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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Gujarati | 12 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स धन्नस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं धमणिसंतए जाए। जहा खंदओ तहेव चिंता। आपुच्छणं। थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं दुरुहइ। मासिया संलेहणा। नव मासा परियाओ जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाने देवत्ताए उववन्ने। थेरा तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए।
भंतेति! भगवं गोयमे तहेव आपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ जाव सव्वट्ठसिद्धे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧ | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-२ थी १० |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया।
तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा।
तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए Translated Sutra: હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે કાકંદી નગરીમાં ભદ્રા નામે આઢ્યા સાર્થવાહી રહેતી હતી. તેણીને સુનક્ષત્ર નામે પૂર્ણ પંચેન્દ્રિય યાવત્ સુરૂપ, પાંચ ધાત્રીથી પાલન કરાતો, ધન્ય જેવો પુત્ર હતો. તેની જેમજ ૩૨ – કન્યા સાથે લગ્ન યાવત્ ઉપરી પ્રાસાદમાં વિચરે છે. તે કાળે તે સમયે ભગવંત મહાવીરનું સમોસરણ થયું., ધન્યની માફક સુનક્ષત્ર | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 15 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वा-वस्सयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वावस्सयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वावस्सयाइं।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो वा अनुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं वा दव्वा-वस्सयाणि वा, से एगे दव्वावस्सए।
उज्जुसुयस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, पुहत्तं नेच्छइ।
तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अनुवउत्ते अवत्थू। कम्हा? जइ जाणए अनुवउत्ते न भवइ।
से तं आगमओ दव्वावस्सयं। Translated Sutra: नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्य – आवश्यक है। दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो आगमद्रव्य – आवश्यक हैं। इसी प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं, वे सभी उतनी ही नैगमनय की अपेक्षा आगमद्रव्य – आवश्यक हैं। इसी प्रकार व्यवहारनय भी जानना। संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्य – आवश्यक और अनेक अनुपयुक्त | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 16 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वावस्सयं।
नोआगमओ दव्वावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वावस्सयं भवियसरीरदव्वा-वस्सयं जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: नोआगमद्रव्य – आवश्यक क्या है ? वह तीन प्रकार का है। ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक, भव्यशरीरद्रव्यावश्यक, ज्ञायक – शरीर – भव्यशरीर – व्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 17 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं?
जाणगसरीरदव्वावस्सयं– आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं वव-गय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा– अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी।
से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं। Translated Sutra: ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? आवश्यक इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले के चैतन्य से रहित, आयुकर्म के क्षय होने से प्राणों से रहित, आहार – परिणतिजनित वृद्धि से रहित, ऐसे जीवविप्रमुक्त शरीर को शैयागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धशिलागत देखकर कोई कहे – ‘अहो ! इस शरीररूप पुद्गलसंघात ने जिनोपदिष्ट भाव से आवश्यक पद | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 18 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं?
भवियसरीरदव्वावस्सयं–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्स-एणं जिनदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ।
से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं। Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव जन्मकाल में योनिस्थान से बाहर निकला और उसी प्राप्त शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार भविष्य में आवश्यक पद को सीखेगा, किन्तु अभी सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यावश्यक है। इसका कोई दृष्टान्त है ? यह मधुकुंभ होगा, यह घृतकुंभ होगा। यह | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 19 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वावस्सयं? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक क्या है ? वह तीन प्रकार का है। लौकिक, कुप्रावचनिक, लोकोत्तरिक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 20 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं दव्वावस्सयं?
लोइयं दव्वावस्सयं–जे इमे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थ-वाहप्पभिइओ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगा- स किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-नलिनिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते मुहधोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फणिह-सिद्ध-त्थय-हरियालिय-अद्दाग-धूव-पुप्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थाइयाइं दव्वावस्सयाइं काउं तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा गच्छंति।
से तं लोइयं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: भगवन् ! लौकिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि रात्रि के व्यतीत होने से प्रभातकालीन किंचिन्मात्र प्रकाश होने पर, पहले की अपेक्षा अधिक स्फुट प्रकाश होने, विकसित कमलपत्रों एवं मृगों के नयनों के ईषद् उन्मीलन से युक्त, प्रभात के होने तथा रक्त | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 21 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं?
कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ Translated Sutra: कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षोण्डक, पांडुरंग, गौतम, गोव्रतिक, गृहीधर्मा, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, विरुद्ध, वृद्धश्रावक आदि पाषंडस्थ रात्रि के व्यतीत होने के अनन्तर प्रभात काल में यावत् सूर्य के जाज्वल्यमान तेज से दीप्त होने पर इन्द्र, स्कन्ध, रुद्र, शिव, वैश्रामण अथवा देव, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 324 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं भावसमोयारे। से तं समोयारे। से तं उवक्कमे। Translated Sutra: यही भावसमवतार है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 325 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पन्नत्ते, तं–ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तालावगनिप्फन्ने।
से किं तं ओहनिप्फन्ने? ओहनिप्फन्ने चउव्विहे पन्नत्ते, तं–अज्झयणे अज्झीणे आए ज्झवणा।
से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? आगमओ दव्वज्झयणे–जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं Translated Sutra: निक्षेप किसे कहते हैं ? निक्षेप तीन प्रकार हैं। यथा – ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, सूत्रालापकनिष्पन्न। ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं। उनके नाम हैं – अध्ययन, अक्षीण, आय, क्षपणा। अध्ययन के चार प्रकार हैं, यथा – नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य अध्ययन, भाव अध्ययन। नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववत् | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 327 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झयणे। से तं भावज्झयणे। से तं अज्झयणे।
से किं तं अज्झीणे? अज्झीणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झीणे ठवणज्झीणे दव्वज्झीणे भावज्झीणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झीणे? दव्वज्झीणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे? आगमओ दव्वज्झीणे–जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? Translated Sutra: यह नोआगमभाव – अध्ययन का स्वरूप है। अक्षीण का क्या स्वरूप है ? अक्षीण के चार प्रकार हैं। यथा – नाम – अक्षीण, स्थापना – अक्षीण, द्रव्य – अक्षीण और भाव – अक्षीण। नाम और स्थापना अक्षीण का स्वरूप पूर्ववत् जानना। द्रव्य – अक्षीण क्या है ? दो प्रकार हैं। यथा – आगम से, नोआगम से। जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 329 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे।
से किं तं आए? आए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दव्वाए भावाए।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए–जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नाम-समं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए।
कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ Translated Sutra: इस प्रकार से नोआगमभाव – अक्षीण का स्वरूप जानना चाहिए। आय क्या है ? आय के चार प्रकार हैं। यथा – नाम – आय, स्थापना – आय, द्रव्य – आय, भाव – आय। नाम – आय और स्थापना – आय का ‘वर्ण’ पूर्ववत् जानना। द्रव्य – आय के दो भेद हैं – आगम से, नोआगम से। जिसने आय यह पद सीख लिया हे, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य हैं | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 1 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा– आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं। Translated Sutra: ज्ञान के पाँच प्रकार हैं। आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 2 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं– नो उद्दिस्संति, नो समुद्दिस्संति नो अनुन्नविज्जंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। Translated Sutra: इन ज्ञानों में से चार ज्ञान स्थाप्य हैं, एक स्थापनीय हैं। क्योंकि ये चारों ज्ञान (गुरु द्वारा) उपदिष्ट नहीं होते हैं, समुपदिष्ट नहीं होते हैं और न इनकी आज्ञा दी जाती है। किन्तु श्रुतज्ञान का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होता है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 3 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ? अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ?
अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। Translated Sutra: यदि श्रुतज्ञान में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति होती है तो वह उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति अंगप्रविष्ट श्रुत में होती है। अथवा अंगबाह्य में होती है ? अंगप्रविष्ट तथा अंगबाह्य दोनों आगम में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवर्तित होते हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 4 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ? उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ?
कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। Translated Sutra: भगवन् ! यदि अंगबाह्य श्रुत में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति होती है तो क्या वह कालिकाश्रुत में होती है अथवा उत्कालिक श्रुत में ? कालिकश्रुत और उत्कालिक श्रुत दोनों में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होते हैं, किन्तु यहाँ उत्कालिक श्रुत का उद्देश यावत् अनुयोग प्रारम्भ किया | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 5 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं आवस्सयस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ? आवस्सयवतिरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ?
आवस्सयस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, आवस्सयवतिरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सयस्स अनुओगो। Translated Sutra: यदि उत्कालिक श्रुत के उद्देश आदि होते हैं तो क्या वे आवश्यक के होते हैं अथवा आवश्यकव्यतिरिक्त के होते हैं ? आयुष्यमन् ! यद्यपि आवश्यक और आवश्यक से भिन्न दोनों के उद्देश आदि होते हैं परन्तु यहाँ आवश्यक का अनुयोग प्रारम्भ किया जा रहा है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 6 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ आवस्सयस्स अनुओगो, आवस्सयण्णं किं अंगं? अंगाइं? सुयखंधो? सुयखंधा? अज्झ-यणं? अज्झयणाइं? उद्देसो? उद्देसा?
आवस्सयण्णं नो अंगं नो अंगाइं, सुयखंधो नो सुयखंधा, नो अज्झयणं अज्झयणाइं, नो उद्देसो नो उद्देसा। Translated Sutra: यदि यह अनुयोग आवश्यक का है तो क्या वह एक अंग रूप है या अनेक अंग रूप ? एक श्रुतस्कन्ध रूप है या अनेक श्रुतस्कन्ध रूप ? एक अध्ययन रूप है या अनेक अध्ययन रूप ? एक उद्देशक रूप है या अनेक उद्देशक रूप ? आवश्यकसूत्र एक या अनेक अंग रूप नहीं है। एक श्रुतस्कन्ध रूप है। अनेक अध्ययन रूप है। या अनेक उद्देशक रूप नहीं है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 7 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तम्हा आवस्सयं निक्खिविस्सामि, सुयं निक्खिविस्सामि, खंधं निक्खिविस्सामि, अज्झयणं निक्खिविस्सामि। Translated Sutra: आवश्यक का निक्षेप करूँगा। इसी तरह श्रुत, स्कन्ध एवं अध्ययन शब्दों का निक्षेप करूँगा। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 9 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–नामावस्सयं ठवणावस्सयं दव्वावस्सयं भावावस्सयं। Translated Sutra: आवश्यक का स्वरूप क्या है ? आवश्यक चार प्रकार का है। नाम – आवश्यक, स्थापना – आवश्यक, द्रव्य – आवश्यक, भाव – आवश्यक। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 10 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामावस्सयं?
नामावस्सयं–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आवस्सए त्ति नामं कज्जइ।
से तं नामावस्सयं। Translated Sutra: नाम – आवश्यक का स्वरूप क्या है ? जिस किसी जीव या अजीव का अथवा जीवों या अजीवों का, तदुभय का अथवा तदुभयों का, ‘आवश्यक’ ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नाम – आवश्यक कहते हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 11 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठवणावस्सयं?
ठवणावस्सयं–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आवस्सए त्ति ठवणा ठविज्जइ।
से तं ठवणावस्सयं। Translated Sutra: स्थापना – आवश्यक क्या है ? काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम, अक्ष अथवा वराटक में एक अथवा अनेक आवश्यक रूप से जो सद्भाव अथवा असद्भाव रूप स्थापना की जाती है, वह स्थापना – आवश्यक है। | |||||||||
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Hindi | 12 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नामट्ठवणाणं को पइविसेसो?
नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। Translated Sutra: नाम और स्थापना में क्या भिन्नता है ? नाम यावत्कथित होता है, किन्तु स्थापना इत्वरिक और यावत्कथित, दोनों प्रकार की होती है। | |||||||||
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Hindi | 13 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वावस्सयं?
दव्वावस्सयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: द्रव्य – आवश्यक क्या है ? द्रव्यावश्यक दो प्रकार का है। आगमद्रव्यावश्यक, नोआगमद्रव्यावश्यक। | |||||||||
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Hindi | 14 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं?
आगमओ दव्वावस्सयं–जस्स णं आवस्सए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं धोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। Translated Sutra: आगमद्रव्य – आवश्यक क्या है ? जिस ने ‘आवश्यक’ पद को सीख लिया है, स्थित कर लिया है, जित कर लिया है, मित कर लिया है, परिजित कर लिया है, नामसम कर लिया है, घोषसम किया है, अहीनाक्षर किया है, अनत्यक्षर किया है, व्यतिक्रमरहित उच्चारण किया है, अस्खलित किया है, पदों को मिश्रित करके उच्चारण नहीं किया है, एक शास्त्र के भिन्न – भिन्न | |||||||||
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Hindi | 22 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं?
लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति।
से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो श्रमण के गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम हों, हस्तिवत् निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग – प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, शरीर को धोते हों, अथवा केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिए मक्खन | |||||||||
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Hindi | 23 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावावस्सयं?
भावावस्सयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: भावावश्यक क्या है ? दो प्रकार का है – आगमभावावश्यक और नोआगमभावावश्यक। | |||||||||
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Hindi | 24 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावावस्सयं?
आगमओ भावावस्सयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावावस्सयं। Translated Sutra: आगमभावावश्यक क्या है ? जो आवश्यक पद का ज्ञाता हो और साथ ही उपयोग युक्त हो, वह आगमभावावश्यक है। | |||||||||
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Hindi | 25 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावावस्सयं?
नोआगमओ भावावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: नोआगमभावावश्यक किसे कहते हैं ? तीन प्रकार का है। लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक। | |||||||||
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Hindi | 26 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावावस्सयं?
लोइयं भावावस्सयं–पुव्वण्हे भारहं, अवरण्हे रामायणं।
से तं लोइयं भावावस्सयं। Translated Sutra: लौकिक भावावश्यक क्या है ? दिन के पूर्वार्ध में महाभारत का और उत्तरार्ध में रामायण का वाचन करने, श्रवण करने को लौकिक नोआगमभावावश्यक कहते हैं। | |||||||||
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Hindi | 27 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं भावावस्सयं?
कुप्पावयणियं भावावस्सयं–जे इमं चरग-चीरिय-चम्मखंडिय-भिक्खोंड-पंडुरंग-गोयम-गोव्वइय-गिहिधम्म-धम्मचिंतग-अविरुद्ध-विरुद्ध-वुड्ढसावगप्पभिइओ० पासंडत्था इज्जंजलि-होम-जप-उदुरुक्क-नमोक्कार-माइयाइं भावावस्सयाइं करेंति।
से तं कुप्पावयणियं भावावस्सयं। Translated Sutra: कुप्रावचनिक भावावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक यावत् पाषण्डस्थ यज्ञ, अंजलि, हवन, जाप, धूपप्रक्षेप या बैल जैसी ध्वनि, वंदना आदि भावावश्यक करते हैं, वह कुप्रावचनिक भावावश्यक है। | |||||||||
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Hindi | 28 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं?
लोगुत्तरियं भावावस्सयं–जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अन्नत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति।
से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं नोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावस्सयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक भावावश्यक क्या है ? दत्तचित्त और मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से सम्पन्न, यथाविध क्रिया को करने के लिए तत्पर अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक उसके अर्थ में उपयोगयुक्त होकर एवं उपयोगी करणों को नियोजित कर, उसकी भावना से भावित होकर जो ये श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविकायें | |||||||||
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Hindi | 29 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नानाघोसा नानावंजणा नामधेज्जा भवंति तं जहा– Translated Sutra: उस आवश्यक के नाना घोष और अनेक व्यंजन वाले एकार्थक अनेक नाम इस प्रकार हैं – आवश्यक, अवश्यकरणीय, ध्रवनिग्रह, विशोधि, अध्ययन – षट्कवर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग। श्रमणों और श्रावकों द्वारा दिन एवं रात्रि के अन्त में अवश्य करने योग्य होने के कारण इसका नाम आवश्यक है। यह आवश्यक का स्वरूप है सूत्र – २९–३२ | |||||||||
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Hindi | 30 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आवस्सयं अवस्सकरणिज्ज, धुवनिग्गहो विसोही य ।
अज्झयणछक्कवग्गो, नाओ आराहणा मग्गो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९ | |||||||||
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Hindi | 31 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा ।
अंतो अहोनिसस्स उ, तम्हा आवस्सयं नाम ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९ | |||||||||
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Hindi | 32 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं आवस्सयं। Translated Sutra: देखो सूत्र २९ | |||||||||
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Hindi | 33 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुयं?
सुयं चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–नामसुयं ठवणासुयं दव्वसुयं भावसुयं। Translated Sutra: श्रुत क्या है ? श्रुत चार प्रकार का है – नामश्रुत, स्थापनाश्रुत, द्रव्यश्रुत, भावश्रुत। | |||||||||
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Hindi | 34 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामसुयं?
नामसुयं–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा सुए त्ति नामं कज्जइ।
से तं नामसुयं। Translated Sutra: नामश्रुत क्या है ? जिस किसी जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, उभय का अथवा उभयों का ‘श्रुत’ ऐसा नाम रख लिया जाता है, वह नामश्रुत हैं। | |||||||||
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Hindi | 35 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठवणासुयं?
ठवणासुयं–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा सुए त्ति ठवणा ठविज्जइ।
से तं ठवणासुयं।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो?
नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। Translated Sutra: स्थापनाश्रुत क्या है ? काष्ठ यावत् कौड़ी आदि में ‘यह श्रुत है’, ऐसी जो स्थापना की जाती है, वह स्थापनाश्रुत है। नाम और स्थापना में क्या विशेषता है ? नाम यावत्कथित होता हे, जबकि स्थापना इत्वरिक और यावत्कथित दोनों प्रकार की होती है। | |||||||||
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Hindi | 36 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वसुयं?
दव्वसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: द्रव्यश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। जैसे – आगमद्रव्यश्रुत, नोआगमद्रव्यश्रुत। | |||||||||
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Hindi | 37 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वसुयं?
आगमओ दव्वसुयं–जस्स णं सुए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वसुयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वसुयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वसुयाइं।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो Translated Sutra: आगम की अपेक्षा द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? जिस साधु आदि ने श्रुत यह पद सीखा है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है यावत् जो ज्ञायक हैं वह अनुपयुक्त नहीं होता है आदि। यह आगम द्रव्यश्रुत का स्वरूप है | |||||||||
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Hindi | 38 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं?
नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं। Translated Sutra: नोआगमद्रव्यश्रुत क्या है ? तीन प्रकार का है। ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत, भव्यशरीरद्रव्यश्रुत, ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्य – तिरिक्तद्रव्यश्रुत। | |||||||||
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Hindi | 39 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वसुयं?
जाणगसरीरदव्वसुयं–सुए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा–अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी।
से तं जाणगसरीरदव्वसुयं। Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – द्रव्यश्रुत क्या है ? श्रुतपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला देखकर कोई कहे – अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से ‘श्रुत’ इस पद की गुरु से वाचना ली थी, प्रज्ञापित, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित, | |||||||||
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Hindi | 40 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वसुयं?
भवियसरीरदव्वसुयं–जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ।
से तं भवियसरीरदव्वसुयं। Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यश्रुत क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर – द्रव्यश्रुत है। इसका दृष्टान्त ? ‘यह मधुपट है, यह घृतघट है’ ऐसा कहा जाता है। | |||||||||
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Hindi | 41 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं?
जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं।
अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं।
से किं तं अंडयं?
अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं।
से किं तं बोंडयं?
बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं।
से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं।
से किं तं वालयं?
वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं।
से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं।
से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।
से तं Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त – द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत हैं। अथवा वह पाँच प्रकार का है – अंडज, बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज। अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। बोंडज किसे कहते हैं ? | |||||||||
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Hindi | 42 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावसुयं?
भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। यथा – आगमभावश्रुत और नोआगमभावश्रुत। | |||||||||
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Hindi | 43 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावसुयं?
आगमओ भावसुयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावसुयं। Translated Sutra: आगमभावश्रुत क्या है ? जो श्रुत का ज्ञाता होने के साथ उसके उपयोग से भी सहित हो, वह आगमभावश्रुत है। | |||||||||
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Hindi | 44 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावसुयं?
नोआगमओ भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: नोआगम की अपेक्षा भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। लौकिक, लोकोत्तरिक। | |||||||||
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Hindi | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, |