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Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 235 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सूरोदयं गच्छमहं पभाए चंदोदयं जंतु तणाइहारा । दुहा खी पद्युरसंतिकाउं रायावि चंदोदयमेव गच्छे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११७
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 273 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बायर सुहुमं भावे उ पूइयं सुहुममुवरि वोच्छामि । उवगरण भत्तपाने दुविहं पुन बायरं पूइं ॥

Translated Sutra: पूतिकर्म दो प्रकार से हैं। एक सूक्ष्मपूति और दूसरी बाहर पूति। सूक्ष्मपूति आगे बताएंगे। बादरपूति दो प्रकार से। उपकरणपूति और भक्तपानपूति। पूतिकर्म – यानि शुद्ध आहार के आधाकर्मी आहार का मिलना। यानि शुद्ध आहार भी अशुद्ध बनाए। पूति चार प्रकार से। नामपूति, स्थापनापूति, द्रव्यपूति और भावपूति। नामपूति – पूति
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 311 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाहुडियावि हु दुविहा बायर सुहुमा य होइ नायव्वा । ओसक्कणमुस्सक्कण कब्बट्टीए समोसरणो ॥

Translated Sutra: साधु को वहोराने की भावना से आहार आदि जल्द या देर से बनाना प्राभृतिका कहते हैं। यह प्राभृतिका दो प्रकार की है। बादर और सूक्ष्म। उन दोनों के दो – दो भेद हैं। अवसर्पण यानि जल्दी करना और उत्सर्पण यानि देर से करना। वो साधु समुदाय आया हो या आनेवाले हो उस कारण से अपने यहाँ लिए गए ग्लान आदि अवसर देर से आता हो तो जल्द
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 322 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नीयदुवारंमि घरे न सुज्झई एसणत्तिकाऊणं । नीहंमिए अगारी अच्छइ विलिया वऽगहिएणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३११
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 334 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कीयगडंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविहऽचित्ताइ ॥

Translated Sutra: साधु के लिए बिका हुआ लाकर देना क्रीतदोष कहलाता है। क्रीतदोष दो प्रकार से है। १. द्रव्य से और २. भाव से। द्रव्य के और भाव के दो – दो प्रकार – आत्मक्रीत और परक्रीत। परद्रव्यक्रीत तीन प्रकार से। सचित्त, अचित्त और मिश्र। आत्मद्रव्यक्रीत – साधु अपने पास के निर्माल्यतीर्थ आदि स्थान में रहे प्रभावशाली प्रतिमा की
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 376 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिहिउब्भिन्नकवाडे फासुय अप्फासुए य बोद्धवे । अप्फासुय पुढविमाई फासुय छगणाइदद्दरए ॥

Translated Sutra: साधु के लिए कपाट आदि खोलकर या तोड़कर दे। तो उद्‌भिन्न दोष। उद्‌भिन्न – यानि बँधक आदि तोड़कर या बन्ध हो तो खोले। वो दो प्रकार से। जार आदि पर बन्ध किया गया या ढ़ँकी हुई चीज उठाकर उसमें रही चीज देना। कपाट आदि खोलकर देना। ढक्कन दो प्रकार के – सचित्त मिट्टी आदि से बन्ध किया गया, बाँधा हुआ या ढ़ँका हुआ। अचित्त सूखा गोबर,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 423 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आहाकम्मुद्देसिय चरमतिगं पूइ मीसजाए य । बायरपाहुडियाविय अज्झोयरए य चरिमदुगं ॥

Translated Sutra: विशोधि कोटि – यानि जितना साधु के लिए सोचा या पकाया हो उतना दूर किया जाए तो बाकी बचा है उसमें से साधु ग्रहण कर सके यानि साधु को लेना कल्पे। अविशोधि कोटि – यानि उतना हिस्सा अलग करने के बावजूद भी साधु ग्रहण न कर सके। यानि साधु को लेना न कल्पे। जिस पात्र में ऐसा यानि अविशोधि कोटि आहार ग्रहण हो गया हो उस पात्र में से
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 434 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोडीकरणं दुविहं उग्गमकोडी विसोहिकोडी य । उग्गमकोडी छक्कं विसोहिकोडी अनेगविहा ॥

Translated Sutra: अब दूसरी प्रकार से विशोधिकोटि अविशोधिकोटि समझाते हैं। कोटिकरण दो प्रकार से – उद्‌गमकोटि और विशोधिकोटि। उद्‌गमकोटि छह प्रकार से, आगे कहने के अनुसार – विशोधिकोटि कईं प्रकार से ९ – १८ – २७ – ५४ – ९० और २७० भेद होते हैं। ९ – प्रकार – वध करना, करवाना और अनुमोदना करना। पकाना और अनुमोदना करना। बिकता हुआ लेना, दिलाना
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

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Hindi 463 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सग्गाम परग्गामे दुविहा दूई उ होइ नायव्वा । सा वा सो या भणई भणइ व तं छन्नवयणेणं ॥

Translated Sutra: दूतीपन दो प्रकार से होता है। जिस गाँव में ठहरे हो उसी गाँव में और दूसरे गाँव में। गृहस्थ का संदेशा साधु ले जाए या लाए और उसके द्वारा भिक्षा ले तो दूतीपिंड़ कहलाता है। संदेशा दो प्रकार से समझना – प्रकट प्रकार से बताए और गुप्त प्रकार से बताए। वो भी दो प्रकार से। लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक प्रकट दूतीपन – दूसरे गृहस्थ
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 470 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छव्विहे भवे दोसा । सज्जं तु वट्टमाणे आउभए तत्थिमं नायं ॥

Translated Sutra: जो किसी आहारादि के लिए गृहस्थ को वर्तमानकाल भूत, भावि के फायदे, नुकसान, सुख, दुःख, आयु, मौत आदि से जुड़े हुए निमित्त ज्ञान से कथन करे, वो साधु पापी है। क्योंकि निमित्त कहना पाप का उपदेश है। इसलिए किसी दिन अपना घात हो, दूसरों का घात हो या ऊभय का घात आदि अनर्थ होना मुमकीन है। इसलिए साधु को निमित्त आदि कहकर भिक्षा नहीं
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 474 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोवो वडवागब्भं च पुच्छिओ पंचपुंडमाहंसु । फालण दिट्ठे जइ नेव तो तुहं अवितहं कइ वा ॥

Translated Sutra: आजीविका पाँच प्रकार से होती है। जाति – सम्बन्धी, कुल सम्बन्धी, गण सम्बन्धी, कर्म सम्बन्धी, शील्प सम्बन्धी। इन पाँच प्रकारों में साधु इस प्रकार बोले कि जिससे गृहस्थ समझे कि, यह हमारी जाति का है, या तो साफ बताए कि मैं ब्राह्मण आदि हूँ। इस प्रकार खुद को ऐसा बताने के लिए भिक्षा लेना, वो आजीविका दोषवाली मानी जाती
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 538 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चुन्ने अंतद्धाणे चाणक्के पायलेवणे समिए । मूल विवाहे दो दंडिणी उ आयाणपरिसाडे ॥

Translated Sutra: चूर्णपिंड़ – अदृश्य होना या वशीकरण करना, आँख में लगाने का अंजन या माथे पर तिलक करने आदि की सामग्री चूर्ण कहलाती है। भिक्षा पाने के लिए इस प्रकार के चूर्ण का उपयोग करना, चूर्णपिंड़ कहलाता है। योगपिंड़ – सौभाग्य और दौर्भाग्य को करनेवाले पानी के साथ घिसकर पीया जाए ऐसे चंदन आदि, धूप देनेवाले, द्रव्य विशेष, एवं आकाशगमन,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 573 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ अच्चित्तं । सच्चित्तं पुन तिविहं अच्चित्तं होइ दुविहं तु ॥

Translated Sutra: म्रक्षित (लगा हुआ – चिपका हुआ) दो प्रकार से – सचित्त और अचित्त। सचित्त म्रक्षित तीन प्रकार से – पृथ्वीकाय म्रक्षित, अप्‌काय म्रक्षित, वनस्पतिकाय म्रक्षित। अचित्त म्रक्षित दो प्रकार से – लोगों में तिरस्कार रूप, माँस, चरबी, रूधिर आदि से म्रक्षित, लोगों में अनिन्दनीय घी आदि से म्रक्षित। सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 582 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सच्चित्तमीसएसु दुविहं काएसु होइ निक्खित्तं । एक्केक्कं तं दुविहं अनंतर परंपरं चेव ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकायादि के लिए दो प्रकार से – १. सचित्त, २. मिश्र। सचित्त के दो प्रकार – १. अनन्तर आंतरा रहित, २. परम्पर – आँतरावाला। मिश्र में दो प्रकार – १. अनन्तर, २. परम्पर। इस प्रकार हो सके। सामान्य से निक्षिप्त के तीन प्रकार हैं – १. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। तीनों में चार – चार भाँगा होते हैं। इसलिए तीन चतुर्भंगी होती
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 614 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाले वुड्ढे मत्ते उम्मत्ते वेविए य जरिए य । अंधिल्लए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥

Translated Sutra: नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे। बच्चा – आठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे। बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कईं प्रकार के दोष रहे हैं। एक स्त्री नई – नई श्राविका बनी थी। एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 655 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घेत्तव्वमलोवकडं लेवकडे मा हु पच्छकम्माई । न य रसगेहिपसंगो इअ वुत्ते चोयगो भणइ ॥

Translated Sutra: लिप्त का अर्थ है – जिस अशनादि से हाथ, पात्र आदि खरड़ाना, जैसे की दहीं, दूध, दाल आदि द्रव्यों को लिप्त कहलाते हैं। जिनेश्वर परमात्मा के शासन में ऐसे लिप्त द्रव्य लेना नहीं कल्पता, क्योंकि लिप्त हाथ, भाजन आदि धोने में पश्चात्कर्म लगते हैं तथा रस की आसक्ति का भी संभव होता है। लिप्त हाथ, लिप्त भाजन, शेष बचे हुए द्रव्य
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उपसंहार

Hindi 703 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छहिं कारणेहिं साधू आहारिंतोवि आयरइ धम्मं । छहिंचेव कारणेहि निज्जूहिंतोवि आयरइ ॥

Translated Sutra: आहार करने के छह कारण हैं। इन छह कारण के अलावा आहार ले तो कारणातिरिक्त नामका दोष लगे क्षुधा वेदनीय दूर करने के लिए, वैयावच्च सेवा भक्ति करने के लिए, संयम पालन करने के लिए, शुभ ध्यान करने के लिए, प्राण टिकाए रखने के लिए, इर्यासमिति का पालन करने के लिए। इन छह कारण से साधु आहार खाए, लेकिन शरीर का रूप या जबान के रस के
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 614 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाले वुड्ढे मत्ते उम्मत्ते वेविए य जरिए य । अंधिल्लए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥

Translated Sutra: સંહૃત દ્વાર કહ્યું. દાયક નામે છઠ્ઠું દ્વાર છ ગાથાથી કહે છે. તે આ પ્રમાણે – ૧ થી ૫) બાલ, વૃદ્ધ, મત્ત, ઉન્મત્ત, કંપતો, ૬ થી ૧૦) જ્વરવાળો, અંધ, પ્રગલિત, પાદુકારૂઢ, હાથના બંધનવાળો, ૧૧ થી ૧૫) નિગડ બંધનવાળો, હાથ કે પગ રહિત, નપુંસક, ગર્ભિણી, બાલવત્સા, ૧૬ થી ૨૦) ભોજન કરતી, દહીં વલોવતી, ભુંજતી, દળતી, ખાંડતી, ૨૧ થી ૨૫) પીસતી, પીંજતી,
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

पिण्ड

Gujarati 36 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पायस्स पडोयारो पत्तगवज्जो य पायनिज्जोगो । दोन्नि निसिज्जाओ पुन अब्भिंतर बाहिरा चेव ॥

Translated Sutra: પાત્રનો પ્રત્યાવતાર, પાત્રને વર્જીને પાત્રનો નિયોગ છ પ્રકારે છે, અભ્યંતર અને બાહ્ય બે નિષદ્યા, સંથારો – ઉત્તર પટ્ટો – ચોલપટ્ટો એ ત્રણ પટ્ટ જાણવા. મુખપોત્તિકા, એક નિષદ્યાવાળુ રજોહરણ આ સર્વે હંમેશાં ઉપયોગી હોવાથી વિશ્રાંતિ આપવા લાયક નથી, તેથી યતના વડે ષટ્‌પાદિકાને સંક્રમાવીને વિધિપૂર્વક તેને ધોવાના છે. સૂત્ર
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

पिण्ड

Gujarati 58 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वणसइकाओ तिविहो सच्चित्तो मीसओ य अच्चित्तो । सच्चित्तो पुन दुविहो निच्छयववहारओ चेव ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮. વનસ્પતિકાય ત્રણ પ્રકારે – સચિત્ત, અચિત્ત, મિશ્ર. સચિત્ત બે પ્રકારે – નિશ્ચયથી અને વ્યવહારથી. સૂત્ર– ૫૯. નિશ્ચયથી સર્વે પણ અનંતકાય સચિત્ત હોય છે. પ્રત્યેક વનસ્પતિકાય વ્યવહારથી સચિત્ત છે. મ્લાન થયેલ વનસ્પતિ અને લોટ – આટો વગેરે મિશ્ર હોય છે. સૂત્ર– ૬૦. પુષ્પ, પત્ર, કોમળ ફળ, હરિત એ સર્વેના ડીંટ મ્લાનિ પામ્યા
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 107 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे य मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए पाओअर कीय पामिच्चे ॥

Translated Sutra: આધાકર્મ, ઔદ્દેશિક, પૂતિકર્મ, મિશ્રજાત, સ્થાપના, પ્રાભૃતિકા, પ્રાદુષ્કરણ, ક્રીત, અપમિત્ય, પરિવર્તિત, અભ્યાહૃત, ઉદ્ભિન્ન, માલોપહૃત, આચ્છેદ્ય, અનિસૃષ્ટ, અધ્યવપૂરક. આ ૧૬ – દોષો ઉદ્‌ગમના છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૦૭, ૧૦૮
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 134 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्तीकरेइ कम्मं पडिसेवाईहिं तं पुन इमेहिं । तत्थ गुरू आइएयं लहु लहु लहुगा कमेणियरे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩૪. વળી તે કર્મને પ્રતિસેવનાદિ વડે આત્માને આધીન કરે છે. તેમાં પહેલું પદ ગુરુ છે, બીજા ત્રણ પદો અનુક્રમે લઘુ, લઘુ, લઘુ છે. સૂત્ર– ૧૩૫. પ્રતિસેવનાદિના સ્વરૂપના સ્વરૂપને પ્રતિપાદન કરવાની પ્રતિજ્ઞાથી કહે છે – હું પ્રતિસેવનાથી અનુમોદના પર્યન્તના દ્વારોના યથાસંભવ સ્વરૂપને દૃષ્ટાંત સહિત કહીશ. સૂત્ર– ૧૩૬.
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 194 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छायंपि विवज्जंती केई फलहेउगाइवुत्तस्स । तं तु न जुज्जइ जम्हा फलंपि कप्पं बिइयभंगे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૪. ફલાદિને માટે વાવેલા વૃક્ષની છાયાને પણ કેટલાંક વર્જે છે, તે યોગ્ય નથી, કેમ કે બીજા ભંગમાં તેનું ફળ કલ્પે છે. સૂત્ર– ૧૯૫. બીજાના હેતુવાળી છાયા છે, તે છાયા વૃક્ષની જેમ કર્તાએ વૃદ્ધિ પમાડી નથી. છતાં આમ કહેનારને જ્યારે વૃક્ષની છાયા નષ્ટ થશે ત્યારે કલ્પશે. સૂત્ર– ૧૯૬. છાયા વૃદ્ધિ અને હાનિ પામે છે, તેથી તેના
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 235 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सूरोदयं गच्छमहं पभाए चंदोदयं जंतु तणाइहारा । दुहा खी पद्युरसंतिकाउं रायावि चंदोदयमेव गच्छे ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩૪
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 267 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पूईकम्मं दुविहं दव्वे भावे य होइ नायव्वं । दव्वंमि छगणधम्मिय भावंमि य बायरं सुहुमं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬૭. પૂતિકર્મ દ્રવ્ય અને ભાવ બે પ્રકારે છે. દ્રવ્યમાં છાણ વડે કહેવાતું ધાર્મિક દૃષ્ટાંત છે. ભાવમાં બાદર અને સૂક્ષ્મ બે ભેદ છે. સૂત્ર– ૨૬૮. દ્રવ્યપૂતિ – જે દ્રવ્ય ગંધાદિગુણે યુક્ત પણ અશુચિ ગંધદ્રવ્યથી સહિત થવાની પૂતિ છે, તેથી તેનો ત્યાગ કરાય છે. સૂત્ર– ૨૬૯, ૨૭૦. હવે બે ગાથા વડે દ્રવ્ય પૂતિનું દૃષ્ટાંત
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 271 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उग्गमकोडीअवयवमित्तेणवि मीसियं सुसुद्धंपि । सुद्धंपि कुणइ चरणं पूइं तं भावओ पूई ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૭૧. ઉદ્‌ગમ કોટિના અવયવ માત્રથી પણ મિશ્ર અશનાદિક શુદ્ધ છતાં પણ અશુદ્ધ ચારિત્રને મલિન કરે છે, આ ભાવપૂતિ કહેવાય. સૂત્ર– ૨૭૨. આધાકર્મ, ઔદ્દેશિક, બાદર પ્રાભૃતિકા, ભાવપૂતિ અને અધ્યવપૂરક એ ઉદ્‌ગમકોટિ કહેવાય. સૂત્ર– ૨૭૩. ભાવપૂતિ બે ભેદે – બાદર, સૂક્ષ્મ. તેમાં બાદરપૂતિ બે ભેદે – ઉપકરણમાં અને ભોજનપાનમાં. સૂત્ર–
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 293 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समणकडाहाकम्मं समणाणं जं कडेण मीसं तु । आहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ ॥

Translated Sutra: શ્રમણ માટે કરેલ આહાર, ઉપધિ, વસતિ આદિ સર્વે આધાકર્મી કહેવાય. શ્રમણ માટે કરેલ આધાકર્મ વડે મિશ્ર આહાર આદિ બધા પૂતિ કહેવાય. જો સાધુને શંકા જાય કે આ આહાર પૂતિકર્મ યુક્ત છે, તો તેનો ત્યાગ કરવો અને જો સ્ત્રીઓના સંલાપથી જાણે કે આ પૂતિ દોષયુક્ત નથી તો તે ગ્રહણ કરવો કલ્પે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૯૩, ૨૯૪
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 302 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सट्ठाणपरट्ठाणे दुविहं ठवियं तु होइ नायव्वं । खीराइ परंपरए हत्थगय धरंतरं जाव ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: (ભાષ્ય – ૩૪) અનુવાદ: સૂત્ર– ૩૦૨. સ્વસ્થાન અને પરસ્થાન એમ બે પ્રકારે સ્થાપના હોય છે, તેમ જાણવુ. તેમાં દૂધ આદિ પરંપર સ્થાપિત છે. હાથમાં રહેલ ભિક્ષા એક પંક્તિના ત્રણ ઘર સુધી જ સ્થાપના દોષના અભાવવાળી છે. સૂત્ર– ૩૦૩. ચૂલો કે અવચુલ્લ એ સ્થાનરૂપ સ્વસ્થાન છે, પિઠર – તપેલી એ ભાજનરૂપ સ્વસ્થાન છે. આ બંને
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 311 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाहुडियावि हु दुविहा बायर सुहुमा य होइ नायव्वा । ओसक्कणमुस्सक्कण कब्बट्टीए समोसरणो ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૧. પ્રાભૃતિકા પણ બાદર અને સૂક્ષ્મ બે ભેદે છે, એમ જાણવું. તે દરેકના પણ અવષ્વષ્કણ અને ઉત્ષ્વષ્કણ એમ બબ્બે ભેદ છે. તે વિશે સિદ્ધાંતમાં પુત્રી વિવાહનું દૃષ્ટાંત છે. સૂત્ર– ૩૧૨, ૩૧૩. હું રૂની પૂણી કાંતુ છું તેથી પછી આપીશ, તો માટે તું રડ નહીં, આવા વચન સાધુ સાંભળે તો ત્યાં આરંભ જાણી ન જાય. અથવા ‘અન્ય કાર્ય માટે
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 322 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नीयदुवारंमि घरे न सुज्झई एसणत्तिकाऊणं । नीहंमिए अगारी अच्छइ विलिया वऽगहिएणं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૨૦
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 334 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कीयगडंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं । आयकियं च परकियं परदव्वं तिविहऽचित्ताइ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૩૪. ક્રીતકૃત પણ દ્રવ્ય અને ભાવથી બે પ્રકારે છે – તે પ્રત્યેકના બબ્બે ભેદ છે – આત્મક્રીત, પરક્રીત. તેમાં પરદ્રવ્ય સચિત્તાદિ ત્રણ ભેદ છે. સૂત્ર– ૩૩૫. આત્મક્રીત દ્રવ્યથી અને ભાવથી બે ભેદે છે. દ્રવ્ય – ચૂર્ણાદિ, ભાવથી બીજાને માટે કે પોતાને માટે જ. સૂત્ર– ૩૩૬. આત્મદ્રવ્ય ક્રીતનું વિસ્તારથી વિવરણ – નિર્માલ્ય,
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 418 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झोयरओ तिविहो जावंतिय सघरमीसपासंडे । मूलंमि य पुव्वकये ओयरई तिण्ह अट्ठाए ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૧૮. અધ્યવપૂરક ત્રણ પ્રકારે છે – યાવંતિક, સ્વગૃહમિશ્ર અને પાખંડ. આરંભમાં પહેલાં પોતાના માટે કરીને પછી તે ત્રણેને માટે ઉતારે. સૂત્ર– ૪૧૯. તંદુલ, જળ, પુષ્પ, ફળ, શાક, બેસન અને લવણ આદિને લાવતી વખતે વિવિધ પરિણામ વડે અધ્યવપૂરક અને મિશ્રજાતનું વિવિધપણુ જાણવુ. સૂત્ર– ૪૨૦. યાવદર્થિકને વિશે વિશોધિ છે, સ્વગૃહ અને
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

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Gujarati 422 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसो सोलसमेओ दुहा कीरई उग्गमो । एगो विसोहिकोडी अविसोही उ चावरा ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૨૨. ઉક્ત ૧૬ – પ્રકારનો ઉદ્‌ગમ બે પ્રકારે છે – વિશોધિકોટિ રૂપ અને અવિશોધિ કોટિરૂપ. સૂત્ર– ૪૨૩. આધાકર્મ ઔદ્દેશિકના છેલ્લા ત્રણ ભેદ, પૂતિ, મિશ્રજાત, બાદરપ્રાભૃતિકા, અધ્યવપૂરકના છેલ્લા બે ભેદ અવિશોધિકોટિ છે. સૂત્ર– ૪૨૪. ઉદ્‌ગમકોટિ અવયવ, લેપ, અલેપથી સ્પર્શિત ભોજન ત્રણ કલ્પ કર્યા વિના જે ગ્રહણ કરાય તે પૂતિ,
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

उद्गम्

Gujarati 434 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोडीकरणं दुविहं उग्गमकोडी विसोहिकोडी य । उग्गमकोडी छक्कं विसोहिकोडी अनेगविहा ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩૪. કોટિકરણ બે ભેદે છે – ઉદ્‌ગમ કોટિ અને વિશોધિ કોટિ. તેમાં ઉદ્‌ગમ કોટિ છ પ્રકારે અને વિશોધિ કોટિ અનેક પ્રકારે છે. સૂત્ર– ૪૩૫. હવે તે કોટિ બીજા પ્રકારે કહે છે – નવ, અઢાર, સત્તાવીશ, ચોપન, નેવુ, ૨૭૦ એ ભેદ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૩૪, ૪૩૫
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

उत्पादन

Gujarati 470 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छव्विहे भवे दोसा । सज्जं तु वट्टमाणे आउभए तत्थिमं नायं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭૦. ત્રણ કાળના વિષયવાળા પણ છ પ્રકારના નિમિત્તને વિશે નિશ્ચે દોષો લાગે છે. તેમાં વર્તમાનકાળે આયુનો ભય તત્કાળ થાય છે. સૂત્ર– ૪૭૧. લાભાલાભ, સુખ – દુઃખ, જીવિત – મરણ આ છ નિમિત્તો છે. સૂત્ર– ૪૭૨. નિમિત્ત વડે ભોગિનીને વશ કરી ઇત્યાદિ દૃષ્ટાંત વૃત્તિમાં જોવું. સૂત્ર– ૪૭૩, ૪૭૪. ભાષ્યકારશ્રીએ આ બે ગાથા ઉક્ત દૃષ્ટાંતનો
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 573 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ अच्चित्तं । सच्चित्तं पुन तिविहं अच्चित्तं होइ दुविहं तु ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૭૩. મ્રક્ષિત બે ભેદે છે – સચિત્ત અને અચિત્ત. સચિત્ત ત્રણ ભેદે અને અચિત્ત બે ભેદે છે. સૂત્ર– ૫૭૪. સચિત્ત મ્રક્ષિત ત્રણ ભેદે – પૃથ્વી, અપ્‌, વનસ્પતિ. અચિત્ત મ્રક્ષિત બે ભેદે – ગર્હિત અને અગર્હિત. કલ્પ્યાકલ્પ્યની વિધિમાં ભજના. સૂત્ર– ૫૭૫. જે રજ સહિત શુષ્ક વડે અને આર્દ્ર પૃથ્વીકાય વડે મ્રક્ષિત હોય તે સર્વ
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 595 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उसिणोदगंपि घेप्पइ गुडरसपरिणामियं अनच्चुसिणं । जं च अधट्टियकन्नं घट्टियपडणंमि मा अग्गी ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૯૫. ઉષ્ણોદક પણ ગુડરસથી પરિણામ પામેલું અતિ ઉષ્ણ ન હોય તો પણ કલ્પે છે, વળી જે પિઠરના કર્ણ ઘસાયા વિના અપાય તે કલ્પે છે, કેમ કે ઘસાવાથી લેપ કે જળના પડવાથી અગ્નિની વિરાધના ન થાય. સૂત્ર– ૫૯૬. પાર્શ્વે લીંપેલ કટાહ, અનતિઉષ્ણ ઇક્ષુરસ, અપરિશાટ અને અઘટ્ટંત આ ચાર પદ વડે સોળ ભંગ થાય છે. તેમાં પહેલાં ભંગમાં અનુજ્ઞા
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 600 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सच्चित्ते अच्चित्ते मीसग पिहियंमि होइ चउभंगो । आइतिगे पडिसेहो चरिमे भंगंमि मयणा उ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૦૦. સચિત્ત, અચિત્ત અને મિશ્ર વડે પિહિતને આશ્રીને ચૌભંગી થાય છે. તેમાં પહેલાં ત્રણને વિશે પ્રતિષેધ છે અને છેલ્લા ભંગને વિશે ભજના છે. સૂત્ર– ૬૦૧. જે પ્રમાણે નિક્ષિપ્ત દ્વારમાં સંયોગો અને ભંગો કહ્યા છે, તે જ પ્રમાણે આ પિહિતદ્વારમાં જાણવુ. ત્રીજા ભંગમાં આટલું વિશેષ છે. સૂત્ર– ૬૦૨. અંગારધૂપિતાદિ અનંતર પિહિત
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 636 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साधारणं बहूणं तत्थ उ दोसा जहेव अनिसिट्ठे । चोरियए गहणाई मयए सुण्हाइ वा दंते ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૩૬. ઘણાને સાધારણ એવી વસ્તુ આપતા અનિસૃષ્ટમાં કહેલા દોષો લાગે છે, તથા ચોરી વડે કર્મકર કે પુત્રવધૂ આપે તો ગ્રહણાદિ દોષ લાગે. સૂત્ર– ૬૩૭. પ્રાભૃતિકાને સ્થાપન કરીને આપે તો પ્રવર્તનાદિ દોષો લાગે, અપાય ત્રણ ભેદે – તિર્યક્‌, ઉર્ધ્વ, અધઃ ધાર્મિકાદિ માટે સ્થાપન કરેલું કે અન્ય સંબંધી દ્રવ્ય પરનું છે માટે ન લેવું. સૂત્ર–
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 12 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अरूविअजीवपन्नवणा? अरूविअजवपन्नवणा दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे अधम्मत्थि-कायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। से त्तं अरूविअजीवपन्नवणा।

Translated Sutra: वह अरूपी – अजीव – प्रज्ञापना क्या है ? दस प्रकार की है। धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्ति – काय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशा – स्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धाकाल।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 19 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? एगेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा –पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया।

Translated Sutra: वह एकेन्द्रिय – संसारसमापन्नजीव – प्रज्ञापना क्या है ? पाँच प्रकार की है। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 23 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सण्हबादरपुढविकाइया? सण्हबादरपुढविकाइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा– किण्हमत्तिया नीलमत्तिया लोहियमत्तिया हालिद्दमत्तिया सुक्किलमत्तिया पंडुमत्तिया पणगमत्तिया। से त्तं सण्हबादरपुढविकाइया।

Translated Sutra: श्लक्ष्ण बादरपृथ्वीकायिक क्या हैं ? सात प्रकार के हैं। कृष्णमृत्तिका, नीलमृत्तिका, लोहितमृत्तिका, हारिद्र मृत्तिका, शुक्लमृत्तिका, पाण्डुमृत्तिका और पनकमृत्तिका।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 25 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी य सक्करा वालुया य उबले सिला य लोणूसे । अय तंब तउय सीसय, रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥

Translated Sutra: पृथ्वी, शर्करा, वालुका, उपल, शिला, लवण, ऊष, अयस्‌, ताम्बा, त्रपुष्‌, सीसा, रौप्य, सुवर्ण, वज्र। तथा – हड़ताल, हींगुल, मैनसिल, सासग, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल। तथा – गोमेज्जक, रुचकरत्न, अंकरत्न, स्फटिकरत्न, लोहिताक्षरत्न, मरकरत्न, मसारगल्लरत्न, भुजमोचकरत्न, इन्द्रनीलमणि। तथा – चन्द्ररत्न, गैरिकरत्न, हंसरत्न, पुलकरत्न,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 33 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वणस्सइकाइया? वणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमवणस्सइकाइया य बादरवणस्सइकाइया य।

Translated Sutra: वे वनस्पतिकायिक जीव कैसे हैं ? दो प्रकार के हैं। सूक्ष्म और बादर।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 34 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तसुहुम-वणस्सइकाइया य अपज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य। से त्तं सुहुमवणस्सइकाइया।

Translated Sutra: वे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं। पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 35 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बादरवणस्सइकाइया? बादरवणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पत्तेयसरीरबादर-वणस्सइकाइया य साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया य।

Translated Sutra: बादर वनस्पतिकायिक कैसे हैं ? दो प्रकार के हैं। प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिक।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 36 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया? पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: वे प्रत्येकशरीर – बादरवनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? बारह प्रकार के हैं। यथा – वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, वलय, हरित, औषधि, जलरुह और कुहण। सूत्र – ३६, ३७
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 38 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं रुक्खा? रुक्खा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– एगट्ठिया य बहुबीयगा य। से किं तं एगट्ठिया? एगट्ठिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: ये वृक्ष किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं – एकास्थिक और बहुजीवक। एकास्थिक वृक्ष किस प्रकार के हैं? अनेक प्रकार के हैं। (जैसे) नीम, आम, जामुन, कोशम्ब, शाल, अंकोल्ल, पीलू, शेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज। तथा – पुत्रजीवक, अरिष्ट, बिभीतक, हरड, भल्लातक, उम्बेभरिया, खीरणि, धातकी और प्रियाल। तथा – पूतिक, करञ्ज,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 52 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं गुच्छा। से किं तं गुम्मा? गुम्मा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: वे (पूर्वोक्त) गुल्म किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। वे इस प्रकार – सेरितक, नवमालती, कोरण्टक, बन्धुजीवक, मनोद्य, पीतिक, पान, कनेर, कुर्जक, सिन्दुवार। तथा – जाती, मोगरा, जूही, मल्लिका, वासन्ती, वस्तुल, कच्छुल, शैवाल, ग्रन्थि, मृगदन्तिका। तथा – चम्पक, जीती, नवनीतिका, कुन्द, तथा महाजाति; इस प्रकार अनेक आकार – प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 67 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं पव्वगा। से किं तं तणा? तणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: वे तृण कितने प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। सेटिक, भक्तिक, होत्रिक, दर्भ, कुश, पर्वक, पोटकिला, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितांश, शुकवेद, क्षीरतुष। एरण्ड कुरुविन्द, कक्षट, सूंठ, विभंगू, मधुरतृण, लवणक, शिल्पिक और सुंकलीतृण। * जो अन्य इसी प्रकार के हैं (उन्हें भी तृण समझना चाहिए)। सूत्र – ६७–६९
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