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Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-२ Hindi 32 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेति, तेसि णं अयं दोसे। तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, तेसि

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एक मंडल से दूसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कैसे गति करता है ? इस विषय में दो प्रति – पत्तियाँ हैं – (१) वह सूर्य भेदघात से संक्रमण करता है। (२) वह कर्णकला से गमन करता है। भगवंत कहते हैं कि जो भेदघात से संक्रमण बताते हैं उसमें यह दोष है कि भेदघात से संक्रमण करता सूर्य जिस अन्तर से एक मंडल से दूसरे मंडल
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-३ Hindi 33 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केयतियं ते खेत्तं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता छ छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु –ता पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता चत्तारि-चत्तारि जोयणस-हस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ४ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता छ-छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! कितने क्षेत्र में सूर्य एकएक मुहूर्त्त में गमन करता है ? इस विषय में चार प्रतिपत्तियाँ हैं। (१) सूर्य एक – एक मुहूर्त्त में छ – छ हजार योजन गमन करता है। (२) पाँच – पाँच हजार योजन बताता है। (३) चार – चार हजार योजन कहता है। (४) सूर्य एक – एक मुहूर्त्त में छह या पाँच या चार हजार योजन गमन करता है। जो यह कहते हैं
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-३

Hindi 34 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ बारस पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता एगं दीवं एगं समुद्दं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति १ एगे पुण एवमाहंसु–ता तिन्नि दीवे तिन्नि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता अद्धुट्ठे दीवे अद्धुट्ठे समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता सत्त दीवे सत्त समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु ४ एगे

Translated Sutra: चंद्र – सूर्य कितने क्षेत्र को अवभासित – उद्योतित – तापित एवं प्रकाशीत करता है ? इस विषय में बारह प्रति – पत्तियाँ हैं। वह इस प्रकार – (१) गमन करते हुए चंद्र – सूर्य एक द्वीप और एक समुद्र को अवभासित यावत्‌ प्रकाशित करते हैं। (२) तीन द्वीप – तीन समुद्र को अवभासित यावत्‌ प्रकाशीत करते हैं। (३) अर्द्ध चतुर्थद्वीप
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-६

Hindi 37 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते ओयसंठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु २ एवं एतेणं अभिलावेणं नेतव्वा–ता अनुराइंदियमेव ३ ता अनुपक्खमेव ४ ता अनुमासमेव ५ ता अनुउडुमेव ६ ता अनुअयणमेव ७ ता अनुसंवच्छरमेव ८ ता अनुजुगमेव ९ ता अनुवाससयमेव १० ता अनुवाससहस्समेव ११ ता अनुवाससयसहस्समेव १२ ता अनुपुव्वमेव १३ अनुपुव्वसयमेव १४ ता अनुपुव्वसहस्समेव १५ ता अनु पुव्वसयसहस्समेव १६ ता अनुपलिओवममेव

Translated Sutra: सूर्य की प्रकाश संस्थिति किस प्रकार की है ? इस विषय में अन्य मतवादी पच्चीश प्रतिपत्तियाँ हैं, वह इस प्रकार हैं – (१) अनु समय में सूर्य का प्रकाश अन्यत्र उत्पन्न होता है, भिन्नता से विनष्ट होता है, (२) अनुमुहूर्त्त में अन्यत्र उत्पन्न होता है, अन्यत्र नाश होता है, (३) रात्रिदिन में अन्यत्र उत्पन्न होकर अन्यत्र विनाश
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-९

Hindi 41 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठे ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वएज्जा २ एवं एएणं अभिलावेणं नेयव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं पडिवत्तीओ ताओ चेव नेयव्वाओ जाव अनुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहिताति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वयामो–ता सूरियस्स णं उच्चत्तं च लेसं च पडुच्च छाउद्देसे, उच्चत्तं च छायं च पडुच्च

Translated Sutra: कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं – जो छठ्ठे प्राभृत के समान समझ लेना। जैसे की कोई कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषी छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि। भगवंत फरमाते हैं कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्बन्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 171 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रयणिकरदिणकराणं, उड्ढं च अहे य संकमो नत्थि । मंडलसंकमणं पुण, सब्भंतरबाहिरं तिरिए ॥

Translated Sutra: सूर्य और चंद्र का ऊर्ध्व या अधो में संक्रमण नहीं होता, वे मंडल में सर्वाभ्यन्तर – सर्वबाह्य और तीर्छा संक्रमण करते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ प्रत्याख्यान

Hindi 703 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिट्ठंते य असण्णिदिट्ठंते य। से किं तं सण्णिदिट्ठंते? सण्णिदिट्ठंते– जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।एतेसि णं छज्जीवणिकाए पडुच्च, पइण्णं कुज्जा? से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से ‘य तेणं’ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं

Translated Sutra: आचार्य ने कहा – इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने दो दृष्टान्त कहे हैं, एक संज्ञिदृष्टान्त और दूसरा असंज्ञिदृष्टान्त। (प्रश्न – ) यह संज्ञी का दृष्टान्त क्या है ? (उत्तर – ) संज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – जो ये प्रत्यक्ष दृष्टि – गोचर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय
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