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Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Hindi 271 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता मह किलेसमुत्तिणं सुहियं से अत्ताणयं। मन्नंतो पमुइओ हिट्ठो सत्थचित्तो वि चिट्ठई॥

Translated Sutra: शरण रहित उस जीव को क्लेश न देकर सुखी किया, इसलिए अति हर्ष पाए। और स्वस्थ चित्तवाला होकर सोचे – माने कि यदि एक जीव को अभयदान दिया और फिर सोचने लगे कि अब मैं निवृत्ति – शांति प्राप्त हुआ। खुजलाने से उत्पन्न होनेवाला पापकर्म दुःख को भी मैंने नष्ट किया। खुजलाने से और उस जीव की विराधना होने से मैं अपनेआप नहीं जान
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 339 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपरिमाणगुरुतुंगा महंता घन-निरंतरा। पाव-रासी खयं गच्छे, जहा तं सव्वोवाएहिमायरे॥

Translated Sutra: यदि सर्व दानादि स्व – पर हित के लिए आचरण किया जाए तो अ – परिमित महा, ऊंचे, भारी, आंतरा रहित गाढ पापकर्म का ढ़ग भी क्षय हो जाए। संयम – तप के सेवन से दीर्घकाल के सर्व पापकर्म का विनाश हो जाता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 493 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करे ? हे गौतम ! आगे हम बताएंगे उस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करना चाहिए। अति प्रशस्त और शोभन तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल हो तब आठ तरह के मद स्थान से मुक्त हो, शंका रहित श्रद्धासंवेग जिसके अति वृद्धि पानेवाले हो, अति तीव्र महान उल्लास पानेवाले, शुभ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 753 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रति-हास-खेड्डु-कंदप्प-नाह-वादं न कीरए जत्थ। धोवण-डेवण-लंघन न मयार-जयार-उच्चरणं॥

Translated Sutra: रतिक्रीड़ा, हाँस्यक्रीड़ा, कंदर्प, नाथवाद जहाँ नहीं किया जाता, दौड़ना, गड्ढे का उल्लंघन करना, मम्माच – च्चावाले अपशब्द जिसमें नहीं बोले जाते, जिसमें कारण पैदा हो तो भी वस्त्र का आंतरा रखकर स्त्री के हाथ का स्पर्श भी दृष्टिविष सर्प या प्रदिप्त अग्नि और झहर की तरह वर्जन किया जाता हो वो गच्छ। सूत्र – ७५३, ७५४
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 827 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं से–बहुरूवे वुच्चइ जे णं ओसन्न विहारीणं ओसन्ने, उज्जयविहारीणं उज्जयविहारी, निद्धम्म सबलाणं निद्धम्म सबले बहुरूवी रंगगए चारणे इव नडे

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो बहुरुप किसे कहते हैं ? जो शिथिल आचारवाला हो ऐसा ओसन्न या कठिन आचार पालनेवाला उद्यत विहारी बनकर वैसा नाटक करे। धर्म रहित या चारित्र में दूषण लगानेवाले हो ऐसा नाटक भूमि में तरह तरह के वेश धारण करे, उसकी तरह चारण या नाटक हो, पल में राम, पल में लक्ष्मण, पल में दश मस्तक – वाला रावण बने और फिर भयानक कान, आगे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 841 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थित्थी कर फरिसं, अंतरियं कारणे वि उप्पन्ने। अरहा वि करेज्ज सयं, तं गच्छं मूल गुण मुक्कं॥

Translated Sutra: ‘‘जिस गच्छ में वैसी कारण पैदा हो और वस्त्र के आंतरा सहित हस्त से स्त्री के हाथ का स्पर्श करने में और अरिहंत भी खुद कर स्पर्श करे तो उस गच्छ को मुलगुण रहित समझना।’’
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 117 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥

Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 582 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सच्चित्तमीसएसु दुविहं काएसु होइ निक्खित्तं । एक्केक्कं तं दुविहं अनंतर परंपरं चेव ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकायादि के लिए दो प्रकार से – १. सचित्त, २. मिश्र। सचित्त के दो प्रकार – १. अनन्तर आंतरा रहित, २. परम्पर – आँतरावाला। मिश्र में दो प्रकार – १. अनन्तर, २. परम्पर। इस प्रकार हो सके। सामान्य से निक्षिप्त के तीन प्रकार हैं – १. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। तीनों में चार – चार भाँगा होते हैं। इसलिए तीन चतुर्भंगी होती
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२०. सम्यक्‌चारित्रसूत्र Hindi 286 View Detail
Mool Sutra: सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं। खन्तिं निउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पघंसयं।।२५।।

Translated Sutra: श्रद्धा को नगर, तप और संवर को अर्गला, क्षमा को (बुर्ज, खाई और शतघ्नीस्वरूप) त्रिगुप्ति (मन-वचन-काय) से सुरक्षित तथा अजेय सुदृढ़ प्राकार बनाकर तपरूप वाणी से युक्त धनुष से कर्म-कवच को भेदकर (आंतरिक) संग्राम का विजेता मुनि संसार से मुक्त होता है। संदर्भ २८६-२८७
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२०. सम्यक्‌चारित्रसूत्र Hindi 286 View Detail
Mool Sutra: श्रद्धां नगरं कृत्वा, तपःसंवरमर्गलाम्। क्षान्तिं निपुणप्राकारं, त्रिगुप्तं दुष्प्रधर्षकम्।।२५।।

Translated Sutra: श्रद्धा को नगर, तप और संवर को अर्गला, क्षमा को (बुर्ज, खाई और शतघ्नीस्वरूप) त्रिगुप्ति (मन-वचन-काय) से सुरक्षित तथा अजेय सुदृढ़ प्राकार बनाकर तपरूप वाणी से युक्त धनुष से कर्म-कवच को भेदकर (आंतरिक) संग्राम का विजेता मुनि संसार से मुक्त होता है। संदर्भ २८६-२८७
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 789 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठसमइए केवलिसमुग्घाते पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेति, बीए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेति, पंचमे समए लोगं पडिसाहरति, छट्ठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसा-हरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति।

Translated Sutra: केवली समुद्‌घात आठ समय का होता है, यथा – प्रथम समयमें स्वदेह प्रमाण नीचे ऊंचे, लम्बा और पोला चौदह रज्जु (लोक) प्रमाण दण्ड किया जाता है, द्वीतिय समयमें पूर्व और पश्चिममें लोकान्त पर्यन्त कपाट किये जाते हैं, तृतीय समयमें दक्षिण और उत्तरमें लकान्त पर्यन्त मंथन किया जाता है, चतुर्थ समयमें रिक्त स्थानों की पूर्ति
Vanhidasha वह्निदशा Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ निषध

Hindi 3 Sutra Upang-12 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए

Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत्‌ संप्राप्त भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती – नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर – दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था। स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के
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