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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 332 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता।
सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि।
लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा।
अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 173 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पन्नत्ता?
गोयमा! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया नाम रायहाणी पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पन्नत्ता।
सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे सक्कोसाइं छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं तिन्नि सद्धकोसाइं Translated Sutra: વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની ક્યાં કહી છે ? ગૌતમ ! વિજયદ્વારના પૂર્વમાં તિર્છા અસંખ્ય દ્વીપ – સમુદ્ર ઓળંગ્યા પછી અન્ય જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ૧૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ વિજયદેવની વિજયા નામે રાજધાની છે. તે ૧૨,૦૦૦ યોજન લાંબી – પહોળી અને ૪૭,૯૪૮ યોજનથી કંઈક વિશેષાધિક પરિધિ કહી છે. તે એક પ્રાકાર વડે ઘેરાયેલ છે. તે પ્રાકાર | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Gujarati | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! ચંદ્રવિમાનને કેટલા હજાર દેવ વહન કરે છે ? ગૌતમ ! ચંદ્રવિમાનને કુલ ૧૬,૦૦૦ દેવ વહન કરે છે. તેમાં પૂર્વના ૪૦૦૦ દેવો સિંહરૂપ ધારણ કરી ઉઠાવે છે. તે સિંહ શ્વેત, સુભગ, સુપ્રભ, શંખતલ સમાન વિમલ, નિર્મલ, ઘન દહીં, ગાયનું દૂધ, ફીણ, ચાંદીના સમૂહ સમાન શ્વેત પ્રભાવાળો છે. તેની આંખ મધની ગોળી સમાન પીળી છે, મુખમાં સ્થિત સુંદર | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 132 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ने गेण्हं, सिमिणंते वि न पत्थं मनसा वि मेहुणं।
परिग्गहं न काहामि मुलुत्तर-गुण-खलणं तहा॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३० | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1514 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तीए मयहरीए तेहिं से तंदुलमल्लगे पयच्छिए किं वा णं सा वि य मयहरी तत्थेव तेसिं समं असेस कम्मक्खयं काऊणं परिणिव्वुडा हवेज्ज त्ति।
गोयमा तीए मयहरिए तस्स णं तंदुल मल्लगस्सट्ठाए तीए माहणीए धूय त्ति काऊणं गच्छमाणी अवंतराले चेव अवहरिया सा सुज्जसिरी, जहा णं मज्झं गोरसं परिभोत्तूणं कहिं गच्छसि संपयं त्ति। आह वच्चामो गोउलं। अन्नं च–जइ तुमं मज्झं विनीया हवेज्जा, ता अहयं तुज्झं जहिच्छाए ते कालियं बहु गुल घएणं अणुदियहं पायसं पयच्छिहामि।
जाव णं एयं भणिया ताव णं गया सा सुज्जसिरि तीए मयहरीए सद्धिं ति। तेहिं पि परलोगाणुट्ठाणेक्क सुहज्झवसायाखित्तमाणसेहिं न Translated Sutra: हे भगवंत ! वो महियारी – गोकुलपति बीबी को उन्होंने डांग से भरा भाजन दिया कि न दिया ? या तो वो महियारी उन के साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाई थी ? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढ़ने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समझकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया। फिर मधु, दूध खाकर | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 531 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं जहा–मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क-कंचणगए परमरम्मे।
नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए॥ Translated Sutra: लाख योजन प्रमाण मेरु पर्वत जैसे ऊंचे, मणिसमुद्र से शोभायमान, सुवर्णमय, परम मनोहर, नयन और मन को आनन्द देनेवाला, अति विज्ञानपूर्ण, अति मजबूत, दिखाई न दे उस तरह जुड़ दिया हो ऐसा, अति घिसकर मुलायम बनाया हुआ, जिसके हिस्से अच्छी तरह से बाँटे गए हैं ऐसा कईं शिखरयुक्त, कईं घंट और ध्वजा सहित, श्रेष्ठ तोरण युक्त कदम – कदम पर | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 595 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एवं स सुत्तत्थोभयत्तगं चिइ-वंदणा-विहाणं अहिज्जेत्ता णं तओ सुपसत्थे सोहणे तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससी-बले।
(२) जहा सत्तीए जग-गुरूणं संपाइय-पूओवयारेणं पडिलाहियसाहुवग्गेण य, भत्तिब्भर-निब्भरेणं, रोमंच-कंचुपुलइज्जमाणतणू सहरिसविसट्ट वयणारविंदेणं, सद्धा-संवेग-विवेग-परम-वेरग्ग-मूलं विणिहय-घनराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मल-कलंकेण
(३) सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-सुभ-सुभयरऽनुसमय-समुल्लसंत-सुपसत्थज्झवसायगएणं, भुवण-गुरु-जियणंद पडिमा विणिवेसिय-नयन-मानसेणं अनन्नं-माणसेगग्ग-चित्तयाए य।
(४) धन्नो हं पुन्नो हं ति जिन-वंदणाइ-सहलीकयजम्मो त्ति इइ मन्नमानेणं, विरइय-कर-कमलंजलिणा, Translated Sutra: इस प्रकार सूत्र, अर्थ और उभय सहित चैत्यवंदन आदि विधान पढ़कर उसके बाद शुभ तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र योग, लग्न और चन्द्रबल का योग हुआ हो उस समय यथाशक्ति जगद्गुरु तीर्थंकर भगवंत को पूजने लायक उपकरण इकट्ठे करके साधु भगवंत को प्रतिलाभी का भक्ति पूर्ण हृदयवाला रोमांचित बनकर पुलकित हुए शरीरवाला, हर्षित हुए मुखारविंदवाला, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 625 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहा सरीर-कुसीले दुविहे चेट्ठा-कुसीले विभूसा-कुसीले य। तत्थ जे भिक्खू एयं किमि-कुल-निलयं सउण-साणाइ -भत्तं सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मं असुइं असासयं असारं सरीरगं आहरादीहिं निच्चं चेट्ठेजा, नो णं इणमो भव-सय-सुलद्ध-णाण-दंसणाइ-समण्णिएणं सरीरेणं अच्चंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठ-घोर-तव-संजम-मनुट्ठेज्जा, से णं चेट्ठा कुसीले।
तहा जे णं विभूसा कुसीले से वि अनेगहा, तं जहा–तेलाब्भंगण-विमद्दण संबाहण-सिणानुव्वट्टण-परिहसण-तंबोल-धूवण-वासन-दसणुग्घसन-समालहण-पुप्फोमालण-केस-समारण -सोवाहण-दुवियड्ढगइ-भणिर-हसिर-उवविट्ठुट्ठिय-सन्निवन्नेक्खिय-विभूसावत्ति-सविगार-नियंस-नुत्तरीय-पाउ-रण-दंडग-गहणमाई Translated Sutra: और शरीर कुशील दो तरह के जानना, कुशील चेष्टा और विभूषा – कुशील, उसमें जो भिक्षु इस कृमि समूह के आवास समान, पंछी और श्वान के लिए भोजन समान। सड़ना, गिरना, नष्ट होना, ऐसे स्वभाववाला, अशुचि, अशाश्वत, असार ऐसे शरीर को हंमेशा आहारादिक से पोषे और वैसे शरीर की चेष्टा करे, लेकिन सेंकड़ों भव में दुर्लभ ऐसे ज्ञान – दर्शन आदि सहित | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 841 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थित्थी कर फरिसं, अंतरियं कारणे वि उप्पन्ने।
अरहा वि करेज्ज सयं, तं गच्छं मूल गुण मुक्कं॥ Translated Sutra: ‘‘जिस गच्छ में वैसी कारण पैदा हो और वस्त्र के आंतरा सहित हस्त से स्त्री के हाथ का स्पर्श करने में और अरिहंत भी खुद कर स्पर्श करे तो उस गच्छ को मुलगुण रहित समझना।’’ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 842 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ गोयमा अप्प संकिएणं चेव चिंतियं तेण सावज्जायरिएणं जहा णं– जइ इह एयं जहट्ठियं पन्नवेमि तओ जं मम वंदनगं दाउमाणीए तीए अज्जाए उत्तिमंगेण चलणग्गे पुट्ठे तं सव्वेहिं पि दिट्ठमेएहिं ति। ता जहा मम सावज्जायरियाहिहाणं कयं तहा अन्नमवि किंचि एत्थ मुद्दंकं काहिंति। अहन्नहा सुत्तत्थं पन्नवेमि ता णं महती आसायणा।
ता किं करियव्वमेत्थं ति। किं एयं गाहं पओवयामि किं वा णं अन्नहा पन्नवेमि अहवा हा हा न जुत्तमिणं उभयहा वि। अच्चंतगरहियं आयहियट्ठीणमेयं, जओ न मेस समयाभिप्पाओ जहा णं जे भिक्खू दुवालसंगस्स णं सुयनाणस्स असई चुक्कखलियपमायासंकादी सभयत्तेणं पयक्खरमत्ता बिंदुमवि Translated Sutra: तब अपनी शंकावाला उन्होंने सोचा कि यदि यहाँ मैं यथार्थ प्ररूपणा करूँगा तो उस समय वंदना करती उस आर्या ने अपने मस्तक से मेरे चरणाग्र का स्पर्श किया था, वो सब इस चैत्यवासी ने मुझे देखा था। तो जिस तरह मेरा सावद्याचार्य नाम बना है, उस प्रकार दूसरा भी वैसा कुछ अवहेलना करनेवाला नाम रख देंगे जिससे सर्व लोक में मै अपूज्य | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1369 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं चिर-चिंतियाभिमुह-मणोरहोरु संपत्ति-हरिस-समुल्लसिओ।
भत्ति-भर-निब्भरोणय-रोमंच-उक्कंच-पुलय-अंगो॥ Translated Sutra: इस अनुसार बड़े अरसे से चिन्तवे हुए मनोरथ के सन्मुख होनेवाला उस रूप महासंपत्ति के हर्ष से उल्लासित होनेवाले, भक्ति के अनुग्रह से निर्भर होकर नमस्कार करके, रोमांच खड़ा होने से रोम – रोम व्याप्त आनन्द अंगवाला, १८ हजार शिलांग धारण करने के लिए उत्साहपूर्वक ऊंचे किए गए खंभेवाला, छत्तीस तरह के आचार पालन करने के लिए | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1432 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स किं तं विसोहि-पयं सुविसुद्धं चेव लिक्खए।
उयाहु नो समुल्लिक्खे संसयमेयं वियागरे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४३१ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1484 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ।
से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Hindi | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 132 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ने गेण्हं, सिमिणंते वि न पत्थं मनसा वि मेहुणं।
परिग्गहं न काहामि मुलुत्तर-गुण-खलणं तहा॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૦ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 595 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एवं स सुत्तत्थोभयत्तगं चिइ-वंदणा-विहाणं अहिज्जेत्ता णं तओ सुपसत्थे सोहणे तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससी-बले।
(२) जहा सत्तीए जग-गुरूणं संपाइय-पूओवयारेणं पडिलाहियसाहुवग्गेण य, भत्तिब्भर-निब्भरेणं, रोमंच-कंचुपुलइज्जमाणतणू सहरिसविसट्ट वयणारविंदेणं, सद्धा-संवेग-विवेग-परम-वेरग्ग-मूलं विणिहय-घनराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मल-कलंकेण
(३) सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-सुभ-सुभयरऽनुसमय-समुल्लसंत-सुपसत्थज्झवसायगएणं, भुवण-गुरु-जियणंद पडिमा विणिवेसिय-नयन-मानसेणं अनन्नं-माणसेगग्ग-चित्तयाए य।
(४) धन्नो हं पुन्नो हं ति जिन-वंदणाइ-सहलीकयजम्मो त्ति इइ मन्नमानेणं, विरइय-कर-कमलंजलिणा, Translated Sutra: આ પ્રમાણે સૂત્ર, અર્થ, ઉભય સહિત ચૈત્યવંદન આદિ વિધાન ભણીને પછી શુભતિથિ, કરણ, મુહૂર્ત્ત, નક્ષત્ર, યોગ, લગ્ન તેમજ ચંદ્રબળનો યોગ થયો હોય ત્યારે યથાશક્તિ જગતગુરુ તીર્થંકર ભગવંતને પૂજવા યોગ્ય ઉપકરણો એકઠા કરીને સાધુ ભગવંતોને પ્રતિલાભીને ભક્તિપૂર્ણ હૃદયી, રોમાંચિત બની, પુલકિત થયેલા શરીરવાળો, હર્ષિત થયેલ મુખારવિંદવાળો, | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Gujarati | 1369 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं चिर-चिंतियाभिमुह-मणोरहोरु संपत्ति-हरिस-समुल्लसिओ।
भत्ति-भर-निब्भरोणय-रोमंच-उक्कंच-पुलय-अंगो॥ Translated Sutra: આ પ્રમાણે લાંબા કાળથી ચિંતવેલા મનોરથો સન્મુખ થયેલો, તે રૂપ મહાસંપત્તિના હર્ષથી ઉલ્લસિત, ભક્તિ અનુગ્રહ વડે નિર્ભર બની નમસ્કાર કરતો, રોમાંચ ખડા થવાથી રોમેરોમ વ્યાપેલા આનંદ અંગવાળો, ૧૮૦૦૦ શીલાંગ ધારણ કરવા ઉત્સાહપૂર્વક ઊંચા કરેલ ખભાવાળો, ૩૬ પ્રકારે આચાર પાલન માટે ઉત્કંઠિત, નાશ કરેલ સમગ્ર મિથ્યાત્વવાળો, મદ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Gujarati | 1432 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स किं तं विसोहि-पयं सुविसुद्धं चेव लिक्खए।
उयाहु नो समुल्लिक्खे संसयमेयं वियागरे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૩૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1498 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं।
से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी Translated Sutra: હે ભગવન્ ! તે બ્રાહ્મણીએ એવું શું કર્યું હતું કે જેથી આ પ્રમાણે સુલભબોધિ પામીને સવારના પહોરમાં નામ ગ્રહણ કરવા લાયક બની ? તેમજ તેના ઉપદેશથી અનેક ભવ્યજીવો, નર અને નારીના સમુદાય કે જેઓ અનંત સંસારના ઘોર દુઃખમાં સબડી રહેલા હતા તેમને સુંદર ધર્મદેશના વગેરે દ્વારા શાશ્વત સુખ આપીને તેણીએ તેમનો ઉદ્ધાર કર્યો ? હે ગૌતમ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1514 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तीए मयहरीए तेहिं से तंदुलमल्लगे पयच्छिए किं वा णं सा वि य मयहरी तत्थेव तेसिं समं असेस कम्मक्खयं काऊणं परिणिव्वुडा हवेज्ज त्ति।
गोयमा तीए मयहरिए तस्स णं तंदुल मल्लगस्सट्ठाए तीए माहणीए धूय त्ति काऊणं गच्छमाणी अवंतराले चेव अवहरिया सा सुज्जसिरी, जहा णं मज्झं गोरसं परिभोत्तूणं कहिं गच्छसि संपयं त्ति। आह वच्चामो गोउलं। अन्नं च–जइ तुमं मज्झं विनीया हवेज्जा, ता अहयं तुज्झं जहिच्छाए ते कालियं बहु गुल घएणं अणुदियहं पायसं पयच्छिहामि।
जाव णं एयं भणिया ताव णं गया सा सुज्जसिरि तीए मयहरीए सद्धिं ति। तेहिं पि परलोगाणुट्ठाणेक्क सुहज्झवसायाखित्तमाणसेहिं न Translated Sutra: હે ભગવન્ ! તે મહીયારી – ગોકુળપતિની પત્નીને તેઓએ ડાંગરનું ભોજન આપ્યું કે નહીં ? અથવા તો તે મહીયારી તેઓની સાથે સમગ્ર કર્મનો ક્ષય કરીને નિર્વાણ પામેલી હતી ? હે ગૌતમ ! તે મહીયારીને તંદુલ ભોજન આપવા માટે શોધ કરવા જતી હતી ત્યારે આ બ્રાહ્મણની પુત્રી છે, એમ ધારેલું. તેથી જતી હતી ત્યારે વચ્ચેથી જ સુજ્ઞશ્રીનું અપહરણ કર્યું. પછી | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 643 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह नाम पट्टणगओ संते मुलम्मि मूढभावेणं ।
न लहंति नरा लाहं मानुसभावं तहा पत्ता ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 643 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह नाम पट्टणगओ संते मुलम्मि मूढभावेणं ।
न लहंति नरा लाहं मानुसभावं तहा पत्ता ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत् दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: ત્યારે તે કોણિક રાજાએ તે દૂત પાસે આ અર્થને સાંભળી, સમજી, ક્રોધિત થઈ કાલાદિ દશ કુમારોને બોલાવીને કહ્યું – દેવાનુપ્રિય ! નિશ્ચે વેહલ્લકુમાર મને કહ્યા વિના સેચનક હાથી અને અઢારસરો હાર લઈ પૂર્વવત્ ચાલ્યો ગયો છે. મેં દૂતો મોકલ્યા ઇત્યાદિ પૂર્વવત્ બધું કથન કર્યું. હે દેવાનુપ્રિયો ! આપણે ચેટક રાજાની સાથે યુદ્ધ | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1231 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह मुल्लअनाभागी आरामी सो तहिं तु संवुत्तो ।
तह निज्जरअणभागी आयरिओ होति एवं तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1232 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जेण पुन पुव्वदिट्ठा तउसा आरामिएण होंति तहिं ।
सो देति लहुं तउसे मुल्लस्स य होति आभागी ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1543 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पढमाए वामकडगं देति तहिं सतसहस्समुल्लं तु ।
बितियाए कुंडलं तू ततियाए वि कुंडलं बितियं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1231 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह मुल्लअनाभागी आरामी सो तहिं तु संवुत्तो ।
तह निज्जरअणभागी आयरिओ होति एवं तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1232 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जेण पुन पुव्वदिट्ठा तउसा आरामिएण होंति तहिं ।
सो देति लहुं तउसे मुल्लस्स य होति आभागी ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1543 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पढमाए वामकडगं देति तहिं सतसहस्समुल्लं तु ।
बितियाए कुंडलं तू ततियाए वि कुंडलं बितियं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 117 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं ।
भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥ Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Hindi | 533 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिपिंडणमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासओ दावे ।
जह इच्छइ अनुजाणह घयगुलवत्थाणि दावेमि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५३२ | |||||||||
Pindniryukti | પિંડ – નિર્યુક્તિ | Ardha-Magadhi |
उत्पादन |
Gujarati | 533 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिपिंडणमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासओ दावे ।
जह इच्छइ अनुजाणह घयगुलवत्थाणि दावेमि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૨ | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ बहुपुत्रिका |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाने सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी Translated Sutra: भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो भदन्त ! चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् नीकली। उस काल और उस समय में सौधर्मकल्प | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ बहुपुत्रिका |
Gujarati | 8 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाने सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी Translated Sutra: ભગવન્ ! જો નિર્વાણ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પુષ્પિકા ઉપાંગના ત્રીજા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો, ભગવંત મહાવીરે ચોથા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ! તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતુ, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતુ, શ્રેણિક નામે રાજા હતો. ભગવંત મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા, પર્ષદા દર્શનાર્થે નીકળી. તે કાળે | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं Translated Sutra: तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभविमान वासी देव और देवी भी हाथों में उत्पल यावत् शतपथ – सहस्रपत्र कमलों कोल कर सूर्याभदेव के पीछे – पीछे चले। तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव के बहुत – से अभियोगिक देव और देवियाँ हाथों में कलश यावत् धूप – दानों | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ–नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ।
तयानंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे–
(१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं Translated Sutra: तब आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास प्रथम स्थूल प्राणातिपात – परित्याग किया। मैं जीवन पर्यन्त दो करण – करना, कराना तथा तीन योग – मन, वचन एवं काया से स्थूल हिंसा का परित्याग करता हूँ, तदनन्तर उसने स्थूल मृषावाद – का परित्याग किया, मैं जीवन भर के लिए दो कारण और तीन योग से स्थूल मृषावाद का परित्याग किया, | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति।
जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था Translated Sutra: वह निर्णय नामक अण्डवणिक् नरक से नीकलकर विजय नामक चोर सेनापति की स्कन्दश्री भार्या के उदर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास परिपूर्ण होने पर स्कन्दश्री को यह दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं, जो मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धियों और परिजनों की महिलाओं तथा अन्य महिलाओं से परिवृत्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: अनुक्रम से कुमार अभग्नसेन ने बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था में प्रवेश किया। आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। विवाह में उसके माता – पिता ने आठ – आठ प्रकार की वस्तुएं प्रीतिदान में दीं और वह ऊंचे प्रासादों में रहकर मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करने लगा। तत्पश्चात् किसी समय वह विजय चोर सेनापति कालधर्म | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Hindi | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में पाटलिखंड नगर था। वहाँ वनखण्ड उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था। उस नगर में सिद्धार्थ राजा था। पाटलिखण्ड नगर में सागरदत्त नामक धनाढ्य सार्थवाह था। उसकी गङ्गदत्ता भार्या थी। उस सागरदत्त का पुत्र व गङ्गदत्ता भार्या का आत्मज उम्बरदत्त | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 21 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति।
जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था Translated Sutra: તે ત્યાંથી ઉદ્વર્તીને અનંતર આ જ શાલાટવી ચોરપલ્લીમાં વિજય ચોર સેનાપતિની સ્કંદશ્રી પત્નીની કુક્ષિમાં પુત્રપણે ઉત્પન્ન થયો. પછી સ્કંદશ્રીને અન્ય કોઈ દિને ત્રણ માસ પ્રતિપૂર્ણ થતા આ આવા સ્વરૂપનો દોહદ ઉત્પન્ન થયો. તે માતાઓ ધન્ય છે, જે ઘણા મિત્ર – જ્ઞાતિ – નિજક – સ્વજન – સંબંધી – પરિજન મહિલાઓ તથા બીજી પણ ચોર મહિલા | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: ત્યારપછી તે અભગ્નસેન કુમાર બાલભાવથી મુક્ત થયો. આઠ કન્યા સાથે લગ્ન થયા, યાવત્ આઠનો દાયજો મળ્યો. ઉપરી પ્રાસાદમાં ભોગ ભોગવતો વિચરે છે. પછી તે વિજય ચોર સેનાપતિ કોઈ દિવસે મૃત્યુ પામ્યો. પછી તે અભગ્નસેનકુમાર ૫૦૦ ચોરો સાથે પરીવરી રુદન – ક્રંદન – વિલાપ કરતો વિજય ચોરસેનાપતિનું મહાઋદ્ધિ સત્કારના સમુદયથી નીહરણ કર્યું, | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Gujarati | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના છટ્ઠાઅધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો સાતમાંનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે પાડલખંડ નગર હતું, ત્યાં વનખંડ નામે ઉદ્યાન હતું, ઉંબરદત્ત યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. તે નગરમાં સિદ્ધાર્થ રાજા હતો. |