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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 315 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव मनुस्सं पसुं पक्खिं वा वि सरीसिवं ।
थूले पमेइले वज्झे पाइमे त्ति य नो वए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 316 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिवुड्ढे त्ति णं बूया बूया उवचिए त्ति य ।
संजाए पीणिए वा वि महाकाए त्ति आलवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 317 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव गाओ दुज्झाओ दम्मा गोरहग त्ति य ।
वाहिमा रहजोग त्ति नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार प्रज्ञावान् मुनि – ‘ये गायें दुहने योग्य हैं, ये बछड़े दमन योग्य हैं, वहन करने योग्य है, रथ योग्य हैं; इस प्रकार न बोले। प्रयोजनवश बोलना ही पड़े तो यह युवा बैल है, यह दूध देनेवाली है तथा छोटा बैल, बड़ा बैल अथवा संवहन योग्य है, इस प्रकार बोले। सूत्र – ३१७, ३१८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 318 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जुवं गवे त्ति णं बूया धेणुं रसदय त्ति य ।
रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 319 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य ।
रुक्खा महल्ल पेहाए नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार उद्यान में, पर्वतों पर अथवा वनों में जाकर बड़े – बड़े वृक्षों को देख कर प्रज्ञावान् साधु इस प्रकार न बोले – ‘ये वृक्ष प्रासाद, स्तम्भ, तोरण, घर, परिघ, अर्गला एवं नौका तथा जल की कुंडी, पीठ, काष्ठपात्र, हल, मयिक, यंत्रयष्टि, गाड़ी के पहिये की नाभि अथवा अहरन, आसन, शयन, यान और उपाश्रय के (लिए) उपयुक्त कुछ (काष्ठ) | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 320 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अलं पासायखंभाणं तोरणाणं गिहाण य ।
फलिहग्गलनावाणं अलं उदगदोणिणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 321 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पीढए चंगबेरे य नंगले मइयं सिया ।
जंतलट्ठी व नाभी वा गंडिया व अलं सिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 322 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आसनं सयनं जाणं होज्जा वा किंचुवस्सए ।
भूओवघाइणिं भासं नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 323 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वनानि य ।
रुक्खा महल्ल पेहाए एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: (कारणवश) उद्यान में, पर्वतों पर या वनों में जा कर रहा हुआ प्रज्ञावान् साधु वहां बड़े – बड़े वृक्षों को देख इस प्रकार कहे – ‘ये वृक्ष उत्तम जातिवाले हैं, दीर्घ, गोल, महालय, शाखाओं एवं प्रशाखाओं वाले तथा दर्शनीय हैं, इस प्रकार बोले। सूत्र – ३२३, ३२४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 324 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाइमंता इमे रुक्खा दीहवट्टा महालया ।
पयायसाला विडिमा वए दरिसणि त्ति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 325 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहा फलाइं पक्काइं पायखज्जाइं नो वए ।
वेलोइयाइं टालाइं वेहिमाइ त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: तथा ये फल परिपक्व हो गए हैं, पका कर खाने के योग्य हैं, ये फल कालोचित हैं, इनमें गुठली नहीं पड़ी, ये दो टुकड़े करने योग्य हैं – इस प्रकार भी न बोले। प्रयोजनवश बोलना पड़े तो ‘‘ये आम्रवृक्ष फलों का भार सहने में असमर्थ हैं, बहुनिर्वर्तित फल वाले हैं, बहु – संभूत हैं अथवा भूतरूप हैं; इस प्रकार बोले। सूत्र – ३२५, ३२६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 326 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असंथडा इमे अंबा बहुनिव्वट्टिमा फला ।
वएज्ज बहुसंभूया भूयरूव त्ति वा पुणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 327 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवोसहीओ पक्काओ नीलियाओ छवोइय ।
लाइमा भज्जिमाओ त्ति पिहुखज्ज त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार – ‘ये धान्य – ओषधियाँ पक गई हैं, नीली छाल वाली हैं, काटने योग्य हैं, ये भूनने योग्य हैं, अग्नि में सेक कर खाने योग्य हैं; इस प्रकार न कहे। यदि प्रयोजनवश कुछ कहना हो तो ये ओषधियाँ अंकुरित, प्रायः निष्पन्न, स्थिरीभूत, उपघात से पार हो गई हैं। अभी कण गर्भ मैं हैं या कण गर्भ से बाहर निकल आये हैं, या सिट्टे परिपक्व | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 328 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रूढा बहुसंभूया थिरा ऊसढा वि य ।
गब्भियाओ पसूयाओ ससाराओ त्ति आलवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 329 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव संखडिं नच्चा किच्चं कज्जं ति नो वए ।
तेणगं वा वि वज्झे त्ति सुतित्थ त्ति य आवगा ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार साधु को जीमणवार (संखडी) और कृत्य (मृतकभोज) जान कर ये करणीय हैं, यह चोर मारने योग्य हैं, ये नदियाँ अच्छी तरह से तैरने योग्य हैं, इस प्रकार न बोले – (प्रयोजनवश कहना पड़े तो) संखडी को (यह) संखडी है, चोर को ‘अपने प्राणों को कष्ट में डालकर स्वार्थ सिद्ध करने वाला’ कहें। और नदियों के तीर्थ बहुत सम हैं, इस प्रकार | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 330 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखडिं संखडिं बूया पणियट्ठ त्ति तेणगं ।
बहुसमाणि तित्थाणि आवगाणं वियागरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 331 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहा नईओ पुण्णाओ कायतिज्ज त्ति नो वए ।
नावाहिं तारिमाओ त्ति पाणिपेज्ज त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 332 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुवाहडा अगाहा बहुसलिलुप्पिलोदगा ।
बहुवित्थडोदगा यावि एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 333 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सावज्जं जोगं परस्सट्ठाए निट्ठियं ।
कीरमाणं ति वा नच्चा सावज्जं न लवे मुनी ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार सावद्य व्यापार दूसरे के लिए किया गया हो, किया जा रहा हो अथवा किया जाएगा ऐसा जान कर सावद्य वचन मुनि न बोले। कोई सावद्य कार्य हो रहा हो तो उसे देखकर बहुत अच्छा किया, यह भोजन बहुत अच्छा पकाया है; अच्छा काटा है; अच्छा हुआ इस कृपण का धन हरण हुआ; (अच्छा हुआ, वह दुष्ट) मर गया, बहुत अच्छा निष्पन्न हुआ है; (यह कन्या) | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 334 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे ।
सुनिट्ठिए सुलट्ठे त्ति सावज्जं वज्जए मुनी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 335 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पयत्तपक्के त्ति व पक्कमालवे पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे ।
पयत्तलट्ठ त्ति व कम्महेउयं पहारगाढ त्ति व गाढमालवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३३३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 336 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वुक्कसं परग्घं वा अउलं नत्थि एरिसं ।
अचक्कियमवत्तव्वं अचिंतं चेव नो वए ॥ Translated Sutra: यह वस्तु सर्वोत्कृष्ट, बहुमूल्य, अतुल है, इसके समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यह वस्तु अवर्णनीय या अप्रीतिकर है; इत्यादि व्यापारविषयक वचन न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 337 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वमेयं वइस्सामि सव्वमेयं ति नो वए ।
अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: कोई गृहस्थ किसी को संदेश कहने को कहे तब ‘मैं तुम्हारी सब बातें उससे अवश्य कह दूंगा’ (अथवा किसी को संदेश कहलाते हुए) ‘यह सब उससे कह देना’; इस प्रकार न बोले; किन्तु पूर्वापर विचार करके बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 338 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुक्कीयं वा सुविक्कीयं अकेज्जं केज्जमेव वा ।
इमं गेण्ह इमं मुंच पणियं नो वियागरे ॥ Translated Sutra: अच्छा किया यह खरीद लिया अथवा बेच दिया, यह पदार्थ खराब है, खरीदने योग्य नहीं है अथवा अच्छा है, खरीदने योग्य है; इस माल को ले लो अथवा बेच डालो (इस प्रकार) व्यवसाय – सम्बन्धी (वचन), साधु न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 339 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पग्घे वा महग्घे वा कए वा विक्कए वि वा ।
पणियट्ठे समुप्पन्ने अनवज्जं वियागरे ॥ Translated Sutra: कदाचित् कोई अल्पमूल्य अथवा बहुमूल्य माल खरीदने या बेचने के विषय में (पूछे तो) व्यावसायिक प्रयोजन का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु या साध्वी निरवद्य वचन बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 340 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवासंजयं धीरो आस एहि करेहि वा ।
सय चिट्ठ वयाहि त्ति नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार धीर और प्रज्ञावान् साधु असंयमी को – यहाँ बैठ, इधर आ, यह कार्य कर, सो जा, खड़ा हो जा या चला जा, इस प्रकार न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 341 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो ।
न लवे असाहु साहु त्ति साहुं साहु त्ति आलवे ॥ Translated Sutra: ये बहुत से असाधु लोक में साधु कहलाते हैं; किन्तु निर्ग्रन्थ साधु असाधु को – ‘यह साधु है’, इस प्रकार न कहे, साधु को ही – ‘यह साधु है;’ ऐसा कहे। ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न तथा संयम और तप में रत – ऐसे सद्गुणों से समायुक्त संयमी को ही साधु कहे। सूत्र – ३४१, ३४२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 342 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणदंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं ।
एवं गुणसमाउत्तं संजयं साहुमालवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३४१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 343 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देवाणं मनुयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे ।
अमुयाणं जओ होउ मा वा होउ त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: देवों, मनुष्यों अथवा तिर्यञ्चों का परस्पर संग्राम होने पर अमुक की विजय हो, अथवा न हो, – इस प्रकार न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 344 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाओ वुट्ठं व सीउण्हं खेमं घायं सिवं ति वा ।
कया णु होज्ज एयाणि मा वा होउ त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: वायु, वृष्टि, सर्दी, गर्मी, क्षेम, सुभिक्ष अथवा शिव, ये कब होंगे ? अथवा ये न हों इस प्रकार न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 345 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव मेहं व नहं व मानवं न देव देव त्ति गिरं वएज्जा ।
समुच्छिए उन्नए वा पओए वएज्ज वा वुट्ठ बलाहए त्ति ॥ Translated Sutra: मेघ को, आकाश को अथवा मानव को – ‘यह देव है, यह देव है’, इस प्रकार की भाषा न बोले। किन्तु – ‘यह मेघ’ उमड़ रहा है, यह मेघमाला बरस पड़ी है, इस प्रकार बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 346 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंतलिक्खे त्ति णं बूया गुज्झाणुचरिय त्ति य ।
रिद्धिमंतं नरं दिस्स रिद्धिमंतं ति आलवे ॥ Translated Sutra: साधु, नभ और मेघ को – अन्तरिक्ष तथा गुह्यानुचरित कहे तथा ऋद्धिमान् मनुष्य को ‘यह ऋद्धिशाली है’, ऐसा कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 347 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा ओहारिणी जा य परोवघाइणी ।
से कोह लोह भयसा व मानवो न हासमाणो वि गिरं वएज्जा ॥ Translated Sutra: जो भाषा सावद्य का अनुमोदन करनेवाली हो, जो निश्चयकारिणी एवं परउपघातकारिणी हो, उसे क्रोध, लोभ, भय या हास्यवश भी न बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 348 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुट्ठं परिवज्जए सया ।
मियं अदुट्ठं अनुवीइ भासए सयाण मज्झे लहई पसंसनं ॥ Translated Sutra: जो मुनि श्रेष्ठ वचनशुद्धि का सम्यक् सम्प्रेक्षण करके दोषयुक्त भाषा को सर्वदा सर्वथा छोड़ देता है तथा परिमित और दोषरहित वचन पूर्वापर विचार करके बोलता है, वह सत्पुरुषों के मध्य में प्रशंसा प्राप्त करता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 349 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भासाए दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य दुट्ठे परिवज्जए सया ।
छसु संजए सामणिए सया जए वएज्ज बुद्धे हियमानुलोमियं ॥ Translated Sutra: षड्जीवनिकाय के प्रति संयत तथा श्रामण्यभाव में सदा यत्नशील रहने वाला प्रबुद्ध साधु भाषा के दोषों और गुणों को जान कर एवं उसमें से दोषयुक्त भाषा को सदा के लिए छोड़ दे और हितकारी तथा आनुलोमिक वचन बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 350 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए चउक्कसायावगए अनिस्सिए ।
स निद्धणे धुन्नमलं पुरेकडं आराहए लोगमिणं तहा परं ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: जो साधु गुण – दोषों की परीक्षा करके बोलने वाला है, जिसकी इन्द्रियाँ सुसमाहित हैं, चार कषायों से रहित है, अनिश्रित है, वह पूर्वकृत पाप – मल को नष्ट करके इस लोक तथा परलोक का आराधक होता है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 351 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयारप्पणिहिं लद्धुं जहा कायव्व भिक्खुणा ।
तं भे उदाहरिस्सामि आनुपुव्विं सुणेह मे ॥ Translated Sutra: आचार – प्रणिधि को पाकर, भिक्षु को जिस प्रकार (जो) करना चाहिए, वह मैं तुम्हें कहूँगा, जिसे तुम अनुक्रम से मुझ से सुनो। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 352 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवि दग अगनि मारुय तणरुक्ख सबीयगा ।
तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ॥ Translated Sutra: पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय तथा त्रस प्राणी; ये जीव हैं, ऐसा महर्षि ने कहा है। उन के प्रति मन, वचन और काया से सदा अहिंसामय व्यापारपूर्वक ही रहना चाहिए। इस प्रकार (अहिंसकवृत्ति से रहने वाला) संयत होता है। सूत्र – ३५२, ३५३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 353 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया ।
मनसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 354 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढविं भित्तिं सिलं लेलुं नेव भिंदे न संलिहे ।
तिविहेण करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ Translated Sutra: सुसमाहित संयमी तीन करण तीन योग से पृथ्वी, भित्ति, शिला अथवा मिट्टी का, ढेले का स्वयं भेदन न करे और न उसे कुरेदे, सचित्त पृथ्वी और सचित्त रज से संसृष्ट आसन पर न बैठे। (यदि बैठना हो तो) जिसकी वह भूमि हो, उससे आज्ञा मांग कर तथा प्रमार्जन करके बैठे। सूत्र – ३५४, ३५५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 355 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुद्धपुढवीए न निसिए ससरक्खम्मि य आसणे ।
पमज्जित्तु निसीएज्जा जाइत्ता जस्स ओग्गहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 356 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीओदगं न सेवेज्जा सिलावुट्ठं हिमाणि य ।
उसिणोदगं तत्तफासुयं पडिगाहेज्ज संजए ॥ Translated Sutra: संयमी साधु शीत उदक, ओले, वर्षा के जल और हिम का सेवन न करे। तपा हुआ गर्म जल तथा प्रासुक जल ही ग्रहण करे। सचित जल से भीगे हुए अपने शरीर को न तो पोंछे और न ही मले। तथाभूत शरीर को देखकर, उसका स्पर्श न करे। सूत्र – ३५६, ३५७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 357 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उदउल्लं अप्पणो कायं नेव पुंछे न संलिहे ।
समुप्पेह तहाभूयं नो णं संघट्टए मुनी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 358 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंगालं अगनिं अच्चिं अलायं वा सजोइयं ।
न उंजेज्जा न घट्टेज्जा नो णं निव्वावए मुनी ॥ Translated Sutra: मुनि जलते हुए अंगारे, अग्नि, त्रुटित अग्नि की ज्वाला, जलती हुई लकड़ी को न प्रदीप्त करे, न हिलाए और न उसे बुझाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 359 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा ।
न वीएज्ज अप्पणो कायं बाहिरं वा वि पोग्गलं ॥ Translated Sutra: साधु ताड़ के पंखे से, पत्ते से, वृक्ष की शाखा से अथवा सामान्य पंखे से अपने शरीर को अथवा बाह्य पुद्गल को भी हवा न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 360 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तणरुक्खं न छिंदेज्जा फलं मूलं व कस्सई ।
आमगं विविहं बीयं मनसा वि न पत्थए ॥ Translated Sutra: मुनि तृण, वृक्ष, फल, तथा मूल का छेदन न करे, विविध प्रकार के सचित्त बीजों की मन से भी इच्छा न करे। वनकुंजों में, बीजों, हरित तथा उदक, उत्तिंग और पनक पर खड़ा न रहे। सूत्र – ३६०, ३६१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 361 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गहणेसु न चिट्ठेज्जा बीएसु हरिएसु वा ।
उदगम्मि तहा निच्चं उत्तिंगपणगेसु वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३६० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 362 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा ।
उवरओ सव्वभूएसु पासेज्ज विविहं जगं ॥ Translated Sutra: मुनि वचन अथवा कर्म से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे। समस्त जीवों की हिंसा से उपरत साधु विविध स्वरूप वाले जगत् को (विवेकपूर्वक) देखे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 363 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तु संजए ।
दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥ Translated Sutra: संयमी साधु जिन्हें जान कर समस्त जीवों के प्रति दया का अधिकारी बनता है, उन आठ प्रकार के सूक्ष्मों को भलीभांति देखकर ही बैठे, खड़ा हो अथवा सोए। वे आठ सूक्ष्म कौन – कौन से हैं ? तब मेधावी और विचक्षण कहे कि वे ये हैं – स्नेहसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, प्राणिसूक्ष्म, उत्तिंग सूक्ष्म, पनकसूक्ष्म, बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 364 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कयराइं अट्ठ सुहुमाइं जाइं पुच्छेज्ज संजए ।
इमाइं ताइं मेहावी आइक्खेज्ज वियक्खणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३६३ |