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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 53 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकिया णं समुग्घायं, अनंता केवली जिना ।
जरमरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगइं गया ॥ Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी केवली समुद्घात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त होकर सिद्धि गति को प्राप्त हुए हैं। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 54 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइसमए णं भंते! आवज्जीकरणे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पन्नत्ते।
केवलिसमुग्घाए णं भंते! कइसमइए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छट्ठे समए मंथं पडिसा-हरइ, सत्तमे समए कबाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ।
से णं भंते! तहा समुग्घायगए किं मनजोगं जुंजइ? वयजोगं जुंजइ? कायजोगं जुंजइ? गोयमा! नो मणजोगं जुंजइ, नो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ।
कायजोगं जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ? ओरालियमीसासरीरकायजोगं Translated Sutra: भगवन् ! आवर्जीकरण का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त्त का कहा गया है। भगवन् ! केवली – समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! आठ समय का है। जैसे – पहले समय में केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं। दूसरे समय में वे आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર, જે ગૌતમ ગોત્રના, સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભનારાચ સંઘયણી, કસોટી ઉપર ખચિત સ્વર્ણરેખાની આભા સહિત કમળ સમાન ગૌરવર્ણી હતા. તેઓ ઉગ્રતપસ્વી, દીપ્તતપસ્વી, તપ્તતપસ્વી, મહાતપસ્વી અને ઘોરતપસ્વી હતા. તેઓ (પ્રધાન તપ કરતા હોવાથી)ઉદાર, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: ભગવન્! ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે, એમ ભાખે છે, એમ પ્રરૂપે છે કે નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક, કંપિલપુર નગરમાં સો ઘરોમાં આહાર કરે છે, સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. ભગવન્ ! તે કેવી રીતે ? ગૌતમ! જે ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે યાવત્ એમ પ્રરૂપે છે – નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક કંપિલપુરમાં યાવત્ સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. આ અર્થ સત્ય છે. ગૌતમ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ભગવન્! ભાવિતાત્મા અણગાર કેવલી સમુદ્ઘાતથી સમવહત થઈને કેવલકલ્પ લોકને સ્પર્શીને રહે છે? હા, રહે છે. ભગવન્ ! તેઓ શું કેવલકલ્પ લોકમાં તે નિર્જરા પુદ્ગલથી સ્પર્શે ? હા, સ્પર્શે. ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય તે નિર્જરા પુદ્ગલના કંઈક વર્ણથી વર્ણ, ગંધથી ગંધ, રસથી રસ, સ્પર્શથી સ્પર્શને જાણે – જુએ ? ગૌતમ ! આ અર્થ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે તેવા સયોગી સિદ્ધ થાય યાવત્ અંત કરે ? એ અર્થ સંગત નથી. તે પૂર્વે પર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય સંજ્ઞીના જઘન્ય મનોયોગના નીચલા સ્તરે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન પહેલા મનોયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી પર્યાપ્ત બેઇન્દ્રિયના જઘન્યયોગના નીચે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન બીજા વચનયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 422 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–पयोगबंधे य, वीससाबंधे य। Translated Sutra: भगवन् ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! बंध दो प्रकर का कहा गया है, प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 423 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सादीयवीससाबंधे य, अनादीयवीससाबंधे य।
अनादियवीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे, अधम्मत्थिकाय-अन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे आगासत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे।
धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे?
गोयमा! देसबंधे, नो सव्वबंधे। एवं अधम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे वि, एवं आगासत्थि-कायअन्नमन्नअणा-दीयवीससाबंधे वि।
धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा – सादिक विस्त्रसाबंध और अनादिक विस्त्राबंध। भगवन् ! अनादिक – विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकारकाधर्मास्तिकायका अन्योन्य – अनादिक – विस्त्रसाबंध, अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य – अनादिक – विस्त्रसाबंध और आकाशास्तिकाय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 424 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पयोगबंधे?
पयोगबंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए।
तत्थ णं जे से अनादीए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं, तत्थ वि णं तिण्हं-तिण्हं अनादीए अपज्जवसिए, सेसाणं सादीए। तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पयोगबंधे।
से किं तं आलावणबंधे?
आलावणबंधे–जण्णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेत्तलता-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दब्भमादीएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार – अनादिअपर्यवसित, सादि – अपर्यवसित अथाव सादि सपर्यवसित। इनमें से जो अनादि – अपर्यवसित है, जह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन – तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादि – अपर्यवसित बंध है। शेष | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 425 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे य।
जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिंदियसरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय-एगिंदियसरीरप्पयो-गबंधे?
एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वि-यसरीरप्पयोगबंधे य।
वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है। एकेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध। भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 426 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे जाव पंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे
एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरो-ववाइयकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववा-इयकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य।
तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं Translated Sutra: भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – एकेन्द्रिय – तैजस – शरीरप्रयोगबंध, यावत् पंचेन्द्रिय – तैजसशरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! एकेन्द्रिय – तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है? गौतम इस प्रका जैसे – अवगाहनासंस्थापनपद में भेद कहे हैं, वैसे यहाँ भी पर्याप्त – सर्वार्थस्दिधअनुत्तरौपप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 427 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा– नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे जाव अंतराइयकम्मा-सरीरप्पयोगबंधे।
नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! नाणपडिणीययाए, नाणणिण्हवणयाए, नाणंतराएणं, नाणप्पदोसेणं, नानच्चासात-णयाए, नाणविसंवादणाजोगेणं नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं नाणाव-रणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगबंधे।
दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! दंसणपडिनीययाए, दंसणनिण्हवणयाए, दंसणतराएणं, दंसणप्पदोसेणं, दंसणच्चा-सातणयाए, दंसणविसंवादणाजोगेणं Translated Sutra: भगवन् ! कार्मणशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! आठ प्रकार का। ज्ञानवरणीयकार्मण – शरीरप्रयोगबंध, यावत् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! ज्ञानवरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! ज्ञान की प्रत्यनीकता करने से, ज्ञान का निह्नव करने से, ज्ञान मे अन्तराय देने से, ज्ञान से प्रद्वेष | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 428 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: एएसि णं भंते! जीवाणं नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स देसबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स अबंधगा देसबंधगा, अनंतगुणा। एवं आउयवज्जं जाव अंतराइयस्स।
आउयस्स पुच्छा।
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा संखेज्जगुणा।
जस्स णं भंते! ओरालियसरीरस्स सव्वबंधे, से णं भंते! वेउव्वियसरीरस्स किं बंधए? अबंधए?
गोयमा! नो बंधए, अबंधए।
आहारगसरीरस्स किं बंधए? अबंधए?
गोयमा! नो बंधए, अबंधए।
तेयासरीरस्स किं बंधए? अबंधए?
गोयमा! बंधए, नो अबंधए।
जइ बंधए किं देसबंधए? सव्वबंधए?
गोयमा! देसबंधए, नो सव्वबंधए।
कम्मासरीरस्स Translated Sutra: भगवन् ! जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबंध है, वह जीव वैक्रियशरीर का बंधक है, या अबंधक ? गौतम ! यह बंधक नहीं, अबंधक है। भगवन् ! आहारकशरीर का बंधक है, या अबंधक ? गौतम ! वह बंधक नहीं, अबंधक है। भगवन् तैजसशरीर का बंधक है, या अबंधक ? गौतम ! वह बंधक है, अबंधक नहीं है। भगवन् ! यदि वह तैजसशरीर का बंधक है, तो क्या वह देशबंधक है या सर्वबंधक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Hindi | 761 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच पुढविक्काइया एगयओ साधारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति?
नो इणट्ठे समट्ठे। पुढविक्काइयाणं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी?
गोयमा! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी।
ते णं भंते! जीवा किं Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! क्या कदाचित् दो यावत् चार – पाँच पृथ्वीकायिक मिलकर साधारण शरीर बाँधते हैं, बाँधकर पीछे आहार करते हैं, फिर उस आहार का परिणमन करते हैं और फिर इसके बाद शरीर का बन्ध करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव प्रत्येक – पृथक् – पृथक् आहार करने वाले हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Hindi | 762 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणं जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! १. सव्वत्थोवा सुहुमनिओयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा २. सुहुमवाउ- क्काइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ३. सुहुमतेउकाइयस्स अपज्जत्त-गस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ४. सुहुमआउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ५. सुहुमपुढविक्काइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखे-ज्जगुणा
६. बादर-वाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा Translated Sutra: भगवन् ! इन सूक्ष्म – बादर, पर्याप्तक – अपर्याप्तक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहनाओं में से किसकी अवगाहना किसकी अवगाहना से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होती है ? गौतम ! सबसे अल्प, अपर्याप्तक सूक्ष्मनिगोद की जघन्य अव – गाहना है। उससे असंख्यगुणी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Hindi | 763 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एयस्स णं भंते! पुढविकाइयस्स आउक्काइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणस्सइकाइयस्स य कयरे काये सव्व-सुहुमे? कयरे काए सव्वसुहुमतराए?
गोयमा! वणस्सइकाए सव्वसुहुमे, वणस्सइकाए सव्वसुहुमतराए।
एयस्स णं भंते! पुढविकाइयस्स आउक्काइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे? कयरे काये सव्वसुहुमतराए?
गोयमा! वाउक्काए सव्वसुहुमे, वाउक्काए सव्वसुहुमतराए।
एयस्स णं भंते! पुढविकाइयस्स आउक्काइयस्स तेउक्काइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे? कयरे काये सव्वसुहुम-तराए? गोयमा! तेउक्काए सव्वसुहुमे, तेउक्काए सव्वसुहुमतराए।
एयस्स णं भंते! पुढविक्काइयस्स आउक्काइयस्स य कयरे काये Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, इन पाँचों में से कौन – सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन – सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है, सबसे सूक्ष्मतर है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वायु – कायिक, इन चारों में से कौन – सी काय सबसे सूक्ष्म है और कौन – सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! वायुकाय सब – से सूक्ष्म है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Hindi | 764 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता?
गोयमा! से जहानामए रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स वण्णगपेसिया तरुणी बलवं जुगवं जुवाणी अप्पायंका थिरग्गहत्था दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठंतरोरु-परिणता तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू उरस्सबलसमण्णागया लंघण-पवण-जइण-वायाम-समत्था छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहावी निउणा निउणसिप्पोवगया तिक्खाए वइरामईए सण्हकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरएणं एगं महं पुढविकाइयं जतुगोलासमाणं गहाय पडिसाहरिय-पडिसाहरिय पडिसंखिविय-पडिसंखिविय जाव इणामेवत्ति कट्टु तिसत्तक्खुत्तो ओप्पीसेज्जा, तत्थ णं गोयमा! अत्थेगतिया पुढविक्काइया आलिद्धा अत्थेगतिया Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकाय के शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना कही गई है ? गौतम ! जैसे कोई तरुणी, बलवती, युगवती, युगावय – प्राप्त, रोगरहित इत्यादि वर्णन – युक्त यावत् कलाकुशल, चातुरन्त चक्रवर्ती राजा की चन्दन घिसने वाली दासी हो। विशेष यह है कि यहाँ चर्मेष्ट, द्रुघण, मौष्टिक आदि व्यायाम – साधनों से सुदृढ़ इत्यादि विशेषण नहीं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-४ महाश्रव | Hindi | 765 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सिय भंते! नेरइया महासवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया महासवा महाकिरिया महावेयणा अप्पनिज्जरा?
हंता सिया।
सिय भंते! नेरइया महासवा महाकिरिया अप्पवेयणा महानिज्जरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया महासवा महाकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया महासवा अप्पकिरिया महावेयणा महानिज्जरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया महासवा अप्पकिरिया महावेयणा अप्पनिज्जरा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया महासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा महानिज्जरा?
नो इणट्ठे समट्ठे।
सिय भंते! नेरइया Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना, अल्पनिर्जरावाले हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसे होते हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना, महानिर्जरावाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-५ चरम | Hindi | 766 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! चरमा वि नेरइया? परमा वि नेरइया? हंता अत्थि।
से नूनं भंते! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा नेरइया महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महस्सवतरा चेव, महावेयणतरा चेव; परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरइया अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पस्सवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव?
हंता गोयमा! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा जाव महावेयणतरा चेव, परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरइया जाव अप्पवेयणतरा चेव।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव अप्पवेयणतरा चेव?
गोयमा! ठितिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव अप्पवेयणतरा चेव।
अत्थि णं भंते! चरमा वि असुरकुमारा? परमा वि असुरकुमारा? Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक चरम (अल्पायुष्क) भी हैं और परम (अधिक आयुष्य वाले) भी हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्रव वाले और महा वेदना वाले हैं ? तथा परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पास्रव और अल्पवेदना वाले हैं ? हाँ, गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-५ चरम | Hindi | 767 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–निदा य, अनिदा य।
नेरइया णं भंते! किं निदायं वेदनं वेदेंति? अनिदायं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! निदायं पि वेदनं वेदेंति, अनिदायं पि वेदनं वेदेंति। जहा पन्नवणाए जाव वेमानियत्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की – निदा वेदना और अनिदा वेदना। भगवन् ! नैरयिक निदा वेदना वेदते हैं या अनिदा वेदना ? प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार वैमानिकों तक जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-६ द्वीप | Hindi | 768 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! दीवसमुद्दा? केवतिया णं भंते! दीवसमुद्दा? किंसंठिया णं भंते! दीवसमुद्दा? एवं जहा जीवाभिगमे दीवसमुद्दुद्देसो सो चेव इह वि जोइसमंडिउद्देसगवज्जो भाणियव्वो जाव परिणामो, जीवउववाओ जाव अनंतखुत्तो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! द्वीप और समुद्र कहाँ हैं ? भगवन् ! द्वीप और समुद्र कितने हैं ? भगवन् ! द्वीप – समुद्रों का आकार कैसा कहा गया है ? (गौतम !) यहाँ जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति में, द्वीप – समुद्र – उद्देशक यावत् परिणाम, जीवों का उत्पाद और यावत् अनन्त बार तक कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-७ भवन | Hindi | 769 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवतिया णं भंते! असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! चोयट्ठिं असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
ते णं भंते! किमया पन्नत्ता?
गोयमा! सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा। तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमंति, चयंति, उववज्जंति। सासया णं ते भवणा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासया। एवं जाव थणियकुमारावासा।
केवतिया णं भंते! वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
ते णं भंते! किमया पन्नत्ता? सेसं तं चेव।
केवतिया णं भंते! जोइसियविमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख भवनावास कहे गए हैं ? गौतम ! चोंसठ लाख भवनावास हैं। भगवन् ! वे भवनावास किससे बने हुए हैं ? गौतम ! वे भवनावास रत्नमय हैं, स्वच्छ, श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप हैं। उनमें बहुत – से जीव और पुद्गल उत्पन्न होते हैं, विनष्ट होते हैं, च्यवते हैं और पुनः उत्पन्न होते हैं। वे भवन द्रव्यार्थिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-८ निवृत्ति | Hindi | 770 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं० एगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव पंचिंदियजीव-निव्वत्ती
एगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुढविक्काइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव वणस्सइकाइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती।
पुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती य, बादरपुढवि-काइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती य। एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा वड्डगबंधो तेयगसरीरस्स जाव–सव्वट्ठ सिद्धअनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियजीवनिव्वत्ती Translated Sutra: भगवन् ! जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – पृथ्वी – कायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-९ करण | Hindi | 774 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे करणे पन्नत्ते, तं० दव्वकरणे, खेत्तकरणे, कालकरणे, भवकरणे, भावकरणे।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वकरणे जाव भावकरणे। एवं जाव वेमाणियाणं।
कतिविहे णं भंते! सरीरकरणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे सरीरकरणे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियसरीरकरणे जाव कम्मासरीरकरणे। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति सरीराणि।
कतिविहे णं भंते! इंदियकरणे पन्नत्ते।
गोयमा! पंचविहे इंदियकरणे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियकरणे जाव फासिंदियकरणे। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति इंदियाइं।
एवं एएणं कमेणं भासाकरणे चउव्विहे, Translated Sutra: भगवन् ! करण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – द्रव्यकरण, क्षेत्रकरण, कालकरण, भवकरण और भावकरण। भगवन् ! नैरयिकों के कितने करण हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा – द्रव्यकरण यावत् भावकरण। वैमानिकों तक कहना। भगवन् ! शरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – औदारिकशरीरकरण यावत् कार्मणशरीरकरण। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-२ द्रव्य | Hindi | 869 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए गेण्हइ ताइं किं ठियाइं गेण्हइ? अट्ठियाइं गेण्हइ?
गोयमा! ठियाइं पि गेण्हइ, अट्ठियाइं पि गेण्हइ।
ताइं भंते! किं दव्वओ गेण्हइ? खेत्तओ गेण्हइ? कालओ गेण्हइ? भावओ गेण्हइ?
गोयमा! दव्वओ वि गेण्हइ, खेत्तओ वि गेण्हइ, कालओ वि गेण्हइ, भावओ वि गेण्हइ। ताइं दव्वओ अनंतपदेसियाइं दव्वाइं, खेत्तओ असंखेज्जपदेसोगाढाइं– एवं जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं।
जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं वेउव्वियसरीरत्ताए गेण्हइ ताइं किं ठियाइं गेण्हइ? अट्ठियाइं गेण्हइ? एवं चेव, नवरं Translated Sutra: भगवन् ! जीव जिन पुद्गलद्रव्यों को औदारिकशरीर के रूप में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! वह स्थित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और अस्थित द्रव्यों को भी। भगवन् ! (जीव) उन द्रव्यों को, द्रव्य से ग्रहण करता है या क्षेत्र से, काल से या भाव से ग्रहण करता है ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 870 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! छ संठाणा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडले, वट्टे, तंसे, चउरंसे, आयते, अणित्थंथे।
परिमंडला णं भंते! संठाणा दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
वट्टा णं भंते! संठाणा? एवं चेव। एवं जाव अणित्थंथा। एवं पएसट्ठयाए वि। एवं दव्वट्ठपएसट्ठयाए वि।
एएसि णं भंते! परिमंडल-वट्ट-तंस-चउरंस-आयत-अणित्थंथाणं संठाणाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा परिमंडलसंठाणा दव्वट्ठयाए, वट्टा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, चउरंसा संठाणा Translated Sutra: भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थंस्थ। भगवन् ! परिमण्डल – संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे संख्यात नहीं हैं, असंख्यात भी नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं। भगवन् ! वृत्त – संस्थान पृच्छा। गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 871 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच संठाणा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडले जाव आयते।
परिमंडला णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता।
सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए परिमंडला संठाणा? एवं चेव। एवं जाव आयता। एवं जाव अहेसत्तमाए।
सोहम्मे णं भंते! कप्पे परिमंडला संठाणा? एवं जाव अच्चुए।
गेवेज्जविमाने Translated Sutra: भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – परिमण्डल (से लेकर) आयत तक। भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, इत्यादि (गौतम !) अनन्त हैं। इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 872 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वट्टे णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए कतिपदेसोगाढे पन्नत्ते?
गोयमा! वट्टे संठाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–घटवट्टे य, पत्तरवट्टे य।
तत्थ णं जे से पत्तरवट्टे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–ओयपदेसिए य, जुम्मपदेसिए य। तत्थ णं जे से ओयपदेसिए से जहन्नेणं पंचपदेसिए पंचपदेसोगाढे, उक्कोसेणं अनंतपदेसिए असंखेज्ज-पदेसोगाढे। तत्थ णं जे से जुम्मपदेसिए से जहन्नेणं बारसपदेसिए बारसपदेसोगाढे, उक्कोसेणं अनंतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे।
तत्थ णं जे से घणवट्टे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–ओयपदेसिए य, जुम्मपदेसिए य। तत्थ णं जे से ओयपदेसिए से जहन्नेणं सत्तपदेसिए सत्तपदेसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! त्रयस्त्रसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है ? गौतम ! त्रयस्रसंस्थान दो प्रकार का – घनत्र्यस्र और प्रतरत्र्यस्र। उनमें से जो प्रतरत्र्यस्र है, वह दो प्रकार – ओज – प्रदेशिक और युग्म – प्रदेशिक। ओज – प्रदेशिक जघन्य तीन प्रदेश वाला और तीन आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 873 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परिमंडले णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए–पुच्छा।
गोयमा! परिमंडले णं संठाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–घणपरिमंडले य, पतरपरिमंडले य।
तत्थ णं जे से पतरपरिमंडले से जहन्नेणं वीसइपदेसिए वीसइपदेसोगाढे, उक्कोसेणं अनंतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे।
तत्थ णं जे से घणपरिमंडले से जहन्नेणं चत्तालीसइपदेसिए चत्तालीसइपदेसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अनंतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे पन्नत्ते।
परिमंडले णं भंते! संठाणे दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे? तेओए? दावरजुम्मे? कलिओए?
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, कलिओए।
वट्टे णं भंते! संठाणे दव्वट्ठयाए? एवं चेव। एवं जाव आयते।
परिमंडला णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! परिमण्डल – संस्थान कितने प्रदेशों वाला इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परिमण्डलसंस्थान दो प्रकार का – घन – परिमण्डल और प्रतर – परिमण्डल। प्रतर – परिमण्डल, जघन्य बीस प्रदेश वाला और बीस आकाशप्रदेशों में उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। घन – परिमण्डल जघन्य चालीस प्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 874 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेढीओ णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जाओ? असंखेज्जाओ? अनंताओ?
गोयमा! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अनंताओ।
पाईणपडीणायताओ णं भंते! सेढीओ दव्वट्ठयाए किं संखेज्जाओ? एवं चेव। एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। एव उड्ढमहायताओ वि।
लोगागाससेढीओ णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जाओ? असंखेज्जाओ? अनंताओ?
गोयमा! नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो अनंताओ।
पाईणपडीणायताओ णं भंते! लोगागाससेढीओ दव्वट्ठयाए किं संखेज्जाओ? एवं चेव। एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। एवं उड्ढमहायताओ वि।
अलोगागाससेढीओ णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जाओ? असंखेज्जाओ? अनंताओ?
गोयमा! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अनंताओ। एवं पाईणपडीणायताओ Translated Sutra: भगवन् ! श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन् ! पूर्व और पश्चिम दिशा में लम्बी श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप में संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वे अनन्त हैं। इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी श्रेणियों तथा उर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 875 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ? सादीयाओ अपज्जवसियाओ? अनादीयाओ
सपज्जवसियाओ? अनादीयाओ अपज्जवसियाओ?
गोयमा! नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अनादीयाओ सपज्जवसियाओ, अनादीयाओ अपज्जवसियाओ। एवं जाव उड्ढमहायताओ।
लोगागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ–पुच्छा।
गोयमा! सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अनादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो अनादीयाओ अपज्जवसियाओ। एवं जाव उड्ढमहायत्ताओ।
अलोगागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ–पुच्छा।
गोयमा! सिय सादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय सादीयाओ अपज्जवसियाओ, सिय अनादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय अनादीयाओ Translated Sutra: भगवन् ! क्या श्रेणियाँ सादि – सपर्यवसित हैं, अथवा सादि – अपर्यवसित हैं या वे अनादि – सपर्यवसित हैं, अथवा अनादि – अपर्यवसित हैं। गौतम ! वे न तो सादि – सपर्यवसित हैं, न सादि – अपर्यवसित हैं और न अनादि – सपर्यवसित हैं, किन्तु अनादि – अपर्यवसित हैं। इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो दिशामें लम्बी श्रेणियों के विषयमें | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 977 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मद्दिट्ठीणं चत्तारि भंगा, मिच्छादिट्ठीणं पढम-बितिया, सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव।
नाणीणं चत्तारि भंगा, आभिनिबोहियनाणीणं जाव मनपज्जवनाणीणं चत्तारि भंगा, केवलनाणीणं चरिमो भंगो जहा अलेस्साणं।
अन्नाणीणं पढम-बितिया, एवं मइअन्नाणीणं, सुयअन्नाणीणं, विभंगनाणीण वि।
आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढम-बितिया, नोसण्णोवउत्ताणं चत्तारि।
सवेदगाणं पढम-बितिया। एवं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा वि। अवेदगाणं चत्तारि।
सकसाईणं चत्तारि, कोहकसाईणं पढम-बितिया भंगा, एवं माणकसायिस्स वि, मायाकसायिस्स वि। लोभकसायिस्स चत्तारि भंगा।
अकसायी णं भंते! जीवे Translated Sutra: सम्यग्दृष्टि जीवों में (पूर्ववत्) चारों भंग जानना चाहिए। मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं। आभिनिबोधिकज्ञानी से मनःपर्यवज्ञानी जीवों तक भी चारों ही भंग जानना। केवलज्ञानी जीवों में अन्तिम एक भंग अलेश्य जीवों के समान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 978 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया।
सलेस्से णं भंते! नेरइए पावं कम्मं? एवं चेव। एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि। एवं कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, नाणी आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी, अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी, आहारसण्णोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसायी जाव लोभकसायी सजोगी मणजोगी वइजोगी कायजोगी, सागरोवउत्ते अनागारोवउत्ते– एएसु सव्वेसु पदेसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा।
एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं–तेउलेसा, Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि पहला और दूसरा भंग। भगवन् ! क्या सलेश्य नैरयिक जीव ने पापकर्म बाँधा था ? गौतम ! पहला और दूसरा भंग। इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्या वाले जीव में भी प्रथम और द्वीतिय भंग। इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 979 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्स वि भाणियव्वा, नवरं–जीवपदे मनुस्सपदे य सकसाइम्मि जाव लोभकसाइम्मि य पढम-बितिया भंगा, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिया। एवं दरिसणावरणिज्जेणं वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो
जीवे णं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। सलेस्से वि एवं चेव ततियविहूणा भंगा। कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बितिया भंगा। सुक्कलेस्से ततियविहूणा भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो। कण्हपक्खिए Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? गौतम ! पापकर्म के समान ज्ञानावरणीय कर्म कहना, परन्तु जीवपद और मनुष्यपद में सकषायी यावत् लोभकषायी में प्रथम और द्वीतिय भंग ही कहना। यावत् वैमानिक तक कहना। ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म कहना। भगवन् ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 980 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी चउभंगो। सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा। अलेस्से चरिमो भंगो।
कण्हपक्खिए णं–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ। सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी चत्तारि भंगा।
सम्मामिच्छादिट्ठी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारि भंगा।
मनपज्जवनाणी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। केवलनाणे चरिमो भंगो। एवं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने आयुष्यकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी जीवने बाँधा था, इत्यादि चारों भंग हैं। सलेश्य से लेकर शुक्ललेश्यी जीवों तक में चारों भंग पाए जाते हैं। अलेश्य जीवों में एकमात्र अन्तिम भंग है। भगवन् ! कृष्णपाक्षिक जीव ने (आयुष्यकर्म) बाँधा था, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी जीव ने बाँधा था, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 981 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा तहेव।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया भंगा।
सलेस्से णं भंते! अनंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! पढम-बितिया भंगा। एवं खलु सव्वत्थ पढम-बितिया भंगा, नवरं–सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छि-ज्जइ। एवं जाव थणियकुमाराणं।
बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं वइजोगो न भण्णइ। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं, विभंगनाणं, मणजोगो, वइजोगो– एयाणि पंच न भण्णंति। मनुस्साण अलेस्स-सम्मामिच्छत्त-मनपज्जवनाण-केवलनाण विभंगनाण-नोसण्णोवउत्त-अवेदग-अकसाय-मणजोग-वइजोग-अजोगि–एयाणि एक्कारस Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि। गौतम ! प्रथम और द्वीतिय भंग होता है। भगवन् ! सलेश्यी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इनमें सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग। किन्तु कृष्णपाक्षिक में तृतीय भंग पाया जाता है। इस प्रकार सभी पदों में पहला और दूसरा भंग कहना, किन्तु विशेष | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 982 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरोववन्नए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए पढम-बितिया। एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएहिं वि उद्देसओ भाणियव्वो नेरइयाईओ तहेव नवदंडगसंगहिओ। अट्ठण्ह वि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मस्स वत्तव्वया सा तस्स अहीणमतिरित्ता नेयव्वा जाव वेमाणिया अनागारोवउत्ता।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्परोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? गौतम ! प्रथम और द्वीतिय भंग जानना। प्रथम उद्देशक समान परम्परोपपन्नक नैरयिक में पापकर्मादि नौ दण्डक सहित यह उद्देशक भी कहना। आठ कर्म – प्रकृतियों में से जिसके लिए जिस कर्म की वक्तव्यता कही है, उसके लिए उस कर्म की वक्तव्यता अनाकारोपयुक्त वैमानिकों तक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 134 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, Translated Sutra: उस काल, उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ (श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। परीषद् वन्दना करने गई यावत् धर्मोपदेश सूनकर) परीषद् वापस लौट गई। उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। यावत् वे विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में संक्षिप्त करके रखते थे। वे निरन्तर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 135 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तहारूवं णं भंते! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणा?
गोयमा! सवणफला।
से णं भंते! सवणे किंफले? नाणफले।
से णं भंते! नाणे किंफले? विन्नाणफले।
से णं भंते! विण्णाणे किंफले? पच्चक्खाणफले।
से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले? संजमफले।
से णं भंते! संजमे किंफले? अणण्हयफले।
से णं भंते! अणण्हए किंफले? तवफले।
से णं भंते! तवे किंफले? वोदाणफले।
से णं भंते! वोदाणे किंफले? अकिरियाफले।
सा णं भंते! अकिरिया किंफला? सिद्धिपज्जवसाणफला–पन्नत्ता गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन के पर्युपासक को उसकी पर्युपासना का फल होता है – श्रवण। भगवन् ! उस श्रवण का क्या फल होता है ? गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है। भगवन् ! उन ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 137 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, भासंति, पन्नवेंति, परूवेंति–एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स बहिया वेभारस्स पव्वयस्स अहे, एत्थ णं महं एगे हरए अघे पन्नत्ते– अनेगाइं जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, नाणादुमसंडमंडिउद्देसे, सस्सिरीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहवे ओराला बलाहया संसेयंति संमुच्छंति वासंति। तव्वइरित्ते य णं सया समियं उसिणे-उसिणे आउकाए अभिनिस्सवइ।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाइक्खंति, मिच्छं ते एवमाइक्खंति। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, भासामि, पन्नवेमि, परूवेमि– एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स बहिया वेभारस्स Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि ‘राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान (बड़ा भारी) पानी का ह्रद है। उसकी लम्बाई – चौड़ाई अनेक योजन है। उसका अगला भाग अनेक प्रकार के वृक्षसमूह से सुशोभित है, वह सुन्दर है, यावत् प्रतिरूप है। उस ह्रद में अनेक उदार मेघ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-६ भाषा | Hindi | 138 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! मन्नामी ति ओहारिणी भासा? एवं भासापदं भाणियव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! भाषा अवधारिणी है; क्या मैं ऐसा मान लूँ ? गौतम ! उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में प्रज्ञापनासूत्र के भाषापद जान लेना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-७ देव | Hindi | 139 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा– भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया।
कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं, जाव सिद्धगंडिया समत्ता।
कप्पाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्त मेव संठाणं।
जीवाभिगमे जो वेमाणिउद्देसो सो भाणियव्वो सव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भगवन् ! भवनवासी देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! भवनवासी देवों के स्थान इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे हैं; इत्यादि देवों की सारी वक्तव्यता प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे स्थान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-८ चमरचंचा | Hindi | 140 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के इन्द्र और अनेक राजा चमर की सुधर्मा – सभा कहाँ पर है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मध्य में स्थित मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में तीरछे असंख्य द्वीपों और समुद्रों को लाँघने के बाद अरुणवर द्वीप आता है। उस द्वीप की वेदिका के बाहिरी किनारे से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नामक समुद्र आता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-९ समयक्षेत्र | Hindi | 141 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमिदं भंते! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति?
गोयमा! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति।
तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतरे। एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अब्भिंतर-पुक्खरद्धं जोइसविहूणं। Translated Sutra: भगवन् ! यह समयक्षेत्र किसे कहा जाता है ? गौतम ! अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र इतना यह (प्रदेश) ‘समयक्षेत्र’ कहलाता है। इनमें जम्बूद्वीप नामक द्वीप समस्त द्वीपों और समुद्रों के बीचोबीच है। इस प्रकार जीवाभिगम सूत्र में कहा हुआ सारा वर्णन यहाँ यावत् आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध तक कहना चाहिए; किन्तु ज्योतिष्कों का वर्णन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-२ | Hindi | 443 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा?
एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ। धायइसंडे, कालोदे, पुक्खरवरे, अब्भंतपुक्खरद्धे, मनुस्सखेत्ते–एएसु सव्वेसु जहा जीवा-भिगमे जाव–एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं।
पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा?
एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु जोतिसियाणं भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव सोभिंसु वा, सोभिंति वा, सोभिस्संति वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं और करेंगे ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्रानुसार तारों के वर्णन तक जानना। घातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करवरद्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और मनुष्यक्षेत्र; इन सब में जीवाभिगमसूत्र के अनुसार – ‘‘एक चन्द्र का परिवार कोटाकोटी तारागण (सहित) होता है’’ तक जानना चाहिए। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३ थी ३० अंतर्द्वीप | Hindi | 444 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं उत्तरपुरत्थिमे णं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगुरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते–तिन्नि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, नव एगूणवन्ने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं।
से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि पमाणं वण्णओ य। एवं एएणं कमेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! दक्षिण दिशा का ‘एकोरुक’ मनुष्यों का ‘एकोरुकद्वीप’ नामक द्वीप कहाँ बताया गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में ‘एकोरुक’ नामक द्वीप है।) जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के अनुसार इसी क्रम के शुद्धदन्तद्वीप तक (जान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३१ अशोच्चा | Hindi | 445 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगस्स वा, तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए?
गोयमा! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए?
गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् (गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन् ! केवली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवली के उपासक, केवली की उपासिका, केवलिपाक्षिक, केवलि – पाक्षिक के श्रावक, केवलि – पाक्षिक की श्राविका, केवलि – पाक्षिक के उपासक, केवलि – पाक्षिक की उपासिका, (इनमें से किसी) से बिना सुने ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३१ अशोच्चा | Hindi | 447 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! कतिसु लेस्सासु होज्जा?
गोयमा! तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जा, तं जहा–तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए।
से णं भंते! कतिसु नाणेसु होज्जा?
गोयमा! तिसु–आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा।
से णं भंते! किं सजोगी होज्जा? अजोगी होज्जा? गोयमा! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा।
जइ सजोगी होज्जा, किं मणजोगी होज्जा? वइजोगी होज्जा? कायजोगी होज्जा?
गोयमा! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा।
से णं भंते! किं सागरोवउत्ते होज्जा? अनागारोवउत्ते होज्जा?
गोयमा! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अनागारोवउत्ते वा होज्जा।
से णं भंते! कयरम्मि संघयणे होज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! वह अवधिज्ञानी कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह तीन विशुद्धलेश्याओं में होता है, यथा – तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या। भगवन् ! वह अवधिज्ञानी कितने ज्ञानों में होता है ? गौतम ! वह आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान, इन तीन ज्ञानों में होता है। भगवन् ! वह सयोगी होता है, या अयोगी ? गौतम ! वह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३१ अशोच्चा | Hindi | 448 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेज्ज वा? पन्नवेज्ज वा? परूवेज्ज वा? नो तिणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ एगनाएण वा, एगवागरणेण वा।
से णं भंते! पव्वावेज्ज वा? मुंडावेज्ज वा?
नो तिणट्ठे समट्ठे, उवदेसं पुण करेज्जा।
से णं भंते! सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति?
हंता सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। Translated Sutra: भगवन् ! वे असोच्चा केवली केवलिप्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं अथवा प्ररूपणा करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वे एक उदाहरण के अथवा एक प्रश्न के उत्तर के सिवाय अन्य उपदेश नहीं करते। भगवन् ! वे (किसी को) प्रव्रजित या मुण्डित करते हैं ? गौतम ! वह अर्थ समर्थ नहीं। किन्तु उपदेश करते हैं। भगवन् ! वे सिद्ध होते |