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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 193 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, ‘मा णे चयाहि’ इति ते वदंति। छंदोवणीया अज्झोववन्ना, अक्कंदकारी जणगा रुवंति। अतारिसे मुनी, नो ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा। सरणं तत्थ णोसमेति। किह नाम से तत्थ रमति? एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: मोक्षमार्ग – संयम में पराक्रम करते हुए उस मुनि के माता – पिता आदि करुण विलाप करते हुए यों कहते हैं – तुम हमें मत छोड़ो, हम तुम्हारे अभिप्राय के अनुसार व्यवहार करेंगे, तुम पर हमें ममत्व है। इस प्रकार आक्रन्द करते हुए वे रुदन करते हैं। (वे रुदन करते हुए स्वजन कहते हैं) जिसने माता – पिता को छोड़ दिया है, ऐसा व्यक्ति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 294 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयणेहिं तस्सुवसग्गा, भीमा आसी अनेगरूवा य । संसप्पगाय जे पाणा, अदुवा जे पक्खिनो उवचरंति ॥

Translated Sutra: उन आवास में भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग आते थे। कभी साँप और नेवला आदि प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आकर माँस नोचते। कभी उन्हें चोर या पारदारिक आकर तंग करते, अथवा कभी ग्रामरक्षक उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुष उपसर्ग देते थे। सूत्र – २९४, २९५
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 340 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं ‘समारब्भ समुद्दिस्स’ कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसं-तरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, ‘परिभुत्तं वा’ ‘अपरिभुत्तं वा’ आसेवियं वा अनासेवियं वा –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी जब यह जाने कि किसी भद्र गृहस्थ ने अकिंचन निर्ग्रन्थ के लिए एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके आहार बनाया है, साधु के निमित्त से आहार मोल लिया, उधार लिया है, किसी से जबरन छीनकर लाया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 342 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह चतुर्विध आहार बहुत – से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, दरिद्रों और याचकों के उद्देश्य से प्राणादि आदि जीवों का समारम्भ करके यावत्‌ लाकर दे रहा है, उस प्रकार के आहार को जो स्वयं दाता द्वारा कृत हो, बाहर नीकाला हुआ न हो, दाता द्वारा अधिकृत न हो, दाता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 344 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अट्ठमिपोसहिएसु वा, अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएसु वा, छमासिएसु वा उउसु वा, उउसंधीसु वा, उउपरियट्टेसु वा, बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, ‘तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’ ‘चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’, कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओ वा सण्णिहि-‘सण्णिचयाओ वा’ परिएसिज्जमाणे पेहाए– तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार – प्राप्ति के निमित्त प्रविष्ट होने पर अशन आदि आहार के विषय में यह जाने कि यह आहार अष्टमी पौषधव्रत के उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा अर्द्धमासिक, मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक और षाण्मासिक उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा ऋतुओं, ऋतुसन्धियों एवं ऋतु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 346 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु...... बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते समय वह जाने कि यहाँ मेला, पितृपिण्ड के निमित्त भोज तथा इन्द्र – महोत्सव, स्कन्ध, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग – महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हृद, नदी, सरोवर, सागर या आकार सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 349 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा, परिवायएहिं वा, परिवाइयाहिं वा, एगज्झ सद्धं सोडं पाउं भो! वतिमिस्सं हुरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्सि-भावमावज्जेज्जा। अन्नमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा, किलीवे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया–आउसंतो! समणा! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म-णियंतियं कट्टु, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आउट्टामो। तं चेगइओ सातिज्जेज्जा। अकरणिज्जं चेयं संखाए। एते आयाणा संति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति। तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं

Translated Sutra: यहाँ भिक्षु गृहस्थों – गृहस्थपत्नीयों अथवा परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर बाहर नीकलकर उपाश्रय ढूँढ़ने लगेगा, जब वह नहीं मिलेगा, तब उसी को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री – पुरुषों व परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा। उनके साथ धुलमिल जाएगा। वे गृहस्थ – गृहस्थपत्नीयाँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 398 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं। तहप्पगारे उवस्सए नो ‘ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा’। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं। तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं

Translated Sutra: साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत्‌ राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान, शय्या और निषीधिका न करे। वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 399 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्संजए भिक्खु-पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिंदिय-छिंदिय, दालिय-दालिय, संथारगं संथारेज्जा, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अनासेविते नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडे, अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के लिए जिसके छोटे द्वार को बड़ा बनाया है, जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में बताया गया है, यहाँ तक कि उपाश्रय के अन्दर और बाहर ही हरियाली ऊखाड़ – ऊखाड़ कर, काट – काट कर वहाँ संस्तारक बिछाया गया है, अथवा कोई पदार्थ उसमें से बाहर नीकाले गए हैं, वैसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 422 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–खुड्डियाओ, खुड्ड-दुवारियाओ, निइयाओ संनिरुद्धाओ भवंति। तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं–जे तत्थ समनाण वा, माहनाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, ‘नालिया वा, चेलं वा’, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा–दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले–भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा,

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंध रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर नीकलता हुआ या भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैर से संयम पूर्वक नीकले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 432 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–आइण्णसंलेक्खं, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने जो गृहस्थ स्त्री – पुरुषों आदि के चित्रों से सुसज्जित है, तो ऐसे उपाश्रय में प्राज्ञ साधु को निर्गमन – प्रवेश करना या वाचना आदि करना उचित नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थानादि कार्य न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 440 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव णं पण्णस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेज्जा। केवली बूया आयाणमेवं–अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा अन्नयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ वव-रोवेज्ज वा। अह

Translated Sutra: जो साधु या साध्वी स्थिरवास कर रहा हो, या उपाश्रय में रहा हुआ हो, अथवा ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ आकर ठहरा हो, उस प्रज्ञावान, साधु को चाहिए कि वह पहले ही उसके परिपार्श्व में उच्चार – प्रस्रवण – विसर्जन भूमि को अच्छी तरह देख ले। केवली भगवान ने कहा है – यह अप्रतिलेखित उच्चार – प्रस्रवण – भूमि कर्मबन्ध का कारण है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 449 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्सुगाय-तणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरि-भोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेवं–ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ‘अच्छिंदेज्ज वा’, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णोतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिले तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्मबोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागने वाले, कुसमय में खाने –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 461 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 466 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति। अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 468 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए

Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत्‌ जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 477 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अनासेवियं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं

Translated Sutra: साधु या साध्वी को यदि वस्त्र के सम्बन्ध में ज्ञात हो जाए कि कोई भावुक गृहस्थ धन के ममत्व से रहित निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा करके किसी एक साधर्मिक साधु का उद्देश्य रखकर प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके यावत्‌ (पिण्डैषणा समान) अनैषणीय समझकर मिलने पर भी न ले। तथा पिण्डैषणा अध्ययन में जैसे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 478 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घट्ठं वा, मट्ठं वा, संमट्ठं वा, संपधूमियं वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया नीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अनासेवितं –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडं, बहिया नीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं, आसेवियं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि किसी वस्त्र के विषय में यह जान जाए कि असंयमी गृहस्थ ने साधु के निमित्त से उसे खरीदा है, धोया है, रंगा है, घिस कर साफ किया है, चिकना या मुलायम बनाया है, संस्कारित किया है, सुवासित किया है और ऐसा वह वस्त्र अभी पुरुषान्तरकृत यावत्‌ दाता द्वारा आसेवित नहीं हुआ है, तो ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 480 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-१ Hindi 486 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा–अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा– तहप्पगारं पायं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, नो बीयं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यदि पात्र ग्रहण करना चाहे तो जिन पात्रों को जाने वे इस प्रकार हैं – तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र। इन तीनों प्रकार के पात्रों को साधु ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिर – सहन वाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। वह साधु, साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-२ Hindi 487 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसमाणे पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहगं, अवहट्टु पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं– अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा, बीए वा, रए वा परियावज्जेज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहं, अवहट्टु पाणे, पमज्जिय रयं तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहार – पानी के लिए प्रवेश करने से पूर्व ही साधु या साध्वी अपने पात्र को भलीभाँति देखे, उसमें कोई प्राणी हो तो उन्हें नीकालकर एकान्त में छोड़ दे और धूल को पोंछकर झाड़ दे। तत्पश्चात्‌ साधु अथवा साध्वी आहार – पानी के लिए उपाश्रय से बाहर नीकले या गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। केवली भगवान कहते हैं –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक

Hindi 499 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चारपासवण-किरियाए उव्वाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाएज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग -दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए

Translated Sutra: साधु या साध्वी को मल – मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे। साधु या साध्वी ऐसी स्थण्डिल भूमि को जाने, जो कि अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल – मूत्र विसर्जन न करे। साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो प्राणी, बीज, यावत्‌
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-११ [४] शब्द विषयक

Hindi 504 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–अक्खाइय-ट्ठाणाणि वा, माणुम्माणिय-ट्ठाणाणि वा, महयाहय-णट्ट-गीय-वाइय-तंति-तल-ताल-तुडिय-पडुप्पवाइय-ट्ठाणाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–कलहाणि वा, डिंबाणि वा, डमराणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए णोअभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–खुड्डियं वारियं परिवुतं

Translated Sutra: साधु या साध्वी कईं प्रकार के शब्द – श्रवण करते हैं, जैसे कि कथा करने के स्थानों में, तोल – माप करने के स्थानों में या घुड़ – दौड़, कुश्ती प्रतियोगिता आदि के स्थानों में, महोत्सव स्थलों में, या जहाँ बड़े – बड़े नृत्य, नाट्य, गीत, वाद्य, तन्त्री, तल, ताल, त्रुटित, वादिंत्र, ढोल बजाने आदि के आयोजन होते हैं, ऐसे स्थानों में तथा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 541 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणिच्चमावासमुवेंति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं । विऊसिरे विण्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए ॥

Translated Sutra: संसार के समस्त प्राणी जिन शरीर आदि में आत्माएं आवास प्राप्त करती हैं, वे सब स्थान अनित्य हैं। सर्वश्रेष्ठ मौनीन्द्र प्रवचन में कथित यह वचन सूनकर गहराई से पर्यालोचन करे तथा समस्त भयों से मुक्त बना हुआ विवेकी पुरुष आगारिक बंधनों का व्युत्सर्ग कर दे, एवं आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर दे।
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 8 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति।

Translated Sutra: કર્મ અને કર્મબંધના સ્વરૂપને નહીં જાણનાર પુરૂષ અર્થાત્ આત્મા જ કર્મબંધના કારણે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. અને પોતાનાં કર્મો અનુસાર સર્વે દિશા અને વિદિશામાં જાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 21 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पणया वीरा महावीहिं।

Translated Sutra: વીર પુરુષો મહાપથ – મોક્ષમાર્ગ પ્રતિ પુરુષાર્થ કરી ચૂક્યા છે અર્થાત્ આ સંયમ – માર્ગ આચરી ચુક્યા છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 34 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीरेहिं एयं अभिभूय दिट्ठं, संजतेहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहिं।

Translated Sutra: સદા સંયત, સદા અપ્રમત્ત અને સદા યતનાવાન્ એવા વીરપુરૂષોએ પરિષહ આદિ જીતી, ઘનઘાતિકર્મોનો ક્ષય કરીને કેવળજ્ઞાન દ્વારા આ સંયમનું સ્વરૂપ જોયું છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 48 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी– नेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेवणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: વનસ્પતિકાયનો સમારંભ કરનાર તેના આરંભના પરિણામોથી અજાણ હોય છે અને વનસ્પતિશસ્ત્રનો સમારંભ ન કરનાર આ હિંસાજન્ય વિપાકોનો પરિજ્ઞાતા હોય છે અર્થાત્ ઉપર કહેલ હિંસા આદિ ક્રિયાઓ કર્મબંધનું કારણ છે એવો વિવેક તેને હોય છે. આવું જાણી મેઘાવી પુરુષ વનસ્પતિકાયની હિંસા સ્વયં ન કરે, બીજા પાસે ન કરાવે, કરનારને અનુમોદે નહીં.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Gujarati 63 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे। इति से गुणट्ठी महता परियावेणं वसे पमत्ते– माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए– वसे पमत्ते। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विणि-विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो। अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं, तं जहा–

Translated Sutra: જે શબ્દાદિ વિષય છે તે સંસારનું કારણ છે. અને જે સંસારના મૂળ કારણ છે, તે શબ્દાદિ વિષય છે, આ રીતે તે વિષય અભિલાષી પ્રાણી પ્રમાદી બની શારીરિક અને માનસિક પરિતાપ ભોગવે છે. તે આ પ્રમાણે માને છે કે – મારી માતા, મારા પિતા, મારો ભાઈ, મારી બહેન, પત્ની, પુત્ર, પુત્રી, પુત્રવધૂ, મિત્ર, સ્વજન, સંબંધી છે. મારા હાથી, ઘોડા, મકાન આદિ સાધન,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Gujarati 66 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए। अंतरं च खलु इमं संपेहाए– धीरे मुहुत्तमवि णोपमायए। वयो अच्चेइ जोव्वणं व।

Translated Sutra: આ પ્રકારે ચિંતન કરતો મનુષ્ય સંયમ પાલનમાં ક્ષત્રમાત્ર પણ પ્રમાદ ન કરે. આ જીવનને અવસર સમજી ધીરપુરૂષ ઉદ્યમ કરે. કેમ કે વય અને યૌવન બાલ્યવય પણ) વીતી રહી છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Gujarati 77 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतं समणुजाणेज्जा। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि।

Translated Sutra: ઉપરોક્ત હિંસા અહિતરૂપ છે તેમ જાણીને મેઘાવી સાધક, સ્વયં હિંસા કરે નહીં, બીજા પાસે હિંસા કરાવે નહીં, હિંસા કરતા બીજાને અનુમોદે નહીં. આ અહિંસા – માર્ગ તીર્થંકરોએ બતાવ્યો છે. તેથી કુશળ પુરૂષો દંડ સમારંભ અર્થાત્ હિંસાદિ વૃત્તિ કે પ્રવૃત્તિમાં લેપાય નહીં. તેમ જે ભગવંતે કહ્યું તે હું તમને કહું છું.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Gujarati 81 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इणमेव नावकंखंति, जे जना धुवचारिनो । जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ॥

Translated Sutra: જે પુરૂષ ધ્રુવચારી અર્થાત્ શાશ્વત સુખના કેન્દ્રરૂપ મોક્ષ પ્રતિ ગતિશીલ એટલે કે સંયમશીલ છે. તે આવા અસંયમી જીવનની ઇચ્છા કરતા નથી. જન્મ – મરણના સ્વરૂપને સારીરીતે જાણીને ચારિત્રમાં દૃઢ થઈને વિચરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Gujarati 84 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वा णं एगया णियया पुव्विं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवएज्जा। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं। भोगामेव अणुसोयंति। इहमेगेसिं माणवाणं।

Translated Sutra: પછી તેને કોઈ વખતે રોગ ઉત્પન્ન થાય છે. જેની સાથે તે રહે છે તે જ સ્વજન કોઈ વખતે તેનો તિરસ્કાર – નિંદા કરે છે. પછી તે પણ તેઓનો તિરસ્કાર – નિંદા કરે છે. હે પુરૂષ !) તે તને શરણ આપવા કે રક્ષણ કરવા સમર્થ નથી. તું પણ તેને શરણ આપવા કે રક્ષણ કરવા સમર્થ નથી. સુખ – દુઃખ પ્રત્યેકના પોતાના જાણીને ઇન્દ્રિય વિજય કર. કેટલાક મનુષ્યો,
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Gujarati 86 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे। तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु। जेण सिया तेण णोसिया। इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा। थीभि लोए पव्वहिए। ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए। उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे। अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए। नालं पास। अलं ते एएहिं।

Translated Sutra: હે ધીર પુરૂષ ! તું વિષયભોગની આશા અને સંકલ્પ છોડી દે – આ ભોગશલ્યનું સર્જન તેં જ કર્યું છે. જે ભોગથી સુખ છે, તેનાથી જ દુઃખ પણ છે. આ વાત મોહથી ઘેરાયેલો મનુષ્ય સમજી શકતો નથી. આ સંસારના પ્રાણીઓ સ્ત્રીઓના મોહથી પરાજિત છે. હે પુરૂષ ! તે લોકો કહે છે કે આ સ્ત્રીઓ ભોગની સામગ્રી છે. આ કથન દુઃખ, મોહ, મૃત્યુ, નરકનાં કારણરૂપ છે. તથા
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 93 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अन्नहा णं पासए परिहरेज्जा’। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि

Translated Sutra: આ પ્રકારે જોઈને – વિચારીને અર્થાત્ ધર્મોપકરણને માત્ર સંયમનું સાધન સમજી પરિગ્રહનો ત્યાગ કરે. આ માર્ગ તીર્થંકરોએ બતાવેલ છે. જેથી કુશલ પુરૂષ પરિગ્રહમાં ન લેપાય. તેમ હું કહું છું.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 94 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कामा दुरतिक्कमा। जीवियं दुप्पडिवूहणं। कामकामी खलु अयं पुरिसे। से सोयति जूरति तिप्पति पिड्डति परितप्पति।

Translated Sutra: કામભોગોનો ત્યાગ ઘણો મુશ્કેલ છે. જીવનને લંબાવી શકાતું નથી. આ પુરૂષ કામભોગની કામના રાખે છે. પછી તેના જવા પર શોક કરે છે, વિલાપ કરે છે, મર્યાદા છોડી દે છે અને પરિતાપથી દુઃખી થાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 95 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ। गढिए अणुपरियट्टमाणे। संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं। एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो। अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं। पंडिए पडिलेहाए।

Translated Sutra: દીર્ઘદર્શી અર્થાત્ આ – લોક પર – લોકના દુઃખને જોનાર, અને લોકદર્શી અર્થાત્ લોકના સ્વરૂપને જાણનાર – પુરુષ લોકના અધોભાગને, ઉર્ધ્વભાગને, તિર્છાભાગને જાણે છે. વિષયમાં આસક્ત લોકો સંસારમાં વારંવાર ભ્રમણ કરે છે. જે ‘સંધિ’ અર્થાત્ ધર્મના અવસરને જાણીને વિષયોથી દૂર રહે તે વીર છે, પ્રશંસનીય છે. જે સંસાર બંધનમાં બંધાયેલને
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Gujarati 96 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से मइमं परिण्णाय, मा य हु लालं पच्चासी। मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए। कासकंसे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढे पुनो तं करेइ लोभं। वेरं वड्ढेति अप्पणो। जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए। अमरायइ महासड्ढी। अट्ठमेतं पेहाए। अपरिण्णाए कंदति।

Translated Sutra: તે મતિમાન ઉક્ત વિષય જાણીને વમન કરેલા ભોગોને પુનઃ ન સેવે. પોતાને તિર્છા વિપરીત) માર્ગમાં ન ફસાવે. આવો કામાસક્ત પુરૂષ મેં કર્યું, હું કરીશ એવા વિચારોથી ઘણી માયા કરીને મૂઢ બને છે. પછી તે લોભ કરીને પોતાના વૈર વધારે છે, તેથી એમ કહેવાય છે કે ભોગાસક્ત પુરૂષ ક્ષણભંગુર શરીરને પુષ્ટ બનાવવા પ્રયત્ન કરે છે, જાણે કે તે અજર
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Gujarati 100 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे ममाइय-मतिं जहाति, से जहाति ममाइयं। से हु दिट्ठपहे मुनी, जस्स नत्थि ममाइयं। तं परिण्णाय मेहावी। विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं, ‘से मतिमं’ परक्कमेज्जासि

Translated Sutra: જે મમત્વ બુદ્ધિનો ત્યાગ કરે છે, તે મમત્વનો ત્યાગ કરે છે. જેને મમત્વ નથી તે જ મોક્ષમાર્ગને જાણનાર મુનિ છે, એવું જાણીને મેઘાવી મુનિ લોકના સ્વરૂપને જાણે, જાણીને લોકસંજ્ઞાનો ત્યાગ કરી સંયમમાં પુરૂષાર્થ કરે – એમ ભગવંતે કહ્યું તે હું તમને કહું છું.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-६ अममत्त्व Gujarati 106 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अवि य हणे अनादियमाणे। एत्थंपि जाण, सेयंति नत्थि। के यं पुरिसे? कं च नए? एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए। उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णचारी। न लिप्पई छणपएण वीरे। से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमन्नेसि। कुसले पुण नोबद्धे, नोमुक्के।

Translated Sutra: ધર્મોપદેશ સમયે ક્યારેક કોઈ શ્રોતા પોતાનાં સિદ્ધાંત કે મતનો અનાદર થવાથી ક્રોધિત થઇ ઉપદેશકને મારવા લાગે, તો ધર્મકથા કરનાર એમ જાણે કે અહીં ધર્મકથા કરવી કલ્યાણકારી નથી. ઉપદેશકે પહેલાં એ જાણવું જોઈએ કે – શ્રોતા કોણ છે ? તે ક્યા દેવને કે ક્યા સિદ્ધાંતને માને છે? ઉર્ધ્વદિશામાં રહેલ – જ્યોતિષ્ક આદિ, અધોદિશામાં રહેલ
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Gujarati 113 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एयं मइमं! पास। आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा। माई पमाई पुनरेइ गब्भं। उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति। अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’। जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे। अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ। कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए।

Translated Sutra: સંસારમાં મનુષ્યને દુઃખથી પીડાતા જોઈને સાધક સતત અપ્રમત્ત બની સંયમમાં વિચરે. હે મતિમાન્‌ ! મનન કરી તું આ દુઃખી પ્રાણીને જો. તેઓના આ બધાં દુઃખ આરંભ અર્થાત્ હિંસાજનિત છે. તે જાણી તું અનારંભી બન. માયાવી, પ્રમાદી કષાયી પ્રાણી વારંવાર જન્મ – મરણ કરે છે. પરંતુ જે શબ્દાદિ વિષયમાં રાગ – દ્વેષ કરતા નથી, ઋજુતા આર્જવતા આદિ
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Gujarati 118 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा तिविज्जो परमंति नच्चा, आयंकदंसी न करेति पावं। ‘अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे’। पलिच्छिंदिया णं निक्कम्मदंसी॥

Translated Sutra: તેથી ઉત્તમ જ્ઞાની પુરુષ પરમ મોક્ષપદને જાણીને તથા નરકના દુઃખોને જાણીને પાપ – કર્મ ન કરે. હે ધીર ! તું અગ્ર અર્થાત્ ભવોપગ્રાહી કે મોહનીય અને મૂલ અર્થાત્ ઘાતી કે શેષ ૭ કર્મને દૂર કર. કર્મો તોડીને કર્મરહિત બન.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Gujarati 121 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयण अरिहए पूरइत्तए। से अन्नवहाए अन्नपरियावाए अन्नपरिग्गहाए, जणवयवहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए।

Translated Sutra: સંસારનાં સુખના અભિલાષી તે અસંયમી પુરુષ અનેક પ્રકારે સંકલ્પ – વિકલ્પો કરે છે. તે ચાળણી વડે સમુદ્રને ભરવા ઇચ્છે છે. તે બીજાના અને જનપદ અર્થાત્ દેશના વધ, પરિતાપ અને આધિન કરવા પ્રવૃત્તિ કરે છે.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Gujarati 122 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आसेवित्ता एतमट्ठं, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए। निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं नच्चा। अनन्नं चर माहणे! से न छणे न छनावए, छणंतं णाणुजाणइ। निव्विंद नंदिं अरते पयासु। अणोमदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं।

Translated Sutra: વધ – પરિતાપ આદિનું આસેવન કરી, છેલ્લે તે સર્વેનો ત્યાગ કરી કેટલાયે પ્રાણી સંયમમાર્ગમાં ઉદ્યમવંત થયા છે. તેથી જ્ઞાની પુરુષો કામભોગને અસાર સમજી છોડ્યા પછી ફરી મૃષાવાદ આદિ અસંયમનું સેવન ન કરે. હે જ્ઞાની મુનિ! વિષયોને સાર રહિત જાણો, દેવોના પણ ઉપપાત – ચ્યવન અર્થાત્ જન્મ અને મરણ નિશ્ચિત છે તે જાણીને હે માહણ ! તું અનન્ય
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Gujarati 123 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विरते वहाओ, छिंदेज्ज सोयं लहुभूयगामी ॥

Translated Sutra: વીર પુરૂષ ક્રોધ અને માન આદિને મારે, લોભને દુઃખદાયી નરકરૂપે જુએ, લઘુભૂતગામી અર્થાત્ મોક્ષ કે સંયમનો અભિલાષી વીર, હિંસા આદિ પાપકર્મોથી વિરત થઈ વિષય વાસનાને છેદે.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Gujarati 131 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं । जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि। पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि। सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से’ मेहावी मारं तरति। सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति।

Translated Sutra: જે કર્મોને દૂર કરનાર છે તે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે અને જે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનાર છે તે કર્મોને દૂર કરનાર છે, એવું સમજીને હે પુરૂષ ! તું પોતાના આત્માનો નિગ્રહ કર, એમ કરવાથી તું દુઃખકર્મ) મુક્ત થઈશ. તું સત્યનું સેવન કર. કેમ કે સત્યની આજ્ઞામાં રહેનાર મેઘાવી સાધક સંસારને તરી જાય છે અને ધર્મનું યથાર્થ પાલન કરીને
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Gujarati 133 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘सहिए दुक्खमत्ताए’ पुट्ठो नो झंझाए। पासंमि दविए लोयालोय-पवंचाओ मुच्चइ।

Translated Sutra: જ્ઞાની – સાધક સાધના – માર્ગમાં આવતા દુઃખ કે પ્રલોભનોથી વ્યાકૂળ ન થાય. આવા આત્મદ્રષ્ટા પુરૂષ સંસાર અર્થાત્ લોકાલોકના સમસ્ત પ્રપંચોથી મુક્ત થાય છે – તેમ હું કહું છું.
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Gujarati 146 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंति केआवंति लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति–से दिट्ठं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो सुपडिलेहियं च णे– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता’ हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयव्वा। एत्थ वि जाणह नत्थित्थ दोसो। अनारियवयणमेयं। तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी–से दुद्दिट्ठं च भ, दुस्सुयं च भ, दुम्मयं च भे, दुव्विण्णायं च भे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहियं च भे, जण्णं तुब्भे एवमाइक्खह, एवं भासह, एवं ‘परूवेह, एवं पण्णवेह’– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा,

Translated Sutra: આ લોકમાં કોઈ શ્રમણ – બૌદ્ધ સાધુ અને બ્રાહ્મણ પૃથક્‌ પૃથક્‌ રીતે ધર્મ – વિરુદ્ધ ભાષણો કરી કહે છે – અમે શાસ્ત્રમાં જોયું છે, સાંભળેલ છે, માન્યું છે, વિશેષ રૂપે જાણ્યું છે, વળી ઊંચી, નીચી, તીરછી બધી દિશાનું સમ્યક્‌ નિરીક્ષણ કરીને જાણ્યું છે કે સર્વે પ્રાણો, જીવો, ભૂતો, સત્ત્વોને મારવામાં, દબાવવામાં, પકડવામાં, પરિતાપવામાં
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Gujarati 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: મુનિ પૂર્વ સંયોગનો ત્યાગ કરી ઉપશમને પ્રાપ્ત કરી પહેલા અલ્પ અને પછી વિશેષ પ્રકારે દેહનું દમન કરે. છેવટે સંપૂર્ણ રૂપે દેહનું દમન કરે. આ રીતે તપ – આચરણ કરનાર મુનિ સદા સ્વસ્થચિત્ત રહે, તપ કરતા કદી ખેદિત ન થાય, પ્રસન્ન રહે, આત્મભાવમાં લીન રહે, સ્વમાં રમણ કરે, સમિતિ યુક્ત થઈ, યતનાપૂર્વક ક્રિયા કરે. અપ્રમત્ત બની સંયમ
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