्चं ।
तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवइ संजमजीविएणं ॥ Translated Sutra: जिस जितेन्द्रिय, धृतिमान् सत्पुरुष के योग सदा इस प्रकार के रहते हैं, उसे लोक में प्रतिबुद्धजीवी कहते हैं, वही वास्तव में संयमी जीवन जीता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Hindi | 540 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो सव्विंदिएहिं सुसमाहिएहिं ।
अरक्खिओ जाइपहं उवेइ सुरक्खिओ सव्वदुहाणं मुच्चइ ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: समस्त इन्द्रियों को सुसमाहित करके आत्मा की सतत रक्षा करनी चाहिए, अरक्षित आत्मा जातिपथ को प्राप्त होता है और सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Gujarati | 536 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपिक्खई अप्पगमप्पएणं ।
किं मे कडं? किं च मे किच्चसेसं? किं सक्कणिज्जं न समायरामि? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૪ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा |
Gujarati | 24 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए ।
सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 76 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] संपत्ते भिक्खकालम्मि असंभंतो अमुच्छिओ ।
इमेण कमजोगेण भत्तपानं गवेसए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬. ભિક્ષાકાળ પ્રાપ્ત થતા અસંભ્રાત અને અમૂર્ચ્છિત થઈને આ ક્રમ – યોગથી ભોજન – પાનની ગવેષણા કરે. સૂત્ર– ૭૭. ગામમાં કે નગરમાં ગોચરાગ્રને માટે પ્રસ્થિત મુનિ અનુદ્વિગ્ન અને અવ્યાક્ષિપ્ત ચિત્તથી ધીમે ધીમે ચાલે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૭૬, ૭૭ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 115 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सिया य समणट्ठाए गुव्विणी कालमासिणी ।
उट्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणट्ठए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 179 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे ।
अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૯. ભિક્ષુ, ભિક્ષા – કાળે ભિક્ષાર્થે નીકળે, કાળે જ પાછો ફરે. અકાલનેળે વર્જીને જે કાર્ય જ્યારે ઉચિત હોય, ત્યારે તે કાર્ય કરે. સૂત્ર– ૧૮૦. હે મુનિ ! જો તું અકાળમાં ભિક્ષાર્થે જઈશ અને કાળનું પ્રતિલેખન નહી કરે તો ભિક્ષા ન મળે ત્યારે તું તને પોતાને ક્ષુબ્ધ કરીશ અને સંનિવેશની નિંદા કરીશ. સૂત્ર– ૧૮૧. ભિક્ષુ સમય | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 180 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अकाले चरसि भिक्खू कालं न पडिलेहसि ।
अप्पाणं च किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Gujarati | 181 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं ।
अलाभो त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियासए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Gujarati | 300 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवमाई उ जा भासा एसकालम्मि संकिया ।
संपयाईयमट्ठे वा तं पि धीरो विवज्जए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૮ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Gujarati | 301 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए ।
जमट्ठं तु न जाणेज्जा एवमेयं ति नो वए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૧. અતીત, વર્તમાન અને અનાગત કાળ સંબંધી જે અર્થને ન જાણતો હોય, તે વિષયમાં ‘આ એ પ્રકારે છે’ તેમ ન બોલે. સૂત્ર– ૩૦૨. અથવા જેના વિષયમાં શંકા હોય ત્યાં ‘આ એ પ્રકારે છે’ તેમ ન કહે. સૂત્ર– ૩૦૩. પરંતુ ત્રણે કાળ સંબંધી જે અર્થ નિઃશંકિત હોય, તેના વિષયમાં ‘આ એ પ્રકારે છે’ એવો નિર્દેશ કરે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૩૦૧–૩૦૩ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Gujarati | 302 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमनागए ।
जत्थ संका भवे तं तु एवमेयं ति नो वए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૧ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Gujarati | 303 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमनागए ।
निस्संकियं भवे जं तु, एवमेयं ति निद्दिसे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૧ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Gujarati | 385 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बलं थामं च पेहाए सद्धामारोगमप्पणो ।
खेत्तं कालं च विण्णाय तहप्पाणं निजुंजए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૯ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-२ | Gujarati | 452 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कालं छंदोवयारं च पडिलेहित्ताण हेउहिं ।
तेण तेण उवाएण तं तं संपडिवायए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪૮ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चूलिका-१ रतिवाक्या |
Gujarati | 506 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भो! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं, ओहानुप्पेहिणा अनो-हाइएणं चेव, हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाइं इमाइं अट्ठारस ठाणाइं सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति, तं जहा–
१. हं भो! दुस्समाए दुप्पजीवी।
२. लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा।
३. भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा।
४. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ।
५. ओमजनपुरक्कारे।
६. वंतस्स य पडियाइयणं।
७. अहरगइवासोवसंपया।
८. दुल्लभे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं।
९. आयंके से वहाय होइ।
१०. संकप्पे से वहाय होइ।
११. सोवक्केसे गिहवासे। निरुवक्केसे परियाए।
१२. बंधे गिहवासे। मोक्खे परियाए।
१३. Translated Sutra: હે સાધકો ! આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનમાં જે પ્રવ્રજિત થયેલ છે, પણ કદાચિત દુઃખ ઉત્પન્ન થતા સંયમમાં તેમનું ચિત્ત અરતિયુક્ત થઈ જાય, તેથી તે સંયમનો પરિત્યાગ કરવા ઇચ્છે છે, પણ સંયમ તજ્યો નથી તેને પહેલાં આ અઢાર સ્થાનોનું સમ્યક્ પ્રકારે આલોચન કરવું જોઈએ. આ અઢાર સ્થાનો અશ્વ માટે લગામ, હાથી માટે અંકુશ, જહાજ માટે પતાકા સમાન | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा |
Hindi | 1 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अमर-नरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिनवरिंदे ।
वीरवरपच्छिमंते तेलोक्कगुरू गुणाइन्ने ॥ Translated Sutra: त्रैलोक्य गुरु – गुण से परिपूर्ण, देव और मानव द्वारा पूजनीय, ऋषभ आदि जिनवर और अन्तिम तीर्थंकर महावीर को नमस्कार करके निश्चे आगमविद् किसी श्रावक संध्याकाल के प्रारम्भ में जिसका अहंकार जीत लिया है वैसे वर्धमानस्वामी की मनोहर स्तुति करता है। और वो स्तुति करनेवाले श्रावक की पत्नी सुख शान्ति से सामने बैठकर | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 232 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारो ऊसासो एसो मे वन्निओ समासेणं ।
सुहुमंतरा य नाहिसि सुंदरि! अचिरेण कालेण ॥ Translated Sutra: और उतने ही हजार साल पर उन्हें आहार की ईच्छा होती है। इस तरह आहार और श्वासोच्छ्वास का मैंने वर्णन किया, हे सुंदरी ! अब जल्द उनके सूक्ष्म अन्तर को मैं क्रमशः बताऊंगा। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा |
Hindi | 8 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कयरे ते बत्तीसं देविंदा? को व कत्थ परिवसइ? ।
केवइया कस्स ठिई? को भवनपरिग्गहो कस्स? ॥ Translated Sutra: वो बत्तीस इन्द्र कैसे हैं? कहाँ रहते हैं ? किस की कैसी दशा है ? भवन परिग्रह कितना है ? किसके कितने विमान हैं ? कितने भवन हैं ? कितने नगर हैं ? वहाँ पृथ्वी की चौड़ाई ऊंचाई कितनी है ? उस विमान का वर्ण कैसा है? आहार का जघन्य, मध्यम या उत्कृष्ट काल कितना है? श्वासोच्छ्वास, अवधिज्ञान कैसे हैं ? आदि मुझे बताओ सूत्र – ८–१० | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा |
Hindi | 10 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] के केनाऽऽहारंति व कालेणुक्कोस मज्झिम जहन्नं? ।
उस्सासो निस्सासो ओहीविसओ व को केसिं? ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
भवनपति अधिकार |
Hindi | 38 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा भवनवई वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Hindi | 69 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले १ य महाकाले २।१ सुरूव ३ पडिरूव ४।२ पुन्नभद्दे ५ य ।
अमरवइ माणिभद्दे ६।३ भीमे ७ य तहा महाभीमे ८।४ ॥ Translated Sutra: काल, महाकाल, सुरूप, प्रतिरूप, पूर्णभद्र, माणिभद्र, भीम, महाभीम, किन्नर, किंपुरुष, सत्पुरुष, महापुरुष, अतिकाय, महाकाय, गीतरति और गीतयश यह वाणव्यंतर इन्द्र हैं। और वाणव्यंतर के भेद में सन्निहित, समान, धाता, विधाता, ऋषि, ऋषिपाल, ईश्वर, महेश्वर, सुवत्स, विशाल, हास, हासरति, श्वेत, महाश्वेत, पतंग, पतंगपति उन सोलह इन्द्र | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Hindi | 76 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा वंतरिया वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७४ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Hindi | 77 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले सुरूव पुण्णे भीमे तह किन्नरे य सप्पुरिसे ।
अइकाए गीयरई अट्ठेते होंति दाहिणओ ॥ Translated Sutra: काल, सुरूप, पुन्य, भीम, किन्नर, सुपुरिष, अकायिक, गीतरती ये आठ दक्षिण में होते हैं। मणि – स्वर्ण और रत्न के स्तूप, सोने की वेदिका युक्त उनके भवन दक्षिणदिशा की ओर होते हैं और बाकी के उत्तरदिशा में होते हैं। सूत्र – ७७, ७८ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 86 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा जोइसिया वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: जिसमें ज्योतिषी देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और वाद्य की आवाझ के कारण से हंमेशा सुख और प्रमोद से पसार होनेवाले काल को नहीं जानते। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 113 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउवीसं ससि-रविणो, नक्खत्तसया य तिन्नि छत्तीसा ।
एक्कं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायईसंडे ॥ Translated Sutra: घातकी खंड में १२ चन्द्र, १२ सूर्य, ३३६ नक्षत्र, १०५६ ग्रह और ८०३७०० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं। कालोदधि समुद्र में तेजस्वी किरण से युक्त ४२ चन्द्र, ४२ सूर्य, ११७६ नक्षत्र, ३६९६ ग्रह और २८१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं। सूत्र – ११३–११७ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 115 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता ।
कालोदहिम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११३ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 117 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सहस्साइं ।
नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११३ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 142 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढइ चंदो? परिहानी वा वि केण चंदस्स? ।
कालो वा जोण्हा वा केणऽनुभावेण चंदस्स? ॥ Translated Sutra: किस कारण से चन्द्रमा बढ़ता है और किस कारण से चन्द्रमा क्षीण होता है ? या किस कारण से चन्द्र की ज्योत्सना और कालिमा होती है ? | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 143 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किण्हं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं ।
चउरंगुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ ॥ Translated Sutra: राहु का काला विमान हंमेशा चन्द्रमा के साथ चार अंगुल नीचे गमन करते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 144 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं बावट्ठिं दिवसे दिवसे तु सुक्कपक्खस्स ।
जं परिवड्ढइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥ Translated Sutra: शुक्लपक्ष में चन्द्र का ६२ – ६२ हिस्सा राहु से अनावृत्त होकर हररोज बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में उतने ही वक्त में राहु से आवृत्त होकर कम होता है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 146 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढइ चंदो, परिहानी एव होइ चंदस्स ।
कालो वा जोण्हा वा तेणऽनुभावेण चंदस्स ॥ Translated Sutra: उस कारण से चन्द्रमा वृद्धि को और ह्रास को पाते हैं। उसी कारण से ज्योत्सना और कालिमा आते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 150 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए जंबुद्दीवे दुगुणा, लवणे चउग्गुणा होंति ।
कालोयणा तिगुणिया ससि-सूरा धायईसंडे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४९ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 151 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा ।
आइल्लचंदसहिया अनंतरानंतरे खेत्ते ॥ Translated Sutra: घातकी खंड के आगे के क्षेत्र में मतलब द्वीप समूह में सूर्य – चन्द्र की गिनती उसके पूर्व द्वीप समूह की गिनती से तीन तीन गुना करके और उसमें पूर्व के चन्द्र और सूर्य की गिनती बढ़ाकर मानना चाहिए। (जैसे कि कालोदधि समुद्र में ४२ – ४२ चन्द्र – सूर्य विचरण करते हैं, वो इस तरह पूर्व के लवणसमुद्र में १२ – १२ हैं तो उसके तीन | |||||||||
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वैमानिक अधिकार |
Hindi | 251 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किण्हा नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति ।
पंचसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: इस कल्प में हरे, पीले, लाल, श्वेत और काले वर्णवाले पाँचसौ ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। वहाँ सेंकड़ों मणि जड़ित कईं तरह के आसन, शय्या, सुशोभित विस्तृत वस्त्र रत्नमय हार और अलंकार होते हैं। सूत्र – २५१, २५२ |