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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 69 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पन्नओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ– भंते! से जहानामए–केइ पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि पाय पिट्ठंतरोरुपरिणए घन निचिय वट्ट बलियखंधे चम्मेट्ठग दुघण मुट्ठिय समाहय निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण पवण जइण पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेधावी निउण सिप्पोवगए पभू पंचकंडगं निसिरित्तए?
हंता पभू। जति णं भंते! सच्चेव पुरिसे बाले अदक्खे अपत्तट्ठे अकुसले अमेहावी मंदविण्णाणे पभू होज्जा पंचकंडगं निसिरित्तए, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिए-ज्जा रोएज्जा Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! यह तो प्रज्ञाजन्य उपमा है। किन्तु मेरे द्वारा प्रस्तुत हेतु से तो यही सिद्ध होता है कि जीव और शरीर में भेद नहीं है। भदन्त ! कोई एक तरुण यावत् कार्यक्षम पुरुष एक विशाल वजनदार लोहे के भार की, सीसे के भार को या रांगे के भार को उठाने में समर्थ है ? केशी कुमारश्रमण – हाँ, समर्थ है। लेकिन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 78 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रन्नो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेइ।
तए णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उट्ठाए उट्ठेति, केसिं कुमार-समणं वंदइ नमंसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–मा णं तुमं पएसी! पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा–से वनसंडेइ वा, नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा, खलवाडेइ वा
कहं णं भंते! वनसंडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी! जया णं वनसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे Translated Sutra: तत्पश्चात् केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा, सूर्यकान्ता आदि रानियों और उस अति विशाल परिषद् को यावत् धर्मकथा सूनाई। इसके बाद प्रदेशी राजा धर्मदेशना सून कर और उसे हृदय में धारण करके अपने आसन से उठा एवं केशी कुमारश्रमण को वन्दन – नमस्कार किया। सेयविया नगरी की ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। केशी कुमारश्रमण ने | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
संस्तारकस्य दृष्टान्ता |
Hindi | 67 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जल्ल-मल-पंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं ।
अज्जीरणो उ गीओ कत्तियअज्जो सरवणम्मि ॥ Translated Sutra: शरीर का मल, रास्ते की धूल और पसीना आदि से कादवमय शरीरवाले, लेकिन शरीर के सहज अशुचि स्वभाव के ज्ञाता, सुरवणग्राम के श्री कार्तिकार्य ऋषि शील और संयमगुण के आधार समान थे। गीतार्थ ऐसे वो महर्षि का देह अजीर्ण बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी वो सदाकाल समाधि भाव में रमण करते थे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Hindi | 645 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: से बेमि–पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तेसिं च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया। सतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। असतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया।
जे ते सतो Translated Sutra: मैं ऐसा कहता हूँ कि पूर्व आदि चारों दिशाओं में नाना प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं, जैसे कि कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य होते हैं, यावत् कोई कुरूप। उनके पास खेत और मकान आदि होते हैं, उनके अपने जन तथा जनपद परिगृहीत होते हैं, जैसे कि किसी का परिग्रह थोड़ा और किसी का अधिक। इनमें से कोई पुरुष पूर्वोक्त कुलों में | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 61 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिजुन्नेहिं वत्थेहिं होक्खामि त्ति अचेलए ।
अदुवा सचेलए होक्खं इइ भिक्खू न चिंतए ॥ Translated Sutra: ‘‘वस्त्रों के अति जीर्ण हो जाने से अब मैं अचेलक हो जाऊंगा। अथवा नए वस्त्र मिलने पर मैं फिर सचेलक हो जाऊंगा’’ – मुनि ऐसा न सोचे। ‘‘विभिन्न एवं विशिष्ट परिस्थितियों के कारण मुनि कभी अचेलक होता है, कभी सचेलक। दोनों ही स्थितियाँ संयम धर्म के लिए हितकारी है’’ – ऐसा समझकर मुनि खेद न करे। सूत्र – ६१, ६२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० द्रुमपत्रक |
Hindi | 311 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते ।
से सोयबले य हायई समयं गोयम! मा पमायए ॥ Translated Sutra: तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, बाल सफेद हो रहे हैं। श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है। शरीर जीर्ण हो रहा है, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है। घ्राण शक्ति हीन हो रही है। रसग्राहक जिह्वा की शक्ति नष्ट हो रही है। स्पर्शशक्ति क्षीण हो रही है। सारी शक्ति ही क्षीण हो रही है। इस स्थिति में गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। सूत्र | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 7 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसि? किं नामए वा किं गोत्ते वा? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसिं वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?
गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे वण्णओ।
तत्थ णं सयदुवारे नयरे धनवई नामं राया होत्था–वण्णओ।
तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे नामं Translated Sutra: भगवन् ! यह पुरुष मृगापुत्र पूर्वभव में कौन था ? किस नाम व गोत्र का था ? किस ग्राम अथवा नगर का रहने वाला था ? क्या देकर, क्या भोगकर, किन – किन कर्मों का आचरण कर और किन – किन पुराने कर्मों के फल को भोगता हुआ जीवन बिता रहा है ? श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम को कहा – ‘हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप |