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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 235 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दसनामे? दसनामे दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. गोण्णे २. नोगोण्णे ३. आयाणपएणं ४. पडिवक्खपएणं ५. पाहन्नयाए ६. अनाइसिद्धंतेणं ७. नामेणं ८. अवयवेणं ९. संजोगेणं १०. पमाणेणं।
से किं तं गोण्णे? गोण्णे–खमतीति खमणो, तवतीति तवणो, जलतीति जलणो, पवतीति पवणो। से तं गोण्णे।
से किं तं नोगोण्णे? नोगोण्णे–अकुंतो सकुंतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालं पलालं, अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतीति पलासो, अमाइवाहए माइवाहए, अबीयवावए बीयवावए, नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए। से तं नोगोण्णे।
से किं तं आयाणपएणं? आयाणपएणं–आवंती चाउरंगिज्जं असंखयं जन्नइज्जं पुरिसइज्जं एलइज्जं वीरियं धम्मो Translated Sutra: दसनाम क्या है ? दस प्रकार के नाम दस नाम हैं। गौणनाम, नोगौणनाम, आदानपदनिष्पन्ननाम, प्रतिपक्षपदनिष्पन्न – नाम, प्रधानपदनिष्पन्ननाम, अनादिसिद्धान्तनिष्पन्ननाम, नामनिष्पन्ननाम, अवयवनिष्पन्ननाम, संयोगनिष्पन्ननाम, प्रमाणनिष्पन्न – नाम। गौण – क्या है ? जो क्षमागुण से युक्त हो उसका ‘क्षमण’ नाम होना, जो तपे उसे | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 236 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिंगी सिही विसाणी, दाढी पक्खी खुरी नही वाली ।
दुपय चउप्पय बहुपय, नंगूली केसरी ककुही ॥ Translated Sutra: शृंगी, शिखी, विषाणी, दंष्ट्री, पक्षी, खुरी, नखी, वाली, द्विपद, चतुष्पद, बहुपद, लांगूली, केशरी, ककुदी आदि। परिकरबंधन – विशिष्ट रचना युक्त वस्त्रों के पहनने से – कमर कसने से योद्धा पहिचाना जाता है, विशिष्ट प्रकार के वस्त्रों को पहनने से महिला पहिचानी जाती है, एक कण पकने से द्रोणपरिमित अन्न का पकना और एक ही गाथा के | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 238 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं अवयवेणं।
से किं तं संजोगेणं? संजोगे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे कालसंजोगे भावसंजोगे।
से किं तं दव्वसंजोगे? दव्वसंजोगे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए।
से किं तं सचित्ते? सचित्ते-गोहिं गोमिए, महिसीहिं माहिसिए, ऊरणीहिं ऊरणिए, उट्टीहिं उट्टिए। से त्तं सचित्ते।
से किं तं अचित्ते? अचित्ते–छत्तेण छत्ती, दंडेण दंडी, पडेण पडी, घडेण घडी, कडेण कडी। से त्तं अचित्ते।
से किं तं मीसए? मीसए–हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए, रहेणं रहिए, नावाए नाविए। से तं मीसए। से तं दव्वसंजोगे।
से किं तं खेत्तसंजोगे? खेत्तसंजोगे–भारहे एरवए हेमवए हेरन्नवए Translated Sutra: देखो सूत्र २३६ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 240 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नक्खत्तनामे? नक्खत्तनामे–कत्तियाहिं जाए–कत्तिए कत्तियादिन्ने कत्तियाधम्मे कत्तियासम्मे कत्तियादेवे कत्तियादासे कत्तियासेणे कत्तियारक्खिए। रोहिणीहिं जाए–रोहिणिए रोहिणिदिन्ने रोहिणिधम्मे रोहिणिसम्मे रोहिणिदेवे रोहिणि-दासे रोहिणिसेणे रोहिणिरक्खिए। एवं सव्वनक्खत्तेसु नामा भाणियव्वा।
एत्थ संगहणिगाहाओ– Translated Sutra: नक्षत्रनाम – क्या है ? वह इस प्रकार है – कृतिका नक्षत्र में जन्मे का कृत्तिक, कृत्तिकादत्त, कृत्तिकाधर्म, कृत्तिकाशर्म, कृत्तिकादेव, कृत्तिकादास, कृत्तिकासेन, कृत्तिकारक्षित आदि नाम रखना। रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न हुए का रौहिणेय, रोहिणीदत्त, रोहिणीधर्म, रोहिणीशर्म, रोहिणीदेव, रोहिणीदास, रोहिणीसेन, रोहिणीरक्षित | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 241 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. कत्तिय २. रोहिणि ३. मिगसिर, ४. अद्दा य ५. पुणव्वसू य ६. पुस्से य ।
तत्तो य ७. अस्सिलेसा, ८. मघाओ ९.-१०. दो फग्गुणीओ य ॥ Translated Sutra: कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्र्लेषा, मधा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुरादा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभि, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्र्विनी, भरिणी, य नक्षत्रों के नामों की परिपाटी है। इस प्रकार | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 244 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं नक्खत्तनामे।
से किं तं देवयानामे? देवयनामे – अग्गिदेवयाहिं जाए– अग्गिए अग्गिदिन्ने अग्गिधम्मे अग्गि-सम्मे अग्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिसेने अग्गिरक्खिए।
एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा भाणियव्वा।
एत्थं पि संगहणिगाहाओ– Translated Sutra: देखो सूत्र २४१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 245 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ अग्गि २ पयावइ ३ सोमे, ४ रुद्दे ५ अदिती ६ बहस्सई ७ सप्पे ।
८ पिति ९ भग १० अज्जम ११ सविया, १२ तट्ठा १३ वाऊ य १४ इंदग्गी ॥ Translated Sutra: अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, अदिति, बृहस्पति, सर्प, पिता, भग, अर्यमा, सविता, त्वष्टा, वायु, इन्द्राग्नि, मित्र, इन्द्र, निर्ऋति, अम्भ, विश्व, ब्रह्मा, विष्णु, वसु, वरुण, अज, विवर्द्धि, पूषा, अश्व और यम, यह अट्ठाईस देवताओं के नाम जानना चाहिए। यह देवनाम का स्वरूप है। कुलनाम किसे कहते हैं ? जैसे उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 246 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १५ मित्तो १६ इंदो १७ निरती, १८ आऊ १९ विस्सो य २० बंभ २१ विण्हू य ।
२२ वसु २३ वरुण २४ अय २५ विवद्धी, २६ पुस्से २७ आसे २८ जमे चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २४५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 247 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं देवयानामे।
से किं तं कुलनामे? कुलनामे– उग्गे भोगे राइन्ने खत्तिए इक्खागे नाते कोरव्वे। से तं कुलनामे।
से किं तं पासंडनामे? पासंडनामे–समणे पंडरंगे भिक्खू कावालिए तावसे परिव्वायगे।
से तं पासंडनामे।
से किं तं गणनामे? गणनामे–मल्ले मल्लदिन्ने मल्लधम्मे मल्लसम्मे मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरक्खिए। से तं गणनामे।
से किं तं जीवियानामे? जीवियानामे–अवकरए उक्कुरुडए उज्झियए कज्जवए सुप्पए।
से तं जीवियानामे।
से किं तं आभिप्पाइयनामे? आभिप्पाइयनामे–अंबए निंबए बबुलए पलासए सिणए पीलुए करीरए। से तं आभिप्पाइयनामे। से तं ठवणप्पमाणे।
से किं तं दव्वप्पमाणे? दव्वप्पमाणे Translated Sutra: देखो सूत्र २४५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 248 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. दंदे य २. बहुव्वीही, ३. कम्मधारए ४. दिऊ तहा ।
५. तप्पुरिस ६. व्वईभावे, ७. एगसेसे य सत्तमे ॥ Translated Sutra: द्वन्द्व, बहुव्रीहि, कर्मधारय, द्विगु, तत्पुरुष, अव्ययीभाव और एकशेष। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 251 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए।
से तं कम्मनामे।
से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे।
से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे।
से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे।
से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे Translated Sutra: कर्मनाम क्या है ? दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारि, कौलालिक, ये सब कर्म – निमित्तज नाम हैं। तौन्निक तान्तुवायिक, पाट्टकारिक, औद्वृत्तिक, वारुंटिक मौञ्जकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक वाह्यकारिक, पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कौटिटमकारिक। यह शिल्पनाम हैं। सभी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 252 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पमाणे? पमाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. दव्वप्पमाणे २. खेत्तप्पमाणे ३. कालप्पमाणे ४. भावप्पमाणे। Translated Sutra: भगवन् ! प्रमाण क्या है ? प्रमाण चार प्रकार का है। द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 253 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वप्पमाणे? दव्वप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पएसनिप्फन्ने य विभागनिप्फन्ने य।
से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्ने–परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्ज-पएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पएसनिप्फन्ने।
से किं तं विभागनिप्फन्ने? विभागनिप्फन्ने पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माने २. उम्माने ३. ओमाने ४. गणिमे ५. पडिमाणे।
से किं तं माने? माणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्पमाणे य।
से किं तं धन्नमाणप्पमाणे? धन्नमाणप्पमाणे–दो असतीओ पसती दो पसतीओ सेतिया, चत्तारि सेतियाओ कुलओ, चत्तारि कुलया पत्थो, चत्तारि पत्थया आढगं, चत्तारि Translated Sutra: द्रव्यप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा – प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न। प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण क्या है ? परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशों यावत् दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों, असंख्यात प्रदेशों और अनन्त प्रदेशों से जो निष्पन्न – सिद्ध होता है। विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण पाँच प्रकार है। मानप्रमाण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 255 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वत्थुम्मि हत्थमेज्जं, खित्ते दंडं धणुं च पंथम्मि ।
खायं च नालियाए, वियाण ओमाणसन्नाए ॥ Translated Sutra: वास्तु को हाथ द्वारा, क्षेत्र दंड द्वारा, मार्ग को धनुष द्वारा और खाई को नालिका द्वारा नापा जाता है। इन सबको ‘अवमान’ इस नाम से जानना। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 256 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-रचिय-कर-कचिय-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दव्वाणं ओमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं ओमाणे।
से किं तं गणिमे? गणिमे–जण्णं गणिज्जइ, तं जहा–एगो दस सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी।
एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं गणिमप्पमाणेणं भित्तग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्वयसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं गणिमे।
से किं तं पडिमाणे? पडिमाणे–जण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहा–गुंजा कागणी निप्फावो कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो। पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ, तिन्नि निप्फावा Translated Sutra: अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से खात, कुआ आदि, ईंट, पत्थर आदि से निर्मित प्रासाद, पीठ, क्रकचित, आदि, कट, पट, भींत, परिक्षेप, अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लंबाई – चौड़ाई, गहराई और ऊंचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है। गणिमप्रमाण क्या है ? जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 257 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं खेत्तप्पमाणं? खेत्तप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पएसनिप्फन्ने य विभागनिप्फन्ने य
से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्ने–एगपएसोगाढे दुपएसोगाढे तिपएसोगाढे जाव दसपएसोगाढे संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे। से तं पएसनिप्फन्ने।
से किं तं विभागनिप्फन्ने?
विभागनिप्फन्ने– Translated Sutra: क्षेत्रप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है। प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न। प्रदेशनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ? एक प्रदेशावगाढ, दो प्रदेशावगाढ यावत् संख्यात प्रदेशावगाढ, असंख्यात प्रदेशावगाढ क्षेत्ररूप प्रमाण को प्रदेश – निष्पन्न क्षेत्रप्रमाण कहते हैं। विभागनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ? | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 258 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंगुल विहत्थि रयणी, कुच्छी धणु गाउयं च बोधव्वं ।
जोयण सेढी पयरं, लोगमलोगे वि य तहेव ॥ Translated Sutra: अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष गाऊ, योजन, श्रेणि, प्रतर, लोक और अलोक को विभाग – निष्पन्नक्षेत्रप्रमाण जानना। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 259 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंगुले? अंगुले तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयंगुले उस्सेहंगुले पमाणंगुले।
से किं तं आयंगुले? आयंगुले–जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाइं मुहं, नवमुहाइं पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे मानजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ। Translated Sutra: अंगुल क्या है ? अंगुल तीन प्रकार का है – आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल। आत्मांगुल किसे कहते हैं ? जिस काल में जो मनुष्य होते हैं उनके अंगुल आत्मांगुल हैं। उनके अपने – अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है। नौ मुख प्रमाण वाला पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 260 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माणुम्माणप्पमाणजुत्ता, लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया ।
उत्तमकुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा ॥ Translated Sutra: जो पुरुष मान – उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा लक्षणों एवं व्यंजनो से और मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना। ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं। अधम पुरुष ९६ अंगुल और मध्यम पुरुष १०४ अंगुल ऊंचे होते हैं। ये हीन | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 263 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाइं पाओ, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्खे मुसले, दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं।
एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं आयंगुलप्पमाणेणं–जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-तलाग-दह-नदी-वावी-पुक्खरिणी-दीहिया-गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुज्जाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइय-परिहाओ, पागार-अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-पासाय-घर-सरण-लेण-आवण- सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- महापह-पह- सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ Translated Sutra: इस आत्मांगुल से छह अंगुल का एक पाद होता है। दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति की एक रत्नि और दो रत्नि की एक कुक्षि होती है। दो कुक्षि का एक दंड, धनुष, युग, नालिका अक्ष और मूसल जानना। दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। आत्मांगुलप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से कुआ, तडाग, द्रह, वापी, पुष्करिणी, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 265 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ सुहुमो ठप्पो।
से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ।
१. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
२. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु क्या है ? दो प्रकार का सूक्ष्म परमाणु और व्यवहार परमाणु। इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है। अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। व्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? हाँ, कर सकता है। तो क्या वह उस से छिन्न – भिन्न हो सकता | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 267 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? ।
अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं Translated Sutra: अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन – भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं। वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है। उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व – रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 268 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जोयणसहस्स गाउयपुहुत्तं तत्तो य जोयणपुहुत्तं ।
गाउयपुहुत्त तु धणु-पुहुत्तं संमुच्छिमे होइ उच्चत्तं ॥ Translated Sutra: संमूर्च्छिम जलचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना १००० योजन, चतुष्पदस्थलचर की गव्यूतिपृथक्त्व, उरपरिसर्पस्थलचर की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसर्पस्थलचर की एवं खेचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में से जलचरों की १००० योजन, चतुष्पदस्थलचरों की | |||||||||
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Hindi | 270 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति।
से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, Translated Sutra: मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है। संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त | |||||||||
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Hindi | 271 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कालप्पमाणे? कालप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पएसनिप्फन्ने य विभागनिप्फन्ने य। Translated Sutra: कालप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है – प्रदेशनिष्पन्न, विभागनिष्पन्न। | |||||||||
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Hindi | 272 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पएसनिप्फन्ने? पएसनिप्फन्ने–एगसमयट्ठिईए दुसमयट्ठिईए तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्ठिईए संखेज्जसमयट्ठिईए असंखेज्जसमयट्ठिईए। से तं पएसनिप्फन्ने। Translated Sutra: प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? एक समय की स्थितिवाला, दो समय की स्थितिवाला, तीन समय की स्थितिवाला, यावत् दस समय की स्थितिवाला, संख्यात समय की स्थितिवाला, असंख्यात समय की स्थितिवाला (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है। इस प्रकार से प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का स्वरूप जानना। | |||||||||
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Hindi | 273 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विभागनिप्फन्ने? विभागनिप्फन्ने– Translated Sutra: विभागनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? समय, आवलिका, मुहूर्त्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागर, अवसर्पिणी(उत्सर्पिणी) और (पुद्गल)परावर्तन रूप काल को विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहते हैं सूत्र – २७३, २७४ | |||||||||
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Hindi | 275 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि–से जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासी–जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे।
कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं Translated Sutra: समय किसे कहते हैं ? समय की प्ररूपणा करूँगा। जैसे कोई एक तरुण, बलवान्, युगोत्पन्न, नीरोग, स्थिरहस्ताग्र, सुद्रढ़ – विशाल हाथ – पैर, पृष्ठभाग, पृष्ठान्त और उरु वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट – अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक, मुद्गर मुष्टिक | |||||||||
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Hindi | 276 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हट्ठस्स अणवगल्लस, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो ।
एगे ऊसास-नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: हृष्ट, वृद्धावस्था से रहित, व्याधि से रहित मनुष्य आदि के एक उच्छ्वास और निःश्वास के ‘काल’ को प्राण कहते हैं। ऐसे सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और लवों का एक मुहूर्त्त जानना। अथवा – सर्वज्ञ ३७७३ उच्छ्वास – निश्वासों का एक मुहूर्त्त कहा है। इस मुहूर्त्त प्रमाण से तीस मुहूर्त्तों का एक अहोरात्र | |||||||||
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Hindi | 277 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७६ | |||||||||
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Hindi | 279 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तं, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिन्नि उऊ अयणं, दो अयणाइं संवच्छरे, पंच संवच्छराइं जुगे, वीसं जुगाइं वाससयं, दस वाससयाइं वाससहस्सं सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं, चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीइं पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडि-यंगे, चउरासीइं तुडियंगसयसहस्साइं से एगे तुडिए, चउरासीइं तुडियसयसहस्साइं से एगे अडडंगे, चउरासीइं अडडंगसयसहस्साइं से एगे अडडे, एवं अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, Translated Sutra: देखो सूत्र २७६ | |||||||||
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Hindi | 280 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पलिओवमे य सागरोवमे य।
से किं तं पलिओवमे? पलिओवमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–उद्धारपलिओवमे अद्धापलिओवमे खेत्तपलिओवमे य
से किं तं उद्धारपलिओवमे? उद्धारपलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे। तत्थ णं जेसे वावहारिए, से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, Translated Sutra: औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? वह दो प्रकार का है। पल्योपम और सागरोपम। पल्योपम के तीन प्रकार हैं – उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम। उद्धारपल्योपम दो प्रकार से है, सूक्ष्म और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम। इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है। व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का स्वरूप | |||||||||
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Hindi | 281 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया ।
तं वावहारियस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ Translated Sutra: ऐसे दस कोडाकोडी पल्योपमों का एक व्यावहारिक उद्धार सागरोपम होता है। | |||||||||
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Hindi | 282 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-उद्धार-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति।
से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे? सुहुमे उद्धारपलिओवमे से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ। ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स Translated Sutra: व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है। ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिए हैं। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है – धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधिवाला पल्य हो। इस पल्य | |||||||||
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Hindi | 284 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ।
केवइया णं भंते! दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता? गोयमा! जावइया णं अड्ढाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धार-समया एवइया णं दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता। से तं सुहुमे उद्धार-पलिओवमे।
से तं उद्धारपलिओवमे।
से किं तं अद्धापलिओवमे? अद्धापलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे।
तत्थ णं जेसे वावहारिए; से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं Translated Sutra: सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और सूक्ष्म उद्धारसागरोपम से किस प्रयोजन को सिद्धि होती है ? इससे द्वीप – समुद्रों का प्रमाण जाना जाता है। अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं। अद्धापल्योपम के दो भेद हैं – सूक्ष्म अद्धापल्योपम और व्यावहारिक अद्धापल्योपम। उनमें से सूक्ष्म अद्धापल्योपम | |||||||||
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Hindi | 286 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-अद्धा-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जति।
से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे।
से किं तं सुहुमे अद्धापलिओवमे? सुहुमे अद्धापलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गे दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजी-वस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं। सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है – एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक तीन योजन की परिधिवाला एक पल्य हो। उस पल्य को एक – दो – तीन दिन के यावत् बालाग्र | |||||||||
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Hindi | 287 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया ।
तं सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ Translated Sutra: इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है। | |||||||||
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Hindi | 288 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं नेरइय-तिरि-क्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाइं मविज्जंति। Translated Sutra: सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? इस से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है। | |||||||||
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Hindi | 289 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
जहा पन्नवणाए ठिईपए सव्वसत्ताणं। से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे। से तं अद्धापलिओवमे जाव जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो अंतोमुहुत्तो एत्थ एएसिं संगहणि गाहाओ भवंति तं जहा– Translated Sutra: नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गोतम ! सामान्य रूप में जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है। रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की होती है। | |||||||||
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Hindi | 290 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समुच्छिमे पुव्वकोडी चउरासीइं भवे सहस्साइं ।
तेवन्ना बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं ॥ Translated Sutra: संमूर्च्छिम तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरचतुष्पद संमूर्च्छिमों की ८४००० वर्ष, उरपरिसर्पों की ५३००० वर्ष, भुजपरिसर्पों की ४२००० वर्ष और पक्षी की ७२००० वर्ष की है। गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यंचों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि | |||||||||
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Hindi | 292 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते! केवइअं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं जाव अजहन्नमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अद्धा पलिओवमे। Translated Sutra: मनुष्यों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है। गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों | |||||||||
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Hindi | 293 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं खेत्तपलिओवमे? खेत्तपलिओवमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य।
तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे।
तत्थ णं जेसे वावहारिए–से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। जे णं तस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना, तओ णं समए-समए एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले Translated Sutra: भगवन् ! क्षेत्रपल्योपम क्या है ? गौतम ! दो प्रकार – सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम। उनमें से सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम स्थापनीय है। व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार – जैसे कोई एक योजन आयाम – विष्कम्भ और एक योजन ऊंचा तथा कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला धान्य मापने के पल्य के समान | |||||||||
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Hindi | 295 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ।
से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: भगवन् ! इन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम से कौन – सा प्रयोजन सिद्ध होता है ? गौतम ! इन से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। मात्र इनके स्वरूप की प्ररूपणा ही की गई है। भगवन् ! सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम क्या है ? वह इस प्रकार जानना – जैसे धान्य के पल्य के समान एक पल्य हो जो एक योजन लम्बा – चौड़ा, एक योजन ऊंचा और कुछ | |||||||||
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Hindi | 296 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया ।
तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ Translated Sutra: इन पल्यों को दस कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। | |||||||||
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Hindi | 297 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जंति। Translated Sutra: इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों का मान किया जाता है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 298 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! दव्वा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं०–जीवदव्वा य अजीवदव्वा य।
अजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अरूविअजीवदव्वा य रूविअजीवदव्वा य।
अरूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स पएसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसा अधम्मत्थिकायस्स पएसा, आगासत्थिकाए आगास-त्थिकायस्स देसा आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए।
रूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला। ते णं भंते! Translated Sutra: द्रव्य कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के – जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य। अजीवद्रव्य दो प्रकार के हैं – अरूपी अजीवद्रव्य और रूपी अजीवद्रव्य। अरूपी अजीवद्रव्य दस प्रकार के हैं – धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय के देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायदेश, अधर्मास्तिकायप्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्ति | |||||||||
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Hindi | 299 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा।
पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा।
वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए Translated Sutra: भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार – औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण। नैरयिकों के तीन शरीर हैं। – वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। असुरकुमारों के तीन शरीर हैं। वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना। पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, – औदारिक, तैजस और | |||||||||
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Hindi | 300 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावप्पमाणे? भावप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–गुणप्पमाणे नयप्पमाणे संखप्पमाणे। Translated Sutra: भावप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है। गुणप्रमाण, नयप्रमाण और संख्याप्रमाण। | |||||||||
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Hindi | 301 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य।
से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे।
से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे।
से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे।
से Translated Sutra: गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है – जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण। अजीवगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है – वर्ग – गुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण। भगवन् ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पाँच प्रकार का है। कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत् शुक्लवर्णगुणप्रमाण। गंधगुणप्रमाण दो |